राजनीति के साथ हर विषय पर लेख पढने को मिलेंगे....

बुधवार, मार्च 31, 2010

हम भी हो गए 420

420 कहलाना किसी को पसंद नहीं है। लेकिन इसका क्या किया जाए कि हर इंसान के जीवन में यह आकंड़ा कभी न कभी दस्तक दे ही देता है। कम से कम उस इंसान के जीवन में तो जरूर 420 का दखल होता है जो इंसान लेखन से जुड़ा है। हर लेखक को अपने जीवन में कभी न कभी उस समय 420 बनना ही पड़ता है जब उसके लिखे की संख्या इतनी हो जाती है। यानी अब आप समझ ही गए होंगे कि हम बात कर रहे हैं अपनी पोस्ट की। हमारे राजतंत्र में आज 420 वीं पोस्ट पूरी हुई है, यानी हम भी अब 420 हो गए हैं।

कल जब हमने अपने राजतंत्र की पोस्ट संख्या देखी तो मालूम हुआ कि हमने कल की तारीख में इसमें 419 पोस्ट लिखी है, ऐसे में सोचा कि चलो यार अब अपने ब्लागर मित्रों को बता दें कि हम भी 420 बनने का सौभाग्य मिल गया है। वैसे 420 बनना किसी सौभाग्य की बात नहीं है। 420 की संबंध अपराध से होता है, लेकिन यह आंकड़ा हम लेखकों के जीवन में जरूर आता है। अब यह बात अलग है कि कोई इस पर ध्यान नहीं देता है, हमने भी पहले इस पर ध्यान नहीं दिया था, वरना हमारे एक और ब्लाग खेलगढ़ ने तो यह आंकड़ा कब का पार कर लिया है। कहते हैं कि कभी-कभी ऐसा हास्य-परिहास्य होना ही चाहिए, सो हमने सोचा कि चलो यार हम भी थोड़ी सी मस्ती कर लें और अपने ब्लागर मित्रों का ेबताए कि हम भी 420 बन गए हैं। वैसे 420 या फिर 10 नंबरी बनना कोई पसंद नहीं करता है, खासकर सभ्य कहलाने वाले लोग तो कदापि यह पसंद नहीं करते हैं, अब यह बात अलग है कि आज के जमाने में ज्यादातर लोग छुपे रूप से 420 के साथ 10 नंबरी का भी काम करते हैं। अपने देश में जिस तरह से भ्रष्टाचार होता है, उसको देखते हुए यह कहना आसान नहीं है कि आज के जमाने में कौन ईमानदार है। अगर ईमानदारों की कमी है तो इसका मतलब साफ है कि लोग 420 और 10 नंबरी हैं। खैर हमने यह पोस्ट महज मस्ती में लिखी है, लेकिन एक बात जरूर सच्ची और कड़वी है कि अपने देश में जितने 420 और 10 नंबरी खुले रूप में नहीं है उससे कहीं ज्जाया सफेदपोश 420 और 10 नंबरी हैं।

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मंगलवार, मार्च 30, 2010

धर्म को तो राजनीति से गंदा न करें

अपने देश के नेता जहां जाते हैं, वहां के माहौल को अपनी गंदी राजनीति से गंदा करने से बाज नहीं आते हैं। अब अपने छत्तीसगढ़ राज्य की भाजपा सरकार ने जब हरिद्वार कुंभ में स्नान करने की योजना बनाई तो इसके लिए विपक्षी पार्टी कांग्रेस के विधायकों को भी इस धार्मिक कार्यक्रम में सहभागी बनाने साथ ले गई। लेकिन यह बात कांग्रेसी नेताओं को रास नहीं आई और उन्होंने अपने विधायकों के पीछे जासूस लगा दिए कि कहीं भाजपा नेता हमारे विधायकों पर डोरे डालने का काम तो नहीं कर रहे हैं।

सच में अगर इस दुनिया में कोई चीज सबसे गंदी है तो वह निश्चित ही राजनीति है। राजनीति से ज्यादा गंदी और कोई चीज हो भी नहीं सकती है। अब अगर राजनीति गंदी है तो इसमें रहने वाले कैसे अच्छे हो सकते हैं। हमें नहीं लगता है कि आज राजनीति में रहने वाले किसी भी इंसान के लिए ऐसा दावा किया जा सकता है कि वह पाक और साफ है।
बहरहाल हम बात करें अपने राज्य छत्तीसगढ़ की, जहां पर एक अच्छे धार्मिक कार्यक्रम के लिए बनाई गई योजना में भी राजनीति करने वालों को साजिश नजर आई। दरअसल अपने राज्य की भाजपा सरकार ने जब अपने सभी मंत्रियों और विधायकों के साथ हरिद्वार कुंभ में जाकर स्नान करने का फैसला किया तो सरकार ने इस यात्रा में विपक्षी दल कांग्रेस के विधायकों को भी शामिल कर लिया ताकि वे भी कुंभ स्नान का लाभ उठा लें। यहां पर भाजपा की सोच तो साफ और अच्छी ही नजर आ रही थी,अब इसके पीछे अगर कोई राजनीति हो तो कहा नहीं जा सकता है, लेकिन किसी धार्मिक कार्यक्रम के लिए बनाई गई योजना पर एक बार तो भरोसा कर ही लेना चाहिए। फिर भाजपा जो कि सत्ता में पूर्ण बहुमत के साथ है उसे इस बात का तो डर है नहीं कि विधायकों के बिदकने से उसकी सत्ता चली जाएगी।

भाजपा की एक साफ-सुधरी नजर आ रही योजना में भी न जाने कांग्रेस को क्या राजनीति नजर आई कि उसने अपने विधायकों को कुंभ स्नान के लिए जाने से तो नहीं रोका, लेकिन इस स्नान के समय और वहां से दिल्ली आने के बाद कांग्रेस विधायकों की सारी गतिविधियों पर जासूसी नजरें रखीं गईं। इसका क्या मतलब निकाला जाए कि वास्तव में राजनीति इतनी गंदी है कि उसे धर्म के काम भी भरोसा नहीं है। वास्तव में यहां पर कांग्रेस को सोचना था और कम से कम धर्म को गंदी राजनीति से अगल रखना था। यहां पर भाजपा की सोच को जरूर सलाम किया जा सकता है जिनसे अपने विपक्षियों को भी कुंभ स्नान का पुन्य लाभ देने का काम किया।

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सोमवार, मार्च 29, 2010

भिलाई की बैठक पर मचा बवाल

छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ की बैठक में भारतीय ओलंपिक संघ के आजीवन अध्यक्ष विद्याचरण शुक्ल के सामने ही भिलाई में हुई बैठक को लेकर बवाल मच गया। इस बवाल के चलते प्रदेश ओलंपिक संघ के सचिव बशीर अहमद खान ने इस्तीफा देने की पेशकर कर दी। इस बवाल को शांत करने के लिए विद्याचरण शुक्ल के साथ प्रदेश संघ के अध्यक्ष डॉ. अनिल वर्मा को सामने आना पड़ा। इनकी समझाइश पर ही सभी खेल संघों ने ३७वें राष्ट्रीय खेलों के लिए एकजुट होकर काम करने का संकल्प लिया है। बैठक में ओलंपिक संघ का मुख्यालय रायपुर लाने पर भी सहमति बनी। यह कार्यालय एक पखावड़े में भिलाई से रायपुर स्थानांतरित कर दिया जाएगा।




प्रदेश ओलंपिक संघ की बैठक आज यहां पर सुबह को ११ बजे ग्रांड होटल में विद्याचरण शुक्ल की मौजूदगी में हुई। इस बैठक में आशा के मुताबिक भिलाई में हुई खेल संघों की बैठक को लेकर रायपुर के कई खेल संघों ने आपति करते हुए इस बैठक को गलत बताते हुए सवाल किया कि भिलाई में बैठक करने का क्या मतलब है। छत्तीसगढ़ को जब राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी मिली है तो सारे खेल संघों को एक होकर काम करना चाहिए, ऐसे समय में क्यों कर रायपुर और भिलाई के बीच खाई पैदा करने का काम किया जा रहा है। इस मुद्दे को लेकर इतना ज्यादा बवाल खड़ा हो गया कि प्रदेश ओलंपिक संघ के सचिव बशीर अहमद खान ने इस्तीफा तक देने की बात कर दी।



मामला शांत न होता देखकर पहले प्रदेश संघ के अध्यक्ष डॉ. अनिल वर्मा ने सबको शांत करने का प्रयास किया, फिर इस मामले में भारतीय ओलंपिक संघ के आजीवन अध्यक्ष विद्याचरण शुक्ल ने भी दखल देते हुए सभी से एकजुट होकर काम करने के लिए कहा। श्री शुक्ल ने कहा कि छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी मिली है तो इसकी मेजबानी के लिए हम लोगों ने भी राजनीति से ऊपर उठकर काम किया है। प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने भी ऐसा ही काम किया है। सभी के मिले जुले प्रयास से मेजबानी मिली है। ऐसे में किसी भी तरह के विवाद में न पड़ते हुए सभी खेल संघों को एकजुट होकर काम करना है, ताकि छत्तीसगढ़ का नाम खेल जगत में हो सके। श्री शुक्ल की समझाइश पर बड़ी मुश्किल से मामला शांत हुआ।

ओलंपिक संघ का मुख्यालय रायपुर आएगा

राष्ट्रीय खेलों को देखते हुए प्रदेश ओलंपिक संघ के कार्यालय को रायपुर लाने का मामला संघ के उपाध्यक्ष गुरुचरण सिंह होरा ने उठाया। इस मामले पर कुछ बहस के बाद अंत में फैसला किया गया कि अब संघ का मुख्यालय भिलाई में नहीं रायपुर में होगा। संघ के अध्यक्ष डॉ. अनिल वर्मा ने बताया कि कार्यालय के लिए मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से भी बात करके सहमति ले ली गई है और इसके लिए स्पोट्र्स काम्पलेक्स में एक कमरा भी मिल जाएगा। यह कार्यालय एक पखवाड़े के अंदर रायपुर आ जाएगा, इसी के साथ संघ के खाते भी रायपुर में स्थानांतरित कर दिए जाएंगे। इस कार्यालय के संचालन का जिम्मा कोषाध्यक्ष वैभव मिश्रा के साथ संयुक्त सचिव विष्णु श्रीवास्तव को दिया गया है। कार्यालय के संचालन में सहयोग देने के लिए सचिव बशीर खान सप्ताह में तीन दिन भिलाई से रायपुर आएंगे। इसी के साथ डा. वर्मा ने बताया कि राष्ट्रीय खेलों के लिए स्टेडियम निर्माण के साथ ३६ कमरों का एक ओलंपिक भवन भी बनाया जाएगा, इसकी सहमति मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने दे दी है।


राष्ट्रीय खेल होंगे कई शहरों में

बैठक में मुख्य रूप से ३७वें राष्ट्रीय खेलों पर भी चर्चा हुई। इसके बारे में डॉ. अनिल वर्मा ने बताया कि राष्ट्रीय खेलों के लिए रायपुर के साथ भिलाई, राजनांदगांव, बिलासपुर के साथ संभव हुआ तो जगदलपुर का भी चयन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि कोशिश यही रहेगी कि प्रदेश के सभी संभागों में राष्ट्रीय खेल हो सके। इसके लिए भारतीय खेल प्राधिकरण के साथ भारत के केन्द्रीय खेल मंत्रालय से भी खेलों के लिए प्रशिक्षक दिलाने की मांग की जाएगी। राष्ट्रीय खेलों के लिए एक हाई पावर कमेटी बनेगी जिसके पास सभी तरह के अधिकार होंगे, इस कमेटी में सरकारी अधिकारियों के साथ खेल संघों के पदाधिकारियों को भी रखने का मांग सरकार से की जाएगी।


सभी जिलों में बनेगा ओलंपिक संघ

प्रदेश संघ के डॉ. अनिल वर्मा ने एक सवाल के जवाब में कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि किसी कारणवश प्रदेश ओलंपिक संघ के बनने के कई सालों बाद भी प्रदेश के सभी जिलों में जिला ओलंपिक संघ का गठन नहीं किया जा सका है, लेकिन अब जबकि प्रदेश को राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी मिली है, तो यह प्रयास किए जाएंगे कि जल्द से जल्द प्रदेश के सभी १८ जिलों में जिला ओलंपिक संघ का गठन कर लिया जाए। जिला ओलंपिक संघ में ऊर्जावान युवाओं को रखा जाएगा ताकि खेलों का काम तेजी से और अच्छी तरह से हो सके।

मेजबानी लेने के लिए आभार

बैठक में राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी लेने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, खेल मंत्री लता उसेंडी, भारतीय ओलंपिक संघ के आजीवन अध्यक्ष विद्याचरण शुक्ल के साथ भारतीय ओलंपिक संघ के सुरेश कलमाड़ी के साथ राजा रणधीर सिंह का आभार माना गया। यहां पर तीरंदाजी संघ के विजय मल्होत्रा नाम न लेने पर प्रदेश तीरंदाजी संघ से सचिव ने कैलाश मुरारका ने आपति करते हुए कहा कि प्रदेश को राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी दिलाने में श्री मल्होत्रा का भी बहुत बड़ा हाथ ऐसे में उनके नाम का उल्लेख न करना गलत है। इस विरोध के बाद श्री मल्होत्रा का भी नाम लिया गया।

बैठक में सचिव बशीर अहमद खान ने वर्ष २००८-०९ का वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया और बताया कि साल भर में संघ ने क्या-क्या गतिविधियां की। संघ से मान्यता लेने वाले खेल संघों की भी जानकारी दी गई। बैठक में प्रदेश ओलंपिक संघ के पदाधिकारियों के साथ सभी मान्यता प्राप्त खेल संघों के पदाधिकारी भी उपस्थित थे।

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रविवार, मार्च 28, 2010

क्या ब्लाग जगत में अच्छे लेखन की कद्र नहीं होती

ब्लाग जगत के बारे में एक बार नहीं कई बार कई ब्लागर मित्रों की एक राय अक्सर सुनने को मिलती है कि ब्लाग जगत में अच्छे लेखन की कद्र नहीं होती है। कभी-कभी हमें भी ऐसा लगता है। हमें इसलिए ऐसा लगता है क्योंकि हमें भी जब कोई पोस्ट लगती है कि यह अच्छी है तो उस पर कोई प्रतिक्रिया ही नहीं आती है, खासकर हमने देखा है कि खेलों की अच्छी पोस्ट की तो यहां पर कद्र होती ही नहीं है। ऐसे में भला कैसे कोई अच्छा लेखन कर सकता है।

ब्लाग जगत में जब हमने कदम रखा था तो हमने भी सोचा था कि यहां पर अच्छा लेखन पढऩे को मिलेगा, इसमें कोई दो मत नहीं है कि अच्छा लिखने वालों की कमी नहीं है, लेकिन इसका क्या किया जाए कि अच्छा पढऩे वालों के साथ उस पर प्रतिक्रिया देने वालों की जरूर कमी है। हम अब तक जितने भी ब्लागरों से मिले हैं, उनमें से ज्यादातर के मन में एक कसक रही है कि यार जब भी कुछ अच्छा लिखो तो उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आती है, दूसरी तरफ कोई बकवास सी पोस्ट या फिर विवादस्पद पोस्ट लिख देता है तो उस पोस्ट में लोग टूट पड़ते हैं। इसका क्या मतलब निकाला जाए। हमें तो लगता है कि अगर अपने ब्लाग जगत में ऐसा ही चलते रहा तो एक दिन अच्छा लेखन बंद हो जाएगा और अच्छा लिखने वाले इससे किनारा कर लेंगे।

हमें भी उस समय बहुत अफसोस होता है जब खेल की कोई अच्छी खबर को हम अच्छा होने के कारण खेलगढ़ के स्थान पर राजतंत्र में पोस्ट करते हैं, हमने जब भी ऐसा किया है राजतंत्र में उस पोस्ट को कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलती है। इसका क्या मतलब समझा जाए।

इस बारे में हमारे ब्लागर मित्र क्या सोचते हैं जरूर बताएं

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शनिवार, मार्च 27, 2010

राष्ट्रीय खेलों का अनुबंध दिल्ली में होगा

३७वें राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी के लिए अब अनुबंध दिल्ली में ३० मार्च को होगा। इसी दिन भारतीय ओलंपिक संघ को दो करोड़ का चेक भी दिया जाएगा। होस्ट सिटी कांट्रेक्ट को आज यहां पर कैबिनेट की बैठक में मंजूरी भी दे दी गई है। इस कांट्रेक्ट पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ खेल मंत्री लता उसेंडी सहित कुल सात लोगों के हस्ताक्षर होंगे। इस अनुबंध के बाद ही प्रदेश में राष्ट्रीय खेलों की तैयारी का कारवां आगे बढ़ेगा। सरकार ने नई राजधानी में खेल गांव बनाने के लिए पहले ही दो सौ एकड़ जमीन दे दी है।


यह जानकारी देते हुए प्रदेश ओलंपिक संघ के अध्यक्ष डॉ. अनिल वर्मा ने बताया कि भारतीय ओलंपिक संघ से छत्तीसगढ़ को ३७वें राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी मिलने के बाद होस्ट सिटी कांट्रेक्ट का पत्र मिल गया था। छत्तीसगढ़ ने मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह की मंशा के अनुरूप ही ३७वें राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी ली है। छत्तीसगढ़ को मेजबानी तो ७ दिसंबर २००९ में ही दे दी गई थी। इसके बाद मेजबानी दिए जाने का अधिकृत पत्र भी छत्तीसगढ़ को मिल गया है। यह पत्र छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के महासचिव को दिल्ली में भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी ने दिया था। इस पत्र के मिलने के बाद अब भारतीय ओलंपिक संघ के साथ होस्ट सिटी कांट्रेक्ट यानी मेजबान शहर अनुबंध पर हस्ताक्षर होने बाकी हैं।

इसके बारे में जानकारी देते हुए डॉ. अनिल वर्मा ने बताया कि भारतीय ओलंपिक संघ से अनुबंध का एक प्रारूप प्रदेश सरकार को काफी पहले भेजा दिया था। इस प्रारूप को देखने के बाद सरकार ने इसको अंतिम रूप दे दिया है। इसी के साथ भारतीय ओलंपिक संघ के साथ होस्ट सिटी कांट्रेक्ट करने को आज यहां पर कैबिनेट की बैठक में भी मंजूरी दे दी गई है।

श्री वर्मा ने बताया कि इस अनुबंध के लिए दिल्ली में एक समारोह का आयोजन किया जाएगा। इस समारोह में ही अनुबंध पर हस्ताक्षर होंगे। यह समारोह ओलंपिक भवन दिल्ली में ३० मार्च को १२ बजे होगा। छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ खेल मंत्री लता उसेंडी, खेल सचिव या खेल संचालक के हस्ताक्षर होंगे। इसी के साथ प्रदेश ओलंपिक संघ की तरफ से मेरे यानी अध्यक्ष डॉ. अनिल वर्मा और महासचिव बशीर अहमद खान के भी हस्ताक्षर होंगे। भारतीय ओलंपिक संघ की तरफ से अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी और महासचिव राजा रणधीर सिंह हस्ताक्षर करेंगे।



श्री वर्मा ने बताया कि मेजबानी के लिए जहां मुख्यमंत्री ने प्रदेश सरकार की तरफ से पहले ही सहमति दे दी है, वहीं नगर निगम से भी भारतीय ओलंपिक संघ को सहमति का पत्र भेजा जा चुका है। सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी लेते हुए डीजीपी ने भी एक पत्र भारतीय ओलांपिक संघ को भेजा है। अब बस अनुबंध होने का इंतजार है इसके बाद राष्ट्रीय खेलों की जोरदार तैयारी प्रदेश में प्रारंभ हो जाएगी। श्री वर्मा ने बताया कि इस आयोजन को मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की मंशा के अनुरूप ऐतिहासिक बनाने का पूरा प्रयास रहेगा। नई राजधानी में खेल गांव बनाने के लिए सरकार ने दो सौ एकड़ जमीन भी दे दी है। अब होस्ट सिटी कांट्रेक्ट के बाद मैदानी काम प्रारंभ होंगे।

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शुक्रवार, मार्च 26, 2010

कार को घर का रास्ता कैसे मालूम है?

कल हमारी छुट्टी का दिन था और हम अपने परिवार के साथ घुमने गए थे। हमारे छोटे मास्टर सागर राज ग्वालानी यानी सोनू बाबा हमेशा कार में अगली सीट पर बैठते हैं और अपनी बहन स्वप्निल राज ग्वालानी यानी रानी को कभी वहां बैठने नहीं देते हैं। जब हम लोग घुमकर घर वापस आ रहे थे, तो सोनू ने एक सवाल किया कि पापा कार को घर का रास्ता कैसे मालूम है। हमने उससे पूछा कि ऐसे क्यों पूछ रहे हो तो उसने मासूमियत से कहा कि कार कैसे अपने आप मुडऩे का रास्ता बताती है। दरअसल कार के मुडऩे से पहले इंडिकेटर की बत्ती के जलने को  देखकर उसने यह सवाल किया था। जब हम कार चलाते हैं तो उसको यह नजर नहीं आता है कि इंडिकेटर हमारे हाथ से इशारे पर चलता है।

वास्तव में बच्चे ऐसे-ऐसे सवाल करते हैं कि हंसी भी आती है। हमसे जब सोनू ने कल कार को घर का रास्ता कैसे मालूम है सवाल किया था तो उनकी बहन और मम्मी अनिता ग्वालानी को हंसी आ गई थी। अब यहां पर उसे छेडऩे के लिए रानी ने कहा कि अरे पागल कार को सब मालूम रहता है, कार में कम्प्यूटर फिट रहता है जिसमें घर का रास्ता बने रहता है। सोनू ने हमसे पूछा हां पापा, कार में कम्प्यूटर फिट रहता है। पहले तो हमने भी उससे मजाक में कहा कार में कम्प्यूटर फिट होने के कारण ही तो ये रास्ता बताती है। हमारी बात के बात जब हम सब हंसने लगे तो सोनू को कुछ-कुछ समझ में आने लगा कि उसके साथ हम लोग मजाक कर रहे हैं, ऐसे में उसने कहा कि आप लोग मुझे झुठू बना रहे हैं न।

हमने हंसते हुआ कहा कि बेटा कार में कोई कम्प्यूटर नहीं होता है, हम इंडिकेटर को जिधर करते हैं, वह उधर होता है तो तुम्हें  लगता है कि कार रास्ता बता रही है। हमने उसे दिखाया और बताया कि कैसे एंडीगेटर को इधर-उधर किया जाता है। तब जाकर उसकी उत्सुकता शांत हुई और उसे समझ में आया कि दरअसल कार को घर का रास्ता मालूम नहीं है, पापा को मालूम है और वे कार के इंडिकेटर को जिधर करते हैं, उधर हो जाता है। हमने उसे यह भी बताया कि यह सब इसलिए किया जाता है ताकि पीछे से आने वाले वाहनों को यह मालूम हो कि हमें किधर मुड़ रहे हैं, इससे एक्सीडेंट होने का खतरा नहीं रहता है। अगर हम बिना इंडिकेटर जलाए और हाथ दिखाए बिना कार को मोड़ेंगे तो कभी भी एक्सीडेंट हो सकता है।

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गुरुवार, मार्च 25, 2010

अपने राज्य की सफलता बताना क्या क्षेत्रवाद है?

हमें लगता है कि ब्लागिंग में लोगों को बिना वजह विवाद खड़ा करने में मजा आता है, तभी तो एक साधारण पोस्ट पर भी विवादस्पद टिप्पणी करके विवाद खड़ा करने का प्रयास करते हैं। क्या अपनी और अपने राज्य की सफलता बताने का मतलब क्षेत्रवाद होता है। हमें तो नहीं लगता है। अगर आप किसी भी क्षेत्र में सफल होते हैं तो सबसे पहले आपके शहर और अपने राज्य का नाम आता है, ऐसे में अगर हमने यह लिख दिया कि चिट्ठा जगत के टॉप 40 में चार ब्लागर छत्तीसगढ़ के हैं, तो इसमें गलत क्या है? क्या ऐसा लिखने का मलतब क्षेत्रवाद फैलाना है? हमें लगता है ऐसी बात करने वाले सिवाए विवाद पैदा करने के और कुछ नहीं करते हैं। हमारी पोस्ट को एक साधारण रूप में लेने की बजाए इसे विवादित बनाने का प्रयास करने वाले मित्रों से आग्रह है कि वे इस पर गंभीरता से सोचे कि वे क्या कर रहे हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है हम सभी भारतीय हैं, लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हम जिस राज्य में रहते हैं और जहां पैदा होते हैं, उसका भी कुछ अस्त्वि होता है।

हमने कल एक पोस्ट लिखी थी कि चिट्ठा जगत के टॉप 40 में चार ब्लागर छत्तीसगढ़ के। इस पोस्ट पर एक ब्लागर मित्र ने एक टिप्पणी की है कि ब्लागिंग में भी क्षेत्रवाद, एक और मित्र ने लिखा है मुझे लगता था कि सभी 40 के 40 भारतीय हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि सभी 40 भारतीय हैं, लेकिन भारतीय होने के साथ-साथ हर कोई किसी न किसी राज्य का है। किसी भी इंसान को जब किसी भी क्षेत्र में सफलता मिलती है तो यह बात तय है कि उनके साथ उनके राज्य का नाम पहले आता है। फिर इस बात को क्यों नहीं समझा जाता है। कोई बताए कि हम में से ऐसे कितने लोग हैं जो यह कहते हैं कि हम भारत में रहते हैं। अगर आप से पूछा जाए कि आप कहां रहते हैं? तो निश्चित ही आपका पहला जवाब होगा कि मैं उस राज्य के उस शहर में रहता हूं।

हम अगर किसी भी प्रतिस्पर्धा की बात करें तो जब कोई भी प्रतिस्पर्धा होती है तो उसमें सफल होने वाले इंसान के साथ उसके राज्य का नाम आता है। अगर राष्ट्रीय स्तर पर खेल से लेकर सांस्कृतिक या और किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धा होती है तो उसमें जीतने वाले के साथ उनके राज्य का नाम जरूर बताया जाता है, तो क्या यह सब क्षेत्रवाद है? ठीक उसी तरह से ब्लाग लेखन में भी एक स्वस्थ्य प्रतिस्पर्धा है। आप इस बात से इंकार नहीं कर सकते हैं कि इसमें प्रतिस्पर्धा है। अगर ऐसा नहीं होता तो चिट्ठा जगत वाले कभी सक्रियता क्रमांक नहीं बताते। अगर किसी भी काम में नंबर मिल रहे हैं और रेटिंग तय हो रही है तो इसका सीधा मतलब है कि वहां प्रतिस्पर्धा है, और अगर कहीं प्रतिस्पर्धा है तो वहां पर रेटिंग में आने वालों को उनके राज्यों के नाम से ही जाना जाएगा, इसमें न तो कोई बुराई है और न ही इसमें क्षेत्रवाद जैसी कोई बात है। अगर इसको क्षेत्रवाद समझा जा रहा है तो अपने देश में होने वाली हर तरह की प्रतिस्पर्धा क्षेत्रवाद के दायरे में आती है, फिर इन सबको या तो बंद करवा दिया जाए, या फिर यह कहा जाए कि अगर किसी प्रतिस्पर्धा में उप्र, मप्र, हरियाणा, छत्तीसगढ़ या किसी भी राज्य को कोई स्वर्ण पदक मिलता है या कोई राज्य पहले स्थान पर आता है तो उस राज्य का नाम न लेकर यह कहा जाए कि भारत पहले स्थान पर आया है। लेकिन क्या यह संभव है? यह तभी संभव है जब किसी प्रतिस्पर्धा में कई देशों के लोग शामिल हों।

हम जानते हैं कि ब्लाग में भी कई देशों के मित्र लिखते हैं, लेकिन यह कोई अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धा नहीं है. हिन्दी ब्लागिंग में लिखने वाले सभी भारतीय हैं, ऐसे में इसको अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धा मानना उचित नहीं है। टिप्पणी करने वाले मित्र अगर इसको अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धा मानते हैं तो जरूर फिर सभी टॉप 40 ब्लागर भारतीय होंगे। लेकिन हमने इसको एक राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा मानते हुए लिखा है कि टॉप 40 में चार ब्लागर छत्तीसगढ़ के। अगर इसको लेकर किसी को लगता है कि हम क्षेत्रवाद की बात कर रहे हैं तो बिलकुल गलत है। हमें विवाद पैदा करने का कोई शौक नहीं है, हम सबसे पहले भारतीय हैं, फिर कुछ और। लेकिन हमारे साथ अपने राज्य का नाम भी जुड़ा है जिसे कम से कम हम तो नकारा नहीं सकते हैं। तो मित्रों किसी भी बात को लेकर बिना वजह विवाद खड़ा करने से कोई फायदा नहीं होता है। लिखने वाले की भावनाओं को समझने की जरूरत होती है। किसी भी बात का सबसे पहले सकारात्मक पक्ष देखना चाहिए।  अगर लगता है कि इसमें कोई नकारात्मक पक्ष है तो उसको शालीनता से भी बताया जा सकता है क्योंकि ब्लागिंग से जुड़ा हर आदमी ब्लाग बिरादरी का हिस्सा है, संभव है कि किसी बड़े या छोटे भाई से कोई गलती हो गई हो तो उसे बताने का एक सरल तरीका भी होता है। अगर कोई गलत तरीके से बताएगा को कोई भी इसको क्यों कर बर्दाश्त करेगा, फिर तो हर इंसान अपने-अपने स्थान पर स्वंतत्र है।

अंत में जय हिन्द, जय भारत, जय छत्तीसगढ़

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बुधवार, मार्च 24, 2010

टॉप 40 में छत्तीसगढ़ के चार ब्लागर

आज रामनवमी का दिन हम छत्तीसगढ़ के ब्लागरों के लिए बड़ी खुशी का दिन है। वैसे तो हम छत्तीसगढ़ के ब्लागर हमेशा खुश रहते हैं और किसी बात की परवाह नहीं करते हैं, लेकिन इसका क्या किया जाए कि आज जमाना प्रतिस्पर्धा का है और अगर स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हो तो अच्छा रहता है। हम एक बार फिर से बताना चाहते हैं कि चिट्ठा जगत की सक्रियता सूची में टॉप 40 ब्लागों में पहली बार छत्तीसगढ़ के चार ब्लाग शामिल हो गए हैं। इसके पहले तीन ब्लाग शामिल हुए थे।

इसमें कोई दो मत नहीं है कि छत्तीसगढ़ में ब्लागर लेखन में मेहनत नहीं बल्कि बहुत ज्यादा मेहनत कर रहे हैं और यह बात सबको नजर भी आ रही है। वैसे भी बिना मेहनत के कोई इतना आगे नहीं बढ़ता है। ऐसे समय में जबकि कई लोगों को यह भी महसूस होता है कि ब्लाग जगत में कुछ मठाधीश बैठे हैं जो नए ब्लागरों को आगे बढऩे से रोकने के लिए हर तरह के पैतरे अपनाने से नहीं चूकते हैं ऐसे में छत्तीसगढ़ के चार ब्लागरों का टॉप 40 में होना अपने आप में मायने रखना है। हम बता दें कि अनिल पुसदकर जी तो काफी पहले से टॉप 40 में रहे हैं। इनके बाद इसमें शामिल होने वाला दूसरा ब्लाग संभवत: संजीत त्रिपाठी का रहा है। लेकिन वे तो लगता है कि अब इतने ज्यादा व्यस्त हो गए हैं कि उनके पास ब्लाग में लिखने के लिए समय नहीं है। ऐसे में वे टॉप 40 से काफी पहले बाहर हो गए हैं। त्रिपाठी जी के बाद हमने एक बार संजीव तिवारी जी के ब्लाग आरंभ को टॉप 40 में देखा था।

संजीव तिवारी जी के बाद हमारे ब्लाग राजतंत्र को टॉप 40 में स्थान मिला। हमने टॉप 40 तक पहुंचने का सफर एक साल से भी कम समय में तय किया है। हमारे बाद एक दिन अचानक अपने ललित शर्मा जी का ब्लाग ललित डॉट काम भी टॉप 40 में नजर आया। वह पहला दिन था जब टॉप 40 में छत्तीसगढ़ के तीन ब्लाग नजर आ रहे थे। इस पर पोस्ट लिखते ही हमारे वे ब्लागर मित्र सक्रिय हो गए जो कई दिनों से पोस्ट न लिखने के कारण सक्रियता सूची में नीचे चल गए थे। हमारा पोस्ट लिखने का मकसद ही ऐसे मित्रों को सक्रिय करना था।

बहरहाल आज जब सुबह-सुबह चिट्ठा जगत की सक्रियता सूची में नजरें पड़ीं तो देखा कि टॉप 40 में छत्तीसगढ़ के चार ब्लाग चमक रहे हैं। इसमें अमीर धरती-गरीब लोग, ललित डॉट काम और राजतंत्र के साथ अपने जीके अवधिया जी का ब्लाग धान के देश में शामिल हैं। अमीर धरती-गरीब लोग जहां 19 वें नंबर पर है, वही ललित डाट काम 26, राजतंत्र 31 और धान के देश में 40 वें नंबर पर हैं। हमारा ब्लाग राजतंत्र पहली बार 31 वें नंबर पर पहुंचा है। हम यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि जिस नंबर पर हमारे ब्लाग आज हैं कल नहीं रहेंगे, क्योंकि जरूर वे मित्र एक बार फिर से सक्रिय होंगे जो कुछ दिनों से लेखन से दूर हैं। हमारा मकसद ऐसे ब्लागरों को जगाना ही है। हमारा ब्लाग अगर कुछ नंबर नीचे चले जाता है तो इससे क्या पर्क पड़ता है, कम से कम हमारे लिखने से हमारे ब्लागर मित्र तो सक्रिय हो जाते हैं। वैसे भी हमारा मकसद हिन्दी ब्लागरों को सतत सक्रिय बनाए रखना है। हम चाहते हैं कि हिन्दी लेखन करने वाले ब्लागर नियमित रूप से लिखते रहे। अब यह बात अलग है कि सबके पास इतना समय नहीं होता है, लेकिन अगर समय निकाल जाए तो समय निकल ही जाता है।

अंत में सभी ब्लागर मित्रों को रामनवमी की शुभकामनाएं। 

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मंगलवार, मार्च 23, 2010

बच के खरीदे जनाब-सब्जी में भी है शराब

आज सुबह-सुबह एक हैरान और परेशान करने वाली खबर पर नजरें पड़ीं। जिन सब्जियों को अब तक सभी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक मानते रहे हैं, अब उन सब्जियों की विश्वसनीयता भी खतरे में पड़ गई है। क्या मालूम हम जिस सब्जी को बाजार से खरीद कर लाए हैं वह सब्जी ठीक भी है या नहीं? सब्जियों के बारे में एक नई बात का खुलासा हुआ है कि सब्जियों में भी शराब के अंश होते हैं। दरअसल अपने देश के किसान अच्छी और ज्यादा फसल लेने के लालच में सब्जियों को उगाते समय खेत में देशी शराब का बेभाव इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे में यह बात तय है कि जब सब्जियों की पैदावार के लिए खाद्य के स्थान पर शराब का उपयोग किया जा रहा है तो सब्जियों में भी शराब के अंश होंगे ही।

सुबह उठते साथ अपने ही अखबार हरिभूमि में छपी एक खबर पर नजरें पड़ीं। इस खबर में बताया गया है कि कैसे अपने देश के किसान लौकी, कद्दू, परवल, बैगन आदि में शराब का उपयोग कर रहे हैं। इनकी फसलों को ज्यादा लेने के लिए खेतों में देशी शराब का उपयोग किया जा रहा है, क्योंकि देशी शराब बहुत सस्ती होती है, ऐसे में किसान इसका उपयोग करने से हिचकते नहीं हैं।

एक जानकारी के मुताबिक सब्जियों में शराब डालने का काम उप्र के गोरखपुर जिले में ज्यादा हो रहा है। गोरखपुर जिले के खजनी तहसील के एक गांव भिटहा के किसान सब्जियों में शराब का उपयोग करके बहुत ज्यादा आय कमा रहे हैं। इन किसानों को देखकर और कई स्थानों में भी किसान ऐसा करने लगे हैं। जानकारों की मानें तो देश के कई हिस्सों में सब्जियों से ज्यादा कमाई करने के लालच में किसान सब्जी पैदा करने में शराब का उपयोग कर रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि आखिर बाजार में सब्जी खरीदने जाने वाले यह कैसे जानें कि किसी सब्जी में शराब का मात्रा है, ऐसे में एक हल्की सी जानकारी यह है कि जिन सब्जियों में शराब की मात्रा होती है, वो आम सब्जियों से ज्यादा हरी होती हैं। इस एक पहचान के अलावा अब तक और कोई पहचान सामने नहीं आई है। अगर आप भी बाजार से सब्जी खरीदने जा रहे हैं तो थोड़े से सावधान रहे और देखकर सब्जी खरीदें, वरना जिन सब्जियों को आप अच्छे स्वास्थ्य की खातिर खरीद कर ला रहे हैं, वही सबिज्यां आपके स्वास्थ्य का बेड़ागर्क कर देंगी। 

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सोमवार, मार्च 22, 2010

आस्था के नाम की मची है लूट

कई दिनों से लगातार एक टीवी चैनल के एक विज्ञापन पर नजरें पड़ती हैं। शिव शक्ति कवच। हर मर्ज की दवा है यह शिव शक्ति कवच। इस कवच को लेने वालों को दिखाया जाता है कि कैसे उनको इस कवच को धारण करने के बाद परेशानियों से मुक्ति मिली है। यह बात तो तय है कि अपने देश में सबसे ज्यादा आसान है तो धर्म और आस्था के नाम पर लूटना। आस्था के नाम पर अच्छे खासे पढ़े लिखे लोग उल्लू बन जाते हैं।

अपने देश में भगवान पर आस्था रखने वाले अगर सबसे ज्यादा हैं कहा जाए तो गलत नहीं होगा। भगवान पर आस्था रखना गलत नहीं है लेकिन इस आस्था को इतना भी अपने ऊपर हावी होने नहीं देना चाहिए कि इसके नाम से आपको जो चाहे लूट ले। आज अगर अपने देश में सबसे ज्यादा किसी नाम से लूट होती है तो वह है आस्था के नाम से। जिस भी टीवी चैनल में देखो लोगों की आस्था का फायदा उठाकर कुछ न कुछ बेचने का कारोबार किया जा रहा है। एक टीवी चैनल पर हमारी हमेशा नजरें पड़ती हैं। जब दोपहर को घर खाना खाने आते हैं, तो बच्चे टीवी देखते रहते हैं। ऐसे में कार्यक्रम के बीच में जरूर एक विज्ञापन शिव शक्ति कवच का देखने को मिल जाता है। इस विज्ञापन को देखकर साफ लगता है कि यह विज्ञापन लोगों को आस्था के नाम से एक तरह से ब्लैकमेल करके अपना कवच का बेचने का माध्यम है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि इस विज्ञापन के जरिए जरूर ऐसा कवच बेचने में कवच बनाने वालों को सफलता मिलती होगी तभी तो वे इतना महंगा विज्ञापन देते हैं।

अब यह कवच खरीदने वालों को कौन समझाएं कि कवच से अगर सुरक्षा हो जाती तो पूरे देश के लोग ऐसे कवच धारण कर लेते। इसमें भी शक नहीं है कि अपने देश में लोग अंध विश्वास में ऐसे जकड़े हैं कि उनको लगता है कि अगर कोई ताबीज या कवच या फिर और कोई टोटका अपने गले में लटका लेंगे तो उनकी परेशानी समाप्त हो जाएगी।
सोचने वाली बात यह है कि क्या पढ़े लिखे लोग यह नहीं जानते हैं कि जब-जब जो होना है वह तो हो के रहेगा। कहा जाता है कि सबसे बड़ी चीज होती है किस्मत, नसीब, तकदीर। कहते हैं कि जिसकी किस्मत में ब्रम्हा ने जो लिख दिया है, वह पत्थर की लकीर है। अगर वास्तव में ऐसा है तो फिर यह क्यों नहीं सोचा जाता है कि जो किस्मत में होगा वहीं होगा  फिर क्यों कोई ऐसा कवच और ताबीज धारण करता है। हमें लगता है कि कहीं न कहीं इंसान के मन में आस्था के साथ एक डर भी रहता है जिस डर का फायदा ऐसा कवच बेचने वाले लोग उठाते हैं। पता नहीं कब अपने देश के लोग अंधविश्वास से मुक्त होंगे और ऐसे कवच बेचने वालों का बहिष्कार करेंगे। हमे नहीं लगता है कि कभी ऐसा संभव होगा। 

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रविवार, मार्च 21, 2010

दिल्ली पर पाकिस्तान का कब्जा

यह हैरान और परेशान करने वाली बात है, लेकिन हकीकत है कि दिल्ली पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया है। यह कब्जा पाकिस्तान ने अपने दम पर नहीं बल्कि भारत के ही दम पर किया है। भारतीय रेलवे के एक विज्ञापन में यह शर्मनाक बात सामने आई है कि इस विज्ञापन में दिल्ली को पाकिस्तान का हिस्सा बताया गया है। यही नहीं कोलकाता को बंगाल की खाड़ी में बताया गया है। यह सब किसी छोटे से विज्ञापन में नहीं बल्कि एक नई ट्रेन के आरंभ होने के मौके पर दिए गए बड़े-बड़े विज्ञापनों में दिखाया गया है जिसमें रेल मंत्री ममता बनर्जी की भी बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगी थीं। इतना सब होने के बाद अब तक इस मामले में न तो किसी पर कोई कार्रवाई हुई है और न ही रेल मंंत्री या फिर भारत सरकार ने इस पर कोई खेद जताया है। इस मामले के लिए विज्ञापन एजेंसी को बलि का बकरा बनाया गया। इसका मतलब साफ है कि अगर दिल्ली पर पाकिस्तान का कब्जा हो भी जाए तो अपनी सरकार को क्या फर्क पड़ता है।

आज सुबह अचानक एक खबर पर नजरें पड़ीं कि दिल्ली पाकिस्तान में। हम भी चौक गए कि यार यह रातों-रात क्या हो गया जो पाकिस्तान ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया। हमें लगा कि ऐसा तो नहीं कि हम सोते रहे और रात को पाकिस्तान ने हमला करके दिल्ली तक कब्जा कर लिया। वैसे यह बात कभी संभव नहीं हो सकती है, पाकिस्तान एक क्या सात जन्मों तक दिल्ली तक पहुंच ही नहीं सकता है। अब इसका क्या किया जाए कि पाकिस्तान के सपनों को कम से कम कागजों में ही सच करने का काम हमारे देश के लोगों ने ही कर दिखाया है। दरअसल महाराजा एक्सप्रेस नाम से एक लक्जरी ट्रेन कल से कोलकाता से प्रारंभ हुई है। इस ट्रेन को रेल मंत्री ममता बनर्जी को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। ऐसे में जब  इसके लिए भारतीय रेलवे ने विज्ञापन जारी किए तो सभी विज्ञापनों में ट्रेन का जो रूट दिखाया गया है, उस रूट वाले नक्शे में ही दिल्ली को पाकिस्तान और कोलकाता को बंगाल की खाड़ी में दिखाया गया है। इस विज्ञापन के छपने के बाद काफी हंगामा हुआ है।

इतना सब होने के बाद भी रेलवे का कोई अधिकारी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं है। इस मामले के लिए विज्ञापन एजेंसी को बलि का बकरा बना दिया गया है। सारा दोष विज्ञापन एजेंसी पर डाल दिया गया है और रेलवे के अधिकारी ने इस तरह से क्षमा मांगने का काम किया है, मानो वह कोई अहसान कर रहे हैं। सोचने वाली बात है कि जब विज्ञापन रेलवे का है तो सबसे पहली गलती किसकी है। रेलवे ने इतने गंभीर विज्ञापन को प्रकाशित होने से पहले चेक कैसे नहीं किया। यह कैसे संभव है कि चेक करने के बाद विज्ञापन एजेंसी दिल्ली को पाकिस्तान में कर देगी। जैसे की रेलवे के जन संपर्क अधिकारी कह रहे हैं। कुल मिलाकर रेलवे के अधिकारियों का यह बचने का नाटक है। एक तो इस सारे मामले में खुद रेल मंत्री को सार्वजनिक रूप से पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए, फिर इस मामले में दोषी अधिकारियों को बर्खास्त कर देना चाहिए। यह तो सरासर देश की संप्रभुता के साथ खिलवाड़ है। इससे बड़ा अपमान अपने देश का हो ही नहीं सकता है। जिस पाकिस्तान के मंसूबों को कभी भी हमारे जवानों से पूरा होने नहीं दिया उनके मंसूबों को एक बार भले ही कागजों में पूरा तो कर दिया गया। इस बात को लेकर पाकिस्तान में तो जरूर जश्न का माहौल होगा कि चलो यार कागजों में ही सही हमारा कब्जा दिल्ली पर तो हो ही गया।

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शनिवार, मार्च 20, 2010

8वीं तक कोई नहीं होगा फेल-ये सरकार का कैसा खेल

ऐसे समय में जबकि स्कूली परीक्षाओं का दौर चल रहा है, अचानक एक खबर आई कि केन्द्र सरकार ने एक एक्ट एक अप्रैल से लागू करने का फैसला किया है जिसमें 8वीं तक कोई बच्चा फेल नहीं होगा। इसी के साथ परीक्षा भी नहीं ली जाएगी। ये शिक्षा के बोझ से बच्चों को मुक्त करने का कैसा खेल है, यह समझ से परे है। इस फैसले से यह बात तय है कि बच्चे पंगू हो जाएंगे और उनकी नजर में पढ़ाई की कोई कीमत नहीं दर जाएगी। सरकार की ऐसी सोच के पीछे मानसिकता क्या है यह बात भी समझ से परे है

कल एक अखबार में छपी इस खबर पर नजरें पड़ीं कि अब पहली से 8वीं तक के छात्रों को परीक्षा देने की जरूरत नहीं पड़ेगी और सभी को बिना परीक्षा लिए ही पास कर दिया जाएगा। इसी के साथ शिक्षकों को जहां रोज 8 घंटे काम करना पड़ेगा, वहीं 13 साल के बच्चों को सीधे सातवीं में प्रवेश दिया जाएगा। इन सबको लागू करने के लिए केन्द्र सरकार ने एक एक्ट बनाया है जिसे देश भर में एक अप्रैल से लागू किया जाना है। इसे लागू करने के लिए अपने छत्तीसगढ़ में भी शिक्षा विभाग जुटा हुआ है।

यह खबर ऐसे समय में आई है जब स्कूली परीक्षाएं चल रही हैं, ऐसे में कई बच्चों के साथ पालक भी परेशान हैं कि क्या हो रहा है। बच्चे इस बात से खुश हैं कि उनको परीक्षा से मुक्ति मिल जाएगी तो पालक इस बात से परेशान हैं कि सरकार के इस फैसले से तो बच्चे पढऩा ही बंद कर देंगे। जब बच्चों को फेल होने का ही डर नहीं रहेगा तो वे गंभीरता से पढ़ाई क्यों कर करेंगे। आज जब कोई बच्चा पढ़ाई नहीं करता है तो उसे पालक यह बोलकर डराने का काम करते हैं कि बेटा पढ़ाई नहीं करोगे तो फेल हो जाओगे। इसमें कोई दो मत नहीं है कि हर बच्चे में फेल होने का सबसे ज्यादा डर रहता है। परीक्षा में फेल होने के कारण कई बच्चे आत्महत्या जैसा काम कर डालते हैं।

अब जबकि परीक्षा ही नहीं होगी तो डर किस बात का। जब डर नहीं होगा तो पढ़ाई नहीं होगी, पढ़ाई नहीं होगी तो यह बात तय है कि बच्चे कमजोर हो जाएंगे। सरकार की इस सोच के पीछे का कारण समझ से परे है। सरकार को बच्चों के ऊपर से पढ़ाई का बोझ कम करने की जरूरत है, न की ऐसे गलत फैसले करने का। सरकार के इस फैसले से यह बात तय है कि हर बच्चे का बेस कमजोर रहेगा। जब 8वीं तक बच्चा बिना परीक्षा दिए पास हो जाएगा तो आगे उसके लिए परेशानी होनी तय है। 9वीं क्लास से जब परीक्षा का बोझ पड़ेगा तो ऐसे बच्चों को जरूर सबसे ज्यादा परेशानी होगी जो 8वीं क्लास तक को मजाक में लेंगे। इसमें संदेह नहीं है कि परीक्षा न होने के कारण ज्यादातर बच्चे 8वीं क्लास तक को मजाक में ही लेंगे। सरकार को अपने फैसले पर एक बार गौर करने की जरूरत है। सरकार का यह फैसला देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ साबित हो सकता है। जिनके कंघों पर हम कल के भारत का सपना देखते हैं अगर उनके कंघे की कमजोर होंगे तो देश कैसे मजबूत होगा, यह अपने आप में सोचने वाली बात है।

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शुक्रवार, मार्च 19, 2010

सेक्स का भूखा कलयुगी गुरू-जिसकी पिटाई हो गई शुरू

कलयुग के गुरुओं का क्या हाल है इसका एक नमूना भिलाई में तब देखने को मिला जब वहां के एक स्कूल के प्राचार्य ने छात्राओं को पास कराने का प्रलोभन देकर उनके साथ अश्लील हरकतें करते हुए अपनी वासना की भूख मिटाने का असफल प्रयास किया। इस प्रयास में यह कलयुगी गुरू धरा गया और उसकी ऐसी पिटाई शुरू हुई कि उसका हाल बेहाल हो गया, बाद में उसे हवालात की हवा भी खानी पड़ी

इन दिनों परीक्षा का दौरा चल रहा है, ऐसे में भिलाई के एक स्कूल के 50 वर्षीय प्राचार्य ने कई छात्राओं को अपना निशाना बनाते हुए उनको पास कराने का प्रलोभन देकर जहां उनके साथ फोन पर अश्लील बातें करने का सिलसिला प्रारंभ किया, वहीं तीन छात्राओं को अपने घर बुलाकर एक छात्रा के साथ जोर-जबरदस्ती करने का प्रयास किया। किसी तरह से वह छात्रा अपनी सहेलियों के साथ प्राचार्य के घर से भागी और सारी बातें अपने परिजनों को बताई। इधर कुछ छात्राओं ने प्राचार्य की बातें अपने मोबाइल पर रिकार्ड करके अपने परिजनों को सुनाईं। ऐसे में परिजन भड़क गए और प्राचार्य से बात करने स्कूल गए, प्राचार्य ने जब परिजनों के सामने अपने को निर्दाेष बताते हुए छात्राओं को ही गलत साबित करने का प्रयास किया तो परिजनों से पहले तो इस कलयुगी गुरू की पिटाई कर दी फिर बाद में उसे पुलिस के हवाले कर दिया। पुलिस ने उस प्राचार्य के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है।

यह अपने देश में ऐसा पहला प्रकरण नहीं है। अक्सर ऐसी खबरें आती हैं कि शिक्षा के मंदिर में शिक्षा देने वाले गुरू अपनी शिष्याओं के साथ कैसी-कैसी हरकतें करते हैं। कुछ समय पहले बस्तर के एक स्कूल के प्राचार्य के पास से छात्राओं की बनाई गई अश्लील सीडी भी बरामद हुई  थी। वास्तव में यह गंभीर चिंतन का विषय है कि आखिर आज हमारी शिक्षा समाज को किस दिशा में ले जा रही है। शिक्षा का जिस तरह से बोझ बढ़ा दिया गया है उसके कारण ही आज के कलयुगी गुरू फायदा उठाने का काम करते हैं।

एक तरफ यह प्रकरण हुआ है तो दूसरी तरफ कम से कम एक खबर यह राहत देने वाली है कि अब केन्द्र सरकार ने 8वीं तक परीक्षा न लेने और किसी को फेल न करने का फैसला किया है। इस फैसले का नतीजा क्या होगा यह भी सोचने का विषय है। एक बात जहां यह तय है कि शिक्षकों का हौवा समाप्त हो जाएगा, वहीं छात्र इस फैसले से पंगू और अहमी हो सकते हैं। जब उनको फेल होने का डर नहीं रहेगा तो वे पढ़ाई में ध्यान क्यों कर लगाएंगे। बहरहाल भिलाई की घटना ने एक बार फिर से शिक्षा के मंदिर को कंलकीत करने का काम किया है।

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गुरुवार, मार्च 18, 2010

भक्त से श्रापित चंडिका देव की पीठ की होती है पूजा

भगवानों और साधु-संतों के बारे में इतिहास में यह पढऩे को मिलता है कि इनके द्वारा ही समय-समय पर आम जन को श्रापित किया जाता रहा है। लेकिन ऐसा बहुत ही कम सुनने या फिर पढऩे में आता है कि किसी देवता को किसी भक्त का श्राप लगा हो। लेकिन अपने छत्तीसगढ़ के बागबाहरा में एक गांव है बोडरीदादर यहां पर एक चंडिका देव हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि यह देवता भक्त द्वारा श्रापित हैं। नवरात्रि के अवसर पर चंडिका देव के दरबार में भी भक्तों का मेला लगा है। भक्त श्रापित इस देवता की पृष्ठ भाग यानी पीठ की पूजा करते हैं। ऐसा संभवत: पूरे देश में और कहीं नहीं होता है कि किसी देवता की पृष्ठभाग की पूजा होती हो।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 100 किलो मीटर की दूरी पर बागबाहरा है। यहां के एक गांव बोडरीदादर में इस समय चंडिका देव के दरबार में भक्तों की भीड़ लग रही है। इस चडिंका देव के बारे में बताया जाता है कि एक भक्त द्वारा श्रापित होने के कारण इनकी पीठ की पूजा की जाती है। बताते हैं कि कोमाखान रजवाड़े के जमीदार भानुप्रताप सिंह के पूर्वज यहां पर पूजा पाठ करते थे। सिंह रूप वाले इस चंडिका देव को कई बार भानुप्रताप ने ले जाकर कोमाखान में स्थापित करने का प्रयास किया, पर चंडिका देव की मूर्ति अपने स्थान से टस से मस नहीं हुई, लाखों प्रयासों के बाद भी इस मूर्ति को हटाया नहीं जा सका। आज भी यह मूर्ति खुले आसमान में है।

भानुप्रताप सिंह ने देखा कि जब मूर्ति टस से मस नहीं हो रही है तो उन्होंने यहां पर दशहरे के दिन पूजा करने के बाद अपनी कूल देवी सोनई-रूपई पहाड़ी खोल में गोसान गुफा में स्थित अपनी कूल देवी की पूजा करते थे। चंडिका देव के बारे में बताया जाता है कि वहां पर पूर्व में एक गुप्त पूजा स्थल था जहां पर रजवाड़े अपने बैगाओं से पूजा करवाते थे, लेकिन यह स्थल अब बंद है और इसी के साथ चंडिका देव का सामने का भाग भी नहीं दिखता है जिसके कारण उनके पीठ की पूजा की जाती है। संभवत: देश में चंडिका देव अपने तरह के पहले देवता होंगे जिनके पीठ की पूजा की जाती है। बताते हैं कि भानुप्रताप ने ही सामने के उस भाग को बंद करवा दिया था जहां से उनके बैगा पूजा करते थे, ताकि कोई और पूजा न कर सके। लोगों का कहना है कि मूर्ति को न हटवाना पाने के कारण ही भानुप्रताप के श्राप की वजह से मूर्ति की पृष्ठभाग की पूजा होती है, क्योंकि सामने का भाग तो दिखता ही नहीं है।  

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बुधवार, मार्च 17, 2010

हिन्दु नव वर्ष में हमने भी शुरू की एक नई पारी

हिन्दु नववर्ष के पहले दिन की रात को ही हमने भी अपने ब्लागर जीवन की एक नई पारी की शुरुआत की है। इस नई पारी का खुलासा हम पहले भी कर चुके हैं। हमने आज ब्लाग 4 वार्ता में पहली बार चिट्ठा चर्चा की है। अब हम इसमें कितने सफल हुए हैं यह तो ब्लाग बिरादरी बताएगी। हमें इस बात की खुशी है कि हम भी ब्लाग जगत में कुछ नया करने में सफल रहे हैं।

हमने कभी सोचा नहीं था कि हम कभी चिट्ठा चर्चा कर पाएंगे। ये काम हमें बहुत कठिन लगता था। इतने सारे चिट्ठों को पढऩे के बाद चर्चा करना वास्तव में आसान नहीं होता है। लेकिन कुछ पाने के लिए कुछ तो खोना पड़ता है। ऐसे में यह तय है कि अगर कुछ अच्छा करना है तो उसके लिए समय तो देना पड़ेगा। चिट्ठा चर्चा करने के लिए हमें ललित शर्मा ने गुरुमंत्र दिया और हमने कर दी तैयार चिट्ठा चर्चा। आप भी देखें उसे ब्लाग 4 वार्ता में एक नजर बताएं कि हमारा पहला प्रयास कैसा है। उम्मीद है कि समय के साथ हम इसमें भी परिपक्व हो जाएंगे और चर्चा को संवारने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।

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मंगलवार, मार्च 16, 2010

अब हम भी करेंगे चर्चा-ललित शर्मा से सीखा संभालना मोर्चा

हमें अब तक तो यही लगता था कि वास्तव में चिट्ठा चर्चा करना बहुत ही कठिन और मुश्किल काम है, लेकिन जिनके पास ललित शर्मा जैसा गुरू हो उनके लिए यह कोई मुश्किल काम नहीं है। ललित जी ने हमें ऐसा गुरू मंत्र दिया है कि अब हम भी चर्चा करने के लिए तैयार हो गए हैं। हम अब ब्लाग 4 वार्ता में नियमित चर्चा करने का प्रयास करेंगे। हम वादा तो नहीं कर सकते हैं, पर प्रयास जरूर करेंगे।




हमने चिट्ठा चर्चा के गुर सीखने के लिए ललित शर्मा के पास अभनपुर जाने का फैसला किया था। हमने बुधवार को अपने अवकाश के दिन उनके पास जाने का कार्यक्रम भी बना लिया था, लेकिन अचानक ललित जी ने रविवार की शाम को बताया कि वे कल यानी सोमवार को रायपुर आ रहे हैं। हमने उनको तत्काल अपने घर आने का न्यौता दे दिया, जिसे उन्होंने मंजूर कर लिया। बात तय हुई कि वे ठीक 12 बजे आ जाएंगे। हमारी पीठ में दर्द के कारण हमने कल प्रेस की मीटिंग में न जाने का फैसला किया था। हमें बस डॉक्टर के पास जाना था। हमने शर्मा जी से कह दिया कि वे 12 बजे आ जाएं। ललित जी पहले भी हमारे घर आ चुके थे, ऐसे में उनको घर तक पहुंचने में कोई परेशानी नहीं होनी थी। शर्मा जी वादे के मुताबिक 12 बजे पहुंच गए और उन्होंने फोन किया कि हम कहां हैं, हमने उनसे कहा कि आप घर पहुंचे हम भी रास्ते में हैं, आ रहे हैं। हमारे घर पहुंचने से पहले शर्मा जी घर पहुंच गए थे।

हम घर पहुंचे तो शर्मा जी वहां विराजमान थे। इसके बाद हम लोग कम्प्युटर से चिपक गए। इस बीच बहुत सी बातों के बीच उन्होंने हमें चिट्ठा चर्चा का गुरू मंत्र बता दिया। अब हम भी तैयार हो गए हैं चिट्ठा चर्चा करने के लिए। शर्मा जी ने हमें जो मंत्र बताया है उससे चर्चा करने में आसानी होगी। हो सकता है शुरुआत में कुछ गलतियां हों, लेकिन हमारा ऐसा प्रयास रहेगा कि हम कोई गलती न करें। लेकिन हम भी इंसान हैं और गलतियां इंसानों से होती ही हैं। बहरहाल हमें इस बात का गर्व है हमें ललित शर्मा जैसे मित्र और गुरू मिले हैं। उनके आर्शीवाद से हम भी अब हर बुधवार को चिट्टा चर्चा करने का प्रयास करेंगे। इसमें हम कितने सफल होते हैं यह तो वक्त बताएगा। लेकिन हम एक बात यहां पर जरूर कहना चाहेंगे कि जब छत्तीसगढ़ से चिट्ठा चर्चा करने की बात सामने आई थी तो अपने ही कुछ मित्रों ने इस पर सवालिया निशान लगाने का प्रयास किया था कि हम लोग ऐसा नहीं कर पाएंगे। हालांकि उनको अकेले ललित शर्मा जी ने ही करारा जवाब दे दिया है, अब हम भी उनके साथ हैं। वैसे शर्मा जी के साथ हम ही नहीं पूरी ब्लाग बिरादरी है, अब यह बात अलग है कि अपने ही लोग अपने घर की प्रतिभा को नहीं पहचानते हैं। कहा जाता है न कि घर की मुर्गी दाल बराबर। तो जिन्होंने भी घर की मुर्गी को दाल बराबर समझने की भूल की है, उनको हम बता दें कि यहां पर कम से कम घर की मुर्गी दाल बराबर नहीं बल्कि घर की मुर्गी शेर बराबर है।

बहरहाल हमारा मकसद कोई विवाद खड़ा करना नहीं बल्कि यह जताना है कि हम छत्तीसगढ़ के ब्लागरों को कम आंकने की कोई गलती न करे, खासकर अपने बीच के ही ब्लागर मित्र।

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सोमवार, मार्च 15, 2010

सावधान... आपके ब्लाग में भी आ सकते हैं भूत-पिशाच

कल रात की बात है हम पीठ में दर्द होने के कारण जल्दी सो गए। रात को मोबाइल बजता रहा, पर क्या करें दर्द के कारण हम उठा नहीं पाए। वैसे हमें इस बात का अंदाज जरूर था कि रात को जरूर हमारे ब्लाग में हंगामा होगा, लेकिन हमने सोचा नहीं था कि इतने ज्यादा नंगे भूत-पिशाच धावा बोल देंगे। सुबह उठकर देखा तो मालूम हुआ कि हमारे ब्लाग में रात भर भूत-पिशाचों का खुला नंगा खेल चलता रहा। ऐसा खेल कभी भी किसी के भी ब्लाग में हो सकता है, इससे सावधान रहने की जरूरत है। हमने अब तक अपने ब्लाग में बेनामी का आप्शन खुला रखा था, लेकिन भूत-पिशाच की नंगाई के बाद कुछ मित्रों की सलाह पर बेनामी पर बेन लगा दिया है। वैसे हम किसी भी तरह के बेन के पक्ष में नहीं रहते हैं, लेकिन भूत-पिशाच से बचने के लिए हम कोई नीबू-मिर्ची अपने कम्प्यूटर में लगाना नहीं चाहते हैं।

हमने कल एक पोस्ट लिखी थी क्या ब्लाग जगत में भी मठाधीशों का राज है। कल रात को जब हम प्रेस से वापस घर आए तो देखा कि कुश जी की एक टिप्पणी आई थी। अब यह टिप्पणी उनकी थी या नहीं इसका दावा हम इसलिए नहीं कर सकते हैं क्योंकि इस टिप्पणी के जवाब में जब हमने टिप्पणी की तो रात को कई नंगे भूत-पिशाच हमारे ब्लाग में तांडव करने आ गए। अब कहते हैं कि भूत-पिशाच ऐसे होते हैं जो किसी का भी रूप ले लेते हैं। ऐसे में ब्लाग जगत के भूत-पिशाचों ने भी हमारे यानी राजकुमार ग्वालानी, समीर लाल, अजय कुमार झा, अखिल कुमार, अनिल पुसदकर, सूर्यकांत गुप्ता, कुश, अरविंद मिश्र और न जाने किन-किन का भेष बदलकर टिपियाने का नंगा खेल खेला।

जब हमारे ब्लाग में रात को यह नंगा खेल चल रहा था तो हमारे कुछ मित्र बहुत परेशान हुए और उन्होंने हमसे संपर्क करने का प्रयास किया, पर हम अपने पीठ के दर्द के कारण आराम कर रहे थे। सुबह को उठे तो देखा कि किस तरह की नंगाई की गई है हमारे ब्लाग में। हमें मालूम नहीं था कि ब्लाग जगत में भी भूत-पिशाचों का इतना बड़ा बसेरा है।
बहरहाल हमने अपने कुछ मित्रों की सलाह पर भूत-पिशाचों द्वारा की गई हैवानियत को अपने ब्लाग से मिटाने का काम कर दिया है। जिनके नाम से ऐसी हैवानियत की गई है, वे तो जरूर परेशान हुए होंगे। हमारे एक जानकार मित्र ने बताया कि ऐसा तांडव तो ब्लाग जगत के भूत-पिशाच यदा-कदा करते रहते हैं इससे परेशान होने की जरूरत नहीं है। वैसे हम कभी परेशान नहीं होते हैं हम जानते हैं कि जहां अच्छाई होती है, वहां पर बुराई होती है, ऐसे बुरे लोगों से हमारा पाला हमेशा पड़ता है, भूत-पिशाचों को ठिकाने लगाना हम जानते हैं। लेकिन हम अपने उन नए साथियों को सावधान करना चाहते हैं जो ब्लाग जगत में नए हैं कि इन भूत-पिशाचों से सावधान रहना अगर आपने अपने घर का दरवाजा खुला रखा तो ये आकर कभी भी नंगाई कर सकते हैं। ऐसे में हमने भी अपने मित्रों की सलाह पर अब अपने घर का दरवाजा पूरा तो नहीं लेकिन किसी भी ऐसे व्यक्ति के लिए जरूर बंद कर दिया है जिसे हम नहीं जानते हैं, यानी अब बेनामी हमारे ब्लाग पर बेन हैं। वैसे हम ऐसा करना नहीं चाहते थे, लेकिन क्या करें एक कहावत है कि नंगों से खुदा डरता है तो फिर हम तो इंसान हैं।

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रविवार, मार्च 14, 2010

क्या ब्लाग जगत में भी मठाधीशों का राज है

हमें भी अब ऐसा लगने लगा है कि शायद ब्लाग जगत में मठाधीशों का राज है जो किसी नए ब्लागर को तेजी से आगे बढ़ता देखना पसंद नहीं करते हैं। यह बात हमने एक बार नहीं कई बार महसूस की है। हमने जब इसके पहले दो बार चिट्ठा जगत पर सवालिया निशाना लगाया तो हमें मित्रों ने कहा कि आप तो बस लिखते रहे, बाकी क्या हो रहा है उस पर ध्यान न दे। लेकिन क्या यह उस स्थिति में संभव है जब आपको इस बात का अहसास हो कि आपके साथ लगातार अन्याय हो रहा है। हमें तो नहीं लगता है कि अन्याय के खिलाफ बोलना गलत है। हमारा ऐसा मानना है कि अन्याय के खिलाफ न बोलना गलत है। हम लगातार आहत हो रहे हैं और कोई हमें यह नसीहत दे कि इससे कुछ नहीं होता है तो यह बात गलत है।

हमने बहुत सोचा कि इस मुद्दे पर न लिखा जाए, लेकिन आखिर कब तक बर्दाश्त किया जाए। हमने कुछ दिनों पहले जब एक पोस्ट लिखी थी कि छत्तीसगढ़ के तीन ब्लागर चिट्ठा जगत के टॉप 40 में पहली बार आए हैं। तो दूसरे ही दिन हमारे एक मित्र का फोन आया कि कर दिया न सब गुडग़ोबर। हमने उनके पूछा कि क्यों नाराज हो रहे हैं मित्र तो उन्होंने कहा कि करवा दिया न अपने मित्रों को टॉप 40 से बाहर। हम समझ गए कि वे चिट्ठा जगत की बात कर रहे हैं। हमने अपने उन मित्र को यह समझाने का प्रयास किया कि मित्र टॉप में चल रहे कई ब्लागर नहीं लिख रहे थे, ऐसे में जब हमने पोस्ट लिखी तो उनको लगा कि यार हम पीछे हो गए हैं, ऐसे में वे सक्रिय हो गए और उन्होंने लिखा तो वे आगे हो गए। इस पर उन्होंने कहा कि टॉप 40 में आने का ठिठोरा पिटने की क्या जरूरत थी। हमने उनसे कहा कि आज का जमाना बताने का है मित्र। और इसमें बुरा क्या है कि हमारे दूसरे मित्र सक्रिय हो गए लिखने के लिए और वे आगे आ गए। उनके हवाले और प्रविष्ठियां हमसे ज्यादा है।

अब हवाले और प्रविष्ठियों की बात सामने आई है तो यहां पर हमें आज तक चिट्ठा जगत की एक बात समझ नहीं आई है कभी तो हवाले और प्रविष्ठियां जुड़े जाते हैं कभी नहीं जुड़ते हैं। हमने इस मुद्दे पर दो बार पहले लिखा तो हमारे वरिष्ठ मित्रों ने सलाह दी कि इस तरफ ध्यान देने की जरूरत नहीं है, चिट्ठा जगत तो स्वचलित है। माना कि चिट्ठा जगत स्वचलित है फिर ऐसा कैसे होता है कि कभी कोई लिंक जुड़ता है कभी नहीं जुड़ता है। हमारे साथ कई बार नहीं लगातार ऐसा हो रहा है। नया उदाहरण दो दिन पहले का है। ललित शर्मा जी के नए ब्लाग 4 वार्ता में हमारे ब्लाग की चर्चा होने के बाद भी यह चर्चा हमारे हवाले में नहीं जोड़ी गई। अब इसे आप क्या कहेंगे। हमारे कई मित्रों का ऐसा मानना है कि वास्तव में ब्लाग जगत में कुछ ऐसे मठाधीश बैठे हैं जो नए ब्लागरों को खासकर ऐसे ब्लागरों को आगे बढऩे से रोकने का काम करते हैं जो तेजी से बढ़ रहे हैं। चलिए ऐसा ही सही, उनको हम अपना काम करने दें और हम अपना काम करते हैं देखते हैं कौन सफल होता है। वैसे भी अब तक हमारे साथ न जाने कितनी बार अन्याय हो चुका है, हमने भी सोच लिया है कि कम से कम हम तो अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज जरूर बुलंद करेंगे फिर चाहे किसी को बुरा लगे तो लगे हमारी बला से।

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शनिवार, मार्च 13, 2010

राजतंत्र की हो गई 400 पोस्ट

लीजिए अब हमारे ब्लाग राजतंत्र की 400 पोस्ट भी पूरी हो गई है। वैसे हमारे ब्लाग राजतंत्र के साथ खेलगढ़ को मिलाकर हमारी 1144 पोस्ट हो गई है। इसमें से 402 राजतंत्र की और 742 खेलगढ़ की है।

ब्लागजगत में हमें कदम रखे एक साल का समय पिछले साल ही हुआ है। इस एक साल में हमें ब्लाग बिरादरी का बहुत ज्यादा प्यार मिला है। इस बीच हमने एक नया मुकाम प्राप्त करते हुए एक साल में 1100 से ज्यादा पोस्ट लिखने का रिकार्ड बना दिया है। वैसे हम ब्लाग जगत में कोई रिकार्ड बनाने नहीं आए हैं, पर इसका क्या किया जाए कि रिकार्ड बन गया।
बहरहाल हमारे राजतंत्र में 400 पोस्ट तो दो दिन पहले ही पूरी हो गई थी। इस समय हमें इस बात का अफसोस है कि हम कुछ ज्यादा अच्छा काम के कारण नहीं लिख पा रहे हैं। एक तो घर का काम चल रहा है, ऊपर से सितम यह है कि हमें अपने खेलगढ़ का मार्च का अंक निकालना है जिसका मैटर तैयार करने के साथ ही पत्रिका को भी संवारने का काम चल रहा है। ऐसे में हम राजतंत्र के लिए समय नहीं निकाल पा रहे हैं। जैसे ही समय मिलेगा फिर से अच्छा लिखने का प्रयास करेंगे। फिलहाल विदा लेते हैं और कल कुछ अच्छा लिखने के प्रयास के साथ मिलेंगे।

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शुक्रवार, मार्च 12, 2010

पैरा नेशनल गेम्स का आगाज हो छत्तीसगढ़ से

छत्तीसगढ़ के राज्यपाल शेखर दत्त ने छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के मुख्य सरंक्षक का पद स्वीकार करने के साथ ही छत्तीसगढ़ में पैरा ओलंपिक की तर्ज पर पैरा नेशनल गेम्स करने की बात कही है। इसके लिए उन्होंने भारतीय ओलंपिक संघ के महासचिव राजा रणधीर सिंह से फोन पर बात करके उनको छत्तीसगढ़ आने का आमंत्रण दिया है।

प्रदेश ओलंपिक संघ के एक प्रतिनिधि मंडल ने राजभवन में अध्यक्ष डॉ. अनिल वर्मा के नेतृत्व में राज्यपाल शेखर दत्त से मुलाकात की। राज्यपाल को छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ का मुख्य संरक्षक बनाने का प्रस्ताव दिया गया जिसे उन्होंने तत्काल स्वीकार कर लिया। इसी के साथ राज्यपाल ने पदाधिकारियों से खेलों को लेकर लंबी चौड़ी चर्चा की। खेलों के जानकार राज्यपाल ने जहां छत्तीसगढ़ को मिली ३७वें राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी को लेकर विस्तार से जानकारी ली, वहीं उन्होंने संघ के सामने एक सुङााव रखा कि क्यों ने छत्तीसगढ़ में पैरा ओलंपिक की तर्ज पर पैरा नेशनल गेम्स करवाए जाए। भारत में अब तक ऐसा आयोजन नहीं होता है। राज्यपाल का सोचना है कि छत्तीसगढ़ से पैरा नेशनल गेम्स का आगाज किया जाए। राज्यपाल की बातों से सभी पदाधिकारी सहमत हुए और राज्यपाल ने इस पहल को आगे बढ़ाने में विलंब न करते हुए भारतीय ओलंपिक संघ के महासचिव राजा रणधीर सिंह से इस बारे में चर्चा की और उनको पैरा नेशनल गेम्स की योजना के बारे में बताते हुए उनको छत्तीसगढ़ आने का आमंत्रण दिया है।

राष्ट्रीय खेलों में नंबर वन बनने की तैयारी करें

राज्यपाल श्री दत्त ने संघ के पदाधिकारियों से कहा कि छत्तीसगढ़ ने अगर राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी ली है तो अभी से इस बात के प्रयास होने चाहिए कि छत्तीसगढ़ पदक तालिका में नंबर वन रहे। इसके लिए हर खेल में क्या स्थिति है इसकी समीक्षा करते हुए क्या-क्या जरूरत हैं उसके बारे में अभी से योजना बनाने की जरुरत है।

ब्लाइंड शतरंज भी करवाएं

राजधानी रायपुर में २१ से २६ मार्च तक होने वाली राष्ट्रीय स्पर्धा के समापन समारोह में राज्यपाल को आमंत्रित करने पर यह आमंत्रण स्वीकार करते हुए उन्होंने सुङााव दिया कि प्रदेश में ब्लाइंड शतरंज स्पर्धा का भी आयोजन किया जाना चाहिए। राज्यपाल के सुङााव पर अमल करने की बात राष्ट्रीय शतरंज स्पर्धा के आयोजन समिति के अध्यक्ष गुरुचरण सिंह होरा ने कही।

राज्यपाल की सोच के सभी कायल
राज्यपाल से मिलने गए ओलंपिक संघ के पदाधिकारियों डॉ. अनिल वर्मा, मो. अकरम खान, गुरुचरण सिंह होरा, विजय अग्रवाल, बशीर अहमद खान, विष्णु श्रीवास्तव, कैलाश मुरारका, राजेश पटेल, फिरोज अंसारी सहित सभी पदाधिकारी खेलों के बारे में उनकी सोच के कायल हो गए। उनके पैरा नेशनल गेम्स के साथ ब्लाइंड शतरंज स्पर्धा के आयोजन की बात के साथ खेलों के बारे में विशाल जानकारी से सभी प्रभावित हुए। यहां यह बताना लीजिमी होगा कि राज्यपाल शेखर दत्त भारतीय खेल प्राधिकरण यानी साई के डीजी रहे हैं और उनको हर खेल की बहुत ज्यादा जानकारी है। प्रदेश की खेल बिरादरी के लोगों का कहना है कि उनके ज्ञान का छत्तीसगढ़ को बहुत फायदा होगा।

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गुरुवार, मार्च 11, 2010

हमारे साथ हरिभूमि में ही हैं एक दर्जन ब्लागर पत्रकार

छत्तीसगढ़ में ब्लागरों की बाढ़ आई हुई है कहा जाए तो गलत नहीं होगा। छत्तीसगढ़ का डंका और ब्लाग जगत में बज रहा है और यह बात सभी जानते हैं। हम बता दें कि हमारे साथ हरिभूमि में काम करने वाले करीब एक दर्जन पत्रकार मित्र ब्लागर हैं। इनमें से कुछ नियमित लिखते हैं तो कुछ नियमित नहीं लिख पाते हैं। कुछ ब्लागर मित्र हमें देखकर ब्लागर बने हैं तो कुछ दूसरे मित्रों से प्रेरणा लेकर बने हैं। हमारा मकसद बस सभी को ब्लाग का नशा करवाना है।

हमें ब्लाग जगत में आए एक साल का समय हो गया है। हमने जब ब्लाग लिखना प्रारंभ किया था तब हमें मालूम नहीं था कि हमारे साथी भी इस रोग से ग्रस्त हो जाएंगे। हमारे साथ हरिभूमि में काम करने वाले एक कार्टूनिस्ट अनुराग ने यह रोग पाला। इसके बाद एक और ब्लागर मित्र और कार्टूनिस्ट अजय सक्सेना बने। इसके बाद तो मानो कारवां बढ़ते गया। वैसे कुछ मित्र पहले से भी लिख रहे हैं। हमारे साथ काम करने वाले पत्रकार मित्रों में चन्द्रकांत शुक्ला, विनोद डोंगरे, जितेन्द्र सतपथी, भरत योगी, तरूण झा, राकेश पांडेय, सतीश पांडेय, प्रफुल ठाकुर ब्लाग लिख रहे हैं। एक और मित्र जो अब हम लोगों के साथ काम नहीं करते हैं अतुल दुबे उन्होंने भी हरिभूमि में रहते ब्लाग लिखना प्रारंभ किया था। अभी हाल ही में हमारे साथ एक और नए साथी राजकुमार सोनी जुड़े हैं। कुल जमा एक दर्जन ब्लागर मित्र हमारे साथ ब्लाग लिख रहे हैं।
हम इन ब्लागर मित्रों के ब्लागों के लिंक देना चाहते थे पर फिलहाल हम ऐसा नहीं कर पा रहे हैं, जल्द ही हम सभी ब्लागर मित्रों के ब्लागों के लिंक भी देंगे।

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मंगलवार, मार्च 09, 2010

तीन रुपए के लिए फिगर खराब क्यों करू

हमारे एक मित्र ने एक एसएमएस भेजा है जिसमें एक जोक है जो हम यहां पेश कर रहे हैं।

एक मुर्गी अंडे वाले की दुकान में जाती है और कहती है कि- भाई साहब एक अंडा देना।

दुकानदार- अरे तुम्हें अंडे की क्या जरूरत है तुम तो खुद अंडा देती हूं।

मुर्गी कहती हैं- मेरी सहेली कहती है कि तीन रुपए के लिए फिगर खराब की क्या जरूरत है।

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सोमवार, मार्च 08, 2010

मैदान बनाने फिर केन्द्र से मदद मिलेगी

प्रधानमंत्री की मंजूरी का इंतजार है:पाटिल


केन्द्रीय राज्य खेल मंत्री प्रतीक प्रकाश बापू पाटिल ने कहा कि केन्द्र सरकार से राज्य सरकारों को खेल मैदान बनाने के लिए मिलने वाली ७५ प्रतिशत की मदद के एक बार फिर से मिलने की संभावना है। इसके लिए बस प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मंजूरी मिलने का इंतजार है।

श्री पाटिल ने ये बातें यहां पर चर्चा करते हुए कहीं। उन्होंने बताया कि वे हर राज्य का शनिवार और रविवार को दौर करके यह देखने निकले हैं कि साई द्वारा राज्यों के लिए चलाई जा रही योजनाओं पर कितना काम हो रहा है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ ऐसा चौथा राज्य है जिसके दौरे पर वे आए हैं। इसके पहले वे तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र का दौरा कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि सभी राज्यों में उनको यही देखने को मिल रहा है कि केन्द्र सरकार की मदद के बिना कई मैदान अधूरे पड़े हैं। उन्होंने बताया कि २००५ तक केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को मैदान बनाने के लिए ७५ प्रतिशत राशि देती थी। लेकिन इसके बाद भी यह देखने में आया कि ज्यादातर राज्य २५ प्रतिशत की राशि खर्च नहीं कर रहे थे। ऐसे में इस योजना को २००५ में बंद कर दिया गया। लेकिन पिछले साल दिल्ली में सभी राज्यों के खेल मंत्रालय की बैठक में यह बात सामने आई कि पुरानी योजना को खेलों के विकास के लिए प्रारंभ करना जरूरी है। हमारे केन्द्रीय खेल मंत्रालय ने एक योजना बनाकर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के पास इसका मंजूरी के लिए भेजा है। वहां से मंजूरी मिलते ही इस योजना को फिर प्रारंभ कर दिया जाएगा।

स्कूलों खेलों पर ध्यान देने की जरूरत

केन्द्रीय खेल मंत्री ने कहा कि देश में खेलों के विकास के लिए यह जरूरी है कि स्कूली स्तर से ही इस पर ध्यान दिया जाए। स्कूलों में हालत बहुत ज्यादा खराब है। उन्होंने बताया कि केन्द्र सरकार ने देश के हर गांव को खेलों से जोडऩे के लिए पायका योजना प्रारंभ की है। इस योजना से १० साल में देश का हर गांव खेलों से जुड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि खेलों की ज्यादातर प्रतिभाएं गांवों में रहती हैं।


ओलंपिक के लिए दीर्घकालीन प्रशिक्षण जरूरी नहीं

कामनवेल्थ की तरह ही ओलंपिक के लिए भी दीर्घकालीन प्रशिक्षण की योजना बनाए जाने के सवाल पर केन्द्रीय खेल मंत्री ने कहा साई द्वारा देश भर में प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों को अपने विभिन्न योजनाओं के तहत प्रशिक्षण दिया जाता है, ऐसे में मुङो नहीं लगता है कि ओलंंपिक के लिए अलग से किसी दीर्घकालीन योजना की कोई जरुरत है। उन्होंने कहा कि कामनवेल्थ के लिए दीर्घकालीन प्रशिक्षण शिविर इसलिए लगाया गया क्योंकि कामनवेल्थ की मेजबानी भारत कर रहा है। उन्होंने इस बात से बिलकुल इंकार कर दिया कि ओलंपिक के लिए ऐसी किसी दीर्घकालीन योजना की जरुरत है। उन्होंने कहा कि वैसे खिलाडिय़ों को तराशने के लिए हर राज्य का भी दायित्व होता है, हर बात के लिए केन्द्र सरकार की तरफ देखना ठीक नहीं है।


हॉकी की मदद करना उचित नहीं था

हॉकी इंडिया के साथ भारतीय खिलाडिय़ों के विवाद के कारण देश के राष्ट्रीय खेल पर आए संकट के समय केन्द्र सरकार द्वारा किसी भी तरह की मदद न करने को उन्होंने सही ठहराते हुए कहा कि अगर हॉकी की मदद कर दी जाती तो इसके बाद और कई खेल संघ सामने आ जाते। विश्व कप में भारत के खराब प्रदर्शन पर उन्होंने कहा कि यह कहना ठीक नहीं है कि भारत के प्रदर्शन के पीछे विवाद जिम्मेदार है। उन्होंने भारत के प्रदर्शन पर संतोष जताया।


बस्तर में साई सेंटर के लिए समय लगेगा

बस्तर में भी साई सेंटर की मांग पर उन्होंने कहा कि वहां भी सेंटर जरूर खोला जाएगा, लेकिन इसके लिए समय लगेगा। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि यह अच्छी बात है कि अगर बस्तर में साई सेंटर खुलने से नक्सली गतिविधियों पर कुछ अंकुश लग सकता है तो इससे अच्छी कोई बात हो ही नहीं सकती है।


खेल संघों के पदाधिकारियों से भी मिले

खेल मंत्री ने प्रदेश के कई खेल संघों के पदाधिकारियों से मुलाकात करके उनसे चर्चा की। उनसे मिलने वालों में वालीबॉल संघ के मो। अकरम खान, रवीन्द्र कुमार, नेटबाल संघ के संजय शर्मा, तीरंदाजी संघ के कैलाश मुरारका, हॉकी संघ की नीता डुमरे के साथ हॉकी से जुड़े परवेज शकीलुद्दीन, फारूख कादिर शामिल हैं।


किरणमयी नायक मिली पाटिल से

राजधानी की महापौर किरणमयी नायक ने केन्द्रीय राज्य खेल मंत्री प्रतीक पाटिल ने मुलाकात की और उनसे यह जानकारी चाही कि क्या केन्द्र सरकार नगर निगम के स्कूलों के लिए भी खेलों में कोई मदद कर सकती है। इसी के साथ उन्होंने श्री पाटिल से पूछा कि क्या ३७वें राष्ट्रीय खेलों के लिए केन्द्र से निगम को कोई बजट मिल सकता है। श्री पाटिल ने उनको निगम के स्कूलों के लिए जहां साई की योजनाओं की जानकारी दी, वहीं उनको बताया कि राष्ट्रीय खेलों के लिए मैदान आदि बनाने के लिए राज्य सरकार को मदद की जाती है।

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रविवार, मार्च 07, 2010

छत्तीसगढ़ के तीन चिट्ठे टॉप 40 में


अचानक कल चिट्ठा जगत के सक्रियता क्रमांक पर नजरें पड़ीं तो देखा कि छत्तीसगढ़ के तीन चिट्ठे टॉप 40 में हैं। यह देखकर काफी खुशी हुई कि लेखन के मामले में हमारे छत्तीसगढ़ के लेखक तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। वैसे ब्लाग जगत में इस समय छत्तीसगढ़ का डंका बज रहा है कहा जाए तो गलत नहीं होगा। टॉप 75 में छत्तीसगढ़ के 8 चिट्ठे हैं।

काफी दिनों से काम की अधिकता के कारण हम न तो ज्यादा कुछ लिख पा रहे हैं और न ही पढ़ पा रहे हैं। एक तो प्रेस का काम, ऊपर से घर में भी कुछ निर्माण का काम पिछले दो माह से चल रहा है, इसी के साथ हमें खेलगढ़ का मार्च का अंक निकालना है तो व्यस्तता बढ़ गई है। कल कुछ समय मिला तो चिट्ठा जगत खोला तो नजरें वहां चली गईं जहां पर टॉप 40 चिट्ठे रहते हैं। वहां पर हमें पहली बार छत्तीसगढ़ के तीन चिट्ठे नजर आए। 20 वें नंबर पर अपने अनिल पुसदकर जी का अमीर धरती-गरीब लोग, 34वें नंबर पर हमारा राजतंत्र और 38वें नंबर पर ललित शर्मा की का ललित डॉट काम। आज फिर से चिट्ठा जगत देखा तो अनिल जी का चिट्ठा 21, राजतंत्र 37वें और ललित जी का चिट्ठा 39वें नंबर पर है।
इसके पहले की बात करें तो जहां तक हमें याद है कि टॉप 40 में अनिल जी और संजीत त्रिपाठी का चिट्ठा रहता था। लेकिन संजीत के काफी समय से न लिखने के कारण उनका चिट्ठा पीछे हो गया है। और वे टॉप 100 से भी बाहर हो गए हैं। वैसे कई बार संजीव तिवारी जी के चिट्ठे आरंभ को भी टॉप 40 में स्थान मिल चुका है। लेकिन जहां तक छत्तीसगढ़ के तीन चिट्ठों का टॉप 40 में एक साथ आने का सवाल है, तो हमें लगता है कि ऐसा पहली बार हुआ है। संभवत: पहले भी ऐसा हुआ हो, लेकिन इसकी हमें जानकारी नहीं है। अगर छत्तीसगढ़ के हमारे पुराने ब्लागर मित्रों को ऐसा कुछ याद हो तो जरूर बताएं।

वैसे हम अब टॉप 50 की बात करें तो यहां पर छत्तीसगढ़ के चार चिट्ठे हैं। जीके अवधिया जी का चिट्ठा धान के देश में 48वें नंबर पर है। इसके आगे हम अगर टॉप 100 में जाए तो 51वें नबंर पर संजीव तिवारी का चिट्ठा आरंभ है। 61वें नंबर पर गगन शर्मा जी का चिट्ठा अलग सा है। 71वें नंबर पर लोकेश जी का अदालत और 75वें नंबर पर बीएस पाबला जी का प्रिंट मीडिया पर ब्लाग चर्चा है। यानी टॉप 75 में इस समय छत्तीसगढ़ के 8 चिट्ठे हैं। जिसमें से टॉप 50 में चार इसके बाद 25 में चार चिट्ठे हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि छत्तीसगढ़ के ब्लाग काफी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। वैसे भी किसी प्रतिभा को आगे बढऩे से कोई रोक नहीं पाता है। कोशिशें जरूर होती हैं रोकने की, लेकिन ऐसी कोशिशें ज्यादा सफल नहीं होती हैं।
तो चलते-चलते हम कहते हैं

जय हिन्द, जय भारत और जय छत्तीसगढ़

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शनिवार, मार्च 06, 2010

दीर्घकालीन योजना से मिलते हैं पदक


करतार सिंह का स्वागत करते राजकुमार ग्वालानी


पद्मश्री और ओलंपियन करतार सिंह से बातचीत


कामनवेल्थ के लिए जिस तरह से योजना बनाकर कुश्ती की टीम को लगातार तीन साल से ज्यादा समय से तैयार किया जा रहा है, अगर उसी तरह से ओलंपिक के लिए भी दीर्घकालीन योजना पर काम किया जाए तो भारत को पदक जीतने से कोई नहीं रोक सकता है। इसी के साथ पदक जीतने के लिए देश प्रेम का जज्बा भी जरूरी है।


ये बातें यहां पर चर्चा करते हुए पद्मश्री प्राप्त ओलंपियन और भारतीय कुश्ती महासंघ के सचिव करतार सिंह ने कहीं। उन्होंने कहा कि भारत में कम से कम ऐसा पहली बार हुआ है कि कामनवेल्थ की तैयारी के लिए टीम को तीन साल से प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस प्रशिक्षण का नतीजा भी जरूर सामने आएगा। उन्होंने दावा किया कि यह बात तय है कि कुश्ती में जो २१ स्वर्ण पदक दांव पर लगे हैं, उसमें से एक दर्जन से ज्यादा स्वर्ण पदकों पर भारतीय पहलवानों का कब्जा होगा। तीन बार ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले इस पहलवान ने कहा कि जिस तरह से कामनवेल्थ के लिए पहली बार टीम के लिए दीर्घकालीन योजना बनाकर प्रशिक्षण शिविर लगाए गए और विदेशी कोच भी बुलाए गए अगर उसी तरह से ओलिंपक की तैयारी करवाई जाए तो कोई वजह नहीं है कि भारत को पदक नही मिलेंगे। उन्होंने पूछने पर कहा कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि बीजिंग ओलंपिक में सुशील कुमार के पदक जीतने के बाद कुश्ती का परिदृश्य भारत में बदला है। वैसे यह भी सत्य है कि इसके पहले हमारे पहलवान ओलंपिक के ज्यादातर आयोजनों में क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे हैं। लेकिन सुविधाओं की कमी के कारण वे पदक तक नहीं पहुंच पाते थे। लेकिन अब सुविधाओं में इजाफा हुआ है। और यह बात तय है कि अगर सुविधाओं में इजाफा होता है तो उसका नतीजा भी सामने आता है, जैसा बीजिंग ओलंपिक में आया है।


प्रशिक्षकों की बहुत कमी है

कामनवेल्थ के साथ विश्व कप में भी भारत के लिए पदक जीतने वाले करतार सिंह को इस बात का मलाल है कि अपने देश में प्रशिक्षकों की बहुत ज्यादा कमी है। वे कहते हैं कि स्कूल में शिक्षक ही नहीं होंगे तो छात्र पढ़ेंगे क्या। उन्होंने पूछने पर कहा कि भारत में कुश्ती के साई के पास बमुश्किल १०० कोच हैं। वे कहते हैं कि साई के पास कम से कम एक हजार कोच होने चाहिए, इसी के साथ हर राज्य के पास अपने सौ-सौ कोच होने चाहिए। उन्होंने कहा कि जब तक कोच नई तकनीक के जानकार नहीं होंगे तब तक परेशानी होगी। वे कहते हैं कि पहले कुश्ती १५ मिनट की होती थी, इसके बाद ९ मिनट और महज ६ मिनट की हो गई है। ६ मिनट के खेल में आपके पास बस दो मिनट ही होते हैं। इस दो मिनट में जिनके पास तकनीकी ज्ञान ज्यादा होता है, बाजी उनके हाथ लगती है। करतार सिंह कहते हैं कि आज मिट्टी की कुश्ती का जमाना भी नहीं रहा है। आज देश में ज्यादा राज्यों से पहलवान न निकलने का कारण मैट हैं। आज कुश्ती आधुनिक मैट पर होती है और हर राज्य के पास ऐसे मैट नहीं हैं। वे कहते हैं कि होना तो यह चाहिए कि स्कूलों में भी मैट पर कुश्ती हो। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि प्रशिक्षकों को भी प्रशिक्षित करने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि उनके महासंघ ने रेफरी क्लीनिक लगाने के बाद प्रशिक्षकों को भी प्रशिक्षण दिलाने का काम किया है।


देश प्रेम का जज्बा भी जरूरी

एशियाड में चार बर स्वर्ण जीते वाले इस पहलवान का मानना है कि किसी भी अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में पदक जीतने के लिए देश प्रेम के जज्बे का होना भी निहायत जरूरी है। उन्होंने कहा कि सुविधाओं का रोना तो आम बात है, पर हमें कीनिया और क्यूबा जैसे देश को देखना चाहिए, जहां पर भूखमरी होने के बाद भी वहां के धावक आज विश्व में छाए हुए हैं। उन्होंने कहा कि अपने देश में पालकों की सोच को भी बदलने की जरूरत है। आज हर पालक चाहता है कि उनका बच्चा मात्र पढ़े-लिखे। सभी ऐसा सोचेंगे तो खेल कैसे बढ़ेगा।


ओवरएज पर अंकुश लगा है

भारतीय कुश्ती के सचिव करतार सिंह बताते हैं कि कुश्ती में भी ओवरएज को लेकर भारी परेशानी थी, लेकिन अब इससे पूरी तरह से मुक्ति मिल गई है। हमने इसके लिए बहुत कड़ाई की और ओवरएज खिलाडिय़ों को बाहर का रास्ता दिखाया। उन्होंने बताया कि अब तो यूथ ओलंपिक भी होना वाला है, इसके लिए २६-२७ फरवरी को ट्रायल होंगे।


रामदेव बाबा ने हमारे अखाड़े में अभ्यास किया है

करतार सिंह ने बताया कि रामदेव बाबा हरियाणा के अंखाड़े में अभ्यास करते थे। उन्होंने वहां दो साल अभ्यास किया। रामदेव बाबा के योग को मीडिया ने लोकप्रिय किया है। इसके पहले भी लोग योग करते थे, लेकिन मीडिया के कारण रामदेव बाबा और योग को सभी जानने लगे हैं। मेरे कहने का मतलब यह है कि मीडिया के कारण ही हर खेल लोकप्रिय होता है।


छत्तीसगढ़ में प्रशिक्षण देने जरूर आऊंगा

ओलंपियन करतार सिंह ने एक सवाल के जवाब में कहा कि वे छत्तीसगढ़ के खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण देने के लिए जरूर आएंगे अगर उनको बुलाया जाएगा। उन्होंने छत्तीसगढ़ के खिलाडिय़ों और संघ के पदाधिकारियों से कहा कि तेरे-मेरे की भावना से उठकर एकजुट होकर खेलने की जरूरत है। उन्होंने बस्तर में हो रहे भारत-इंडो कुश्ती स्पर्धा के बारे में कहा कि ऐसे आयोजन छत्तीसगढ़ में होने से यहां पर कुश्ती लोकप्रिय होगी।

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शुक्रवार, मार्च 05, 2010

क्या प्यार जताने चिपक कर बैठना जरूरी है?

शायद ही कोई दिन ऐसा जाता होगा जब रास्ते में आते-जाते हमने पति-पत्नी के साथ ही प्रेमी युगल को मोटर बाइक पर चिपक कर बैठे हुए न देखा हो। इनको देखकर अक्सर मन में एक सवाल उठाता है कि क्या प्यार जताने के लिए क्या चिपक कर बैठना जरूरी है?

मालूम नहीं आज का अपना समाज कहां जा रहा है। एक वह समय था जब प्यार जताने के लिए दिखावे की जरुरत नहीं पड़ती थी, लेकिन आज दिखावे के बिना प्यार को प्यार नहीं माना जाता है, ऐसा कम से कम हमें लगता है। सोचने वाली बात है कि आखिर पति और पत्नी रास्ते में मोटर बाइक पर जाते हुए बिलकुल चिपक कर बैठकर क्या जताना चाहते हैं। एक बार प्रेमी युगल जोड़ों की बात समझ में आती है कि इन बेचारों के पास कोई रास्ता नहीं होता है ऐसे में इनको जो वक्त मिलता है उसमें वे अपने मन की कर लेते हैं, लेकिन जहां तक पति-पत्नी का सवाल है तो इनके पास रहने को घर है, प्यार करने के लिए पूरा समय है, फिर क्यों कर ये रास्ते में ऐसा करते हैं, यह बात समझ से परे हैं।

इस बारे में हमारे ब्लागर मित्र क्या सोचते हैं, जरूर बताएं।

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गुरुवार, मार्च 04, 2010

भारतीय खिलाडिय़ों के आने से बढ़ा नेहरू हॉकी का गौरव


स्वर्ण कप नेहरू हॉकी का आयोजन करने वाले एथलेटिक क्लब के पदाधिकारियों का ऐसा मानना है कि हरिभूमि के साथ प्रदेश के उद्योगपति वीरसेन सिंधु द्वारा भारतीय महिला हॉकी टीम की खिलाडिय़ों को राजधानी में बुलाने से नेहरू हॉकी का भी गौरव बढ़ गया है। इस स्पर्धा में यूं तो पाकिस्तान और बंगलादेश की टीमें भी आईं हैं, लेकिन इनके आने से भी उतना महत्व स्पर्धा का नहीं बढ़ा था जितना भारतीय खिलाडिय़ों के आने से बढ़ा है।


नेहरू हॉकी के समापन के बाद अब आयोजक एथलेटिक क्लब के पदाधिकारियों में इस बात को लेकर जोरदार चर्चा है कि इस बार उनकी स्पर्धा को एक अलग तरह का सम्मान मिल गया है। इस सम्मान के बारे में क्लब के अध्यक्ष गजराज पगारिया के साथ सचिव हफीज यजदानी, मंसूर अहमद खान, इदरीश बारी, नोमान अकरम हामिद कहते हैं कि वास्तव में हमारे आयोजन के बीच में भारतीय महिला हॉकी खिलाडिय़ों का आना और उनका यहां पर मैच का खेलना बहुत बड़े सम्मान की बात है। जिस दिन मैच खेला गया उस दिन की भीड़ के बारे में क्या कहा जाए। इतनी भीड़ पहले कभी यहां पर देखने को नहीं मिली। पदाधिकारी कहते हैं कि वास्तव में जो काम हरिभूमि और प्रदेश के उद्योगपति वीरसेन सिंधु ने किया है उसको ताउम्र प्रदेश का हॉकी जगत नहीं भूल सकता है। इन्होंने कहा कि आज जबकि हॉकी वास्तव में बुरी स्थिति में है तो उसको ऐसे ही प्रोत्साहन की जरूरत है।


पदाधिकारी बताते हैं कि नेताजी स्टेडियम के मैदान में दो साल पहे पाकिस्तान और बंगलादेश की टीमें भी आईं थी, लेकिन जैसी दीवानगी महिला हॉकी टीम की खिलाडिय़ों के मैच में देखने को मिली, वैसे पहले कभी देखने को नहीं मिली। इन्होंने साफ शब्दों में कहा कि इस आयोजन के कारण हमारी स्पर्धा का भी गौरव और बढ़ गया है। यहां खेलने आई टीमों के कारण पूरे देश भर में यह संदेश गया है कि छत्तीसगढ़ ने हॉकी के लिए जो पहल की है, वह बेमिसाल है। हमारा प्रयास रहेगा कि अगले साल स्पर्धा में और अच्छी टीमें खेलने के लिए आएं। वैसे इस बार भी कई अच्छी टीमें आर्ईं थीं।

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बुधवार, मार्च 03, 2010

ग्रामीण फुटबालरों को भी निखारेंगे

राजधानी के ३५ साल पुरानी शेरा क्रीड़ा समिति में अभी से ग्रीष्मकालीन फुटबॉल प्रशिक्षण शिविर की तैयारी प्रारंभ हो गई है। इस बार भी ग्रामीण खिलाडिय़ों को निखारने की योजना पर काम किया जा रहा है। पिछली बार कुछ विकासखंड़ों के खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण शिविर में शामिल किया गया था, इस बार और ज्यादा ग्रामीण खिलाडिय़ों को निखारने की योजना है।

समिति के संस्थापक मुश्ताक अली प्रधान ने बताया कि राजधानी के ३५ साल पुराने हमारे शेरा क्लब द्वारा रायपुर में सबसे लंबा प्रशिक्षण शिविर लगाने का काम बरसों से किया जा रहा है। इस ८२ दिनों के शिविर में रायपुर के साथ ग्रामीण अंचल के खिलाडिय़ों को जहां खेल की बारीकियों से अवगत कराया जाता है, वहीं उनकी डाइट का भी पूरा ध्यान रखा जाता है। खिलाडिय़ों की डाइट पर ही करीब ५० हजार रुपए का खर्च किया जाता है। क्लब के संस्थापक मुश्ताक अली प्रधान बताते हैं कि खिलाडिय़ों की डाइट के साथ ही खेल के सामान पर २० हजार, मैदान को ठीक करने पर पांच हजार और अन्य खर्च ५ हजार आ जाता है। कुल मिलाकर करीब ८० हजार का खर्च आता है। यह सारा खर्च क्लब उठाता है और खिलाडिय़ों से कोई पैसा नहीं लिया जाता है। खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण देने वाले प्रशिक्षक भी कोई पैसा नहीं लेते हैं।

श्री प्रधान ने पूछने पर बताया कि प्रशिक्षण शिविर में हर वर्ग सब जूनियर, जूनियर और सीनियर खिलाड़ी शामिल हो सकते हैं। उन्होंने बताया कि इस बार शिविर का आरंभ २० अप्रैल से होगा। लेकिन खिलाडिय़ों का पंजीयन अभी से किया जा रहा है क्योंकि खिलाड़ी इस माह परीक्षाओं के बाद बाहर चले जाएंगे और स्कूलों में छुट्टियां लग जाएंगी। उन्होंने बताया कि पिछले साल के प्रशिक्षण शिविर में १५० खिलाड़ी शामिल हुए थे। इस बार १५० से ज्यादा खिलाडिय़ों के शामिल होने की संभावना है। इन खिलाडिय़ों में बालिका खिलाड़ी भी शामिल रहेंगी। बकौल मुश्ताक अली खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण शिविर में इस तरह से तैयार किया जाता है कि कोई भी नया खिलाड़ी थोड़ी सी मेहनत करके कम से कम जिले की टीम में जगह बना ही सकता है।
श्री प्रधान ने बताया कि प्रशिक्षण शिविर के लिए सप्रे स्कूल के मैदान को तैयार किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि क्लब द्वारा लगाए जाने वाले शिविर में जिला फुटबॉल संघ के साथ खेल एवं युवा कल्याण विभाग की भी मदद मिलती है। उन्होंने बताया कि शिविर में ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ी शामिल हो सकें इसके लिए सभी स्कूल और कॉलेजों में सूचना दी गई है। प्रशिक्षण शिविर सुबह के साथ शाम के सत्र में भी लगाया जाएगा। इस बार शिविर में ग्रामीण खिलाडिय़ों को ज्यादा महत्व देने की योजना है।

वार्षिक कैलेंडर भी घोषित

श्री प्रधान ने बताया कि प्रशिक्षण शिविर की योजना के साथ हम अपना वार्षिक कैलेंडर भी जारी कर रहे हैं। इसके मुताबिक १५ से २५ अप्रैल तक फुटबॉस स्पर्धा, २८ जुलाई से १० अगस्त तक सेवन-ए-साइड अंतर शालेय बालक-बालिका फुटबॉल स्पर्धा, २९ अगस्त से १५ सितंबर तक नीरज अग्रवाल स्मृति अंतर शालेय, अंतर कॉलेज फुटबॉल स्पर्धा, ५ से १५ अक्टूबर तक राज्य स्पर्धा, ५ से १२ नवंबर तक पहली बार फाइव -ए-साइड स्पर्धा, दिसंबर में अखिल भारतीय स्पर्धा का आयोजन किया जाएगा। साल भर के पूरे आयोजन में ६० से ७० लाख का खर्च आएगा।

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मंगलवार, मार्च 02, 2010

कैसे मनी आपकी होली

होली की खुमारी अब भी सभी में बाकी होगी। लेकिन क्या करें हमें तो काम पर जाना है। अब हम कोई सरकारी मुलाजिम तो हैं नहीं कि छुट्टी मिल जाएगी। हम ठहरे एक छोटे से पत्रकार, सो प्रेस जाकर खबरें तो बनानी ही पड़ेंगी। और इसके पहले हमें 10.30 बजे की मिटिंग में भी जाना है।

हमने तो होली पर रंगों का खूब मजा लिया, लेकिन इस रंगों में कोई न तो गंदा रंग था, और न ही पानी मिला रंग। हमने शालीनता के साथ गुलाल की होली खेली और पानी की भी बचत की। वैसे होली में पानी की जितनी बर्बादी होती है, उतनी और कभी नहीं होती है।

बहरहाल हम अपने ब्लागर मित्रों से जानना चाहते हैं कि आपकी होली कैसी रही।

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सोमवार, मार्च 01, 2010

योगेन्द्र जी आए छत्तीसगढ़ पर छाए



हरियाणा के एक कवि हैं योगेन्द्र मौदगिल जी। हम उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते हैं, पर अचानक उनसे कल मुलाकात हुई और एक छोटी सी मुलाकात के बाद हमें मालूम हुआ कि वे एक अच्छे कवि ही नहीं बल्कि एक जिंदादिल इंसान भी हैं। उनकी कविताओं का रस छत्तीसगढ़ के वासियों को पीने का मौका मिला, और सभी उनकी कविता के रंगों में ऐसे डूबे कि पूछिए ही मत। हम तो बस इतना कह सकते हैं कि योगेन्द्र जी आए और छत्तीसगढ़ पर छाए।

कल सुबह की बात है अचानक भाई ललित शर्मा जी का फोन आया। हाल-चाल पूछने के बाद उन्होंने बताया कि हरियाणा के कवि भाई योगेन्द्र मौदगिल आए हैं। योगेन्द्र जी का ब्लाग भी है। ललित जी ने कहा कि वे रायपुर आ रहे हैं उनको समता से वापस जाना है। योगेन्द्र जी को स्टेशन तक छोडऩे की जिम्मेदारी ललित जी ने हमें दे दी। हमने उनसे कहा कि योगेन्द्र जी को अभनपुर से एक बजे भेजे ताकि तब तक हमारा काम भी समाप्त हो जाएगा। इसी बाच हमने भाई अनिल पुसदकर जी को भी बता दिया कि योगेन्द्र जी आए हैं। सुनकर वे भी प्रसन्न हुए और उन्होंने भी वही बात कही जो हम चाहते थे। कल प्रेस क्लब में होली मिलन का कार्यक्रम था। हर साल वहां पर होली में चलती है हंसी की गोली। सो हमने पहले ही सोचा था कि योगेन्द्र जी को भी इस कार्यक्रम में ले जाकर हंसी की गोली चलाने का पूरा मौका दिया जाएगा।

करीब एक बजे हम प्रेस से निकल कर प्रेस क्लब पहुंच गए। करीब डेढ़ बजे अनिल जी ने पूछा कि योगेन्द्र जी कहां हैं। हमने कहा अभी पता करते हैं। ललित जी से उनका नंबर लेकर उनका मोबाइल खटखटाया तो मालूम हुआ कि वे रायपुर आ गए हैं और बूढ़ापारा के पास हैं। हम फौरन उनको लेने चले गए। उनको लेकर प्रेस क्लब आए। तब तक महफिल सज चुकी थी।

अनिल भाई ने योगेन्द्र जी को सीधे मंच पर आमंत्रित किया और सबसे पहले उनको ही कुछ सुनाने के लिए माइक थमाया गया। उन्होंने अपनी चंद कविताओं से रंग जमा दिया। इसके बाद महफिल चलती रही और योगेन्द्र जी को समझ में आ गया कि इस महफिल में क्या सुनाना है, दूसरे दौर में उन्होंने भी होली के सुरूर वाली चंद लाइनें सुनाईं और खूब तालियां पाईं।

प्रेस क्लब की महफिल समाप्त होने के बाद योगेन्द्र जी को अनिल भाई की गाड़ी में हम लोग स्टेशन छोड़कर आए। योगेन्द्र जी के साथ ज्यादा समय तो बिताने का मौका नहीं मिला, लेकिन जितना भी समय मिला उसमें यह जरूर मालूम हुआ कि वे वास्तव में जिंदादिल इंसान हैं। वैसे भी कविता लिखने और बोलने का काम जिंदा दिल इंसान ही कर सकते हैं। हमें सिर्फ इस बात का अफसोस है कि समय कम होने के कारण हमने कभी उनका ब्लाग नहीं देखा है। लेकिन अपने अनिल भाई जरूर उनका ब्लाग देखते हैं और उन्होंने इस बारे में योगेन्द्र जी से चर्चा भी की। हमें यह भी मालूम हुआ कि भाई योगेन्द्र जी भिलाई में एक कवि सम्मेलन में आए थे और वहां पर अपनी कविताओं से सभी को भाए थे। कल एक और चूक यह हो गई कि हम योगेन्द्र जी की कोई तस्वीर नहीं ले सके. ऐसे में जब हमने यह पोस्ट लिखी तो भाई ललित शर्मा से उनकी एक तस्वीर मांगी तो उन्होंने भेज दी जो पेश है।

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