राजनीति के साथ हर विषय पर लेख पढने को मिलेंगे....

गुरुवार, जुलाई 09, 2009

पुलिस वाले सायरन बजाकर मचाते हैं शोर-ताकि सतर्क हों और भाग जाए चोर

रात के अंधेरे को चीरती हुई आपकी कालोनी में पुलिस जीप के सायरन की आवाज जब आपके कानों में पड़ती है तो आपको काफी सकुन मिलता होगा कि चलो यार पुलिस वाले बेचारे रात में भी अपना काम कितनी ईमानदारी से कर रहे हैं और चोर पर नजरें रखने के लिए गश्त कर रहे हैं। लेकिन क्या कभी आपने इस बात पर गौर किया है कि आखिर पुलिस वाले सायरन बचाते हुए ही क्यों निकलते हैं। इसका सीधा का गणित तो यह है कि पुलिस वाले अपने चोर भाईयों को यह बताते हैं कि भाई हम आ गए हैं और तुम लोग सर्तक हो जाओ और इससे पहले कि किसी के कहने पर तुम लोगों को पकडऩा पड़े भाग लो।
पुलिस वालों की गाड़ी के सायरन की आवाज हम भी बचपन से सुनते आ रहे हैं। तब हमें भी ऐसा कुछ लगता था कि पुलिस वाले बड़े ईमानदार हैं और रात को चोरों को पकडऩे निकलते हैं। उनके सायरन बजाने का कारण पहले यही लगता था कि कोई चोर अगर कहीं चोरी करने जा रहा हो तो वह भाग जाए और किसी के घर में चोरी की वारदात न हो। लेकिन यह गणित अब उलटा हो गया है। अब हमें जो समझ आता है उसके मुताबिक तो पुलिस वाले चोरों को सर्तक करने के लिए ही सायरन बचाते हैं ताकि चोर भाग जाए और पकड़े न जाए। अगर चोर पकड़े गए तो उनके कमीशन का क्या होगा। अक्सर ऐसा कहा जाता है कि किस इलाके में किसी घर में कब चोरी होने वाली है इसकी सारी जानकारी अपने पुलिस वालों को पहले से रहती है। एक बार का एक किस्सा याद आ रहा है एक विदेशी ने एक भारतीय को बताया कि हमारे देश में तो कोई चोरी हो जाए तो हमारी पुलिस एक दिन में चोर तक पहुंच जाती है। विदेशी की इस बात पर भारतीय ने जवाब दिया तो इसमें कौन सी बड़ी बात है हमारी पुलिस तो एक घंटे में ही चोर तक पहुंच जाती है अरे पहुंच क्या जाती है उसे तो चोरी होने से पहले ही मालूम रहता है कि कहां चोरी होने वाली है। किसी चोर को पकडऩा तक पुलिस की मजबूरी हो जाती है जब किसी बड़ी पहुंच वाले आदमी के घर पर चोरी होती है।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि अपनी भारतीय पुलिस भरोसे के लायक नहीं है। अब इसमें दोष किसका है यह अलग मुद्दा है। लेकिन इतना तो तय है कि अपने देश में जितनी भी अपराधिक घटनाएं कम से कम चोरी और लुट की होती हैं उसके बारे में पुलिस को मालूम रहता है। पुलिस वाले ही तो जुआ और सट्टे के कारोबार अपने संरक्षण में चलवाते हैं। वरना क्या मजाल है कि कोई भी शातिर पुलिस वालों की बिना अनुमति के किसी इलाके में रह सके और कोई वारदात कर सके। पुलिस को हफ्ता दिए बिना कोई भी बदमाश जी ही नहीं सकता है। जब पुलिस हफ्ता लेती है तो उसको उस हफ्ते के प्रति तो ईमानदार रहना ही है, भले वह अपनी वर्दी के प्रति ईमानदार न रहे।

8 टिप्पणियाँ:

Unknown गुरु जुल॰ 09, 01:03:00 pm 2009  

चलो चोरों के प्रति ही सही पुलिस ईमानदार तो है

satish pandey,  गुरु जुल॰ 09, 01:04:00 pm 2009  

अब चोर-चोर मौसेरे भाई नहीं बल्कि चोर-पुलिस मौसेर भाई का जमाना है

निर्मला कपिला गुरु जुल॰ 09, 01:11:00 pm 2009  

सतीश पाँडे जी ने तो मेरे मुंम्ह की बात छीन ली और चिन्टू जी ने तो बिलकुल सही सही बात कह डाली आभार्

anu गुरु जुल॰ 09, 01:17:00 pm 2009  

पुलिस के सायरन से तो दिन-रात सब परेशान रहते हैं, जहां देखों मंत्रियों के आगे-पीछे साय.. साय... करते रहते हैं।

soniya,  गुरु जुल॰ 09, 01:41:00 pm 2009  

आपने तो सायरन का एक नया ही राज खोल दिया।

Udan Tashtari गुरु जुल॰ 09, 06:05:00 pm 2009  

मित्रों को अपने आने का पता देते हैं..
हार्न पर हार्न बजा कर बता देते हैं..

rakesh,  गुरु जुल॰ 09, 06:29:00 pm 2009  

भारत की पुलिस का भगवान ही मालिक है। यह बात सच है कि चोरी होने से पहले ही पुलिस को पता रहता है कि कहां चोरी होने वाली है।

Unknown गुरु जुल॰ 09, 06:30:00 pm 2009  

सायरन तो होता ही है चोरों को भगाने के लिए। अब चोर मिली भगत से भागें या फिर ऐेसे ही क्या फर्क पड़ता है। पुलिस को हफ्ता तो मिलना ही है।

Related Posts with Thumbnails

ब्लाग चर्चा

Blog Archive

मेरी ब्लॉग सूची

  © Blogger templates The Professional Template by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP