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रविवार, फ़रवरी 27, 2011

अब लिखने का मन ही नहीं होता

दो-तीन पहले की बात है अचानक ललित शर्मा का फोन आया और उन्होंने पूछा आज-कल कहां हैं, नजर ही नहीं आ रहे हैं।
हमने कहा- हम तो यहीं हैं कहां जाएँगे।
उन्होंने कहा कि मैं ब्लाग की बात कर रहा हूं।
हमने कहा कि अब क्या बताएं मित्र ब्लाग जगत में इतने ’यादा गंदगी करने वाले आ गए हैं कि अब लिखने का मन ही नहीं होता है।
हम बता दें कि जब हमने ब्लाग जगत में कदम रखा था तो हम बहुत खुश थे, लेकिन धीरे-धीरे यह बात सामने आने लगी कि यहां पर अच्छा करने वालों की टांगे खींचने वाले और गंदगी फैलाने वाले ’यादा हंै। हमने ऐसे में जब किसी भी गुटबाजी से किनारा किया तो हमें ’यादा परेशान किया जाने लगा। ऐसे में हमने सोचा कि यार ये सब हम किसके लिए कर रहे हैं, ब्लाग लिख कर हमें कोई पद्मश्री या राष्ट्रपति पदक तो मिलना नहीं है कि हम लोगों की गंदी बातें सुनकर लिखते रहे। ऐसे में हमने सोच लिया कि यार जब मन होगा लिखेंगे, नहीं होगा तो नहीं लिखेंगे। क्यों कर हम किसी को कुछ भी कहने का मौका दें। वैसे भी ब्लाग निजी संपति होता है इसमें क्या लिखना है, यह ब्लाग स्वामी तय करता है न कि कोई गंदी मानसिकता वाला इंसान तय करेगा कि हमें क्या लिखना है।
बहरहाल पहले ब्लाग का जो जुनून था वह अब समाप्त हो गया है, हमारा लिखने का मन तो नहीं था, फिर सोचा कि यार अगर पूरी तरह से हम हार मान जाएंगे तो यह तो बुजदिली होगी, ऐसे में हम सोच रहे हैं कि जिस दिन लगेगा कि कुछ लिखना है तो जरूर लिखेंगे। हमने अपने ब्लाग में वैसे भी टिप्पणियों का रास्ता पूरी तरह से बंद कर दिया है, हम कभी भी टिप्पणियों के लिए नहीं लिखते हैं। अगर वास्तव में कोई हमारा मित्र अपने विचारों से हम अवगत करवाना चाहता है तो वह जरूर हमारे ब्लाग की सदस्यता लेकर अपने विचार हमें भेजा सकता है। वैसे हमारे बहुत मित्रों के पास हमारा मोबाइल नंबर भी हैं, वे कई बार बात भी करते रहते हैं।

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