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रविवार, मई 09, 2010

मां के अंतिम दर्शन ही नहीं कर पाया..

मां तुने दिया हमको जन्म
तेरा हम पर अहसान है
तेरे ही करम से
दुनिया में हमारा नाम है
ओ मेरी प्यारी मां
तुझे सत्-सत् प्रणाम है


वह 7 फरवरी 2003 का दिन था जब हम जगदलपुर में राष्ट्रीय महिला खेलों की रिपोर्टिंग करने गए थे। सुबह-सुबह हमारे समाचार पत्र दैनिक देशबन्धु (उस समय हम वहीं काम करते थे, आज हम दैनिक हरिभूमि में हैं) से जुड़े जगदलपुर के ब्यूरो चीफ पवन दुबे ने होटल में आकर हमें खबर दी कि हमारी माता जी की तबीयत और ज्यादा खराब हो गई है। उनका इतना कहना ही काफी था, हम अपना रोना रोक नहीं पाए क्योंकि हमें समझ आ गया था कि हमारी माताजी की तबीयत ज्यादा खराब नहीं हुई है, बल्कि उनका स्वर्गवास हो गया क्योंकि हम जब घर से निकले थे तो माता जी की तबीयत वैसे भी ज्यादा खराब थी और हम जानते थे, कि वह ज्यादा दिनों की मेहमान नहीं हैं। हमें न जाने क्यों खटक भी रहा था कि हम बाहर जाएंगे और हमारी मां हमारा साथ छोड़ देंगी। हमें उनके जाने से ज्यादा इस बात का अफसोस है कि हम उनके अंतिम दर्शन ही नहीं कर पाए।

हमें जगदलपुर में सुबह को जैसे ही करीब छह बजे खबर मिली हम वहां से आंधे घंटे में निकल पड़े। हम वहां अपनी बाइक से गए थे। हमारे पास उस समय मोबाइल जैसी सुविधा नहीं थी। हम जगलपुर का 330 किलो मीटर का सफर तय करके पहले रायपुर फिर वहां से 85 किलो मीटर का सफर तय करके भाटापारा पहुंचना था। हमने अनुमान लगाकर रास्ते से अपने घर भाटापारा फोन करके बता दिया था कि हम किसी भी कीमत पर दोपहर को तीन बजे तक पहुंच जाएंगे। हमने उस दिन पहली बार बाइक को 100 की रफ्तार में चलाया था। उस दिन शायद हमारी मां के निधन पर आसमान भी रो पड़ा था। एक तरफ हल्की बारिश हो रही थी तो दूसरी तरफ हमारी आंखों के आंसू भी रूकने का नाम नहीं ले रहे थे। इसी हालत में हम बाइक चलाते हुए बिना रूके करीब 12.30 बजे रायपुर पहुंचे और यहां घर आने के बाद यहां से भाटापारा के लिए निकल पड़े। हम अपने वादे के मुताबिक भाटापारा तीन बजे से पहले ही पहुंच गए। हमने रायपुर आकर घर में सूचना भी दे दी थी कि हम रायपुर पहुंच गए हैं अब भाटापारा पहुंचने में महज दो घंटे का ही समय लगना है।
लेकिन वाह री किस्मत। हम वहां समय पर पहुंचे लेकिन इसके बाद भी हमारी मां का अंतिम संस्कार किया जा चुका था। हमें बहुत गुस्सा आया। हमने अपने परिवार में सभी से इस बात को लेकिन खूब झगड़ा किया कि हमारा इंतजार क्यों नहीं किया गया। सभी ने कहा कि मौसम खराब होने के कारण ऐसा किया गया। इसी के साथ भाईयों ने इस बात का तर्क दिया कि समाज वालों को 11 बजे ही बुला लिया गया था। हमने कहा कि अगर समाज वाले नहीं रहते तो भी हम चार भाई हैं हमें लोग ही काफी थे, क्या समाज वाले मुझे अब अपनी मां के अंतिम दर्शन करवा सकते हैं। हमें समाज के ऐसे ठेकेदारों पर भी गुस्सा आया जो एक बेटे की भावनाओं को समझे बिना ऐसा कृत्य कर बैठे। वैसे इसके पहले हमने अपना सारा गुस्सा अपनी पत्नी पर उतारा था कि उन्होंने क्यों ले जाने दिया हमारी मां को, जबकि उनकी कोई गलती नहीं थी। उन्होंने भी बहुत कोशिश की थी कि हमारे आने का इंतजार किया जाए, लेकिन इंतजार नहीं किया गया।
हमें आज भी इस बात का अफसोस है कि हम अपनी मां के अंतिम दर्शन नहीं कर पाए। इस बात का हमें ताउम्र अफसोस रहेगा कि क्यों कर हम अपनी बीमार मां को छोड़कर रिपोर्टिंग करने चले गए थे। बहरहाल कहते हैं कि न जिसकी किस्मत में जो लिखा रहता है, वही होता है, सो हमारे साथ भी ऐसा हुआ। शायद हमारी ही किस्मत खराब थी जो हम अपनी मां के अंतिम दर्शन नहीं कर पाए, इसके लिए अब चाहे जो भी दोषी रहा हो, लेकिन सबसे बड़ा दोष तो हमारी किस्मत का था। हो सकता है कि हमने ही कभी अपनी मां का दिल दुखाया हो जिसकी हमें ऐसा सजा मिली। भगवान कभी किसी दुश्मन को भी ऐसी सजा मत दे इस बात की दुआ हम आज मदर्स डे पर करते हैं। इसी के साथ हम अपने सभी मित्रों को यह सलाह देते हैं कि दुनिया में कभी भी किसी भी कीमत पर कम से कम अपनी मां का दिल का दुखाने का काम न करें, ऐसा करने वालों के साथ कुछ भी हो सकता है। इस दुनिया में कहते हैं कि मां से बढ़कर कोई नहीं होती है, मां के दम पर ही तो हम इस दुनिया में आते हैं।

5 टिप्पणियाँ:

rajesh patel रवि मई 09, 08:58:00 am 2010  

मां तुझे प्रणाम

दिलीप रवि मई 09, 10:08:00 am 2010  

bada afsos hai....rula diya aapne..

Mithilesh dubey रवि मई 09, 10:13:00 am 2010  

ओह! बहुत ही मार्मिक लगा पढ़ना , ।

सूर्यकान्त गुप्ता रवि मई 09, 11:01:00 am 2010  

माँ की ममता का सुख क्या होता है वह तो जिनके सर पर मा का साया लंबे समय तक होता है वही जान सकता है। हम तो हमारी मा स्वरूपा नानी के दिवन्गत होने पर दर्शन नही कर पाये थे। बहुत दुख हुआ था। …॥ बस नमन है माँ को……

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