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रविवार, अक्तूबर 17, 2010

ब्लागर भी मारे मन के रावण को

आज विजयदशमी का पर्व है। इस अवसर पर हम पूरे ब्लाग बिरादरी के मित्रों से एक आग्रह करना चाहते हैं कि ब्लाग जगत से गुटबाजी को लात मारते हुए मन के रावण को समाप्त करके सभी एक परिवार की तरह रहने का संकल्प लें। वैसे हम जानते हैं कि यह आसान नहीं है, लेकिन एक प्रयास करने में क्या जाता है।
वैसे हमें लगता नहीं है कि अपने ब्लाग जगत में कभी गुटबाजी समाप्त होगी। हमने इस गुटबाजी को समाप्त करने का जब एक प्रयास ब्लाग चौपाल के माध्यम से किया तो हमें अहसास हो गया कि जो लोग कभी हमें अपना मित्र समझते थे, हम उनकी आंंखों में भी खटकने लगे। अगर ऐसा है भी तो हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। ऐसे मतलबी दोस्त वैसे भी काम के नहीं होते हैं। इतना तो तय है कि आज की दुनिया बहुत ज्यादा स्वार्थी है और जब किसी का किसी से कोई स्वार्थ होता है तो उस समय वो यह नहीं देखता है कि वह उनका दोस्त है या दुश्मन।
हमें ब्लाग जगत में आए करीब डेढ़ साल हो गए हैं। इस दरमियान हमने यही महसूस किया है कि यहां पर अति गुटबाजी है। पहले पहल जब हम ब्लाग जगत में आए थे, तो जो भी ब्लागर मिलता था हम उन्हें अपना दोस्त समझते थे। वैसे आज भी कम से कम हम तो हर ब्लागर को अपना मित्र समझते हैं। लेकिन धीरे-धीरे हमें यह बात मालूम हुई की जो ब्लागर हमसे मित्रता कर रहा है, वह बस और बस यही चाहता है कि हम उनके गुट के साथ जुड़कर रहे। इस गुटबाजी को हमने कई बार चरम पर पहुंचते देखा तो हमने अंत में इससे किनारा करने का मन बना लिया और आज हम किसी भी तरह की गुटबाजी से अलग हैं।
एक तरफ हमने गुटबाजी से किनारा किया तो दूसरी तरफ एक प्रयास किया कि हम कुछ ऐसा करें जिससे गुटबाजी समाप्त हो जाए। हमने करीब चार माह पहले ब्लाग चर्चा के लिए एक ब्लाग चौपाल का आगाज किया। इस चौपाल को हम निरंतर कायम रखे हुए हैं। अब यह बात अलग है कि इस चौपाल के कारण हमारे वे परम मित्र खफा नजर आते हैं जो गुटबाजी में भरोसा करते हैं। उनको हमारा यह प्रयास रास नहीं आया है इसका आभास हमें पहले दिन से ही हो गया था। लेकिन इससे हमें कोई फर्क पडऩे वाला नहीं है। जिनको जो समझना है, वह समझने के लिए स्वतंत्र हंै। हम किसी को रोकने वाले कौन होते हैं। क्योंकि हम हर ब्लागर को अपना मित्र समझते हैं इसलिए किसी को भी समझाना अपना फर्ज समझते हैं। लेकिन समझाने का मलतब यह कदापि नहीं है कि हम अपनी बात किसी पर थोपें। अगर किसी को गुटबाजी करके ही संतोष मिलता है तो हम क्या कर सकते हैं। हमारा ऐसा मानना है कि ब्लाग जगत एक परिवार की तरह है, इसमें मतभेद भले रहे लेकिन मनभेद नहीं होने चाहिए। लेकिन यहां तो मनभेद ज्यादा नजर आते हैं। हमें नहीं लगता है कि कभी ब्लाग जगत से गुटबाजी समाप्त हो पाएगी। लेकिन हम आज विजयदशमी के दिन सभी ब्लागर मित्रों से एक विनम्र अपील कर रहे हैं कि सभी अपने मन के रावण को मारकर एक होने का संकल्प लें। अगर ब्लाग एक हो गए तो ब्लाग जगत एक नई शक्ति के रूप में सामने आ सकता है और हम राज्य के साथ राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

अंत में सभी ब्लागर मित्रों को विजयदशमी की बधाई और शुभकामनाएं

5 टिप्पणियाँ:

ब्लॉ.ललित शर्मा रवि अक्तू॰ 17, 09:45:00 am 2010  


आपका कहना सही है,
गुटबाजी को समाप्त करने के सार्थक प्रयास के लिए आपको बहु्त बहुत साधुवाद
विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

दशहरा में चलें गाँव की ओर-प्यासा पनघट

सूर्यकान्त गुप्ता रवि अक्तू॰ 17, 10:05:00 am 2010  

सर्व प्रथम विजयादशमी की बहुत बहुत बधाई। एकदम सही लिखा है आपने राजकुमार भाई।
गुटबाजी छोड़ "गुडबाजी" लाना है।
प्रेम सौहार्द्र कायम रख सब संग
यह परब हमे मनाना है। पुन: आप सभी को विजयादशमी की बहुत बहुत बधाई।

मनोज कुमार रवि अक्तू॰ 17, 11:16:00 am 2010  

आपसे सहमत।

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोsस्तु ते॥
विजयादशमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

काव्यशास्त्र

उम्मतें रवि अक्तू॰ 17, 06:31:00 pm 2010  

नेक इरादों के साथ लिख गया आलेख ! आमीन !

पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !

Sanjeet Tripathi सोम अक्तू॰ 18, 02:27:00 pm 2010  

bahut hi badhiya baat aur prayaas,
uparwala is kaamna ko safal banaye,

badhai aur shubhkamnayein bhai sahab

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