राजनीति के साथ हर विषय पर लेख पढने को मिलेंगे....

गुरुवार, सितंबर 30, 2010

नीता डुमरे कामनवेल्थ में तकनीकी अधिकारी

अंतरराष्ट्रीय हॉकी निर्णायक और पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी नीता डुमरे कामनवेल्थ में महिला हॉकी के लिए तकनीकी अधिकारी नियुक्ति की गई हैं। विश्व हॉकी फेडरेशन ने भारत से एकमात्र नाम नीता डुमरे का ही भेजा था। नीता यहां से एक अक्टूबर को दिल्ली के लिए रवाना होंगी।
यह जानकारी देते हुए नीता डुमरे ने बताया कि इसके पहले उनकी नियुक्ति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एशियाई हॉकी फेडरेशन द्वारा ही की जाती थी, पहली बार उनका नाम कामनवेल्थ के लिए विश्व हॉकी फेडरेशन द्वारा भेजा गया। उन्होंने बताया कि भारत से वह एकमात्र तकनीकी अधिकारी के रूप में विश्व हॉकी फेडरेशन की तय की गई अधिकारी हैं। उनके अलावा तीन और देशों के तकनीकी अधिकारी जिनमें आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा का नाम है, के तकनीकी अधिकारियों का नाम विश्व फेडरेशन ने भेजा था। नीता ने पूछने पर बताया कि उनको पहली बार २००४ में हैदराबाद में एशियाई चैंपियनशिप में तकनीकी अधिकारी के रूप में शामिल किया गया था, इसके बाद से वह लगातार तकनीकी अधिकारी के रूप में काम कर रही हैं। उन्होंने बताया कि २००५, ०७, और ०८ में वह मलेशिया में खेली गई एशियाई चैंपियनशिप में तकनीकी अधिकारी थीं। इसी के साथ २००६ के दोहा एशियाड में भी वह तकनीकी अधिकारी थी। २००९ में वह बैंकाक में एशियाई चैंपियनशिप में भी रही। अब उनको कामनवेल्थ में जाने का मौका मिला है। पूछने पर वह बताती हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तकनीकी अधिकारी के रूप में काम करने से हॉकी में बदल रहे नियमों के बारे में जानकारी होती है और इस जानकारी का फायदा राज्य की अंपायरों को देती हैं।
उन्होंने बताया कि इस समय छत्तीसगढ़ की तीन खिलाड़ी रश्मि तिर्की, निधी गुप्ता और विनीता नवघरे राष्ट्रीय अंपायर हैं। इनके जल्द ही अंतरराष्ट्रीय अंपायर बनने की बात कहते हुए नीता कहती हैं कि इनके साथ और भी खिलाड़ी जिनकी रूचि अंपायरिंग में हैं उनको मैं अपने अनुभव बांटने का काम करती हूं। एक सवाल के जवाब में नीता कहती हैं कि भारतीय हॉकी टीम को एक बार फिर से पदक जीतने का काम करना चाहिए। पिछले दो कामनवेल्थ में टीम ने एक स्वर्ण और रजत जीता है। इस बार टीम पदक जीतकर पदकों की हैट्रिक बना सकती है।  

जयवंत क्लाडियस करेंगे कामेंट्री
कामनवेल्थ में छत्तीसगढ़ के कामेंट्रेटर जसवंत क्लाडियस भी कामेंट्री करेंगे। यह जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि टीवी पर हिन्दी कामेंट्री करने के लिए उनको बुलाया गया है। १९८० में आकाशवाणी और १९९४ से वे दूरदर्शन में खेलों की कामेट्री कर रहे हैं। २००६ में हैगराबाद में आयोजित विश्व सैन्य खेलों में भी उन्होंने कामेंट्री की थी। श्री क्लाडियस को अब तक एक दर्जन से ज्यादा खेलों की कामेंट्री करने का मौका मिला है।

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मंगलवार, सितंबर 28, 2010

दम है तो मेरा मेघा से मुकाबला करवा लें

जिस तरह की राजनीति करके मुझे कामनवेल्थ की नेटबॉल टीम से बाहर किया गया, उससे मैं हैरान हूं। मुङो यह कहने में थोड़ी सी भी झिझक नहीं है कि वास्तव में सत्ता से ज्यादा राजनीति तो खेल में होती है। मैं यह दावे से साथ कह सकती हूं कि मुझे सोची समझी साजिश के तहत टीम की विदेशी कोच के जाते ही टीम से बाहर किया गया है। मैं अंतिम समय तक अपने हक के लिए लड़ते रहूंगी। मैं दावे के साथ कहती हूं कि फेडरेशन में दम है तो मेघा से मेरा मुकाबला करवा लें।
ये बातें यहां पर दिल्ली से लौटने के बाद प्रीति बंछोर ने कहीं। उन्होंने कहा कि जिस तरह से मेरा खेल रहा है और मैं भारतीय टीम के प्रशिक्षण शिविर में लगातार ढाई साल तक रही हूं उसके बाद तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि मुङो टीम से बाहर कर दिया जाएगा। पूछने पर उन्होंने बताया कि टीम की मुख्य कोच श्रीलंका की मेरी मर्सिल लूज्ड को अपने बेटे की तबीयत खराब होने की वजह से ३१ अगस्त को अपने देश लौटना पड़ा था। एक दिन बाद एक सितंबर को घोषित की गई टीम में मेरा नाम १२ खिलाडिय़ों में था। लेकिन इसके बाद साजिश करके अचानक मुङो २४ सिंतबर को टीम से बाहर कर दिया गया। मुझे अब तब फेडरेशन ने टीम से बाहर करने का सही कारण नहीं बताया है। प्रीति ने बताया कि फेडरेशन के अध्यक्ष गुरबीर सिंह का इस बारे में कहना है कि उनको इसलिए बाहर किया गया है क्योंकि यह पहले से तय था कि अगर मेघा चौधरी डोपिंग के आरोप से बरी हो जाती हैं तो उनके स्थान पर प्रीति को बाहर जाना पड़ेगा। प्रीति का कहना है कि फेडरेशन ने टीम घोषित करते समय इस तरह की किसी भी शर्त के बारे में उसे नहीं बताया था, अब भी उसे नहीं बताया गया है कि उसे क्यों टीम से बाहर किया गया है।
मेघा से मुकाबला करवा लें
प्रीति का कहना है कि वह नेटबॉल फेडरेशन को खुली चुनौती दे रही हैं कि वे उनका मेघा चौधरी के साथ सीधा मुकाबला करवा लें। बकौल प्रीति मैं भी गोल अटैक और गोल शूटर की पोजीशन में खेलती हूं और मेघा भी। लेकिन मेघा पिछले डेढ़ माह से चोटग्रस्त हैं और वह किसी भी कीमत में गोल अटैक का काम नहीं कर सकती है, इसके लिए बहुत ज्यादा दौडऩा पड़ता है। 
कोच की वजह के किया गया बाहर
प्रीति बंछोर ने सीधे तौर पर टीम के सहायक कोच अमित शर्मा पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह सब उनकी साजिश की वजह से हुआ है। उन्होंने कहा कि अमित शर्मा गाजियाबाद के हैं और मेघा चौधरी भी उनके शहर की हैं। अपने शहर की लड़की को टीम में स्थान दिलाने के लिए ही अमित शर्मा ने फेडरेशन के अध्यक्ष गुरबीर सिंह के साथ मिलकर यह काम किया है। उन्होंने कहा कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि फेडरेशन को देश की प्रतिष्ठा से कोई मतलब नहीं है। फेडरेशन के लिए उप्र देश से बढ़कर हो गया है।
अब राज्यपाल से ही उम्मीद
प्रीति बंछोर का कहना है कि अब उनको अपने राज्य के राज्यपाल शेखर दत्त से ही उम्मीद है। उन्होंने बताया कि दिल्ली में उन्होंने दो दिनों तक राज्यपाल से मिलने की कोशिश की पर सफलता नहीं मिल सकी। कांग्रेसी  नेता मोतीलाल वोरा से जरूर मुलाकात हुई, उन्होंने भारतीय खेल प्राधिकरण के डीजी से बात करके उनको इस मामले में दखल देने कहा है। इसी के साथ प्रीति ने बताया कि वह केन्द्रीय खेलमंत्री एमएस गिल तक भी अपनी शिकायत पहुंची चुकी है। 
मुझे अपने राज्य पर गर्व है
प्रीति ने कहा कि उनको अपने राज्य की सरकार के साथ राज्य के नेटबॉल संघ और मीडिया पर गर्व है कि उनका सबने साथ दिया। प्रीति कहती हैं कि वह हताश जरूर है, पर निराश नहीं हैं। अंतिम समय तक लडऩे का इरादा रखने वाली प्रीति कहती हैं कि मेरा इरादा मजबूत है और मैं किसी भी कीमत में पीछे हटने वाली नहीं हूं। अंत में वह कहती हैं कि किस्मत ने साथ दिया तो जरूर टीम में वापसी होगी। पूछने पर वह कहती हैं कि खेल छोडऩा का तो कताई सवाल नहीं उठता है। अब तो मैं ज्यादा मेहनत करके सबको दिखाना चाहता हूं कि मुझमें कितना दम है।


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सोमवार, सितंबर 27, 2010

ललित शर्मा दिखे और गायब हो गए...

 

दो दिन पहले की बात है, हम प्रेस से रोज की मीटिंग के बाद करीब 12 बजे लौट रहे थे। अचानक सिविल लाइन के पास पीछे से आवाज आई, साँई..., हम समझ गए कि ये अपने ललित शर्मा जी हैं। हमें इस तरह से और कोई आवाज नहीं देता है। हमने पीछे मुड़कर देखा को हमारे पीछे ललिल शर्मा ही थे। उनसे काफी समय बाद मुलाकात हो रही थी, लेकिन यह मुलाकात, मुलाकात जैसी नहीं हुई, चलते-चलते हाल-चाल पूछा। शर्मा जी ने कहा था कि वे शाम तक रायपुर में हैं, लेकिन वे शाम को मिले बिना ही गायब हो गए, और हम उनको रस-मलाई खिलाने का वादा पूरा नहीं कर सके। 
शनिवार को जब ललित शर्मा मिले थे, तो उस समय हम भी एक जरूरी काम से जा रहे थे, उधर संभवत: शर्मा जी भी जल्दी में थे। चलते-चलते थोड़ी सी बातें हुईं, उनके ललित कला डाट इन पर कुछ बात हुई। हमने उनको यह भी बताया कि यार आज तबीयत कुछ ठीक नहीं है, इसलिए हम ब्लाग चौपालमें भी कुछ नहीं लिख सके हैं औैर राजतंत्र में भी कुछ नहीं लिखा है। शर्मा जी से हमने पूछा कब तक हैं रायपुर में।  उन्होंने कहा कि शाम तक हैं। हमने कहा चलिए फिर जब खाली होंगे तो मिलते हैं, लेकिन लगता है कि शर्मा जी को उस दिन फुर्सत ही नहीं ंमिली और वे हमसे बिना मिले ही वापस चले गए। हमने उस दिन सोचा था कि अब शर्मा जी मिल गए हैं तो हम उनको अपने वादे कि रस-मलाई खिला ही दें, लेकिन उन्होंने मौका ही नहीं दिया। बहरहाल अबकि शर्मा जी आएंगे तो उनको जरूर रस-मलाई खिला देंगे, ये वादा है।

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रविवार, सितंबर 26, 2010

वाह..लाजवाब.. बेमिसाल

परसदा के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम में जैसे ही भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान कपिल देव के कदम पड़े और उनकी नजरें स्टेडियम के चारों तरफ गईं तो उनके मुंह से यही निकला वाह.. लाजवाब.. बेमिसाल। ऐसा स्टेडियम अपने हिन्दुस्तान में। मैंने तो सोचा भी नहीं था कि अपने देश में इतना अच्छा स्टेडियम कहीं हो सकता है। वैसे मैंने इस स्टेडियम का एक फोटो देखा था, लेकिन फिर भी मैंने कल्पना नहीं की थी कि यह स्टेडियम इतना अच्छा हो सकता है।
स्टेडियम में अंडर आते ही कपिल देव ने सबसे पहले आउटफील्ड को टटोलकर देखा और आउटफील्ड में एक उंगली डालने के बाद सवाल किया कि क्या आउटफील्ड सेडबैस है या नहीं। उनको बताया गया कि आउटफील्ड सेडबैस ही है। कपिल ने इसके बाद विकेटों को देखा। जब वे विकेट देखने गए तो फोटोग्राफर फोटो लेने के लिए विकेट के अंदर चले गए थे। इस पर उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा कि मीडिया को वहां जाने से रोकना चाहिए, इससे विकेट खराब होता है। उन्होंने कहा कि हम लोग खेलते थे तो हमें विकेट के पास कभी फटकने नहीं मिलता था। कपिल देव ने स्टेडियम की क्षमता पूछी तो उनको बताया गया कि इसकी क्षमता ६५ हजार है। उनको यह भी बताया गया कि क्षमता के मामले में स्टेडियम एशिया में नंबर दो है।
सोच बदल रही है: कपिल देव ने स्टेडियम देखने के बाद कहा कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज लोगों की सोच बदल रही है। आज इस बात से मतलब नहीं रह गया है कि कोई शहर छोटा है या बड़ा। उन्होंने कहा कि रायपुर में बने स्टेडियम ने यह साबित कर दिया है कि सोच के आगे सब कुछ संभव है।
३०० बॉल नाक करना भी कमः- कपिल देव ने छत्तीसगढ़ के युवा क्रिकेटरों से बात करते हुए कहा कि मैं  आप लोगों को बताना चाहूंगा कि जब सुनील गावस्कर ३२ साल के थे और मैं टीम का कप्तान था तो वे कहते थे कि एक गेंदबाज दे दो मैं १५ बाल खेलना चाहता हूं। गावस्कर का १५ बॉल खेलना समङा आता है, लेकिन आज के क्रिकेटरों को दिन में ३०० बॉल नाक करना पड़े तो भी कम है। उन्होंने कहा कि फिटनेस पर ध्यान देना अहम होता है। उन्होंने कहा कि जो खिलाड़ी अकेले अभ्यास करने का दम रखता है, वह जरूर आगे बढ़ता है। उन्होंने मजाक करते हुए कहा कि दारू कभी अकेले नहीं पीनी चाहिए, लेकिन अभ्यास जरूर अकेले करना चाहिए।


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शनिवार, सितंबर 25, 2010

देश को शर्मसार न करें: कपिल

भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान कपिल देव ने मैच फिक्सिंग पर कहा कि खिलाडिय़ों को देश को शर्मसार नहीं करना चाहिए। गलत काम का नतीजा हमेशा गलत होता है, इससे बचने का प्रयास करें।
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम में उन्होंने मैच फिक्सिंग पर पूछे जाने पर ज्यादा खुलकर तो कुछ बात नहीं की, पर उन्होंने कहा कि जो हो रहा है, गलत है। उन्होंने कहा कि खिलाडिय़ों को कम से कम ऐसा नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से देश शर्मसार होता है। भारतीय टीम के बारे में उन्होंने कहा कि भारतीय टीम में इस समय बहुत अच्छे खिलाड़ी हैं। भारतीय टीम नंबर वन बनी तो उसमें दम है। टीम के पास सचिन तेंदुलकर, वीरेन्द्र सहवाग, युवराज सिंह, सौरभ गांगुली, महेन्द्र सिंह धोनी, अनिल कुम्बले जैसे खिलाड़ी थे। हम लोग जब खेलते थे तो सोचते थे कि क्या कभी हमारी भारतीय टीम नंबर वन बन पाएगी। आज हम लोगों का सपना सच हुआ है। नंबर वन पर पहुंचने के बाद इस पर कायम रहना कठिन होता है। उन्होंने कहा कि आस्ट्रेलिया की टीम १५ साल नंबर वन रही है। युवराज के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि किसी भी खिलाड़ी को मौका मिलता है तो उसका फायदा उठाना चाहिए। आज इतनी ज्यादा प्रतिस्पर्धा है कि जो खिलाड़ी अपने को साबित नहीं कर पाएगा, वह बाहर हो जाएगा।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि आज ३६५ दिन मैच हो रहे हैं ऐसे में खिलाडिय़ों का फिटनेस से जुङाना आम बात है। उन्होंने अपने दिनों को याद करते हुए कहा कि ऑॅफ सीजन में हम लोग फिटनेस पर ध्यान देते थे, तब हमारी फिटनेस सौ नहीं बल्कि दो सौ प्रतिशत ठीक रहती थी। भारतीय टीम के बार-बार फाइनल में पहुंच कर हारने के सवाल पर उन्होंने कहा कि इस बार उम्मीद कर सकते हैं कि हमारी टीम विश्व कप के फाइनल में पहुंचे तो न हारे। उन्होंने कहा कि एक समय उनको लगता था कि सुनील गावस्कर के बाद उनके जैसा कोई खिलाड़ी नहीं हो सकता है, लेकिन भारतीय टीम में उनके जैसे एक नहीं बल्कि पांच खिलाड़ी आए। उन्होंने कहा कि सबका एक समय होता है।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि खेल संघों में खिलाडिय़ों को आने नहीं दिया जाएगा, वे जानते हैं। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार ने खेल संघों के लिए जो नियम बनाए हैं अच्छे हैं। उन्होंने कहा कि खेल संघों में राजनेता और व्यापारियों का होना गलत नहीं है, लेकिन खिलाडिय़ों को भी रखना चाहिए। रायपुर के स्टेडियम के बारे में उन्होंने कहा कि उन्होंने ऐसे स्टेडियम के यहां होने की कल्पना नहीं की थी। कपिल देव के साथ स्टेडियम में लॉन टेनिस संघ के अध्यक्ष विक्रम सिंह सिसोदिया, सचिव गुरूचरण सिंह होरा के साथ छत्तीसगढ़ क्रिकेट संघ के पदाधिकारी भी उपस्थित थे।

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शुक्रवार, सितंबर 24, 2010

खेल के लिए कुछ भी करेगा

बच्चों को टेनिस की अच्छी सुविधाएं दिलाने टांक परिवार अहमदाबाद में बस गया

अखिल भारतीय लॉन टेनिस में खेल रहीं सबसे कम उम्र की खिलाड़ी निशिका टांक सबके आकर्षण का केन्द्र बनी हुई हैं। निशिका के साथ उनकी बहन ११ साल की संजना टांक भी खेल रही हैं। अपनी दोनों बेटियों को खेल की ज्यादा सुविधाएं दिलाने के लिए इनके पिता घनश्याम टांक रायपुर छोड़कर अहमदाबाद में बस गए हैं। वहां अपने बच्चों को अच्छा प्रशिक्षण दिलाने के बाद उनका इरादा चेन्नई जाने का है।
यूनियन क्लब में आज से प्रारंभ हुई अखिल भारतीय लॉन टेनिस में सबकी नजरें गुजरात की सात साल की खिलाड़ी निशिका टांक पर ही ठहर रही थीं। जब इस खिलाड़ी से बात की गई तो मालूम हुआ कि यह खिलाड़ी तो रायपुर की हैं और अपने परिवार के साथ गुजरात जाने के बाद इस खिलाड़ी ने खेलना प्रारंभ किया है। इस खिलाड़ी के पिता घनश्याम टांक बताते हैं कि वे तो रायपुर के निवासी हैं और पांच माह पहले ही अपने बेटियों को टेनिस में अच्छा प्रशिक्षण दिलाने के मकसद से अहमदाबाद गए हैं और वहीं बस गए हैं। उन्होंने बताया कि पहले उनकी बड़ी बेटी ११ साल की संजना टांक ही टेनिस खेलती थीं, लेकिन अहमदाबाद जाने के बाद उनकी छोटी बेटी निशिता भी खेलने लगीं हैं। महज पांच माह के प्रशिक्षण में ही उसने अपने अहमदाबाद क्लब की स्पर्धा में दूसरा स्थान प्राप्त कर लिया। यह निशिका की पहली अखिल भारतीय स्पर्धा है। उनकी बड़ी बहन संजना दो बार पहले अखिल भारतीय स्पर्धा में खेल चुकी हैं।
श्री टांक ने पूछने पर कहा कि उनका इरादा अपनी बेटियों का भविष्य टेनिस में ही बनाने का है। वे कहते हैं कि भले उनकी बेटियां पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान न दें, लेकिन खेल में ही उनका जीवन बनाना है। वे पूछने पर कहते हैं कि उन्होंने रायपुर इसलिए छोड़ा क्योंकि यहां पर टेनिस की उनती सुविधाएं नहीं हैं। वे बताते हैं कि अहमदाबाद में सौ सिंथेटिक कोर्ट हैं जबकि रायपुर में महज छह कोर्ट हैं। इसी के साथ वहां खिलाडिय़ों की भरमार है जिससे उनकी बेटियों को ज्यादा से ज्यादा प्रतिस्पर्धा मिल रही है। वे कहते हैं कि खिलाड़ी को जितने ज्यादा खिलाडिय़ों से खेलने का मौाका मिलता है उसका खेल उतना ही निखरता है।

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गुरुवार, सितंबर 23, 2010

हमारे जंपरों का सोनी टीवी पर जलवा

सोनी टीवी में इंटरटेनमेंट के लिए कुछ भी करेगा नामक कार्यक्रम में हमारे राज्य छत्तीसगढ़ के जंपरों राजदीप सिंह हरगोत्रा, पूजा हरगोत्रा और प्रवीण शर्मा ने ऐसा जलवा दिखाया कि उनके इस खेल के सभी दीवाने हो गए। इन खिलाडिय़ों में से दो खिलाड़ी राजदीप और पूजा विश्व कप में खेलने के साथ विश्व रिकॉर्ड के लिए 24 घंटे तक रस्सी कूदने का काम किया है।
सोमवार की रात को जब अगले दिन के कार्यक्रम की झलकियां दिखाई्र गई थी तो उसी समय हमें मालूम हुआ कि जंप रोप का कमाल दिखाने वाले खिलाड़ी तो अपने राज्य के हैं। हमने इसके बारे में जानने के लिए जब जंप रोप के कोच अखिलेश दुबे से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि वे सब अपने ही बच्चे हैं। तब हमने नाराजगी जताई कि हमें पहले क्यों नहीं बताया गया, अगर बताया जाता तो कम से कम हम अपने अखबार हरिभूमि में खबर तो प्रकाशित कर देते कि छत्तीसगढ़ के बच्चे आज कार्यक्रम में आएंगे। बहरहाल दूसरे दिन हमने भी अपने राज्य के बच्चों के कार्यक्रम देखा। इस कार्यक्रम में जिस तरह का कमाल हमारे खिलाडिय़ों ने दिखाया उसने सबको वाह-वाह करने मजबूर कर दिया। राजदीप के कमाल पर सभी ने दाद दी। अंत में कार्यक्रमों के निर्णायकों ने भी जंप रोप लेकर कूदने का काम किया।
इस बारे में राजदीप और पूजा ने बताया कि हम लोगों को वहां पर जाने का मौका यूटुब के माध्यम से मिला। इसी में हमारा विडियो देखकर सोनी टीवी वालों ने संपर्क किया था। बकौल राजदीप में वैसे तो हमारे कार्यक्रम की दो मिनट की रिकार्डिंग की गई थी, पर दिखाया गया महज डेढ़ मिनट। उनके साथ पूजा कहती हैं कि हमें अगर कम से कम दस मिनट का मौका दिया जाता तो हम बताते कि वास्तव में जंप रोप से क्या कमाल किया जाता सकता है। उन्होंने कहा कि अब अगले सीजन के लिए एक बड़े दल के साथ कार्यक्रम बनाकर भेजेंगे। इन खिलाडिय़ों को यशराज स्टूडियों दबंग के कलाकारों जिनमें सलमान खान, अरबाज खान, मलाइका अरोरा शामिल हैं से भी मिलने का मौका मिला।

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बुधवार, सितंबर 22, 2010

अन्नु मलिक का पानी उतारा एक लड़की ने

सोनी टीवी में कल रात को इंटरटेनमेंट के लिए कुछ भी करेगा नामक एक कार्यक्रम में अंतत: अन्नु मलिक का पानी एक लड़की ने उतार दिया। तीन लड़कियों की कला पर एक मिनट में ही विराम लगाने के बाद इनमें से एक लड़की नाराज हो गर्इं और उन्होंने पूरी तरह से अन्नु मलिक को बता दिया कि उनकी औकात क्या है। वैसे भी इस कार्यक्रम में पूरी तरह से जजों की दादागिरी चल रही है।
कल रात को जब इस कार्यक्रम में उप्र की तीन लड़कियां मंच पर एक स्कूटी के साथ आईं तभी लगा था कि अन्नु साहब को मंच पर स्कूटी का आना पसंद नहीं आया है। जब इन लड़कियों ने अपनी कला का प्रदर्शन करना प्रारंभ किया तो इस बार दर्शकों के माध्यम से इनकी कला पर विराम लगाया। इन तीन लड़कियों में से एक लड़की स्कूटी चला रही थी एक बीच में बैठी थी और तीसरी लड़की सबसे पीछे बैठी थी और अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर बीच वाली लड़की के बॉल काट रही थी। वास्तव में इनका काम अनोखा था, पर इसका क्या किया जाए कि सोनी टीवी के इस कार्यक्रम में अच्छा काम करने वाले पसंद ही नहीं आते हैं।
जब इन लड़कियों को कला दिखाने से रोका गया तो एक लड़की बहुत ज्यादा नाराज हो गई। उनसे जब अन्नु मलिक ने कहा कि आप को देश के दर्शकों ने नकारा दिया है तो लड़की ने साफ कहा कि देश के नहीं यहां के दर्शकों ने। उनका कहना बिलकुल ठीक था एक कार्यक्रम में आप कुछ दर्शकों को बिठा देते हैं और उनके हाथ में रिमोट का झूनझूना थमा देते हैं कि जिनका कार्यक्रम पसंद आया तो ठीक है, नहीं आए तो उनको बाहर कर दें। क्या चंद लोग ही किसी कलाकार की कला के सही गलत का फैसला करने के अधिकारी हैं। जब एक सच्चाई अन्नु मलिक के सामने एक लड़की ने कह दी तो जनाब अन्नू मलिक कहने लगे कि अब उनका दिमाग खराब हो गया है, और लड़कियों को वहां से बाहर कर दिया गया। अब भला सच्ची बात से अन्नु मलिक जैसे लोगों का दिमाग ही तो खराब हो सकता है। वास्तव में ऐसे कार्यक्रमों से किसी की कला को परखा नहीं जा सकता है। अगर आपको किसी की कला को परखना है तो उसे पूरा समय दिया जाए अपनी कला दिखाने का, ये कैसा नियम है कि एक मिनट में आप पास-फेल का खेल खेलते हैं। एक मिनट में किसी की कला को परखना आसान नहीं है। कई बार देखा गया है कि कई खराब प्रदर्शन भी अपने जजों को बहुत अच्छे लगते हैं। बहरहाल कल के कार्यक्रम में एक बात ही अच्छी हुई कि एक लड़की ने अन्नु मलिक का पानी जरूर उतरा दिया।
कल के कार्यक्रम में हमारे राज्य छत्तीसगढ़ के लिए भी एक अच्छी बात हुई कि यहां के जंपरों ने शानदार प्रदर्शन किया, इनके बारे में हम कल लिखेंगे।


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मंगलवार, सितंबर 21, 2010

ये तो अन्नु मलिक की दादागिरी है

सोनी टीवी में कल रात को इंटरटेनमेंट के लिए कुछ भी करेगा नामक एक कार्यक्रम में एक कलाकार अपनी कला पेश कर रहे थे, कि निर्णायकों की कुर्सी पर बैठे अन्नु मलिक ने उन्हें रोक दिया। इन कलाकार की कला वास्तव में लाजबाब थी, पर इसका क्या किया जाए कि अपने मलिक साहब को वह पसंद नहीं आई या फिर यह कहा जाए कि उनके समझ में ही नहीं आया। जब उनके समझ में ही नहीं आया तो उन कलाकार की कला पर ही ब्रेक लगा दिया। इस कार्यक्रम में ऐसा तीन बार हुआ।
इन दिनों सोनी टीवी पर इंटरटेनमेंट के लिए कुछ भी करेगा चल रहा है। इस कार्यक्रम में हमेशा से अन्नु मलिक और फरहा खान आते हैं। इनकी लगातार इस कार्यक्रम में दादागिरी चल रही है कहा जाए तो गलत नहीं होगा। कल फरहा खान के स्थान पर अपने पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू बैठे थे। कार्यक्रम में एक कलाकार आए और अपनी कला का प्रदर्शन करने लगे साथ में उनकी साथी कलाकार जो कि उनकी पत्नी थी, बताते जा रही थी कि वे क्या कर रहे हैं। इन कलाकार की कला कुछ इस तरह से थी कि उनका एक हाथ कुछ अलग अंदाज में चल रहा था दो दूसरा कुछ अलग अंदाज में यही काम उनके पैर भी कर रहे थे यानी की उनके दोनों हाथ अलग तरह से मूवमेंट में थे, दोनों पैरे भी अलग-अलग मूवमेंट में थे। लेकिन यह बात अपने अन्नु मलिक साहब को समझ ही नहीं आई और उन्होंने उनको एक मिनट के समय में रोक दिया। यह इस कार्यक्रम का नियम बनाया गया है कि निर्णायकों या दर्शकों को कुछ पसंद नहीं आता है तो एक मिनट में उसे रोक दिया जाता है। नियम तो ठीक है, पर कई बार इस नियम के कारण ऐसा लगता है कि निर्णायक अपनी दादागिरी चला रहे हैं।
इन कलाकार की पत्नी के दावा किया कि जैसा उनके पति कर रहे हैं कोई नहीं कर सकता है। उन्होंने बताया भी कि यह सब दिमाग को अपने बस में करके लंबी साधना के बाद करना संभव होता है। जिस काम को सीखने के लिए किसी कलाकार ने इतना लंबा समय गंवाया उनकी मेहनत पर अन्नु मलिक जैसे निर्णायक एक मिनट में पानी फेर देते हैं। किसी भी कलाकार को मंच पर बुलाया जा रहा है तो उनको अपनी कला दिखाने का तो पूरा मौका देना चाहिए
ऐसा ही एक और कलाकार ग्वालियर के एक युवक के साथ किया गया। वह युवक अपनी आंखों की पलकों से सुईयां उठाने का काम कर रहे थे। ्अब ऐसा करने में उन कलाकार को कोई डर नहीं लग रहा था, लेकिन अपने अन्नु मलिक साहब को यह लगा कि आंखों को नुकसान पहुंचाने वाला यह कार्यक्रम ठीक नहीं है। इसी कार्यक्रम में लोगों ने अपने जान का जोखिम उठाकर कार्यक्रम पेश किए हैं, तो फिर वे कार्यक्रम उनको कैसे पसंद आ जाते हैं।
कल रात के ही कार्यक्रम में एक फिल्मी कलाकार संभावना सेठ ने जब डांस  करना शुरू किया तो उन्हें भी अन्नु मलिक ने बीच में रोक दिया। संभावना को इससे गुस्सा आया और उन्होंने अन्नु मलिक की चुनौती स्वीकार एक मार्शल आर्ट के कलाकार के साथ मिलकर अपने शरीर में सब्जियों रखकर कटवाने की हिम्मत दिखाई और अन्नु मलिक को बताया कि कलाकार अगर कुछ करने पे आए तो कुछ भी कर सकता है। हमारा ऐसा मानना है कि अन्नु मलिक जैसे निर्णायकों को अपनी दादागिरी से बाज आते हुए कलाकारों को अपनी कला पेश करने का पूरा मौका देना चाहिए।


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सोमवार, सितंबर 20, 2010

सवा साल में नहीं हो पाया टेंडर

प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की घोषणा के सवा साल बाद भी साइंस कॉलेज के मैदान में लगने वाले एस्ट्रो टर्फ के लिए लोक निर्माण विभाग अब तक टेंडर जारी नहीं कर सका है। खेल विभाग ने हॉकी का स्टेडियम बनाने का जिम्मा लोक निर्माण विभाग को सौंपा है।
प्रदेश की राजधानी में हॉकी के एस्ट्रो टर्फ वाले मैदान के लिए राजधानी के खिलाड़ी राज्य बनने के दस साल बाद भी तरस रहे हैं। पूर्व में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने ही नेताजी स्टेडियम के साथ कोटा स्टेडियम में एस्ट्रो टर्फ लगाने की घोषणा की थी। जब इन दोनों स्थानों पर एस्ट्रो टर्फ लगाने की दिशा में खेल विभाग ने काम किया तो उसके सामने यह बात आई कि जहां कोटा स्टेडियम में रविशंकर विश्व विद्यालय और एक निजी व्यक्ति के मध्य विवाद चल रहा है, वहीं नेताजी स्टेडियम को विशेषज्ञों ने एस्ट्रो टर्फ लगाने के लिए उपयुक्त नहीं समङाा। इस मैदान की एक दो दिशा गलत है, इसी के साथ मैदान भी बहुत छोटा है। अगर यहां पर एस्ट्रो टर्फ लगा भी दिया जाता तो इस मैदान में अंतरराष्ट्रीय स्तर का आयोजन संभव ही नहीं है। दिशा गलत होने की वजह से सूर्य की रौशनी सीधे गोलकीपर के चेहरे पर पड़ती है। ऐसे में जबकि दोनों स्थानों पर एस्ट्रो टर्फ लगाने को लेकर दिक्कत आ रही थी, तब ऐसे में खेल विभाग में अधिकारियों ने आपस में विचार-विमर्श करके यह फैसला किया कि एस्ट्रो टर्फ लगाने का स्थान बदला जाए। खेल विभाग ने खेल के जानकारों से भी बाद में इस मुद्दे पर चर्चा करके यह तय किया कि खेल विभाग को जो साइंस कॉलेज के मैदान में करीब ३४ एकड़ जमीन मिली हुई है, उसी जमीन में एस्ट्रो टर्फ वाला एक स्टेडियम बनाया जाए। ऐसे में जब ३० मई २००९ को मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक बैठक हुई तो इस बैठक में ही खेल विभाग की तरफ से खेलमंत्री  लता उसेंडी ने यह प्रस्ताव रखा कि साइंस कॉलेज में एस्ट्रो टर्फ लगाना उचित रहेगा। मुख्यमंत्री ने नेताजी स्टेडियम और कोटा स्टेडियम की दिक्कतों के बारे में जानने के बाद अंतत: साइंस कॉलेज में भी एस्ट्रो टर्फ लगाने की घोषणा कर दी।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की घोषणा के बाद से ही खेल विभाग लगातार इस दिशा में काम कर रहा है। खेल विभाग ने साइंस कॉलेज में पहले हॉकी का स्टेडियम बनाने का जिम्मा लोक निर्माण विभाग के हवाले जून २००९ से ही कर दिया है। लोक निर्माण विभाग के अधिकारी स्टेडियम बनने वाले स्थान का निरीक्षण करने के बाद अपनी रिपोर्ट भी दे चुके हैं। रिपोर्ट के बाद स्टेडियम बनाने का खाका भी तैयार कर लिया गया है, खेल विभाग इस दिशा में लगातार लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों से बात कर रहा है। खेल संचालक जीपी सिंह खुद लगातार लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों के सतत संपर्क में है। खेल संचालक जीपी सिंह इस मामले में कहते हैं कि जल्द ही इसका टेंडर होगा और काम प्रारंभ हो जाएगा। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि मुख्यमंत्री की घोषणा के सवा साल बाद भी अब तक लोक निर्माण विभाग सारी योजना तय होने के बाद भी टेंडर नहीं निकाल सका है। खेल विभाग से जुड़े सूत्र बताते हैं कि साइंस कॉलेज के एस्ट्रो टर्फ के लिए प्रारंभिक तौर पर  वित्त विभाग ने १०.६१ करोड़ की मंजूरी भी दे दी है। वित्त विभाग से पैसे जारी होने के बाद भी टेंडर अब तक जारी नहीं किया जा रहा है।

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रविवार, सितंबर 19, 2010

ब्लागर मित्र अशोक बजाज से हुई मुलाकात

दो दिन पहले की बात है, हम प्रेस में बैठे काम कर रहे थे, तभी अचानक अशोक बजाज का प्रेस आना हुआ। उन्होंने हमसे मिलते ही पूछा और क्या हाल-चाल है आपके ब्लाग का। हमने बताया ठीक है। उन्होंने अपने ब्लाग के बारे में पूछा कि हमारा ब्लाग कैसे चल रहा है। हमने कहा आप तो एक अच्छे काम में लगे हैं तो वो कैसे अच्छा नहीं होगा। हम बता दें कि श्री बजाज जी छत्तीसगढ़ को हरा-भरा करने के विशेष अभियान में लगे हैं। इस अभियान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वे अपने ब्लाग में हरियर अभियान की बातें भी लिखते हैं।
अशोक बजाज को हम काफी पहले से जानते हैं, लेकिन हमें यह मालूम नहीं था कि वे भी ब्लाग लिखते हैं। लेकिन इधर उनको हमने एक ब्लागर के रूप में भी जाना है। वैसे वे अच्छे नेता हैं। वे जिला पंचायत के अध्यक्ष रहे हैं। उनसे हमारा सरोकार एक नेता की वजह से ज्यादा रहा। एक बात और यह कि श्री बजाज पुराने रेडियो श्रोता रहे हैं और हम भी कभी रेडियो श्रोता हुआ करते थे। बहरहाल हमें कई बार यह खबर मिली थी कि श्री बजाज जी हमसे बात करना चाहते हैं। रायपुर में पिछले माह हुए रेडियो श्रोता सम्मेलन में भी हमें बुलाया गया था, पर हम नहीं जा पाए। श्री बजाज जी से बात करने का समय ही नहीं मिल रहा था, ऐसे में अचानक जब वे प्रेस आए तो सौभाग्यवश उनसे मुलाकात हो गई। अब मुलाकात हुई तो बात भी हुई। बात ज्यादा नहीं हुई क्योंकि एक तो प्रेस में काम का समय था, फिर बजाज जी को भी कहीं और जाना था। बस अपने-अपने ब्लागों पर ही थोड़ी सी चर्चा हो पाई। बजाज जी ने जहां हमें यह बताया कि वे ब्लाग के लिए रात को समय दे पाते हैं, वहीं हमने उनको बताया हमारे पास सुबह का समय ही रहता है जिसमें एक घंटे का समय ब्लाग के लिए निकालते हैं। श्री बजाज जी ने हमसे यह भी पूछा कि ललित शर्मा को बधाई दी या नहीं क्योंकि उसी दिन श्री शर्मा जी की एक वेबसाइड का मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने लोकार्पण किया था। हमने बताया कि संजीव तिवारी के ब्लाग में उनको बधाई दी है, इसी के साथ बजाज जी के ब्लाग में हमने दूसरे दिन भी उनको बधाई दी। वैसे तो बजाज जी से हमारा हमेशा मिलना होता रहा है, पर एक ब्लागर के रूप में उनसे यह पहली मुलाकात थी, वैसे अब मुलाकातों का सिलसिला चलता रहेगा और संभवत: अब जब भी मुलाकात होगी तो ब्लाग जगत पर चर्चा जरूर होगी।

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शनिवार, सितंबर 18, 2010

नक्सली हैं हमारे रोल मॉडल

जो नक्सली आज अपने देश के लिए नासूर बन चुके हैं उनको अगर कोई कहे कि वे हमारे रोल मॉडल हैं, तो वास्तव में यह दुखद बात होगी या नहीं? लेकिन इसका क्या किया जाए कि बस्तर के बच्चे नक्सलियों को ही अपना रोल मॉडल मानते हैं। नक्सलियों के बाद नंबर आता है शिक्षा कर्मियों को।
कल की ही बात है हम एक आईपीएस अधिकारी के पास बैठे थे तो चर्चा के दौरान यह बात सामने आई कि बस्तर में करवाए गए एक सर्वे में यह चौकाने वाली बात सामने आई कि वहां के अधिकांश बच्चे नक्सलियों को ही अपना रोल मॉडल मानते हैं। जब अफसर ने यह बात बताई तो उसी समय वहां पर उपस्थित एक अन्य अधिकारी ने ये यह बात बताई कि इसमें कुछ नया नहीं है। उन्होंने बताया कि जिस समय पंजाब में आतंकवाद चरम पर था तो वहां के बच्चे जब कुछ खेल खेलते थे तो उस खेल में आंतकवादी और पुलिस वालों का रोल ज्यादा होता था। उन्होंने कहा कि यह तो बच्चों की मानवीय प्रवृति है कि उनके आस-पास जो घटता है या उनको बार-बार जिनके बारे में सुनने को मिलता है तो उसे ही वे अपना रोल मॉडल समझने लगते हैं। अब बस्तर के बच्चों को पैदा होने के बाद जब होस संभालने का मौका मिलता है तो उनके कानों में हर वक्त बस एक ही आवाज सुनाई पड़ती है और वह आवाज होती है नक्सलियों की। 
ऐसे में अगर बस्तर के बच्चे नक्सलियों को अपना रोल मॉडल मनाते हैं तो इसमें आश्चर्य वाली बात नहीं है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि बस्तर के आदिवासी अपने बच्चों के दिलों से नक्सलियों को नहीं निकाल सकते हैं। इसके लिए तो पूरी तरह से सरकार दोषी है। अगर बस्तर में पुलिस ने ऐसा काम किया होता जिससे नक्सलियों का सफाया हो जाता तो आज बस्तर के बच्चों के नक्सली नहीं पुलिस के जवान रोल मॉडल होते। लेकिन लगता नहीं है कि कभी ऐसा हो पाएगा।
नक्सलियों को जड़ से उखाड़ फेंकने की न तो सरकार के पास ताकत है और न ही उनकी औकात है। नक्सलियों के पास जैसे और जितने हथियार हैं वैसे हथियार उनसे लडऩे वाले जवानों के पास न तो हैं और हो सकते हैं। हमें तो लगता है कि सरकार की मानसिकता ही नहीं है कि नक्सलियों का सफाया हो। बहरहाल यहां पर नक्सलियों के सफाए का सवाल नहीं सवाल है बस्तर के उन मासूम बच्चों का जो नक्सलियों को अपना रोल मॉडल समझते हैं। इन बच्चों के लिए कुछ करना जरूरी है, नहीं तो आगे चलकर वे जिनको अपना रोल मॉडल समझते हैं उनके बताए रास्ते पर ही चलने लगेंगे। इसमें भी कोई दो मत नहीं है कि बस्तर के युवा आज नक्सलियों की ताकत बनते जा रहे हैं। इस ताकत को समाप्त करने के लिए कुछ न कुछ रास्ता निकालना ही होगा। 

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शुक्रवार, सितंबर 17, 2010

मॉडरेशन का एक फायदा यह भी

हमने अपने ब्लाग राजतंत्र में जब से मॉडरेशन लगाया है, तब से हम कई तरह के फायदों में हैं। इनमें से एक फायदे के बारे में हमें अचानक मालूम हुआ जिससे हम अब तक अंजान थे। हमने जब मॉडरेशन नहीं लगाया था तो हमें यह कभी मालूम ही नहीं हो पाया कि हमारी पुरानी पोस्ट भी देखी जाती है और उस पर टिप्पणी आती है। लेकिन मॉडरेशन लगाने के बाद हमें यह सब मालूम हुआ।
कुछ दिन पहले हमने जब मॉडरेशन के इंतजार वाली टिप्पणियों को देखा तो हमें यह देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि कुछ टिप्पणियां ऐसी हैं जो हमारी काफी पुरानी पोस्ट के लिए आई थीं। इसके पहले हमें कभी यह मालूम ही नहीं हो सका कि हमारी पुरानी पोस्ट भी पढ़ी जाती है और लोग उस पर भी अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। हम तो यही समझते थे कि संभवत: 24 घंटे के बाद कोई पोस्ट पर नजरें डालता ही नहीं है। लेकिन मॉडरेशन की वजह से हमारा यह भ्रम दूर हो गया है। इसी के साथ अब हमें इस बात की बहुत खुशी है कि अवांछित लोग अब कम से कम टिप्पणी करने नहीं आ रहे हैं। वरना हमें भी काफी परेशान करके रखा गया था। हमें अपनी पुरानी पोस्टों पर भी अब लगातार टिप्पणियां नजर आ रही हैं। तो है न यह एक फायदे का सौदा, तो देर किस बात की है अगर आप भी अवांछित टिप्पणियों  से परेशान हैं अैरै जानना चाहते हैं कि आपकी पुरानी पोस्ट कब पढ़ी गई है और उसके बारे में लोगों के क्या विचार है तो तत्काल अपने ब्लाग में मॉडरेशन लगाने का काम करें।

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गुरुवार, सितंबर 16, 2010

सचिन तेंदुलकर से एक और मुलाकात

अचानक एक कार्यक्रम में जाना हुआ, तो देखा कि वहां के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि अपने सचिन तेंदुलकर हैं। सचिन के यहां होने की किसी को जानकारी नहीं थी। सचिन को देखकर हमें भी अच्छा लगा कि चलो यार डेढ़ दशक बाद फिर से एक बार सचिन और हम आमने-सामने होंगे। हमें उम्मीद नहीं थी, पर सचिन ने हमें पहचान लिया। जब हम कार्यक्रम के बाद जाने लगे तो उन्होंने हमसे कहा कहां चले भाई साहब हमने आपको पहचान लिया है। हम आपसे दुर्ग के मैच में मिल चुके हैं, फिर आप जैसे पत्रकार को कौन भूल सकता है जिनके साथ ड्रेसिंग रूम में काफी समय साथ थे।
सचिन का हमें पहचान लेना हमारे लिए सुखद आश्चर्य का विषय था, क्योंकि एक तो हम उनसे करीब डेढ़ दशक पहले दुर्ग के एक दोस्ताना मैच में तब मिले थे, जब वहां पर मैच का आयोजन करवाने का काम अपने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर राजेश चौहान ने किया था। हमें उम्मीद नहीं थी कि सचिन हमें इतनी आसानी से पहचान जाएंगे, कारण एक तो यह कि उस समय सचिन भारतीय टीम में नए-नए आए थे, लेकिन तब भी उनके नाम की तूती बोलती थी, और दूसरे यह कि आज उनका जितना नाम है और वे जितने लोगों से मिलते हैं, वैसे में छत्तीसगढ़ जैसे राज्य के एक छोटे से पत्रकार को वे कैसे पहचानेंगे यह हमने सोचा नहीं था।
बहरहाल वे कार्यक्रम के बाद हमें अपने साथ होटल ले गए। उन्होंने कहा कि यहां आराम से बात करेंगे। उन्होंने बताया कि साक्षरता पर बच्चों का कार्यक्रम होने की जानकारी होने पर वे यहां आए हैं। उन्होंने कहा कि साक्षरता पर जहां भी देश में कार्यक्रम होगा, हम वहां जरूर जाएंगे। हमारे मन में सचिन से काफी लंबी बात करने की मंशा थी, हम उनसे कई सवाल करना चाहते थे। सचिन से जब हम पहली बार दुर्ग के मैच में मिले थे, तब भी उनके नाम का डंका पूरे विश्व में बजने लगा था आज को वे क्रिकेट के भगवान हो गए हैं। उस समय भी हमने उनके साथ फोटो नहीं खींचवाई थी, वैसे हम अपनी जिंदगी में कई क्रिकेटरों के साथ बड़े-बड़़े फिल्म स्टारों से मिल चुके हैं जिनमें अपने बिग-बी अमिताभ बच्चन भी शामिल हैं, लेकिन हमने कभी किसी के साथ फोटो खींचवाने का मोह नहीं किया। लेकिन न जाने कैसे सचिन के साथ फोटो खींचवाने का मन हो रहा था। ऐसे में हमने अपने प्रेस के फोटोग्राफर किशन लोखंड़े को फोन लगाया, वैसे भी रात के इस समय 11.30 बज रहे थे। हमने फोटोग्राफर से पूछा कि कहां हैं, तो उन्होंने बताया कि वे घर पर हैं। उन्होंने पूछा क्या बात है भईया कोई घटना हो गई है क्या। हमने उनको बताया कि सचिन यहां आए हैं, तुम आ जाओ तो कुछ फोटो ले लें। उसने कहा ठीक है भईया, हम बस 15 मिनट में पहुंच रहे हैं। हमने फोटोग्राफर को होटल का पता बताया और उनसे कहा कि सचिन रूम नंबर 106 में हैं और हम उनके साथ हैं।
अब इससे पहले की हमारे फोटोग्राफर का आगमन होता, अचानक हमारी नींद खुल गई।
दरअसल सचिन से हमारी यह मुलाकात सपने में हुई। संभवत: सचिन  अचानक हमारे सपने में इसलिए आए कि क्योंकि कल ही हमने अपने ब्लाग, ब्लाग चौपाल में ब्लाग चर्चा का शतक पूरा किया और हमने उम्मीद जताई कि हमारी इस चौपाल में पोस्ट सचिन के शतकों के भी आगे जाएगी।
कल भले हमें सचिन से सपने में मिले, लेकिन उनसे वास्तव में हमारी करीब डेढ़ दशक पहले छत्तीसगढ़ के दुर्ग में तब मुलाकात हुई थी, जब वे यहां एक दोस्ताना मैच खेलने आए थे। तब हमें उनके साथ ड्रेसिंग रूम में काफी समय बिताने का मौका मिला था। हम उन पलों को कभी नहीं भूल सकते हैं। 

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बुधवार, सितंबर 15, 2010

गलती की है तो सजा भी भुगतो

प्रदेश के खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने मंगलवार को प्रदेश भारोत्तोलन संघ की मान्यता रद्द कर दी। खेल संचालक जीपी सिंह ने बताया कि विभाग ने फैसला किया कि जिस तरह से संघ ने डोपिंग जैसे मामले को हल्के में लेते हुए छोटी सी गलती समङाते हुए, गलती स्वीकार करते हुए क्षमा मांगी थी, वह गलती क्षमा योग्य नहीं है। इधर खेल विभाग से जिस तरह से कड़ाई दिखाई है उसने यह संकेत दिया है कि विभाग खेल संघों की ऐसी गलतियों को बर्दाश्त नहीं करेगा।
प्रदेश के खेल विभाग में दिन भर इस बात को लेकर सरगर्मी रही कि आखिर अब खेल विभाग प्रदेश भारोत्तोलन संघ नोटिस के जवाब में मिले पत्र पर क्या कार्रवाई करेगा। अंतत: शाम को खेल संचालक ने यह जानकारी दी कि विभाग ने काफी सोच विचार करने के बाद संघ की मान्यता रद्द कर दी है। यहां यहां बताना लीजिमी होगा कि डोपिंग के दोषी सिद्धार्थ मिश्रा का नाम शहीद कौशल यादव पुरस्कार के लिए प्रदेश संघ ने भेजा था और उनके नाम भेजने के कारण इस खिलाड़ी का चयन इस पुरस्कार के लिए कर भी लिया गया था। बाद में जब इस बात का खुलासा हुआ कि खिलाड़ी तो डोपिंग का दोषी है तो विभाग ने खिलाड़ी का पुरस्कार रद्द कर दिया और खेल संघ को नोटिस देकर जवाब मांगा। संघ ने अपने जवाब में जब यह लिख कर दिया कि उससे गलती हो गई थी और उसने सिद्धार्थ मिश्रा के डोपिंग में फेल हो जाने की जानकारी होने के बाद इसके बारे में विभाग को नहीं बताया था। इस गलती के लिए संघ ने विभाग से क्षमा मांगी थी। लेकिन विभाग ने इस मामले में क्षमा देना उचित नहीं समङाा और गलती को बर्दाश्त न करते हुए संघ की मान्यता रद्द कर दी है। खेल विभाग की इस कार्रवाई से राज्य की खेल बिरादरी में यह संकेत गया है कि विभाग किसी भी कीमत में खेल संघों की इस तरह की गलतियों को बर्दाश्त करने वाला नहीं है।

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मंगलवार, सितंबर 14, 2010

गलती हो गई, क्षमा करें

डोपिंग के दोषी खिलाड़ी सिद्धार्थ मिश्रा का नाम शहीद कौशल यादव पुरस्कार के लिए देने के लिए प्रदेश भारोत्तोलन संघ ने अपनी गलती मानते हुए खेल विभाग से पत्र लिख कर क्षमा मांगी है। यह पत्र संघ ने खेल विभाग द्वारा दिए गए नोटिस के जवाब में लिखा है। इसके पहले संघ के पदाधिकारी खेल विभाग के साथ मीडिया को भी यह कहते रहे कि उनको खिलाड़ी के डोपिंग में दोषी होने की जानकारी नहीं है। इधर इस मामले में जहां प्रदेश ओलंपिक संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गुरूचरण सिंह होरा का मानना है कि संघ के पदाधिकारियों को तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए। वहीं संघ की पूर्व अध्यक्ष गुरमीत धनई का कहना है कि खेल विभाग को संघ की मान्यता २४ घंटे के अंदर समाप्त कर देनी चाहिए। उन्होंने इस मामले में प्रदेश के मुख्यमंत्री और ओलंपिक संघ के अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह से हस्तक्षेप करने की मांग की है।
प्रदेश के खेल विभाग द्वारा भारोत्तोलन संघ को दिए गए नोटिस के जवाब में संघ ने सोमवार को विभाग को जवाबी पत्र दिया है। इस पत्र में महासचिव सुखलाल जंघेल के हस्ताक्षर हैं। उन्होंने स्वीकार किया है कि संघ से गलती हुई है। संघ ने माना है कि सिद्धार्थ मिश्रा डोप टेस्ट में २३ अप्रैल को फेल हो गया था और उसको निलंबित करने का पत्र भारतीय फेडरेशन से २६ अप्रैल को प्रदेश संघ को मिल गया था। अपनी गलती स्वीकार करते हुए संघ ने खेल विभाग को लिखा है कि पिछले दस साल में उनके संघ से ऐसी कोई गलती नहीं हुई है। ऐसे में उनकी इस गलती के लिए क्षमा किया जाए। संघ ने आगे ऐसी कोई गलती न करने की बात भी लिखी है।
यहां यह बताना लाजिमी होगी कि इसके पहले सुखलाल जंघेल सिद्धार्थ मिश्रा का मामला सामने आने पर खेल विभाग के साथ मीडिया को लगातार यह कहते हुए गुमराह करते रहे कि उनके पास ऐेसी कोई जानकारी नहीं है। जब मीडिया की सतर्कता से यह मामला खुला और खेल विभाग ने संघ को नोटिस दिया तो मान्यता समाप्त होने के डर के कारण अब संघ ने गलती स्वीकार करने का काम किया है। इस बार जब शहीद कौशल यादव पुरस्कार के लिए भारोत्तोलन के खिलाड़ी सिद्धार्थ मिश्रा का चयन कर लिया गया तो इस खिलाड़ी के डोपिंगमें दोषी होने की जानकारी मीडिया के पास थी। ऐसे में मीडिया की सक्रिय होने पर खेल विभाग को जहां इस खिलाड़ी का पुरस्कार रद्द करना पड़ा, वहीं संघ को नोटिस देना पड़ा था।
वैधानिक कार्रवाई करेंगे: खेल संचालक
इस मामले में खेल संचालक जीपी सिंह का कहना है कि संघ ने अपना जवाब दे दिया है अब विभाग इस मामले में वैधानिक कार्रवाई करेगा। उन्होंने पूछने पर कहा कि विभाग को लगेगा कि संघ की मान्यता समाप्त करनी चाहिए तो ऐसा भी किया जा सकता है।
पदाधिकारी इस्तीफा दें: गुरूचरण
इस मामले में प्रदेश ओलंपिक संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गुरूचरण सिंह होरा का कहना है कि राज्य के खेल पुरस्कार के लिए गलत जानकारी देना और फिर उसे मानना बहुत बड़ी गलती है। उन्होंने कहा कि राज्य के पुरस्कार के साथ खिलवाड़ करना गलत बात है। जब संघ के पदाधिकारी अपनी गलती मान रहे हैं तो उन्हें नैतिकता के नाते अपना इस्तीफा दे देना चाहिए। इसी तरह की बातें खेलों को जानकार भी कह रहे हैं। इनका भी मानना है कि एक गलत खिलाड़ी का नाम भेजकर संघ ने एक योग्य खिलाड़ी की प्रतिभा के साथ खिलवाड़ किया है। ऐसे पदाधिकारियों को संघ में रहने का कोई अधिकार नहीं है।
पूरी कार्यकारिणी बदली जाए
इस मामले में प्रारंभ से आक्रामक रही प्रदेश भारोत्तोलन संघ की पूर्व अध्यक्ष गुरमीत धनई का कहना है कि यह बात समङा से परे है कि खेल विभाग अब किस बात का इंतजार कर रहा है। जब संघ के पदाधिकारी खुद मान रहे हैं कि उन्होंने गलती की है तो फिर संघ की मान्यता समाप्त करने में विलंब करना बेकार है। उन्होंने कहा कि संघ के पदाधिकारियों की इससे ज्यादा शर्मनाक हरकत नहीं हो सकती कि वे खेल विभाग के साथ मीडिया को लगातार गुमराह करते रहे और पकड़े गए तो क्षमा मांग रहे हैं। यह गलती कोई क्षमा करने वाली नहीं है। उन्होंने कहा कि खेल विभाग को २४ घंटे में संघ की मान्यता समाप्त करनी चाहिए और उसको पहल करते हुए राष्ट्रीय फेडरेशन से कहना चाहिए कि प्रदेश में नए सिरे से संघ के चुनाव करवाएं जाए। नई कार्यकारिणी में पुरानी कार्यकारिणी का एक भी सदस्य न रहे इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि वे इस सारे मामले को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री जो कि अब ओलंपिक संघ के भी अध्यक्ष हैं, उनसे बात करेंगी। उन्होंने इस मामले में मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि वे इसमें हस्तक्षेप करें।
हम क्यों करें मान्यता समाप्त: बशीर
इस मामले में ओलंपिक संघ के सचिव बशीर अहमद खान का कहना है कि प्रदेश ओलंपिक संघ क्यों कर संघ की मान्यता समाप्त करेगा। उन्होंने कहा कि प्रदेश का खेल विभाग ओलंपिक संघ से पूछ कर संघों को मान्यता नहीं देता है। खेल विभाग में ऐसा नियम भी नहीं है कि प्रदेश ओलंपिक संघ से जिनको मान्यता है उनको मान्यता दी जाएगी। उन्होंने कहा कि अगर भारतीय भारोत्तोलन संघ कुछ लिखकर देता है तभी ओलंपिक संघ मान्यता समाप्त करेगा।
सिद्धार्थ मिश्रा अभी दोषी नहीं
एक तरफ प्रदेश भारोत्तोलन संघ ने अपनी गलती मानते हुए खेल विभाग  से क्षमा मांगी है तो दूसरी तरफ इस मामले में प्रदेश संघ के कार्यकारी अध्यक्ष पी. रत्नाकर का कहना है कि वे सिद्धार्थ मिश्रा को अब भी दोषी नहीं मानते हैं। बकौल श्री रत्नाकर श्री मिश्रा का एक टेस्ट फेल हुआ है, अभी  दूसरे टेस्ट की रिपोर्ट आई नहीं है, इसके आने के बाद ही हम उसे दोषी मानेंगे। यह पूछने पर कि जब आप उसे दोषी नहीं मानते हैं तो फिर संघ ने क्षमा क्यों मांगी है, उनके पास कोई जवाब नहीं था।  

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सोमवार, सितंबर 13, 2010

मैच फिक्सिंग के तार छत्तीसगढ़ से भी जुड़े

अचानक सुबह को दैनिक भास्कर की एक खबर पर नजरें पड़ीं तो हम हैरान रह गए। इस खबर से साफ है कि मैच फिक्सिंग के तार छत्तीसगढ़ से भी जुड़े हैं। फिक्सिंग के तारे छत्तीसगढ़ से जुड़े होने की वजह से हम हैरान नहीं हुए बल्कि हमें हैरानी इस बात को लेकर हुई कि यहां से निकलने वाले एक छोटी सी अंग्रेजी पत्रिका जस्ट स्पोट्र्स के फोटोग्राफर इसमें शामिल हैं। हमें अब समझ में आ रहा है कि क्यों कर इस पत्रिका के बारे में लगातार जानकारी ली जा रही थी। खेलों से हमारा 20 साल से ज्यादा समय से नाता होने की वजह से कई पत्रकार मित्रों ने हमसे भी इस पत्रिका के बारे में पूछा था। संभवत: मीडिया से जुड़े हमारे अलावा और कोई इस पत्रिका के बारे में नहीं जानता था।
हमें आज याद आ रहा है कि एक दिन हमारे पास इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुड़े एक पत्रकार का फोन आया कि कोई जस्ट स्पोट्र्स पत्रिका निकलती है, छत्तीसगढ़ से इसके बारे में क्या जानते हैं? हमने उनको बताया कि यह पत्रिका तो भिलाई के अशोक कुशवाहा निकालते थे, लेकिन संभवत: अब यह काफी समय से बंद है। बात आई-गई हो गई। इसके बाद फिर एक प्रिंट मीडिया के पत्रकार मित्र ने इसी पत्रिका के बारे में जानना चाहा। हमने उनसे पूछा यार कि आखिर बात क्या है इसके बारे में क्यों इतनी जांच हो रही है। इस पर उन्होंने बताया कि दिल्ली के किसी पत्रकार मित्र ने उनसे यह मालूम करने कहा है। इसके बाद फिर से एक इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार मित्र ने इस पत्रिका के बारे में जानना चाहा। हमारा माथा ठनक रहा था कि हो न हो यार है तो कोई बड़ा लोचा जिसके कारण इतने सारे पत्रकारों से इस पत्रिका के बारे में जानकारी ली जा रही है। हमने अपने इन पत्रकार मित्र से कहा भी कि क्या कोई बड़ा गबन-वबन जैसे मामला हो गया है क्या। उन्होंने इतना कह कह कर टाल दिया कि हां यार कोई मामला है लेकिन इसके बारे में मुझे में भी ठीक से नहीं मालूम।
आज दैनिक भास्कर की खबर पढ़कर समझ आया कि वास्तव में माजरा क्या था। दरअसल इस पत्रिका के एक फोटोग्राफर धीरज दीक्षित ने बीसीसीआई से पत्रिका का फोटोग्राफर होने के नाते मान्यता ले रखी थी। इसी के साथ पत्रिका के संपादक अशोक कुशवाहा को भी बीसीसीआई से मान्यता है। अशोक तो कई बार विदेश भी जा चुके हंै भारतीय
टीम के दौरे के समय। अब यह भी खुलासा हुआ है कि उनके साथ फोटोग्राफर धीरज दीक्षित भी कई बार गए हैं। हमें याद है हम उस समय दैनिक देशबन्धु में खेल संपादक थे तो अक्सर अशोक कुशवाहा हमारे पास आते थे और बताते थे कि वे भारतीय टीम के साथ बाहर जा रहे हैं। हमसे वे कहीं से आर्थिक मदद की बात भी कहते थे। इसी के साथ वे हमेशा चाहते थे कि हम उनकी भेजी गई क्रिकेट की खबरों को स्थान दें। हमने लगातार उनकी खबरों को देशबन्धु में स्थान भी दिया। हम उनसे हमेशा कहते थे कि अगर खबरें मैच की रिपोर्टिंग से अगल होंगी तभी हम प्रकाशित करेंगे। वे अक्सर अलग अंदाज की खबरें भेजते थे। हम उनकी खबरों को प्रकाशित करने के साथ उनको खबरें भेजने के लिए कुछ पैसे भी दिलवाते थे।
बहरहाल हम यह तो नहीं जानते हैं कि मैच फिक्सिंग में अशोक शामिल हैं या नहीं। वैसे हमें उम्मीद नहीं है कि वे ऐसा काम कर सकते हैं। हम उनको बरसों से जानते हैं। लेकिन इतना तय है कि अब उनके फोटोग्राफर का नाम तो फिक्सिंग में शामिल हो गया है। सोचने वाले बात यह है कि आखिर भिलाई से निकलने वाली एक छोटी की पत्रिका को कैसे बीसीसीआई से मान्यता दे दी। इसके पीछे दो कारण लगते हैं कि एक तो अपने देश में अंग्रेजी में अगर कोई चीज होती है तो फिर भले वह चीज सड़ी-गली क्यों न हो उसकी पूछ-परख हो जाती है। दूसरी यह कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट राजेश चौहान भी भिलाई के हैं, अशोक कुशवाहा उनके पास भी जाते थे, संभव है मान्यता दिलाने में उन्होंने अशोक कुशवाहा की मदद की हो।

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रविवार, सितंबर 12, 2010

राजधानी में अखबार-वार

छत्तीसगढ़ की राजधानी में इन दिनों राजस्थान पत्रिका के आगमन को लेकर एक तरह के अखबार वार चल रहा है। इस अखबार वार में वे सारे अखबार कूद पड़े हैं जो अपने को नंबर वन समझते हैं। वास्तव में यह एक दुखद बात है कि आज अखबार पूरी तरह से व्यापार बन गया है। अखबार चलाने के लिए गिफ्ट का सहारा लेना पड़ रहा है। अब लेना भी क्यों न पड़े जब इतने ज्यादा अखबार होंगे तो अखबार के साथ पाठक भी तो अपना फायदा खोजेगा ही।
हम जिस रास्ते से रोज प्रेस जाते हैं, उस रास्ते में ज्यादातर जितने भी घर पड़ते हैं, उन घरों के दरवाजों पर एक साथ कई अखबारों ने बोर्ड लगे नजर आते हैं। एक घर के दरवाजे पर राजस्थान पत्रिका ने कृपया हार्न न बजाए लिखा बोर्ड लगा दिया तो उसी दरवाजे पर कुत्तों से सावधान रहें, वाला बोर्ड नई दुनिया ने लगा दिया। अब भला नवभारत कैसे पीछे रहता उसने भी चिपका दिया नो पार्किग वाला बोर्ड, अब बचा भास्कर कैसे पीछे रहता, उसने भी लगा दिया दरवाजे के सामने गाड़ी खड़ा करना मना है लिखा हुआ बोर्ड। एक तरफ अखबारों का बोर्ड वार चल रहा है तो दूसरी तरफ राजधानी के हर वार्ड में अखबारों के सर्वेयर नजर आ जाते हैं। घर-घर दस्तक देकर जहां वे ये पूछते हैं कि आपके घर कौन सा अखबार आ रहा है, वहीं वे गिफ्ट देते हैं। भले आप अखबार न लें लेकिन कम से कम गिफ्ट लेकर अपना मोबाइल और फोन नंबर तो दे दें ताकि वे अपने दफ्तर जाकर बता सकें कि वे कितने घरों का सर्वे करके आए हैं। इससे कम से कम उन गरीब सर्वेयरों की रोजी-रोटी चलती रहेंगी।
वास्तव में जिस तरह का अखबार वार राजधानी में चल रहा है उसने एक बार फिर से यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि आज के अखबार आखिर किस दिशा में जा रहे हैं। इसमें कोई दो मत है कि काफी समय से अखबार एक तरह से व्यापार हो गया है। अखबार के व्यापार होने में परेशानी नहीं है, लेकिन इस व्यापारीकरण में अखबार यह भूल गए हैं कि वे गिफ्ट देकर अखबार नहीं बल्कि रद्दी बेच रहे हैं। जो भी गिफ्ट के लालच में अखबार लेंगे वे अखबार पढ़ेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है। हमें याद है कुछ साल पहले भास्कर ने एक कुर्सी योजना चलाई थी। इस योजना ने अखबार को प्रसार संख्या के हिसाब से तो नंबर वन बना दिया, लेकिन उसी समय यह बात भी सामने आई थी कि जिन लोगों ने कुर्सी के लालच में अखबार लिया था, उनमें से जहां काफी लोग अनपढ़ थे, वहीं काफी लोगों को हिन्दी भी नहीं आती थी। उस समय क्या रिक्शे वाले और क्या ठेके वाले और क्या मजदूर सभी कुर्सी के लालच में भास्कर के सामने लाइन लगाए खड़े रहते थे। ऐसे लोगों का मकसद कम कीमत पर कुर्सी लेने के साथ अखबार की रद्दी बेचकर पैसे कमाने के सिवाए कुछ नहीं था।
ऐसा नहीं है कि इन सब बातों से अखबार के मालिक बेखबर हैं, वे भी जानते हैं, लेकिन वे भी क्या करें बाजार में टिके रहना है तो यह सब तो करना पड़ेगा। अब अगर आप नंबर वन की दौड़ में शामिल हैं तो फिर बाजार के हिसाब से चलना ही पड़ेगा फिर चाहे बाजार की मांग पर कम से कम कपड़ों वाली या फिर अश्लील या फिर पूरी नंगी फोटो भी क्यों न छापनी पड़े आपको अखबार में। वैसे अब तक तो हिन्दी अखबार नंगी तस्वीरों से परहेज कर रहे हैं, लेकिन जिस तरह से बाजारवाद अखबारों पर हावी हो रहा है उससे लगता है कि वह दिन भी दूर नहीं जब हिन्दी अखबारों में भी नंगी तस्वीर छपने लगेंगी। जिस दिन ऐसा हुआ वह दिन वास्तव में हिन्दी पत्रकारिता के लिए दुखद होगा और यह तय है कि उस दिन से घरों में हिन्दी अखबारों के लिए प्रवेश बंद हो जाएगा।

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शनिवार, सितंबर 11, 2010

अलग अंदाज में होगा छत्तीसगढ़ ओलंपिक

छत्तीसगढ़ के दस साल पूरे होने के अवसर पर प्रदेश की राजधानी में होने वाला छत्तीसगढ़ ओलंपिक महाकुंभ एक खास अंदाज में होगा। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की घोषणा के बाद इस आयोजन की तैयारी में खेल विभाग जुट गया है। खेल विभाग ने अब तक इस बात का तो खुलासा नहीं किया है कि इस आयोजन में कितने खेलों को शामिल किया जाएगा, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि ङाारखंडराष्ट्रीय खेलों में जितने खेलों में खेलने की पात्रता छत्तीसगढ़ को मिली है, उन खेलों के साथ राज्य में प्रचलित कुछ खेलों को शामिल किया जाएगा।
प्रदेश ओलंपिक संघ की कमान संभालते ही प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने यह घोषणा की थी कि राज्य के दस साल पूरे होने पर राज्य में पहली बार छत्तीसगढ़ ओलंपिक के नाम से खेलों का एक बड़ा आयोजन किया जाएगा। इस आयोजन में राज्य स्तर पर कई खेलों के साथ राष्ट्रीय स्तर पर बास्केटबॉल और क्रिकेट का भी एक बड़ा आयोजन किया जाएगा। इस घोषणा के बाद से खेल विभाग इस दिशा में काम कर रहा है कि आखिर छत्तीसगढ़ ओलंपिक का आयोजन किस तरह से किया जाए कि इसको ेयादगार बनाया जा सके।
संस्थानों की टीमों को भी मिलेगा मौका
खेल विभाग से जुड़े अधिकृत सूत्रों का कहना है आयोजन को एक अलग अंदाज में पेश करने के लिए ऐसा किया जा रहा है कि जिन संस्थानों जैसे पुलिस, सिविल सर्विसेज, जीवन बीमा निगम, बीएसएनएल, डाक विभाग, रेलवे, जिंदल, भिलाई स्टील प्लाट, एनटीपीसी के साथ राज्य के जिलों में जो लोकप्रिय क्लब हैं, उनकी टीमों को हर खेल में प्रवेश दिया जाएगा। हर खेल में राज्य की विजेता और उपविजेता टीम को प्रवेश देने की योजना है। सारी योजना ओलंपिक संघ से जुड़े पदाधिकारियों के साथ खेल संघों से जुड़े पदाधिकारियों के साथ मिलकर बनाई जाएगी।
लोक खेल भी होंगे शामिल
आयोजन में किन खेलों को शामिल किया जाए इसको लेकर चर्चा चल रही है। ऐसे में खेलों के जानकारों की मानें तो उनका कहना है कि ज्यादा खेलों को शामिल करने की बजाए ङाारखंड के राष्ट्रीय खेलों में खेलने की पात्रता प्राप्त कर चुके खेलों के साथ राज्य में प्रचलित खेलों फुटबॉल, वालीबॉल, कबड्डी, कुश्ती जैसे खेलों के साथ कुछ लोक खेलों को भी शामिल करना चाहिए। इन खेलों में एक अहम खेल के रूप में राज्य में तेजी से ऊभर रहे जंप रोप को भी अनिवार्य रूप से शामिल करने की बात खेलों के जानकार कहते हैं। इनका कहना है कि जंप रोप एक ऐसा खेल है जिसे हर खेेल की नींव कहा जा सकता है। हर खेल का खिलाड़ी फिटनेस के लिए इस खेल से नाता जोड़ता है। ऐसे में जबकि इस खेल के राज्य के तीन खिलाड़ी विश्व कप में भी खेले हैं तो इस खेल को भी शामिल करना चाहिए।
राष्ट्रीय मैराथन भी हो
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने भले राष्ट्रीय स्तर की बास्केटबॉल और क्रिकेट के एक आयोजन की बात की है, पर इसी के साथ पूणे मैराथन की तर्ज पर मैराथन का एक राष्ट्रीय या फिर अंतरराष्ट्रीय आयोजन भी किया जा सकता है। मुख्यमंत्री मैराथन के नाम से या छत्तीसगढ़ मैराथन के नाम से इस स्पर्धा का आयोजन किया जाए तो छत्तीसगढ़ का नाम पूरे देश में हो सकता है। वैसे राज्य में होने वाली एक लाख की इनामी मैराथन का अपना अलग स्थान है, लेकिन यह मैराथन ३० किलो मीटर होने की वजह से इनमें शामिल राज्य के खिलाडिय़ों को राष्ट्रीय स्तर पर मौका नहीं मिल पाता है। छत्तीसगढ़ ओलंपिक में अगर मैराथन को शामिल किया जाए तो आयोजन की शान और बढ़ जाएगी ऐसा खेलों का जानकार कहते हैं।

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शुक्रवार, सितंबर 10, 2010

सबको लूट रहीं हैं मोबाइल कंपनियां

अपने देश में जितनी भी मोबाइल कंपनियां काम कर रही हैं कोई भी कंपनी यह दावा नहीं कर सकती है कि वह ईमानदार है। चाहे वह बीएसएनएल ही क्यों न हो। हर कंपनी का एक सूत्रीय काम है उपभोक्ताओं को लूटने का। उपभोक्ता बेचारा क्या करें उनके पास लुटने के अलावा कोई चारा नहीं है।
अचानक हमने कल अपने रिलायंस के रिम वाले मोबाइल का बैलेंस चेक किया तो हैरान रह गए। एक दिन पहले 127 रुपए थे और कल 74 रुपए। हमने सोचा यार इतनी बात हमने कहा कर डाली। एक तो हमारे मोबाइल में 299 रुपए वाली स्कीम डली है उससे रिम और रिलायंस में अनलिमिटेड बात होती है, इसी के साथ किसी भी नेटवर्क में रोज आधे धंटे बात कर सकते हैं। फिर ऐसा क्या हुआ कि इतना पैसा एक ही दिन में कट गया। हमने कंपनी के उपभोक्ता केन्द्र को फोन लगाया तो उधर बैठे हुए जनाब ने अपने कम्प्यूटर में जांच कर बताया कि हमारे मोबाइल में दो अन्य सेवाएं चल रही हैं। हमने जब उनसे कहा कि हमने तो ऐसी कोई सेवा प्रारंभ नहीं करवाई है तो फिर ये कैसे चालू हो गई तो उन्होंने कहा कि आपने ही चालू करवाई होगी। आप कहें तो इसे बंद कर दें। हमने तत्काल वो सेवाएं बंद करवाई। लेकिन तब तक तो हमारे जेब पर कैची चल ही चुकी थी।
अब कंपनी वाले तो यही कहते हैं। एक तो कंपनी के इतने ज्यादा फोन और एसएमएस आते हैं कि पूछिए मत। अगर गलती से भी आपने या आपके बच्चों ने मोबाइल का कोई बटन दबा दिया तो हो गई कोई भी सर्विस चालू। वैसे ज्यादातर मामलों में कंपनी वाले खुद से कोई भी सेवा प्रारंभ कर देते हैं। जब उपभोक्ता को मालूम होता है तो उसे बंद कर दिया जाता है। लेकिन तब तक तो आपके जेब पर कैची चल चुकी रहती है।
यह सिर्फ रिलायंस में होता है ऐसा नहीं है, हर कंपनी का यही काम है। हमारे एक पत्रकार मित्र के पास बीएसएनएल का सिम है। वे काफी दिनों से परेशान हैं कि रोज उनके तीन-चार रुपए काट दिए जाते हैं। ऐसा हर किसी के साथ होता है। हमारा ऐसा मानना है कि हर मोबाइल कंपनी वाले अगर अपने हर ग्राहक की जेब पर रोज एक रुपए की भी कैची चला दे (चलाई ही जाती है) तो भी कंपनी के एक दिन में लाखों के वारे-न्यारे हो जाए। अब कौन सा ऐसा उपभोक्ता होगा जो एक-एक रुपए का हिसाब रखता है। उपभोक्ता चाहे वह प्रीपैड वाला हो या पोस्ट पैड वाला, हर कोई ठगा जा रहा है और मोबाइल कंपनियों की लूट का शिकार हो रहा है, लेकिन कोई कुछ कर नहीं पा रहा है। हर रोज खुले आम लाखों की लूट करने वाली कंपनियों के लिए कोई कानून नहीं है कि उसे रोका जाए। हर उपभोक्ता के लिए मोबाइल आज जरूरी हो गया है और ऐसे में हर आदमी सोचता है कि यार एक-दो रुपए के लिए क्या उलझा जाए, फिर कंपनी वालों की दादगिरी भी नहीं है, आपने ज्यादा बात की नहीं कि फट से कट जाता है आपके मोबाइल का कनेक्शन फिर अपने चालू करवाने के लिए लगाते रहे फोन। इन सब परेशानियों से बचने के लिए ही उपभोक्ता कुछ नहीं करते हैं जिसका फायदा मोबाइल कंपनी वाले उठाते हैं। मोबाइल उपभोक्ताओं में जागरूकता के बिना इनकी लूट पर विराम लगने वाला नहीं है। 

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गुरुवार, सितंबर 09, 2010

फिर वो भी हर पल होंगे उदास


उनको तो मिल गया किसी का सहारा
हम अब तक हैं बेसहारा
कैसे चलेगा जिदंगी का गुजारा
सोचता है दिल हमारा बेचारा
दिल सच में है बेचारा
जो उनके इशारे पे गया मारा
जब दिल गया उनके इशारे पे मारा
तो अब कैसे हो उनके बिना गुजारा
उनको गुरूर है अपने आप पर
अपने हुश्न पर, अपने शबाब पर
लेकिन हम उनका गुरूर तोड़ेंगे
उनको भी एक दिन तन्हा छोड़ेंगे
तन्हाई जब उनको रूलाएगी
जरूर उनको हमारी याद आएगी
लेकिन तब हम नहीं होंगे पास 
फिर वो भी हर पल होंगे उदास

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बुधवार, सितंबर 08, 2010

सब जूनियर खिलाडिय़ों के लिए भी हों राज्य पुरस्कार

प्रदेश के सब जूनियर खिलाडिय़ों के लिए भी अब राज्य पुरस्कार दिए जाने की मांग उठने लगी है। ऐसे में जबकि राज्य के खेल पुरस्कारों के नियमों में संशोधन की बात की जा रही है तो खेल के जानकारों का मानना है कि जब खेल विभाग सब जूनियर खिलाडिय़ों के खेलवृत्ति के साथ नकद राशि पुरस्कार देता है तो फिर राज्य के पुरस्कार से उनको वंचित क्यों रखा जाता है। फुटबॉल की दो बालिका खिलाडिय़ों को पहली बार अंतरराष्ट्रीय  स्तर पर खेलने का मौका मिला है। इसी के साथ साफ्ट टेनिस में प्रदेश के आकाश चौबे भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेले हैं। ऐसे खिलाडिय़ों को क्यों न राज्य के पुरस्कारों से नवाजा जाए ऐेसा इन खेलों से जुड़े लोगों के साथ अन्य खेल संघों के पदाधिकारी भी कहते हैं। वैसे बास्केटबॉल के साथ और भी कुछ खेलों में सब जूनियर वर्ग में जहां टीमें राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत रही हैं, वहीं व्यक्तिगत खेलों में भी खिलाड़ी कमाल कर रहे हैं।
खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा दिए जाने वाले राज्य के खेल पुरस्कारों के नियमों को लेकर इन दिनों चर्चा है कि इनके नियमों में भारी विसंगतियां हैं और इन नियमों में बदलाव की बयार चल रही है। ऐसे में जबकि नियमों में संशोधन की बात चल रही है तो नियमों में कुछ और नया करने की बातें भी सामने आने लगीं हंै। एक बात यह सामने आ रही है कि खेलों  की नींव सब जूनियर स्तर को माना जाता है। इस स्तर के खिलाडिय़ों के लिए प्रोत्साहन के लिए प्रदेश सरकार खिलाडिय़ों को खेलवृत्ति और नकद राशि पुरस्कार तो दे रही है लेकिन राज्य का खेल पुरस्कार नहीं दिया जाता है। खेलवृत्ति में जहां जिला स्तर पर १८ सौ रुपए की राशि दी जाती है, वहीं राज्य स्तर पर पदक विजेताओं को २४ सौ की राशि दी जाती है। इसी के साथ राष्ट्रीय स्पर्धाओं में स्वर्ण विजेता को दस हजार, रजत विजेता को पांच हजार और कांस्य विजेता को चार हजार की राशि दी जाती है। खेलवृत्ति के साथ नकद राशि पुरस्कार से खिलाडिय़ों का मनोबल तो बढ़ रहा है, लेकिन इसके बाद भी यह जरूरी है कि राज्य के जूनियर खिलाडिय़ों को जिस तरह से शहीद कौशल यादव पुरस्कार के साथ एक लाख की नकद राशि और सीनियर खिलाडिय़ों को शहीद राजीव पांडे पुरस्कार के साथ दो लाख पच्चीस हजार की नकद राशि दी जाती है, उसी तरह से सब जूनियर खिलाडिय़ों के लिए भी एक पुरस्कार और एक लाख के आस-पास की नकद राशि दी जानी चाहिए।
तीन खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेले
इस साल राज्य के लिए तीन खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेले हैं जिसके कारण भी यह मांग अब सामने आई है। पहली बार फुटबॉल में दो खिलाड़ी सुप्रिया कुकरेती और निकिता स्विसपन्ना श्रीलंका में एशियन फुटबॉल फेस्टिवल में खेलीं। इधर एक नए खेल साफ्ट टेनिस में आकाश चौबे को जापान में सब जूनियर विश्व कप में खेलने का मौका मिला।
पुरस्कार से वंचित क्यों?
फुटबॉल के कोच मुश्ताक अली प्रधान, जिला फुटबॉल संघ के दिवाकर थिटे के साथ खिलाड़ी शिरीष यादव, रेफरी शफीक अमन का कहना है कि सब जूनियर वर्ग में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलना आसान नहीं होता है। निश्चित ही अगर किसी भी खेल में खिलाडिय़ों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका मिला है तो उनमें प्रतिभा है। ऐसी प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के लिए अगर राज्य में खेल पुरस्कार होता है तो इससे बड़ी बात नहीं हो सकती है। साफ्ट टेनिस संघ के सचिव प्रमोद कुमार ठाकुर कहते हैं कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि सब जूनियर स्तर से ही अगर खिलाडिय़ों के लिए पुरस्कार हो तो खिलाड़ी और ज्यादा मेहनत करेंगे।
निचले स्तर से प्रोत्साहन जरूरी
प्रदेश ओलंपिक संघ के उपाध्यक्ष गुरूचरण सिंह होरा का कहना है कि राज्य में जितने ज्यादा स्तर के पुरस्कार होंगे उतना ही अच्छा है। अपने राज्य की मेजबानी में ३७वें राष्ट्रीय खेल होने हैं। ऐसे समय में अगर राज्य में सब जूनियर वर्ग के लिए राज्य के पुरस्कार घोषित कर दिए जाते हैं तो इसका फायदा अपनी मेजबानी में होने वाले राष्ट्रीय खेलों में मिलेगा। सब जूनियर वर्ग के खिलाड़ी राष्ट्रीय खेलों तक सीनियर वर्ग में पहुंचने लायक हो जाएंगे। खिलाडिय़ों के लिए अगर हर स्तर पर पुरस्कार तो खिलाडिय़ों में उस पुरस्कार को पाने के लिए प्रतिस्पर्धा रहती है।
प्रदेश वालीबॉल संघ के सचिव मो. अकरम खान का कहना है कि वैसे भी अपना राज्य कुछ न कुछ नया करने में माहिर रहा है। देश के किसी भी राज्य में सब जूनियर वर्ग के लिए कोई पुरस्कार नहीं दिया जाता है, ऐसे में अगर अपने राज्य में यह पहल की जाती है तो यह पूरे देश के लिए एक मिसाल होगी। बास्केटबॉल संघ के महासचिव राजेश पटेल कहते हैं कि अपने राज्य में राष्ट्रीय स्तर पर हमारे बास्केटबॉल की बालिका टीम के साथ बालक टीमें भी लगातार पदक जीत रही है अगर सब जूनियर वर्ग में भी खेल पुरस्कार हो जाए तो इससे अच्छी और कोई बात हो ही नहीं सकती हैं।
कराते संघ के अजय साहू का कहना है कि हमारे खेल में तो ८ साल वर्ग से ही मुकाबले प्रारंभ हो जाते हैं। ऐसे में हमारे खेल के लिए इससे बड़ी खुशी की बात हो ही नहीं सकती है कि राज्य सरकार सब जूनियर खिलाडिय़ों को खेल पुरस्कार देना प्रारंभ कर दें। ऐसे करने से स्कूली खिलाडिय़ों को प्रोत्साहित होंगे क्योंकि इस वर्ग के खिलाड़ी स्कूल स्तर के होते हैं। स्कूली खिलाडिय़ों के प्रोत्साहित होने का मतलब साफ है कि स्कूलों में भी खेलों का स्तर सुधारेगा। आज यह बात किसी से छुपी नहीं है कि स्कूल में खेलों का स्तर सबसे खराब है।

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मंगलवार, सितंबर 07, 2010

छत्तीसगढ़ के पांच ब्लाग टॉप 40 में

दो दिन पहले अचानक चिट्टा जगत के टॉप 40 ब्लागों की सूची पर नजरें पड़ीं तो देखा कि वहां पर छत्तीसगढ़ के पांच ब्लाग हैं। इस समय ललित डाट काम, अमीर धरती-गरीब लोग, राजतंत्र, आरंभ और धान के देश में टॉप 40 में हैं। हमने आज से करीब डेढ़ साल पहले जब ब्लाग जगत में कदम रखा था, तभी से हमारी इच्छा थी कि हमारा ब्लाग भी टॉप में रहे। और यह इच्छा एक साल होते-होते पूरी हो गई।
हमें आज भी याद है जब हमने ब्लाग जगत में नया-नया कदम रखा था तब हमारे एक लेख पर खूब बवाल मचा था और कुछ ब्लागर हमारे इस तरह से पीछे पड़ गए थे मानो हमने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो। हम इतना जानते हैं कि हर इंसान के अपने विचार होते हैं जरूरी नहीं है कि उनके विचारों से आपके विचार भी मेल खाए लेकिन इसका यह मलतब कदापि नहीं होता है कि आप उस इंसान के इस तरह से पीछे पड़ जाए कि वह इंसान सदमे में लिखना ही बंद कर दे। हमें प्रारंभ में यही आभास हुआ था कि ब्लाग जगत में लोग नए लोगों को खासकर ऐसे लोगों को पसंद नहीं करते हैं तो बेबाकी से लिखने का काम करते हैं।
बहरहाल हमने उसी दिन सोच लिया था कि हमारे लेख पर भड़कने वालों को हम एक दिन जरूर बताएंगे कि हम क्या कर सकते हैं। हमने एक लक्ष्य बनाया था टॉप 40 में पहुंचने का उसे पूरा भी कर दिया। तब हम यह नहीं जानते थे कि यहां तक पहुंचने का रास्ता क्या है, बस हमें अपने लेखन पर भरोसा था, हम लिखते गए और हमारे लिखे को सब पसंद करते गए और सब भूल गए कि हमने पहले क्या लिखा था, आज हम जानते हैं कि ब्लाग जगत में हमारे सभी मित्र हैं। हमने कभी दिल में किसी के लिए कोई दुर्भावना नहीं रखी है। हमने तो ब्लाग जगत से गुटबाजी को दूर करने के लिए एक प्रयास के तहत ही ब्लाग चौपाल का आगाज किया है। इसमें हम कितने सफल हो रहे हैं हम नहीं जानते हैं। लेकिन हमारा प्रयास जारी है।
खैर हम बातें करें अब टॉप 40 में छत्तीसगढ़ के टॉप पांच ब्लागों की। पहले पहल जब हम ब्लाग जगत में आए थे, टॉप 40 में एक मात्र अनिल पुसदकर का ब्लाग अमीर धरती-गरीब लोग ही दिखता था। इसके बाद इसमें राजतंत्र और ललित डाट काम ने दस्तक दी। अब तो कम से कम ये तीनों ब्लाग टॉप 40 का हिस्सा हैं हीं। लेकिन इसी के साथ अब आरंभ और धान के देश में भी टॉप 40 में शामिल हैं। एक समय संजीत त्रिपाठी का ब्लाग भी टॉप 40 में था, पर उन्होंने जैसे ही लिखना कम किया उनका ब्लाग बाहर हो गया है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज छत्तीसगढ़ में ही सबसे ज्यादा ब्लाग लेखन हो रहा है। हमें आशा है कि एक समय जरूर टॉप 40 में से कम से कम 10 ब्लाग छत्तीसगढ़ के होंगे। एक स्वस्थ्य प्रतिस्पर्धा को लेकर चलें और लेखन में ध्यान दें तो कोई भी ब्लाग टॉप में शामिल हो सकता है। जब तक किसी भी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा नहीं होती है इंसान आगे नहीं बढ़ सकता है।

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सोमवार, सितंबर 06, 2010

पत्रकार भी गरीबी रेखा के नीचे!

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी की बात अगर केन्द्र सरकार मान लेती है तो कम से कम अपने राज्य छत्तीसगढ़ के तो सैकड़ों पत्रकार जरूर गरीबी रेखा के नीचे आ जाएंगे। इन दिनों पत्रकारों के बीच इस बात को लेकर चर्चा है कि यार कितना अच्छा होता गर गडकरी की बात मान ली जाती और केन्द्र सरकार गरीबी रेखा की आय सीमा एक लाख रुपए कर देती। यह बात सब जानते हैं कि कुछ सीनियर पत्रकारों को छोड़कर बाकी पत्रकारों को छत्तीसगढ़ में दो से आठ हजार रुपए के बीच ही वेतन मिलता है। आठ हजार वेतन पाने वाला गर गरीबी रेखा के नीचे आ जाए तो क्या बुरा है, इतने पैसों में वैसे भी आज की महंगाई में घर चलाना मुश्किल है। वैसे गरीबी रेखा की आय सीमा देखा जाए तो हास्यप्रद ही लगती है।
भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने अपने छत्तीसगढ़ प्रवास में एक बात ठीक कही कि केन्द्र सरकार को गरीबी रेखा की आय सीमा एक लाख तक कर देनी चाहिए। वैसे इसमें कोई दो मत नहीं है कि गरीबी रेखा की बीस हजार की आया सीमा गले उतरने वाली नहीं है। एक तरफ सरकार ने यह सीमा तय कर रखी है, दूसरी तरफ मजदूरों को दी जाने वाली सरकारी मजदूरी की दर सौ रुपए के आस-पास है। इसके हिसाब के एक मजदूर को तीन हजार रुपए माह में मिल जाते हैं। ऐसे में साल में एक मजदूर 36 हजार तो कमा ही लेता है। जब सरकारी हिसाब से मजदूर 36 हजार कमा लेता है तो फिर गरीबी रेखा की आय सीमा 20 हजार कैसे हैं सोचने वाली है, हमें लगता है कि मजदूरी बढ़ाने की तरफ तो सरकार से जरूर ध्यान दिया, पर गरीबी रेखा की आय सीमा बढ़ाना अब तक जरूरी नहीं माना गया है। इस सीमा को बढ़ाना चाहिए। अब यह सीमा कितनी होनी चाहिए यह अलग मुद्दा है।
लेकिन इतना तय है कि अगर गडकरी के हिसाब से यह सीमा एक लाख कर दी जाए तो अपनी पत्रकार बिरादरी भी गरीबी रेखा के नीचे आ जाएगी। आज-कल छत्तीसगढ़ से गडकरी के जाने के बाद मीडिया में यही चर्चा है कि पत्रकार भी गरीबी रेखा की सीमा में आए गए तो उनको भी रमन सरकार का एक रुपए किलो चावल मिल जाएगा। अब यह बात अलग है कि कोई पत्रकार इस चावल को खाना पसंद नहीं करेगा, लेकिन इस तरह की बातें जरूर हो रही हैं।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि अपने राज्य में पत्रकारों का वेतन सबसे कम है। यहां तो दो हजार में भी पत्रकार मिल जाते हैं। कई सालों से पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों को चार से आठ हजार के बीच ही वेतन मिलता है। कुछ सीनियर पत्रकारों को छोड़ दिया जाए और कुछ बड़े अखबारों को छोड़ दिया जाए तो पत्रकारों का वेतन एक लाख रुपए सालाना नहीं है। वास्तव में देखा जाए तो हमारे पत्रकार गरीबी रेखा के नीचे होने के पात्र हैं। अब आज के महंगाई के दौर में क्या चार हजार में कोई घर चला सकता है? फिर यह नहीं भूलना चाहिए कि आज पत्रकारों को घर से दफ्तर और दफ्तर से घर आने-जाने में अपने वाहनों में पेट्रोल भी फुंकना पड़ता है। पेट्रोल और मोबाइल का खर्च ही हर पत्रकार का कम से कम दो हजार रुपए हो जाता है, ऐसे में कल्पना करें कि चार हजार पाने वाला पत्रकार कैसे अपना जीवन चलाएगा।
यहां पर कोई यह तर्क जरूर दे सकता है कि पत्रकारों की ऊपरी कमाई तो होती है। हम बता दें कि अब ऐसा जमाना नहीं रह गया है कि लोग पत्रकारों से डरकर उनकी जेंबे गरम कर दें। चंद रसूकदार पत्रकारों को छोड़ दिया जाए तो कोई अधिकारी पत्रकारों को घास नहीं डालता है।

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रविवार, सितंबर 05, 2010

क्या नेता कानून से बड़े हैं?

हर तरफ जाम लगा है एक रिक्शे में एक मरीज तडफ़ रहा है, रिक्शे वाला बार-बार पुलिस वाले से कहता है कि भाई साहब हमें जाने दे नहीं तो यह मरीज मर जाएगा, लेकिन पुलिस वाला है कि रिक्शे वाले को जाने ही नहीं देता है। कारण साफ है अगर उसने उसे जाने दिया तो उसकी नौकरी पर बन आएगी, क्योंकि सामने से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी का कारवां आने वाला है जिनके स्वागत में पूरी भाजपा सरकार जुटी हुई है। अब जब सरकार के आदेश पर रास्ता बंद किया गया तो फिर पुलिस वाले की क्या मजाल की वह किसी को जाने दे। लेकिन हां अगर आप नेता के चमचे हैं या झूठ बोलने का दम है तो रास्ता जरूर मिल जाता है। जिस रास्ते से मरीज वाले रिक्शे को जाने नहीं दिया गया, उस रास्ते से एक बोलेरो जरूर जीप में संगठन महामंत्री और एसपी के होने का झूठ बोलकर निकल गई। सोचने वाली बात यह है कि क्या अपने नेता देश के कानून से भी बड़े हैं जिनके कारण हमेशा सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की भी अनदेखी की जाती है।
यह बहुत आम बात है कि जब भी किसी शहर में कोई बड़ा नेता जाता है तो सारे रास्ते उनके लिए बंद कर दिए जाते हैं, क्योंकि अपने देश में सबसे ज्यादा जान का खतरा तो इन नेताओं को ही है। नेताओं की वजह से आम जनता को होने वाली परेशानी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह कह दिया है कि अगर नेताओं को अपनी जान का इतना ही खतरा है तो वे बाहर ही न जाए। लेकिन क्या नेता बाहर जाए बिना रह सकते हैं। ऐसे में जबकि वे बाहर जाते हैं तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश को तार-तार कर  दिया जाता है। ऐसा ही यहां छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में तब हुआ जब यहां पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी का आना हुआ। उनके आने की वजह से दो दिनों तक शहर की जनता तस्त्र रही। पहले ही दिन एक रास्ते पर यह नजारा देखने को मिला कि एक रिक्शे में बैठे मरीज को गंभीर होने के बाद भी पुलिस वालों ने जाने नहीं दिया। पुलिस वाले यही करते रहे हैं मरीज मर भी जाए तो हम क्या कर सकते हैं।
एक तरफ मरीज के लिए पुलिस वालों ने रास्ता नहीं दिया, दूसरी तरफ गलत दिशा से एक बोलेरो को सिर्फ इसलिए जाने दिया गया क्योंकि उस बोलेरो में सवार एक युवक ने एक पुलिस वालों से आकर कहा कि जीप में भाजपा के संगठन महामंत्री और एसपी साहब बैठे हैं, इतना सुनते ही पुलिस वालों ने जीप को रास्ता दे दिया। पुलिस वालों ने यह भी जरूरी नहीं समझा कि जाकर देख लें कि वास्तव में उस जीप में एसपी बैठे हैं या नहीं। बाद में रायपुर के एसपी दीपांशु काबरा ने यह माना कि वे इस बोलेरो में नहीं थे।
जहां एक तरफ जाम में एक रिक्शे में मरीज फंसा था, वहीं जाम में एक एम्बुलेंस भी फंसी थी। एम्बुलेंस के लिए नियम है कि उसके लिए सबसे पहले रास्ता देना है। मरीज को ले जाने वाली एम्बुलेंस के लिए तो रेलवे फाटक पर ट्रेन तक को रोकने का प्रावधान है। लेकिन अपने नेताओं के सामने किसी कानून की नहीं चलती है। नेता तो कानून को अपने घर की  लौडी समझते हैं। वास्तव में अपने देश का कानून इतना असहाय है कि वह नेताओं के सामने नपुंसक नजर आता है।

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शनिवार, सितंबर 04, 2010

शिक्षक ही बन गए भक्षक

सुबह को एक खबर पर नजरें पड़ीं कि अपने छत्तीसगढ़ के भिलाई में दो शिक्षक ही भक्षक बन गए। इन भक्षकों ने मासूम छात्राओं को अपना शिकार बनाया। भिलाई के ज्ञानदीप स्कूल के प्राचार्य अतुल मिश्रा एक सातवीं कक्षा में पढऩे वाली एक छात्रा ने पिछले एक साल से ज्यादा समय से छेड़छाड़ कर रहे थे। यह छात्रा भय की वजह से अपने परिजनों को कुछ नहीं बता रही थी, लेकिन जब प्राचार्य ने सारी हदें पार करते हुए छात्रा के साथ 15 अगस्त के दिन जबरदस्ती की और फिर लगातार ऐसे प्रयास करने लगा तो छात्रा ने अपने परजिनों की इसकी जानकारी दी।
ऐसे में परिजनों के साथ कई पालकों ने स्कूल का घेराव कर दिया। इस मामले की पुलिस में रिपोर्ट की गई है। भिलाई में ही एक और मामला कल ही तब सामने आया जब मालूम हुआ कि राजीव गांधी शिक्षा मिशन में कोआर्डिनेटर नेमराज वर्मा ने एक पांचवीं कक्षा की छात्रा के साथ छेड़छाड़ की और उसे अपनी हवस का शिकार बनाने का प्रयास किया। छात्रा ने इसकी जानकारी अपनी शिक्षिका को दी फिर इस मामले की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करवाई गई।
शिक्षा जगत में ये मामले नए नहीं हैं, ऐसे मामले लगातार सामने आ रहे हैं कि शिक्षक ही अपनी छात्राओं का शोषण करते हैं। सोचने वाली बात यह है कि आज के शिक्षकों को क्या हो गया है, कैसे वे इतने गिर गए हैं कि अपनी ही शिष्यों को शिकार बनाने से बाज नहीं आ रहे हैं। लगता है कि आज गुरुओं की आत्मा मर चुकी है।

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शुक्रवार, सितंबर 03, 2010

तैयार रहे जमाने की खाने लात

बहुत कठिन है जिदंगी को चलाना
ये सब हमने बहुत देर ने जाना
न जाने कितने गम हैं जमाने में
क्या रखा है एक मोहब्बत के फंसाने में
मोहब्बत करके गम ही मिलते हैं
फिर नहीं कभी ये गम सिलते हैं
मोहब्बत से हमेशा दूर रहना यारों
ये एक बात तुम भी हमारी मानो
नहीं मानेंगे गर ये बात
फिऱ तैयार रहे जमाने की खाने लात

एक ताजा तरीन कविता पेश है...

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गुरुवार, सितंबर 02, 2010

हम पुरस्कार से वंचित क्यों?

राज्य के खेल पुरस्कारों के लिए इस बार वंचित किए गए शरीर सौष्ठव के खिलाडिय़ों साथ जहां इस संघ के पदाधिकारी भारी खफा हैं, वहीं और कुछ खेल संघों के पदाधिकारियों के साथ खिलाडिय़ों का ऐसा मानना है कि हम ही पुरस्कारों से वंचित क्यों हैं। नियमों की वजह से पुरस्कारों से वंचित रहने वाले खेलों में जंप रोप, म्यूथाई, किक बाक्सिंग पंजा कुश्ती, और पैरा ओलंपिक के खिलाड़ी हैं। इनका मानना है कि जब हम लोग भी राष्ट्रीय के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी धमाकेदार प्रदर्शन कर रहे हैं तो हमें पुरस्कारों से क्यों वंचित रखा जा रहा है। कुछ खेलों के खिलाडिय़ों को पुरस्कारों से वंचित रखे जाने की शिकायतें राज्यपाल शेखर दत्त के साथ मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह तक पहुंची हैं। मुख्यमंत्री ने खिलाडिय़ों को यह भरोसा दिलाया है कि अगली बार जरूर उनको पुरस्कार मिलेंगे।
राज्य के खेल पुरस्कारों की इस बार घोषणा के बाद से ही इनको लेकर विवादों का क्रम चल रहा है। पहले एक डोपिंग के खिलाड़ी का चयन कर लिए जाने का मामला सामने आया। इस मामले के किसी तरह से निपट जाने के बाद यह बात सामने आई कि इस बार शरीर सौष्ठव के खिलाडिय़ों को पुरस्कार से वंचित किया गया है। इस बात को लेकर इस खेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष और शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने भी अपनी नाराजगी जताई। श्री अग्रवाल की वजह से ही छत्तीसगढ़ में इस खेल के खिलाडिय़ों को पुरस्कार देना प्रारंभ किया गया था। लेकिन इस बार खेल पुरस्कारों के चयन के लिए बनाई गई जूरी ने इस खेल के खिलाडिय़ों को यह कहते हुए पुरस्कारों से वंचित कर दिया कि इस खेल संघ को भारतीय खेल मंत्रालय से मान्यता नहीं है। जब इस बात की जानकारी इस खेल संघ के सचिव संजय शर्मा को हुई तो उन्होंने इसका पूरजोर विरोध किया और अपने खिलाडिय़ों के हक के लिए मैदान में उतर आए। संजय शर्मा इस बार तो अपने खिलाडिय़ों को हक दिलवाने में सफल नहीं हुए लेकिन उन्होंने राज्यपाल शेखर दत्त के साथ मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह तक जो शिकायत पहुंचाई उसका नतीजा यह रहा कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने खेल अलंकरण समारोह में यह बात कही कि कुछ खेल के खिलाडिय़ों को और पुरस्कार दिया जाना था, पर नहीं दिया गया, लेकिन अगली बार ऐसा नहीं होगा और किसी भी खेल के खिलाडिय़ों को शिकायत नहीं होगी।
खिलाडिय़ों में निराशा है
संजय शर्मा कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में जिस तरह से शरीर सौष्ठव के खिलाडिय़ों का जलवा रहा है और यहां के खिलाड़ी पी. सालोमन दो बार भारतश्री बने हैं, इसी के साथ जिस तरह से खिलाड़ी लगातार राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत रहे हैं उसके बाद भी खिलाडिय़ों को पुरस्कार से वंचित करना गलत है। बकौल श्री शर्मा कई राज्यों में ऐसे खेलों को पुरस्कारों के लिए शामिल किया जाता है जिनको भारतीय खेल मंत्रालय से मान्यता नहीं है। उनका कहना है कि राज्य शासन पुरस्कार देती है तो फिर किसी भी खेल के लिए भारत सरकार के खेल मंत्रालय से मान्यता की बाध्यता क्यों।
हम भी हैं हकदार
इधर जंप रोप संघ के महासचिव अखिलेश दुबे कहते हैं कि हमारे खिलाड़ी विश्व कप में खेलने के बाद भी पुरस्कार के लिए इसलिए हकदार नहीं है क्योंकि हमारे खेल को भी भारत सरकार से मान्यता नहीं मिली है। उन्होंने बताया कि विश्व कप में खेल कर आए राज्य के खिलाडिय़ों राजदीप सिंह हरगोत्रा, पूजा हरगोत्रा और श्वेता कुर्रे के साथ जब वे मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से मिलने गए थे तो खिलाडिय़ों और संघ को मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया है कि अगली बार जरूर आपके खेल के साथ न्याय होगा और सरकार इस खेल को भी मान्यता देगी।
जंप रोप की तरह ही किक बाक्सिंग के खिलाड़ी भी मान्यता न होने पुरस्कारों से वंचित हैं। इस खेल में राज्य के खिलाड़ी राष्ट्रीय स्पर्धाओं में १५० से ज्यादा पदक जीत चुके हैं। इस खेल संघ की पूर्व अध्यक्ष गुरमीत धनई का कहना है कि हमारा खेल स्कूली खेलों में शामिल है, इसी के साथ इस खेल को छह राज्यों के ओलंपिक संघ ने भी मान्यता दे रखी है, लेकिन छत्तीसगढ़ में इसको ओलंपिक संघ मान्यता नहीं देना चाहता है। इसी के साथ हमारे खिलाड़ी भारतीय खेल मंत्रालय से मान्यता न होने के कारण ही पुरस्कारों से वंचित किए जाते हैं। उन्होंने बताया कि इस खेल में उनकी बेटी राशि धनई का चयन अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा के लिए एक बार हुआ था। श्रीमती धनई का कहना है कि इस खेल के खिलाडिय़ों को भी राज्य के पुरस्कारों से नवाजा जाना चाहिए।
इन खेलों के साथ राज्य में म्यूथाई भी एक ऐसा खेल है जिसके खिलाड़ी लगातार राष्ट्रीय के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत रहे हैं। पंजा कुश्ती के भी खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर अपने जौहर दिखाने का काम कर रहे हैं। पैरा ओलंपिक में कमाल करने वाली अंजली पटेल भी अब मान्यता के नियमों के कारण पुरस्कार से वंचित है।
अलग पुरस्कार ही दे दें
इन खेलों से जुड़े खेल संघों के पदाधिकारियों के साथ खिलाडिय़ों का कहना है कि अगर प्रदेश सरकार को ऐसा लगता है कि राज्य के पूर्व मं घोषित खेल पुरस्कार इन खेलों के खिलाडिय़ों को देना संभव नहीं है तो अलग पुरस्कार भी इन खेलों के साथ और ऐसे खेलों के लिए तय किए जा सकते हैं। ऐसे में जबकि खेल पुरस्कारों के नियमों में संशोधन की बात चल रही है तो ऐसे नियम बनाए जाने चाहिए जिससे राज्य में प्रचलित खेलों  के खिलाडिय़ों को पुरस्कार से वंचित न होना पड़े।

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बुधवार, सितंबर 01, 2010

क्या लेडिस मोबाइल रखने पर पाबंदी है?

हमने दो पहले माइक्रोमैक्स का एक मोबाइल क्यू 55 खरीदा। इस मोबाइल को देखकर हमारे एक मित्र ने कहा अबे यह तो लेडिस मोबाइल है।
हमने कहा कि हमें मालूम है कि यह लेडिस मोबाइल है, लेकिन क्या इसको पुरुषों को रखने पर कहीं पाबंदी लगी है। हमने कहा कि हमें यह पसंद आ गया तो हमने ले लिया। वैसे भी मोबाइल जैसी जीच में क्या लेडिस और क्या जेंटस।
हमारे मित्र ने कहा अब भईया तुम जानों। हमें क्या।
हमने कहा ठीक है बे। हम इतना जानते हैं कि जो चीज पसंद आ जाए उसमें फिर यह नहीं देखना चाहिए कि यह लेडिस के लिए है या जेंटस के लिए है। इस भेदभाव के चक्कर में तो सब बर्बाद हो रहा है। तेरे-मेरे के चक्कर में ही सब गलत होता है।
बहरहाल हम बता दें कि कुछ दिनों पहले अपनी एक परिचित लड़की के पास एक माइक्रोमैक्स का मोबाइल देखा था। यह मोबाइल जिसका मॉडल क्यू 55 है खासकर लेडिस के लिए बनाया गया है। यह मोबाइल हमें पसंद आ गया तो हमने ले लिया। अब इसमें क्या बुराई है।

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