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शनिवार, जुलाई 31, 2010

भारत-पाक का मैच छत्तीसगढ़ में संभव

राजधानी में इंडोर स्टेडियम के पूर्ण न होने के कारण एशियन वालीबॉल चैंपियनशिप की मेजबानी खोने के बाद अब इस बात के प्रयास हो रहे हैं कि राजधानी में भारत-पाक का मैच करवाया जाए। इसके लिए प्रदेश वालीबॉल संघ राज्य सरकार के साथ नगर निगम को प्रस्ताव दे रहा है। इस प्रस्ताव में मैच करवाने की बात कहते हुए इंडोर स्टेडियम को सितंबर के प्रथम सप्ताह तक पूर्ण करने कहा जाएगा।
यह जानकारी देते हुए प्रदेश वालीबॉल संघ के महासचिव और भारतीय वालीबॉल फेडरेशन के संयुक्त सचिव मो. अकरम खान ने बताया कि भारत को सीनियर एशियन चैंपियनशिप की मेजबानी मिली है। इस स्पर्धा को करवाने के लिए छत्तीसगढ़ संघ जहां पहले से तैयार था, वहीं राष्ट्रीय फेडरेशन की पहली प्राथमिकता छत्तीसगढ़ ही था। छत्तीसगढ़ को प्राथमिकता देने के पीछे कारण यह है कि यहां जब भी राष्ट्रीय स्पर्धा का आयोजन हुआ है तो उसे पूरे देश में सराहा गया है। पिछले साल भिलाई में एक राष्ट्रीय स्पर्धा हुर्ई। इसके पहले राजधानी में एक आयोजन किया गया। राजधानी में छत्तीसगढ़ बनने के बाद दो बार राष्ट्रीय स्पर्धा हो चुकी है। दोनों आयोजनों से राष्ट्रीय फेडरेशन बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ है। ऐसे में फेडरेशन के पदाधिकारियों का ऐसा मानना था कि अगर एशियन चैंपियनशिप का आयोजन छत्तीसगढ़ में होगा तो वह आयोजन जरूर यादगार होगा। प्रदेश संघ भी ऐसा चाहता था, लेकिन यह संभवत: अपने राज्य की बदकिस्मती रही कि स्पर्धा के आयोजन से पहले स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स का इंडोर स्टेडियम नहीं बन पाया है। अब तक इस स्टेडियम में काम चल रहा है।
ऐसे में जबकि एशियन चैंपियनशिप की मेजबानी छत्तीसगढ़ के हाथ से निकल गई है और यह आयोजन कोलकाता में १६ से २४ सितंबर तक हो रहा है, तब प्रदेश संघ ने यह मन बनाया है कि अगर राज्य सरकार के साथ नगर निगम मदद करे तो राजधानी में भारत-पाक के साथ एक-दो देशों की टीमों को यहां बुलाकर प्रदर्शन मैच करवाए जा सकते हैं। इसके लिए निगम को स्टेडियम को सितंबर के दूसरे सप्ताह तक तैयार करना होगा। अगर स्टेडियम तैयार कर दिया जाता है तो भारत-पाक के मैच के साथ स्टेडियम का उद्घाटन हो जाएगा। अकरम खान कहते हैं कि अगर निगम से यह स्टेडियम अगस्त तक तैयार करने का आश्वासन दे दिया होता तो छत्तीसगढ़ में एशियन चैंपियनशिप का एक ऐतिहासिक आयोजन हो जाता। लेकिन अब भी अपने पास एक अच्छा मौका है। अगर निगम स्टेडियम को सितंबर के दूसरे सप्ताह तक भी तैयार कर ले तो कोलकाता में स्पर्धा के समापन के बाद वहां से पाकिस्तान के साथ कोई और एक देश की टीम को यहां बुलाकर मैच करवाए जा सकते हैं। इसके लिए सरकार का सहयोग लगेगा। उन्होंने बताया कि हमारा संघ एक प्रस्ताव बनाकर सरकार के साथ निगम को दे रहा है। उन्होंने पूछने पर बताया कि एशियन चैंपियनशिप में भारत के साथ इरान, पाकिस्तान, बंगलादेश, मालदीप, नेपाल, कजाकिस्तान और श्रीलंका की टीमें खेलने कोलकाता जाएंगी। एक सवाल के जवाब में अकरम खान ने कहा कि अगर सरकार इस प्रस्ताव को नहीं मानती हैं तो जब भी भारत में खेलने के लिए किसी देश की टीम आएगी तो उसके साथ कुछ टेस्ट मैच यहां करवाएँ जा सकते हैं। लेकिन अभी सुनहरा मौका है इसका लाभ उठाया जा सकता है। अगर रायपुर में पाकिस्तान की टीम के साथ प्रदर्शन मैच हो गया तो इससे राज्य के वालीबॉल खिलाडिय़ों को बहुत फायदा होगा।

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शुक्रवार, जुलाई 30, 2010

यौन शोषण की जानकारी रखने वाले सामने आएं

हम बात करें ऐसे कुछ मामलों की जो यह बताते हैं कि किस तरह से प्रदेश की महिला खिलाडिय़ों का यौन शोषण हो रहा है। जब जगदलपुर में एक बार स्कूली खेलों की राज्य चैंपियनशिप का आयोजन किया गया तो वहां पर टीम के साथ गए हॉकी टीम के कुछ खिलाडिय़ों ने हॉकी टीम की बालिका खिलाडिय़ों के साथ बस में खुले आम गंदी हरकतें कीं। इन सबकी शिकायत होने पर जांच हुई और दोषी खिलाडिय़ों के खेलने पर प्रतिंबध लगा दिया गया।
शिक्षा विभाग का यह काम तारीफ के काबिल तो था, पर उस समय शिक्षा विभाग के अधिकारियों को क्यों सांप सूंघ जाता है जब ऐसे मामलों में उनके विभाग से जुड़े लोग शामिल रहते हैं। तब ऐसे लोगों पर क्यों कार्रवाई नहीं की जाती है। गोवा कांड के सामने आने के बाद कुछ खेल शिक्षकों पर कार्रवाई हुई, फिर इनकी बहाली के साथ ही मामला दबा दया गया। ऐसे लोगों पर आज तक कोई ठोस कार्रवाई न होने के बारे में मालूम किया गया तो यह बातें सामने आईं कि ऐसे लोगों पर इसलिए भी कार्रवाई नहीं होती है क्योंकि ऐसे लोग अपने अधिकारियों के लिए भी वह सब इंतजाम कर देते हैं जिसकी उनको जरूरत रहती है। इन जरूरतों में पैसों से लेकर शराब और शबाब भी शामिल है।
ऐसे में यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि जिन खिलाडिय़ों का यौन शोषण होता है वो इसलिए भी सामने नहीं आतीं क्योंकि उनको मालूम रहता है कि उनका जो यौन शोषण कर रहे हैं उनकी पहुंच ऊपर तक है। जो बातें स्कूली खेलों में हैं वहीं कॉलेज और ओपन वर्ग में भी हैं। ओपन वर्ग में यह ज्यादा है। कारण साफ है जहां ओपन वर्ग का महत्व ज्यादा है, वहीं ओपन वर्ग में टीमें भेजने का काम खेल संघ करते हैं और खेल संघों पर कोई सरकारी लगाम नहीं होती है। स्कूली और कॉलेज स्तर पर तो सरकारी लगाम के कारण कुछ खौफ रहता है, पर ओपन वर्ग में किसी कोच या खेल संघ का पदाधिकारी का सरकार क्या कर लेगी। आज यही कारण है कि खेलों में महिला खिलाडिय़ों की कमी होती जा रही है।
कोई भी पालक आज अपनी लड़कियों को खेलने भेजने की मंजूरी नहीं देते हैं। ज्यादातर जो लड़कियां खेलों में आ रही हैं उनके साथ पालक हर पल साथ लग रहते हैं, या फिर उनको अपनी लड़की या फिर जिसके संरक्षण में वे उसको दे रहे हैं उन पर उनको पूरा भरोसा है। हमारे इस लेख का यह मतलब कदापि नहीं है कि खेलों से जुड़े सभी कोच, खेल संघों से जुड़े लोग या फिर पुरुष खिलाड़ी यौन शोषण करने वाले ही होते हैं। पर ऐसे लोग समाज में हैं तो जरूर। वैसे भी यह प्रकृति का नियम है कि अच्छाई के साथ बुराई भी होती है। ऐसे में खेल जगत इससे कैसे अछूता रह सकता है। खेलों में जहां खेलों को गंदा करने वाले हैं, वहीं ऐसे भी कई कोच, खेलों से जुड़े लोग और खिलाड़ी हैं जो वास्तव में खेल और खिलाडिय़ों के लिए कुछ करना चाहते हैं। यही कारण है कि खेलों में भारी गंदगी होने के बाद भी खेल जिंदा हैं और ऐसे जिंदा दिल लोग भी जिंदा हैं जो सब कुछ जानने के बाद भी अपनी लड़कियों को खेलों में भेजने का साहस करते हैं। ऐसे सभी लोग साधूवाद और सलाम के पात्र हैं। हम ऐसे लोगों को सलाम करते हैं और साथ ही यह भी चाहते हैं कि ऐसी खिलाडिय़ों को जरूर सामने आना चाहिए जिनका यौन शोषण किया जाता है। एक तो सबसे पहले इसका विरोध होना चाहिए। अगर इसका विरोध नहीं होगा तो वह दिन दूर नहीं जब अपने राज्य ही क्या पूरे देश में महिला खिलाडिय़ों का अकाल पड़ जाएगा। और ऐसा हो भी रहा है।
आज लगातार देश में महिला खिलाडिय़ों की कमी होती जा रही हैं। और इनमें अपना राज्य भी शामिल है। अब इससे पहले की महिला खिलाडिय़ों का पूरी तरह से अकाल पड़ जाए, कुछ तो करना होगा। जब यह बात जगजाहिर है कि यौन शोषण करने वालों के अलावा अच्छे लोग भी खेलों से जुड़े हुए हैं तो क्या ऐसे में अब ऐसे लोगों को भी उस आदिवासी खिलाड़ी की तरह सामने आने का साहस नहीं करना चाहिए जिस खिलाड़ी ने अपने कोच पर आरोप लगाया था। अगर उस खिलाड़ी की तरह से और कुछ खिलाड़ी और यौन शोषण की जानकारी रखने वाले सामने आ जाए तो यह बात तय है कि खेलों को गंदा करने वालों को आसानी से खेलों से आउट किया जा सकता है। बस जरूरत है एक साहसिक पहल की। इसी आशा के साथ की ऐसा साहस जरूर अपने राज्य की खिलाड़ी दिखाएंगी उनको ऐसा साहस करने की हिम्मत भगवान दे ऐसी दुआ करते हैं।

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गुरुवार, जुलाई 29, 2010

ऐसे लोगों की तो सरे आम पिटाई होनी चाहिए

स्कूली खेलों का कितना बुरा हाल रहता है यह बताने वाली बात नहीं है। स्कूली खेलों में तो कई स्कूलों के खेल शिक्षक खुले आम मदिरापान करके वहां पहुंच जाते हैं जहां पर बालिकाओं के मैच होते रहते हैं। और ऐसे लोगों की उस समय हरकतें देखने लायक रहती हैं जब वे बालिका खिलाडिय़ों को अपने पास बुलाकर बेटा-बेटा कहते हुए उनके शरीर में इधर-उधर हाथ फिराने लगते हैं। यहां पर जहां ऐसे लोगों की ऐसी हरकतों पर गुस्सा आता है, वहीं यह सोचकर घिन भी आती है कि ये लोग जिन खिलाडिय़ों को बेटा-बेटा कह रहे हैं उनके साथ कैसी ओछी हरकतें कर रहे हैं और बाप-बेटी के रिश्ते को भी कलंकित कर रहे हैं। तब ऐसा लगता है कि ऐसे लोगों की तो सरे आम पिटाई होनी चाहिए ताकि ऐसे लोगों को सबक मिल सके कि ऐसी हरकतें करने का क्या अंजाम होता है। ऐसी ओछी हरकते करने वालों के कई किस्से हैं जो लोग सुनाते रहते हैं। ये लोग जब टीमें लेकर बाहर जाते हैं तब इनकी हरकतें जहां काफी बढ़ जाती हैं, वहीं सीमाएं भी पार कर जाती हैं। ऐसे में उन असहाय लड़कियों पर तरस आता है जो अपने भविष्य के साथ अपनी बदनामी का ख्याल करके कुछ नहीं कह पाती हैं। लेकिन कुछ खिलाड़ी जरूर साहस के साथ ऐसे मामलों को सामने लाने का काम करतीं हैं। ऐसा ही साहस एक खेल की आदिवासी खिलाड़ी ने किया था। तब इस खिलाड़ी ने खुले आम अपने कोच पर यौन शोषण की शर्त पर ही प्रदेश की टीम में स्थान देने का आरोप लगाया था। इस मामले की जब प्रदेश के मुख्यमंत्री रमन सिंह से लेकर खेल मंत्री और खेल संचालक से शिकायत हुई तो उस समय के खेल संचालक राजीव श्रीवास्तव ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए इस मामले को राज्य महिला आयोग को सौंप दिया था। इस पूरे मामले की राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुधा वर्मा ने जांच भी करवाई। इस दौरान इस मामले की अखबारों में खुब चर्चा रही। जांच में कोच को काफी हद तक दोषी भी पाया गया। वैसे कोच ने मीडिया के सामने आकर अपने को पाक-साफ साबित करने का भी प्रयास किया, पर मीडिया के सामने वे ठहर नहीं पाए, क्योंकि यह बात मीडिया से भला बेहतर कौन जानता है कि खेलों के नाम पर खेलों से जुड़े लोग कैसा खेल खेलते हैं। बहरहाल इस मामले में कोच पर ऐसी कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हुई जिससे खेलों को गंदा करने वाले ऐसे लोगों में डर जैसी भावना आती। संभवत: यह उसी का नतीजा है कि आज इस एक साहसिक कदम के बाद कोई दूसरी खिलाड़ी ऐसा साहस नहीं कर पाई और प्रदेश में काफी तेजी से खिलाडिय़ों का यौन शोषण होने लगा है। यौन शोषण करने वाले इतने बेखौफ हैं कि वे मीडिया वालों से यह भी कहते हैं कि अगर कोई सबूत है तो आप बेशक खबर प्रकाशित करें। अब यह तो तय है कि जो लोग इतनी हिम्मत से ऐसी बात कहते हैं वे यह जानते हैं कि उनका खिलाडिय़ों पर इतना ज्यादा खौफ है कि कोई सामने आने की हिम्मत नहीं करेगी। भले यौन शोषण का शिकार हो रहीं खिलाड़ी खुले रूप में सामने नहीं आ रही हैं, लेकिन इन खिलाडिय़ों का यौन शोषण होते देखने वाले खेलों से जुड़े ऐसे लोग तो जरूर इन बातों की चर्चा करते हैं जिनको खेलों की इस गंदगी से नफरत है। पर इन लोगों की यह मजबूरी है कि इनको यौन शोषण में लिप्त लोगों के साथ काम करना है, ऐसे में वे इनका विरोध भी नहीं कर पाते हैं। विरोध करने का मतलब होगा इनका खेलों से आउट होना। इधर मीडिया की एक मजबूरी यह है कि बिना किसी ठोस सबूत के वह भी किसी पर कम से कम सीधे आरोप नहीं लगा सकता है। लेकिन मीडिया इस मामले में जरूर भाग्यशाली है कि वह बिना किसी का नाम प्रकाशित किए भी ऐसे मामले लोगों को इशारों से समाज के सामने लाने का काम कर सकता है। और वहीं काम हम कई सालों से लगातार किया है। हालांकि हमारे इस काम से प्रदेश की खेल बिरादरी से जुड़े लोग काफी नाराज हैं। लेकिन उनकी महज नाराजगी के लिए ऐसे कृत्य पर पर्दा डालने का काम करना कम से कम हमें कताई पसंद नहीं है। इसलिए हम लगातार इस मामले को समाज के सामने करते रहे हैं और करते रहेंगे।

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बुधवार, जुलाई 28, 2010

ये 31 और 34 का क्या लोचा है

कल हमने अपने ब्लाग राजतंत्र का सक्रियता क्रमांक अपने ब्लाग में 31 देखा। जब हम चिट्ठा जगत में गए तो वहां हमें अपने ब्लाग का सक्रियता क्रमांक 34 नजर आया। ऐसा महज हमारे ब्लाग के साथ नहीं बल्कि और भी कई ब्लागों के साथ नजर आया। आखिर ये लोचा क्या है। क्या इसके पीछे तकनीकी गड़बड़ी है या फिर और कोई कारण है। आज वैसे सब ठीक हो गया है। आज हमारे ब्लाग का सक्रियता क्रमांक ब्लाग और चिट्ठा जगत में एक जैसा है।

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मंगलवार, जुलाई 27, 2010

लड़कियां खुद देती है यौन संबंध बनाने के आफर

अपने राज्य में ऐसी खिलाडिय़ों की भी कमी नहीं है जो खुद यौन संबंध बनाने के ऑफर के साथ अपने को खेल के उस मुकाम पर ले जाना चाहती हैं जहां पर पहुंच कर उनका भविष्य सुरक्षित हो सके। ऐसी खिलाड़ी स्कूल स्तर से लेकर कॉलेज और फिर ओपन वर्ग में भी मिल जाएगीं। हमको आज भी एक घटना याद है। जब छत्तीसगढ़ नहीं बना था और मप्र था तो रायपुर के पुलिस मैदान में राज्य की टीमें बनाने के लिए स्कूली खेल हो रहे थे। इन खेलों में खेलने आईं एक बालिका खिलाड़ी ने चयन करने वालों तक यह खबर अपने ही खेल शिक्षक से भिजवाई की अगर उनका चयन मप्र की टीम में कर लिया जाता है तो वो जो चाहेंगे वह करने को तैयार है। इस बारे में तब कुछ जानकारों ने बताया था कि यह तो आम बात है स्कूली खेलों में जहां ज्यादातर छोटी उम्र की खिलाडिय़ों का यौन शोषण उनके शिक्षक करते हैं, वहीं उनका चयन टीम में करवाने के लिए उनको चयनकर्ताओं के सामने भी परोस देते हैं। ऐसा ही कुछ कॉलेज स्तर पर भी होता है। वैसे ओपन वर्ग में ऐसे मामले ज्यादा होते हैं। इसका कारण यह है कि ओपन वर्ग कीराष्ट्रीय चैंपियनशिप का ज्यादा महत्व होता है।
खैर यह बात तो उस समय मप्र के रहते की है, पर अपना राज्य बनने के बाद भी ऐसी बातें सुनने को मिलती हैं। अक्सर खिलाडिय़ों के साथ ही खेल से जुड़े लोगों और प्रशिक्षकों के बीच यह बातें सुनने को मिलती रहती हैं कि उस प्रशिक्षक के उस खिलाड़ी से संबंध हैं। और ये संबंध कोई प्यार के नहीं बल्कि मजबूरी के होते हैं जो उस खिलाड़ी को प्रलोभन देकर या फिर डरा धमका कर भी बनाए जाते हैं। ऐसा नहीं है कि खिलाडिय़ों और कोच में प्यार के संबंध नहीं होते हैं। किसी खिलाड़ी और कोच तथा किसी खिलाड़ी का खिलाड़ी से प्यार भी आम बात है। और ऐसे कई उदाहरण है कि अपने सच्चे प्यार को साबित करने के लिए किसी खिलाड़ी ने कोच से शादी की तो किसी खिलाड़ी ने खिलाड़ी को वरमाला पहना दी। यह सब तो जायज भी है। पर खेल जगत में जायज से ज्यादा नाजायज काम हो रहे हैं। नाजायज काम किस तरह से होते हैं खिलाडिय़ों को किस तरह से डराया धमकाया और प्रलोभन दिया जाता है इसका खुला उदाहरण कुछ साल पहले तब सामने आया था जब बिलासपुर में एक राष्ट्रीय बेसबॉल चैंपियनशिप का आयोजन हुआ। वहां पर उड़ीसा के एक कोच को एक कम उम्र की बालिका के साथ खुलेआम गलत हरकत करते देखा गया। इस कोच के बारे में खुलासा हुआ कि वह खिलाडिय़ों को जहां उनका भविष्य बनाने का प्रलोभन देता था, वहीं डराता भी था कि वह उनका कोच है और वही उनका भविष्य बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है। इस कोच को लेकर पुलिस में रिपोर्ट भी हुई, पर बेसबॉल से जुड़े राष्ट्रीय स्तर के साथ ही प्रदेश स्तर के पदाधिकारियों ने इस मामले को गंभीरता से लिया ही नहीं। इसका मलतब साफ है कि खेल संघ के पदाधिकारियों को भी मालूम है कि उड़ीसा के कोच ने जो भी किया वह आम बात है। यह जो मामला था वह हुआ अपने राज्य में, पर मामला दूसरे राज्य का था, लेकिन इस मामले से ठीक पहले राजधानी रायपुर में स्कूली खेलों की राज्य चैंपियनशिप के समय भी एक मामला हुआ था, तब यहां पर एक टीम के साथ आए टीम के कोच को समापन समारोह में कई लोगों ने खुलेआम एक छोटी उम्र की खिलाड़ी को अपनी गोद में बिठाकर गलत हरकत करते देखा। जब उस कोच की हरकतें हदें पार करने लगीं तो खेलों से जुड़े कुछ वरिष्ठ लोगों ने उस कोच को काफी फटकार लगाई।

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रविवार, जुलाई 25, 2010

शोषण की शिकार लड़कियों को सामने आना चाहिए

खेल जगत में ज्यादातर महिला खिलाडिय़ों का किसी न किसी रूप में यौन शोषण हो रहा है, यह बात जग जाहिर है। लेकिन यहां पर सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जिन खिलाडिय़ों का यौन शोषण होता है उनमें से काफी कम खिलाड़ी ऐसी होती हैं जो खुले रूप में इसको सामने करने का साहस कर पाती हैं। भारत में ऐसे काफी कम मौके आए हैं, जब किसी खिलाड़ी ने ऐसे आरोप से अपने कोच या फिर साथी खिलाड़ी पर आरोप लगाए हैं। अपने पड़ोसी देश श्रीलंका की धाविका सुशांतिका ने जब काफी साल पहले एक मंत्री पर यौन शोषण का आरोप लगाया था, तब काफी हंगामा हुआ था। जहां तक विदेशों की बात है तो वहां पर तो ऐसा होना आम बात है। फिर यहां पर एक बात यह भी है कि विदेशों में तो फ्री सेक्स वाली संस्कृति है। ऐसे में वहां पर ऐसे मामलों का कोई मतलब नहीं होता है, लेकिन ऐसे मामले जब सामने आते हैं तो यह जरूर सोचना पड़ता है कि जिस देश में सेक्स को गलत नहीं माना जाता है, वहां पर ऐसे मामलों का क्या मतलब। लेकिन कहते हैं कि अगर कोई भी काम किसी को डरा धमका कर या फिर उसकी सहमति के बिना किया जाए तो वह काम गलत होता है। और हर ऐसे काम का विरोध तो होना ही चाहिए। लेकिन जो खिलाड़ी यौन शोषण का शिकार होती हैं, उनमें से ज्यादातर अपने कैरियर के कारण इसका खुलासा नहीं कर पाती हैं। और यह बात जहां विदेशी खिलाडिय़ों पर लागू होती है, वहीं भारतीय खिलाडिय़ों पर भी। भारतीय खिलाडिय़ों पर तो यह बात ज्यादा लागू होती है। कारण साफ है यहां पर खिलाडिय़ों के चयन में जिस तरह की राजनीति होती है उससे किसी भी खिलाड़ी का किसी भी खेल की टीम में आसानी से चुना जाना आसान नहीं होता है। ऐसे में जब महिला खिलाडिय़ों को ज्यादातर उनके कोच इस बात का प्रलोभन देते हैं कि वे उनके कोच हैं और उनको राज्य ही नहीं देश की टीम से खिलाकर उनका भविष्य बना सकते हैं तो ऐसे में ज्यादातर महिला खिलाड़ी झांसे में आ जाती हैं और सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार हो जाती हैं।
यहां पर यह भी बताना लाजिमी होगा कि अपने देश में इतनी ज्यादा बेरोजगारी है कि रोजगार पाने के लिए हर कोई कुछ भी करने को तैयार रहता है। रोजगार के लिए आज पढ़ाई से ज्यादा महत्व खेल का हो गया है। ऐसे में जो खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल लेती हैं उनको नौकरी मिलने में आसानी हो जाती है। इन सबको देखते हुए ही जब किसी खिलाड़ी के सामने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर या फिर राष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका सामने आता है और उसके लिए उसके सामने ऐसी कोई शर्त रखी जाती है जिससे उसका यौन शोषण हो तो भी खिलाड़ी इसके लिए तैयार हो जाती हैं। हमें याद है हमें एक बार एक खेल से जुड़े कुछ दिग्गजों ने बताया था कि उनके खेल में जिनके कहने पर भारतीय टीम का चयन होता है वे उसी लड़की को टीम में रखने को तैयार होते हैं जो कम से कम एक बार उनके साथ यौन संबंध बनाने को तैयार होती हैं। शायद यही कारण है कि इस खेल में अपने राज्य की ज्यादा महिला खिलाडिय़ों को देश से खेलने का मौका नहीं मिल पाया है। ऐसे और कई खेल हैं जिनके आका ऐसा ही काम करते हैं और महिला खिलाडिय़ों का यौन शोषण किए बिना उनको टीम में स्थान नहीं देते हैं। कई मामलों में यह भी होता है कि राज्य के खेल संघों के पदाधिकारी या फिर कोच राष्ट्रीय खेल संघों में अपने संबंधों के आधार पर उन खिलाडिय़ों का चयन करवाने का काम करते हैं जो उनके साथ यौन संबंध बनाने को तैयार रहती हैं। जानकार तो यहां तक बताते हैं कि भारतीय टीम में स्थान दिलाने के लिए कुछ खेलों के कोच और प्रदेश संघ के पदाधिकारी जहां खिलाडिय़ों का स्वयं यौन शोषण करते हैं वहीं खिलाडिय़ों को राष्ट्रीय संघ के पदाधिकारियों के पास भी भेजने का काम करते हैं। खिलाडिय़ों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने के मोह में सब कुछ सहना पड़ता है। कुछ खिलाड़ी जहां समझौता कर लेती हैं, वहीं कुछ को डरा धमका कर भी ऐसा करने के लिए मजबूर किया जाता है। अपने प्रदेश में कुछ खेलों की ऐसी खिलाड़ी भी हैं जिन्होंने ऐसा काम करने से मना कर दिया तो जहां उनको राष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा खेलने के मौके नहीं मिले, वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने की क्षमता होने के बाद भी उनको खेलने नहीं दिया गया। यही नहीं कई खिलाडिय़ों को तो अपने खेल से किनारा भी करना पड़ा। कुछ खेलों की खिलाडिय़ों से अपना मूल खेलकर छोड़कर दूसरे ऐसे खेलों से भी नाता जोड़ा है जिन खेलों में उनका यौन शोषण न होने की पूरी गारंटी है।

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शुक्रवार, जुलाई 23, 2010

गोवा में लड़कियों से छेड़छाड़-जोर-जबरदस्ती का प्रयास

छत्तीसगढ़ के खेल जगत का वह काला दिन था गोवा में खेलने गई स्कूली खिलाडिय़ों से साथ उनके साथ गए प्रशिक्षकों ने छेड़छाड़ की और जोर-जबरदस्ती करने का प्रयास किया। इस घटना से पहले एक घटना भिलाई में तब हुई थी जब राज्य जूडो चैंपियनशप के अंतिम दिन कोरबा के एक कोच ठाकुर बहादुर ने अपने ही शहर की एक महज 13 साल की खिलाड़ी के साथ बलात्कार करने का घिनौना काम किया। उस कोच को ऐसा करने में सफलता मिली थी तो उसके पीछे भी कहानी है। यह तो मामला न जाने किसी कारण से खुल गया, वरना ऐसी न जाने राज्य और देश में कितनी चैंपियनशिप होती हैं जहां पर प्रशिक्षक आसानी से अपनी खिलाडिय़ों का यौन शोषण करने में सफल हो जाते हैं और किसी को कानों-कान खबर भी नहीं होती है। भिलाई वाले कांड की बात करें तो वहां पर कोच ने जिस तरह से रात को 12 बजे खिलाड़ी को प्रमाणपत्र देने के बहाने से अपने कमरे में बुलाया और अपनी हवस पूरी की, उससे एक बात का तो खुलासा हो गया कि किसी भी कोच द्वारा अपनी खिलाडिय़ों को रात को कमरे में बुलाना आम बात है। और जब खिलाड़ी कोच के साथ कमरे में रात को अकेले रहती हैं तो वह कोच आसानी से अपनी मनमर्जी करने लगते हैं। ऐसे समय में जब खिलाड़ी द्वारा विरोध किया जाता है तो उसे जहां राष्ट्रीय फिर अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनाने और नौकरी आदि लगाने का प्रलोभन दिया जाता है, वहीं बात न बनने पर डराने का भी काम किया जाता है। यहां पर ज्यादातर खिलाड़ी समझौता कर लेती हैं, काफी कम खिलाड़ी ऐसी होती हैं जो वैसा साहस दिखा पाती है जैसा साहस दिखाने का काम कोरबा की उसी छोटी सी खिलाड़ी ने दिखाया। अब कोरबा की उस खिलाड़ी ने ऐसा साहस किया है तो इससे यौन शोषण का शिकार होने वाली खिलाडिय़ों को भी सबक लेते हुए अपने उन सफेदपोश प्रशिक्षकों को बेनकाब करने का काम करना चाहिए जो उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर अपनी हवस की आग बुझाने का काम करते हैं। वैसे कोरबा की खिलाड़ी वाला मामला तो एक तरह से बलात्कार का मामला है और ऐसा करने वाले कोच को जेल की हवा भी खानी पड़ी है। अब अगर ऐसे मामलों की बात करें तो खुल कर सामने नहीं आ पाते हैं तो वो भी एक तरह से बलात्कार के ही मामले हैं, पर चूंकि वे मामले सामने नहीं आ पाते हैं ऐसे में उन पर बलात्कार की धारा नहीं लग पाती है, लेकिन वास्तव में है तो वो भी बलात्कार। सोचने वाली बात है कि ऐसा क्या कारण है जो खेल और खिलाडिय़ों के साथ बलात्कार करने वालों को समाज के सामने करने का साहस खिलाड़ी नहीं दिखा पा रही हैं।

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गुरुवार, जुलाई 22, 2010

छत्तीसगढ़ में भी होता खिलाड़ियों का यौन शोषण

भारतीय हाकी टीम के कोच एमके कौशिक के यौन शोषण के मामले ने एक बार फिऱ से इस दिशा में लिखने के लिए मजबूर कर दिया है कि अपने राज्य में भी लगातार खिलाड़ियों का यौन शोषण होते रहा है। छत्तीसगढ़ में लगातार महिला खिलाडिय़ों का यौन शोषण करने का खेल चल रहा है। इस खेल का खुलासा कई मौकों पर होने के बाद भी इस दिशा में शासन ने अब तक कोई ठोस पहल नहीं की है जिसके कारण ऐसा घिनौना काम करने वाले लगातार ऐसा करने में लगे हुए हैं। जो मामले सामने आए हैं उन मामलों में स्कूली खेलों में गोवा में हुए कांड के साथ खरोरा का कांड भी शामिल है। लेकिन इन कांडों में शामिल आरोपियों को पहले निलंबित किया गया फिर उनको बहाल भी कर दिया गया है। एक मामला ऐसा भी हुआ था जिसमें भिलाई में कोरबा के जूडो कोच ने अपनी महज 13 साल की खिलाड़ी के साथ बलात्कार करने का काम किया था। इस घटना ने ही सबको सोचने पर मजबूर किया था कि वास्तव में छत्तीसगढ़ में भी खिलाड़ी प्रशिक्षकों की हवस का शिकार हो रही हैं। यह तो भिलाई और गोवा का मामला किसी कारणवश खुल गया था, वरना न जाने कितनी मासूम लगातार प्रशिक्षकों की हवस का शिकार हो रही हैं, और पता ही नहीं चल पाता है। लेकिन यदा-कदा जहां ऐसी चर्चाएं होती रहती हैं, वहीं कुछ समय पहले एक आदिवासी खिलाड़ी ने तो खुलकर अपने कोच पर यौन शोषण करने देने की शर्त पर ही प्रदेश की टीम में शामिल करने का आरोप लगाया था। इस आरोप को जहां संघ ने गंभीरता ने नहीं लिया था और अपने कोच को पाक-साफ साबित कर दिया था, वहीं राज्य महिला आयोग ने इस मामले की जांच की। लेकिन इस कोच को कोई कड़ी सजा नहीं मिल पाई और इसका नतीजा यह रहा कि यौन शोषण का खेल करने वाले अब और ज्यादा बेखौफ होकर यह खेल खेलने में लगे हैं। अब इसे अपने राज्य की खिलाडिय़ों का दुर्भाग्य कहे या उनकी मजबूरी की एक खेल की खिलाड़ी के एक साहसिक कदम के बाद भी कोई और खिलाड़ी सामने नहीं पा रही हैं। वैसे यह बात सब जानते हैं कि खिलाडिय़ों का यौन शोषण लगातार जारी है। इसे रोकने की पहल करने वाला पूरे राज्य में कोई नजर नहीं आता है। हमने ही अपने खेल पत्रिका में इसका पहली बार खुलासा किया था। इसके बाद ही मीडिया में इस पर खबरें प्रकाशित हुईं, लेकिन फिर चंद दिनों बाद यह मामला ठंड़ा पड़ गया और यौन शोषण के दानव फिर से सक्रिय हो गए हैं। ऐसे में हमें फिर से कलम उठाने मजबूर होना पड़ा है। आज जबकि अपने राज्य ही नहीं पूरे देश में महिला खिलाडिय़ों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि खेल के नाम पर यौन शोषण करने वालों को एकजुट होकर खदेड़ा जाए। हालांकि यह उतना आसान नहीं है क्योंकि यहां तो हर साख पे उल्लू बैठे हैं, अंजामे गुलिस्ता क्या होगा, वाली बात है।

शेष कल..

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बुधवार, जुलाई 21, 2010

प्यार की नैया तो पार लग ही जाती है-दीवानों की दुनिया भी बस ही जाती है


तुझे देख कर ही दिल बहक जाता है
पूरी बोतल का नशा चढ़ जाता है
शराब में भी कहा वो बात है
तुम्हारे होठों में दिखती प्यास है
फिर क्यों तुम्हारा मन उदास है
आज तो हम तुम्हारे ही पास हैं
करो लो आज मन की मुराद पूरी
शायद फिर हो जाए कोई मजबूरी
मन तो बावरा है, मचल जाता है
जब भी तुम्हारा चेहरा नजर आता है
तुम्हारे चेहरे में न जाने क्या है बात
जी चाहता है रोज हो मुलाकात
गर तुम भी रोज मिलती रही
तो तुम्हें भी हो जाएगा प्यार
फिर कैसे करोगी हमारी
मोहब्बत से तुम इंकार
आओ हो जाओ तुम भी
प्यार की नाव में सवार
प्यार की नैया तो पार लग ही जाती है
दीवानों की दुनिया भी बस ही जाती है 

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मंगलवार, जुलाई 20, 2010

भारतीय ओलंपिक संघ ने भी माना अनिल वर्मा ही अध्यक्ष

छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के अध्यक्ष डॉ. अनिल वर्मा ही हैं।  यह बात मानते हुए भारतीय ओलंपिक संघ ने डॉ. अनिल वर्मा के साथ छत्तीसगढ़ के खेल विभाग को भी एक पत्र भेजा है। पिछले माह छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के महासचिव बशीर अहमद खान ने एक अवैध बैठक आयोजित करके अध्यक्ष को हटाने का काम किया था। इस बैठक के अवैध होने के बाद भी वरिष्ठ उपाध्यक्ष गुरूचरण सिंह होरा को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया था।
भारतीय ओलंपिक संघ के निदेशक एएसवी प्रसाद के हस्ताक्षर से १७ जुलाई को जारी एक पत्र आज डॉ. अनिल वर्मा को मिला है, जिसमें लिखा गया है कि डॉ. अनिल वर्मा ही छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के अध्यक्ष हैं और वहां पर किसी भी तरह का बदलाव नहीं किया गया है। इसी के साथ श्री वर्मा को छत्तीसगढ़ में होने वाले ३७वें राष्ट्रीय खेलों की तैयारी करने के लिए भी कहा गया है।
इस पत्र के मिलने के बाद अब यह बात हो गई है कि डॉ. अनिल वर्मा को हटाने के लिए जिस बैठक का आयोजन भिलाई में किया गया था, उस बैठक को भारतीय ओलंपिक संघ भी नहीं मानता है। भारतीय ओलंपिक संघ के सामने इस बात का खुलासा कर दिया गया कि किस तरह से छत्तीसगढ़ फम्र्स रजिस्टार सोसायटी के पंजीयक द्वारा बैठक को अवैध करार दिए जाने के बाद भी बैठक की गई और बैठक में अध्यक्ष को हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव पारित करके वरिष्ठ उपाध्यक्ष गुरूचरण सिंह होरा को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया।
मैं भी मानता हूं डॉ. वर्मा को अध्यक्ष
अवैध बैठक में कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए गुरूचरण सिंह होरा का अब भारतीय ओलंपिक संघ से पत्र आने के बाद कहना है कि जब हमारा सर्वोच्च संघ ही डॉ. वर्मा को अध्यक्ष मान रहा है तो मैं कौन होता हूं इंकार करने वाला है। भारतीय ओलंपिक संघ का फैसला मुङो भी मान्य है। अगर आईओए भिलाई की बैठक को मान्य नहीं समङाता है तो कोई बात नहीं। हमें आईओए का जो भी फैसला है मंजूर हैं।
मैं नहीं मानता अध्यक्ष
प्रदेश संघ के महासचिव बशीर अहमद खान का कहना है कि भले डॉ. वर्मा को भारतीय ओलंपिक संघ ने अध्यक्ष माना है, पर मैं नहीं मानता हूं। यह पूछने पर क्या आप आईओए के फैसले के खिलाफ हैं, उन्होंने कहा कि जिस पत्र में आईओए के महासचिव राजा रणधीर सिंह के हस्ताक्षर नहीं हंै उस पत्र को मैं नहीं मानता।
पत्र खेल विभाग को मिला है
प्रदेश के खेल एवं युवा कल्याण विभाग के संचालक जीपी सिंह ने पूछने पर बताया कि उनके विभाग को ई-मेल से एक पत्र भारतीय ओलंपिक संघ से मिला है जिसमें डॉ. अनिल वर्मा को अध्यक्ष बताया गया है। उन्होंने कहा कि हमारे विभाग को प्रदेश ओलंपिक संघ में किसी भी तरह के वैधानिक बदलाव की कोई जानकारी नहीं है।

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सोमवार, जुलाई 19, 2010

बहुत ही अच्छी है मेरी घरवाली


मेरी घरवाली सबसे निराली
देती है रोज एक चाय की प्याली
नहीं है अपनी कोई भी साली
नहीं करनी पड़ती है उसको रखवाली
जब भी होते हैं हम दोनों खाली
मिलकर बातें करते हैं खूब निराली
हमारे बाग में नहीं कोई माली
हर तरफ है फूलों की डाली
घर में हमने प्यार की ऐसी चादर डाली
नहीं लगता है अपना घर कभी खाली
यूं हमने अब तक जिंदगी गुजारी
बहुत ही अच्छी है मेरी घरवाली 
घरवाली ने दिए हैं दो चांद के टुकड़े
सबसे सुंदर हैं उनके मुखड़े
एक मुखड़ा है हमारी बिटिया रानी का
दूसरा है बेटे सागर का
जब भी वे हैं घर में रहते
दोनों हैं हमेशा खूब मस्ती करते
दोनों हैं हमारे दिल में रहते
उनके बिना हम नहीं रह सकते


एक ताजा कविता पेश है जो हमने अभी-अभी लिखी है।

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रविवार, जुलाई 18, 2010

छत्तीसगढ़ की नई राजधानी होगी नंबर वन

छत्तीसगढ़ की नई राजधानी को देश में नंबर वन बनाने का संकल्प छत्तीसगढ़ की सरकार ने लिया है। इस बारे में यह बात तब सामने आई जब वहां पर एक लाख पौधे लगाने का काम किया गया। हम इस कार्यक्रम का कवरेज करने गए थे। वहां पर राज्यपाल शेखर दत्त के साथ मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, विधानसभा अध्यक्ष धरम लाल कौशिक, सांसद रमेश बैस, पर्यावरण मंत्री राजेश मूणत ने एक स्वर में कहा कि नई राजधानी देश की नंबर वन राजधानी हो, इसी योजना पर काम किया गया है। पर्यावरण से लेकर सभी आधुनिक सुविधाएं यहां उपलब्ध होंगी। राजधानी को हरा-भरा करने के लिए ही हरियर छत्तीसगढ़-हरियर नया रायपुर के नारे साथ आज यहां पर एक लाख पौधे लगाने का महाअभियान शुरू किया गया है।
नई राजधानी में एक लाख पौधों के रोपण के साथ जल प्रदाय योजना का प्रारंभ करने से पहले राज्यपाल शेखर दत्त ने कहा कि पर्यावरण के लिहाज से जिस तरह की योजना पर नई राजधानी के लिए काम किया जा रहा है, वह वास्तव में अपने देश के दूसरे राज्यों के लिए ही नहीं बल्कि विदेशों के लिए भी अनुकरणी है। श्री दत्त ने कहा कि नया रायपुर जब विकसित होगा तो यहां पर हर तरह की सुविधाएं होंगी और ये सारी सुविधाएं विश्व स्तरीय होंगी। प्रदेश सरकार ने भविष्य का ध्यान रखते हुए ही नया रायपुर के लिए योजना बनाई है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने नया रायपुर को रेलवे मार्ग से भी जोडऩे की बात की है, इसी के साथ उन्होंने बताया है कि यहां पर किस तरह से शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य की सेवाएं विश्व स्तर की होंगी। राज्यपाल ने कहा कि आज यहां पर पौधे लगाकर ही विराम नहीं लगाना है बल्कि अपने राज्य में हमेशा सभी को पौधे लगाने का काम करना होगा तभी पर्यावरण का संतुलन सही रहेगा।
हर तरह से आधुनिक होगा नया रायपुर: सीएम
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा कि नई राजधानी में प्रवेश से एक साल पहले यहां पर एक लाख पौधे लगाने  की योजना इसलिए बनाई गई है ताकि एक साल बाद यहां हम लोग आएं तो सभी तरफ हरियाली होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि नया रायपुर में सब कुछ आधुनिक होगा। यहां पर कहीं पर भी तारों का जाल नहीं आएगा, सभी काम भूमिगत होंगे। उन्होंने बताया कि १.४० करोड़ की जल प्रदाय योजना का आज राज्यपाल प्रारंभ कर रहे हैं। इसी के साथ यहां पर ३७५ एकड़ में जंगल सफारी का निर्माण किया जा रहा है। यह सफारी विश्व स्तर का होगी। इसके अलावा अहमदाबाद की काकरिया झील से अच्छी ङाील का निर्माण भी नई राजधानी में होगा। मुख्यमंत्री ने बताया कि यहां विश्व स्तर का कैंसर अस्पताल भी होगा। खेलों की सुविधाएं भी यहां होंगी। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम के पास एक खेल गांव बनाया जाएगा। जहां सारी आधुनिक सुविधाएं होंगी। उन्होंन कहा कि जब नई राजधानी बस जाएगी तो आज यहां लगाए जाने वाले पौधे ३४० फीट ऊंचे हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि पेड़ लगाने से ज्यादा पुन्य का काम और कोई नहीं हो सकता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारा ऐसा मानना है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी देश में नंबर होंगी क्योंकि योजना बनाने से पहले कई राज्यों की  राजधानी के साथ विदेशों के कई शहरों का भी भ्रमण करके हमारे अधिकारियों से देखा है और सबसे बेहतर क्या होगा, उसी पर काम किया जा रहा है।
एशिया में सबसे सुंदर होगा: कौशिक
कार्यक्रम में विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि हमारा ऐसा मानना है कि नई राजधानी भारत में ही नहीं बल्कि एशिया में सुंदरता के मामले में नंबर वन होगी। उन्होंने कहा कि सरकार ने प्रदेश को सुंदर बनाने की कल्पना करके यहां काम प्रारंभ किया है। पर्यावरण का संतुलन कैसे कायम रह सकता है इस पर विशेष ध्यान दिया गया है।
३६ प्रतिशत हरियाली होगी: राजेश
आवास एवं पर्यावरण मंत्री राजेश मूणत ने कहा कि नई राजधानी को हरियाली युक्त करने के लिए ३६ प्रतिशत हिस्से को हरा-भरा करने की योजना के तहत ही पहले कदम पर एक लाख पौधे लगाने का महाअभियान आज प्रारंभ किया गया है। उन्होंने बताया कि चंडीगढ़, गांधीनगर के साथ विश्व के कई देशों के शहरों का अवलोकन करने के बाद ही नई राजधानी की योजना बनाई गई है। ८०१३ हेक्टेयर में बननी वाली राजधानी पर्यावरण के अनुरूप बनाई जा रही है।
अगले साल एक लाख पेड़ ही नजर आएंगे
सांसद रमेश बैस ने कहा कि ऐसा नहीं है कि आज यहां पर पेड़ लगाने के बाद इनकी सुरक्षा का ध्यान नहीं रखा जाएगा। प्रदेश सरकार ने जिस तरह की योजना बनाई है उसको देखते हुए मैं कह सकता हूं कि अगले साल भी अगर हम यहां आकर गिनती करेंगे तो एक लाख पेड़ ही मिलेंगे। उन्होंने कहा कि आज का दिन छत्तीसगढ़ के लिए ऐतिहासिक दिन है जब यहां पर एक लाख पेड़ लगाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि नया रायपुर अभी बालक है जब इसको संवार दिया जाएगा और इसका विराट रूप सामने आएगा तो यह बात तय है कि यह देश में नंबर वन होगा।

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शनिवार, जुलाई 17, 2010

पप्पू के पापा सीताराम ...

एक महिला के घर में महिलाओं की भजन मंडली जुटी थी और रघुपति राघव का गाना कर रही थी। एक तरफ जहां सारी महिलाएं रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीता राम गा रही थीं, वहीं एक बुजुर्ग महिला गा रही थी रघुपति राघव राजा राम पप्पू के पापा सीताराम। जब एक महिला से रहा नहीं गया तो उन्होंने उस महिला से पूछ लिया कि आप यह क्या गा रही है, तब उन महिला को एक अन्य महिला ने बताया कि क्योंकि इनके पति का नाम पतित पावन है इसलिए वह ऐसा गा रही है। अपने हिन्दु धर्म में कम से कम पुराने जमाने की महिलाएं अपने पति का नाम नहीं लेती हैं।

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शुक्रवार, जुलाई 16, 2010

कल हमारी 1600 पोस्ट पूरी होगी

हमारे पहले ब्लाग खेलगढ़   ने आज पोस्ट में 1000वां आंकड़ा छू लिया है। इसी ब्लाग को हमने पिछले साल फरवरी में प्रारंभ किया था। वैसे अब हमारे ब्लागों राजतंत्र, ब्लाग चौपाल के साथ एक सांझा ब्लाग ब्लाग 4 वार्ता को मिलाकर हमारी पोस्ट का आंकड़ा 1600 पहुंचने वाला है। कल हमारी पोस्ट की आंकड़ा 1600 हो जाएगा।
आज हम सोच रहे थे कि किस पर लिखा जाए तभी हमारे नजरें अपने खेलगढ़ पर पड़ी तो देखा कि इसमें 1000 पोस्ट पूरी हो गई है। हालांकि हमारे इस ब्लाग के ज्यादा पाठक नहीं है, लेकिन हमने इस ब्लाग को अपने राज्य की खेल गतिविधियों को अंतरराष्ट्रीय जगत तक पहुंचाने के लिए प्रारंभ किया था और इसे अब तक कायम रखा है। हम अपने इस ब्लाग को हमेशा जारी रखने का प्रयास करेंगे। हमारे दूसरे ब्लाग राजतंत्र में 500 से ज्यादा पोस्ट हो गई है और इस समय उसमें पोस्ट का आंकड़ा 525 है। इसी के साथ हमारे एक चर्चा वाले ब्लाग ब्लाग चौपाल में पोस्ट का आंकड़ा 42 तक पहुंच गया है। इसी के साथ हमने ललित शर्मा के ब्लाग ब्लाग 4 वार्ता में 29 पोस्ट लिखी है। कुल मिलाकर अब हम 1600 के आंकड़े से महज चार कदम दूर है और यह दूरी संभवत: कल ही समापत हो जाएगी और हमारी पोस्ट का आंकड़ा 1600 हो जाएगा।

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गुरुवार, जुलाई 15, 2010

छत्तीसगढ़ में तीन खेलों के ही प्रशिक्षक

प्रदेश के खेल विभाग में महज तीन खेलों के ही प्रशिक्षक हैं। विभाग में प्रशिक्षकों के १८ पद स्वीकृत होने के बाद भी अब तक इन पदों पर कोई भर्ती नहीं की जा रही है। इन पदों की स्वीकृत मिले दो साल हो गए हैं। छत्तीसगढ़ में भारतीय खेल प्राधिकरण के सात एनआईएस कोच काम कर रहे हैं। मप्र में इस समय खेल विभाग में १२ सौ से भी ज्यादा प्रशिक्षक काम कर रहे हैं जिसके कारण मप्र में खेलों का ग्राफ लगातार ऊपर जा रहा है। छत्तीसगढ़ में खेल संघों के पास अपने जो प्रशिक्षक हैं उनकी मदद से ही खिलाडिय़ों को निखारने का काम किया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ बनने के एक दशक बाद भी अपने राज्य के खिलाड़ी प्रशिक्षकों के लिए तरस रहे हैं। खेल विभाग में पिछले दो साल से प्रशिक्षकों के १८ पद स्वीकृत होने के बाद भी इन पदों पर भर्ती नहीं की जा रही है। विभाग में इस समय महज तीन कोच हंै। एक स्थाई कोच फुटबॉल की सरिता कुजूर हैं जिनकी नियुक्ति २००३ में की गई थी। विभाग में दो संविदा नियुक्ति वाले प्रशिक्षक हैं। साफ्टबॉल के प्रशिक्षक निंगराज रेड्डी की नियुक्ति २००५ में हुई है। एक और प्रशिक्षक कुश्ती के गणेश सिंहा हैं, लेकिन इनसे प्रशिक्षक का काम लेने की बजाए इनको जिला खेल अधिकारी बनाकर रखा गया था, अब इनको दुर्ग में कोच के तौर पर नियुक्त किया गया है।  विभाग में एक और कोच शैलेन्द्र वर्मा का नाम है, लेकिन ये कोच छत्तीसगढ़ बनने के बाद से ही विभाग के लिए काम नहीं कर रहे हैं और पिछले ९ साल गायब हैं। इसके बाद भी विभाग में इनकी गिनती होती है, अब जाकर विभाग ने इनको बाहर मानते हुए कार्रवाई प्रारंभ की है।
१५ पद खाली
विभाग के सेटअप में प्रशिक्षकों के १८ पद स्वीकृत किए गए हैं। इस सेटअप को दो साल का समय होने के बाद भी विभाग में अब तक भर्ती की प्रक्रिया प्रारंभ नहीं की गई है। विभाग के पास तीन कोच होने के बाद अब तक १५ पर खाली हैं।
साई के सात कोच राज्य में
एक तरफ जहां विभाग के पास महज तीन कोच हैं तो वहीं भारतीय खेल प्राधिकरण यानी साई के सात कोच प्रदेश में काम कर रहे हैँ। इनमें से दो रायपुर, दो बिलासपुर और दो राजनांदगांव में और एक कोच जशपुर में हैं। जानकारों का कहना है कि अब साई से प्रशिक्षकों का मिलना बंद होने के कारण साई अपने प्रशिक्षक नहीं भेज रहा है, पहले राज्य के बाद जिस खेल के जितने कोच होते थे उतने की कोच साई से मिल जाते थे। साई अब कोच सिर्फ अपने प्रशिक्षण सेंटरों में भेजते हैं। रायपुर में साई का एक सेंटर बनना है, इसके बनने से यहां के लिए प्रशिक्षक मिलेंगे। ये प्रशिक्षक वैसे स्थानीय होंगे क्योंकि साई की अब योजना है कि जहां भी वे सेंटर खोलते हैं, वहां पर प्रशिक्षक स्थानीय रखे जाते हैं। इस बारे में पहले ही साई के भोपाल सेंटर के निदेशक आरके नायडू खुलासा कर चुके हैं कि स्थानीय प्रशिक्षकों को ही पहले प्राथमिकता दी जाएगी।
विभाग प्रशिक्षक तैयार करने भी गंभीर नहीं
प्रदेश की खेल नीति के साथ खेल विभाग के प्रोत्साहन नियम २००५ में इस बात का साफ उल्लेख है कि विभाग राज्य के सीनियर खिलाडिय़ों को एनआईएस कोर्स करवाने के लिए भेजेगा और उनकी सेवाएं ली जाएंगी, लेकिन अब तक विभाग ने इस दिशा में कोई पहल नहीं की है। राज्य में जिन खिलाडिय़ों ने अपने खर्च से एनआईएस कोर्स किया है, वे या तो किसी निजी स्कूल में खेल शिक्षक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं या फिर बेरोजगार भटक रहे हैं। ऐसे प्रशिक्षकों में इस बात को लेकर आक्रोश है कि खेल विभाग पद खाली होने के बाद भी नहीं भर रहा है। इसी के साथ बीपीएड और एमपी एड करने वाले मप्र का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि उनको भी राज्य सरकार उसी तरह से नौकरी देकर खिलाडिय़ों को विकारने का अवसर दे जिस तरह मप्र सरका ने किया है।
मप्र में प्रशिक्षकों का अंबार
खेल के जानकार बताते हैं कि मप्र ने छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद अपने राज्य में खेलों का ग्राफ बढ़ाने के लिए एक बार में ही १२ सौ से ज्यादा प्रशिक्षकों की नियुक्ति की है। मप्र में एनआईएस करने वाले प्रशिक्षकों को नौ हजार रुपए, बीपीएड और एमपीएड करने वालों को प्रशिक्षक के रूप में सात हजार, अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों को कोच की सेवाएं देने पर सात हजार, राष्ट्रीय खिलाडिय़ों को कोच नियुक्त करने पर पांच हजार और ग्रामीण क्षेत्र में प्रशिक्षण देने वालों को दो हजार की राशि वेतन के रूप में खेल विभाग दे रहा है। मप्र में इतने ज्यादा प्रशिक्षक होने के कारण वहां खेलों का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है।
संघ के प्रशिक्षकों का सहारा
छत्तीसगढ़ में प्रशिक्षकों का टोटा होने के बाद भी यहां पर अगर कई खेलों में राष्ट्रीय स्तर पर लगातार सफलता मिल रही है और खिलाड़ी पदक जीत रहे हैं तो इसके पीछे कारण यह है कि खेल संघों के पास अपने ऐसे प्रशिक्षक हैं जो या तो एनआईएस है या फिर ऐसे सीनियर खिलाड़ी हैं जो बरसों से खिलाडिय़ों को तैयार करने का काम कर रहे हैं।
अब ज्यादा प्रशिक्षक जरूरी
ऐसे में जबकि ३७वें राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी छत्तीसगढ़ को मिली है तो प्रदेश में हर खेल के प्रशिक्षकों की नियुक्ति जरूरी हो गई है। हर खेल के खिलाड़ी और खेल संघों के पदाधिकारी एक स्वर में कहते हैं कि अब समय आ गया है कि खेल विभाग को हर खेल के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षकों की व्यवस्था करनी चाहिए, अगर ऐसा नहीं किया गया तो राष्ट्रीय खेलों में पदकों की उम्मीद करना बेकार होगा। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ खेलमंत्री लता उसेंडी भी लगातार कहती रही हैं कि खेल संघों को अपनी मेजबानी में ज्यादा से ज्यादा पदक जीतने पर ध्यान देना चाहिए। पदक जीतने के लिए हम तो खिलाड़ी तैयार करने तैयार हैं, पर इसके लिए प्रशिक्षकों की व्यवस्था तो खेल विभाग कर दे। 

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बुधवार, जुलाई 14, 2010

अरमानों की चिता हमें जलाने दो


कर दो अंधेरा तन्हाई में हमें रोने दो
दिल के रिस्ते जख्मों को अश्कों से भिगोने दो।।
हुए अकेले उनके जुदा होने पर
कोई नहीं अपना ये अहसास करने दो।।
बदकिस्मती अपनी जो वो दूर हुए
दिल की ख्लाहिशों को अब मरने दो।।
उन्हें तो अब सब अपनी की फिक्र है
गम के सागर में हमें डुबने दो।।
टूट गया दिल, उजड़ गया आशियाना
अरमनों की चिता हमें अब जलाने दो।।
 

(यह कविता भी हमारी 20 साल पुरानी डायरी की है)

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मंगलवार, जुलाई 13, 2010

भईया आज-कल आप लिखते क्यों नहीं?

कल शाम की बात है हम एक कार्यक्रम में गए थे, वहां पर हमें एक युवक मिला। उसे हम तो नहीं जानते हैं, लेकिन वह हमें जरूर जानता है। उन्होंने अचानक हम पर एक सवाल दागा कि भईया आप आज-कल अंतरराष्ट्रीय खेलों पर क्यों नहीं लिखते हैं। हमें लगा था कि आपका लिखा कुछ तो विश्व कप फुटबॉल के फाइनल पर मिलेगा, पर आपने कुछ नहीं लिखा क्या बात है।
उस युवक ने हमें अपना परिचय राजीव चक्रवर्ती के रूप में देते हुए बताया कि उनके पापा भी उस समय देशबन्धु में थे जब हम वहां काम करते थे। उस युवक ने बताया कि हमारा लिखा वह हमेशा पढ़ते हैं। उन्होंने हमसे पूछा कि भईया आपने विश्व कप फुटबॉल का फाइनल मैच देखा कितना रफ था। हमने उनसे कहा कि नहीं यार हम नहीं देख सके और अब उतनी रूचि भी नहीं रही। पहले जब हम देशबन्धु में थे और लोकल के साथ अंतरराष्ट्रीय खेल के पेज का जिम्मा भी हम पर था। ऐसे में हम वहां पर हर खेल पर लिखते थे। हमारे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लिखने का सिलसिला 20 साल से चल रहा था, लेकिन पिछले तीन सालों से यह करीब बंद ही है। एक तो इसलिए कि अब हम जिस अखबार हरिभूमि में काम करते हैं, वहां हम लोकल खेलों पर ही खबरें बनाते हैं, दूसरे यह कि अब लिखने का मन भी नहीं होता। हम अपनी पत्रिका खेलगढ़ में भी स्थानीय खेलों पर ज्यादा लिखते हैं। अब हमारा मकसद अपने राज्य के खेलों को आगे बढ़ाने का है।
बहरहाल हम यह बात जानते हैं कि हमारा लिखा बहुत लोग पसंद करते थे, और आज भी वे चाहते हैं कि हम लिखें। हमारा क्रिकेट की किसी भी स्पर्धा पर लिखी गई त्वरित टिप्पणी को पढऩे वाले पाठक बहुत ज्यादा रहे हैं। क्रिकेट ही नहीं हमने हर खेल के साथ खेलों की प्रमुख घटनाओं पर टिप्पणियां लगातार अपने अखबार में लिखी हैं जिसको पढऩे वाले पाठक आज भी चाहते हैं कि हम फिर से लिखें। लेकिन हर समय परिस्थितियां एक जैसी नहीं होती हंै। हम सोचते हैं कि अपने ब्लाग में ही कुछ लिखना प्रारंभ करें। लेकिन इसके लिए यह जरूरी है कि हम जिस मैच पर लिख रहे हैं उसको हम देखें तभी ज्यादा अच्छे से लिखा जा सकता है, लेकिन मैच देखने के लिए अब समय नहीं मिलता है। पहले मैचों की खबरें भी बनानी होती थीं इसलिए मैच देखना एक तरह से मजबूरी भी होती थी, लेकिन अब वह मजबूरी नहीं रही तो लिखना भी एक तरह से छूट गया है। खैर हमें इस बात की हमेशा खुशी होती है कि हमारे लेखन के चाहने वाले पाठक अब भी हैं और वे चाहते हैं कि हम लिखें। अगर समय मिला तो जरूर अपने ब्लाग में लिखेंगे। वैसे हम जानते हैं कि हमारे लेखन को चाहने वाले हर पाठक के बस में ब्लाग तक पहुंचना संभव नहीं है, फिर भी कुछ पाठकों को जरूर संतुष्ट कर पाएंगे।

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सोमवार, जुलाई 12, 2010

सपनों की शहजादी

मेरी कल्पना में
मेरे सपनों की शहजादी
सुंदरता की ऐसी देवी
जो सौन्दर्य को भी लजा दे
गोरे मुखड़े पर उभरने वाली आभा
मानो शीशे पर
भास्कर का धीमा प्रकाश
साथ में
माथे पर चांद सी चमकती बिंदियां
नयन ऐसे
मानो मछलियां
अधर इतने मधुर
मानो कोमल गुलाब
की दो पंखुडियां
आपस में आलिंगन कर रही हों
काली कजरारी पलकें
अपनी तरफ आकर्षिक करती
बिखरी हुईं लटें
मानो घने काले बादल हों

(यह कविता 20 साल पुरानी डायरी से ली गई है)। 

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रविवार, जुलाई 11, 2010

रायपुर कामनवेल्थ बैटन का ४८वां पड़ाव


कामनवेल्थ की बैटन का रायपुर ४८वां पड़ाव होगा। यहां पर होने वाली बैटन रिले को राज्य सरकार के साथ ओलंपिक संघ के तालमेल से ऐतिहासिक बनाने का प्रयास चल रहा है। इस प्रयास की जानकारी कामनवेल्थ आयोजन समिति के सामने रखे जाने पर छत्तीसगढ़ की तैयारी को ओलंपिक संघ के अन्य राज्यों के लोगों भी बहुत सराहा है।
ये बातें यहां पर बैटन रिले की बैठक में शामिल होकर लौटे प्रदेश ओलंपिक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष गुरूचरण सिंह होरा ने खेल पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहीं। उन्होंने बताया कि भारत में बैटन का प्रवेश २५ जून को वाघा बार्डर से हुआ है। इसके बाद से बैटन का भारत भ्रमण प्रारंभ हो गया है। भारत में बैटन के १०० पड़ाव तय हैं। इस पड़ावों में से रायपुर का पड़ाव ४८वां है। अपने ४७वें पड़ाव में भुवनेश्वर पहुंचने के बाद वहां से बैटन को ११ अगस्त को रायपुर लाया जाएगा। रायपुर जहां बैटन का ४८वां पड़ाव होगा, वहीं राजनांदगांव, दुर्ग-भिलाई इसका ४९वां पड़ाव होगा। यहां से बैटन अपने ५०वें पड़ाव के लिए १४ अगस्त को हैदराबाद जाएगी।
श्री होरा ने बताया कि दिल्ली में हुई बैठक में उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में ओलंपिक संघ और राज्य सरकार के बीच बहुत अच्छा तालमेल है और यहां पर प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ खेलमंत्री लता उसेंडी खेल सचिव सुब्रत साहू के अलावा खेल संचालक जीपी सिंह भी बैटन रिले को ऐतिहासिक बनाने की तैयारी में जुटे हैं। यहां पर खेल संघों के साथ बैठकों का दौर लगातार चल रहा है। श्री होरा ने बताया कि उनको दिल्ली की बैठक में जहां भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी के साथ मिलने का मौका मिला, वहीं वे महासचिव राजा रणधीर सिंह से भी मिले। उनके साथ प्रदेश ओलंपिक संघ के महासचिव बशीर अहमद खान भी थे। श्री होरा ने बताया कि छत्तीसगढ़ की तैयारियों की जानकारी होने पर श्री कलमाड़ी और श्री सिंह ने यहां की तैयारियों की तारीफ की और कहा कि उनको मालूम है कि छत्तीसगढ़ में जो आयोजन होता है, वह वास्तव में अच्छा होता है। उन्होंने बताया कि बैटन धावकों के लिए कामनवेल्थ आयोजन समिति ने यह तय किया है कि ६० प्रतिशत नाम राज्य सरकार तय करेगी और बाकी ४० प्रतिशत का जिम्मा प्रदेश ओलंपिक संघ को दिया गया है। श्री होरा ने बताया कि छत्तीसगढ़ में पूरा का पूरा १०० प्रतिशत जिम्मा राज्य सरकार को देने की बात हमने कही है क्योंकि छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार और ओलंपिक संघ के बीच कहीं मतभेद नहीं है। यह बात उन राज्यों के लिए है जहां पर ओलंपिक संघ और राज्य सरकारों में मतभेद है। कुछ राज्यों में ऐसी बात सामने आने पर ही ६० और ४० प्रतिशत का फैसला किया गया है। जम्मू-कश्मीर में राज्य सरकार और ओलंपिक संघ के बीच मतभेद की बाच सामने आई। बैठक में सारे राज्यों के अधिकारियों और ओलंपिक संघ के पदाधिकारियों को खेल हित में मिलकर साथ काम करने कहा गया। बैठक में हर राज्य से आए अधिकारियों और ओलंपिक संघ से जुड़े पदाधिकारियों ने अपनी-अपनी परेशानियों के साथ सुझाव भी दिए। छत्तीसगढ़ के बारे में जब वहां बताया गया कि यहां किस तरह की तैयारी काफी समय से चल रही है और यहां पर खेल संघों के साथ बैठकों का दौर काफी पहले हो गया है और लगातार खेल संघों के साथ खेल विभाग तालमेल बनाकर चल रहा है तो छत्तीसगढ़ की तैयारियों की सभी से सराहना की। यहां यह बताना लाजिमी होगा कि छत्तीसगढ़ में वास्तव में जिस तरह की तैयारी चल रही है, वैसी तैयारी और किसी राज्य में अब तक सामने नहीं आई है। छत्तीसगढ़ में तो बैटन रिले से पहले एक रिहर्सल का भी आयोजन ३० जुलाई को किया जा रहा है। बैटन रिले को ऐतिहासिक बनाने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ खेल मंत्री लता उसेंडी गंभीर हैं और इसके लिए ७० लाख का बजट रखा गया है।
बैटन मार्ग का निरीक्षण
रायपुर में आज बैटन रिले के मार्ग का अधिकारियों ने निरीक्षण किया। इस निरीक्षण में रायपुर के जिलाधीश संजय गर्ग के साथ निगम आयुक्त ओ. पी. चौधरी, खेल संचालक जीपी सिंह, उपसंचालक ओपी शर्मा, पुलिस अधीक्षक दीपांशु काबरा, वरिष्ठ खेल अधिकारी राजेन्द्र डेकाटे के साथ संस्कृति विभाग के राहुल सिंह, राकेश तिवारी के साथ अन्य विभागों के भी अधिकारी शामिल थे। अधिकारियों के दल से बैटन के प्रारंभ होने वाले स्थल शहीद भगत सिंह चौक से लेकर बूढ़ापारा के आउटडोर स्टेडिमय तक करीब छह किलो मीटर के पूरे रास्ते का निरीक्षण किया और देखा कि कहीं कोई परेशानी तो नहीं होगी। इसी के साथ यह तय किया गया कि एक बड़ा मंच शहीद भगत सिंह चौक में एक मंच जयस्तंभ चौक में और एक मंच बैटन के समापन स्थल आउटडोर स्टेडियम में बनाया जाएगा। आउटडोर स्टेडियम में बारिश के मौसम को देखते हुए कुछ डोम लगाने पर भी चर्चा हुई।

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शनिवार, जुलाई 10, 2010

गिफ्ट की बहार-यह है अखबार वार

अखबार चलाने का काम अब पूरी तरह से व्यापार में बदल चुका है। अखबार चलाने के लिए अब गिफ्ट का सहारा लेना पड़ा रहा है। इसका कारण यह है कि आज बाजार में इतने ज्यादा अखबार हो गए हैं कि पाठक को सोचना पड़ता है कि वह कौन सा अखबार ले। हालांकि एक बात यह भी है कि जिसको जो अखबार पसंद है, वह वही लेता है, लेकिन आज का पाठक भी गिफ्ट के चक्कर में कहीं न कहीं फंस ही गया है। यही वजह है कि आज जहां भी कोई नया अखबार आता है, वह सबसे पहले गिफ्ट से पाठकों को लुभालने का कम करता है। रायपुर से प्रारंभ होने वाले राजस्थान पत्रिका ने तो अखबार से पहले ही गिफ्ट बांटने का अनोखा काम चालू कर दिया है। इसे प्रचार का तरीका कहा जा रहा है।
दो दिन पहले की बात है हम सुबह को कंप्यूटर में काम कर रहे थे कि गेट बजा। हम गए तो देखा कि पत्रिका के कुछ सर्वेयर खड़े हैं। उन्होंने पूछा कि आपके घर पर कौन सा अखबार आता है। हमने कहा जाओ यार हम खुद प्रेस में काम करते हैं और हमारे यहां सभी अखबार आते हैं, आपका अखबार चालू होगा तो वह भी आने लगेगा। उन्होंने कहा कि सर प्लीज अपना मोबाइल नंबर बता दें और कृपया गिफ्ट ले लें। हमने कहा कि यार अभी तो आपका अखबार प्रारंभ भी नहीं हुआ है और आप गिफ्ट बांट रहे हैं। उन्होंने कहा कि सर यह तो प्रचार का अपना तरीका है। वास्तव में पत्रिका ने अपने लिए प्रचार का अलग तरीका अपनाया है। अब उनका अखबार कोई लेता है या नहीं लेता है यह अलग बात है लेकिन इतना तो तय है कि जिसको गिफ्ट मिलेगा उसे कम से कम यह तो याद रहेगा कि रायपुर से कोई पत्रिका नाम का पेपर प्रारंभ हो रहा है। हमें गिफ्ट के रूप में चार कांच के गिलास दिए गए इसी के साथ छह माह के लिए 15 रुपए के कूपन दिए गए कि अगर हम पेपर लेते हैं तो छह माह 15 रुपए कम में पेपर मिलेगा।
पत्रिका ने रायपुर में प्रचार का यह तरीका अपनाया है तो वह चाहता है कि रायपुर में उसकी धाक जम जाए। यहां भी उसका मकसद भास्कर को मात देना है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि एक समय पूरे राजस्थान में राज करने वाले राजस्थान पत्रिका का वर्चस्व भास्कर ने वहां समाप्त कर दिया है। ऐसे में पत्रिका को अपने राज्य से बाहर पैरे पसारने पड़े हैं। बहरहाल आज यह बात तय है कि अखबार चलाने के लिए गिफ्ट का सहारा लेना पड़ रहा है। रायपुर में इसकी शुरुआत देशबन्धु से हुई थी इसके बाद भास्कर की कुर्सी योजना ने अखबार जगत में भूचाल ला दिया था इसके बाद से ही पाठकों को लुभालने का बड़े अखबार गिफ्ट योजना पर जरूर काम करते हैं।

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शुक्रवार, जुलाई 09, 2010

खुशबू फूलों की...

सभी को मन भाती है
खुशबू फूलों की
फिजा को महका देती है
खुशबू फूलों की
किसी से भेदभाव नहीं करती
खुशबू फूलों की
सभी को समान प्यार देती है
खुशबू फूलों की

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गुरुवार, जुलाई 08, 2010

राजकुमार ग्वालानी के नाम से ठगी का प्रयास

किसी बंदे ने हमारे नाम का फायदा उठाते हुए रायपुर के एक रग्बी खिलाड़ी को नौकरी दिलाने का झांस देकर ठगने का प्रयास किया। लेकिन उस खिलाड़ी ने हमसे संपर्क किया तो उसे मालूम हुआ कि हमने तो उसे बुलाया ही नहीं है, तब जाकर मालूम हुआ कि किसी ने उसे हमारा नाम लेकर बुलाया था। हमने उस नकली राजकुमार ग्वालानी का मोबाइल नंबर क्राईम ब्रांच में दे दिया है ताकि मालूम हो सके कि आखिर यह ठग है कौन जो हमारे नाम से ठगी करने वाला था। 
दो दिन पहले की बात है, हम शाम को प्रेस पहुंचे ही थे कि हमारा मोबाइल बजा हमने मोबाइल जैसे ही उठाया उधर से एक बंदे की आवाज आई और उन्होंने पूछा भईया राजकुमार ग्वालानी बोल रहे हैं। हमने कहा बोला रहा हूं। उस बंदे ने कहा कि भईया आपने हम दो दिन पहले फोन करके प्रेस क्लब बुलाया था। हमने कहा हमने तो नहीं बुलाया था और हमने फोन काट दिया। कुछ देर बाद हमें बात खटकी तो हमने उस बंदे को फोन लगाकर पूछा कि आखिर मामला क्या है तो उन्होंने जो बताया उसने हमें सकेत में डाल दिया। उस खिलाड़ी जिसका नाम आनंद है उसने बताया कि वह रग्बी का अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी है और उसके पास दो दिन पहले एक फोन आया और कहा गया कि मैं राजकुमार ग्वालानी बोल रहा हूं तुम्हें नौकरी दिला सकता हूं, तुम अपना बॉयोडाटा लेकर प्रेस क्लब आ जाओ। उस खिलाड़ी ने कहा कि भईया मैं आपको जानता हूं आपने कई खिलाडिय़ों को नौकरी दिलाने का काम किया है ऐसे में मैंने सोचा शायद कहीं कोई नौकरी होगी इसलिए भईया ने याद किया है। मैं दो दिनों से आपको खोजने प्रेस क्लब आ रहा हूं। आपने जिस नंबर से फोन किया था वह बंद मिल रहा है। यहां पर प्रेस क्लब में आपका दूसरा नंबर लेकर फोन कर रहा हूं। हमने उससे पूछा कि किस नंबर से फोन आया था। उसने नंबर बताया 09893131931। हमने आनंद से कहा कि यह नंबर तो हमारा है ही नहीं। हम पता लगाते हैं कि आखिर यह नंबर किसका है और वह बंदा कौन है। हमने इस नंबर में फोन किया तो वह नंबर बंद मिला। लगातार यह नंबर बंद है। हमने यह जानने के लिए आखिर यह नंबर किसका है और यह बंदा हमारे नाम से क्यों कर ठगी करना चाहता है हमने यह नंबर क्राईम ब्रांच में दे दिया है। इसका पता चलते ही इस बंदे को तो जेल की हवा खिलाकर ही रहेंगे।


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बुधवार, जुलाई 07, 2010

टिप्पणी बंद-ब्लागर तंग

कल से न जाने ब्लागों को कौन सा रोग लग गया है जो टिप्पणी करने पर भी टिप्पणी नजर नहीं आ रही है। हमें वैसे भी समय नहीं मिलता है, कल समय मिला तो सोचा कुछ ब्लागों में टिप्पणी कर ली जाए लेकिन ये क्या जहां भी टिप्पणी की वहां नजर ही नहीं आई। हमारे ब्लाग राजतंत्र के साथ ब्लाग चौपाल में भी कल शाम तक कोई टिप्पणी नहीं दिख रही थी।
कल समय मिलने पर हमने जब टिपियाने के बारे में सोचा तो टिप्पणी दिखाने वालों ने लोचा कर दिया। जहां भी टिपियाने गए वहां टिप्पणी मिस्टर इंडिया यानी गायब नजर आई। हमारी समझ में माजरा नहीं आया। हमने अपने ब्लाग में भी एक टिप्पणी करके देखी लेकिन कोई फायदा नहीं यहां भी टिप्पणी नजर नहीं आई। हमने सोचा यार लगता है आज अपनी किस्मत खराब है इसलिए कोई टिप्पणी नजर नहीं आ रही है। हमने टिपियाना बंद कर दिया। शाम तक हमारे ब्लाग राजतंत्र, खेलगढ़   और ब्लाग चौपाल में कोई टिप्पणी नहीं दिखी। हमें अजीब लगा ऐसा संभव ही नहीं है कोई टिप्पणी न हो। रात को जब प्रेस से घर लौटे तो राजतंत्र में पांच टिप्पणियां थीं। ब्लाग चौपाल खाली था। सुबह देखा को राजतंत्र में 6 टिप्पणियां थी। लेकिन जब टिप्पणियों को खोला तो सिर्फ तीन नजर आ रही थी रात की पांच टिप्पणियों में से तीन गायब थी।
आखिर यह सब क्या हो रहा है कोई इसके बारे में बता सकता है।

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मंगलवार, जुलाई 06, 2010

भारत में 16.50 का पेट्रोल 55 रुपए में क्यों?

भारत में सरकार ने पेट्रोल की कीमतों में जो इजाफा किया है उससे देश का हर नागरिक परेशानी के साथ भारी आक्रोश में है। हर किसी का एक ही सवाल है कि भारत में पेट्रोल की कीमत इतनी ज्यादा क्यों है? देखा जाए तो वास्तव में भारत में पेट्रोल की कीमत महज 16.50 पैसे है। इतने कम कीमत वाले पेट्रोल पर असली कीमत से दुगना करीब 33.45 पैसे टैक्स लिया जाता है। इतना सब होने के बाद भी सरकार ने पेट्रोल की कीमतों में तीन रुपए का इजाफा यह कहते हुए कर दिया है कि तेल कंपनियों को घाटा हो रहा है। कंपनियों को तो कोई घाटा नहीं हो रहा है, लेकिन सरकार जरूर आम जनता को लूटने का काम कर रही है।
महंगाई के विरोध में जब कल भारत बंद किया गया था तो कई लोगों से सरकार की पोल खोलते हुए मोबाइल पर एसएमएस के जरिए यह बताने का काम किया कि वास्तव में भारत में पेट्रोल की कीमत 16.50 पैसे है। इतनी कीमत वाले पेट्रोल पर जहां केन्द्र सरकार 11.80 पैसे टैक्स लेती है, वहीं एक्साइज ड्यूटी के रूप में 9.75 लगते हैं। राज्य सरकार का टैक्स 8 रुपए और फिर ऊपर से 4 रुपए वैट टैक्स के लगते हैं। इस तरह से पेट्रोल की कुल कीमत 49.95 पैसे थी। इस कीमत में सरकार ने तीन रुपए की इजाफा किया है तो टैक्स में भी इजाफा हो गया है और कीमत करीब 55 रुपए पहुंच गई है। सरकार ने पेट्रोल की कीमत बढ़ाने का जो कारण बताया है, वह किसी के गले उतरने वाला नहीं है।
एक तरफ जहां भारत में पेट्रोल की कीमत 55 रुपए के आस-पास है, वहीं अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान में इसकी कीमत महज 26 रुपए, बंगलादेश में 22 रुपए और क्यूबा में 19 रुपए है, नेपाल में 34 रुपए, बर्मा और कतर में 30 रुपए, अफगानिस्तान में 36 रुपए है। विश्व में पेट्रोल भारत में ही सबसे महंगा है। इसका कारण यह है कि वास्तव में सरकार ही आम जनता के साथ खिलवाड़ कर रही है। सरकार को जनता के लिए इस जरूरी पदार्थ पर इतना टैक्स लगाने की क्या जरूरत है इसका जवाब तो सरकार को ही देना चाहिए। सरकार को वास्तव में आम जनता से कोई मतलब नहीं है। पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में इजाफे ने ही महंगाई में और आग लगा दी है। यही वजह है कि आज आम जनता में भारी आक्रोश है।

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सोमवार, जुलाई 05, 2010

उत्कृष्ट खिलाडिय़ों को नौकरी जल्द

प्रदेश के उत्कृष्ट खिलाडिय़ों को नौकरी दिलाने के लिए खेलमंत्री लता उसेंडी ने कमर कस ली है। खेलमंत्री लगातार सामान्य प्रशासन विभाग से बात रही हैं कि नियमों का क्या हुआ। खेलमंत्री की मानें तो जुलाई का माह खिलाडिय़ों के लिए खुशखबरी लेकर आएगा। सामान्य प्रशासन विभाग नियम बनाने में लगा हुआ है। नियम बनने के बाद ही जिन विभागों में पद खाली होंगे उन विभागों में इनकी भर्ती की जाएगी। खेल विभाग ने अपने विभाग में भी उत्कृष्ट खिलाडिय़ों की भर्ती करने की मांग शासन के सामने रखी है। इस समय खेल विभाग में कई पद खाली हैं।
प्रदेश सरकार ने राज्य के ७० खिलाडिय़ों को करीब सात माह पहले उत्कृष्ट खिलाड़ी घोषित किया है। उत्कृष्ट खिलाड़ी घोषित होने के बाद खिलाडिय़ों को उम्मीद थी कि अब उनको नौकरी मिल जाएगी और उनका लंबा इंतजार समाप्त हो जाएगा। लेकिन उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया है और खिलाड़ी लगातार खेल विभाग में फोन करके यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि आखिर उनको नौकरी कब मिलेगी। खिलाड़ी मीडिया से भी लगातार पूछ रहे हैं कि उनकी नौकरी का क्या हुआ। कई खिलाड़ी निरंतर हरिभूमि से जानने का प्रयास कर रहे हैं कि उनको नौकरी कब मिलेगी। ऐसे में जब हरिभूमि ने इस बारे में खेलमंत्री लता उसेंडी से बात की तो उन्होंने बताया कि हमारा विभाग तो लगातार इस प्रयास में है कि खिलाडिय़ों को जल्द से जल्द नौकरी मिल जाए। इसके लिए विभाग सामान्य प्रशासन के साथ मिलकर नौकरी के नियम बनाने में लगा है। विभाग चाहता है कि एक बार ऐसे नियम बन जाए जिससे खिलाडिय़ों को परेशानी न हो। उन्होंने बताया कि सामान्य प्रशासन में नियम बनाने की प्रक्रिया चल रही है। उन्होंने कहा कि वह खुद लगातार इस बारे में सामान्य प्रशासन विभाग में बात कर रही है कि नियमों का क्या हो रहा है। खेलमंत्री बताया कि संभवत: जुलाई का माह खिलाडिय़ों के लिए खुशखबरी लेकर आएगा।
मुख्यमंत्री से भी मिल चुके हैं खिलाड़ी
प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के दरबार में राज्य के करीब एक दर्जन उत्कृष्ट खिलाड़ी पिछले माह गए थे। इन्होंने मुख्यमंत्री को बताया था कि उत्कृष्ट खिलाड़ी घोषित होने के छह माह बाद भी वे लोग भटक रहे हैं और उनको नौकरी नहीं दी जा रही है। मुख्यमंत्री ने खिलाडिय़ों की व्यथा सुनने के बाद खेल सचिव से इस दिशा में तत्काल कार्रवाई करने कहा था। मुख्यमंत्री के दरबार में रीना साहू, इशरत जहां, सुनीता टोपो, डी. राजु, विनिता, इम्तियाज, इशरत अंजुम, साइमा अंजुम सहित करीब एक दर्जन खिलाड़ी गए थे और उनके सामने अपनी व्यथा रखी थी। खेल और खिलाडिय़ों के प्रति हमेशा अच्छा सोचने वाले मुख्यमंत्री ने खिलाडिय़ों से विस्तार से बात की थी और उनको आश्वासन दिया कि राज्य के खिलाडिय़ों को सरकार जल्द ही नौकरी देने का काम करेगी। मुख्यमंत्री ने इसके लिए राज्य के खेल सचिव को तत्काल कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के आश्वासन के एक माह बाद भी इस दिशा में कुछ नहीं हो सका है।
खिलाड़ी प्रमाणपत्र वापस करने की तैयारी में
मुख्यमंत्री के दरबार में फरियाद करने के बाद भी कुछ न होने से परेशान खिलाडिय़ों ने अब मन बनाया है कि अगर उनको जल्द नौकरी नहीं मिलती है तो वे अपने प्रमाणपत्र मुख्यमंत्री को लौट देंगे। इनका कहना है कि ऐसे प्रमाणपत्र को लेकर क्या करें जिसके मिलने के बाद भी नौकरी के लिए भटकना पड़ रहा है। खिलाड़ी कहते हैं कि एक तो राज्य बनने के १० साल बाद खिलाडिय़ों के लिए मौका आया तो उसमें भी इतना विलंब किया जा रहा है। खिलाड़ी कहते हैं कि होना तो यह चाहिए कि प्रमाणपत्र के साथ नौकरी की नियुक्त पत्र भी दिया जाए।
प्रमाणपत्र के साथ नियुक्ति पत्र भी
प्रदेश की खेलमंत्री लता उसेंडी मानती है कि खिलाडिय़ों को नौकरी मिलने में विलंब हो रहा है, लेकिन इसी के साथ वह कहती हैं कि यह एक बार की ही परेशानी है एक बार नियम बन जाए तो परेशानी नहीं होगी। एक सवाल के जवाब में वह कहती हैं कि उनका भी ऐसा मानना है कि उत्कृष्ट खिलाडिय़ों को प्रमाणपत्र के साथ नियुक्ति पत्र भी दिया जाए। उन्होंने कहा कि ऐसा प्रयास किया जाएगा कि यह संभव हो और अगली बार जब मुख्यमंत्री खिलाडिय़ों को प्रमाणपत्र दें तो इसके साथ उनको नियुक्ति पत्र भी दिलाया जाए।
खेल विभाग में भर्ती हो
खेल संचालक जीपी सिंह ने बताया कि एक तो खिलाड़ी भी चाहते हैं कि उनकी भर्ती खेल विभाग में हो विभाग भी चाहता है कि खिलाडिय़ों की भर्ती इस विभाग में हो। इस समय खेल विभाग ही ऐसा विभाग है जिसमें सबसे कम स्टाप है। ऐसे में विभाग ने शासन को इस विभाग में भी उत्कृष्ट खिलाडिय़ों को भी भर्ती करने की मांग रखी है। इसके अलावा शिक्षा विभाग और आदिम जाति और कल्याण विभाग में भी खिलाडिय़ों को भर्ती करने की मांग रखी गई है। उन्होंने बताया कि तृतीय वर्ग के लिए हर विभाग में भर्ती होगी, लेकिन द्वितीय वर्ग के लिए कुछ चुने गए विभाग ही रखे गए हैं। इसी के साथ इसके लिए पीएससी से भी अनुमति लेनी पड़ेगी।

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रविवार, जुलाई 04, 2010

ये पियानो बजता क्यों नहीं है

एक लड़का जेबरा क्रासिंग पर काली और सफेद पट्टी पर इधर से उधर लगातार घुम रहा था। सभी उसको देख रहे थे कि आखिर ये लड़का कर क्या रहा है और क्या सोच रहा है।
क्या आप बता सकते हैं वह क्या कर रहा है और क्या सोच रहा है?
चलिए हम बता देते हैं- वह सोच रहा है कि आखिर यह पियानो बज क्यों नहीं रहा है।

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शनिवार, जुलाई 03, 2010

वो हमारे पीछे खड़े मुस्कुराते रहे


प्यार के इन टेड़े रास्तों पर हम
कभी रोते तो कभी मुस्कुराते रहे।।
जानते हुए भी खतरनाक रास्तों पर
हम अपने कदम बढ़ाते रहे।।
शहर-शहर अजनबी बन हम
उनको तलाशते रहे।।
हर किसी के दरवाजे को
उनका घर समझ खटखटाते रहे।।
गलियों की खाक खाकर
उनको हर जगह पुकारते रहे।।
थककर चूर हुए तो पता चला
वो हमारे पीछे खड़े मुस्कुराते रहे।।

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शुक्रवार, जुलाई 02, 2010

विश्व कप फुटबॉल में भारत का खेलना संभव नहीं

इस समय पूरी दुनिया पर विश्व कप फुटबॉल का नशा चढ़ा हुआ है। जब भी विश्व कप का समय आता है तो हर भारतीय के मन में एक ही सवाल  आता है कि हमारे देश की टीम इसमें क्यों नहीं खेल पाती है। विश्व कप में भारत के लिए खेलना कभी संभव ही नहीं होगा ऐसा फुटबॉल का पिछले चार दशक से प्रशिक्षण देने वाले मुश्ताक अली प्रधान का मानना है। भारत के लिए विश्व कप का सफर क्यों संभव नहीं है इस बात का खुलासा उनसे हुई बातचीत में हुआ है। प्रस्तुत है बातचीत के अंश
० विश्व कप में भारतीय टीम क्यों नहीं जा पाती है?
०० भारतीय खिलाडिय़ों में इतना दम ही नहीं है कि वे वहां तक पहुंच सके।  विश्व कप तो दूर हमारी टीम पात्रता चक्र में ही नहीं टिक पाती है। एशिया में भारत का स्थान पहुंच नीचे है। भारत में फुटबॉल के लिए सरकार पैसे ही खर्च नहीं करती है।
० कितने पैसे खर्च करने चाहिए?
०० एक-एक खिलाड़ी के पीछे करोड़ों लग जाते हैं। यहां तो खिलाडिय़ों को खाने के पैसे नहीं मिल पाते हैं। विदेशों में ८ से १० साल के खिलाडिय़ों को चुन कर उनको तैयार किया जाता है। दीर्घकालीन योजना से ही किसी भी खेल में सफलता मिलती है।
० फीफा की फुटबॉल को बढ़ाने की योजना का लाभ मिल सकता है?
०० फीफा ने ऐसे देशों को चुना है जिन देशों में फुटबॉल का स्तर खराब है। ऐसे देशों में भारत भी शामिल है। फीफा से एक पेय बनाने वाली कंपनी के साथ अनुबंध करके भारत में स्कूल स्तर से फुटबॉल को बढ़ाने की योजना बनाई है। इस योजना का लाभ अभी नहीं लेकिन १०-१५ साल बाद मिल सकता है। लेकिन इसी योजना के भरोसे भारत को विश्व कप में खेलने का रास्ता नहीं मिलने वाला है।
० क्या होना चाहिए?
०० इसमें कोई दो मत नहीं है कि हर खेल के प्रतिभावान खिलाड़ी गांवों में रहते हैं। सरकार को गांवों पर ध्यान देना चाहिए। चाइना ने भी यही किया था।
० चाइना ने क्या किया था?
०० चाइना में जब ओलंपिक हुए तो चाइना ने ओलंपिक के हर खेल का प्रसारण गांवों में करने के लिए बड़े-बड़े स्क्रीन लगवाएं। चाइना सरकार को भी मालूम है कि असली खिलाड़ी गांवों निकलते हंै।
० भारत में क्या होना चाहिए?
०० भारत की मेजबानी में इस साल दिल्ली में कामनवेल्थ खेल हो रहे हैं। यही मौका है भारत को हर गांव में चाइना की तर्ज पर बड़ी-बड़ी स्क्रीन लगाकर सभी खेलों का प्रसारण करना चाहिए।
० गांवों से खिलाड़ी निकालने और क्या हो?
०० गांवों में साई के हास्टल बनाने चाहिए। इसी के साथ स्कूल स्तर के खिलाडिय़ों पर ध्यान दिया जाए। स्कूलों में सबसे ज्यादा बजट रखना चाहिए। स्कूल के खेल शिक्षकों से खेल का काम लेना चाहिए।
० अभी स्कूल के खेल शिक्षक क्या करते हैं?
०० एक तो स्कूलों में इनसे क्लर्क का काम लिया जाता है, दूसरे ये महज टीमें ले जाने का काम करते हैं। खेल शिक्षकों को खिलाड़ी तैयार करने के काम पर लगाना चाहिए।
० छत्तीसगढ़ में फुटबॉल की क्या स्थिति है?
०० छत्तीसगढ़ की टीमों में दम नहीं है। यहां की टीमें राष्ट्रीय स्पर्धाओं में गोल पर गोल खाती है।
० छत्तीसगढ़ में फुटबॉल का स्तर बढ़ाने क्या हो?
०० पहले तो मैदानों की कमी पूरी की जाए। राजधानी में ही फुटबॉल का एक भी मैदान नहीं है। गांवों में मैदान के साथ वहां पर अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षकों की सुविधाएं दिलाई जाए।

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गुरुवार, जुलाई 01, 2010

कंप्यूटर की मर गई मां-हमारी पोस्ट की निकल कई जां

बात परसों की है, जब हम दोपहर को घर आए तो देखा की कंप्यूटर चालू नहीं हो रहा है। सारे जतन करके देख लिए, पर सफलता नहीं मिली। थक हार कर कंप्यूटर के इंजीनियर को फोन लगाया। वे आए उन्होंने भी प्रयास किया कि कंप्यूटर ठीक हो जाए, लेकिन नहीं हो सका। उन्होंने शंका जताई कि लगता है इसकी मां की निधन हो गया है। यानी मदर बोर्ड उड़ गया है। हमने कहा देख लें क्या हुआ है। वे कंप्यूटर की सीपीयू निकाल कर ले गए।
शाम को हमने इंजीनियर को फोन लगाकर पूछा कि क्या हुआ तो उन्होंने बताया कि मदर बोर्ड की जांच चल रही है। रात तक कुछ मालूम नहीं हुआ। दूसरे दिन यानी कल दोपहर को खबर मिली कि मदर बोर्ड काम नहीं कर रहा है दूसरा लगाना पड़ेगा। हमने कहा जल्दी से दूसरा लगाकर कंप्यूटर चालू कर दें। उन्होंने कहा ठीक है। कंप्यूटर को इंजीनियर जब ठीक करके शाम को चार बजे लाने वाले थे तो हमने सोचा चलो यार आज शाम को ही राजतंत्र में पोस्ट लिखने के साथ ब्लाग चौपाल
में चर्चा कर लेंगे। लेकिन वाह री किस्मत बिजली चली गई। इंजीनियर साहब आए और कंप्यूटर को लगाकर चले गए। रात को मालूम हुआ कि इंटरनेट की काम नहीं कर रहा है। हमने फिर इंजीनियर को फोन खटखटाया उन्होंने रात में आकर इंटरनेट चालू कर दिया, सोचा कि रात में कुछ लिखा जाए, लेकिन फिर मन नहीं हुआ। बहरहाल कंप्यूटर की मां के निधन के कारण हमें एक दिन ब्लाग जगत से दूर रहना पड़ा जिसका हमें अफसोस है।

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