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रविवार, जनवरी 23, 2011

व्यावसायिक शिक्षा ने की संस्कृति चौपट

संसदीय सचिव विजय बधेल का कहना है कि आज की व्यावसायिक शिक्षा ने पूरी तरह से भारतीय संस्कृति को चौपट कर दिया है। एक समय वह था जब स्कूल और कॉलेजों में व्यावाहारित शिक्षा भी दी जाती थी, लेकिन काफी समय से इसको बंद कर दिया गया है। आज हर क्षेत्र पूरी तरह से पेशेवर हो गया है। खेल के क्षेत्र में जिस खेल में ज्यादा पैसे हैं उसी खेल की तरफ खिलाड़ी भागते हैं।
श्री बधेल यहां पर शारीरिक शिक्षा के राष्ट्रीय सेमिनार में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि आज समाज में जब कोई अपनी लड़की की शादी के बारे में सोचता है तो वह यह देखता है कि लड़का कितना कमाता है। भले बाद में लोग लड़के के अवगुणों के कारण अपने साथ लड़की की किस्मत को कोसते हैं। उन्होंने कहा कि आज की व्यावसायिक शिक्षा ने व्यावहारिक शिक्षा का समाप्त कर दिया है। एक समय वह था जब स्कूलों में शारीरिक शिक्षा के साथ बागवानी के विषय होते थे। इसी के साथ बड़ों से कैसे शिष्टाचार से पेश आना है, यह भी सिखाया जाता था, लेकिन अब स्कूलों में ऐसी पढ़ाई नहीं होती है।
उन्होंने कहा कि आज खेल की भी बात करें तो खेल भी पूरी तरह से पेशेवर हो गया है। आज खिलाड़ी भी उसी खेल से नाता जोड़ते हैं जिस खेल में ज्यादा पैसा है। कबड्डी के खिलाड़ी रहे श्री बधेल ने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि जब हम लोग खेलते थे तो विजेता टीम को 71 रुपए का इनाम मिलता था। आज यह राशि बहुत ज्यादा हो गई है।
खिलाड़ियों का भविष्य सुरक्षित  करने में लगी है सरकार
श्री बधेल ने कहा कि प्रदेश की भाजपा सरकार मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के निर्देश पर राज्य के खिलाड़ियों का भविष्य सुरक्षित करने में लगी है। एक तरफ जहां राज्य के उत्कृष्ट खिलाड़ियों को नौकरी देने की पहल की जा रही है, वहीं खेलों को निजी उद्योगों को गोद दिलाने के साथ इनको खिलाड़ियों को नौकरी देने के लिए भी कहा जा रहा है।
उन्होंने कहा कि खिलाड़ियों का भविष्य सुरिक्षत करना जरूरी है क्योंकि अपने देश के लिए पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को कई बार पदक बेचने पड़ जाते हैं। खिलाÞड़ी अपना परिवार नहीं चला पाते हंै। कार्यक्रम को साइंस कॉलेज के प्राचार्य केएन बापट के साथ देश भर के राज्यों से आए शारीरिक शिक्षा के विशेषज्ञों ने संबोधित करते हुए अपने विचार रखे।
पायका के बाद अब मायका
सेमिनार में विशेषक्ष शिवनाथ मुखर्जी ने बताया कि केन्द्र सरकार की पायका योजना के बाद अब मायका योजना आने वाली है। यह योजना नगर पालिकाओं के लिए होगी। उन्होंने कहा पायका से ग्रामीण खिलाड़ियों को सामने आने का मौका मिल रहा है। खेल की ज्यादातर प्रतिभाएं गांवों में रहती हैं। इन प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने का काम करना चाहिए। देश में 1982 में हुए एशियाड के बाद खेल नीति बनी थी। खेलों के आयोजन से जागरूकता बढ़ती है। ऐसे आयोजन ज्यादा हो इसका ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में शारीरिक शिक्षा के कॉलेज तो जरूर खुल गए हैं, लेकिन उनका स्तर ठीक नहीं है। स्तर को ठीक करने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि ज्यादातर पालक अपने बच्चों को शारीरिक शिक्षा में भेजने से कतराते हैं। पालकों को अपने बच्चों को इस क्षेत्र में भेजना चाहिए।

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