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शुक्रवार, दिसंबर 18, 2009

तेरे बिना अब जिया जाता नही...



चल दी तुम साथ छोड़कर मझधार में हमारा

किनारे तक पहुंचाने का वादा निभाया नहीं।।


कश्ती में ही संवार मझधार में खड़े हैं हम

किसी ने मंजिल का रास्ता बताया नहीं।।


किसे बताएं हम अपने दिल के दर्द को

कैसे छुपाएं हम अपने छलकते अश्क को।।

किसे दिखाएं अपने रिस्ते जख्म को

कैसे भूलाएं हम तेरे मोहब्बत के गम को।।


हर पल तुम ही तुम दो दिल में मेरे

उफ.. कितना दर्द है बिन तेरे जीने में मेरे।।


तुम्हारी जुदाई का गम अब सहा जाता नहीं

तेरे बिना अब जिया जाता नहीं।।

(हमारी यह कविता भी 20 साल पुरानी डायरी से ली गई है)

5 टिप्पणियाँ:

अजय कुमार झा शुक्र दिस॰ 18, 09:49:00 am 2009  

बीस साल पहले तो ..कातिल थे आप ..इतना दर्द ..इतनी कशिश ....भाई मियां ...माजरा क्या था ..

निर्मला कपिला शुक्र दिस॰ 18, 12:32:00 pm 2009  

20 साल पहले तो कमाल की कविता लिखी है बधाई

ताऊ रामपुरिया शुक्र दिस॰ 18, 01:47:00 pm 2009  

वाह बहुत ही लाजवाब रचना.

रामराम.

soniya,  शुक्र दिस॰ 18, 06:39:00 pm 2009  

लाजवाब रचना.

bhavna,  शुक्र दिस॰ 18, 06:39:00 pm 2009  

कमाल की कविता

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