राजनीति के साथ हर विषय पर लेख पढने को मिलेंगे....

गुरुवार, जुलाई 29, 2010

ऐसे लोगों की तो सरे आम पिटाई होनी चाहिए

स्कूली खेलों का कितना बुरा हाल रहता है यह बताने वाली बात नहीं है। स्कूली खेलों में तो कई स्कूलों के खेल शिक्षक खुले आम मदिरापान करके वहां पहुंच जाते हैं जहां पर बालिकाओं के मैच होते रहते हैं। और ऐसे लोगों की उस समय हरकतें देखने लायक रहती हैं जब वे बालिका खिलाडिय़ों को अपने पास बुलाकर बेटा-बेटा कहते हुए उनके शरीर में इधर-उधर हाथ फिराने लगते हैं। यहां पर जहां ऐसे लोगों की ऐसी हरकतों पर गुस्सा आता है, वहीं यह सोचकर घिन भी आती है कि ये लोग जिन खिलाडिय़ों को बेटा-बेटा कह रहे हैं उनके साथ कैसी ओछी हरकतें कर रहे हैं और बाप-बेटी के रिश्ते को भी कलंकित कर रहे हैं। तब ऐसा लगता है कि ऐसे लोगों की तो सरे आम पिटाई होनी चाहिए ताकि ऐसे लोगों को सबक मिल सके कि ऐसी हरकतें करने का क्या अंजाम होता है। ऐसी ओछी हरकते करने वालों के कई किस्से हैं जो लोग सुनाते रहते हैं। ये लोग जब टीमें लेकर बाहर जाते हैं तब इनकी हरकतें जहां काफी बढ़ जाती हैं, वहीं सीमाएं भी पार कर जाती हैं। ऐसे में उन असहाय लड़कियों पर तरस आता है जो अपने भविष्य के साथ अपनी बदनामी का ख्याल करके कुछ नहीं कह पाती हैं। लेकिन कुछ खिलाड़ी जरूर साहस के साथ ऐसे मामलों को सामने लाने का काम करतीं हैं। ऐसा ही साहस एक खेल की आदिवासी खिलाड़ी ने किया था। तब इस खिलाड़ी ने खुले आम अपने कोच पर यौन शोषण की शर्त पर ही प्रदेश की टीम में स्थान देने का आरोप लगाया था। इस मामले की जब प्रदेश के मुख्यमंत्री रमन सिंह से लेकर खेल मंत्री और खेल संचालक से शिकायत हुई तो उस समय के खेल संचालक राजीव श्रीवास्तव ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए इस मामले को राज्य महिला आयोग को सौंप दिया था। इस पूरे मामले की राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुधा वर्मा ने जांच भी करवाई। इस दौरान इस मामले की अखबारों में खुब चर्चा रही। जांच में कोच को काफी हद तक दोषी भी पाया गया। वैसे कोच ने मीडिया के सामने आकर अपने को पाक-साफ साबित करने का भी प्रयास किया, पर मीडिया के सामने वे ठहर नहीं पाए, क्योंकि यह बात मीडिया से भला बेहतर कौन जानता है कि खेलों के नाम पर खेलों से जुड़े लोग कैसा खेल खेलते हैं। बहरहाल इस मामले में कोच पर ऐसी कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हुई जिससे खेलों को गंदा करने वाले ऐसे लोगों में डर जैसी भावना आती। संभवत: यह उसी का नतीजा है कि आज इस एक साहसिक कदम के बाद कोई दूसरी खिलाड़ी ऐसा साहस नहीं कर पाई और प्रदेश में काफी तेजी से खिलाडिय़ों का यौन शोषण होने लगा है। यौन शोषण करने वाले इतने बेखौफ हैं कि वे मीडिया वालों से यह भी कहते हैं कि अगर कोई सबूत है तो आप बेशक खबर प्रकाशित करें। अब यह तो तय है कि जो लोग इतनी हिम्मत से ऐसी बात कहते हैं वे यह जानते हैं कि उनका खिलाडिय़ों पर इतना ज्यादा खौफ है कि कोई सामने आने की हिम्मत नहीं करेगी। भले यौन शोषण का शिकार हो रहीं खिलाड़ी खुले रूप में सामने नहीं आ रही हैं, लेकिन इन खिलाडिय़ों का यौन शोषण होते देखने वाले खेलों से जुड़े ऐसे लोग तो जरूर इन बातों की चर्चा करते हैं जिनको खेलों की इस गंदगी से नफरत है। पर इन लोगों की यह मजबूरी है कि इनको यौन शोषण में लिप्त लोगों के साथ काम करना है, ऐसे में वे इनका विरोध भी नहीं कर पाते हैं। विरोध करने का मतलब होगा इनका खेलों से आउट होना। इधर मीडिया की एक मजबूरी यह है कि बिना किसी ठोस सबूत के वह भी किसी पर कम से कम सीधे आरोप नहीं लगा सकता है। लेकिन मीडिया इस मामले में जरूर भाग्यशाली है कि वह बिना किसी का नाम प्रकाशित किए भी ऐसे मामले लोगों को इशारों से समाज के सामने लाने का काम कर सकता है। और वहीं काम हम कई सालों से लगातार किया है। हालांकि हमारे इस काम से प्रदेश की खेल बिरादरी से जुड़े लोग काफी नाराज हैं। लेकिन उनकी महज नाराजगी के लिए ऐसे कृत्य पर पर्दा डालने का काम करना कम से कम हमें कताई पसंद नहीं है। इसलिए हम लगातार इस मामले को समाज के सामने करते रहे हैं और करते रहेंगे।

3 टिप्पणियाँ:

Unknown गुरु जुल॰ 29, 08:37:00 am 2010  

सही कहते हैं आप

Shah Nawaz गुरु जुल॰ 29, 09:33:00 am 2010  

एक-एक बात पूर्णत: सही.... लेकिन किसी पर भी कुछ फर्क नहीं पड़ता है, लोग आएँगे, पढेंगे और भूल जाएँगे..... ऐसे घिनौनी हरकतों के खिलाफ कोई भी आवाज़ उठाने के लिए तैयार नहीं होता है. शायद सब इंतज़ार करते हैं की हमारे साथ कुछ अनुचित हो तभी कुछ किया जाए.

Related Posts with Thumbnails

ब्लाग चर्चा

Blog Archive

मेरी ब्लॉग सूची

  © Blogger templates The Professional Template by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP