राजनीति के साथ हर विषय पर लेख पढने को मिलेंगे....

गुरुवार, फ़रवरी 26, 2009

राजिम कुम्भ आगे जरूर विराट रूप लेगा

राजिम कुम्भ में आए कई अखाड़ों के साथ संतों और महामंडलेश्वरों का ऐसा मानना है कि अभी तो राजिम कुम्भ एक शिशु के रूप में है। इसको अभी विराट रूप लेने में समय लगेगा। वैसे प्रदेश सरकार ने इसको कुम्भ का रूप देने के जो भी प्रयास किए हैं, उसकी सराहना सभी कर रहे हैं। सभी का एक स्वर में ऐसा भी मानना है कि छत्तीसगढ़ सरकार पहली राज्य सरकार है जिसने एक कुम्भ का आयोजन करने का अच्छा प्रयास किया है। इसी के साथ साधु-संतों का ऐसा मानना है कि संत-समागम कराने वाली और साधु-संतों का ध्यान रखने वाली भी छत्तीसगढ़ सरकार पहली सरकार है।
राजिम कुम्भ में इस बार भी देश भर के कई अखाड़ों के साधु-संत आए। इन संतों से आर्शीवाद लेने प्रदेश भर से लोग कुम्भ में गए। भरी गर्मी में भी साधु-संतों की कुटिया में भीड़ नजर आई। कहीं पर किसी कुटिया में कोई संत प्रवचन देने में मग्र रहे तो कहीं पर कुटिया के बाहर बैठे संतों से लोगों का आर्शीवाद लेने का सिलसिला चल रहा था । इन कुटिया में निवास करने वाले ज्यादातर अखाड़ों के संतों का राजिम कुम्भ के बारे में पूछे जाने पर सीधा और साफ जवाब यह था कि राजिम कुम्भ तो अभी शिशु के रूप में है। इसको प्रारंभ हुए अभी पांचवां ही साल है। इस कुम्भ के बारे में हरिद्वार, बनारस, गुजरात, इलाहाबाद, आदि अखाड़ों से आए संतों का कहना है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने एक अच्छा प्रयास किया है। इस सरकार ने जैसा प्रयास किया है, वैसा पहले किसी राज्य की सरकार ने नहीं किया है। सभी संतों का एक स्वर में यह मानना है कि यहां पर सरकार जिस तरह से राजिम को एक महा कुम्भ का स्वरूप देने में लगी है उसमें उसको जरूर सफलता मिलेगी लेकिन इसके लिए समय लगेगा।
इस बार राजिम कुम्भ में जहां एक तरफ नागा बाबा भारी संख्या में आएं, वहीं इस बार दंडी संन्यासी भी ज्यादा आए। बनारस के एक संत विमल देव को यहां पिछली बार कुम्भ में आकर अच्छा लगा था जिसकी वजह से उन्होंने दूसरे संन्यासियों को भी इसमें आने के लिए कहा जिसके कारण यहां पर ज्यादा दंडी संन्यासी भी आए। कुम्भ में तंत्र साधना जानने वाले तंत्र-मंत्र सम्राट योगीराज बिन्दु महाराज सहित और भी साधु आए। सभी को यह कुम्भ बहुत भाया। योगीराज इस कुम्भ के बारे में यह कहते हैं कि यह कुम्भ है तो अच्छा पर इसको और विकसित करने के लिए साधु-संतों के साथ विचार-विर्मश करना चाहिए। साधु-संतों के बताए मार्ग पर ही चल कर इसके रूप को विराट किया जा सकता है।
महाराष्ट से आए विज्ञानाचार्य देशदीपक तिवारी का इस बारे में विचार है कि यहां पर आकर साधु-संतों को वास्तव में अद्भुत शांति मिलती है। ऋषिकेश से आए दंडी स्वामी का राजिम कुम्भ के बारे में कहना है कि कुम्भ में अक्सर देखा गया है कि साधु-संतों के लिए सरकार कोई व्यवस्था नहीं करती है, लेकिन छत्तीसगढ़ में होने वाले इस कुम्भमें जिस तरह का ध्यान सरकार द्वारा साधु-संतों का रखा जाता है, वैसा कहीं नहीं होता है। गुजरात से आए स्वामी गोपाल दास का कहना है कि भारत में किसी भी कुम्भ में संतों के समागम का ऐसा काम कोई सरकार नहीं कर पाई है जैसा काम यहां की सरकार कर रही है। गुजरात के ही एक और संत महांडलेश्वर स्वामी रामचन्द्र दास कहते हैं कि यहां होने वाले संतों के विराट समागम में आकर सारे संत धन्य हो जाते हैं। ऐसे आयोजन के लिए यहां की सरकार को जितना साधुवाद दिया जाए कम है। उन्होंने राजिम कुम्भ के बारे में कहा कि उनको यहां आकर ऐसा लगा कि जिसकी हमें तलाश थी वो यही है।

Read more...

राजिम ·कुम्भ आगे जरूर विराट रूप लेगा

Read more...

बुधवार, फ़रवरी 25, 2009

कुम्भ की मेजबानी में भी छत्तीसगढ़ नंबर वन



छत्तीसगढ़ का नाम आज राजिम कुम्भ की मेजबानी में नंबर वन पर आ गया है। छत्तीसगढ़ देश का ऐसा एक मात्र राज्य है जहां पर हर साल कुम्भ का आयोजन होता है। अब यह बात अलग है कि राजिम कुम्भ को कुम्भ कहने से कुछ लोगों को आपत्ति होती है, लेकिन देश के महान साधु-संतों ने जरूर इसको देश के पांचवें कुम्भ का नाम दे दिया है। वैसे राजिम को कुम्भ कहने से किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। अगर देश में एक और कुम्भ प्रारंभ हुआ है और वह भी एक ऐसा कुम्भ जहां पर हर साल देश भर के साधु-संतों का जमावड़ा लगता है तो इसमें बुरा क्या है। वैसे राजिम को कुम्भ का दर्जा दिलाने में सबसे बड़ा हाथ प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की सरकार और उसके मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ पयर्टन- संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का है। आज देश का ऐसा कोई साधु-संत नहीं होगा जो इन दोनों को नहीं जानता होगा। राजिम की नगरी पुराने जमाने से साधु-संतों की नगर रही है। यहां पर लोमष ऋषि का आश्रम है। इसी आश्रम में आकर देश के नागा साधुओं को जो सकुन और चैन मिलता है, वैसा उनको कहीं नहीं मिलता है। सारे साधु-संत एक स्वर में इस बात को मानते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार ने जैसा काम राजिम कुम्भ के लिए किया है वैसा देश में किसी और राज्य की सरकार ने नहीं किया है। ऐसे में क्यों न सरकार की तारीफ हो। कुम्भ के बारे में ऐसा कहा जाता है कि जहां पर साधु-संतों का आगमन होता है और धर्म की अमृत वाणी बरसती है, वहीं कुम्भ होता है। ऐसा सब कुछ तो राजिम में होता है, फिर इसको क्यों न कुम्भ कहा जाए। राजिम में जितने भी दिग्गज साधु-संत आए हैं सबने इसको कुम्भ का ही नाम दिया है। इस बार जब राजिम में 9 से 23 फरवरी तकुम्भ का आयोजन हुआ तो यह आयोजन पहले के आयोजनों से बेहतर रहा। सभी साधु-संतों ने इस बात को स्वीकार किया कि भाजपा सरकार इस राजिम कुम्भ का स्वरूप लगातार निखारते जा रही है। जितने भी साधु-संतों के साथ प्रदेश के रहवाली राजिम कुम्भ में आते हैं सभी खुले मन से इसकी तारीफ करते हैं। वैसे यह बात तय है कि छत्तीसगढ़ हमेशा ही हर आयोजन में मेजबान नंबर वन रहा है। अगर हम खेलों की बात करें तो प्रदेश का नाम मेजबानी में नंबर वन पर है। ऐसे में जबकि राजिम कुम्भ की कमान भी उन बृजमोहन अग्रवाल के हाथ में रहती हैं जिनके हाथों में काफी समय तक प्रदेश के खेल मंत्रालय कि भी कमान रही है तो इसमें कोई संदेह नहीं कि उनका आयोजन नंबर वन ही रहेगा। यह श्री अग्रवाल के ही बस की बात रही है जो उन्होंने राजिम कुम्भ को आज देश के साथ विदेश में भी एक अलग पहचान देने में सफलता प्राप्त की है। राजिम कुम्भ में आने वाले साधु-संतों को किसी बात की कमी होने नहीं दी जाती है। लगातार उनके लिए रहने के साथ खाने-पीने के साधनों को सुव्यवस्थित करने का काम किया जा रहा है। आज जिस स्थान पर कुम्भ का आयोजन होता है, वहां पर किसी बात की कमी किसी को नहीं रहती है। सबका ऐसा मानना है कि ऐसी व्यवस्था करना तो बस सरकार के बस में ही है। वैसे राजिम लोचन मेले का महत्व शदियों से है, लेकिन इधर पिछले पांच सालों में इसका जो रूप सामने आया है उसकी कल्पना तो किसी ने नहीं की थी कि राजिम का मेला ऐसा भी हो सकता है। मेले में आने-वाले आस-पास के लोग इस बात से हैरान रहते हैं कि यह मेला इतने बड़े रूप में आ गया है। पहले पहल जब मेला लगता था तो आस-पास के गांव के ही लोग आते थे, लेकिन आज राजिम को जब से कुम्भ का रूप दिया गया है शहर के लोग भी राजिम की तरफ खींचे चले जाते हैं। इसका कारण यह है की जिन साधु-संतों के दर्शन करने के लिए लोगों को देश के बड़े तीर्थ स्थलों में जाना पड़ता है, वे सभी साधु-संत राजिम कुम्भ में आते हैं। ऐसे में भला कोई इनसे आर्शीवाद पाने का मोह त्याग सकता है।



Read more...
Related Posts with Thumbnails

ब्लाग चर्चा

मेरी ब्लॉग सूची

  © Blogger templates The Professional Template by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP