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बुधवार, मार्च 30, 2011

हम देंगे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी

हम लोग जब यहां से पूरी तरह से प्रशिक्षित होकर अपने-अपने गांव जाएंगे तो यकीन मानिए हम अपने गांवों से ऐसे खिलाड़ी तराशने का काम करेंगे जो आगे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाकर राज्य और देश का नाम करेंगे।
ये बातें यहां पर विशेष चर्चा करते हुए 6 जिलों के क्रीड़ाश्री ने कहीं। इन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि हमारे ऊपर राज्य के खेल विभाग ने एक बड़ी जिम्मेदारी डाली है। हम लोग अपनी इस जिम्मेदारी में पूरी तरह से खरे उतरने का काम करेंगे ऐसा हम वादा करते हैं।
गरीब खिलाड़ियों को तराशेंगे
धमतरी जिले से आए क्रीड़ाश्री में शामिल मीनाक्षी कश्यप, उमा साहू संगीता साहू, होमेश्वर दास मानिकपुरी, कुमेश कुमार साहू, होरीलाल पटेल ने एक स्वर में कहा कि हम लोग अपने गांवों में जाकर सबसे पहले गांव के गरीब और आदिवासी खिलाड़ियों को तैयार करने का काम करेंगे। इसी के साथ हम ऐसे बच्चों को भी मैदान से जोड़ने का काम करेंगे जो बच्चे पढ़ाई नहीं करते हैं। हम 16 साल से कम उम्र के खिलाड़ियों को सामने लाएंगे ताकि वे आगे चलकर न सिर्फ राज्य के लिए खेल सकें बल्कि देश के लिए खेलते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम कर सकें। हमारा यह भी प्रयास रहेगा कि पायका योजना में पंंचायतों में खेल सामानों के लिए जो पैसे मिलते हैं उन पैसों से आने वाले सामानों का उपयोग खिलाड़ी कर सके। खिलाड़ियों को खेल सामान ही नहीं मिल पाते हैं जिनकी वजह से खिलाड़ी आगे नहीं बढ़ पाते हंै।
रायगढ़ के तीजराम पटेल, राजू वर्मा, मुकेश सांडे, स्नेहिल यादव और कुलदीप टोपो ने कहा कि हम अपने गांवों में खेलों के बारे में वहां के बच्चों को जानकारी देंगे और उनको मैदान से जोड़ने का काम करेंगे। जो खिलाड़ी खेलों से जुड़ेंगे उनको खेलों की जानकारी के साथ नियमों के बारे में भी बताया जाएगा।
आदिवासियों में है खेल प्रतिभा
कांकेर के क्रीड़ाश्री होमन लाल हिरवानी, विष्णु राम सोरी, राजू राम कोडोपी, नरेन्द्र कुमार कोडोपी का कहना है कि हमारा बस्तर क्षेत्र तो आदिवासी प्रतिभाओं की खान है। हम लोग इन प्रतिभाओं को सही रास्ता दिखाकर अपने राज्य के लिए खेलने प्रोत्सोहित करने का काम करेंगे। हमारे बस्तर की प्रतिभाओं में इतना दम है कि वे अपने राज्य के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पदक जीतने में सफल हो सकती हैं। इन प्रतिभाओं को तकनीकी ज्ञान नहीं है। हम लोग यहां से जो कुछ सीखकर जाएंगे उससे उन प्रतिभाओं को निखारने का काम करेंगे।
कबीरधाम के श्याम लाल पटेल, जगदीश निर्मलकर, भोलाराम साहू, दिनेश कुमार पटेल, नरेन्द्र चन्द्रवंशी कहते हैं कि छोटे-छोटे गांवों से अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी निकल सकते हैं। इन खिलाड़ियों को रास्ता दिखाने वाले नहीं मिलते हैं।
केन्द्र सरकार के साथ प्रदेश सरकार ने गांव-गांव में क्रीड़ाश्री बनाने की जो पहल प्रारंभ की है, उससे खेल की प्रतिभाओं को अपनी प्रतिभाएं दिखाने का मौका मिलेगा। हम लोग भी अपने गांवों से अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी निकालने का प्रयास करेंगे। 
दंतेवाड़ा के दशमन लाल मरकाम, शंकर कुमार नाग, रामुराम नेताम और सुरेन्द्र कुमार   नाग ने कहां कि हम लोग अंदर के गांवों की प्रतिभाओं को तलाश कर उनको खेल मैदान में लाने का काम करेंगे। हम लोग जानते हैं कि बस्तर के अंदर के गांवों में ऐसी प्रतिभाएं हैं जिन तक कोई पहुंच नहीं पाता है। हम लोग उन तक जाएंगे और उनको सुविधाएं दिलाने का काम करेंगे।
महासमुन्द के धनंजय बरिहा, नारायण प्रसाद गमेल, कमल नारायण साहू, लक्ष्मीकांत साहू, देवचंद बरिहा ने कहा कि हम लोगों को यहां पर बहुत कुछ सीखने का मौका मिल रहा है। हम लोग यहां जो सीख रहे हैं उसको अपने गांवों में जाकर खिलाड़ियों को बताएंगे ताकि वे भी मैदान से जुड़ सके।
प्रदेश सरकार से भी मिल सकता है क्रीड़ाश्री को मानदेय
प्रदेश के क्रीड़ाश्री के लिए प्रदेश सरकार से भी मानदेय मिलने की एक संभावना नजर आ रही है। मप्र में ऐसा किया गया है। इस बारे में खेल संचालक जीपी सिंह से चर्चा की गई तो उन्होंने कहा कि इसके लिए पहले सरकार से चर्चा करनी पड़ेगी अगर इसको सरकार से मंजूरी मिल जाती है तो खेल विभाग जरूर प्रस्ताव बनाकर भेजेगा। यहां यह बताना लाजिमी होगा कि केन्द्र सरकार की इस योजना में गांवों के क्रीड़ाश्री को महज पांच सौ रुपए का मानदेय मिलता है। इतने कम मानदेय की वजह से कोई क्रीड़ाश्री बनने तैयार नहीं होता है। ऐसे में यह जरूरी है कि खेल विभाग पहल करते हुए राज्य सरकार से भी कम से कम पांच सौ रुपए का मानदेय क्रीड़ाश्री को दिलाने की पहल करें ताकि क्रीड़ाश्री में रुचि आ सके और गांवों में खेलों का विकास हो सके।

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मंगलवार, मार्च 29, 2011

प्रकृति के ये नजारे-लगते हैं सबको प्यारे


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सोमवार, मार्च 28, 2011

राजधानी में बनेगी स्क्वैश अकादमी

छत्तीसगढ़ में पहली खेल अकादमी के रुप में राजधानी में जल्द ही स्क्वैश की अकादमी स्थापित की जाएगी। स्क्वैश संघ के अध्यक्ष और प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने इसके लिए सहमति दे दी है।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा है कि स्क्वैश को बढ़ावा देने के लिए रायपुर में अंतरराष्ट्रीय स्तर की सर्व सुविधायुक्त स्क्वैश खेल अकादमी की स्थापना की पहल की जाएगी। मुख्यमंत्री ने अपने निवास पर आयोजित छत्तीसगढ़ स्क्वैश एसोसिएशन की एक महत्वपूर्ण बैठक में इस प्रस्ताव को सहमति प्रदान दी। मुख्यमंत्री ने कहा कि कि भिलाई-दुर्ग, बिलासपुर, राजनांदगांव और कोरबा में स्क्वैश कोर्ट बनाए जाएंगे। डॉ. सिंह ने बैठक में संघ की ओर से स्क्वैश को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धाएं आयोजित करने के प्रस्ताव को भी सहमति प्रदान की। राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता आगामी जुलाई-अगस्त माह में आयोजित की जाएगी। बैठक में खेल एवं  युवा कल्याण विभाग के संचालक जीपी सिंह भी उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि राज्य में स्कवैश खेल के लिए जरूरी अधोसंरचना के विकास के लिए राज्य शासन द्वारा हर संभव मदद दी जाएगी।
इस अवसर पर उन्होंने 34 वें राष्ट्रीय खेलों में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रदेश के खिलाड़ियों सहित राज्य के अन्य कई वरिष्ठ एवं जूनियर बच्चों की हौसला अफजाई की। उन्होंने 34 वें राष्ट्रीय खेलों में हिस्सा लेने वाले राज्य के स्क्वैश खिलाड़ियों बालक वर्ग में रूचिर जिंदल, कुन्दन सिंह और प्रशान्त अग्रवाल तथा बालिका वर्ग में निकिता मिश्रा, आरूषी चौहान और शौर्या यदु और छत्तीसगढ़ स्क्वैश टूर्नामेंट के विजेता खिलाड़ियों को प्रमाण पत्र वितरित किए। मुख्यमंत्री ने जूनियर वर्ग में आदित्य सिंह, आरूषी चौहान, अरूणी चौहान, शौर्या, श्रध्दा सिंह को पुरस्कृत किया । उन्होंने बच्चों को खेलों के साथ मन लगा कर पढ़ाई करने की समझाईश भी दी। मुख्यमंत्री ने वर्ल्ड स्कवैश फेडरेशन के अध्यक्ष रामाचन्द्रन और छत्तीसगढ़ स्क्वैश एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राकेश सिंह तथा उनकी टीम द्वारा स्क्वैश को प्रदेश में बढ़ावा देने के लिए किए गये प्रयासों की सराहना की। बैठक में छत्तीसगढ़ स्क्वैश एसोसिएशन के सचिव डॉ. विष्णु श्रीवास्तव सहित अनेक पदाधिकारी और सदस्य उपस्थित थे।

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रविवार, मार्च 27, 2011

जंगल में लगी समाधी

लव कुश की तपोभूमि तुरतुरिया में हमें एक साधु इस तरह से समाधी लगाए हुए नजर आए। ऐसा नजारा आम-तौर पर देखने को नहीं मिलता है। इतिहास में जरूर ऐसा लिखा है कि सच्चे साधु जंगलों में ऐसी समाधी लगाते थे, लेकिन ऐसा देखने में कम ही मिलता है।

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शनिवार, मार्च 26, 2011

बम भोले... हर हर महादेव

रायपुर से सिरपुर जाने वाले रास्ते में जंगल में शिव की यह प्रतिमा हमें नजर आई तो हमने उसकी तस्वीर ले ली। इस तस्वीर में पृथ्वी पर शिवजी खड़े हैं।

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शुक्रवार, मार्च 25, 2011

मां की ममता

मां की ममता की छांव इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि जानवरों के लिए भी वरदान होती है। तुरतुरिया के जंगलों में एक बंदरियां ने अपने आंचल में इस तरह से अपने बच्चे को छुपा रखा था।

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गुरुवार, मार्च 24, 2011

सड़क पर प्यार भरी जंग-आप भी देखकर हो जाएंगे दंग

कुछ दिनों पहले एक कार्यक्रम के सिलसिले में हमें तुरतुरिया जाने का मौका मिला, रास्ते में जब हमने सड़क पर एक प्यार भरी जंग देखी तो अपने को नहीं रोक सके और खींच लीं, कुछ तस्वीरें।

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बुधवार, मार्च 23, 2011

छत्तीसगढ़ पायका में नंबर वन

केन्द्र सरकार की योजना पायका में छत्तीसगढ़ नंबर वन है। इस बात का खुलासा ग्वालियर के मास्टर ट्रेनर प्रशिक्षण शिविर में हुआ। यहां पर 17 राज्यों से आएखेलों से जुड़े 128 लोगों ने जब अपने-अपने राज्यों में चल रही योजना की जानकारी दी तो इस जानकारी से ही यह बात सामने आई कि पूरे देश में छत्तीसगढ़ में ही इस योजना में सबसे अच्छा काम हो रहा है। कई राज्यों में तो अब तक एक साल की योजना पर ही काम प्रारंभ नहीं हो सका है जबकि छत्तीसगढ़ में दूसरे साल की योजना पर भी काम प्रारंभ कर दिया गया है।
राजधानी के वरिष्ठ खेल अधिकारी राजेन्द्र डेकाटे ने यह जानकारी देते हुए बताया कि ग्वालियर में सात से 21 फरवरी तक आयोजित प्रशिक्षण शिविर में 17 राज्यों के खेलों के जानकारों 128 लोगों ने भाग लिया। छत्तीसगढ़ से खेल विभाग के पांच अधिकारी जिनमें राजेन्द्र डेकाटे के अलावा जशपुर के प्रेम किशोर प्रधान, जांजगीर के नरेन्द्र सिंह बैस, राजनांदगांव के अशोक मेहरा एवं दुर्ग के ए. एक्का शामिल हैं के साथ दंतेवाड़ा के दो क्रीड़ाश्री और यूनीसेफ के चार लोग शामिल हैं, इन्होंने भाग लिया। श्री डेकाटे ने बताया कि प्रशिक्षण शिविर में जब अलग-अलग राज्यों से आए लोगों ने अपने-अपने राज्य में चल रही इस योजना के बारे में जानकारी दी तो यह बात सामने आई कि छत्तीसगढ़ में ही सबसे ज्यादा अच्छा काम हो रहा है। हमारे राज्य में जहां 2009-10 के सभी क्रीड़ाश्री नियुक्त किए जा चुके हैं, वहीं इनको पिछले साल प्रशिक्षण भी दिया जा चुका है। इसी तरह से 2010-11 के भी क्रीड़ाश्री नियुक्त हो गए हैं और इनको तैयार करने के लिए कोंड़ागांव में एक से सात फरवरी तक पहले चरण का प्रशिक्षण शिविर लग चुका है। अब दूसरे चरण के प्रशिक्षण की तैयारी चल रही है। यह शिविर रायपुर में 27 फरवरी से लगेगा।
श्री डेकाटे ने बताया कि जब छत्तीसगढ़ के बारे में अन्य राज्यों के लोगों को मालूम हुआ तो कई राज्यों के लोगों ने छत्तीसगढ़ के खेल अधिकारियों से चर्चा करके यह जानने का प्रयास किया कि आखिर छत्तीसगढ़ की सफलता के पीछे कारण क्या है। इनको यह भी बताया गया कि छत्तीसगढ़ सरकार भी पायका के लिए पूरी मदद कर रही है। इसी के साथ इनको बताया गया कि वैसे भी छत्तीसगढ़ की खेलनीति में प्रारंभ से ही पंचायत स्तर से खेलों को बढ़ाने की बात है।
बहुत कुछ सीखने को मिला
श्री डेकाटे ने पूछने पर बताया कि ग्वालियर में बहुत कुछ सीखने को मिला। वहां पर निदेशक एके दत्ता के मार्गदर्शन में अलग-अलग खेलों के जानकारों ने जहां मैदानों के बनाने के बारे में जानकारी दी, वहीं बताया गया कि कैसे ग्रामीण खिलाड़ियों को खेलों से जोड़ने का काम करना है। श्ाििवर में मुंबई के एक एनजीओ की एक मैजिक वैन आई थी। इस वैन में ग्रामीण खिलाड़ियों को जोड़ने के लिए मनोरंजक खेलों के बारे में बताया गया कि अगर ऐसे खेलों से शुरुआत की जाए तो ग्रामीण खिलाड़ियों की रुचि खेलों बढ़ेगी और वे खेलने सामने आएंगे। श्री डेकाटे का ऐसा मानना है कि इस मैजिक वैन को छत्तीसगढ़ में क्रीड़ाश्री के प्रशिक्षण शिविर में भी बुलाने से बहुत फायदा होगा। उन्होंने बताया कि हम लोग भी प्रशिक्षण शिविर में अपने अनुभव का लाभ क्रीड़ाश्री को देने का काम करेंगे।
पीटीआई को मिले प्रशिक्षण
श्री डेकाटे का ऐसा मानना है कि पायका के प्रशिक्षण के लिए राज्य के   खेल शिक्षकों (पीटीआई) को भेजना चाहिए। ज्यादातर क्रीड़ाश्री खेल शिक्षक हैं, ऐसे में इनके जाने से सीधा फायदा मिलेगा। उन्होंने बताया कि वैसे दो क्राड़ाश्री भेजे गए थे, लेकिन ज्यादा से ज्यादा क्रीड़ाश्री जाएंगे तो उसका फायदा राज्य को मिलेगा और वे गांवों में खिलाड़ी तैयार कर पाएंगे।

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सोमवार, मार्च 21, 2011

स्वर्ण पर दो कांस्य भारी कैसे?

प्रदेश के खेल विभाग ने राज्य के खेल पुरस्कारों के मप्र की अंकों पर आधारित जिस प्र्नणाली की नकल की है, उसको लेकर सवाल उठने लगे हैं कि यह प्रणाली सही नहीं है। इस प्रणाली में दो कांस्य पदकों को स्वर्ण से ज्यादा महत्व दिए जाने पर प्रदेश की खेल बिरादरी ने सवाल खड़े किए हैं कि कैसे खेल विभाग ने बिना खेल संघों से बात किए अपनी मर्जी से नए नियम बनाने का प्रस्ताव सरकार को भेज दिया है।
प्रदेश के खिलाड़ियों को दिए जाने वाले खेल पुरस्कारों को लेकर हमेशा से विवाद होता रहा है। ऐसे में खेल विभाग ने नियमों में संशोेधन करने का मन बनाया और इसके लिए मप्र के अंकों पर आधारित नियम को पूरी तरह से उतार कर एक नया प्रस्ताव बनाकर राज्य सरकार को भेजा दिया है। इस प्रस्ताव का खुलासा होने पर प्रदेश की खेल बिरादरी जहां खफा है, वहीं उसने सवाल उठाया है कि कैसे दो कांस्य पदक एक स्वर्ण पदक पर भारी हो सकते हैं। खेल विभाग की प्रस्तावित अंक प्रणाली से कोई भी सहमत नहीं है। ऐसे में यहां पर एक दूसरी अंक प्र्नणाली खेल संघों के पदाधिकारियों और खिलाड़ियों से बात करके बनाई गई जिसे सभी सही मान रहे हैं।
खेल विभाग ने अंतरराष्ट्रीय स्तर में ओलंपिक से लेकर राष्ट्रीय स्पर्धाओं के लिए जो अंक तय किए हैं उन अंकों में दो कांस्य पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को पुरस्कार का हकदार माना जाएगा, और स्वर्ण जीतने वाले खिलाड़ी को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। इसी के साथ दो रजत जीतने वाले भी पुरस्कार के लिए पहले पात्र होंगे। इसको तो फिर भी ठीक माना जा रहा है, लेकिन कांस्य वाले मामले में सभी सकते में हैं कैसे खेल विभाग ने ऐसा किया है।
प्रदेश कराते संघ के अजय साहू कहते हैं कि स्वर्ण जीतना हमेशा कठिन होता है। किसी भी व्यक्तिगत खेल में या फिर  टीम खेल में कोई भी फाइनल में पहुंचने के बाद जीतता है तो उस उपलब्धि को किसी से बड़ा नहीं माना जा सकता है। जहां तक कांस्य पदक का सवाल है तो ज्यादातर खेलों  में सेमीफाइनल में पहुंचने वाले खिलाड़ियों और टीमों को संयुक्त रुप से कांस्य पदक देने की परंपरा है। ऐसे में कांस्य पदक का उतना महत्व नहीं होना चाहिए। एक बार दो रजत  जीतने वालों को अगर स्वर्ण जीतने वालों से ऊपर माना जाता है तो यह ठीक है।
जिला फुटबॉल संघ के अध्यक्ष मुश्ताक अली प्रधान के साथ सचिव दिवाकर थिटे, फुटबॉल खिलाड़ी शिरीष यादव, अर्स उल्ला खान का कहना है कि खेल विभाग ने जो अंक प्रणाली तय की है, वह सही नहीं है, इस पर एक बार फिर से विचार करना चाहिए। दो कांस्य पदकों को स्वर्ण से ज्यादा महत्व देना गलत है। इनका कहना है कि वास्तव में यह आश्चर्यजनक है कैसे मप्र की एक प्रणाली को यहां पर ेलागू करने का प्रस्ताव बिना खेल संघों से बात किए बनाकर भेजा गया है। 
स्कूल-कॉलेज के अंक भी शामिल हों
जंप रोप के सचिव और खेल शिक्षक अखिलेश दुबे के साथ तीरंदाजी संघ के कैलाश मुरारका का कहना है कि जब खेल विभाग ने अंकों पर आधारित प्रणाली को चुनने का काम किया है तो यह अच्छी बात है, लेकिन इसमें मप्र की तरह ही स्कूली खेलों के साथ कॉलेज के खेलों के भी राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धाओं के अंकों को जोड़ना चहिए। मप्र में ऐसा प्रावधान है।
खेल संचालक ने तय किए अंक
खेल विभाग से जुड़े अधिकारी साफ कहते हैं कि अंकों का निर्धारण खेल संचालक ने किया है। उनके निर्देश पर ही मप्र के अंकों को पूरी तरह से लागू करने का प्रस्ताव भेजा गया है। खेल संचालक को मप्र की अंकों वाली प्रणाली में कुछ कमियों की जानकारी भी खेल संचालक को दी गई, लेकिन उन्होंने मप्र में जितने अंक दिए जाते हैं, उतने ही अंक यहां भी देने के निर्देश दिए जिसके कारण मप्र की पूरी तरह से नकल की गई है। इस बारे में खेल संचालक जीपी सिंह से चर्चा की गई तो उन्होंने इस मामले में कुछ भी कहने से इंकार कर दिया और कहा कि मैं इस विषय में कुछ नहीं कहना चाहता, हमने प्रस्ताव राज्य शासन को भेजा है, जो फैसला होगा, अब सरकार के स्तर पर होगा।
खिलाड़ियों-खेल संघों से चर्चा करके बदले नियम
खेल पुरस्कार के नियमों में खेल विभाग द्वारा अपनी मर्जी से किए जाने वाले संशोधन प्रस्ताव पर हनुमान सिंह पुरस्कार प्राप्त संजय शर्मा बहुत खफा हैं। वे कहते हैं कि यह तो हद हो गई, जब पहले पुरस्कारों के नियम बनाए गए थे तो खिलाड़ियों के साथ खेल संघों के पदाधिकारियों से बकायदा चर्चा करके नियम तय किए गए थे। अगर लग रहा है कि नियमों में कुछ खामियां हैं तो उसके लिए होना यह चाहिए कि सबसे पहले खेल संघों के पदाधिकारियों और खिलाड़ियों की बैठक की जाए और उनसे सुझाव लिए जाए कि कैसे नियम होने चाहिए। अपनी मर्जी से एक कमरे में बैठकर नियम बनाने का कोई मतलब नहीं है। उन्होंने मप्र के नियमों का अनुशरण करने पर भी आपति करते हुए   कहा कि मप्र के नियमों का अनुशरण करने का क्या मतलब है। मप्र की गिनती खेल जगत में काफी पीछे होती है। अगर अनुशरण करना है तो जिन जो राज्य खेलों शीर्ष स्थान रखते हैं उनका अनुशरण करना चाहिए। वैसे मेरा ऐसा मानना है कि छत्तीसगढ़ नया राज्य है तो अपनी सोच होनी चाहिए। अगर हम खिलाड़ियों के फायदे देने वाले नियम बनाएंगे तो उनका अनुशरण के दूसरे राज्य करेंगे। हम दूसरे राज्यों का अनुशरण करें उससे अच्छा है कि हम ऐसा काम करें कि दूसरे राज्य हमारे अनुशरण करें। हमारे यहां ऐसी सोच रखने वालों की कमी नहीं है जरुरत है उनसे बात करने की।

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रविवार, मार्च 20, 2011

आज होली का त्यौहार है

रंगों की सतरंगी फुहार है
आज होली का त्यौहार है
क्या आपको किसी से प्यार
फिर करते क्यों नहीं इजहार है
होली से अच्छा मौका कब मिलेगा
जब हर तरफ से रंग बरसेगा
क्या आपका मन अपनी
महबूबा के लिए नहीं तरसेगा
गर आज भी नहीं किया इजहार
तो जमाना आप पर हंसेगा
तो कर ही डालो इजहार
और डाल दो रंगों की फूहार

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शनिवार, मार्च 19, 2011

जब याद आती है वो होली

जब भी आती है रंग-बिरंगी होली
हमें याद आती है एक सूरत भोली।।
थी जो कभी हमारी हमजोली
एक गांव की वो प्यारी गोरी।।
दिल कर गई थी जो हमारा चोरी
चहकते हुए थी वो हमसे बोली।।
याद रखना ये पहली होली
जो तुमने हम संग है खेली।।
भूल न जाना गुलाल की हथेली
प्यारी-प्यारी ये हमारी अठखेली।।
याद कर लेना जब भी आए होली
मेरे प्यारे प्रियतम मेरे हमजोली।।

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गुरुवार, मार्च 17, 2011

स्टेडियम बनाने शुरू कर दें

भारतीय ओलंपिक संघ से सहसचिव एसएम बाली का कहना है कि छत्तीसगढ़ में होने वाले राष्ट्रीय खेलों के लिए बिना विलंब किए स्टेडियम निर्माण के साथ खेलगांव को तैयार करने का काम प्रारंभ कर देना चाहिए। हम यह मानकर चल रहे हैं कि छत्तीसगढ़ के 37वें राष्ट्रीय खेल 2015-16 में ही हो पाएंगे। ऐसे में प्रदेश सरकार के पास ज्यादा समय नहीं है। अभी से अगर तैयारी शुरू   नहीं की गई तो यह मानकर चलिए कि भारतीय ओलंपिक संघ द्वारा दिए जाने वाले समय पर राष्ट्रीय खेलों का होना संभव नहीं होगा।
प्रदेश के राष्ट्रीय खेल सचिवालय की पहली बैठक में भारतीय ओलंपिक संघ के प्रतिनिधि के रूप में शामिल होने आए श्री बाली ने ये बातें यहां पर विशेष चर्चा करते हुए कहीं। उन्होंने बताया कि झारखंड के 34वें राष्ट्रीय खेलों के बाद केरल में होने वाले 35वें राष्ट्रीय खेलों के लिए 12 दिसंबर 2012 की तिथि तय हो गई है। केरल के बाद गोवा में 36वें राष्ट्रीय खेल होने हैं। हम ऐसा मानकर चल रहे हैं कि वहां के खेल 2013-14 तक हो जाएंगे। इसके बाद छत्तीसगढ़ का नंबर आएगा। छत्तीसगढ़ को 2015-16 का समय मिलेगा। ऐसे में छत्तीसगढ़ के पास पांच साल का समय है। इन सालों में से हम कम से कम एक साल बारिश और छत्तीसगढ़ में 2013 में होने वाले विधानसभा चुनाव का निकाल दें तो छत्तीसगढ़ के पास सिर्फ चार साल का समय है। इन चार सालों में राष्ट्रीय खेलों के लिए स्टेडियमों के निर्माण के साथ खेलगांव का निर्माण तभी संभव होगा जब प्रदेश सरकार समय गंवाए बिना अभी से इसकी तैयारी प्रारंभ कर दें। अगर 2011 में स्टेडियमों का निर्माण प्रारंभ होगा तभी हम मान सकते हैं कि समय पर खेल होंगे। श्री बाली ने पूछने पर कहा कि वे इस बारे में प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को खेल सचिवालय की बैठक के समय जरूर अवगत करवाएंगे। उन्होंने यह भी बताया कि अगर राष्ट्रीय  खेल समय पर नहीं होते हैं कि आईओए मेजबान राज्य पर जुर्माना करता है। उन्होंने बताया कि यह जुर्माना करीब एक करोड़ रहता है।
बाहरी नहीं लड़ पाएंगे चुनाव
श्री बाली ने पूछने पर बताया कि झारखंड में आईओए की सामान्य सभा की बैठक में कई महत्वपूर्ण फैसले हुए हैं। इन फैसलों में यह भी तय किया गया है कि अब किसी भी राज्य ओलंपिक संघ में उसी राज्य के ही खेल संघों के पदाधिकारी चुनाव लड़ पाएंगे। बाहर का कोई व्यक्ति अगर किसी खेल संघ में है भी तो वह चुनाव लड़ने के लिए पात्र नहीं होगा।
दो खेल संघों में नहीं रह पाएंगे
आईओए के साथ भारतीय हैंडबॉल संघ के महासचिव श्री बाली ने बताया कि आईओए ने अपने संविधान में जो संशोधन किया है उसके मुताबिक अब एक आदमी एक ही राज्य संघ का पदधिकारी रह सकता है। दो संघों में रहने पर उस संघ को आईओए मान्यता नहीं देगा। पूछने पर उन्होंने बताया कि अभी भारतीय ओलंपिक संघ ने नए संविधान के मुताबिक राज्य ओलंपिक संघों को एक ही मत का अधिकार होगा। इसी तरह से राष्ट्रीय खेल संघों को अब दो मतों का अधिकार होगा। आईओए के पदाधिकारियों में अध्यक्ष, एक वरिष्ठ उपाध्यक्ष, चार उपाध्यक्ष, एक सचिव, चार सहसचिव, कोषाध्यक्ष और 14 सदस्यों को मताधिकार का अधिकार दिया गया है।
केन्द्र सरकार से हम सहमत नहीं
श्री बाली ने एक सवाल के जवाब में कहा कि केन्द्र सरकार ने जिस तरह से खेल संघों के साथ ओलंपिक संघ पर लगाम कसने का काम किया है, उससे कोई सहमत नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और यहां जब कोई सांसद कितनी भी बार चुनाव जीतकर लोकसभा जा सकता है तो फिर खेल संघों के लिए बाध्यता क्यों? उन्होंने कहा कि सरकार ने खेल संघों के पदाधिकारियों के लिए जो उम्र सीमा तय की है उसका भी हम विरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार ने अपनी मर्जी से एकतरफा फैसला किया है। जब तक सरकार और आईओए के बीच चर्चा नहीं होती है हम सरकार के नियमों को नहीं मानेंगे। श्री बाली ने कहा कि सरकार के नियमों से खेलों का भला नहीं होगा बल्कि खेल बर्बाद हो जाएंगे। ऐसे में जबकि एशियाड, कामनवेल्थ और ओलंपिक में हमारे खिलाड़ी अच्छे करने लगे हैं तो सरकार को खेल संघों का साथ देना चाहिए, न कि उनके खिलाफ माहौल बनाकर खेलों को बर्बाद करना चाहिए।
संघों के विवाद अब निपट जाएंगे
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ के दिशानिर्देशों के मुताबिक अब भारतीय ओलंपिक संघ में भी स्पोर्ट्स लॉ बना दिया गया है। इस लॉ की कमेटी में एक चेयरमैन और दो सदस्य होंगे। अब किसी भी खेल संघ में जो विवाद होगा उसका निपटारा जल्द हो जाएगा। उन्होंने कहा कि आज राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी खेल संघ के चाहे दो संघ हो, या तीन संघ इनका निपटारा आईओए की स्पोर्ट्स लॉ कमेटी करेगी और देश में किसी भी खेल संघ में कोई विवाद नहीं रह जाएगा। सबको अब मिलकर काम करना होगा।
खेल बजट बढ़ाना होगा
श्री बाली ने एक सवाल के जवाब में कहा कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज देश में केन्द्र सरकार के खेल बजट का भी पता नहीं चल पाता है। यह अपने देश का दुर्भाग्य है कि खेलों को आज भी चौथी श्रेणी में रखा गया है। जब तक खेलों को पहली श्रेणी में नहीं रखा जाएगा और जब तक खेलों को उद्योगों को गोद दिलाने की पहल नहीं होगा, देश में खेलों का विकास संभव नहीं है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय खेलों में दूसरे राज्यों से खेलने के लिए किसी भी राज्य के खिलाड़ियों को छह माह पहले एनओसी लेनी पड़ती है, ऐसा न करने वाले खिलाड़ियों के खिलाफ शिकायत होने पर आईओए कार्रवाई कर सकता है।

कांटिनेंटल कप   हैंडबॉल छत्तीसगढ़ में संभव
भारतीय हैंडबॉल संघ के सचिव एसएम बाली ने बताया कि पहली बार भारतीय हैंडबॉल टीम को कांटिनेंटल कप हैंडबॉल में खेलने की पात्रता मिली है। इस कप को करवाने का जिम्मा भारत को मिला है। अंडर 21 बालक वर्ग की इस चैंपियनशिप की मेजबानी भारतीय हैंडबॉल संघ छत्तीसगढ़ को दे सकता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह खेलों में बहुत रुचि रखते हैं। मैं उनके सामने यह प्रस्ताव रखना चाहता हूं कि रायपुर के इंडोर स्टेडियम में इस चैंपियनशिप का आयोजन करवा दिया जाए। उन्होंने पूछने पर बताया कि चैंपियनशिप में भारत सहित पांच देशों के खिलाड़ी शामिल होंगे। इसके आयोजन में अनुमाति 40 लाख का खर्च आएगा। श्री बाली ने कहा कि मुख्यमंत्री की पहल पर जब छत्तीसगढ़ में फेडरेशन कप बास्केटबॉल हो सकता है तो कांटिनेंटल कप क्यों नहीं हो सकता है।

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बुधवार, मार्च 16, 2011

रमन की सोच को नमन

हरिभूमि में आज प्रकाशित हमारी एक रिपोर्ट

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रविवार, मार्च 13, 2011

खेलों को मजबूत करने करें खर्च

प्रदेश के खेल विभाग के करीब पांच करोड़ से ज्यादा बचे हुए बजट को लेकर प्रदेश की खेल बिरादरी में जहां आक्रोश है, वहीं सभी का एक स्वर में कहना है कि बचे हुए बजट से प्रदेश के खेलों को मजबूत करने की पहल होनी चाहिए। राजधानी में एक हास्टल और अकादमी प्रारंभ करने के साथ खेल संघों को सामान देने पर बजट खर्च किया जाए।
खेल विभाग में बचे हुए बजट का खुलासा होने पर प्रदेश की खेल बिरादरी सकते में है कि कैसे खेल विभाग काम कर रहा है और इतना ज्यादा पैसा बचा दिया गया है। अगर विभाग के पास इतना पैसा बचा है तो अब भी एक माह से ज्यादा का समय है, बचे हुए सारे पैसे खेलों को मजबूत करने पर खर्च करने चाहिए। वैसे भी खेलों के लिए बहुत कम बजट मिलता है, ऐसे में बजट बचाने से कैसे राज्य में खेलों का विकास होगा।
तत्काल हास्टल बनाने की पहल हो
वालीबॉल संघ के महासचिव मो. अकरम खान का कहना है कि जब सरकार से अंधोसरचना के लिए 50 लाख की राशि मिली है तो उसका उपयोग होना चाहिए। अब भी बहुत समय है खेल विभाग को तत्काल शहर के मध्य में कोई स्थान देखकर हास्टल बनाने का काम प्रारंभ कर देना चाहिए। स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में दो स्टेडियम है, इसी के साथ सप्रे स्कूल में कई खेलों के मैदान हैं और पुलिस मैदान में भी बास्केटबॉल, वालीबॉल के साथ और कई खेलों के मैदान निकले जाते हैं। ऐसे में इन मैदानों के आस-पास अगर एक हास्टल बन जाता है तो इससे खेल संघों और खिलाड़ियों को बहुत राहत मिलेगी। राज्य बनने के बाद से ही राजधानी में एक हास्टल की कमी महसूस की जा रही है। हास्टल के अभाव मेंं ही राजधानी में कई बड़े आयोजन नहीं हो पाते हैं।
क्लबों को देने चाहिए पैसे
शेरा क्लब के संस्थापक मुश्ताक अली प्रधान कहते हैं कि एक तो खेलों के लिए वैसे भी सरकार से बहुत कम बजट मिलता है, उस पर भी इतने पैसे बच गए हैं तो इसका क्या मतलब है। इसका मतलब साफ है कि खेल विभाग की मानसिकता ही खेलों और खेल संघों को बढ़ाने की नहीं है। हमारा क्लब पिछले दो साल से जिम मांग रहा है लेकिन हमें जिम ही नहीं दिया जा रहा है। जब खेल विभाग के बजट में इतने पैसे बच रहे हैं और आगे चलकर ये मार्च के बाद लेप्स हो जाएंगे तो क्यों कर खेल विभाग इन पैसों से राजधानी से क्लबों को मजबूत करने का काम नहीं करता है। हमारा क्लब पिछले चार दशक से राजधानी में फुटबॉल के साथ हॉकी का आयोजन करने के अलावा इनका प्रशिक्षण शिविर लगाता है। हमारे क्लब ने ही राजधानी में फुटबॉल का डे बोर्डिंग स्कूल प्रारंभ किया है। हमने इसके लिए भी खेल विभाग से 50 हजार की मदद मांगी थी, लेकिन मदद नहीं दी गई।
आयोजन के लिए दें ज्यादा पैसे
जिला फुटबॉल संघ के सचिव दिवाकर थिटे के साथ फुटबॉल खिलाड़ियों विमल साहू, शिरीष यादव, अर्सउल्ला खान का कहना है कि खेल विभाग को खेल संघों को राज्य स्पर्धाओं के आयोजन के लिए ज्यादा पैसे देने चाहिए। जब विभाग खुद आयोजन करता है तो एक स्पर्धा के लिए चार लाख तक खर्च कर देता है लेकिन जब यही आयोजन खेल संघ करते हैं तो उनको महज पचास हजार की राशि दी जाती है। राज्य स्तर के एक आयोजन पर तीन लाख से ज्यादा का खर्च होता है। यह सारा खर्च खेल विभाग को उठाना चाहिए, नहीं तो खेल विभाग खेल संघों के साथ मिलकर आयोजन करे।
खेल संघों को सामान देने चाहिए
हैंडबॉल संघ के सचिव बशीर अहमद खान कहते हैं कि राज्य में तलवारबाजी तीरंदाजी, जिम्नास्टिक जैसे कई खेल हैं जिनको सामानों की जरूरत है रहती है, लेकिन इनको सामान नहीं मिल पाते हंै। अगर खेल विभाग ऐसे खेलों की मदद करने के लिए अपना बजट खर्च करता तो जरूर इन खेलों में खिलाड़ियों को राष्ट्रीय स्तर पर सफलता मिलती।
तीरंदाजी अकादमी प्रारंभ करें
तीरंदाजी संघ के सचिव कैलाश मुरारका का कहना है कि एक तरफ सरकार से अकादमी के लिए मिलने वाली 50 लाख की राशि लेप्स हो रही है, वहीं दूसरी तरफ हमारा संघ लगातार कई सालों से तीरंदाजी की अकादमी प्रारंभ करने की खेल विभाग से मांग कर रहा है। हमारे संघ के अध्यक्ष वरिष्ठ सांसद भाजपा के रमेश बैस भी अकादमी के लिए लगातार बोल रहे हैं, लेकिन अकादमी नहीं खोली जा रही है। हमारा संघ साल में कम से कम पांच बार खेल विभाग को पत्र देता है, फिर भी विभाग ध्यान नहीं देता है। बजट का 50 लाख लेप्स हो जाए इससे अच्छा है कि तीरंदाजी अकादमी पर इसको खर्च करके तत्काल अकादमी प्रारंभ करने का काम खेल विभाग करे। श्री मुरारका ने बताया कि हमारा खेल बहुत मंहगा है, इसके लिए लगातार खेल विभाग से हम सामान मांग रहे हैं लेकिन हमें सामान नहीं दिया जाता है। अगर बजट के पैसे लेप्स होने की स्थिति में है तो तीरंदाजी का सामान लेकर हमारे संघ को देना चाहिए। विभाग जब संयुक्त तत्वावधान में आयोजन करता है तो उसका सारा खर्च विभाग करता है। हमने   तीरंदाजी के आयोजन के समय भी विभाग से सामान मांगे लेकिन विभाग ने देने से इंकार कर दिया।
स्क्वैश-टेनिस कोर्ट बनाने मदद करें
यूनियन क्लब के सचिव गुरुचरण सिंह होरा का कहना है कि हमने क्लब में स्क्वैश और लॉन टेनिस के कोर्ट बनाने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से 25 लाख रुपए का अनुदान मांगा है। ऐसे में जबकि खेल विभाग के पास बजट बचा हुआ है तो हमारी मांग है कि क्लब को कोर्ट बनाने के लिए खेल विभाग मदद करे। उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि निजी क्लब होने के कारण खेल विभाग सीधे तौर पर हमारी मदद नहीं कर सकता है लेकिन मुख्यमंत्री की विशेष अनुशंसा पर तो यह संभव है। उन्होंने कहा कि राज्य खेल महोत्सव के समय हमारे क्लब में आधा दर्जन से ज्यादा खेलों के आयोजन हुए थे, उसी समय हमने मुख्यमंत्री के सामने क्लब में स्क्वैश और लॉन टेनिस का एक-एक कोर्ट बनाने के लिए 25 लाख का विशेष अनुदान मांगा था। यूनियन क्लब हमेशा खेलों के लिए उपलब्ध रहता है। यहां पर अगर स्क्वैश और लॉन टेनिस के कोर्ट बन जाएंगे तो इससे खेलों का ही भला होगा।
राजधानी के मैदानों को संवारना चाहिए
कराते संघ के सचिव अजय साहू का कहना है कि खेल विभाग का बजट अगर लेप्स होता है तो इससे बड़े दुर्भाग्य की बात और कोई नहीं हो सकती है। ऐसा हो रहा है इसका मतलब सीधा है कि खेल विभाग निष्क्रिय है और वह सही तरीके से काम नहीं कर पा रहा है। राजधानी में वैसे भी मैदानों की कमी है। विभाग को मैदानों को संवारने पर ध्यान देना चाहिए। अब भी समय है। विभाग को राजधानी के मैदानों को चिंहित करके उनको ठीक करने के लिए बजट देकर उनका काम प्रारंभ कर देना चाहिए।
कराते के साथ और जो भी मार्शल आर्ट के खेल हैं उनके अलावा जिन भी खेलों के संघों को सामनों की जरुरत है उनको सामान देना चाहिए। खिलाड़ियों को सुविधाएं मिलने से ही प्रदेश में खेलों का विकास होगा।

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शुक्रवार, मार्च 11, 2011

खर्च नहीं पाए पांच करोड़

प्रदेश के खेल विभाग को 2010-11 में मिले 16 करोड़ 27 लाख के बजट में से विभाग करीब पांच करोड़ से ज्यादा की राशि अब तक खर्च नहीं कर पाया है। वित्त विभाग की वेबसाइट पर आज की तारीख में कई मदों में लाखों की राशि बची हुई बताई जा रही है। खेल विभाग के अधिकारी अभी किसी भी तरह की जानकारी देने से इंकार कर रहे हैं और कहते हैं कि अभी मार्च क्लोजिंग है इसलिए कुछ भी बता पाना संभव नहीं है।
खेल विभाग को मिले बजट में खिलाड़ियों के प्रशिक्षण के लिए 70 लाख रुपए दिए गए थे। एक इस बजट को पूरी तरह से खर्च करने की जानकारी के साथ खेल पुरस्कारों के लिए दिए गए 47 लाख के बजट के खर्च होने की जानकारी वित्त विभाग की वेबसाइट में है। अन्य जो जानकारियां इस वेबसाइट में हैं उनको देखने के बाद मालूम होता है कि खेल विभाग कई मदों में लाखों की राशि खर्च ही नहीं कर पाया है। ग्रामीण खेलकूद के लिए विभाग को 75 लाख का बजट मिला था। इस बजट में से 17 लाख पांच हजार सात सौ एक रुपए ही खर्च किए गए हैं। इस मद में 57 लाख 94 हजार दो सौ 99 रुपए की राशि शेष है। इसी तरह से राज्य महिला खेलों के लिए भी 75 का बजट था, इसमें 27 लाख 19 हजार तीन सौ साठ रुपए ही खर्च हुए हैं। इस मद में 47 लाख 80 हजार छह सौ चालीस रुपए शेष हैं। सबसे बड़ी राशि युवा कल्याण गतिविधियों में बची है। इसके लिए एक करोड़ 25 लाख का बजट मिला था। इस बजट में से महज पांच लाख 84 हजार छह सौ चालीस रुपए ही खर्च किए जा सके हैं। इस मद में एक करोड़ 19 लाख 15 हजार तीन सौ साठ रुपए की राशि शेष बताई जा रही है। खिलाड़ियों के प्रोत्साहन वाले मद में एक करोड़ 24 लाख 98 हजार दो सौ सात रुपए की राशि बाकी है। इस मद में वैसे दो करोड़ की राशि बजट में स्वीकृत की गई थी, बाद में राज्य खेल महोत्सव के लिए इसी बजट में साढ़े तीन करोड़ की और राशि दी गई थी। खेल संघों को अनुदान वाले मद में वित्त विभाग की वेबसाइड में दो स्थानों पर राशि  दिखाते हुए दोनों में बचत राशि दिखाई गई है। पहले मद में एक करोड़ पचास की राशि में से 70 लाख 57 हजार चार रुपए खर्च करने की जानकारी के साथ 79 लाख चार हजार दो सौ 96 रुपए शेष रहने की जानकारी है तो एक और मद में 70 लाख की राशि में से 9 लाख 68 हजार 32 रुपए खर्च होने की जानकारी के साथ 60 लाख 31 हजार 9 सौ 68 रुपए शेष होने की जानकारी है।
राज्य में मूलभूत सुविधाओं के लिए मिले 50 लाख में से विभाग पांच लाख 88 हजार 264 रुपए की राशि ही खर्च कर सका है। इस मद में 44 लाख 11 हजार 736 रुपए की राशि शेष बताई जा रही है। राज्य में खेल अकादमी के लिए इस बार भी 50 लाख की राशि की राशि स्वीकृत की गई थी, लेकिन इस दिशा में विभाग ने एक बार फिर से कोई पहल नहीं की जिसके कारण यह पूरी राशि बची हुई है और यह राशि इस सत्र में लेप्स हो जाएगी। जानकारों की माने तो विभाग के बजट में हर साल खेल अकादमी के लिए बजट मिलता है और हर साल यह बजट लेप्स हो जाता है। इस बार विभाग ने सिर्फ यह काम किया है कि विभाग के संचालक के साथ विभाग के कुछ अधिकारी जरूर मप्र की अकादमियों को देखने के लिए गए थे ताकि यहां पर बनने वाली अकादमियों का खाका तैयार किया जा सके। लेकिन यह पहल भी अभी-अभी की गई है जिसका मतलब यह है कि इस सत्र की राशि   तो लेप्स हो ही जाएगी।

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मंगलवार, मार्च 08, 2011

बालिकाओं को दिखाएंगी रास्ता

हमारे गांवों की बालिका खिलाड़ी बहुत शर्मीली होती हैं। ऐसे मं हमने सोचा कि अगर हमें छत्तीसगढ़ की बालिका खिलाड़ियों को रास्ता दिखाना है तो हमें आगे आना पड़ेगा। यही सोचकर हम सभी ने क्रीड़ाश्री  बनने का फैसला किया और यहां प्रशिक्षण लेने आई हैं। अब हम यहां से प्रशिक्षण लेकर जब अपने-अपने गांव जाएंगी तो वहां जाकर बालिका िखिलाड़ियों को मैदान में लाने का काम करेंगी।
ये बातें यहां पर चर्चा करते हुए क्रीड़ाश्री का प्रशिक्षण लेने आई  राज्य के कई जिलों की महिला क्रीड़ाश्री ने एक स्वर में कहीं। इन क्रीड़ाश्री में कुछ तो खेलों से जुड़ी हुई हैं, लेकिन जो खेलों से जुड़ी नहीं हैं, उनमें भी खेलों के लिए कुछ करने का जज्बा है। इनका कहना है कि हमें जब अपने राज्य और देश के लिए कुछ करने का मौका मिला है तो उस मौके को हम खोना नहीं चाहती हैं। धमतरी के ग्राम रतनबांधा की उमा साहू बताती हैं कि वह खो-खो और कबड्डी की खिलाड़ी रही हैं। लेकिन वह राज्य स्तर से आगे नहीं बढ़ सकीं। ऐसे में जब उनको क्रीड़ाश्री बनने का मौका मिला तो उन्होंने इस मौके को यह इस सोच के साथ स्वीकार किया कि गांव की लड़कियां तो बहुत ज्यादा शर्माती हैं, ऐसे में अगर गांव में बालिका खिलाड़ियों को खेल के बारे में जानकारी देने के लिए कोई महिला होंगी तो बालिका खिलाड़ियों को आसानी होगी। ऐसी ही सोच के साथ एमए और पीजीडीसीए करने वाली धमतरी के गांव मलहारी की मीनाक्षी कश्यप क्रीड़ाश्री बनी हैं।
उनका खेलों से कभी नाता नहीं रहा है, लेकिन खेलों से जुड़कर उनको बहुत अच्छा लग रहा है। वह बताती हैं कि उनको पहली बार यहां आकर सम­ा आया कि वास्तव में अनुशासन क्या होता है। पूछने पर वह कहती हैं कि वैसे उनकी रूचि संगीत में रही है, लेकिन जब खेलों से जुड़ने का मौका मिला तो वह इंकार नहीं कर पार्इं। वह कहती हैं कि वह यहां से जो कुछ सीखकर जाएंगी, उसके बाद अपने गांव में खिलाड़ियों को तैयार करने का काम करेंगी। धमतरी के गांव सांकरा की संगीता साहू कहती हैं कि उनकी हमेशा कुछ नया करने की तमन्ना रहती हैं। जब उनको क्रीड़ाश्री बनने का मौका मिला तो इस मौके को उन्होंने हाथ से जाने देना उचित नहीं सम­ाा। संगीता भी कभी खेली नहीं हैं, लेकिन खेल सीखकर दूसरों को भी सिखाने की उनमें ललक जरूर है।
सरगुजा के सलका गांव की राष्ट्रीय खो-खो खिलाड़ी फूलमती टोपो को  हमेशा अपने लिए कोच की कमी खली। वह कहती हैं कि कोच न होने के कारण वह आगे नहीं बढ़ पार्इं। वह पहले क्रीड़ा परिसर में थीं, वहीं पर उनको देवेन्द्र सिंहा ने क्रीड़ाश्री बनने कहा और वह बन गर्इं। कोरबा के मुडानी गांव की संगीता दुबे कहती हैं कि उनका ऐसा सोचना है कि छत्तीसगढ़ के गांवों की प्रतिभाओं को सामने लाकर देश के लिए कुछ किया जाए। वह बताती हैं कि उनके पति आर्मी में हैं और देश की सेवा कर रहे हैं, ऐसे मेरे हाथ भी देश सेवा का मौका लगा है तो मैं क्यों इसे जाने दूं। जांजगीर के किरारी गांव की पूनम सूर्यवंशी कहती हैं वह अपने गांव के खिलाड़ियों को रास्ता दिखानी चाहती हैं। कोरिया के गिदमुड़ी गांव की फूलकुंवर शाडिल्य बताती हैं कि वह कबड्डी के साथ मैराथन और एथलेटिक्स की खिलाड़ी रही हैं। पूछने पर उन्होंने बताया कि उनके गांव में एक मैदान है जिसमें कई खेल होते हैं।
मैनपुर विकासखंड के जादापदर गांव की पुष्पलता नेताम बताती हैं कि वह पिछले पांच साल से मैराथन में ब्लाक की चैंपियन हैं। एक बार जिला मैराथन में वह तीसरे स्थान पर रहकर पुरस्कार जीत चुकी हैं। वह पूछने पर कहती हैं उनका गांव जंगल में होने के कारण वह 10 किलो मीटर से ज्यादा दौड़ने का अभ्यास नहीं कर पार्इं जिसके कारण वह मैराथन में आगे नहीं बढ़ सकीं। पुष्पा कहती हैं कि जब मैं खिलाड़ियों को अभ्यास करवाऊंगी तो मु­ो भी अभ्यास करने का मौका मिल जाएगा।
पाराडोल कोरिया की कुमारी भगवनिया बताती हैं कि वह राज्य स्तर पर कबड्डी, खो खो के साथ एथलेटिक्स में खेली हैं, अब खिलाड़ियों को तैयार करना चाहती हैं।  कोरिया के घुघरा गांव की सरिता राजवाड़े का सपना भी अपने राज्य के लिए खिलाड़ी तैयार करने का है। एथलेटिक्स की खिलाड़ी रहीं कोरबा के दमऊमुंडा की पंचदेवी मरावी कहती हैं कि वह चाहती हैं कि उनके गांव से भी खिलाड़ी निकले और अपने गांव के साथ राज्य और देश के लिए जीतने का काम करें। 

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रविवार, मार्च 06, 2011

राष्ट्रीय खिलाड़ी तैयार करेंगे

अपने राज्य की मेजबानी में होने वाले राष्ट्रीय खेलों को लेकर हम लोग भी उत्साहित हैं। हमारा ऐसा मानना है कि हम सभी क्रीड़ाश्री को इन खेलों के लिए खिलाड़ी तैयार करने का काम करना चाहिए ताकि अपने राज्य को ज्यादा से ज्यादा पदक मिल सके। हम सब यह वादा करते हैं कि हम लोग राष्ट्रीय खिलाड़ी तैयार करने का काम करेंगे।
ये बातें यहां पर विशेष चर्चा करते हुए प्रदेश के छह जिलों के क्रीड़ाश्री ने कहीं। इन्होंने एक स्वर में कहा कि यह अपने राज्य के लिए सौभाग्य की बात है कि हम 37वें राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी मिली है। जब इन खेलों का आयोजन अपने राज्य में संभवत: 2015-16 में होगा तो हम लोग चाहेंगे कि किसी न किसी खेल में हमारे गांव के भी खिलाड़ी अपने राज्य के लिए खेलें और राज्य को पदक दिलाने का काम करें। इन्होंने कहा कि हम लोगों को यह जानकर निराशा हुई है कि झारखंड के राष्ट्रीय खेलों में छत्तीसगढ़ को सिर्फ सात पदक मिले हैं। हमारा ऐसा मानना है कि पायका से जरूर अब गांव-गांव के खिलाड़ी निकलकर सामने आएंगे और राज्य के लिए पदक जीतने का काम करेंगे। सभी क्रीड़ाश्री ने एक स्वर में यह भी कहा कि प्रशिक्षण शिविर सात दिनों के स्थान पर ज्यादा दिनों का होना चाहिए। सात दिनों में पांच खेलों के बारे में जानना संभव नहीं है। 
रायपुर जिले के क्रीड़ाश्री महेश राम सिन्हा, तिजऊ राम तारक, राकेश निषाद, मनोज कुमार वर्मा, छबिराम कैवर्त्य, पीलूराम निषाद, चित्रसेन निर्मलकर, रोहित कुमार जगत, महेन्द्र कुमार मसरा, देवनारायण साहू, योगेन्द्र साहू, संतराम साहू, सुशील कुमार साहू, नरेन्द्र कुमार साहू, सतीश कुमार साहू, संतराम यादव, विजय विश्वकर्मा, सुनील ध्रुव, पुष्पलता नेताम, प्रहलाद साहू, पूरनलाल साहू, राजकुमार धृतलहरे, रामनाथ यादव, अमरनाथ यादव, धन्नालाल साहू, रामकुमार विश्वकर्मा और संतराम कैवर्त्य कहते हैं कि हमारा रायपुर जिला ही ऐसा है जिसमें पायका में युद्ध स्तर पर काम हो रहे हैं। हमारे जिले के वरिष्ठ जिला खेल अधिकरी राजेन्द्र डेकाटे के मार्गदर्शन में हम लोग अपने गांवों से खिलाड़ियों को निकालकर राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने में सफल होंगे ऐसा हमें भरोसा है।  हम अपने राज्य के लिए ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ी तैयार करने का काम करेंगे।
बिलासपुर के जोहन प्रसाद निषाद, सुरेन्द्र द्विवेदी, सूरज कुमार यादव, कृष्ण कुमार चन्द्राकर, प्रेम सिंह, सुरेन्द्र कुमार डहरिया, हरनारायण सिंह, रोहित, अमलेश, राजू सिंह पात्रे, ,शैलेष कुमार, विनोद कुमार, ब्रम्हदेव विश्वकर्मा, फूलेश्वर पटेल, जगदीश पटेल और विश्राम कौशिक कहते हैं कि हम पायका के पांचों खेलों के लिए अपने गांवों से खिलाड़ी तैयार करके राष्ट्रीय खेलों के लिए देंगे।
दुर्ग जिले के विनोद कुमार क्षत्री, माखन लाल वर्मा, राजू लाल, लेखनारायण जायके, पूणेन्द्र कुमार साहू, ओमप्रकाश सिन्हा, हरीशचन्द्र वर्मा, योगेश्वर वर्मा, शैलेष कुमार साहू का कहना है कि हमारे गांवों के खिलाड़ी राज्य खेल महोत्सव में अपनी प्रतिभा दिखा चुके हैं। अब हम लोग अपने गांवों के खिलाड़ियों को राष्ट्रीय खेलों के लिए तैयार करने का काम करेंगे। इन्होंने कहा कि गांवों में मैदान बनाने के लिए भी हम एकजुट हैं। मैदान को समतल करके खिलाड़ियों को मैदान में लाने का काम करेंगे।
जशपुर के अशोक कुमार भगत, बेनानासियुस खलखो, अल्फोस तिग्गा, बाबूलाल राम, रेशमलाल चौहान, अम्बेश्वर सिंह, अशोक कुमार सिंह, मनोज खुंटिया,मदन कुमार चौहान, मेघनाथ साय, वासुदेव नायक, मंजिता तिर्की, मनोज कुमार प्रधान कहते हैं कि हमारे क्षेत्र में प्रतिभाएं बहुत है हम चाहते हैं कि हमारे गांव के खिलाड़ी राष्ट्रीय खेलों में राज्य के लिए पदक जीते। हमारे क्षेत्र के गांवों में तीरंदाजी और हॉकी के कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी हैं। हम इनको तलाश कर तलाशेंगे और राज्य के लिए खेलने सामने लाएंगे। इन्होंने कहा कि हम लोगों को अफसोस होता है कि हमारे समय में ऐसी कोई योजना क्यों नहीं थी, अगर ऐसी योजना उस समय रहती तो हम लोगों में से कई खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत सकते थे। हम क्रीड़श्री में ज्यादातर किसी ने किसी खेल से जुड़े हुए हैं।
कोरबा के गोपाल प्रसाद कंवर, संतोष कुमार, निर्मणी प्रसाद पटेल, पंचदेवी, भरत लाल यादव, पवन कुमार, भागवत प्रसाद कंवर, गिरधारी बाजपेयी, संगीता दुबे, मानसाय कैवर्त और राजेन्द्र ठाकुर का कहना है कि पायका के पांचों खेलों के लिए गांवों के बच्चों को जागरुक करके मैदान में लाएंगे और उनको तैयार करेंगे। हम भी चाहते हैं कि हमारे गांव के खिलाड़ी राष्ट्रीय खेलों में खेलकर अपने राज्य और गांवों का नाम रौशन करें।
राजनांदगांव के लक्ष्मीकांत हरिहारतो, अवधराम, जानकीशरण कुशवाहा, ललित कुमार ठाकुर, मुकेश कुमार वर्मा,अश्वनी यादव, अमेन्द्र वर्मा, कृष्णकुमार कौशिक और राकेश कुमार सोनी कहते हैं कि हमारे गांवों में भी बहुत प्रतिभाएं हैं लेकिन इनको सही मौका नहीं मिल पाता है। लेकिन अब हम लोग ऐसी प्रतिभाओं को सामने लाने का काम करेंगे और अपने राज्य को राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी देंगे। 

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