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मंगलवार, मार्च 31, 2009

शिकार करने को आए-शिकार हो के चले

एक पुराना गाना है तुम्हारे प्यार में हम बेकरार हो के चले, शिकार करने को आए शिकार हो के चले। यह गाना बनाया गया था प्यार के लिए, लेकिन तब नहीं मालूम था कि यह गाना उस पाकिस्तान पर भी फिट बैठ सकता है जो पाकिस्तान पूरी दुनिया में आतंक का जहर घोलने का काम कर रहा है। पाकिस्तान पर यह गाना फिट बैठ रहा है तो इसमें एक बेसिक अंतर यह है कि पाक के मामले में यह गाना प्यार के लिए नहीं बल्कि नफरत के लिए फिट बैठ रहा है। पाक ने पूरी दुनिया में प्यार का नहीं बल्कि नफरत का पैगाम देने का काम किया है और नफरत फैलाने के लिए ऐसे-ऐसे सांपों को पैदा किया जिनके जहर से बचना मुश्किल हो। वास्तव में पाक के पाले जहरीले आतंकी सांप इतने ज्यादा खतरनाक हैं कि उनके जहर पुरी दुनिया में घुलने लगा है। पाक के ये अनाकोन्डा हर देश के मानवों को कच्चा निगलने का काम कर रहे हैं। जब तक पाक के सांप देश के बाहर अपना फन फैलाए शिकार कर रहे थे तब तक तो पाक में कम से कम उनके लिए जश्न का माहौल था जिन्होंने ऐसे सांपों को दुध पिलाने का काम किया था, लेकिन अब इन सांपों ने अपनी परवरिश करने वालों को ही शिकार बनाना शुरू कर दिया है। ऐसे समय में ही उस पुराने गाने की याद ताजा हो गई है कि शिकार करने को आए-शिकार हो के चले। वाह रे पाक की आईएसआई जिसने आतंकियों को बढ़ाने के लिए क्या नहीं किया। आईएसआई ने तो अमरीका को भी आतंक का खात्मा करने के नाम पर इस तरह से छला है कि पैसे उनसे लिए और आतंक का खात्मा करने की बजाए आतंक फैलाने वालों की जड़ों को मजबूत करने का काम किया। तब शायद पाक को नहीं मालूम था कि जिस आतंक की जड़ को वह दुनिया को तोडऩे के लिए पनाह दे रहा है वह जड़ उनकी जमीन को भी खोखला करने का काम सकती है। पाक को तो उसी समय यह बात समझ में आ जानी चाहिए थी जब पहली बार 18 अक्टूबर 2007 को बेनजीर भुट्टो के पाक वापस आने पर उन पर हमला किया गया था। लेकिन तब शायद ऐसा कुछ नहीं था और इस मामले में संभवत: जो हमला हुआ था उसके पीछे भी कहीं न कहीं आईएसआई की मौन सहमति थी। लेकिन जब 21 दिसंबर 2007 को पाक में एक मजिस्द पर हमला हुआ तब क्या था। लेकिन पाक नहीं चेता और इसका परिणाम यह हुआ कि वहां पर लगातार आतंकी हमले होते रहे। लेकिन ये हमले उतने बड़े नहीं थे, या फिर यह कहा जाए कि शायद ये हमले किसी साजिश का हिस्सा थे ताकि पाक को भी साफ समझा जाए। क्यों नहीं हो सकता कि पाक अपने को आतंकवादियों का मददगार साबित होने से बचाने के लिए ऐसा कर रहा हो। वैसे तो अब भी इस बात में संदेह है कि पाक में जो आतंकी हमले हो रहे हैं उसके पीछे की सच्चाई क्या है। क्या वास्तव में पाक में आतंकवादी हमले उसी तरह से हो रहे हैं जिस तरह से आतंकवादी भारत या फिर किसी दूसरे देश को निशाना कर करते हैं या फिर यह महज एक दिखावा है। लगता तो कुछ ऐसा ही है कि यह कहीं छलावा तो नहीं है, दुनिया को गुमराह करने का। पाकिस्तान के पुलिस ट्रेनिंग सेंटर पर हुए हमले को जब करीब सात घंटे में नाकाम कर दिया गया तो उसके बाद पाक गृह मंत्रालय के प्रभारी रहमान मलिक का यह बयान आया कि हमें तो आतंकवादियों को काबू में करने में महज सात घंटे लगे जबकि भारत को चार दिन लग गए थे। बजा फरमान आपने मलिक साहब भारत को चार दिन इसलिए लग गए थे क्योंकि एक तो वह यह नहीं जानता था कि आतंकवादी किस तरह की गतिविधियों को अंजाम देते हैं, दूसरे इस बात का इल्म भी नहीं था कि आंतकियों के पास कैसे हथियार हो सकते हैं। अब रही बात आपकी तो क्या पता आपके टे्रनिंग सेंटर में हुआ हमला एक ड्रामा हो जिसके बारे में पहले से सब जानते हों कि किस तरह से हालत पर काबू पाया जा सकता है। अगर यह ड्रामा नहीं भी था तो कम से कम पाक को तो इस बात का अच्छी तरह से पता है कि आतंकवदियों की कितनी औकत है। और उस औकत के हिसाब से आपके जवानों ने मोर्चा संभाला और उसमें सफल हो गए। अगर दुश्मन की ताकत का अंदाज रहे तो आधी जंग ऐसी ही जीत ली जाती है। जैसा की आपको उन आतंकियों की ताकत का तो कम से कम अंदाज था और आपने जंग जीत ली। अब रही बात भारत की तो कम से कम भारत ऐसा देश है जहां के जवान एक भारतीय की जान की कीमत जानते हैं और एक भारतीय की जान की कीमत पर एक आतंकी को बख्शा भी जा सकता है। लेकिन क्या पाक किसी भी एक जान की कीमत को समझता है। अगर पाक को एक भी जान की कीमत मालूम होती तो उसने कभी भी पूरी दुनिया में आतंक का जहर घोलने का काम नहीं किया होता। पाक से ऐसा किया है तो अब कम से कम वह दिन आ गया है जब जैसी करनी वैसी भरनी वाली कहावत पूरी होने वाली है। अगर वास्तव में आतंकी पाक को निशाना बनाने लगे हैं तो होना तो यह चाहिए कि इससे अच्छी खबर विश्व के लिए नहीं हो सकती। लेकिन ऐसा नहीं है विश्व का कोई भी देश कभी नहीं चाहता है कि आतंकी किसी भी देश के लोगों को मारने का काम करें। पाक पर हुए आतंकी हमले से भारत सहित जिन देशों पर भी पाक के इशारे पर आतंकी हमले हुए हैं, उन देशों की सरकार के साथ हर नागरिक दुखी है। क्योंकि ये लोग जानते है कि आतंकी हमले में मरने वालों के परिजनों पर क्या गुजरती है। वैसे भी नफरत से किसी को क्या हासिल हुआ है जो आज हासिल होगा। अब कम से कम पाक को सबक लेते हुए आतंकवादों को जड़ से समाप्त करने की पहल करनी ही चाहिए, अब भी ऐसा नहीं किया गया तो फिर पाक भी हो जाएगा साफ और आतंकी संगठन बन बैठेंगे सबके बाप।

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सोमवार, मार्च 30, 2009

हिन्दुत्व की बात करना यहां अपराध है जनाब

अपने भारत देश में जहां सबसे ज्यादा संख्या हिन्दुओं की है, उस देश में लगता है हिन्दुत्व की वकालत करना ही अपराध है। अगर कोई ऐसा करने की हिमाकत करता है तो उसका हश्र वरूण गांधी जैसा होता है। अगर ऐसा होता है तो इसके पीछे कानून नहीं बल्कि वह गंदी राजनीति है जिसमें हर विपक्षी दल दूसरे दल के नेताओं को फंसाने का मौका तलाशता रहता है। ऐसा ही एक मौका वरूण गांधी ने उप्र की सत्ता में बैठी मायावती की सरकार को दे दिया। वास्तव में वरूण ने ऐसा कोई अपराध नहीं किया था जिसके कारण उन पर रासुका लगाने का काम किया गया है। अगर वरूण पर रासुका लगाया गया तो फिर उन तमाम लोगों पर भी रासुका लगाने की हिम्मत दिखानी चाहिए जिन्होंने वरूण से ज्यादा न सिर्फ भड़काऊ बयान दिए हैं, बल्कि हत्या तक करने की बात कही है। ऐसे लोगों को इसलिए छोड़ दिया गया है क्योंकि वे अल्पसंख्यक समुदाय के हैं और ये समुदाय जहां वोट बैंक है, वहीं इन पर हाथ डालने की हिम्मत कोई इसलिए नहीं करता है क्योंकि इनके पीछे पाकिस्तान जैसा वह आका बैठा है जिसके हाथ में पूरे विश्व में आतंकवाद फैलाने का ठेका है। देश में इस समय लोकसभा चुनाव की बयार बह रही है। और इस बयार के बीच अचानक वरूण गांधी के नाम की आंधी पूरे देश क्या विश्व में चलने लगी है। वरूण पर एक बयान को लेकर रासुका लगाने का काम किया गया है और देश के इस युवा नेता को जेल भेज दिया गया है। वरूण पर आरोप यह है कि उन्होंने भड़ाकाऊ बयान देने का काम किया है। सोचने वाली बात है कि क्या वास्तव में वरूण का बयान ऐसा था कि जिससे देश में दंगे फैल सकते थे। इस बयान को भड़काऊ कहने वालों की अक्ल पर तरस आता है। अगर एक हिन्दु अपने धर्म के प्रति आस्था रखता है और उस धर्म पर उंगली उठाने वाले की उंगली काटने की बात कहता है तो क्या गलत करता है। यहां पर इस बात को इस तरह से समझने की जरूरत है कि अगर कोई आपके घर पर हमला करेगा तो क्या आप तमाशा देखते रहेंगे, क्या आप उस हमला करने वाले को नेस्तोनाबूत नहीं करना चाहेंगे? वरूण ने भी जो कहा उसके पीछे भी बस यही अवधारणा थी कि हम यह बर्दाश्त नहीं करेंगे कि कोई हमारे घर को तोडऩे का काम करे। इसमें कोई दो मत नहीं कि हिन्दुओं को कमजोर मानकर उनको तोडऩे का काम बरसों से किया जा रहा है। अब इसमें हमारे इस कौम की कमजोरी है कि हम दूसरों के बहकावे में आ जाते हैं, अगर हम दूसरों के बहकावे में आने वाले नहीं होते तो हमारा सोने की चिडिय़ा समझा जाने वाला यह देश अंग्रेजों का गुलाम नहीं होता और आज भी देखा जाए तो केन्द्र में बैठी सरकार के कारण एक तरह से देश अमरीका का गुलाम है। अमरीका के चाहे बिना भारत में पत्ता नहीं हिलता है। याद करें हम देश में हुए आतंकी हमलों को जिन हमलों में पाकिस्तान का हाथ होने के सबूत होने के बाद सरकार सिर्फ और सिर्फ यह कहती रही कि इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा। भारत आज तक पाकिस्तान का क्या कर पाया है। इस मामले में पहले अमरीका ने भारत का साथ दिया, फिर पाकिस्तान जाकर अमरीकी मंत्री का सुर ही बदल गया। अगर भारत के स्थान पर पाकिस्तान में कोई आतंकी हमला होता और इसके पीछे भारत का हाथ होने का सबूत नहीं बल्कि पाकिस्तान को शक मात्र होता तो पाकिस्तान ने भारत पर हमला बोल दिया होता। बहरहाल इस समय यह बहस का मुद्दा नहीं है, यह वक्त है वरूण गांधी पर चर्चा का। वरूण पर रासुका लगाने वालों को रासुका लगाने की इतनी ही हिम्मत है तो मप्र के उन विधायक किशोर समीरते पर रासुका लगवाएं जिन्होंने खुले आम राज ठाकरे की हत्या करने के लिए एक करोड़ रुपए देने का ऐलान किया था। इसी तरह से याकूब कुरैशी ने सलमान रुशदी की हत्या की बात करते हुए उनके वजन के बराबर सोना देने की बात कही थी। इनका अपराध किसी को बड़ा नहीं लगता हो तो जरा इस बयान पर गौर फरमा लें जिनमें भारत माता को डायन कहने का साहस आजम खां ने किया था। क्या देश ने नेताओं का खून सूख गया है या फिर पानी हो गया है जो भारत माता को डायन कहने वाले पर रासुका लगाने की हिम्मत नहीं कर पाए और उल्टे उसको चुनाव तक लडऩे की इजाजत है। भारत माता को डायन कहने वाले का कुछ न कर पाने वाले नेताओं को क्या चुनाव लडऩे का अधिकार है या फिर देश में रहने का अधिकार है। जो अपने मां की रक्षा नहीं कर सकता है उससे क्या उम्मीद की जा सकती है। अरे गर्व होना चाहिए हर हिन्दु को वरूण गांधी के बयान पर जिसमें उन्होंने कम से कम अपने धर्म पर उंगली उठाने वालों की उंगली काटने की बात कहने का साहस तो किया है। वरूण के इस बयान को हर भारतीय युवा सलाम करता है। इसी के साथ उनकी उस हिम्मत को भी सलाम है जिसमें उन्होंने खुद से होकर जेल जाने का साहस दिखाया। वरना उनके खिलाफ कोई वारंट नहीं था जो उनको गिरफ्तार किया जाता, लेकिन देश के कानून में आस्था रखने वाले इस युवा के साथ कानून ने नहीं बल्कि कानून को अपने हाथ का खिलौने बनाने वालों ने विश्वासघात किया है। लेकिन शायद वे भूल गए हैं कि उनका यह कदम उनके लिए धातक होगा। देश का हर युवा आज सिर्फ और सिर्फ वरूण गांधी के साथ है। और हो भी क्यों न उन्होंने काम ही ऐसा किया है कि आज देश का हर युवा उनका मुरीद हो गया है। निश्चित ही वरूण गांधी की एक ऐसी आंधी चलेगी जिसमें हिन्दुओं को कमजोर समझने वाले उड़ जाएंगे। वरूण ने जिस मकसद के साथ जेल जाने का काम किया है, उनका मकसद जरूर कामयाब होगा।

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शुक्रवार, मार्च 20, 2009

बेकार, बेजान लकडिय़ों में जान डालती हैं सुनीता

लकडिय़ों को जब मैं जलते हुए देखती थी, या फिर जब बारिश के पानी में किसी पेड़ की डालियों, जड़ और फूल- पत्तों को देखती थी तो मुझे ऐसा लगता था कि ये सब मुझसे कुछ कहना चाहते हैं। ऐसे में मैंने इन बेजान और बेकार समझी जानी वाली लकडिय़ों को तराशने के लिए इनमें रंगों का प्रयोग करना प्रारंभ किया। जब मैं यह काम बचपन में करती थी तो मुझे नहीं मालूम था कि मेरे बचपन का यह शौक एक दिन बड़े होने पर मुझे एक अलग पहचान देने वाला है। लेकिन इसने मुझे आज एक अलग पहचान दी है। मुझे इस राह तक पहुंचाने का काम किया है मेरे बच्चों और पति ने जिनके कहने पर मैंने अपनी कला को पहली बार घर से बाहर निकालने का काम किया है।

छत्तीसगढ़ में ही पहली बार आकर मैं किसी मेले में अपनी कला का प्रदर्शन कर रही हूं। ये बातें यहां पर चर्चा करते हुए राजधानी के मोतीबाग में चल रहे क्राफ्ट मेले में आईं भोपाल की सुनीता सक्सेना ने कहीं। इस मेले में जैसे ही लोग प्रवेश करते हैं तो उनको सुनीता सक्सेना की कलाकृतियां आकर्षित कर लेती हैं। सुनीता बताती हैं कि जब वह काफी छोटी थीं तो उस समय जब वह चूल्हे में किसी लकड़ी को जलते हुए देखती थीं तो उनको ऐसा लगता था कि वास्तव में यह लकड़ी जलने के लिए नहीं है बल्कि इस बेजान लकड़ी में जान डालने की जरूरत है। बस फिर क्या था सुनीता जलती हुई लकड़ी को बाहर निकाल लेती और उस लकड़ी में बिना कुछ किए उसके मूल रूप में ही ऐसा रंग भर देती कि उस लकड़ी को देखने के बाद यह नहीं कहा जा सकता कि यह लकड़ी कभी जलने के लिए चूल्हे में डाली गई थी। इसी तरह से जब वह बारिश के दिनों में कही बाहर रहती तो उनको पेड़ों की लकडिय़ों पर गिरते पानी में भी कुछ कला नजर आती। इसी तरह से पेड़ों पर लगे फूलों के साथ डालियों में भी जान डालने की इच्छा होती और वह इन सबको को एकत्रित करके इनमें रंगों से जान डालने का काम करती। बकौल सुनीता जब पेड़ों में फूल लगते रहते हैं तो प्रारंभिक अवस्था में अगर फूलों को तोड़ दिया जाए तो वे फूलों चूंकि उस समय काफी सक्त रहते हैं ऐसे में उन फूलों में रंगों का प्रयोग करना आसान होता है। ऐसे फूल जहां मुरझाते नहीं हैं, वहीं इनके टूटने का भी डर नहीं रहता है। सुनीता बताती हैं कि वह पहले यह सब अपने शौक से करती थीं और अपनी बनाई कला कृतियों को या तो घर में सजाती थीं या फिर कोई दोस्त या रिश्तेदार उनकी कलाकृति को पसंद करता तो उनको तोहफे में दे देती थीं। इधर जब सुनीता की शादी हुई तो भी उनका शौक नहीं छूटा। शादी के बाद जब उनके बच्चे हुए और ये बच्चे आज जबकि बड़े हो गए हैं और दोनों बच्चे जिसमें एक लड़का और लकड़ी इंजीनियर हैं तो इन्होंने ही अपनी मां की कला को घर से बाहर लाने का काम किया। इनकी प्रेरणा के साथ पति अजय सक्सेना ने भी जब उनका उत्साह बढ़ाया तो अंतत: उन्होंने अपनी कला को बाहर लाने का फैसला किया। सबसे पहले तो उनकी कला को भोपाल में ही प्रदर्शित किया गया। भोपाल में उनकी कला को जानने वाले काफी लोग हैं। ऐसे में जबकि भोपाल में उनकी कला की पूछ परख होने लगी तो उनकी बेटी बकूल ने अपनी मां को सुझाव दिया कि वह अपना पंजीयन कला केन्द्र में करवा लें। ऐसे में बकूल ने ही एक माह पहले उनका पंजीयन भोपाल डिजाइन एंड रिसर्च सेंटर में करवाया तो उनको मालूम हुआ कि रायपुर में एक क्राफ्ट मेला लगा है। ऐसे में उन्होंने अपनी मां को जिद करके रायपुर भेजने का काम किया। सुनीता बताती हैं कि वास्तव में वह यहां आकर काफी खुश हैं। उनका कहना है कि उनको नहीं मालूम था कि वास्तव में रायपुर में कला के इतने पारखी हैं। उन्होंने बताया कि वह पहली बार किसी ऐसे मेले में आई हैं। सुनीता का कहना है कि उन्होंने यहां पर जगार मेले के बारे में सुना है अगली बार वह इसमें आने की तमन्ना रखती हैं।

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गुरुवार, मार्च 05, 2009

देश को सही दिशा में ले जाने वाले नेताओं की कमी है: नयन

भागवत कथाकार राजीव नयन का मानना है कि आज देश को सही दिशा में ले जाने वाले नेताओं की भारी कमी है। जो साधु-संत राजनीति में आ रहे हैं वे भी अपना स्वार्थ ही सिद्ध करने में लगे हैं। मैं तो राजनीति में कभी भी आने के बारे में नहीं सोच सकता।
उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि साधु-संतों का राजनीति में जाना अच्छा है, लेकि न जो साधु-संत आज राजनीति में आ रहे हैं, वो पद की खातिर जा रहे हैं। उन्होंने साफ कहा कि आज राजनीति में अच्छे नेताओं की भारी कमी है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि अच्छे लोग राजनीति में आएं और देश को सही दिशा में ले जाने का काम करें। राजनीति में आने के सवाल पर श्री नयन ने कहा कि मुझे एक तो पद की कोई भूख नहीं है। दूसरे यह कि राजनीति में सब आगे चलकर भूतपूर्व हो जाते हैं। आज मैं जिस पद पर हूं उसमें मैं कभी भी भूतपूर्व नहीं बनने वाला हूं।
श्री नयन ने एक सवाल के जवाब में कहा कि आज साधु की पहचान करना कठिन है। उन्होंने कहा कि आज राजनीति का मतलब ही अपना स्वार्थ सिद्ध करना है। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि आज देश के युवा पश्चिम की संस्कृति की तरफ जा रहे हैं तो इसका एक बड़ा कारण यहां की शिक्षा है। उन्होंने कहा कि सरकार को शिक्षा का स्तर उठाना होगा। देश के युवा बाहर शिक्षा लेने जाते हैं और विदेशी संस्कृति में रच-बसकर लौटते हैं। उन्होंने कहा कि वैसे आज देश में लोगों की धर्म के प्रति आस्था बढ़ी है। उन्होंने पूछने पर कहा कि धर्म आज व्यापार नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि जब हिन्दु साधु-संत प्रचार-प्रसार करते हैं तो इसको व्यापार का नाम दे दिया जाता है। श्री नयन ने कहा कि आज देश में लाखों लोगों का धर्मांतरण करवाया जा रहा है। इसके खिलाफ कोई बोलने वाला नहीं है।

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बुधवार, मार्च 04, 2009

उमा भारती को मैं साध्वी नहीं मानती: स्तुति

बाल कथाकार स्तुति देवी का मानना है कि भारतीय जनशक्ति पार्टी की अध्यक्ष और साध्वी उमा भारती को मैं कभी साध्वी नहीं मानती। स्तुति का कहना है कि सुश्री भारती को तो मैंने कभी प्रवचन करते देखा ही नहीं है। मैंने जब से होश संभाला है तब से उनको राजनीति में देख रही हूं। वास्तव में जो साधु-संत हैं उनको राजनीति में कभी नहीं आना चाहिए। मैं तो कभी राजनीति में जाने के बारे में सोच ही नहीं सकती।
उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि मैं भला उमा भारती जैसी साध्वी से कैसे प्रभावित हो सकती हूं जबकि मैं उनको साध्वी मानती ही नहीं हूं। उन्होंने कहा कि साधु-संतों को तो वास्तव में राजनीति से काफी दूर रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैंने तो आज तक सुश्री भारती को न कभी कोई कथा करते सुना है और न ही प्रवचन करते देखा है। उन्होंने कहा कि सच्चा साधु तो वही होता है वास्तव मैं वैराग्य का पालन करता है, लेकिन आज जो साधु-संत हैं उनमें ज्यादातर ऐसे हैं जो वास्तव में अपने घर-परिवार की जिम्मेदारी से भागना चाहते हैं। राजनीति के बारे में उनका कहना है कि इसमें भ्रष्टाचार के अलावा कुछ नहीं है।
स्तुति के साथ आए उनके पिता पं. गोविंद माधव तिवारी ने छत्तीसगढ़ के बारे में कहा कि यह राम और कौशल्याकी जन्मभूमि है। यहां के लोगों को राम के आदर्श को मानना चाहिए। उन्होंने प्रदेश की तारीफ करते हुए कहा कि कम से कम अपना छत्तीसगढ़ दूसरे राज्यों की तुलना में काफी कम खराब है। एक तरह से देखा जाए तो छत्तीसगढ़ बहुत शांत है।

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मंगलवार, मार्च 03, 2009

अंग्रेजी को अपने ऊपर हावी होने न दें: स्तुति

महज तीन साल की उम्र से रामकथा पर प्रवचन करने वाली कक्षा 8वीं की छात्रा स्तुति देवी का मानना है कि अंग्रेजी पढऩे और बोलने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन अंग्रेजी को अपने ऊपर हावी होने देना गलत है। आज देश को अंग्रेजी की नहीं उस संस्कृत भाषा की जरूर है जो हमें अध्यात्म से जोडऩे के साथ हमारी संस्कृति से भी जोड़ती है। हमें अंग्रेजी के मोहजाल में कदापि नहीं पडऩा चाहिए।
इस छोटी सी किशोरी ने पत्रकारों को भी हैरात में डाल दिया। इस बालिका ने साफ शब्दों में कहा कि आज देश में लोग अंग्रेजी बोलना अपनी शान समझते हैं। लेकिन अपनी जो मूल भाषा संस्कृत है उसको बोलने वालों की काफी कमी है। संस्कृत ही एक ऐसी भाषा है जो हमारी संस्कृति के सबसे करीब है। इस मर रही भाषा को आज जरूरत है कि इसका इस तरह से प्रचार हो कि इसको नवजीवन मिल जाए। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी भाषा में कोई बुराई नहीं है। वैसे भी कोई भाषा कभी बुरी नहीं होती है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी का जिनता जरूरी हो उतना ही उपयोग करना चाहिए। आप बेसक अंग्रेजी पढ़ें, बोलें लेकिन इसको अपनी न तो मजबूरी बनने दें और न ही इसको हावी होने दें। जब कोई भाषा किसी पर हावी हो जाती है तो इंसान उसका गुलाम हो जाता है।
अब तक 150 स्थानों पर रामकथा का प्रवचन करने वाली इस बालिका ने टीवी संस्कृति पर हमला करते हुए कहा कि टीवी आज बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो रही है। टीवी पर आज जो कार्यक्रम दिखाए जा रहे हैं उनमें अच्छी बातें कम और बुरी बातें ज्यादा हैं। उन्होंने कहा कि जहां तक मेरा सवाल है तो मैं कभी टीवी देखती हूं तो मैं टीवी में आस्था चैनल या फिर ज्ञान-विज्ञान से जुड़े चैनल ही देखना पसंद करती हूं। उन्होंने कहा कि मेरा ऐसा मानना है कि बच्चे टीवी पर क्या देखें और क्या न देखें इसका निर्धारण माता-पिता को करना चाहिए। माता-पिता को इस बात का पता होना चाहिए कि उनका बच्चा आखिर टीवी पर क्या देख रहा है।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मैं प्रवचन करने के क्षेत्र में इसलिए आई हूं ताकि बच्चों को टीवी संस्कृति से बाहर लाकर अध्यात्म से जोडऩे का काम कर सकू। उन्होंने बताया कि जब मैं एक टीवी कार्यक्रम देख रही थी तब उस कार्यक्रम में मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि अच्छे खासे पढ़े-लिखे विद्यार्थियों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि रामायण किसने लिखी है। ऐसे में दुख होता है कि अपने देश के भावी कर्णधार ही अपने देश के धर्म-पुराणों के बारे में नहीं जानते हैं।

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सोमवार, मार्च 02, 2009

कम कपड़ों से फिल्में नहीं चलती- उपासना सिंह

फिल्म अभिनेत्री उपासना सिंह का कहना है कि आज की नायिकाएं फिल्मों में कम कपड़े पहन कर अगर यह सोचती हैं कि इससे उनकी फिल्में चल जाएंगी तो यह गलत है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में आज भी यह बात है कि दर्शक ऐसी फिल्में देखना पसंद करते हैं जो फिल्में परिवार के साथ बैठ कर देखी जा सके ।
अभिनेत्री ने एक सवाल के जवाब में कहा कि यह बात सच है कि आज की नायिकाओं के बदन पर कपड़े कम होते जा रहे हैं। लेकि न यह बात भी सच है कि ऐसी फिल्मों को देखने वाले दर्शको की संख्या भी कम है। उन्होंने कहा कि आज भी दर्शक ऐसी फिल्में देखना चाहते हैं जिनमें कुछ संदेश हो जिनको परिवार के साथ बैठकर देखा जा सके । उन्होंने यह भी माना कि आज की नायिकाएं कुछ फिल्मों में काम करके अपने को स्थापित करके शादी करने के लिए फिल्मों में आती हैं। आज की नायिकाओं में लगन और मेहनत करने की क्षमता कम है। उन्होंने पुराने जमाने की नायिकाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि माधुरी दीक्षित तक तो जमाना ठीक था, लेकिन आज जो भी नायिकाएं आ रही हैं, सब कुछ फिल्मों के बाद गायब हो जाती हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यह कहना गलत है कि फिल्मों में नई कलाकारों का शोषण होता है। उन्होंने कहा कि हकीकत तो यह है कि कोई किसी के साथ जोर-जबरदस्ती नहीं करता है। लड़कि यां खुद ही अगर निर्माता-निर्देशको के कमरों में जाती हैं तो क्या किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जिनमें क्षमता होती है उनको किसी भी तरह का समझौता करने की जरूरत नहीं होती है। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि आज टीवी का छोटा पर्दा छोटा काफी बड़ा हो गया है। आज इस पर्दे से फिल्मी कलाकारों को ज्यादा पहचान मिल रही है। उन्होंने कहा कि यह कहना गलत है कि फिल्मों में असफल होने वाले ही टीवी में जाते हैं। उन्होंने कहा कि वैसे देखा जाए तो टीवी में कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने का ज्यादा मौका मिलता है। एक फिल्म में कलाकार को 4-5 सीन ही करने को मिलते हैं लेकिन टीवी सीरियल में काफी लंबा सीन और समय मिलता है। उन्होंने बताया कि उनको टीवी सीरियलों से भी काफी लोकप्रियता मिली है।
एकता कपूर के सीरियलों के बारे में उन्होंने कहा कि इससे समाज में गलत संदेश जा रहा है। ऐसे सीरियल नहीं बनने चाहिए। उन्होंने कहा कि टीवी के लिए भी अब सेंसर जरूरी है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो टीवी सीरियल समाज को प्रदूषित कर देंगे। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि उनका अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का सपना तो पूरा हो चुका है, अब एक ही सपना है कि सदमा में श्रीदेवी ने जैसा रोल किया था वैसा रोल मुझे करने को मिले। उन्होंने पूछने पर कहा कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों में काम करने का मौका मिलेगा तो जरूर करूंगी। उन्होंने पूछने पर कहा कि उनकी राजनीति में कोई रूचि नहीं है।

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रविवार, मार्च 01, 2009

नागा बाबा भी आने लगे नकली

राजिम कुम्भ में आए नागा साधुओं को देखने जहां भारी भीड़ उमडी़ वहां इन नागा बाबाओं के पैसे मांगने से कई लोगों परेशानी महसूस कर रहे हैं। नागा बाबा तो मीडिया वालों को भी नहीं छोड़ रहे थे। मीडिया वालों से ये फोटो खींचने के पैसे मांगते रहे। राजिम कुम्भ का एक खास आकर्षण देश भर से आए नागा साधु भी हैं। इन साधुओं का जमावड़ा लोमश ऋषि आश्रम में होता है। कुम्भ में सबसे ज्यादा भीड़ भी यहीं नजर आती है। प्रदेश के लोगों ने अब तक सिर्फ नागा साधुओं का नाम ही सुन रखा था लेकिन राजिम कुम्भ में इनको देखने का भी मौका मिलने लगा है। इनके बारे में ऐसा कहा जाता है कि वास्तव में असली संत तो यही हैं जिनको दिन-दुनिया से कोई मतलब नहीं रहता है। कैसा भी मौसम हो इसके शरीर पर कभी पड़े नहीं रहते हैं। इन नागा साधुओं को मोह-माया से परे बताया जाता है। लेकिन राजिम कुम्भ में इन बातों से परे कई नागा साधुओं को पैसों के मोह में फंसे हुए देखा जाता है। लोमश ऋषि आश्रम में ये नागा साधु लोगों को अपने पास बुलाते हैं और भभूति का टीका लगाने के बाद पैसों की मांग करने लगते हैं। पैसे न देने पर ये साधु तरह-तरह की बातें कहने लगते हैं। इन नागा साधुओं ने तो मीडिया वालों को भी काफी परेशान किया। जो लोग इनकि फोटो खींचने जाते हैं उनसे भी ये पैसों कि मांग करते देखे गए। पैसे न देने पर इनको अनाप-शनाप कुछ भी कह देते। कई समाचार पत्रों के फोटोग्राफरों के साथ भी कुछ ऐसा ही वाक्या हुआ जब इन्होंने कुछ साधुओं कि फोटो खींची तो वे पैसों की मांग करने लगे। पैसे न देने पर कुछ भी कहते रहे। इन साधुओं के बारे में ऐसा कहा जाने लगा है कि ये असली नहीं बल्कि नकली नागा साधु है। अगर वास्तव में ये असली होते तो कभी पैसों की मांग नहीं करते।

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