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शनिवार, जुलाई 03, 2010

वो हमारे पीछे खड़े मुस्कुराते रहे


प्यार के इन टेड़े रास्तों पर हम
कभी रोते तो कभी मुस्कुराते रहे।।
जानते हुए भी खतरनाक रास्तों पर
हम अपने कदम बढ़ाते रहे।।
शहर-शहर अजनबी बन हम
उनको तलाशते रहे।।
हर किसी के दरवाजे को
उनका घर समझ खटखटाते रहे।।
गलियों की खाक खाकर
उनको हर जगह पुकारते रहे।।
थककर चूर हुए तो पता चला
वो हमारे पीछे खड़े मुस्कुराते रहे।।

3 टिप्पणियाँ:

संगीता स्वरुप ( गीत ) शनि जुल॰ 03, 09:33:00 am 2010  

बहुत बढ़िया....आपकी यह रचना पढ़ कर याद आ गया वो शेर जो मेरे महबूब पिक्चर में जॉनी वाकर सुनाते हैं...

जिनको हम ढूँढते हैं गली गली
वो हमारे घर के पिछवाड़े मिली.

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