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सोमवार, जुलाई 12, 2010

सपनों की शहजादी

मेरी कल्पना में
मेरे सपनों की शहजादी
सुंदरता की ऐसी देवी
जो सौन्दर्य को भी लजा दे
गोरे मुखड़े पर उभरने वाली आभा
मानो शीशे पर
भास्कर का धीमा प्रकाश
साथ में
माथे पर चांद सी चमकती बिंदियां
नयन ऐसे
मानो मछलियां
अधर इतने मधुर
मानो कोमल गुलाब
की दो पंखुडियां
आपस में आलिंगन कर रही हों
काली कजरारी पलकें
अपनी तरफ आकर्षिक करती
बिखरी हुईं लटें
मानो घने काले बादल हों

(यह कविता 20 साल पुरानी डायरी से ली गई है)। 

6 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari सोम जुल॰ 12, 08:35:00 am 2010  

20 साल पहले भी सटीक कविता लिखते थे आप तो!!

sanu shukla सोम जुल॰ 12, 08:55:00 am 2010  

बहुत ही खूबसूरत कविता है भाई साहब

राजकुमार सोनी सोम जुल॰ 12, 12:26:00 pm 2010  

अरे वाह ग्वालानी जी छा गए आप तो

M VERMA सोम जुल॰ 12, 08:33:00 pm 2010  

बहुत सुन्दर शब्दचित्र
सुन्दर रचना

सूर्यकान्त गुप्ता मंगल जुल॰ 13, 12:36:00 am 2010  

प्रकृति सौन्दर्य अद्भुत!

दीपक 'मशाल' मंगल जुल॰ 13, 05:25:00 am 2010  

पुरानी है लेकिन है पुरानी वाइन की तरह..

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