राजनीति के साथ हर विषय पर लेख पढने को मिलेंगे....

सोमवार, जून 21, 2010

भटक जाते हैं कदम-जब साथ न दे हमदम


भटक जाते हैं कदम
जब साथ न दे हमदम
फिर तो रहते हैं
जिंदगी में गम ही गम
गम मिटाने लोग पीते हैं रम
लेकिन गम को मिटाने कहां होता है
रम में भी इतना दम
इसलिए कहते हैं हम
कभी भी प्यार न करो
अपने हमदम से कम
ऐसा न हो कि प्यार कम होने से
निकल जाएं आपके हमदम का दम
जब वादा किया है तो
साथ निभाओ उम्र भर सनम
जन्म-जन्म न सही
ठीक कर लो अपना यही जनम

6 टिप्पणियाँ:

Unknown सोम जून 21, 08:40:00 am 2010  

बहुत सटीक लिखा है आपने

36solutions सोम जून 21, 08:49:00 am 2010  

बढि़या कविता, डायरी के पन्‍ने ऐसे ही सामने लाते रहें.

राजकुमार ग्वालानी सोम जून 21, 09:27:00 am 2010  

संजीव जी,
यह कविता डायरी से नहीं ली है आज ही लिखी है।

कडुवासच सोम जून 21, 09:30:00 am 2010  

...क्या बात है ... बिलकुल नई कविता, प्रसंशनीय भावपूर्ण रचना,बधाई!!!!

निर्मला कपिला सोम जून 21, 11:27:00 am 2010  

जब वादा किया है तो
साथ निभाओ उम्र भर सनम
जन्म-जन्म न सही
ठीक कर लो अपना यही जनम
बिलकुल सही बात है आभार्

Unknown मंगल जून 22, 01:19:00 am 2010  

अच्छी कविता है
जब कभी इंसान को दुसरे की थाली में घी ज्यादा नजर आता है और गलती कर बैठता है। लेकिन चिंतन करने बाद समझ में आता है कि वह गलत कर रहा है तब ऐसी कविता का जन्म होता है।

कहीं मै गलत तो नहीं हूं?
जरा बताना।

Related Posts with Thumbnails

ब्लाग चर्चा

Blog Archive

मेरी ब्लॉग सूची

  © Blogger templates The Professional Template by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP