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शनिवार, मई 16, 2009

आंखों में पड़ी लाइट-गाडिय़ों की हो गई फाइट

रात के समय कम से कम अपने देश में ऐसी कोई सड़क नहीं होगी जिस सड़क पर आप दुपहिए या फिर चारपहिए वाहन पर जा रहे हों और आपको सामने से आ रहे किसी दूसरे वाहन की लाइट सीधे आंखों में न पड़े। आंखों में लाइट पड़ते ही जब आंखें चुधिया जाती हैं तो उसके बाद आंधों के सामने छाता है अंधेरा और सामने से आ रही दूसरी गाड़ी से हो जाती है आपकी या फिर किसी की भी गाड़ी की फाइड। यह किस्सा हर शहर का है हमें ऐसा लगता है। कम से कम अपने छत्तीसगढ़ में तो रात को हर सड़क पर यही नजारा रहता है। कोई यह कह ही नहीं सकता है कि वह रात को जा रहा था तो उसको सामने वाले वाहन की लाइट से परेशानी नहीं हुई। अगर वाहनों की लाइट से परेशानियों हो रही हैं, दुर्घटनाएँ हो रही हैं तो इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि कोई भी वाहनधारक अपनी लाइट में नियमानुसार काली पट्टी लगाना ही नहीं चाहता है। खासकर लाखों की कारों के मालिक तो काली पट्टी को मखमल में टाट का पैबंद ही मानते हैं। उनके ऐसा मानने का नतीजा यह हो रहा है कि रोज दुर्घटनाओं में इजाफा होते जा रहा है। हमारे देश का ट्रेफिक अमला ऐसे वाहनों पर कार्रवाई करता नजर ही नहीं आता है। इस ट्रेफिक अमले को तो वसूली से ही फुर्सत नहीं है तो कार्रवाई क्या खाक करेगा।


हम जब भी रात में दुपहिया या फिर चारपहिया वाहन चलाते हैं तो हमें उस समय बहुत गुस्सा आता है जब सामने से आ रहे वाहन की लाइट सीधे हमारी आंखों में पड़ती है। हमें नहीं लगता है कि यह परेशानी किसी और को नहीं होती होगी। हमारा ऐसा मानना है कि ऐसी ही परेशानी से हर वाहन चालक दो-चार होता है। लेकिन इसके बाद भी कोई इस समस्या से मुक्ति पाने के रास्ते पर जाना नहीं चाहता है। आज के आधुनिक जमाने में ऐसी -ऐसी कारें आ रही हैं जिनमें न जाने क्या-क्या हाई पॉवर की लाइटें लगी रहती हैं। इन लाइटों में इतनी तेजी रहती है कि सीधे सामने वाले की आंखों पर तेज असर होता है। अगर सामने वाला सावधान न हुआ तो यह मान कर चलें कि दुर्घटना होनी ही है। हमारा ऐसा मानना कि रात के समय जितनी भी दुर्घटनाएँ होती हैं उसके लिए सबसे ज्यादा दोषी ऐसी ही तेज रौशनी वाले वाहन हैं। ऐसे वाहनों के मालिक कभी अपने वाहनों में लाइट में काली पट्टी लगाने का काम नहीं करते हैं।

हमको अपने राज्य में ऐसे वाहन नजर ही नहीं आते हैं जिनकी लाइट में काली पट्टी लगी हो। हमारे ट्रेफिक अफसरों को तो वसूली करने से फुर्सत नहीं रहती है ऐसे में उनसे यह उम्मीद की ही नहीं जा सकती है कि वे इस दिशा में कुछ करेंगे। अगर ट्रेफिक थानों से आंकड़े मांगे जाएं तो ये आंकड़े कभी नहीं मिलेंगे कि कितने वाहनों पर लाइट में काली पट्टी न होने पर जुर्माना किया गया। जब कभी साल में एक बार ट्रेफिक सप्ताह मनाया जाता है तो समझाईश के नाम पर जरूर वाहनों में काली पट्टी लगाने की खानापूर्ति करने के लिए कुछ वाहनों को रोक कर काली पट्टी लगा दी जाती है। लेकिन इसके बाद इन वाहनों से काली पट्टी गायब हो जाती है।

हमको अपने राज्य में ऐसे वाहन नजर ही नहीं आते हैं जिनकी लाइट में काली पट्टी लगी हो। हमारे ट्रेफिक अफसरों को तो वसूली करने से फुर्सत नहीं रहती है ऐसे में उनसे यह उम्मीद की ही नहीं जा सकती है कि वे इस दिशा में कुछ करेंगे। अगर ट्रेफिक थानों से आंकड़े मांगे जाएं तो ये आंकड़े कभी नहीं मिलेंगे कि कितने वाहनों पर लाइट में काली पट्टी न होने पर जुर्माना किया गया। जब कभी साल में एक बार ट्रेफिक सप्ताह मनाया जाता है तो समझाईश के नाम पर जरूर वाहनों में काली पट्टी लगाने की खानापूर्ति करने के लिए कुछ वाहनों को रोक कर काली पट्टी लगा दी जाती है। लेकिन इसके बाद इन वाहनों से काली पट्टी गायब हो जाती है। एक तो भाई लोग अपने वाहनों में काली पट्टी लगाने से परहेज करते हैं ऊपर से सितम यह कि बड़े वाहन वाले अपर-डीपर भी देना जरूरी नहीं समझते हैं। सामने वाला भले ऐसा करते रहे उनकी बला से, उन्होंने यह बात ठान रखी है कि उनको अपर-डीपर देना ही नहीं है। संभवत: ऐसे वाहनों को सामने वाले वाहनों की लाइट से शायद फर्क नहीं पड़ता है तभी तो वे इतने ज्यादा लापरवाह हो गए है कि किसी की जान की कीमत भी नहीं समझते हैं। अगर ये वाहन चालक दूसरों के जान की कीमत समझते तो वाहनों में नियमानुसार काली पट्टी लगाने का काम करते। हमें तो लगता है कि इसके लिए जन जागरण की जरूरत है। ट्रेफिक पुलिस वाले तो आज तक कुछ कर नहीं पाए हैं। और न ही कभी कुछ कर सकते हैं।
दोस्तों हमने तो अपने राज्य के हालात को देखते हुए यह पोस्ट लिखी है, हमें नहीं लगता है कि दूसरे राज्यों में ऐसा नहीं होता होगा। ब्लाग बिरादरी से आग्रह है कि वे भी अपने राज्यों और शहरों के बारे में बताएं कि उनके यहां वाहनों की लाइट में काली पट्टी रहती है या नहीं। आप लोगों की जानकारियों का इंतजार रहेगा।

17 टिप्पणियाँ:

anu शनि मई 16, 09:38:00 am 2009  

हाई पावर लाइट वाली गाडिय़ों चलाने वाले तो सोचते हैं कि उनके सामने चलने वाले इंसान दरअसल में इंसान है ही नहीं वे तो उनको कीड़-मकोड़ों से ज्यादा कुछ नहीं समझते हैं, तभी तो कई बार खबरें आती हैं कि एक रईसजादे ने फुटपाथ पर सोए गरीबों को कुचल दिया। इतना बड़ा हादसा करने के बाद भी ये रईसजादे बच जाते हैं, तो कहीं न कहीं उनकी पहुंच और पैसे का कमाल रहता है। पैसा ही तो सबके सर चढ़कर बोलता है। पैसे न तो फिर कहां से आएंगी हाई पावर लाइट वाली गाडिय़ां। ऐसी गाडिय़ों के खिलाफ कार्रवाई जरूर होनी चाहिए।

बेनामी,  शनि मई 16, 09:43:00 am 2009  

ट्रेफिक पुलिस वालों को अगर वसूली से फुर्सत मिलती तभी तो वे और किसी तरफ ध्यान देते। आपके वाहन में काली पट्टी क्या आपके पास चोरी का भी वाहन है तो आप ट्रेफिक हवलदार की जेब गरम करके निकल सकते हैं।

guru शनि मई 16, 09:54:00 am 2009  

एकदम झकास मुद्दा उठाया है गुरु

Unknown शनि मई 16, 11:06:00 am 2009  

हमारे दिल की बात कह दी मित्र आपने। हमें भी उस समय बहुत गुस्सा आता है जब सामने से आते वाहन की लाइट सीधे हमारी आंखों में पड़ती है और हमें लगता है कि अब एक्सीडेंट हो जाएगा। कई बार एक्सीडेंट होते-होते बचा है।

Unknown शनि मई 16, 11:17:00 am 2009  

खासकर लाखों की कारों के मालिक तो काली पट्टी को मखमल में टाट का पैबंद ही मानते हैं। उनके ऐसा मानने का नतीजा यह हो रहा है कि रोज दुर्घटनाओं में इजाफा होते जा रहा है। हमारे देश का ट्रेफिक अमला ऐसे वाहनों पर कार्रवाई करता नजर ही नहीं आता है। इस ट्रेफिक अमले को तो वसूली से ही फुर्सत नहीं है तो कार्रवाई क्या खाक करेगा।
बिलकुल ठीक बात कही है आपने

बेनामी,  शनि मई 16, 11:25:00 am 2009  

भाई साहब जो हाल छत्तीसगढ़ का है, वही हाल अपने मप्र का भी है। छत्तीसगढ़ भी तो पहले मप्र का ही हिस्सा था। यह बात आप भी अच्छी तरह से समझ सकते हैं कि आपके राज्य के ट्रैफिक अमले से अलग तो मप्र का अमला हो नहीं सकता है। ट्रैफिक पुलिस वालों को अपने पैसों से मतलब रहता है। किस के वाहन में कैसा लाइट लगी है, कौन कितना बड़ा प्रेशर हार्न लगाकर शोर कर रहा है, कौन वाहनों की नंबर प्लेट में क्या लिख रहा है, इस सबसे ट्रैफिक पुलिस का कोई सरोकार नहीं होता है। आपने एक अच्छा मुद्दा सामने रखा है, इसके लिए धन्यवाद।
सौरभ अग्रवाल भोपाल

बेनामी,  शनि मई 16, 02:08:00 pm 2009  

संबंधित कई प्रश्न कई बार परेशान करते हैं जैसे कि सिर्फ काली पट्टी समाहित किये हुये हेडलाईट के काँच का निर्माण क्यों नहीं किया जाता?, वर्षों से पढ़ते सुनते चले आ रहे आटोमेटिक हैडलाईट डिप्पर का उपयोग क्यों लागू नहीं किया गया?

कई बार सोचता हूँ कि अतिरिक्त इंतजाम कर, अपनी चार पहिया में सामने 130 वाट वाले 20 हैडलाईटनुमा बल्ब लगा दूँ और सामने वाला जब अपर-डिप्पर की भाषा न समझे तो सभी जला दूँ। फिर भले ही सामने वाले को दस मिनट तक कुछ ना दिखाई दे? :-)

पोस्ट आपकी विचारोत्तेजक है

pallavi trivedi शनि मई 16, 02:22:00 pm 2009  

अच्छी पोस्ट है....अब कुछ लोग इससे सीख ले लें तो बढ़िया रहे!

Unknown शनि मई 16, 04:58:00 pm 2009  

वाबला जी ठीक फरमा रहे हैं हाई पावर लाइट वालों को सबक सीखने के लिए यह जरूरी है कि उनको ईट का जवाब पत्थर से देते हुए अपने वाहनों में उनसे ज्यादा पावर की कई दर्जन लाइटें लगाई जाएं और जब ऐसे वाहन वाले सामने आए तो उनको अपनी लाइटें जलाकर बताया जाए कि वास्तव में परेशानी किसे कहते हैं। आपने एक अच्छा मुद्दा उठाया है आपको धन्यवाद

बेनामी,  शनि मई 16, 05:21:00 pm 2009  

वाहन बनाने वाली कंपनियों के लिए ऐसा कानून बनना चाहिए कि वे वाहनों की लाइट में काली पट्टी लगाए बिना कोई वाहन ही नहीं बना सकती है। ऐसा होने से ही लाइट की समस्या से मुक्ति मिलेगी। विकास शर्मा रायपुर

Unknown शनि मई 16, 05:30:00 pm 2009  

वाहनों में लाइट के लिए मापडंद तय होने चाहिए। जिस कंपनी को जैसी मर्जी होती है अपने हिसाब से हाई पावर लाइटें लगा कर वाहन बना देती है। अगर सरकार चाहे तो कंपनियों पर लगाम लगा सकती है।

बेनामी,  शनि मई 16, 07:22:00 pm 2009  

चार पहिया वाहन चलाने वालों को दुपहिया वाहन चलने वालों की परेशानियों से कोई लेना-देना नहीं रहता है, उनकी लाइट की वजह से कोई गिरे या मरे उनको क्या फर्क पड़ता है।
बलवीर सिंह भिलाई

Unknown शनि मई 16, 07:28:00 pm 2009  

वाहन बनाने वाली कंपनियों के लिए कानून बनाने की बात ठीक है। अगर ऐसा हो जाए तो सारी लफड़ा की समाप्त हो जाएगा, फिर तो ट्रैफिक वालों की कमाई का जरिए भी बंद हो जाएगा।

बेनामी,  शनि मई 16, 07:36:00 pm 2009  

अच्छा मुद्दा उठाया है आपने इस पर सभी को अपने मत देने ही चाहिए ।
कविता जोशी जबलपुर

अनिल कान्त शनि मई 16, 09:04:00 pm 2009  

bhai bahut se gaadiyon wale insaan ko insaan samjhte kahan hain

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून शनि मई 16, 10:21:00 pm 2009  

भाई, नई कारों में काली पट्टी की ज़रुरत नहीं रह गयी है. उदहारण के लिए, स्विफ्ट में कार की लाईट ऊपर या नीचे करने के लिए अलग से बटन दिया गया है.

बेनामी,  रवि मई 17, 10:10:00 pm 2009  

bahut acha lika hai aapne

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