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मंगलवार, जून 29, 2010

छत्तीसगढ़ में ऐतिहासिक होगी बैटन रिले

छत्तीसगढ़ की घरा पर जब कामनवेल्थ की बैटन रिले का आयोजन किया जाए तो यह आयोजन इतना भव्य और ऐतिहासिक होना चाहिए कि देश में छत्तीसगढ़ की गूंज हो कि ऐसा आयोजन और कहीं नहीं देखा गया। आयोजन को ऐतिहासिक बनाने पर जहां पर हर खेल संघ के पदाधिकारियों ने जोर दिया, वहीं खेल मंत्री लता उसेंडी के साथ खेल विभाग के सभी अधिकारियों ने भी इस बात पर बल दिया कि आयोजन को ऐतिहासिक बनाने में विभाग कोई कसर नहीं छोड़ेगा। बैटन पड़कने वाले धावकों के लिए यह तय किया गया कि कम संख्या को देखते हुए हर खेल से एक खिलाड़ी या संघ का पदाधिकारी रखा जाए। खिलाडिय़ों में पहले अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों को प्राथमिकता दी जाएगी। ५० के कोटे में करीब ३० खिलाडिय़ों को रखने पर सहमति बनी है।
कामनवेल्थ की मशाल यानी बैटन का आगमन छत्तीसगढ़ की जमीं पर ११ अगस्त को हो रहा है। अगले दिन १२ अगस्त को रायपुर में बैटन रिले का आयोजन होना है। इस आयोजन को ऐतिहासिक बनाने के साथ धावकों की संख्या पर चर्चा करने के लिए आज खेल विभाग ने खेल मंत्री लता उसेंडी की अध्यक्षता में खेल संघों के साथ एक बैठक का आयोजन नए विश्राम गृह में किया था। इस बैठक में सबसे पहले खेल संघों के पदाधिकारियों से सुझाव मांगे गए। तीरंदाजी संघ के कैलाश मुरारका ने सबसे पहले सुझाव देते हुए कहा कि धावकों की कम संख्या को देखते हुए एक खेल से एक ही खिलाड़ी रखा जाए। उन्होंने आयोजन से सामाजिक संस्थाओं को भी जोडऩे की बात कही। नेटबॉल संघ के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री विधान मिश्रा ने कहा कि धावकों के लिए पहले अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों को प्राथमिकता दी जाए। उन्होंने बताया कि अनुमानत: २० से २२ अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हैं। इसमें से कुछ बाहर हो सकते हैं। श्री मिश्रा ने भी सामाजिक संस्थाओं को जोडऩे की बात के साथ रिले को भगत सिंह चौक के स्थान पर दीनदयाल चौक से प्रारंभ करने का सुझाव दिया। ओलंपिक संघ के पूर्व अध्यक्ष विजय पांडे ने कहा हर खेल के नहीं बल्कि मान्यता प्राप्त खेलों के अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों को रखा जाए। संजय शर्मा ने कहा कि पदक पाने वाले अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों को पहले रखा जाए। टेबल टेनिस के अध्यक्ष शरद शुक्ला ने बैटन रिले को सफल बनाने सभी खेल संघों को मिलकर काम करने की बात कही। पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी नीता डुमरे ने सांस्कृतिक संध्या के साथ खेल संस्कृति को भी शामिल करने की बात कही। विजय अग्रवाल ने ध्यान दिलाया कि बैटन रिले एमजी रोड़ ने नहीं जा सकेगी इसलिए मार्ग को बदलना चाहिए। एथलेटिक्स के आरके पिल्ले ने कहा कि रिले में खिलाडिय़ों को ज्यादा मौका देना चाहिए। उन्होंने कहा कि खिलाडिय़ों की सूची तय करने का जिम्मा खेल संघों को दिया जाए ताकि विवाद की स्थिति न बने। उन्होंने कहा कि एयरपोर्ट पर विशेष मंच बनाकर स्वागत किया जाए। विष्णु श्रीवास्तव ने कहा कि एयरपोर्ट पर बैटन का स्वागत करने के लिए खेल मंत्री के साथ मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से भी रहने का आग्रह किया जाए। वहां पर स्वागत को ऐतिहासिक बनाने हर खेल संघ के पदाधिकारी और खिलाड़ी भी उपस्थित रहे। ओलंपिक संघ के अध्यक्ष डॉ. अनिल वर्मा ने भी अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों को वरिष्ठता के आधार पर रखने का सुझाव देते हुए सभी खेल संघों को मिलकर काम करने की बात कही। प्रदेश ओलंपिक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष गुरुचरण सिंह होरा ने कहा कि बैटन का स्वागत छत्तीसगढ़ की संस्कृति के अनुरूप होना चाहिए।
खेल संघ होर्डिंग्स लगाएंरायपुर के सांसद और तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष रमेश बैस ने कहा कि आयोजन को ऐतिहासिक बनाने के लिए बैटन रिले से प्रदेश के हर गांव को जोडऩा होगा। उन्होंने जहां मिले सुर मेरा-तुम्हारा की तर्ज पर कोई धुन बनाने का सुझाव दिया, ताकि इस धुन को स्थानीय चैनलों के साथ एफएम में भी चलाया जा सके। वहीं रायपुर के साथ राजनांदगांव, भिलाई-दुर्ग में खेल संघों से होर्डिंग्स लगाने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि हर खेल संघ अपने सामर्थ के हिसाब से दो-चार होर्डिंग्स लगाए। उन्होंने कहा कि जब तक रिले का अच्छी तरह से प्रचार प्रसार नहीं होगा इसको ऐतिहासिक कैसे बनाए जाएगा। उन्होंने कहा कि प्रचार-प्रसार सही होने पर रिले को जरूर ऐतिहासिक बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जब रायपुर में गणेश विसर्जन में गांव-गांव से लोग आकर सारी रात रह सकते हैं तो ऐसे ऐतिहासिक समय में क्यों कर गांव के लोग आना नहीं चाहेंगे, बस उन तक सूचना पहुंचाने का काम करना है।
यथार्थ में खिलाडिय़ों का सम्मान हो
रायपुर के विधायक कुलदीप जुनेजा ने कहा कि यहां पर हर कोई अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों को सम्मान देने की बात कह रहा है। लेकिन यह सब बैठक तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। होता यही है कि बैठकों में जिन खिलाडिय़ों  को सम्मानित करके आगे रखने की बात की जाती है, वहीं खिलाड़ी कार्यक्रमों में मंत्रियों और वीआईपी के कारण पीछे हो जाते हैं। मैंने कई कार्यक्रमों में खिलाडिय़ों को धक्के खाते देखा है, बैटन रिले में ऐसा न इसका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। इसी के साथ बैटन रिले वाले दिन सभी सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में अवकाश घोषित करना चाहिए, ताकि हर कोई बैटन रिले के ऐतिहासिक पल को देख सके।
आयोजन ऐतिहासिक होगा: लता
खेल मंत्री लता उसेंडी ने कार्यक्रम के अंत में भरोसा जताया कि छत्तीसगढ़ में बैटन रिले का आयोजन ऐतिहासिक होगा। उन्होंने कहा कि प्रचार-प्रसार के लिए ही पंचायत स्तर से बैटन रिले पर क्वीज का आयोजन स्कूल और कॉलेजों में किया गया है। ऐसे में गांव-गांव तक बैटन रिले की सूचना पहुंच जाएगी। उन्होंने कहा कि बैटन रिले के बारे में सभी जाने इसी बात को ध्यान में रखते हुए क्वीज का आयोजन किया गया है। पंचायत के बाद राज्य स्तर पर होने वाली प्रतिस्पर्धा के विजेताओं को बैटन रिले के दिन सम्मानित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति के अनुरूप जहां बैटन का स्वागत होगा, वहीं गुजराती दक्षिण और राजस्थान की संस्कृति का भी समावेश किया जाएगा। उन्होंने कहा कि आयोजन को ऐतिहासिक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। खेलमंत्री ने कहा कि यह बात तय है कि छत्तीसगढ़ का आयोजन ऐसा होगा जिस पूरा देश याद रखेगा। अंत में खेल सचिव सुब्रत साहू ने आभार प्रदर्शन करते हुए खेल संघों ने अपने खेलों के खिलाडिय़ों के नामों की सूची सात दिनों में देने की अपील की। उन्होंने बैटन रिले पर संस्कृति विभाग के साथ मिलकर कोई धुन तैयार करने की बाक कही। उन्होंने खेल संघों से वालेनटियरों के भी नाम देने की अपील की।  

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सोमवार, जून 28, 2010

क्या यह दुनिया झूठ के दम पर चलती है

क्या सच बोलने की भी सजा मिलती है
क्यों कर सच को दुनिया हजम नहीं करती है
कहते हैं सच की हमेशा जीत होती है
क्योंकि दुनिया की यही रीत होती है
लेकिन सच की जीत में समय क्यों लगता है
इंसान तो तब तक अधमरा होने लगता है
ऐसे में इंसान सच से किनारा करने लगता है
और थाम लेता है उस झूठ का दामन
क्या झूठ के दामन में ही खुशियां होती हैं
क्या यह दुनिया झूठ के दम पर चलती है

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रविवार, जून 27, 2010

बेवफाई उनकी अदा है-धोखा उनका काम है


जमाने में कहा वफा है
हर कोई लगता बेवफा है।।
हमने हसीनों को भी देखा है
उनके चेहरे में भी फरेब छिपा है।।
बेवफाई उनकी अदा है
धोखा उनका काम है।।
आशिकी का यही इनाम
तभी तो प्यार बदनाम है।।
आज के प्रेमी नाकाम
सारे झूठे इसांन हैं।।
प्यार का घट गया मान है
पैसा ही अब सबका ईमान है।।
पैसे की खातिर करते हैं सब प्यार
पैसों की खातिर बदल लेते हैं यार।।

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शनिवार, जून 26, 2010

खाने में सफेद बाल

पति, पत्नी से- लगता है आज का खाना तुम्हारी मां ने बनाया है।
पत्नी- तुम्हें कैसे मालूम।
पति- खाने में रोज काला बाल रहता था, आज सफेद बाल है।

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शुक्रवार, जून 25, 2010

मैं तो उस लड़की को जानता भी नहीं

प्रेमिका प्रेमी से- अरे यार देखों तो सामने वाले जोड़े को वह लड़का उस लड़की से कैसे प्यार कर रहा है। तुम भी ऐसा क्यों नहीं करते हो।
प्रेमी- मैं भला कैसे कर सकता हूं मैं तो उस लड़की को जानता भी नहीं।


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गुरुवार, जून 24, 2010

तुम्हारे जैसे दोस्त हों तो दुश्मनों की क्या जरूरत है

हमारी कल की पोस्ट अंजोर दास हो या मूलचंदानी हमें फर्क नहीं पड़ता जानी.... में हमारे एक मित्र संजीव तिवारी ने टिप्पणी करके हमारा ध्यान दिलाया है कि हमारे ही कोई मित्र लगातार बार-बार नाम बदल-बदल कर हमें परेशान करने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि वे हमसे घबराते हैं। भाई संजीव जी यह बात तो हम भी जानते हैं कि ऐसा करने वाले हमारे ही मित्र हैं। हमारे ब्लाग में भी सैनिक तैनात हैं और हमें मालूम हो जाता है कि कौन कहां से गंदगी फैलाकर जाता है। लेकिन हम इसलिए चुप थे कि क्यों कर अपने मित्र और अपने राज्य को बदनाम करें। लेकिन जब आपने इशारा कर दी दिया है तो सोचा चलो हम लिख देते हैं।
हम भी जानते हैं कि हमारे ब्लाग में पहले तहसीलदार फिर पापा और अब अंजोर दास और मूलचंदानी के नाम से गंदगी करने वाला पागल बाहर का नहीं अपने ही घर का है। यह तो सदा से चलते आ रहा है कि हर घर में कोई न कोई विभीषण होता है इसमें नया क्या है। अफसोस सिर्फ इस बात का है कि सामने मित्रता जताने वाले पीठ पीछे ऐसा काम करते हैं। अगर इतना ही दम है तो सामने आकर बात करें न। ऐसे मित्रों से तो वह दुश्मन भला होता है जो सामने से वार करता है। खैर जो अच्छे रास्ते पर चलते हैं उनके रास्ता में बाधा तो आती है और जो बाधा से घबरा जाते हैं वे कभी मंजिल पर नहीं पहुंचते हैं। हमें मालूम है कि हमने अगर ब्लाग जगत में भाई-चारे का संदेश देने का एक बीड़ा उठाया है तो इस रास्ते में ऐसी कई बाधाएं आएंगी, लेकिन हम घबराने वाले नहीं हैं। एक तरफ जहां हमारे मित्र ही हमें विचलित करने का काम कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ वे लोग जो हमें भी गलत समझते रहे हैं उनको लगने लगा है कि हम कभी न गलत थे और न हैं और न होंगे। एक सफलता तो हमें मिल ही चुकी है कि हमें लोग अब समझने लगे हैं। हमें आशा है कि लोगों को धीरे-धीरे जरूर इस बात का अहसास हो जाएगा कि हम हमेशा निष्पक्ष रहते हैं। बहरहाल हमारे मित्र (दुश्मन) अपना काम करते रहें और हम अपना करते रहेंगे। वैसे भी जीत हमेशा सत्य की होती है और यहां भी होगी इसका हमें भरोसा है।
जय हिन्द, जय भारत जय छत्तीसगढ़

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बुधवार, जून 23, 2010

अंजोर दास हो या मूलचंदानी हमें कोई फर्क नहीं पड़ता जानी-क्योंकि हम हैं राजकुमार ग्वालानी

हमने जब से ब्लाग जगत में भाई चारा लाने के लिए ब्लाग चौपाल का आगाज किया है तभी से कई अवांछित लोग हमारे पीछे पड़ गए हैं। कभी किसी नाम से तो कभी किसी नाम से फर्जी आईडी से टिप्पणी करके हमें डराने का काम करते हैं। लेकिन हम बता दें कि हमने जो काम अपने हाथ में लिया है उसे हम छोडऩे वाले नहीं है। अब कल की ही बात करें तो हमारे ब्लाग राजतंत्र के साथ ब्लाग चौपाल में पहले कोई अंजोर दास फिर मूलचंदानी अवतरित हुए। इनकी टिप्पणियों की तरफ हमारे मित्रों ने ध्यान दिलाया।
हम बता दें कि

अंजोर दास हो या मूलचंदानी
हमें कोई फर्क नहीं पड़ता जानी
क्योंकि हम हैं राजकुमार ग्वालानी
जिसके सामने ऐसे लोग भरते हैं पानी
ज्यादा तीन-पांच करने वालों को
हम याद दिला देते हैं नानी
जिसने भी हमसे पंगा लेना की ठानी
उसको है हमेशा मुंह की खानी
पहले तहलसीदार फिर पापा आए
हमारे एक ही फटके में जाने कहां गए
अब अंजोर दास और मूलचंदानी आए
क्या हम इनकी अब न बजाए
इसके पहले की हम इनकी बजाए
अच्छा है ये खुद ही भाग जाए

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मंगलवार, जून 22, 2010

ब्लागवाणी बंद-ब्लागर तंग

ब्लागवाणी पर न जाने क्यों कर 18 जून से ताला लग गया है। हम ज्यादा ब्लाग देख नहीं पाते हैं ऐसे में हमें इसका ठीक-ठीक कारण मालूम नहीं है। लेकिन हम इतना जरूर जानते हैं कि ब्लागवाणी के बंद होने से ब्लागर जरूर तंग हो गए हैं। तंग इसलिए हो गए हैं क्योंकि जहां तक हमारा मानना है कि ब्लागों में सबसे ज्यादा पाठक ब्लागवाणी के माध्यम से ही आते हैं।
हिन्दी ब्लागजगत को नई ऊंचाई देने का काम हमारे ख्याल से तो ब्लागवाणी ने किया है। ब्लागवाणी नहीं होती तो शायद हिन्दी के चिट्ठों की इतनी पहचान नहीं होती। वैसे एक और एग्रीगेटर चिट्ठा जगत है, पर ब्लागवाणी को लोग ज्यादा पसंद करते हैं कहा जाए तो गलत नहीं होगा। ब्लागवाणी पर पिछले 18 जून के बाद से ताला लगने जैसी स्थिति है। ब्लागवाणी खुल तो रहा है, पर 18 जून की ही पोस्ट नजर आ रही है। इसके आगे की पोस्ट का नजर न आना यह बताता है कि किसी भी कारण से ब्लागवाणी की बोलती फिलहाल तो बंद है। 
अब यह बोलती किसी तकनीकी कारण से बंद हुई है या और किसी कारण से यह कम से कम हम नहीं जानते हैं। हमारे ब्लागर मित्रों को कारण मालूम हो तो जरूर बताएं खासकर वे ब्लागर मित्र जो तकनीकी जानकार हैं।
ब्लागवाणी के अचानक बंद होने का सबको अफसोस है। सभी चाहते हैं कि ब्लागवाणी में अगर कोई तकनीकी खामी आई है तो उसे जल्द ठीक करके प्रारंभ किया जाए। वैसे हमें लगता नहीं है कि कोई तकनीकी खराबी होगी, संभवत: तकनीकी खराबी ठीक करने में इतना समय नहीं लगता है जितने समय से ब्लागवाणी बंद है। फिर आखिर क्या कारण है, कारण का सामने आना जरूरी है।  

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सोमवार, जून 21, 2010

भटक जाते हैं कदम-जब साथ न दे हमदम


भटक जाते हैं कदम
जब साथ न दे हमदम
फिर तो रहते हैं
जिंदगी में गम ही गम
गम मिटाने लोग पीते हैं रम
लेकिन गम को मिटाने कहां होता है
रम में भी इतना दम
इसलिए कहते हैं हम
कभी भी प्यार न करो
अपने हमदम से कम
ऐसा न हो कि प्यार कम होने से
निकल जाएं आपके हमदम का दम
जब वादा किया है तो
साथ निभाओ उम्र भर सनम
जन्म-जन्म न सही
ठीक कर लो अपना यही जनम

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रविवार, जून 20, 2010

महिलाओं के लिए बॉडी बिल्डिंग में बदलाव

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खासकर एशियाई देशों में बॉडी बिल्डिंग से महिलाओं को जोडऩे के लिए अंतरराष्ट्रीय महासंघ ने महिलाओं के लिए नियमों में बदलाव किए हैं। अब महिलाओं के लिए अलग तरह के नियमों के साथ मिस फिटनेस और मिस सेफ की स्पर्धाओं का आयोजन किया जाएगा। वैसे तो इसका आगाज यूरोपियन चैंपियनशिप से रूस में हो चुका है, पर जर्मनी में इस साल नवंबर में होने वाले विश्व कप से इसकी विधिवत शुरुआत हो जाएगी। इसी के साथ भारत में भी महिलाओं का इस खेल के प्रति रुङाान होगा।
यह जानकारी देते हुए अंतरराष्ट्रीय निर्णायक और हनुमान सिंह पुरस्कार प्राप्त संजय शर्मा ने बताया कि इस माह रूस में हुई यूरोपियन कप बॉडी बिल्डिंग में अंतरराष्ट्रीय महासंघ की बैठक हुई। इस बैठक में फैसला किया गया कि बॉडी बिल्डिंग को और ज्यादा लोकप्रिय करने और इस खेल से महिलाओं को जोडऩे के लिए महिलाओं के लिए अलग तरह की स्पर्धाओं का आयोजन किया जाए। महिलाओं के लिए मिस फिटनेस और मिस सेफ का आयोजन करने का फैसला किया गया है। इसके लिए नियम बनाने की प्रकिया प्रारंभ हो गई है। महिलाओं के लिए होने वाली स्पर्धा में पुरुषों की तरह खिलाडिय़ों के मसल्स नहीं देखे जाएंगे। महिलाओं की फिटनेस के साथ उनके फेस को देखकर उनके लिए स्पर्धा का आयोजन होगा। इस तरह की एक स्पर्धा का आयोजन यूरोपियन चैंपियनशिप में किया गया। महिलाओं के लिए होने वाली स्पर्धा में महिलाओं के शरीर का लचीलपन ही उनको सफलता दिलाने में सहायक होगा। इसी के साथ खिलाड़ी की ऊंचाई, उसकी खुबसूरती पर भी विशेष अंक मिलेंगे। 
महिलाओं के लिए होने वाली स्पर्धा के लिए यह तय किया गया कि महिलाएं इसमें ज्यादा से ज्यादा कपड़े पहन सकें इसका प्रावधान होगा। श्री शर्मा ने बताया कि स्पर्धा में मिस यूनिवर्स और मिस वल्र्ड जितने कम कपड़े पहनने की जरूरत नहीं होगी। ऐसा होने से यह बात तय है कि इस खेल की तरफ एशियाई देशों का ध्यान जाएगा। 
भारत में आसान होगी स्पर्धा
श्री शर्मा ने बताया कि जिस तरह की तैयारी अंतरराष्ट्रीय महासंघ कर रहा है उससे यह बात तय है कि भारत में महिला बॉडी बिल्डिंग के लिए रास्ता आसान होगा। उन्होंने कहा कि आज तक इस खेल में कम कपड़ों के कारण ही भारतीय महिलाएं भाग नहीं लेती थीं, लेकिन अब जबकि यह बात तय हो गई है कि इस खेल में महिलाओं को ज्यादा कपड़े पहनने की इजाजत रहेगी तो भारत में जरूर इस खेल की तरफ महिलाएं ध्यान देंगी। उन्होंने बताया कि भारत में भी महिलाओं को इस खेल से जोडऩे के लिए भारतीय संघ की बैठक में फैसला किया जाएगा। श्री शर्मा ने बताया कि वे भारतीय महासंघ में उपाध्यक्ष हैं और रूस में अंतररराष्ट्रीय महासंघ में हुए फैसले की जानकारी वे भारतीय महासंघ को देंगे

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शनिवार, जून 19, 2010

आज आ गई फिर तुम याद

आज आ गई फिर तुम याद
हो गया दिल का गुलशन आबाद।।
छा गई खूशियां दिल के आंगन में
महकने लगी कलियां मन मधुबन में।।
चाहत के अरमान मचलने लगे दिल में
दिल करने लगा मिलने की फरियाद।।
आज आ गई फिर तुम याद
हो गया दिल का गुलशन आबाद।।
दूरियों के दर्द अब मिट जाएंगे
अरमानों के द्वार खुल जाएंगे।।
मन वीणा केतार बजेंगे तब
जब हम तुम फिर मिल जाएंगे।।
फिर न रहेगा मन में कोई अवसाद
आज आ गई फिर तुम याद
हो गया दिल का गुलशन आबाद।।


नोटः यह कविता भी हमारी 20 साल पुरानी डायरी की है। 

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शुक्रवार, जून 18, 2010

1500 पोस्ट के करीब हैं हम

हमारे ब्लाग राजतंत्र के साथ खेलगढ़   को मिलाकर हमारी पोस्ट का आंकड़ा कब का 1400 पार कर गया है। इसी के साथ खेलगढ़ का आंकड़ा 900 के पार हो गया है। बहुत दिनों से सोच रहे थे कि इस पर लिखे लेकिन दूसरे विषयों के कारण इस पर लिखना ही नहीं हो रहा था। वैसे अब हमारी पोस्ट का आंकड़ा 1500 के करीब पहुंच गया है। हमने चर्चाओं के दो ब्लागों ब्लाग 4 वार्ता के साथ ब्लाग चौपाल में ही अब तक 45 पोस्ट लिख ली है। इस समय हमारी पोस्ट का आंकड़ा 1475 तक पहुंच गया है और एक सप्ताह के अंदर ही हम 1500 के पार होंगे।
ब्लाग जगत में हमें एक साल से ज्यादा समय हो गया है और इस समय में हमने लिखने की रफ्तार को कम करने की बजाए बढ़ाने का ही काम किया है। पहले हम राजतंत्र और खेलगढ़ में ही लिखते थे। राजतंत्र की बात करें तो हमारा यही ब्लाग सबसे आगे है। इस समय इस ब्लाग में 500 का आंकड़ा करीब है। इसमें हमने आज की पोस्ट सहित 498 पोस्ट लिखी है। हमारा यह ब्लाग चिट्ठा जगत में 34वें स्थान पर है। इस ब्लाग के जहां 63 समर्थक हैं, वहीं 39560 पाठक इस ब्लाग को देख चुके हैं। अब खेलगढ़ की बात करें तो इस ब्लाग में हमने अब तक 932 पोस्ट लिखी है और हमारा यह ब्लाग 124वें नंबर पर है।
इन दो ब्लागों के बाद हमने चर्चा के पहले ब्लाग के रूप में ब्लाग 4 वार्ता में चर्चा का आगाज किया। इसमें हमने 29 पोस्ट लिखी है। इधर हमने ब्लाग चौपाल में लिखना प्रारंभ किया है। इसमें अब तक हमने 16 पोस्ट लिखी है। कुल मिलाकर अब हम 1500 से महज 25 कदम दूर है और यह दूर महज पांच दिनों में पूरी हो जाएगी ऐसी उम्मीद है।
हमें ब्लाग जगत में जो प्यार और स्नेह मिला है उसके लिए हम अपने ब्लागर मित्रों के साथ पाठकों के भी तहे दिल से आभारी है। संभवत: यह  आप सबका प्यार है जिसके कारण हम लगातार लिखने की रफ्तार को तेज किए जा रहे हैं, वरना ब्लाग जगत में गंदें लोगों की भी कमी नहीं है। ऐसे लोगों ने हमें ब्लाग जगत से अलग करने की कई बार कोशिश की है, कई बार हमारा मन भी विचलित हुआ है, लेकिन हमने ब्लाग जगत से किनारा न करने का फैसला किया है और इस फैसले पर हम हमेशा कायम रहेंगे यह वादा करते हैं।

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गुरुवार, जून 17, 2010

सभी खूबसूरत चेहरे होते नहीं बेवफा

गम की शाम ढ़ल ही जाती है
जख्म दिल के मिटा ही जाती है।।
खुले रखो दिल के दरवाजे तो
फिर नई मंजिल मिल ही जाती है।।
सभी खूबसूरत चेहरे होते नहीं बेवफा
मिल ही जाती है तलाशने से वफा।।
चलता रहता है यूं ही ये सिलसिला
जब तक रहता है जिदंगी का कारवां।। 

नोट-यह कविता हमारी 20 साल पुरानी डायरी की।

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बुधवार, जून 16, 2010

११ अगस्त को छत्तीसगढ़ आएगी कामनवेल्थ की बैटन

कामनवेल्थ की बैटन का अब छत्तीसगढ़ में ११ अगस्त को आगमन होगा। पहले यह यहां पर ८ अगस्त को आने वाली थी। कामनवेल्थ आयोजन समिति ने आज खेल विभाग को इस बात की जानकारी भेजी है कि बैटन रायपुर में ११ अगस्त की शाम को आएगी और १४ अगस्त की सुबह वापस लौट जाएगी। अब बैटन के नए कार्यक्रम के मुताबिक यहां का कार्यक्रम तय किया जाएगा। राजधानी रायपुर के कार्यक्रम में फेरबदल किया जाएगा।
राजधानी में शहीद भगत सिंह चौक से लेकर स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स तक करीब सात किलो मीटर का सफर बैटन १२ अगस्त को तय करेगी।
दिल्ली में इस साल होने वाले कामनवेल्थ खेलों की मशाल यानी बैटन का छत्तीसगढ़ आने का कार्यक्रम बदल गया है। इस बदले हुए कार्यक्रम के मुताबिक अब बैटन कोलकाता से ११ अगस्त की शाम ७.२० बजे किंगफिशर के विमान से रायपुर आएगी। रायपुर में रात को विश्राम के बाद १२ अगस्त को बैटन रिले का आयोजन राजधानी में किया जाएगा। इस दिन राजधानी में करीब सात किलो मीटर की रिले का आयोजन किया जाएगा। इस आयोजन में प्रदेश के राज्यपाल शेखर दत्त के साथ मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह सहित सभी मंत्रियों, महापौर और कुछ विधायकों को शामिल किया गया है। वीआईपी द्वारा जहां रिले का प्रारंभ किया जाएगा, वहीं समापन भी वीआईपी के हाथों होगा। अभी यह पूरी तरह से तय नहीं है कि इसकी वास्तविक रूपरेखा क्या होगी। रिले का प्रारंभ जहां शहीद भगत सिंह चौक से होगा, वहीं समापन स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स के  आउटडोर या इंडोर स्टेडियम में होगा। रिले के प्रारंभ में वीआईपी के बाद बैटन को तय किए गए अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय खिलाड़ी जिनको राज्य के खेल पुरस्कार मिले हैं उनके हाथों में दिया जाएगा। करीब १५ खेल संघों को चिंहित किया गया है। हर खेल संघ के लिए करीब २५० मीटर की दूरी तय की गई है। करीब पांच किलो मीटर का फासला खेल संघों के पदाधिकारियों के साथ खिलाड़ी तय करेंगे। रास्ते में १५ स्थानों पर खेल संघों के लिए पाइंट बनाए जाएंगे जहां पर वे अपने खिलाडिय़ों के साथ रहेेंगे। अंतिम ५०० मीटर में राज्य के दूसरे जिलों से आए खिलाड़ी बैटन लेकर दौड़ेंगे। सबसे अंत में बैटन मुख्यमंत्री के बाद राज्यपाल के हाथों में जाएगी। वैसे इस तय कार्यक्रम में भी कुछ फेरबदल संभव है। अंतिम कार्यक्रम तो अगस्त के पहले सप्ताह मे ंही तय होगा।
खेल संचालक जीपी सिंह ने बताया कि छत्तीसगढ़ में बैटन का आगमन दिल्ली से विमान द्वारा ११ अगस्त को शाम ७.२० बजे होगा। विमानतल से जोरदार स्वागत के बाद उसको यहां लाया जाएगा। चूंकि बैटन का आगमन शाम को हो रहा है ऐसे में उस दिन के लिए पहले से तय कार्यक्रम को रद्द करना पड़ेगा। पहले बैटन ८ अगस्त को सुबह ११ बजे आने वाली थीष ऐसे में उस दिन भी कई कार्यक्रम रखे थे,लेकिन अब उस दिन कोई भी कार्यक्रम संभव नहीं होगा। राजधानी में रिले का आयोजन अब १२ अगस्त को संभवत: सुबह किया जाएगा। पूर्व में यह आयोजन दोपहर को एक से दो बजे के बीच होना था। रिले में करीब चार घंटे का समय लगेगा और फिर समापन कार्यक्रम होगा। रात को सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होंगे।
दूसरे दिन १३ अगस्त को बैटन अपने दल के साथ राजनांदगांव के लिए रवाना होगी। सुबह ८ बजे यहां से रवाना होकर १० बजे राजनांदगांव पहुंचने के बाद वहां पर ११ बजे से १ बजे के बीच रिले का आयोजन होगा। राजनांदगांव में रिले का आयोजन करीब पांच किलो मीटर होगा। वहां से लंच के बाद दल दुर्ग के लिए दो बजे रवाना होकर तीन बजे पहुंचेगा और फिर वहां पर ३.३० बजे रिले का प्रारंभ होगा। रिले का समापन ५.३० बजे होगा। इसके बाद रात में बैटन को भिलाई में ही रखा जाएगा। १४ अगस्त को भिलाई से बैटन को सुबह रवाना किया जाएगा। बैटन दल माना विमान तल जाएगा जहां से सुबह को ८.०५ के विमान से बैटन को दिल्ली रवाना किया जाएगा। बैटन दिल्ली होते हुए हैदराबाद जाएगी।

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मंगलवार, जून 15, 2010

पांच घंटे में ठीक हुआ इंटरनेट

कल दोपहर को जब हम घर खाना खाने के लिए आए तो देखा की इंटरनेट बंद है। चेक किया तो मालूम हुआ कि मॉडम काम नहीं कर रहा है। हमने तुरंत एयरटेल में फोन खटखटाया। उधर से कहा गया कि कल सुबह 10 बजे तक आपका नेट ठीक कर दिया जाएगा। हम परेशान हो गए यार अगर सुबह तक नेट ठीक होगा तो हम सुबह राजतंत्र में पोस्ट लिखने के साथ ब्लाग चौपाल में चर्चा कैसे करेंगे। लेकिन फोन कंपनी ने फुर्ती दिखाई और रात को आठ बजे हमारा नेट ठीक हो गया। हमने अपनी शिकायत तीन बजे की थी। वैसे आज तक ऐसा नहीं हुआ है कि हमें नेट के कारण किसी दिन पोस्ट लिखने से वंचित होना पड़ा है। हम धन्यवाद देते हैं एयरटेल का जिसके कारण हम आज की पोस्ट लिख रहे हैं और चर्चा कर रहे हैं।

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सोमवार, जून 14, 2010

चाहे लगाओ नापंसद के कितने भी चटके- हम ऐसे नहीं हैं जो इनसे भटके

ब्लागवाणी ने ब्लाग जगत को दुश्मनी भुनाने का एक ऐसा हथियार दे दिया है जिसकी गूंज आज पूरे ब्लाग जगत में होने लगी है। अगर हमें लगता है कि हमारी उस ब्लागर से नहीं जमती है तो उनकी अच्छी पोस्ट पर लगा देते हैं नापसंद का चटका। इतना ही नहीं अपने मित्रों के साथ उनकी पोस्ट को नीचा दिखाने का नीच काम करने से भी पीछे नहीं हटते हैं। हमने सोचा था कि हम नापसंद के चटके पर नहीं लिखेंगे, लेकिन हमने देखा कि हमारी एक अच्छी पहल को भी घटिया मानसिकता रखने वाले पचा नहीं पा रहे हैं। ऐसे में हम ऐसी घटिया मानसिकता रखने वालों को बता देना चाहते हैं कि हम नापसंद के चटकों से भटकने वाले प्राणी नहीं हैं।  हमने ब्लाग जगत में भाई-चारा लाने के मकसद से ही एक ब्लाग चौपाल का आगाज किया है, अब इस चौपाल में अपने विपक्षियों की पोस्ट की चर्चा देखकर अगर कोई नापसंद के चटके लगाने का काम करता है तो करता रहे हमारी बला से।
ब्लाग जगत में हमें अब तक सिवाए गुटबाजी के और कुछ नजर नहीं आया है। हमें ऐसी किसी भी गुटबाजी से कोई लेना-देना नहीं रहा है। संभवत: प्रारंभ में हम भी कुछ समय के लिए जरूर भटक गए थे जब कुछ लोगों ने हमारी पोस्ट पर भी गलत-सलत टिप्पणियां की थीं। लेकिन हमने बाद में सोचा कि यार उनकी मानसकिता अपनी जगह है हम क्यों कर उनकी गलत मानसिकता के शिकार हो कर गुटबाजी में शामिल हो जाएं। ऐसे में हमने किसी भी गुट से अपना नाता न रखने का फैसला किया। इस फैसले पर हम अब भी कायम हैं। जब हमने किसी भी गुटबाजी से अलग रहते हुए अपना काम करने का फैसला किया तो सोचा कि चलो यार अब अपनी एक ब्लाग चर्चा का भी आगाज कर लिया जाए। हमने अब तक जितनी भी ब्लाग चर्चाओं को देखा है उन चर्चाओं में हमें पारदर्शिता नजर नहीं आई है। कहीं न कहीं अपने ब्लागर मित्रों का मोह रहा है। वैसे अपने ब्लागर मित्रों का मोह करना गलत नहीं है, लेकिन इसके चलते दूसरी अच्छी पोस्टों को नजरअंदाज करना तो गलत है। ऐसे में हमने सोचा कि हम एक ऐसी चर्चा का आगाज करेंगे जिसमें हमारे लिए कोई दुश्मन नहीं सभी मित्र होंगे। हम यह चर्चा कर भी रहे हैं, लेकिन हमारी यह चर्चा लगता है कि ब्लाग जगत में गंदगी फैलाने वालों को रास नहीं आ रही है, तभी तो चर्चा जैसी पोस्ट में नापसंद के चटके लगा देते हैं। चर्चा में नापसंद का सवाल कहां उठता है। यह बात अलग है कि हम अगर किसी पोस्ट में कुछ लिखते हैं तो हमारे विचारों से कोई सहमत न हो और उस पर नापसंद का चटका लगता है तो बात समझ आती है, लेकिन चर्चा में तो पोस्ट के लिंक रहते हैं, इसमें नापसंद जैसी बात कहां से आ जाती है, यह तो नापसंद का चटका लगाने वाले अपने मित्र ही जानें।
बहरहाल हम एक बात साफ कर देना चाहते हैं कि हम किसी भी तरह से नापसंद के चटकों से भटकने वाले प्राणी नहीं हंै। लगाओ न यार नापसंद के चटके हमारा क्या जाता है। हम तो इतना जानते हैं कि आप नापसंद के चटके लगाकर हमें कुछ देकर ही जा रहे हैं हमारा कुछ लेकर नहीं जा रहे हैं। अगर कोई कुछ देता है तो उसे लेने में क्या बुराई है। फिर यह तो देने वाले की मानसिकता पर निर्भर करता है कि वह क्या दे रहा है। इसी के साथ एक बात और यह कि आप जो भी हमें दे रहे हैं  उसे लेना न लेना तो हमारे ऊपर है न। अगर कोई हमें गाली देता है तो हमें वह गाली तभी लगेगी जब हम लेंगे, जब हम उसे ग्रहण ही नहीं करेंगे तो वह तो उसके पास ही रह जाएगी न। अब यह बात अलग है कि नापसंद के चटकों के साथ ऐसा नहीं हो सकता है क्योंकि ब्लागवाणी ने एक खुला खेल खेलने का मौका घटिया मानसिकता वालों को दे दिया है। वैसे देखा जाए तो इसमें ब्लागवाणी वालों की भी गलती नहीं है। उनकी मानसिकता तो एक स्वस्थ्य परंपरा की थी। अगर आप किसी की पोस्ट में दिए गए विचारों से सहमत नहीं हंै तो आप जरूर नापसंद का चटका लगा दें, लेकिन आप अगर र्दुभावनावश ऐसा कर रहे हैं तो इसके लिए ब्लागवाणी वाले भी क्या कर सकते हैं। खैरे जिसकी मानसिकता खराब होगी उससे अच्छे काम की उम्मीद कैसे की सकती है। हमें तो बस अपना काम करना है और हम जानते हैं कि अच्छे काम का नतीजा हमेशा अच्छा आता है, भले नतीजा सामने आने में देर लगे।

चलते-चलते ये चंद पंक्तियां पेश हैं-

हम इंतजार करेगा तेरा कयामत तक
खुदा करे कि कयामत हो और
खराब मानसिकता वाले
ब्लागर मित्र भी सुधार जाए 

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रविवार, जून 13, 2010

अनिल पुसदकर के सम्मान देने से अभिभूत हूं

प्रेस क्लब रायपुर में हम लोग कल दोपहर को छत्तीसगढ़ खेल पत्रकार संघ का गठन करने के लिए बैठे थे। इस बैठक में हम लोगों ने प्रेस क्लब के अध्यक्ष भाई अनिल पुसदकर को भी विशेष रूप से आमंत्रित किया था। हम लोगों की मंशा प्रारंभ से ही उनको अपने संघ का मुख्य संरक्षक बनाने की थी। अनिल जी संघ के मुख्य संरक्षक तो जरूर बने, लेकिन इस शर्त पर की हम यानी राजकुमार ग्वालानी भी उनके साथ मुख्य संरक्षक रहेंगे। उनकी बात को हमारे साथ सबके पास मानने के अलावा कोई चारा नहीं था क्योंकि हम सभी अनिल जी का बहुत सम्मान करते हैं। लेकिन उन्होंने जैसा सम्मान हमें कल दिया उससे हम अभिभूत हैं। वैसे अनिल जी ने आज तक किसी को सम्मान देने में कमी नहीं की है।
छत्तीसगढ़ में पिछले एक दशक से हम लोग छत्तीसगढ़ खेल पत्रकार संघ बनाने की कवायद कर रहे हैं। लेकिन कहते है न हर अच्छे काम में टांग खींचने वालों की कमी नहीं रहती है। ऐसे में यह मामला लगातार  टलते जा रहा था। लेकिन इस बार हम लोगों ने सात सदस्यों का एक मंडल बनाकर अंतत: फर्म सोसायटी से संघ का पंजीयन करवा ही लिया। इसके बाद संघ का नियमानुसार गठन करने ही कल हम लोग प्रेस क्लब रायपुर में बैठे थे। इस बैठक में हम लोग पदाधिकारियों का चुनाव निर्विरोध करना चाहते थे। वैसे यह सब तय भी था। जब बैठक प्रारंभ हुई तो सबसे पहले अनिल जी को मुख्य संरक्षक बनाने का प्रस्ताव आया। इस पर अनिल जी ने अपना जो मत व्यक्त किया उसने हमारे साथ सभी को अभिभूत कर दिया। अनिल जी ने कहा कि वे मुख्य संरक्षक बनने के लिए तैयार हैं, लेकिन मेरे साथ राजकुमार ग्वालानी को भी मुख्य संरक्षक ही बनाना पड़ेगा। उन्होंने खुले दिल से यह स्वीकार किया कि उन्होंने कभी खेल पत्रकारिता नहीं की है, ऐसे में वे सोचते हैं कि संघ का मुखिया एक ऐसा पत्रकार हो जिनका हमेशा से खेल पत्रकारिता से नाता रहा है। उन्होंने कहा कि मैं राजकुमार ग्वालानी को 20 साल से भी ज्यादा समय से खेल पत्रकारिता करते देख रहा हूं। इसने कभी इससे नाता नहीं तोड़ा है। ऐसे में संघ का पहला मुखिया तो राजकुमार को ही होना चाहिए।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि हमने खेल पत्रकारिता से कभी नाता नहीं तोड़ा है। खेल पत्रकारिता करते हुए हमें करीब 25 साल हो रहे हैं। हम बता दें कि हम जब दैनिक देशबन्धु में तीन साल तक समाचार संपादक थे, तब भी हमने खेल पत्रकारिता से नाता नहीं तोड़ा था।
बहरहाल अनिल जी ने हमें जो सम्मान दिया उससे हम तो अभिभूत हैं ही, हमारे साथी खेल पत्रकार भी अभिभूत हैं। अंतत: अनिल जी की बात को मानकर हमें भी संघ का उनके साथ मुख्य संरक्षक बनना पड़ा।  इसके बाद संघ का गठन किया गया और संघ का अध्यक्ष सुशील अग्रवाल को सचिव कमलेश गोगिया को तथा कोषाध्यक्ष चंदन साहू का और उपाध्यक्ष केएन किशोर को बनाया गया।

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शनिवार, जून 12, 2010

खिलाड़ी है मेरी जान

प्रदेश के बिलासपुर जिले में एक गांव शिवतराई ऐसा है जहां से  दो दर्जन से ज्यादा तीरंदाजी के राष्ट्रीय खिलाडिय़ों को तैयार करने का काम कोच इतवारी राम ने किया है। इतवारी पर खेलों का ऐसा जुनून है कि वे खिलाडिय़ों को ही अपना जान समझते हैं। खिलाडिय़ों पर वे अपना वेतन क्या सब कुछ निछावर कर देते हैं। अपने गांव के खिलाडिय़ों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए वे उनको लगातार प्रशिक्षण देते हैं। खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण देने के लिए ही उन्होंने एक माह की छुट्टी ली है। इतवारी द्वारा तैयार किए गए खिलाडिय़ों में से सात खिलाडिय़ों ने राष्ट्रीय स्तर पर पदक भी जीते हैं। इन खिलाडिय़ों में से एक खिलाड़ी संतराम को राज्य का प्रवीरचंद भंजदेव पुरस्कार मिला है। इसी से साथ उन्होंने कबड्डी में भी ४० राष्ट्रीय खिलाड़ी दिए हैं।
राजधानी रायपुर में तीरंदाजी के खिलाडिय़ों को एक माह तक प्रशिक्षण देने वाले इस प्रशिक्षक की तारीफ करते हुए प्रदेश संघ के सचिव कैलाश मुरारक थकते नहीं हंै। वे बताते हैं कि इतवारी जैसा कोच मिलना किसी भी खेल के खिलाडिय़ों के लिए किस्मत की बात है। इतवारी से जब रूबरू हुए तो उन्होंने बताया कि वे कैसे तीरंदाजी से जुड़े। वे बताते हैं कि सरगुजा में वे १०वीं बटालियन में प्रधान आरक्षक हैं। वे खेल विभाग के लिए कबड्डी की टीमें लेकर जाते थे। कबड्डी से जुड़े रहने के कारण वे अपने गांव शिवतराई में खिलाडिय़ों को इस खेल से जोड़े हुए थे। कबड्डी में उन्होंने अपने गांव से ४० राष्ट्रीय खिलाड़ी निकाले। वे बताते हैं कि एक बार खेल विभाग में उनके मुलाकात तीरंदाजी के कोच टेकलाल कुर्रे से हुई। उनसे ही उनको मालूम हुआ कि प्रदेश सरकार राज्य के तीरंदाजों को एक लाख का राज्य पुरस्कार देती है। ऐसे में उनके मन में विचार आया कि क्यों न अपने गांव के गरीब खिलाडिय़ों को तीरंदाजी से जोड़ा जाए ताकि खिलाडिय़ों को राज्य के पुरस्कार मिल सके। ऐसे में उन्होंने सबसे पहले श्री कुर्रे से खुद तीरंदाजी के गुर सीखे इसके बाद लग गए वे अपने गांव के खिलाडिय़ों को तैयार करने में।
इतवारी ने एक सवाल के जवाब में बताया कि वे अब तक अपने गांव से २६ राष्ट्रीय खिलाड़ी निकाल चुके हैं। इन खिलाडिय़ों से एक खिलाड़ी संतराम को जहां राज्य का एक लाख का प्रवीरचंद भंजदेव पुरस्कार मिल चुका है, वहीं संतराम सहित सात खिलाड़ी जिनमें कीर्ति पोर्ते, मीनी मरकाम, खेम सिंह, भागवत और प्रभु शामिल हैं राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुके हैं। इतवारी कहते हैं कि ऐसे में जबकि अपने राज्य को ३७वें राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी मिली है तो उनका ऐेसा सोचना है कि वे चाहते हैं कि उनके  गांव के ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ी प्रदेश की टीम से राष्ट्रीय खेलों में खेलकर राज्य के लिए पदक जीतने का काम करें। वे अभी से अपने गांव को खिलाडिय़ों को तैयार करने का काम कर रहे हैं। उन्होंने पूछने पर बताया कि अब वे एक माह की छुट्टी लेकर अपने गांव जा रहे हैं और वहां पर खिलाडिय़ों को २५ जून से प्रशिक्षण देने का काम करेंगे।
इतवारी के बारे में संघ के सचिव कैलाश मुरारका ने बताया इतवारी में अपने खेल के प्रति इतना जुनून है कि अपने वेतन का ज्यादातर हिस्सा खिलाडिय़ों पर खर्च कर देते हैं। एक बार एक खिलाड़ी की मदद करने के लिए उन्होंने अपनी सायकल बेच दी थी। इतवारी पूछने पर कहते हैं कि उनके जिन सात शिष्यों ने राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते हैं उनके या तो पिता नहीं है या फिर मां नहीं है। ऐसे में उन खिलाडिय़ों की मैं हर तरह से मदद करता हूं।

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शुक्रवार, जून 11, 2010

एक संपादक ने किया पत्रकारिता को शर्मसार

पत्रकारिता जगत के इतिहास का कल का दिन एक काला दिन था। काला दिन इसलिए कि एक संपादक की करतूत के कारण सारा पत्रकारिता जगत शर्मसार हो गया है। कम से कम हमारे ढाई दशक की पत्रकारिता में तो हमने ऐसा न कभी देखा और न सुना है। बात दरअसल यह है कि लखनऊ से प्रकाशित एक राष्ट्रीय दैनिक ने अपने अखबार के संपादक को ही बर्खास्त करने की खबर पहले पेज पर लगाई और उन पर आरोप लगा आर्थिक के साथ चारित्रिक। वास्तव में यह दुखद घटना है। हमारे लिए यह घटना और भी दुखद इसलिए है कि हमने उन संपादक महोदय के साथ एक साल काम किया है। हमें लगता था वे बड़बोले हैं, लेकिन हम यह नहीं जानते थे कि वे इतने ज्यादा गिरे हुए हैं। एक बात तो जरूर हमें मालूम हो गई थी कि वे पैसों के मामले में कैसे है। एक बात और यह कि वे हमेशा ईमानदारी की बात करते थे। यह बात तो तय है कि जो इंसान खुद को ईमानदार बताने का ढिढ़ोरा पीटता है, वह दरअसल में ईमानदार होता नहीं है।
कल हमें एक पत्रकार मित्र ने बताया कि हम जिन संपादक के साथ काम कर चुके हैं उनको उनके ही अखबार ने बर्खास्त कर दिया है। संपादक के बर्खास्त होने पर हमें हैरानी नहीं हुई, लेकिन हमारे मित्र ने जब यह बताया कि उनको बर्खास्त करने की खबर भी अखबार ने लगाई है तो जरूर हैरानी हुई। हमारे ख्याल से हमने अपने पत्रकारिता जीवन के 25 सालों के लंबे सफर में ऐसा वाक्या पहले कभी नहीं देखा है कि किसी अखबार ने अपने अखबार के संपादक को ही बर्खास्त किया हो और उनके खिलाफ खबर भी लगाई हो और वह भी पहले पेज पर। लेकिन ऐसा कल हुआ है। हमारे लिहाज से तो यह वास्तव में पत्रकारिता इतिहास का एक काला दिन है, जब किसी संपादक पर आर्थिक के साथ चारित्रिक आरोप लगा है और उसे सार्वजनिक किया गया है। इस घटना से अपना पत्रकारिता जगत शर्मसार हो गया है।
हमने जब उस अखबार के पहले पेज पर खबर देखी को हमें यकीन ही नहीं हुआ कि ये क्या हो गया है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि पत्रकारिता जगत भी यौन शोषण जैसे मामलों से अछूता नहीं है, लेकिन कोई मामला इतना ज्यादा हो जाएगा कि उसके लिए एक संपादक को अपना पद खोने के साथ अखबार की सुर्खियों में स्थान मिल जाएगा, यह सोचा नहीं था। वैसे जो हुआ है वह अच्छा हुआ है। किसी के साथ भी खिलवाड़ करने वालों को बेनकाब होना ही चाहिए, फिर चाहे वह किसी अखबार का संपादक ही क्यों न हो। हम तो उस अखबार के मालिक की हिम्मत की दाद देते हैं जिन्होंने अपने संपादक के कारनामों को सार्वजानिक करके का साहस दिखाया है। वास्तव में यह बहुत बड़ी बात है। हमारा ऐसा मानना है कि अखबार ने अगर अपने संपादक पर चारित्रक आरोप लगाया है तो जरूर उसके पास कोई प्रमाण होगा।
बहरहाल हम इसे अपना सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य कि हम उन संपादक महोदय को जानते हैं। उनके साथ हमें एक साल काम करने का मौका मिला है। जब उनसे हमारी पहली मुलाकात हुई थी, तब हमें एक बात अच्छी तरह से समझ आ गई थी कि वे बहुत बड़बोले हैं। इसी के साथ एक और बात यह भी समझ आई थी कि ईमानदारी की बातें करने वाला यह इंसान ईमानदार नहीं हो सकता है। और यह बात आगे चलकर उस समय साबित भी हो गई थी जब वे यहां का अखबार छोड़कर न सिर्फ भागे थे बल्कि कई लोगों से रुपए लेकर गए थे। यानी कई लोगों को चुना लगाकर गए थे। हमें उस समय बहुत दुख हुआ था जब हमें मालूम हुआ था कि वे एक गरीब पत्रकार के पांच हजार रुपए लेकर चले गए थे। इस पत्रकार का कसूर इतना था कि उसने अपने संपादक पर भरोसा करके उनका मोबाइल अपने पैसों से बनवा कर दिया और पैसे वापस लेने के लिए उनको भारी पापड़ बेलने पड़े। कहते हैं कि इन दुनिया में जो जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही भुगतना पड़ता है तो उन संपादक महोदय ने भी जैसे कर्म किए उसका खामियाजा उनको भुगतना पड़ा है, लेकिन यह पत्रकारिता जगत के लिए अच्छा संकेत नहीं है। हमारा ऐसा मानना है कि ऐसे लोगों को पत्रकारिता जगत से बाहर कर देना चाहिए जिनके चरित्र पर सवाल उठते हैं, एक बार आर्थिक गड़बड़ी करने वाले को इसलिए बर्दाश्त किया जा सकता है क्योंकि आज अपना पूरा देश सिर से लेकर पैर तक भ्रष्टाचार में डूबा है, लेकिन चारित्रिक रूप से खराब इंसान को बर्दाश्त करना और वो भी पत्रकारिता जैसे पेश में गलत बात है। हम ऐसे कई संपादकों और पत्रकारों को जानते हैं जिन्होंने अपने पद का गलत फायदा उठाते हुए साथ काम करने वाली महिला पत्रकारों का हमेशा शोषण किया है। इसी के साथ हम ऐसी महिला पत्रकारों को भी जानते हैं जिन्होंने शार्टकट में सफलता पाने के लिए अपने बॉस के साथ अंतरंग रिश्ते बनाकर सफलता पाने का काम किया है। इसी के साथ हम  कुछ ऐसी महिला पत्रकारों को भी जानते हैं जिन्होंने शार्टकट के ऑफर को लात मारते हुए अपनी नौकरी को भी लात मारी है। यह सब किस्से फिर कभी बताएंगे फिलहाल तो एक संपादक की करतूत पर पत्रकारिता शर्मसार है।

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गुरुवार, जून 10, 2010

फीफा निखरेगा फुटबॉलरों को

अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल फेडरेशन यानी फीफा की एक योजना के तहत छत्तीसगढ़ के तीन जिलों के फुटबॉलरों को निखारने का काम किया जाएगा। चुने गए तीन जिलों में स्कूल स्तर की सब जूनियर स्पर्धा का आयोजन किया जाएगा। इस आयोजन का सारा खर्च पेय पदार्थ बनाने वाली एक कंपनी वहन करेगी। यह योजना देश के उन राज्यों में लागू की जा रही है, जहां पर फुटबॉल का स्तर अच्छा नहीं है।
यह जानकारी देते हुए जिला फुटबॉल संघ के सचिव दिवाकर थिटे के साथ संयुक्त सचिव मुश्ताक अली प्रधान ने बताया कि भारत में फुटबॉल की स्थिति को देखते हुए फीफा ने भारतीय फुटबॉल संघ के साथ मिलकर भारत में फुटबॉल का स्तर बढ़ाने की एक योजना बनाई है। इस योजना में देश के उन राज्यों को शामिल किया गया है जिन राज्यों में फुटबॉल का स्तर अच्छा नहीं है। ऐसे राज्य में छत्तीसगढ़ का नाम भी शामिल है। छत्तीसगढ़ को इस योजना से जोड़कर यहां के तीन जिलों रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग को इस योजना में शामिल किया गया है। इन जिलों जिला स्तर की फुटबॉल स्पर्धा का आयोजन किया जाएगा। इसमें जिले के सभी विकासखंड़ों के स्कूलों को शामिल किया गया है। सब जूनियर वर्ग की इस स्पर्धा में पहले चरण में बालक वर्ग को रखा गया है।
तीनों जिलों में जिला स्पर्धा के बाद राज्य स्पर्धा का आयोजन किया जाएगा। राज्य स्पर्धा में जिले की विजेता टीम ही शामिल होगी। विजेता टीमों के बीच लीग मैच के बाद राज्य की विजेता टीम को राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलने का मौका मिलेगा।
रायपुर में अगस्त में होगी स्पर्धा
श्री प्रधान ने बताया कि जहां तक रायपुर जिले की स्पर्धा का सवाल है तो यहां पर जिला फुटबॉल संघ अगस्त के दूसरे सप्ताह में आयोजन करेगा। यह आयोजन भव्य होगा। रायपुर के सभी १५ विकासखंड़ों से टीमों को बुलाया जाएगा। रायपुर में कम से कम ८० स्कूलों की टीमों के शामिल होने की संभावना है। उन्होंने बताया कि जब रायपुर में हमारा शेरा क्लब अंतर स्कूल फुटबॉल का आयोजन करता है तो इसमें ६० से ज्यादा टीमें शामिल होती है। उन्होंने बताया कि रायपुर में यह आयोजन सप्रे स्कूल के साथ स्पोट्र्स काम्पलेक्स के मैदान में किया जाएगा। 

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बुधवार, जून 09, 2010

क्या हैं आपके विचार


यहां कोई नहीं करता किसी से प्यार
धोखे और फरेब का सजा है बाजार
हर किसी को है बस पैसों से ही प्यार
क्या हैं इस बारे में आपके विचार
हमें जरूर बताएं आप सभी
ब्लाग जगत के दोस्त-यार

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मंगलवार, जून 08, 2010

एक पैग और

जिंदगी में जब भी कदम लडख़ड़ाए
और आप गिर भी जाए तो
डरना मत
हिम्मत और हौसले से अपने को
फिर से खड़ा करना
और आवाज देना वैटर एक पैग और

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सोमवार, जून 07, 2010

आएंगे तब जब साथ चलोगी

जी भर कर देख लो आज
फिर न हमें देख पाओगी।।
चले जाएंगे हम तो कल
हमें देखने को तरस जाओगी।।
बहुत तडफ़ाया है हमें
अब तडफ़ का अहसास जानोगी।।
दूर हो जाएंगे जब हम
हमारे प्यार को पहचानोगी।।
पास थे तो बहुत सताया
अब किसे तुम सताओगी।।
जुदा हो जाएंगे जब हम
तुम हमें याद करके रोओगी।।
पास नहीं आएंगे हम
तुम दीवारों से सर फोड़ोगी।।
फिर भी नहीं आएंगे हम
जब हाथ तुम जोड़ोगी।।
आएंगे हम तभी तुम्हारे पास
साथ जब तुम हमारे चलोगी।।

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रविवार, जून 06, 2010

क्या पापा का कोई बाप नहीं है ब्लाग जगत में

ब्लाग जगत के कई ब्लागर मित्र किसी पापा नाम के एक ऐसे गंदे इंसान से परेशान हैं जो इंसान किसी के भी ब्लाग में गंदगी करके चल देता है। यह गंदा इंसान हमारे ब्लाग में भी आया, हमने तो उसे कह दिया है कि ऐसे गंदे लोगों को मुंह लगाना हम पसंद नहीं करते हैं जिनकी कोई जात और औकात का पता न हो। अगर दम है तो अपनी औकात के साथ सामने आए फिर बात करें। इसके बाद भी यह गंदा इंसान एक फिर से हमारे ब्लाग में आया। हमने फिर से उसे दुत्कारने के साथ ललकारा कि औकात है तो अपने सही वजूद के साथ सामने आए। हम तो यह पता लगाने की कोशिश में हैं कि आखिर यह गंदा इंसान कहां का है। हम तकनीकी रूप से उतने जानकार नहीं हंै। ऐसे में हम ब्लागर मित्रों से यह पूछ रहे हैं कि क्या इस पापा का कोई बाप अपने ब्लाग जगत में नहीं है जो यह पता लगा सके कि आखिर यह गंदा इंसान कौन है। इसके पहले हमारे ब्लाग में कोई तहसीलदार नाम से आता था, इसका पता हमने लगा लिया था। पता चलने के बाद इसका आना बंद हो गया तो अब एक नए नाम से कोई गंदगी फैलाने का काम कर रहा है। इस गंदगी फैलाने वाले इंसान को रोकना जरूरी है। इसको रोकने का काम कौन कर सकता है यह काम, जरूर बताए। 

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शनिवार, जून 05, 2010

हमने तो भगवान को बेदिल ही देखा है

इंसानों की बस्ती में भी तंहा हैं हम
वो इसलिए की सबसे जुदा हैं हम
हमें सताते हैं सबके गम
हो जाती हैं हमारी आंखे नम
दुनिया में इतना दर्द देखा है
अपना दर्द बहुत कम लगता है
कहते हैं मर्द को दर्द नहीं होता है
लेकिन हमने ऐसा मर्द नहीं देखा है
जिसके दिल में दर्द न हो
ऐसा दिल भी हमने नहीं देखा है
न जाने क्यों दिल दिया है भगवान ने
हमने तो भगवान को बेदिल ही देखा है
भगवान के पास होता गर दिल
तो दिलों का हाल समझते
न फिर टूटता कोई दिल
और न होती किसी को मुश्किल

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शुक्रवार, जून 04, 2010

भाई-चारे का लेकर संदेश-हम कर रहे हैं ब्लाग चौपाल पेश

मित्रों
बहुत समय से मन में विचार था कि ब्लाग जगत में ब्लागरों की एक ऐसी चौपाल लगाई जाए जिसमें कहीं कोई मतभेद और गुटबाजी न हो। इस विचार के साथ हमारी श्रीमती अनिता ग्वालानी ने सुझाव दिया कि हम लोग मिलकर एक चर्चा मंच बनाएं। हमने इस मंच को बनाने का जिम्मा उनको दिया और उन्होंने यह मंच काफी पहले से तैयार कर लिया था, पर समय न मिल पाने के कारण इसको प्रारंभ करने का काम नहीं हो रहा था। लेकिन अब इसको हम आज से प्रारंभ कर रहे हैं। हम वादा करते हैं कि इस ब्लाग-चौपाल   में हम उन सभी ब्लागों को शामिल करने का प्रयास करेंगे जो किसी के भी हों। हमें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि यह ब्लाग इस गुट का है तो वह ब्लाग उस गुट का है। हम जब चर्चा करने बैठेंगे तो हमें इस बात से कोई सरोकार नहीं रहेगा। हम बता दें कि हमारा ब्लाग चौपाल सजाने का मतलब ब्लाग बिरादरी में भाई-चारे का संदेश देना है। अब इसमें हम कहां तक सफल होते हैं यह वक्त बताएगा। हमने ब्लाग चौपाल सजाने के लिए बहुत से ब्लागों को अपने साथ जोड़ा है ताकि चर्चा करने में आसानी हो। आगे भी लगातार ब्लाग जोडऩे का काम किया जाएगा। एक दिन में सभी ब्लागों को लेना संभव नहीं रहेगा। लेकिन इतना वादा करते हैं कि हम किसी भी ब्लाग को इसलिए नहीं छोड़ेंगे कि यह तो उस गुट का और वह हमारे साथियों के गुट में नहीं है। हमारा कोई गुट नहीं है। हमने अपनी पत्नी का साथ लेकर यह ब्लाग प्रारंभ किया है। हम इस ब्लाग में उसी को जोड़ेंगे जिनके हमसे विचार मिलेंगे, अन्यथा हम और हमारी श्रीमती जी ही चर्चा को अंजाम देंगे। आशा करते हैं हमारे ब्लाग चौपाल को आप सबका प्यार और स्नेह मिलेगा।
इसी उम्मीद के साथ आप सबका मित्र
राजकुमार ग्वालानी

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गुरुवार, जून 03, 2010

पांच माह में 500 पोस्ट

नए साल 2010 में हमने अपने ब्लागों में पांच माह में करीब पांच सौ पोस्ट लिख डाली है। इस समय हमारे ब्लाग राजतंत्र और खेलगढ़ के साथ अगर ब्लाग 4 वार्ता को मिला दिया जाए तो 1400 पोस्ट का आंकड़ा भी पार हो गया है।
हमने ब्लाग जगत में पिछले साल फरवरी से कदम रखा था। इसके बाद से हम इसमें ऐसे रमे हैं कि खुशी हो या गम हम ब्लाग में पोस्ट लिखने ने चूकते नहीं हंै। अब तो ब्लाग हमारे लिए एक आदत है। इसके बिना मजा नहीं आता है। हमें लिखने का ऐसा जनुून सवार हुआ है कि हमने नए साल 2010 में पांच माह में करीब 500 पोस्ट लिख डाली है। इन पोस्टों में सबसे ज्यादा पोस्ट खेलगढ़ में 310 लिखी है। इसके बाद राजतंत्र में हमने 156 पोस्ट लिखी है। इसी के साथ हमने ब्लाग 4 वार्ता में 30 पोस्ट लिखी है। कुल मिलाकर हमने 496 पोस्ट आज की तारीख तक लिख ली है। अब जहां तक हमारे ब्लागों में अब तक की पोस्ट का सवाल है तो हमने अब तक 1400 से ज्यादा पोस्ट लिख डाली है। 1378 पोस्ट खेलगढ़ और राजतंत्र में लिखी है। खेलगढ़ में 895 पोस्ट, राजतंत्र में 483 पोस्ट और ब्लाग 4 वार्ता में 30 पोस्ट लिखी है। हमारी पोस्टों को ब्लाग बिरादरी के ब्लागरों के साथ पाठकों जो प्यार और स्नेह दिया है उसके लिए हम उनके आभारी है।

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बुधवार, जून 02, 2010

क्या करें कोई तो बताए

हमारे एक मित्र ने हमसे एक सवाल किया है जो हम यहां अपने ब्लागर मित्रों से पूछ रहे है- 

सवाल है- जब इंसान हर तरफ से निराश हो जाए और उसका भगवान पर से भी विश्वास उठ जाए तो उसे क्या करना चाहिए।

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मंगलवार, जून 01, 2010

समय देने से मिलेगी सफलता

छत्तीसगढ़ के टेबल टेनिस खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण देने आए बंगाल के कोच तन्मय डे का मानना है कि छत्तीसगढ़ के खिलाडि़य़ों में दम-खम की कमी है। राष्ट्रीय स्तर पर सफलता पाने के लिए मैदान में ज्यादा से ज्यादा समय देना होगा।
छत्तीसगढ़ टेबल टेनिस संघ ने प्रदेश के खिलाडिय़ों को निखारने के लिए बंगाल के कोच तमन्य डे को यहां बुलाया है। वे यहां पर खिलाडिय़ों को १५ दिनों तक प्रशिक्षण देंगे। श्री डे ने आज शाम से सप्रे स्कूल के टेबल टेनिस हॉल में खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया। पहले ही दिन खिलाडिय़ों से बात करने और उनको देखने के बाद श्री डे ने बता दिया कि छत्तीसगढ़ के खिलाडिय़ों में दम-खम की कमी है। इसका कारण उन्होंने बताया कि यहां के खिलाड़ी मैदान में कम समय दे पाते हैं। वे कहते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर सफलता पाने के लिए उतना समय पर्याप्त नहीं है जितने यहां के खिलाड़ी देते हैं। उनको जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी शाम के समय ही दो से तीन घंटे अभ्यास कर पाते हैं। श्री डे का कहना है कि कम से कम चार घंटे सुबह और चार घंटे शाम को अभ्यास करने से ही राष्ट्रीय स्तर पर सफलता मिलेगी। उन्होंने पूछने पर बताया कि १५ दिनों का समय पर्याप्त है इतने समय में वे खिलाडिय़ों को सीखा कर जाएंगे उनको अगर उन्होंने साल भर नियमित जारी रखा तो उनको सफलता जरूर मिलेगी।
राष्ट्रीय स्तर पर कई बार खेलने वाले श्री डे पिछले तीन साल से प्रशिक्षण दे रहे हैं। वे कई राज्यों में खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण देने जा चुके हैं। वे बताते हैं कि बंगाल के दो क्लबों में भीव वे नियमित प्रशिक्षण देकर खिलाड़ी तैयार करने का काम करते हैं।
इधर छत्तीसगढ़ के कोच विनय बैसवाड़े कहते हैं कि ज्यादातर खिलाड़ी स्कूलों- कॉलेजों के हैं। अगर स्कूलो-कॉलेजों में उनको आने-जाने के समय में छूट मिल तभी खिलाड़ी मैदान में ज्यादा समय दे पाएंगे। इसके लिए सरकार को पहल करनी होगी।

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