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मंगलवार, अप्रैल 21, 2009

लेखन का धंधा-मत करो गंदा

किसी को भी ज्यादा स्वंतत्रता मिल जाए तो उसका वह किस तरह से सदउपयोग करने की बजाए दुरुउपयोग करने लगता है इसका सबसे बड़ा उदाहरण हमें ब्लाग जगत में नजर आता है। ब्लाग जगत को अपनी अभिव्यक्ति पेश करने के लिए प्रारंभ किया गया है, लेकिन न जाने यहां कैसे-कैसे लोग हैं जो अभिव्यक्ति के नाम पर न जाने क्या-क्या लिखते हैं। ब्लाग जगत में हमें कदम रखें अभी जुम्मा-जुम्मा चार दिन ही हुए हैं। लेकिन इन चार दिनों में ब्लाग जगत में बमुश्किल 10 प्रतिशत ब्लाग जो हमने पढ़े हैं उससे हमें ऐसा लगता है कि कई लोग ब्लाग का सही उपयोग नहीं कर रहे हैं। ब्लाग पर लोग न जाने क्या-क्या लिख देते हैं। एक पोस्ट अपने शुरुआती दौर में देखी थी जिस पोस्ट में रंड़ी शब्द का उपयोग लगातार किया गया था। किसी पोस्ट की आलोचना में भी हमारे लेखक भाई सीमाएं लांघते नजर आते हैं। पोस्ट लेखकों के तो नाम-पते तक फर्जी हैं। ऐसे में हमें लगता है कि ब्लाग जगत के लिए भी कोई न कोई कानून तो होना ही चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो कोई छद्म नाम का ब्लागर कभी किसी की मां-बहन एक करने से भी नहीं चूकेगा। वैसे चोरियां करना तो आम बात है ब्लाग जगत में। हो सकता है हमारी बातों से ज्यादातर लोग समहत न हों। लेकिन चूंकि हमें अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त करने की स्वतंत्रता है तो हम कम से कम सही अभिव्यक्ति तो व्यक्त करने से पीछे हटने वाले नहीं हैं।
हम ब्लाग जगत में इसलिए आएं हैं क्योंकि हम समाज को कुछ अच्छा देने के साथ अपने लेखन की उस मृगतृष्णा को शांत करना चाहते हैं जो अखबार में काम करते हुए पूरी होने वाली नहीं है। वास्तव में आज अखबार में सही लिखने की कदर नहीं होती है। सही लिखने वालों को कोई छापना नहीं चाहता है। ब्लाग जगत में आने से हमारा मकसद तो पूरा होता नजर आ रहा है, लेकिन इसी के साथ एक बात जो हमें खटकती है, वह यह है कि ब्लाग जगत को कुछ लोग अपनी जागीर की तरह समझते हुए उसको गंदा करने में लगे हैं। वास्तव में देखा जाए तो लेखन वह कला है जो माता सरस्वती की देन है। यह कला हर किसी को नसीब नहीं होती है। जिस इंसान को यह कला नसीब होती है वह वास्तव में नसीब वाला होता है। फिर लेखन का एक मतलब यह भी होता है कि आपको अपने लेखन से समाज को एक सही रास्ता दिखाना है। ऐसे में जबकि समाज को सही राह दिखाने का काम करना चौथे स्तंभ यानी अखबारों का काम रहा है तो आज लगता है कि अखबार तो पूरी तरह से पेशेवर हो गए हैं और उनको समाज की कम और अपने विज्ञापनों की चिंता ज्यादा रहती है। ऐसे में किसी अखबार से यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वह समाज को सही दिशा दिखाने का काम करेगा। इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज मीडिया पूरी तरह से अपनी राह भटक गया है और सिर्फ और सिर्फ पैसों के पीछे भाग रहा है। ऐसे समय में जब ब्लाग जगत का आगाज हुआ था तो एक उम्मीद जागी थी कि चलो कम से कम यहां पर तो लेखन पर किसी की लगाम नहीं है और सही लिखने वालों को एक मंच मिल जाएगा। मंच मिला है तो उसका काफी लोग सही उपयोग भी कर रहे हैं और काफी अच्छा लिखते हुए समाज को वह सब देने की कोशिश कर रहे हैं जो समाज को सही दिशा में ले जा सके। हमारे कई ब्लागर मित्र तो ऐसे हैं जो जान की परवाह किए बिना ही ऐसे-ऐसे लेख लिखने का साहस करते हैं जिसकी जितनी तारीफ की जाए कम है। हमारे एक ब्लागर मित्र हैं सुरेश चिपलूनकर इन्होंने भारत की अघोषित प्रधानमंत्री श्रीमती सोनिया गांधी के बारे में लोगों तक ऐसी जानकारी पहुंचाई जो किसी अखबार से मिलने की उम्मीद नहीं की जा सकती। श्री चिपलूनकर ने तो मदर टेरेसा की भी पोल खोलने का काम किया है। ऐसे और भी कई ब्लागर साथी हो सकते हैं जिनके बारे में शायद हमें नए होने की वजह से मालूम नहीं है। वैसे हमारे साथ एक परेशानी यह है कि सुबह के 10 बजे से लेकर रात को कम से कम एक बजे तक अखबार का काम करना रहता है। इतना समय अखबार के लिए देने के बाद काफी कम समय मिलता है जिसमें हम ब्लाग देखते हैं और अपने ब्लाग के लिए कुछ अच्छा लिखने की कोशिश करते हैं।
एक तरफ तो अपने चिपलूनकर भाई है तो दूसरी तरफ अपने अतुल अग्रवाल जी जैसे मित्र हैं जो खुशवंत सिंह जैसे नामी लेखक के गलत लेखन पर उनको लताडऩे से नहीं चूकते हैं। अभी कल ही की बात है हमें विस्फोट डाट काम पर अग्रवाल जी की एक पोस्ट खुशवंत सिंह के लेख के उपर पढऩे को मिली। श्री अग्रवाल जी का विरोध अपनी जगह जायज ही नहीं बहुत ज्यादा जायज है, लेकिन उन्होंने खुशवंत सिंह के लिए जिस तरह के शब्दों का प्रयोग किया, वह एक पत्रकार की भाषा नहीं होनी चाहिए। यह बात तो सब जानते हैं कि खुशवंत सिंह कितना गंदा लिखते हैं, फिर उनके गंदे लेखन का एक हिस्सा हम क्यों बनें। श्री अग्रवाल जी को एक ब्लागर मित्र कोतुक जी ने भी सही सलाह दी है कि खुशवंत सिंह तो चर्चा में आने के लिए ऐसा लिख रहे हैं उनकी बातों को उठाकर आप उनका रास्ता आसान कर रहे हैं। यह सच बात है कि गंदा लिखने वालों पर सबको गुस्सा आता है लेकिन उस गुस्से को कलम का रूप देकर उस गंदे लेखन को और ज्यादा प्रचारित करने की बजाए ऐसा प्रयास करना चाहिए कि ऐसा गंदा लेखन समाज के सामने ही न आ सके। आज ब्लाग जगत को भी गंदा करने वालों को इस जगत से बाहर करने की जरूरत है। इसके लिए सही लेखन करने वालों को एक जुट होने की जरूरत है। इसी के साथ हमारा ऐसा मानना है कि अगर ऐसा हो पा रहा है तो इसके लिए कहीं न कहीं गुगल सर्च भी जिम्मेदार है। गुगल को हम जिम्मेदार इसलिए मान रहे हैं क्योंकि गुगल बिना किसी सही जानकारी के किसी को भी ब्लाग बनाने की इजाजत दे देता है। ऐसे में गंदा लेखन करने वाले छद्म नामों से ब्लाक बना लेते हैं और जब जिसको मर्जी आई गालियां दे दीं। हमने जब एक पोस्ट महिलाओं के कपड़ों पर लिखी थी तो हमारा मकसद किसी महिला की स्वतंत्रता पर हमला कदापि नहीं था। हमने तो एक साधारण बात लिखी थी, लेकिन इस बात का बिना वजह तूल देने का काम किया गया। हम तो ब्लाग जगत में नए हैं। लेकिन ब्लाग जगत में नए हैं तो इसका यह मतलब कदापि नहीं है कि हम किसी का जवाब देना नहीं जानते हैं। पत्रकारिता में अपने जीवन के 23 साल खफा दिए हैं और इन सालों में बड़े-बड़े संपादकों के साथ काम करने का और उनसे काफी कुछ सीखने का मौका मिला है, ऐसे में ऐसी कोई बात नहीं है जिसका जवाब हमारे पास न हो। लेकिन हमने उस लेख के बाद चंद मित्रों की टिप्पणियों के जबाव के बाद आगे जवाब इसलिए नहीं दिया क्योंकि हमारे वरिष्ठ साथी पत्रकार भाई अनिल पुसदकर ने हमें सलाह दी थी कि हमें कपड़ों के पीछे भागने की बजाए अपने लेखन को छत्तीसगढ़ के भले के लिए प्रयोग करना चाहिए। हमने उनकी सलाह पर काम करना प्रारंभ किया है, लेकिन हमारी एक आदत यह है कि हमें गलत बात बर्दाश्त नहीं होती है, यही वजह है कि हम आज ब्लाग जगत की गंदगी पर लिखने की हिम्मत कर रहे हैं। हम यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि हमारी इस पोस्ट से काफी लोग नाखुश और नाराज होंगे। लेकिन उनकी नाराजगी न उठानी पड़े इसलिए हम अपनी कलम को बंद कर दें यह तो संभव नहीं है।
बहरहाल हमारा ऐसा मानना है कि गुगल को ब्लाग जगत के लिए कुछ तो नियम कायदे बनाने चाहिए ताकि जहां कोई छद्म नाम से ब्लाग न बना सके, वहीं किसी के ब्लाग के कोई सरे आम चोरी न करे सके, जैसा लगातार हो रहा है। जब एक मोबाइल नंबर लेने के लिए काफी खाना पूर्ति करनी पड़ती है तो फिर अपनी अभिव्यक्ति को लोगों तक पहुंचाने के लिए मिलने वाले एक मंच के लिए ऐसा कुछ क्यों नहीं किया जाता कि सही लोग सामने आएं और अपने सही नाम पते के साथ ब्लाग बनाएं। महिलाओं को अगर फोटो और पते में छूट दी जाती है तो कोई बात नहीं, लेकिन उनसे फोटो और सही पता लेकर गुगल अपने रिकॉर्ड में रख सकता है ताकि कोई किसी महिला के नाम से ब्लाग न बना लें। इसमें कोई दो मत नहीं है कि कई बंधुओं ने तो महिलाओं के नाम से भी ब्लाग बना रखे हैं। अभी तो हमें इस ब्लाग जगत में आए चंद दिन हुए हैं और हमें इतना कुछ लगने लगा है आगे हमें और पढऩे और समझने का मौका मिलेगा तो और जो बातें हमारे मानसपटल पर आएंगी उनको जरूर अपने ब्लाग जगत के साथियों के साथ बांटने का काम करेंगे। फिलहाल इतना ही। वैसे हमारी पोस्ट काफी लंबी हो गई है। लिखने को तो अब भी काफी कुछ बचा है ऐसा लगता है, लेकिन बाकी अगली बार।
ब्लाग जगत के सम्मानीय साथियों से आग्रह है कि वे अपने विचारों से जरूर अवगत कराएं। सभी तरह से विचारों का स्वागत है।

13 टिप्पणियाँ:

अक्षत विचार मंगल अप्रैल 21, 09:41:00 am 2009  

जहाँ से दुसरे की नाक शुरू होती है वहीँ हमारी आज़ादी समाप्त हो जाती है

रवि रतलामी मंगल अप्रैल 21, 09:47:00 am 2009  

अभी तो हिन्दी ब्लॉगजगत् की शुरूआत हुई है. इवॉल्यूशन के अगले दौर में देखिएगा आगे और होता है क्या - यकीन मानिए, हर एक्स्ट्रीम की हदें पार करेंगे लोग. अंग्रेज़ी के ब्लॉगों के उदाहरण देख लीजिए.

ऐसे में सबसे बढ़िया तरीका है - स्वनियमन. स्वनियंत्रण. ऐसे ब्लॉगों को, टिप्पणियों को अनदेखा करें. दूर रहें. अच्छे, अपने पसंदीदा ब्लॉगों के फीड सब्सक्राइब करें, उन्हें पढ़ें, गुनें.

Unknown मंगल अप्रैल 21, 11:51:00 am 2009  

रवि जी से पूर्ण सहमत…
ग्वालानी भाई, आपने कुछ ज़रूरत से ज्यादा ही तारीफ़ कर दी मेरी… मैं इसका आदी नहीं हूँ… अपच और गैस की तकलीफ़ हो जायेगी… :) :) वैसे जिन सोनिया और टेरेसा के बारे में जिन जानकारियों का आपने जिक्र किया है, वह मेरे जैसा अदना सा व्यक्ति क्या देगा। हाँ ये बात जरूर है कि यह सारी जानकारी नेट पर काफ़ी पहले से मौजूद है, मैं तो बस "समुद्र" में से दो-चार लोटे पानी लेकर अपनी तरफ़ से उसमें एक चुटकी नमक डालकर, पाठकों तक पहुँचा देता हूँ…

निर्मला कपिला मंगल अप्रैल 21, 01:01:00 pm 2009  

bahut dino se aise hi vichar mere man me aa rahe the lekin mai itani badi lekhak bhi nahi hoon ki kisi par ungakli uthha sakoon lekin apke lekh ko padh kar ek santosh sa mila hai ye blog jagat abhiviyakti kaa nayab tohfa hai iski mariyada aur garima ko banaye rakhna lekhak dharmita hai is lekh ke liye badhai

L.Goswami मंगल अप्रैल 21, 04:57:00 pm 2009  

अच्छे और बुरे लोग हर जगह होते हैं ..अपना ध्यान अच्छाइयों पर लगायें तो बुराइयाँ स्वतः नष्ट हो जाएँगी

guru मंगल अप्रैल 21, 08:53:00 pm 2009  

गंदे लोग गंदी पसंद , ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार हो गुरु...

सलीम अख्तर सिद्दीकी मंगल अप्रैल 21, 09:50:00 pm 2009  

aapne sahi likha hai. aise log to har jagha mojud hain. is desh main panjanye aur saamna jaise akhbar bhi niklte hain. lovely kumari ji ne sahi kaha hai. ache aur bure log sab jagha hote hain.

Anil Pusadkar बुध अप्रैल 22, 12:55:00 am 2009  

राजकुमार ध्यान इधर-उधर नही लेखन पर लगाओ।तुम अभी शुरूआत कर रहे हो,इस तरह की बातो मे उलझ जाओगे तो वो सब कब लिखोगे जिसे लिखने के लिये ब्लोग-परिवार मे शामिल हुये हो।फ़ाल्तू फ़ंडा छोडो लिखते रहो बस,अपने लिये,समाज के लिये ,प्रदेश के लिये देश के लिये।

rajesh patel बुध अप्रैल 22, 02:42:00 pm 2009  

अच्छा लिखने वालों को पढऩे की आदत डालनी चाहिए। गंदा लिखने वालों को पढऩे की जरूरत ही क्या है

anu बुध अप्रैल 22, 03:12:00 pm 2009  

गुरु ठीक कहते हैं- गंदे लोग गंदी पसंद-आप क्यों ख़राब करते हैं मन

हिंदी ब्लॉगर शुक्र अप्रैल 24, 05:20:00 am 2009  

आपकी बातों से मेरी सहमति दर्ज़ की जाये

डॉ महेश सिन्हा शनि अप्रैल 25, 03:11:00 pm 2009  

अंग्रेजी में एक कहावत है " passing out the steam" यानी भाप का निकल जाना. अपने अन्दर उमड़ रहे गुबारों को निकालकर अब आप अपनी सार्थक दिशा की और गतीयमान हो . सभी व्यवसाय की तरह समाचार जगत भी अर्थवाद की जकड में है , सबसे मुश्किल में तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया है जिसे सुरसा की तरह धन चाहिए और इसके लिए सारे माप दंड किनारे रख दिए जाते हैं. रही बात गूगल की तो हमें तो उसका धन्यवाद् देना चाहिए कि उसने हमें ये माध्यम बिना किसी मोल के उपलब्ध करा दिया . बिना मोल की चीज के भी दाम देने पड़ते हैं . शुभम्

Mohammed Umar Kairanvi सोम जुल॰ 13, 10:33:00 pm 2009  

sab theek chal raha he, pehle aao pehle pao wala niyam yahan bhi lagu he,, jese ke mujhe antim avtar par jab kuch dene ki thani to aakar ragister kar liya,,,
aapki soch ke anusar to yeh kisi musalman ko woh naye ko nahin lena tha,,yeh to kisi pandit ko hi dena tha.
baat karen google ki to woh kisi insaan se ziyada super computer ke haath men he. men google ki padhyi ki he usi ka nateeja only 2 post men hi mera blog Rank-1 ho gaya tha..
aur bataoon google men antim awtar ya antim avtar hindi urdu english kese bhi likho google ke lakhon result men pehle page par mera blog hoga...
hindi अंतिम अवतार ki to men kasam kha sakta hoon ki top par aayega. yaqeen na ho to try kijiye..

so baton ki ek baat google par rona na rokar google ko samjhiye,,

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