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शनिवार, अप्रैल 04, 2009

कम होने लगे कपड़े- बढऩे लगे लफड़े

कल शाम की बात है हम अपनी बाइक पर प्रेस जा रहे थे। हमारे शहर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के बूढ़ातालाब के पास हमें एक स्कूटी पर एक कन्या जाती दिखीं। उस कन्या के पीछे-पीछे दो बाइक पर चार लड़के चले जा रहे थे। उन सभी लड़कों की नजरें उस कन्या को ऐसे देख रही थी मानो उसको कच्चा ही चबा जाएंगे। उन लड़कों की यह हरकत थी तो गलत पर इसका क्या किया जाए कि उन लड़कों को ऐसी हरकत करने के लिए उस कन्या के कपड़े ही उकसा रहे थे। हमारे कहने का मतलब यह है कि उस कन्या ने जींस के ऊपर जो सफेद टी-शर्ट पहन रखी थी, वह टी-शर्ट एक तो बिना अस्तीन के थी ऊपर से तुरा यह कि वह इतनी ज्यादा झीनी थी कि कन्या ने टी-शर्ट ने अंदर क्या पहना है, वह सब साफ-साफ नजर आ रहा था। अब ऐसे में वो लड़के भी क्या करते। ऐसे समय में हमें अभिताभ बच्चन की एक फिल्म दोस्ताना का यह डायलॉग याद आ गया जो वे जीनत अमान को उस समय थाने में कहते हैं जब वह एक लड़के द्वारा रास्ते में छेडऩे की शिकायत थाने में करने जाती हैं। उनका पहनावा देख कर अमिताभ ने तब कहा था कि मैडम आप ऐसे कपड़े पहनेंगी तो लोग सीटी नहीं तो क्या मंदिर की घंटियां बजाएंगे।

वास्तव में आज की हमारी कम उम्र की लड़कियों के साथ युवा लड़कियां ही नहीं बल्कि महिलाएं और महिलाओं में बड़ी उम्र की महिलाएं भी कपड़ों के पहनने का लहजा भूल गई हैं लगता है, आज जिसके भी शरीर से देखो तो कपड़े कम होते जा रहे हैं। या फिर कपड़े ऐसे झीने होते हैं कि पूरा शरीर नजर आता है। अब इसे फिल्मों और टीवी का असर कहें या कि पश्चिम संस्कृति का रंग जो महिलाएं कपड़ों को इस तरह से पहनने लगी हैं कि उनका शरीर उससे ढ़कता कम है और दिखता ज्यादा है। अब ऐसे कपड़े पहन कर महिलाएं रास्ते में निकलेंगी तो वास्तव में मनचले उनको देखकर सीटियां नहीं बचाएंगे तो क्या मंदिर की घंटियां बजाएंगे। यह बात गंभीर चिंतन का विषय है कि आखिर आज हमारी भावी पीढ़ी के साथ पुरानी पीढ़ी किस दिशा में जा रही है। वास्तव में देखा जाएं तो महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के लिए महिलाएं ही ज्यादा दोषी हैं। उनको इस बात से कोई मतलब नहीं रहता है कि उनका पहनावा कैसा है, उनको तो बस नए जमाने के फैशन के साथ चलना है, फिर इस फैशन के कारण भले उनको पूरे जमाने की गंदी नजरों का सामना ही क्यों न करना पड़े। आज ऐसी कोई सड़क नजर नहीं आती है जहां से गुजरने पर कम कपड़े पहने हुए युवतियां नजर नहीं आती हैं। युवतियों को तो कपड़े पहनने का होश भी नहीं रहता है। आज जींस और टी-शर्ट पहनने वाली युवतियों को इस बात का पता ही नहीं रहता है कि जब वे जींस के साथ टी-शर्ट पहनकर वाहन चलाती हैं तो वाहन चलाते समय उनकी टी-शर्ट किस हालत में रहती है और उनकी इस हालत का राह चलते कितने लोग लुफ्त उठाने का काम करते हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज अगर युवा पीढ़ी कपड़ों के मामले में गलत रास्ते पर चल पड़ी है तो इसका बहुत ज्यादा दोष फिल्मों के साथ टीवी पर आने वाले फैशन शो को जाता है। इन शो में जिस तरह के कपड़े दिखाएं जाते हैं वो कपड़े वास्तव में आम जिंदगी में पहनने लायक नहीं रहते हैं। यही बात फिल्मों पर भी लागू होती है। अगर कोई मल्लिका शेरावत या फिर विपाशा बसु किसी फिल्म में बिकनी पहन कर सड़क पे चलने लगे तो इसका यह मलतब तो नहीं है कि आज की युवतियां भी ऐसा करने लगे। फिल्मों में अक्सर नायिकाएं जिस तरह से कपड़े पहनती हैं उनको आम जिंदगी में पहनना मुश्किल होता है। लेकिन इसका क्या किया जाए कि ऐसे कपड़े पहनने से भी आज की युवतियां परहेज नहीं करती हैं। छोटे शहरों में तो फिर भी हालात ठीक है, लेकिन महानगरों के हालात काफी खराब होते जा रहे हैं। अब अपना शहर रायपुर भी एक तरह से महानगर हो गया है, क्योंकि यह छत्तीसगढ़ की राजधानी है। ऐसे में यहां की रहने वाली युवतियां अपने को देश के महानगरों की युवतियों से किसी भी मायने में कम नहीं मानती हैं। अब अपने को कम नहीं मानती हैं तो बड़े महानगरों की युवतियों की तरह ही नए फैशन के ऐसे कम कपड़े पहनती हैं जिससे शरीर ढ़कता काम और दिखता ज्यादा है। ऐसे कपड़ों के पहनने का मतलब साफ है कि वे खुद ही अपने लिए मुसीबत का सामान करती हैं। रायपुर तो बहुत कुछ शांत है जिसके कारण कम से कम यहां खुले आम सड़क पर कोई ऐसी-वैसी घटना नहीं होती है, लेकिन आगे भी कोई घटना नहीं होगी इसकी गारंटी तो नहीं ली जा सकती है ना। आज की युवा पीढ़ी को कम कपड़ों की राह पर जाने से रोकने के लिए पालकों को बहुत ज्यादा सर्तक रहने की जरूरत है, लेकिन आज की भागमभाग वाली जिंदगी में लगता है कि पालक अपनी जवान होती लड़कियों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। वैसे भी इस तरह का फैशन करने वाली युवतियां ऐसे घरों से होती हैं जिनके पालकों के पास वास्तव में अपनी लड़कियों के लिए समय नहीं होता है। यही वजह है कि ऐसी युवतियां न सिर्फ कपड़ों के मामले में बिंदाश हो जाती हैं, बल्कि हर मामले में बिंदाश हो जाती हैं और आगे चलकर मुसीबतों में फंस जाती हैं। ऐसे में जरूरी है कि इन युवतियों को खुद ही समझना पड़ेगा कि उनके लिए क्या सही और क्या गलत होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ को हालात दिन-ब-दिन खराब होते जाएंगे और अपराध का ग्राफ भी बढ़ता चला जाएगा।

10 टिप्पणियाँ:

ghughutibasuti शनि अप्रैल 04, 01:46:00 am 2009  

मैंने सड़क पर पुरुषों को केवल शॉर्ट्स पहने घूमते देखा है, बाल्कनियों पर केवल तौलिया लपेटे घूमते देखा है, मजाल है जो किसी ने उन्हें उपदेश दिए हों। हम आपके कपड़ों के कारण आप पर फ़ब्तियाँ नहीं कसते तो यह हमारी कमजोरी, आप हमारे कपड़ों के बावजूद हमें सकुशल छोड़ देते हैं यह आपकी व आपके शहर की महानता ! वैसे तो हम पर तालिबानी किस्म का कानून भी कम ही थोपते हैं उसके लिए भी आभार। आशा है यह कृपा बनाए रखेंगे, मन्दिर की घंटियाँ बजाते रहेंगे।
वैसे मुझे पूर्ण विश्वास है मुम्बई में जो दो साल की लड़की बलात्कार करके नाली में यूज़ एन्ड थ्रो की तर्ज पर फेंक दी गई थी वह भी बलात्कारी को उकसाने के लिए दोषी थी। भारत जैसे पुरुष प्रधान देश में जन्म लेने का दुस्साहस करने की दोषी उस बच्ची को सही सजा मिली थी।
अगली बार जब किसी की नई महंगी कार चोरी हो जाए, या किसी के घर में चोरी या डाका पड़े तो उन्हें भी चोरों को उकसाने वाली बात कहिएगा। अपराधी अपराध थोड़े ही करता है, अपने शरीर और सामान का प्रदर्शन करने वाले असली अपराधी होते हैं, भड़काने, उकसाने के दोषी। सजा इन्हीं को मिलनी चाहिए।
वैसे इन गंदी नजरों वालों के लिए भी कोई सलाह है क्या?
घुघूती बासूती

Anil Kumar शनि अप्रैल 04, 02:56:00 am 2009  

आदम और हव्वा नंगे थे।
फिर इंसान कपड़े पहनने लगा।
आज फिर उतारने पर उतारू है।
इसी को कहते हैं कालचक्र।
पहिया पूरा घूम चुका है।

अनिल कान्त शनि अप्रैल 04, 10:36:00 am 2009  

अब क्या कहें ...हम बोलेंगे तो बोलोगे कि बोलता है

काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif शनि अप्रैल 04, 10:57:00 am 2009  

मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ, हमारे आगरा में भी यही हाल है, पहले कम कपडे पहनती है और किसी के घूरने या छेड़ने पर शिकायत करती है, या तो pehno नहीं ऐसे कपडे के कोई chede या फिर शिकायत मत करो.....

बेनामी,  शनि अप्रैल 04, 11:47:00 am 2009  

राजकुमार जी, बात आप बिल्कुल सही कह रहे हैं।
लेकिन मेरी साँसें रूकी हुयी हैं कहीं आपको 18 वीं सदी वाला, पिछड़े ख्यालों वाला घोषित करने वाले आ गये तो?

राजकुमार ग्वालानी शनि अप्रैल 04, 04:21:00 pm 2009  

जो इंसान अपराधी किस्म का है, वह तो अपराध करेगा ही न, लेकिन किसी अपराधी को अपराध करने के लिए उकसाना क्या कम बड़ा अपराध है। अगर कोई इंसान अपने घर के दरवाजे खुले रखे और उम्मीद करे कि चोर चोरी नहीं करेगा और वह साधू की तरह उसके घर के दर्शन करके चला जाएगा तो यह तो उस सोचने वाले की सोच पर निर्भर करता है। हमारा देश एक सुसंस्कृत देश है इस देश की कुछ सभ्यताएं और मर्यादाएँ हैं। विदेश में लड़कियां टॉप लेस भी निकल जाएँ तो उनको कोई कुछ नहीं कहता है क्योंकि यह उन देशों की संस्कृति है, लेकिन क्या यह सब अपने देश में संभव है, कदापि नहीं। भारत में शालीन पहनावे पर ध्यान रखना हर महिला के साथ उस महिला के पालकों का भी फर्ज बनता है। अगर महिलाएं शरीर दिखाने वाले कपड़े पहनेंगी और यह सोचेंगी कि उनको कोई कुछ न बोले तो यह कैसे संभव है। हर इंसान को अपने घर और अपनी रखवाली करनी चाहिए, आप इसमें कोताही करते हैं तो इसके लिए पहले दोषी आप हैं, चोरी करने वाला तो अपराधी होता ही लेकिन आप अगर गलत करते हैं तो आपका नुकसान होता है तो फिर आप सही कैसे हो गए। जब हम अपराध करने वालों के लिए कड़ी सजा की बात करते हैं तो अपराध करने के लिए उकसाने वालों को कैसे छोड़ा जा सकता है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि अंग प्रदर्शन करने वाले पुरुषों को कोई कुछ नहीं कहता है। लेकिन पुरुष और महिलाओं में अंतर क्या है यह बताने वाली बात नहीं है। पुरुष का शरीर खुला रहे तो उसको कोई फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन जहां तक महिलाओं का सवाल है तो उनके लिए शरीर को खुला रखना क्या भारतीय संस्कृति के दायरे में है, यह सोचने वाली बात है। अगर किसी महिला को मल्लिका शेरावत बनने का शौक है तो हम कौन होते हैं उनको रोकने वाले, शौक से वह मल्लिका क्या ब्रिटनी बन सकती हैं।

मसिजीवी शनि अप्रैल 04, 06:23:00 pm 2009  

आप चाहें तो रायपुर को भारतीय तालीबानी राजधानी के लिए प्रस्‍तावित कर सकते हैं... उनके आइडियालाग बनने के लिए भी दावेदारी पेश करने पर विचार करें। पीछा करने वाले जो लुच्‍चई कर रहे थे वे किस संस्‍कृति के तहत कर रहे थे..इसका भी खुलासा हो जाता तो हमारे ज्ञानचक्षु खुलते

महेन शनि अप्रैल 04, 06:58:00 pm 2009  

राजकुमार भाई,
अगर अपने इतिहास पढ़ा हो तो शायद मालूम होगा कि पहनावे में यह बदलाव भारत में मुस्लिम संस्कृति के आने से हुआ. उससे पहले यहाँ के पहनावे में काफी खुलापन होता था और उस समय के लोगों की महिलाओं को लेकर मानसिकता और रवैया आपके और आपके जैसे चंद थके हुए लोगों से आधुनिक होता था. जैसा कि निर्मल वर्मा जी ने कहा था, "आधुनिकता का लाभ उठाने के लिए आदमी को आधुनिक भी होना चाहिए". अगर कोई मूढ़मति होकर सोचेगा तो उसे हर चीज़ उलटी ही नज़र आएगी.
अगर आपको महिलाओं के पहनावे से विरोध है या आपको लगता है कि आपको यह तय करने का अधिकार है कि वे क्या पहने और क्या न पहने कृपया उन पुरुषों के लिए भी अपने शब्द बचाकर रखिये जो आगे के दो बटन खोलकर चलते हैं या सड़क पर चलते टांगों के बीच खुजाते हैं. संभव है आपकी तय की हुई यह संस्कृति पुरुषों के बारे में बात करना पसंद नहीं करती क्योंकि वे नियमों से ऊपर हैं.
वैसे लफड़ा उन्ही महिलाओं के साथ होता है जो कम कपडे पहनकर चलती हैं या आपको यह स्वीकार करते शर्म महसूस होती है कि आप एक कुंठित हो चुके पुरुष वर्ग का नेतृत्व करते हैं?

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद शनि अप्रैल 04, 10:41:00 pm 2009  

"मैंने सड़क पर पुरुषों को केवल शॉर्ट्स पहने घूमते देखा है, बाल्कनियों पर केवल तौलिया लपेटे घूमते देखा है, मजाल है जो किसी ने उन्हें उपदेश दिए हों। "
तो बजाइये आप भी सीटी:)

बेनामी,  रवि अप्रैल 05, 10:12:00 am 2009  

bahut khub blog par chitr daal rahey haen mallika sheravat kaa aur baatey kar rahey sabhytaa ki . is chitr ko hi hataa dae itni sabhytaa to dikhlaayee please

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