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बुधवार, मार्च 30, 2011

हम देंगे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी

हम लोग जब यहां से पूरी तरह से प्रशिक्षित होकर अपने-अपने गांव जाएंगे तो यकीन मानिए हम अपने गांवों से ऐसे खिलाड़ी तराशने का काम करेंगे जो आगे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाकर राज्य और देश का नाम करेंगे।
ये बातें यहां पर विशेष चर्चा करते हुए 6 जिलों के क्रीड़ाश्री ने कहीं। इन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि हमारे ऊपर राज्य के खेल विभाग ने एक बड़ी जिम्मेदारी डाली है। हम लोग अपनी इस जिम्मेदारी में पूरी तरह से खरे उतरने का काम करेंगे ऐसा हम वादा करते हैं।
गरीब खिलाड़ियों को तराशेंगे
धमतरी जिले से आए क्रीड़ाश्री में शामिल मीनाक्षी कश्यप, उमा साहू संगीता साहू, होमेश्वर दास मानिकपुरी, कुमेश कुमार साहू, होरीलाल पटेल ने एक स्वर में कहा कि हम लोग अपने गांवों में जाकर सबसे पहले गांव के गरीब और आदिवासी खिलाड़ियों को तैयार करने का काम करेंगे। इसी के साथ हम ऐसे बच्चों को भी मैदान से जोड़ने का काम करेंगे जो बच्चे पढ़ाई नहीं करते हैं। हम 16 साल से कम उम्र के खिलाड़ियों को सामने लाएंगे ताकि वे आगे चलकर न सिर्फ राज्य के लिए खेल सकें बल्कि देश के लिए खेलते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम कर सकें। हमारा यह भी प्रयास रहेगा कि पायका योजना में पंंचायतों में खेल सामानों के लिए जो पैसे मिलते हैं उन पैसों से आने वाले सामानों का उपयोग खिलाड़ी कर सके। खिलाड़ियों को खेल सामान ही नहीं मिल पाते हैं जिनकी वजह से खिलाड़ी आगे नहीं बढ़ पाते हंै।
रायगढ़ के तीजराम पटेल, राजू वर्मा, मुकेश सांडे, स्नेहिल यादव और कुलदीप टोपो ने कहा कि हम अपने गांवों में खेलों के बारे में वहां के बच्चों को जानकारी देंगे और उनको मैदान से जोड़ने का काम करेंगे। जो खिलाड़ी खेलों से जुड़ेंगे उनको खेलों की जानकारी के साथ नियमों के बारे में भी बताया जाएगा।
आदिवासियों में है खेल प्रतिभा
कांकेर के क्रीड़ाश्री होमन लाल हिरवानी, विष्णु राम सोरी, राजू राम कोडोपी, नरेन्द्र कुमार कोडोपी का कहना है कि हमारा बस्तर क्षेत्र तो आदिवासी प्रतिभाओं की खान है। हम लोग इन प्रतिभाओं को सही रास्ता दिखाकर अपने राज्य के लिए खेलने प्रोत्सोहित करने का काम करेंगे। हमारे बस्तर की प्रतिभाओं में इतना दम है कि वे अपने राज्य के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पदक जीतने में सफल हो सकती हैं। इन प्रतिभाओं को तकनीकी ज्ञान नहीं है। हम लोग यहां से जो कुछ सीखकर जाएंगे उससे उन प्रतिभाओं को निखारने का काम करेंगे।
कबीरधाम के श्याम लाल पटेल, जगदीश निर्मलकर, भोलाराम साहू, दिनेश कुमार पटेल, नरेन्द्र चन्द्रवंशी कहते हैं कि छोटे-छोटे गांवों से अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी निकल सकते हैं। इन खिलाड़ियों को रास्ता दिखाने वाले नहीं मिलते हैं।
केन्द्र सरकार के साथ प्रदेश सरकार ने गांव-गांव में क्रीड़ाश्री बनाने की जो पहल प्रारंभ की है, उससे खेल की प्रतिभाओं को अपनी प्रतिभाएं दिखाने का मौका मिलेगा। हम लोग भी अपने गांवों से अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी निकालने का प्रयास करेंगे। 
दंतेवाड़ा के दशमन लाल मरकाम, शंकर कुमार नाग, रामुराम नेताम और सुरेन्द्र कुमार   नाग ने कहां कि हम लोग अंदर के गांवों की प्रतिभाओं को तलाश कर उनको खेल मैदान में लाने का काम करेंगे। हम लोग जानते हैं कि बस्तर के अंदर के गांवों में ऐसी प्रतिभाएं हैं जिन तक कोई पहुंच नहीं पाता है। हम लोग उन तक जाएंगे और उनको सुविधाएं दिलाने का काम करेंगे।
महासमुन्द के धनंजय बरिहा, नारायण प्रसाद गमेल, कमल नारायण साहू, लक्ष्मीकांत साहू, देवचंद बरिहा ने कहा कि हम लोगों को यहां पर बहुत कुछ सीखने का मौका मिल रहा है। हम लोग यहां जो सीख रहे हैं उसको अपने गांवों में जाकर खिलाड़ियों को बताएंगे ताकि वे भी मैदान से जुड़ सके।
प्रदेश सरकार से भी मिल सकता है क्रीड़ाश्री को मानदेय
प्रदेश के क्रीड़ाश्री के लिए प्रदेश सरकार से भी मानदेय मिलने की एक संभावना नजर आ रही है। मप्र में ऐसा किया गया है। इस बारे में खेल संचालक जीपी सिंह से चर्चा की गई तो उन्होंने कहा कि इसके लिए पहले सरकार से चर्चा करनी पड़ेगी अगर इसको सरकार से मंजूरी मिल जाती है तो खेल विभाग जरूर प्रस्ताव बनाकर भेजेगा। यहां यह बताना लाजिमी होगा कि केन्द्र सरकार की इस योजना में गांवों के क्रीड़ाश्री को महज पांच सौ रुपए का मानदेय मिलता है। इतने कम मानदेय की वजह से कोई क्रीड़ाश्री बनने तैयार नहीं होता है। ऐसे में यह जरूरी है कि खेल विभाग पहल करते हुए राज्य सरकार से भी कम से कम पांच सौ रुपए का मानदेय क्रीड़ाश्री को दिलाने की पहल करें ताकि क्रीड़ाश्री में रुचि आ सके और गांवों में खेलों का विकास हो सके।

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