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शुक्रवार, अक्तूबर 22, 2010

कब तक लुटता रहेगा आम उपभोक्ता

आज का जमाना विज्ञापनों का है। इन विज्ञापनों के चक्कर में उपभोक्ता इस कदर फंस जाता है, कि उसे कई बार सोचने का भी मौका नहीं मिलता है। विज्ञापनों में अंदर कुछ होता है तो बाहर कुछ और होता है। अगर कहीं पर कोई विरोध किया जाता है तो विवाद हो जाता है। ऐसा ही एक विवाद हमारे साथ भी कल हुआ था। बात बहुत छोटी थी, लेकिन हमारा ऐसा मानना है कि उपभोक्ता को अपने हक के लिए लडऩा ही चाहिए। वैसे सोचने वाली बात यह है कि खुले आम उपभोक्ताओं को ठगने वाले दुकानदारों और कंपनियों के खिलाफ सरकार कुछ क्यों नहीं करती है। आखिर कब तक उपभोक्ता इसी तरह से लूटता रहेगा।
कल हमें कुछ कागजातों की फोटो कापी की जरूरत थी। जेएन पाडे स्कूल के पास एक फोटो कापी की दुकान के बाहर बड़ा सा बोर्ड लगा था जिसमें लिखा था 50 पैसे में फोटो कापी करवाए। हमने वहां से 10 फोटो कापी करवाई और इसके लिए पांच रुपए दिए तो दुकानदार और पैसे मांगने लगा। हमने पूछा और पैसे किस बात के तो वह दुकानदार दुकान के अंदर चिपके एक कागज की तरफ इशारा करके बताने लगा कि यहां लिखा है 20 कापी से ज्यादा करवाने पर 50 पैसे लगेंगे। हमारा उस दुकानदार से इसी बात को लेकर विवाद हो गया है कि जब बाहर आपने 50 पैसे में फोटो कापी लिखा है, तो वहीं यह भी लिखना चाहिए था कि 20 कापी से ज्यादा करने पर यह कीमत लगेगी।
यह एक छोटा का वाक्या है। ऐसे वाक्ये हमेशा किसी न किसी के साथ होते रहते हैं। यह तो एक फोटो कापी के दुकान की बात है। बड़ी-बड़ी कंपानियों के विज्ञापन जब बड़े-बड़े अखबारों में प्रकाशित होते हैं तो उसमें किसी भी उत्पाद की जो कीमत लिखी रहती है, दरअसल में वह सही कीमत नहीं होती है। जब कीमत देखकर कोई उपभोक्ता दुकान में वह उत्पाद लेने जाता है, तब मालूम होता है कि उस कीमत पर वह उत्पाद तभी मिलेगा जब आप कोई पुराना उत्पाद देंगे। जो कीमत विज्ञापन में लिखी रहती है, वह दरअसल में एक्सचेंज ऑफर के तहत रहती है। उत्पाद की कीमत तो बड़े-बड़े अक्षरों में रहती है, लेकिन एक्सचेंज ऑफर की बात इतनी छोटे अक्षरों में रहती है कि उस पर नजरें ही नहीं पड़ती हैं। न जाने ऐसे कितने विज्ञापनों से उपभोक्ताओं को बेवकूफ बनाकर ठगने का काम कई कंपनिया कर रही हैं। सोचने वाली बात यह है कि हमेशा जागो ग्राहक जागो का राग आलापने वालों के पास ऐसे विज्ञापनों को रोकने का क्या कोई रास्ता और कानून नहीं है। क्यों कर सरकार ऐसे ठगने वाले विज्ञापनों पर रोक लगाने का काम नहीं करती है। देखा जाए तो यह एक तरह से धोखाधड़ी ही तो है। फिर क्यों कर ऐसी कंपनियों पर धोखाधड़ी के मामले दर्ज किए जाते हैं और क्यों करे उपभोक्ताओं को बेवकूफ बनाने वाले छोटे-बड़े दुकानदारों के खिलाफ अपराध दर्ज किए जाते हैं। आखिर कब तक लुटता रहेगा आम उपभोक्ता।

3 टिप्पणियाँ:

M VERMA शुक्र अक्तू॰ 22, 09:30:00 am 2010  

अन्धेरपुर नगरी चौपट राजा

उम्मतें शुक्र अक्तू॰ 22, 03:21:00 pm 2010  

उपभोक्ता को ठगने के नुस्खे तो हैं ही !

सूर्यकान्त गुप्ता शुक्र अक्तू॰ 22, 09:05:00 pm 2010  

किसी चीज के उपभोग करने वाले के लिये शब्द है "उपभोक्ता" इसीलिये तो वह है सब कष्टों को "भोगता"। अच्छी बात लिखी है आपने। बधाई……

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