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शनिवार, अप्रैल 30, 2011

सम्मान भी है बिकाऊ-अंटी में पैसा है तो आप भी करा ले भाऊ

आप ब्लागर हैं, या पत्रकार हैं, या फिर कोई कलाकार या फिर सामाजिक  या किसी भी क्षेत्र से जुड़े हैं। हम आपका सम्मान करवा सकते हैं, लेकिन उसके लिए आपको हमारी एक बात माननी पड़ेगी, आपको हमें कुछ डोनेशन देना होगा, तभी यह संभव है। आप जितने बड़े मंत्री या किसी खास आदमी से अपना सम्मान करवाना चाहते हैं, उतनी बड़ा रकम देनी पड़ेगी। आज कल सम्मान में कुछ इस तरह का प्रचलन हो गया है। इसी के साथ एक बात यह भी है कि अगर आप डोनेशन नहीं देते हैं तो आपका ऐसा जुगाड़ जरूरी है कि आपकी किसी ऐसी संस्था से अच्छी खासी जान पहचान हो जो लोगों का सम्मान करती है।
कल ही हमारी मित्र मंडली में अचानक सम्मान को लेकर बात चल पड़ी। बात इसलिए निकली क्योंकि अपने शहर में एक संस्था कुछ लोगों का सम्मान कर रही थी, इस सम्मान समारोह में कुछ ऐसे लोग भी थे, जो जुगाड़ करके अपना सम्मान करवा रहे थे। ऐसे में यह बात निकली कि आज कल किस तरह से सम्मान बिकाऊ हो गया है। अगर आपके पास पैसे हैं और आप कुछ लिखना-पढऩा नहीं भी जानते हैं तो कोई बात नहीं आपका इस तरह से सम्मान हो जाएगा कि आप सोच भी नहीं सकते है। आपने भले समाज के हित के लिए कोई काम न किया हो, पर पैसे हैं तो आप सबसे बड़े समाज सेवी के सम्मान से नवाज जा सकते हैं। आप किसी भी क्षेत्र के लिए अपना सम्मान करवा सकते हैं, बस आपकी अंटी में पैसे होने चाहिए।
अपने राज्य और देश में ऐसी संस्थाओं की कमी नहीं है, जो पैसे लेकर सम्मान करने का काम करती हैं। ऐसी संस्थाएं उन लोगों को सम्मान मुफ्त में कर देती हैं जो उनकी संस्था के गुणगान करने का मादा रखते हैं, ऐसे लोगों में ज्यादातर मीडिया से जुड़े लोग होते हैं। चूंकि हम भी मीडिया से करीब दो दशक से जुड़े हुए हैं ऐसे में हम यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि मीडिया से जुड़े कुछ लोगों को छोड़ दिया जाए जो वास्तव में सम्मान के लायक रहे हैं, तो ज्यादातर का सम्मान ऐसे ही होते हैं कि उनको खुश करने के लिए संस्थाएं ऐसा करती हैं।
एक नहीं कई ऐसे उदाहरण हैं कि नए नवेलो का यहां पर सम्मान हो जाता है और जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी पत्रकारिता में खफा दी उनको कोई पूछता नहीं है। आज का जमाना चापलूसी का है। अगर आप में यह गुण हैं तो हर संस्था आपका सम्मान करेगी। लेकिन इसी के साथ यह भी जरूरी है कि आपको अपने जमीर को किनारे रखना पड़ेगा। जमीर वाले कभी अपना सम्मान इस तरह से नहीं करवा सकते जिस तरह से आज होता है। वैसे आज के जमाने में कितनों को जमीर की परवाह है। जमीर होता तो अपने देश का यह हाल कभी न होता। आज पूरा देश भ्रष्टाचार की आग में जल रहा है, सब तमाशा देख रहे हैं। तमाशा देखना तो हम सबका पहला काम है। सड़क पर मनचले किसी लड़की को छेड़ रहे होते हैं, हम सब बस तमाशा ही तो देखते हैं, कोई आगे बढ़कर उन मनचलों को रोकने की हिम्मत इसलिए नहीं करता है कि न जाने वे मनचले उनका क्या हाल कर दें। हो सकता है कि उनमें से किसी के पास कोई  हथियार हो तो वह उससे विरोध करने वाले की हत्या ही कर दें। ऐसी कई वारदातें हो चुकी हैं।
बहरहाल अगर आप भी अपना सम्मान करवाने में रुचि रखते हैं तो अपने आप-पास तलाश कर लें कोई न कोई ऐसी संस्था जरूर मिल जाएगी जो कुछ ले कर आपको तीर मार खां साबित कर दे देगी। फिर आप वह पट्टा लटकाकर घुम सकते हैं कि आप भी फला क्षेत्र के सबसे बड़े तीस मार खां हैं।

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शुक्रवार, अप्रैल 29, 2011

10 लाख इनामी गोंडवाना टेनिस राजधानी में

प्रदेश टेनिस संघ 10 लाख की इनामी राशि वाला गोंडवाना टेनिस का आयोजन अक्टूबर या नवंबर में राजधानी रायपुर में करेगा। इसमें देश के स्टार खिलाड़ियों लिएंडर पेस, सानिया मिर्जा, सोमदेव बर्मन और अन्य सितारों को भी बुलाने का प्रयास किया जाएगा। यह स्पर्धा 21 साल बाद फिर से जिंदा की जा रही है। 1943 से 1990 तक यूनियन क्लब ने इसका लगातार आयोजन किया है। इसमें पहले लिएंडर पेस खेल चुके हैं।
यह जानकारी देते हुए प्रदेश संघ के अध्यक्ष विक्रम सिंह सिसोदिया के साथ सचिव गुरुचरण सिंह होरा ने बताया कि संघ की सामान्य सभा की बैठक में यह तय किया गया कि संघ गोंडवाना टेनिस का आयोजन करेगा। इस अखिल भारतीय आमंत्रण स्पर्धा में देश के सभी नामी खिलाड़ियों को बुलाने का प्रयास होगा। श्री सिसोदिया ने बताया कि स्टार खिलाड़ियों में लिएंडर पेस से वे पहले ही मिल चुके हैं और इस स्पर्धा के बारे में बताया भी गया है। इसी के साथ सोमदेव बर्मन, सानिया मिर्जा सहित देश के ज्यादा से ज्यादा नामी खिलाड़ियों को बुलाने का प्रयास रहेगा ताकि यहां के नवोदित खिलाड़ियों को उनको देखकर कुछ सीखने का मौका मिले। पूछने पर उन्होंने बताया कि जब यूनियन क्लब में 1943 से 1990 तक गोंडवाना टेनिस का आयोजन किया गया, तो उस समय के सभी स्टार खिलाड़ी यहां आकर खेले हैं। इन खिलाड़ियों में लिएंडर पेस, नंदन बल, हीरालाल डागा, जयदीप मुखर्जी, जीशान अली, एनरोको पिपरनो,केजी रमेश, मीर मंकड आदि शामिल हैं।
सामान्य सभा में यह भी तय किया गया कि पिछले साल की तरह इस साल भी खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के लिए किसी राष्ट्रीय कोच को बुलाया जाएगा। इसके  लिए भारतीय फेडरेशन से बात की जाएगी जो कोच उपलब्ध रहेंगे उनको बुलाया जाएगा। यह शिविर मई और जून के मध्य लगाया जाएगा। मानसून टेनिस का आयोजन अगस्त में होगा। इसमें राज्य स्तर के युगल मुकाबले होंगे। राज्य स्तरीय तीन रैंकिंग स्पर्धाएं भी करवाई जाएगी। राष्ट्रीय स्तर की टेलेंट सीरिज की मेजबानी भारतीय फेडरेशन ने मांगने का भी निर्णय किया गया। हर जिले में कोर्ट बनाने के साथ संघों का भी गठन करने का फैसला किया गया। सभा में 9 जिलों और 10 मान्यता प्राप्त क्लबों के अध्यक्ष और सचिव उपस्थित थे। सभा में पिछले साल का लेखा-जोखा पेश किया गया।

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गुरुवार, अप्रैल 28, 2011

नामी टीमों को बुलाएंगे ही

 नेहरू स्वर्ण कप हॉकी चैंपियनशिप के लिए भले रेलवे का कंशेसन नहीं मिल पा रहा है, लेकिन इसके   बाद भी हम नामी टीमों को बुलाने की कसर नहीं छोड़ेंगे। स्पर्धा में 28 टीमों ने खेलने की स्वीकृति दे दी है। हमारे एथलेटिक क्लब के पदाधिकारी दिन-रात मैदान बनाने में जुटे हैं। बारिश के कारण कुछ बाधा आ रही है, लेकिन हमारा प्रयास है कि हम स्पर्धा की तय तिथि 5 मई से स्पर्धा प्रारंभ करेंगे।
ये बातें एथलेटिक क्लब के अध्यक्ष गुरुचरण सिंह होरा ने कहीं। उन्होंने बताया कि एक बार स्पर्धा की तिथि रेलवे कंशेसन न मिलने के कारण बढ़ानी पड़ी है। लेकिन अब भी कंशेसन मिलने की कोई संभावना नहीं है। ऐसे में क्लब की बैठक में तय किया गया है कि हम नामी टीमों को बुलाने से नहीं चूकेंगे और उनको पूरा यात्रा व्यय देकर बुलाया जाएगा। भले हमारी बजट बढ़ जाएगा, लेकिन स्पर्धा की प्रतिष्ठा को देखते हुए क्लब कोई समझौता नहीं करना चाहता है।
ये टीमें खेलने आएंगी
स्पर्धा के लिए जिन टीमों की स्वीकृति मिल चुकी हैं, उनमें वेस्टर्न रेलवे मुंबई, सीआईएसएफ चंडीगढ़, कोर आॅफ सिंग्नल जालंधर, इंडियन नेवी मुंबई, सेंट्रल रेलवे मुंबई, डोगरा रेंजीमेंट फैजाबाद, साई सुंदरगढ़, भोपाल एकादश, साई कटक, ईस्ट कोस्ट रेलवे भुवनेश्वर, सेल राउरकेला, एसएसबी गुवाहाटी, भिलाई स्टील प्लांट भिलाई, ईगल क्लब बीना, यंगेस्टर क्लब बरेली, ब्रदर्स क्लब सिवनी, जिंदल स्टील रायगढ़, एसईसीआर बिलासपुर, डीएचए दुर्ग, एथलेटिक क्लब रायपुर, साूई हास्टल राजनांदगांव, आर्मी आर्डीनेन्स फैक्ट्री सिकंदराबाद, तमिलनाडु पुलिस, पाम्पोस हास्टल राऊरकेला शामिल हैं। 

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बुधवार, अप्रैल 27, 2011

नक्सली भी हैं रोल मॉडल

जो नक्सली आज अपने देश के लिए नासूर बन चुके हैं उनको अगर कोई कहे कि वे हमारे रोल मॉडल हैं, तो वास्तव में यह दुखद बात होगी या नहीं? लेकिन इसका क्या किया जाए कि बस्तर के बच्चे नक्सलियों को ही अपना रोल मॉडल मानते हैं। नक्सलियों के बाद नंबर आता है शिक्षा कर्मियों को।
हम एक आईपीएस अधिकारी के पास बैठे थे तो चर्चा के दौरान यह बात सामने आई कि बस्तर में करवाए गए एक सर्वे में यह चौकाने वाली बात सामने आई कि वहां के अधिकांश बच्चे नक्सलियों को ही अपना रोल मॉडल मानते हैं। जब अफसर ने यह बात बताई तो उसी समय वहां पर उपस्थित एक अन्य अधिकारी ने ये यह बात बताई कि इसमें कुछ नया नहीं है। उन्होंने बताया कि जिस समय पंजाब में आतंकवाद चरम पर था तो वहां के बच्चे जब कुछ खेल खेलते थे तो उस खेल में आंतकवादी और पुलिस वालों का रोल ज्यादा होता था। उन्होंने कहा कि यह तो बच्चों की मानवीय प्रवृति है कि उनके आस-पास जो घटता है या उनको बार-बार जिनके बारे में सुनने को मिलता है तो उसे ही वे अपना रोल मॉडल समझने लगते हैं। अब बस्तर के बच्चों को पैदा होने के बाद जब होस संभालने का मौका मिलता है तो उनके कानों में हर वक्त बस एक ही आवाज सुनाई पड़ती है और वह आवाज होती है नक्सलियों की। ऐसे में अगर बस्तर के बच्चे नक्सलियों को अपना रोल मॉडल मनाते हैं तो इसमें आश्चर्य वाली बात नहीं है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि बस्तर के आदिवासी अपने बच्चों के दिलों से नक्सलियों को नहीं निकाल सकते हैं। इसके लिए तो पूरी तरह से सरकार दोषी है। अगर बस्तर में पुलिस ने ऐसा काम किया होता जिससे नक्सलियों का सफाया हो जाता तो आज बस्तर के बच्चों के नक्सली नहीं पुलिस के जवान रोल मॉडल होते। लेकिन लगता नहीं है कि कभी ऐसा हो पाएगा।
नक्सलियों को जड़ से उखाड़ फेकने की न तो सरकार के पास ताकत है और न ही उनकी औकात है। नक्सलियों के पास जैसे और जितने हथियार हैं वैसे हथियार उनसे लडऩे वाले जवानों के पास न तो हैं और हो सकते हैं। हमें तो लगता है कि सरकार की मानसिकता ही नहीं है कि नक्सलियों का सफाया हो। बहरहाल यहां पर नक्सलियों के सफाए का सवाल नहीं सवाल है बस्तर के उन मासूम बच्चों का जो नक्सलियों को अपना रोल मॉडल समझते हैं। इन बच्चों के लिए कुछ करना जरूरी है, नहीं तो आगे चलकर वे जिनको अपना रोल मॉडल समझते हैं उनके बताए रास्ते पर ही चलने लगेंगे। इसमें भी कोई दो मत नहीं है कि बस्तर के युवा आज नक्सलियों की ताकत बनते जा रहे हैं। इस ताकत को समाप्त करने के लिए कुछ न कुछ रास्ता निकालना ही होगा। 

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मंगलवार, अप्रैल 26, 2011

स्क्वैश अकादमी की कवायद शुरू

प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की घोषणा के बाद खेल विभाग स्क्वैश अकादमी बनाने की कवायद में जुट गया है। विभाग ने इसका खाका तैयार कर लिया है और लोक निर्माण विभाग को खेल संचालक जीपी सिंह ने सोमवार को पत्र भेजकर बजट बनाने के लिए कहा है ताकि वित्त विभाग को योजना बनाकर भेजी जा सके।
मुख्यमंत्री ने स्क्वैश संघ का अध्यक्ष बनने के बाद संघ की पहली बैठक में संघ के पदाधिकारियों की मांग पर राजधानी में अकादमी बनाने की घोषणा की थी। इस घोषणा के बाद से ही संघ के साथ खेल विभाग भी सक्रिय हो गया और अकादमी बनाने की योजना पर काम प्रारंभ हो गया। खेल विभाग ने साइंस कॉलेज के मैदान में मिली 34 एकड़ की जमीन के आधे एकड़ के हिस्से में अकादमी बनाने की योजना तैयार की है। इसके  लिए चार कोर्ट और टायलेट, चेजिंग रूम के साथ तीन डिजाइन बनाए गए हैं। इन डिजाइन को लोक निर्माण विभाग के पास भेजकर बजट तैयार करने कहा जा रहा है।
लोक निर्माण विभाग को पत्र लिखा
खेल संचालक जीपी सिंह ने बताया कि अकादमी के डिजाइन के साथ लोक निर्माण विभाग कोपत्र सोमवार को भेजा गया है कि वह बजट बनाकर दे ताकि आगे की कार्रवाई की जा सके। उन्होंने बताया कि साइंस कॉलेज मैदान में हमारा 100 सीटों वाला हास्टल तैयार है, अकादमी के खिलाड़ियों को वहा रखा जाएगा।

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सोमवार, अप्रैल 25, 2011

भूला दिए गए नींव रखने वाले

राजधानी के इंडोर स्टेडियम की नींव रखने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल को भूलाकर उनके नाम के पत्थर को एक कमरे में रख दिया गया है। इसके पूर्व शहर के आधा दर्जन चौक-चौराहों पर लगी मूर्तियों को हटाकर उनकी नींव रखने वालों को भी नगर निगम ने भूला दिया है।
छत्तीसगढ़ को स्पोर्ट्स कांप्लेक्स की सौगात देने के लिए 1996 में महापौर  स्वर्गीय बलवीर जुनेजा  के कार्यकाल में इसकी नींव रखी गई थी। निर्माण कार्य प्रारंभ करने के समय लगाए गए पत्थर में पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल के साथ महापौर बलवीर जुनेजा और उपमहापौर गजराज पगारिया का नाम है। आज जबकि इंडोर स्टेडियम बनाकर तैयार हो गया है तो इसकी नींव रखने वालों की पट्टिका को इंडोर के एक कमरे के किनारे में रख दिया गया है, जहां पट्टिका धूल खाते पड़ी है।
चौक की मूर्तियां भी किनारे लगा दी
शहर में करीब आधा दर्जन बरसों पुराने चौक हैं जहां पर देश के शहीदों की मूर्तियों थीं, इनको किनारे करने के साथ इनको वहां स्थापित करने वालों को भी निगम ने किनारे लगा दिया है। इन चौकों में शास्त्री चौक, शहीद भगत सिंह चौक, रानी दुर्गावती चौक, आजाद चौक में महात्मा गांधी,  स्टेशन रोड के साथ तेलीबांधा चौक में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मूर्तियां थीं जिनको किनारे कर दिया गया।
भगवान उनको सद्बुद्धि दे: पगारिया
पूर्व उपमहापौर गजराज पगारिया का कहना है कि इंडोर बनाने के लिए हम लोगों से काफी पापड़ बेले थे। उस समय तो मप्र सरकार से पैसे भी नहीं मिल पाते थे। हम लोगों ने स्पोर्ट्स कांप्लेक्स में एक स्वीमिंग पूल भी बनाने की योजना रखी थी, जिसे नहीं बनाया गया। उन्होंने निर्माण कार्य प्रारंभ करवाने वाले पत्थर को हटाए जाने के बारे में कहा कि ऐसा करने वालों को भगवान सद्बुद्धि दे। 
ससम्मान वापस लगवाएंगे:महापौर
महापौर किरणमयी नायक का कहना है कि उनको जानकारी नहीं है कि पट्टिका एक कमरे में रख दी गई है। अगर किसी कारणवश पट्टिका निकालकर रखी गई है तो उसको ससम्मान वापस लगावाया जाएगा।

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रविवार, अप्रैल 24, 2011

साई में स्थान पाने होड़

सात खेलों के लिए जुड़े 500 खिलाड़ी
स्पोर्ट्स कांप्ललेक्स में हर तरफ बस खिलाड़ी ही खिलाड़ी नजर आ रहे हैं। कोई एक पंडाल में फार्म ले रहा है तो कोई दूसरे पंडाल में फार्म जमा कर रहा है। खिलाड़ियों के साथ पालक भी लगे हैं। हर खिलाड़ी चाहता है कि उसको साई सेंटर में स्थान मिल जाए। सेंटर में स्थान पाने की उम्मीद में सात खेलों के लिए राजधानी में 500 से ज्यादा खिलाड़ी जुटे।
दस साल के लंबे इंतजार के बाद अंतत: राजधानी रायपुर में साई सेंटर की नींव रख दी गई है। सात खेलों जिसमें बोर्डिंग में एथलेटिक्स, जूडो एवं वालीबॉल में बालक-बालिका, भारोत्तोलन और फुटबॉल में बालकों को शामिल किया जाएगा। डे बोर्डिंग में एथलेटिक्स, बैडमिंटन, जूडो, वालीबॉल, कैनोइंग-कयाकिंग (बालक-बालिका) और भारोत्तोलन (बालक) को शामिल किया गया है। इन खेलों के लिए चयन ट्रायल का दौर प्रारंभ हुआ। इसके लिए सबसे पहले खिलाड़ियों का पंजीयन करवाया गया।
किस खेल में कितने खिलाड़ी
सुबह 9 बजे से शाम को पांच बजे तक हुए पंजीयन के बाद पात्र खिलाड़ियों की सूची तैयार की गई जिनको ट्रायल देना है। वालीबॉल में 63 बालक ,26 बालिकाएं, जूडो में 38 बालक, 20 बालिकाएं, फुटबॉल में 87 बालक, भारोत्तोलन में 90 बालक, एथलेटिक्स में 70 बालक-बालिकाएं बैडमिंटन में 14 बालक, 6 बालिकाएं, कयाकिंग में 8 बालक 2 बालिकाएं शामिल हैं। सेंटर के प्रभारी शहनवाज खान ने बताया कि शुक्रवार को बैडमिंटन का ही ट्रायल हो रहा है, बाकी खेलों का ट्रायल शनिवार और रविवार को होगा। वैसे तो आज पंजीयन का दौर पूरा हो गया है, लेकिन अंतिम दिन भी कोई बाहर का खिलाड़ी आता है तो उसका पंजीयन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि उनको इतने ज्यादा खिलाड़ियों के आने की उम्मीद नहीं थी, हम 500 फार्म लाए थे, सभी समाप्त हो गए हैं। 
विशेषज्ञ लेंगे ट्रायल
सेंटर के प्रभारी ने बताया कि हर खेल के लिए विशेषज्ञों को बुलाया गया है जो ट्रायल लेंगे। एथलेटिक्स में राष्ट्रीय कोच सुरेन्द्र पाल के साथ शार्मिला तेजावत, बैडमिंटन में राष्ट्रीय कोच अतुल जोशी के साथ गीता पंथ, भारोत्तोलन में अरविंद कुशवाहा, वालीबॉल में आनंद मोहन, कयाकिंग में मयंक ठाकुर, फुटबॉल में विक्रम तास्दीकर और जूडो में नरेन्द्र कम्बोज शामिल हैं। इनके साथ जिल खेल संघों के अध्यक्ष और सचिवों की भी मदद ली जा रही है। श्री खान ने बताया कि हर खेल में पांच टेस्ट होंगे जिसमें 15 अंक हैं। इसमें से 10 अंक पाने वाले खिलाड़ी ही पात्र होंगे। पूछने पर उन्होंने बताया कि हर खेल के अलग-अलग टेस्ट होते हैं।
ओवरएज बाहर होंगे
एक सवाल के जवाब में श्री खान ने बताया कि किसी भी तरह से फर्जी प्रमाणपत्रों के सहारे ओवरएज खिलाड़ी सेंटर में स्थान नहीं बना सकते हंै। चुने गए खिलाड़ियों का तीन डॉक्टरों का पैनल मेडिकल जांच करता है। इस पैनल में एक दंत चिकित्सक, एक फिजियो और एक एनाटामिक विशेषज्ञ रहते हैं। खिलाड़ियों के हाथों के साथ दांतों के हिस्से का एक्सरे लिया जाता है जिससे उसकी सही उम्र का पता चल जाता है।

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शनिवार, अप्रैल 23, 2011

तुम्हारे होठों में दिखती प्यास है

तुझे देख कर ही दिल बहक जाता है
पूरी बोतल का नशा चढ़ जाता है
शराब में भी कहा वो बात है
तुम्हारे होठों में दिखती प्यास है
फिर क्यों तुम्हारा मन उदास है
आज तो हम तुम्हारे ही पास हंै
करो लो आज मन की मुराद पूरी
शायद फिर हो जाए कोई मजबूरी
मन तो बावरा है, मचल जाता है
जब भी तुम्हारा चेहरा नजर आता है
तुम्हारे चेहरे में न जाने क्या है बात
जी चाहता है रोज हो मुलाकात
गर तुम भी रोज मिलती रही
तो तुम्हें भी हो जाएगा प्यार
फिर कैसे करोगी हमारी
मोहब्बत से तुम इंकार
आओ हो जाओ तुम भी
प्यार की नाव में सवार
प्यार की नैया तो पार लग ही जाती
दीवानों की दुनिया भी बस ही जाती है

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मंगलवार, अप्रैल 19, 2011

सपनों की शहजादी

मेरी कल्पना में
मेरे सपनों की शहजादी
सुंदरता की ऐसी देवी
जो सौन्दर्य को भी लजा दे
गोरे मुखड़े पर उभरने वाली आभा
मानो शीशे पर
भास्कर का धीमा प्रकाश
साथ में
माथे पर चांद सी चमकती बिंदियां
नयन ऐसे
मानो मछलियां
अधर इतने मधुर
मानो कोमल गुलाब
की दो पंखुडियां
आपस में आलिंगन कर रही हों
काली कजरारी पलकें
अपनी तरफ आकर्षिक करती
बिखरी हुईं लटें
मानो घने काले बादल हों
( यह कविता 20 साल पुरानी डायरी से ली गई है)। 


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रविवार, अप्रैल 17, 2011

क्या भाजपाई ईमानदार हैं?

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने जिस तरह से केन्द्र सरकार पर सवाल दागते हुए केन्द्र सरकार को पूरी तरह से भ्रष्टाचारी साबित करने का प्रयास किया है, उससे एक सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि क्या भाजपाई पूरी तरह से ईमानदार हैं? और इस पार्टी में कोई भ्रष्टाचार करने वाला नहीं है। यह तो संभव ही नहीं लगता है कि अपने देश में कोई पार्टी यह दावा करें कि उनके लोग ईमानदार हैं। वैसे गडकरी ने भी ऐसा कोई दावा नहीं किया है, लेकिन उनके सवालों ने ही एक सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या भाजपा के लोग ईमानदार हैं। ज्यादा दूर क्यों जाते हैं क्या दिलीप सिंह जूदेव को कोई भूला है जिनको सभी ने टीवी पर पैसे लेते देखा था। उनका डॉयलाग आज भी सबको याद है जो उन्होंने कहा था कि ऐ पैसे तू खुदा तो नहीं लेकिन खुदा से कम नहीं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि जूदेव का यह डॉयलाग आज अपने देश के ज्यादातर नेता, मंत्रियों और नौकरशाहों पर फिट बैठता है।
राजधानी रायपुर की एक सभा में नितिन गडकरी केन्द्र सरकार पर जमकर बरसे। बकौल गडकरी केन्द्र का बजट 11 लाख करोड़ है और इसमें से 5-6 करोड़ तो भ्रष्टाचार में चला जाता है। इसमें संदेह नहीं है कि गडकरी की बातें सौ फीसदी सच हैं, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि आखिर गडकरी केन्द्र सरकार पर ऊंगली उठाने वाले कौन होते हैं। क्या उनकी पार्टी के सारे नेता ईमानदार हैं? वैसे उन्होंने ऐसा कोई दावा नहीं किया है, लेकिन जब आप किसी पर बेईमान होने का सवाल खड़ा करते हैं, तो आपके सामने भी एक सवाल खड़ा हो जाता है कि क्या आप खुद ईमानदार हैं? अगर आप ईमानदार नहीं हैं तो फिर आप दूसरे के बारे में कहने वाले कौन होते हैं। लेकिन इसका क्या किया जाए कि अपने देश में विपक्ष में बैठी पार्टी बस एक ही काम करती है, दूसरी पार्टी पर ऐसे ही वार करने का। अगर अपने देश की राजनैतिक पार्टियां ईमानदारी से काम करतीं तो क्या कहने की जरूरत है कि आज देश में न तो मंहगाई होती और न ही भ्रष्टाचार।
नितिन गडकरी अगर केन्द्र सरकार के लिए सवाल खड़ा कर रहे हैं तो उनकी भी जवाबदेही है कि वे बताएं कि उनकी पार्टी की जिन राज्यों में सरकारें हैं, क्या उनके सारे मंत्री ईमानदार हैं। इधर गडकरी ने केन्द्र सरकार पर सवाल खड़े किए तो कांग्रेसियों ने भी छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्रियों  पर सवाल खड़े करते हुए इनकी संपतियों की जांच कराने की बात कही है। सीधी सी बात है आप अगर किसी के घर में झांकेंगे तो कोई आपके घर में भी झांकेंगे। अपने देश में बस यही होते रहना है।
आज कोई इस बात का दावा नहीं कर सकता है कि वह ईमानदार है। क्या गडकरी जी दिलीप सिंह जूदेव को भूल गए जिनको पूरे देश ने टीवी पर पैसे लेते देखा था और उन्होंने कहा था कि ऐ पैसे तू खुदा तो नहीं लेकिन खुदा से कम नहीं, भाजपा में भी भ्रष्टाचार करने वालों की कमी नहीं है। ऐसे में सोचने वाली बात है कि अपने देश का क्या होगा। अपने देश को एक अन्ना हजारे बचा नहीं सकते हैं। जब तक पूरा देश जागरूक नहीं होगा अपने देश की राजनैतिक पार्टियों आम जनों को बेवकूफ बनकर भ्रष्टाचार करती रहेंगी और आम जनता मंहगाई की मार झेलती रहेगी।
 अन्ना ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई तो देश में उनको मिल रहे समर्थन से केन्द्र सरकार में बैठी सरकार के साथ देश की हर राजनैतिक पार्टी की नींद उड़ गई थी। देखा जाए तो अन्ना हजारे को लालीपॉप पकड़ाने का काम किया गया, यह बात समिति की पहली बैठक में तय भी हो गई है। इस बैठक में अन्ना की बातों को किनारे कर दिया गया, यह भी तय है एक दिन उनको भी किनारे कर दिया जाएगा और सभी देखते रहेंगे। अपने देश में अन्ना हजारे जैसे ईमानदारों और गांधीवादियों की जरूरत नहीं है।

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शनिवार, अप्रैल 16, 2011

जंप रोप भी अन्ना हजारे की राह पर

राष्ट्रीय खेलों में शामिल नहीं हुआ तो जंतर-मंतर पर धरना देंगे

भारतीय जंप रोप फेडरेशन ने भी अन्ना हजारे की राह पर चलते हुए अपने खेल को राष्ट्रीय खेलों में शामिल करवाने के लिए कमर कस ली है। दिल्ली में हुई बैठक में फैसला किया गया है कि इस साल जंप रोप को राष्ट्रीय खेलों में शामिल नहीं किया गया तो जंतर-मंतर पर धरना दिया जाएगा।
बैठक में शामिल होकर लौटे प्रदेश जंप रोप संघ के सचिव अखिलेश दुबे ने बताया कि फेडरेशन की बैठक में दिल्ली के आईएएस करनेल सिंह को अध्यक्ष बनाया गया। बैठक में फेडरेशन की महासचिव सुनीता जोशी ने कहा कि हमारे खेल को राष्ट्रीय खेलों में शामिल करवाने के लिए अक्टूबर में दिल्ली में होने वाली राष्ट्रीय जूनियर चैंपियनशिप के समय सारे राज्यों के खिलाड़ियों के साथ ओलंपिक संघ से बात की जाएगी। अगर हमारी बात नहीं सुनी गई तो जंतर-मंतर में धरना दिया जाएगा।
राज्यों को मदद करेंगे
श्री दुबे ने बताया कि बैठक में नए अध्यक्ष के सामने सभी राज्यों ने जंप रोप को मान्यता न होने की बात रखते हुए कहा कि बहुत ज्यादा आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अध्यक्ष ने सभी राज्यों को अपने सालाना बजट बनाकर भेजने के लिए कहा ताकि उनको राष्ट्रीय फेडरेशन कुछ मदद कर सके। अध्यक्ष ने सभी राज्यों को पेन कार्ड भी बनाने का सुझाव दिया ताकि राज्य संघों को मदद करने वाले उद्योगों को आयकर में छूट मिल सके।
राजदीप को मदद
नए अध्यक्ष के सामने जब गिनीज बुक रिकॉर्डधारी राजदीप सिंह हरगोत्रा को विश्व कप के साथ एशियन चैंपियनशिप में खेलने जाने के लिए हो रही परेशानी के बारे में श्री दुबे द्वारा बताया गया तो उन्होंने राजदीप को 50 प्रतिशत मदद करने की बात कहीं। इसी के साथ उप्र की गरीब खिलाड़ी कोमल सिंह को भी विश्व कप में खेलने भेजने के लिए आर्थिक सहायता देने का आश्वासन दिया।


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शुक्रवार, अप्रैल 15, 2011

हमें कभी नहीं रही टिप्पणियों की भूख- टिप्पणियों के बिना हमारे ब्लाग नहीं जाएंगे सूख

एक फोन आया भाई ब्लाग चौपाल में खोल दें टिप्पणी के रास्ते
हमने कहा- कैसे खोल दें हम इसके रास्ते
इंसानी कुत्ते तो इंसानियत की भाषा भी नहीं जानते
जो लोग इंसानियत को नहीं मानते
वे ही हैं सबको परेशान करने की ठानते
हमारी ये बातें मित्र तुम क्यों नहीं मानते
अगर हम फिर से खोल देंगे रास्ते
पड़ जाएंगे गंदी टिप्पणियों से वास्ते
हमें कभी नहीं रही टिप्पणियों की भूख
टिप्पणियों के बिना हमारे ब्लाग नहीं जाएंगे सूख
पर हमें मित्रों के विचार न मिलने का जरूर होता है दुख
पर क्या करें इंसानी कुत्ते इससे ही होते हैं खुश
पर हमने टिप्पणियों के रास्ते बंद करके
कर दिए हैं उनके सारे मंसूबे फुस
जिनको देने हैं अपने सुंदर विचार
खुली हुई है हमारे मेल की बहार
आप आकर बरसाएं वहां अपना प्यार
हमसे भी मिलेगा प्यार के बदले प्यार
दुनिया में प्यार लेना और देना चाहिए
नफरत से वास्ता नहीं रखना चाहिए 

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गुरुवार, अप्रैल 14, 2011

अब हजारे से नक्सली समस्या सुलझाने की आश

अन्ना हजारे देश के हीरो नंबर वन हो गए हैं। ऐसे में जबकि उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जंग जीतने का काम किया है तो उनसे सबकी उम्मीदें बढ़ गई हैं। अब छत्तीसगढ़ के साथ देश की सबसे बड़ी नक्सल समस्या को सुलझाने में मदद की उम्मीद की जाने लगी है। बस्तर में आदिवासियों की एक सभा में कल स्वामी अग्निवेश ने ये संकेत दिए हैं कि वे नक्सली समस्या पर अन्ना से चर्चा करेंगे। वे एक रिपोर्ट तैयार करने के बाद उनसे इस मुद्दे पर बात करेंगे और संभव हुआ तो अन्ना हजारे को छत्तीसगढ़ भी लाया जाएगा।
अन्ना ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जिस जंग का ऐलान किया था, उस जंग के पहले कदम पर उनको मिली जीत के बाद ऐसा समझा जाने लगा है कि अब देश की हर बड़ी समस्या के लिए अन्ना हजारे कुछ न कुछ तो कर सकते हैं। ऐसे में जबकि इस समय छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या अपने विकराल रूप में है तो इस समस्या के समाधान के लिए अन्ना हजारे की तरफ देखने का काम स्वामी अग्निवेश कर रहे हैं। वे भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाई गई अन्ना की मुहिम में उनके साथ थे। अग्निवेश लगातार बस्तर का दौर कर रहे हैं और चाहते हैं कि नक्सल समस्या का कोई न कोई समाधान निकले। उन्होंने अपने बस्तर प्रवास में 13 अप्रैल को बस्तर में ली गई सभा में जहां इस बात का उल्लेख किया कि वे नक्सली समस्या पर अन्ना हजारे से चर्चा करेंगे, वहीं उन्होंने सरकार और नक्सलियों के बीच समझौते की कड़ी बनने की भी बात कहीं। उन्होंने नक्सलियों से कहा कि शांति बहाली के लिए उनको 6 माह से एक साल तक हथियारों से अलग रहना होगा। अगर नक्सली ऐसा करते हैं तो अग्निवेश का कहना है कि सरकार पर दबाव बनाया जा सकता है।
लगता तो नहीं है कि नक्सली अग्निवेश की बात मानकर हथियार छोड़ने का काम करेंगे। लेकिन इतना जरूर तय लगता है कि अन्ना जरूर अग्निवेश की बात मानकर छत्तीसगढ़ आ सकते हैं। अगर अन्ना के छत्तीसगढ़ आने से नक्सली समस्या का कोई भी हल निकलता है तो इससे बड़ी कोई बात हो नहीं सकती है। नक्सल समस्या से आज छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरा देश परेशान है। अब देखने वाली बात यही होगी कि क्या वास्तव में अन्ना नक्सली समस्या को भी गंभीरता से लेते हैं और इसके लिए कुछ करते हैं।

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बुधवार, अप्रैल 13, 2011

नौकरी की भेंट चढ़ा एक कुनबा

छत्तीसगढ़ की इस्पात नगरी भिलाई में एक पूरा कुनबा नौकरी की भेंट चढ़ गया। इस कुनबे के पांच सदस्यों ने अपने को पिछले चार दिनों से कमरे में बंद कर रखा था और भिलाई स्टील प्लांट से अनुकंपा नियुक्ति की मांग की जा रही थी। नौकरी न मिलने पर परिवार की महिला ने अपने तीन बेटियों के साथ आत्महत्या कर ली। एकलौता बेटा गंभीर हालत में अंतिम सांसे गिन रहा है। इस घटना से पूरा राज्य हिल गया है। इसी के साथ जनप्रतिनिधियों की भी पोल खुल गई है कि वे ऐसे मामलों से कैसे अपने को अलग कर लेते हैं। इस पूरे परिवार की मौत को दुर्ग की सांसद सरोज पांडेय से जोड़ा जा रहा है, जिन्होंने परिवार से मिलने आने का वादा किया था, पर उनके न आने से निराश परिवार ने यह कदम उठाया। हालांकि सरोज पांडे इस बात से मुकर रही हैं कि उन्होंने ऐसा कोई वादा किया था।
भिलाई के सुनील साहू का परिवार पिछले चार दिनों से घर के कमरे में कैद था। इस परिवार की मांग थी कि बीएसपी सुनील साहू को उनके पिता के स्थान पर अनुकंपा नियुक्ति दे। लेकिन बीएसपी में इस तरह का प्रावधान न होने के कारण ऐसा संभव नहीं हो पा रहा था। साहू परिवार को इस बात का भी डर था कि बीएसपी उससे वह मकान भी ले लेगी जो परिवार के मुखिया के नौकरी में रहते बीएसपी से मिला था। हर तरफ से निराश परिवार ने अंत में अपने को कमरे में बंद कर लिया था। इस परिवार को न्याय दिलाने की बात सांसद सरोज पांडेय ने कही थी, ऐसा सुनील साहू ने मीडिया को बताया था। सुश्री पांडेय कल इस परिवार से मिलने आने वाली थी, लेकिन उनके स्थान पर जब उनकी प्रतिनिधि आईं तो परिवार निराश हो गया और परिवार की महिला ने अपनी तीन बेटियों के साथ सल्फास खाकर जान दे दी। जब पुलिस ने मकान का ताला तोड़ा  तो घर से चार लाशें, और सुनील गंभीर हालत में मिला। सुनील को अस्पताल में भर्ती किया गया है। उसका बच पाना भी संभव नहीं लग रहा है।
इधर घटना के बाद सरोज पांडे इस बात से इंकार कर रही हैं कि उन्होंने साहू परिवार से ऐसा कोई वादा किया था। सोचने वाली बात यह है  कि अगर उन्होंने कोई वादा नहीं किया था तो फिर उनकी प्रतिनिधि वहां क्या करने गई थीं? इस घटना ने निश्चित ही जनप्रतिनिधियों की पोल खोलकर रख दी है। पिछले चार दिनों में जनप्रतिनिधियों के साथ शासन-प्रशासन ने ऐसा कोई प्रयास ही नहीं किया जिससे साहू परिवार को बचाया जा सकता। घटना के बाद अब बीएसपी प्रबंधन यह कह रहा है कि उसने तो एक दिन पहले ही नौकरी देने की बात मान ली थी। अगर नौकरी देने की बात मान ली गई थी तो फिर आखिर साहू परिवार ने ऐसा कदम क्यों कर उठाया।
इस घटना को लेकर कई तरह की बातें की जा रही हैं। मीडिया से जुड़े लोग इस घटना को ठीक नहीं मान रहे हैं। सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़ ने अपनी संपादकीय इस हेडिंग आत्महत्या की धमकी की नोंक पर कोई मांग कितनी जायज, लिखी है। इसके लिए जो तर्क दिए गए हैं वो दमदार हैं। वास्तव में यह सोचने वाली बात है कि अगर हर कोई नौकरी के लिए इसी तरह से धमकी देने लगे तो देश का हर बेरोजगार नौकरी पाने के लिए यही रास्ता अपनाने लगेगा। कुछ दिनो पहले ही एक युवक नौकरी के लिए जहर खाकर मुख्यमंत्री निवास पहुंच गया था।
एक सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों कर आज का युवा सरकारी नौकरी के पीछे भागता है। निजी क्षेत्र में भी नौकरियों की कमी नहीं है। अगर किसी में प्रतिभा है तो उसको नौकरी के लिए भटकना नहीं पड़ता है, लेकिन यहां पर जरूरत होती है मानसिकता की। अगर आप निजी क्षेत्र में नौकरी करने की मानसिकता रखते हैं तो आपके पास अवसरों की कमी नहीं है। लेकिन अगर आप सरकारी नौकरी के ही पीछे भागना चाहते हैं तो यह राह जरूर कठिन है।
साहू परिवार का अंत एक सबक होना चाहिए आज के युवाओं के लिए कि वे ऐसा कोई रास्ता न चुने जिससे उनके परिवार का अंत हो जाए। जिंदगी बार-बार नहीं मिलती है। जिंदगी को जीने के रास्ते कई हैं, बस आप में दम होना चाहिए। ऐसे युवाओं को उन पर नजरें डालनी चाहिए जो रोज कमाकर अपने परिवार का पेट भरते हैं। जो लोग जिंदगी से हार जाते हैं, वहीं ऐसा कदम उठाते हैं।

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मंगलवार, अप्रैल 12, 2011

लोकपाल बिल से क्या गरीब को रोटी मिल जाएगी

लोकपाल बिल अभी बना भी नहीं है और इसको लेकर टकराव होने लगा है। पहले कपिल सिब्बल और इसके बाद सलमान खुर्शीद के बयानो से अन्ना हजारे जी खफा हो गए हैं। लेकिन कुछ भी हो कपिल सिब्बल की बातों पर गौर किया जाए तो उनकी बातों में दम तो लगता है। लेकिन उससे भी अहम एक सवाल यह है कि क्या लोकपाल बिल पास हो जाने से किसी गरीब को रोटी मिल जाएगी। क्या वास्तव में लोकपाल बिल आने के बाद इस बात की गारंटी होगी कि अपने देश से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा।
अन्ना हजारे के अनशन ने देश को एक राह जरूर दिखाई है और लोकपाल बिल के लिए समिति बन गई है। लेकिन यह समिति कुछ फैसला करे इसके पहले ही इस समिति से जुड़े दो केन्द्रीय मंत्रियों कपिल सिब्बल और सलमान खुर्शीद के बयानों से अपने दूसरे गांधी अन्ना हजारे खफा हो गए हैं। हजारे जी का खफा होना अपने स्थान पर ठीक तो है, लेकिन इसमें भी संदेह नहीं है कि कपिल सिब्बल जो कह रहे हैं उसको भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। कपिल सिब्बल की बातें गौर करने वाली हैं। कपिल जी का कहना गलत नहीं है कि अपने देश में लोकपाल बिल की नहीं बल्कि व्यवस्था को ठीक करने की जरूरत है। वे सवाल खड़ा करते हैं कि क्या लोकपाल बिल किसी गरीब को अस्पताल में बिना किसी नेता की सिफारिश के भर्ती नहीं किया जाता है। एक सवाल वे यह भी उठाते हैं कि गरीबों के लिए स्कूलों की कमी है, गरीब बच्चों को स्कूलों में दाखिला नहीं मिलता है। कपिल सिब्बल कहते हैं कि क्या लोकपाल बिल से आम जनों  को बिजली, पानी, गैसे सिलेंडर और फोन जैसी सुविधा मिल सकती है। कपिल सिब्बल के इन सवालों के साथ एक सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि क्या लोकपाल बिल से गरीबों को रोटी मिल पाएगी।
कहीं से भी यह लगता है कि लोकपाल बिल से गरीबों का भला होने वाला है। इसमें संदेह नहीं है कि अपने देश को किसी लोकपाल बिल की नहीं बल्कि वास्तव में व्यवस्था बदलने की जरूरत है। अगर व्यवस्था ठीक हो तो किसी बिल की क्या जरूरत होगी। लेकिन यह बात भी ठीक है कि अपने देश में व्यवस्था कभी ठीक नहीं हो सकती है। यह अपने देश का दुर्भाग्य है कि अपने देश में गरीब और ज्यादा गरीब होते जा रहे हैं और अमीर और ज्यादा अमीर बनते जा रहे हैं। यह बात तो तय है कि अपने देश से भ्रष्टाचार तब तक समाप्त नहीं हो सकता है, जब तक आम जन जागरूक नहीं होंगे और राजनेताओं की मानसिकता नहीं बदलेगी। और ऐसा कभी होगा, इसके आसार तो नजर नहीं आते हैं।
कहने में और सुनने में भले यह बात अच्छी लगती है कि अन्ना हजारे के सामने सरकार झुक गई, लेकिन इसके पीछे की सच्चाई कुछ और ही है। सरकार के झुकने के पीछे सबसे बड़ा कारण इस समय पांच राज्यों के चुनाव हैं। सरकार को मालूम था कि अगर वह हजारे जी की बात नहीं मानती है तो जिस तरह से हजारे जी को समर्थन मिल रहा था, वह समर्थन पांच राज्यों के चुनावों में बहुत बड़ा असर डाल सकता था। इसमें भी संदेह नहीं है कि लोकपाल बिल आसानी से पास होने वाला नहीं है। आगे-आगे देखे होता है क्या, लेकिन इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि लोकपाल बिल से किसी गरीब का भला होने वाला नहीं है।

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सोमवार, अप्रैल 11, 2011

ये इंसानी कुत्ता क्या बला है?

हमारी कल की एक पोस्ट एक इंसानी कुत्ता पीछे पड़ा है, क्या करें? पर एक ब्लागर मित्र ने हमसे फोन करके सवाल किया कि यार ये इंसानी कुत्ता क्या बला है? 
हमने उनको बताया कि जब बिना वजह कोई इंसान किसी के पीछे पड़ जाए और अनाप-शनाप कुछ लिखने लगे तो उसको कहते हैं इंसानी कुत्ता।
जिस तरह से कुत्तों की आदत होती है कहीं भी गंदगी करने की उसी तरह से इन इंसानी कुत्तों की भी आदत होती है किसी को भी बिना वजह परेशान करने की।
ऐसे इंसानी कुत्तों की ब्लाग जगत में भी कमी नहीं है, ऐसे ही इंसानी कुत्तों से हमारे वे ब्लागर मित्र ही नहीं बल्कि हम और न जाने कितने ऐसे ब्लागर हैं जो परेशान हैं, यही वजह है कि हमें इशारों में ही एक पोस्ट लिखनी पड़ी कि शायद उन इंसानी कुत्तों में कुछ इंसानित हो तो वे अपनी हरकतों से बाज आ जाए। हम उनसे यह उम्मीद इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि वे इंसानी कुत्ते हैं, और इंसान में इंसानित तो होती ही है, वैसे हमें लगता नहीं है कि ऐसे इंसानी कुत्ते बाज आ सकते हैं, लेकिन चूंकि हम इंसान हैं और इंसान भरोसा करने में विश्वास रखते हैं, इसलिए हमने भरोसे में एक पोस्ट लिखी थी। अब यह तो उन इंसानी कुत्तों पर है वि वे क्या सोचते हैं और करते हैं।
हमने तो ऐसे इंसानी कुत्तों से बचने के लिए अपने सभी ब्लागों में टिप्पणी के रास्ते ही बंद कर दिए हैं। कहते हैं न कि न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी, तो जब इंसानी कुत्तों के पास रास्ता ही नहीं रहेगा तो वे क्या करेंगे। वैसे हम जानते हैं कि ऐसे कुत्ते कहीं भी जाकर गंदगी कर सकते हैं, तो मित्रों ऐसे इंसानी कुत्तों से बचने के लिए टिप्पणियों का मोह हमारी तरह से छोड़ कर अपने लेखन पर ही ध्यान दें।
हम इस तरह की पोस्ट लिखते भी नहीं लेकिन क्या करें जब कोई सीमा से बाहर चला जाए तो उसको जवाब देना जरूरी होता है। हमें तो लगता है कि एक इंसानी कुत्ता बस इसी इंतजार में रहता है कि कब हम कुछ लिखें और कब वह आकर जहां स्थान मिले गंदगी करके चला जाए। ब्लाग चौपाल जैसे साफ-सुधरे ब्लाग को भी तो इस इंसानी कुत्ते से नहीं छोड़ा है। अब ऐसे में कोई क्या कर सकता है। न जाने इस इंसानी कुत्ते को हमसे क्या दुश्मनी है जो बिलकुल जाति दुश्मन की तरह हमारे पीछे पड़ा है। अगर कोई हमें इतना ही जाति दुश्मन समझता है तो सामने क्यों नहीं आता है, क्यों कर कायरों की तरह कुत्ते की खाल ओढ़कर भोंकने का काम कर रहा है। अगर वह कुत्ता नहीं शेर है तो अपनी असली पहचान के साथ सामने आकर हमारा मुकाबला करें। हम जानते हैं कि जो इंसान कुत्ते की खाल ओढ़े हुए है वह कभी सामने आने वाला नहीं है, संभवत: हम ही अपना समय खराब कर रहे हैं, लेकिन हम जानते हैं कि किसी के वार का जवाब न देना भी बुजदिली होता है, ऐसे में हम कभी भी जवाब देने में पीछे नहीं रहते हैं। 

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रविवार, अप्रैल 10, 2011

एक इंसानी कुत्ता पीछे पड़ा है, क्या करें?

हमारे एक मित्र हैं, उन्होंने हमसे एक सवाल किया कि यार क्या बताएं आज-कल एक इंसानी कुत्ता पीछे पड़ गया है क्या करें। हमारे मित्र कहते हैं कि उन्होंने सारे जतन करके देख लिए मगर कुत्ता है कि अपनी जात दिखाने से बाज ही नहीं आ रहा है।
हमने अपने मित्र को सलाह ही कि यार कुत्तों की जात होती ही है कुत्ती। वैसे भी एक कहावत है कि कुत्ते की पूछ को 12 साल भी नली में डाल कर रखोगे तो वह सीधी नहीं होती है, ऐसे में तुम यह उम्मीद कैसे कर सकते हो कि कुत्ते अपनी जात दिखाने से बाज आ जाएंगे। इसके लिए सीधा और सरल उपाय यही है कि उस कुत्ते के भोंकने पर ध्यान ही न दो। जब भी उस रास्ते से गुजरों कोशिश करो कि कुत्ते के आने के सारे रास्ते बंद हो।
हमारे मित्र ने हमारी सलाह मान ली है और अब वे खुश हैं कि उनको उस कुत्ते से परेशानी नहीं हो रही है। वैसे एक बार उनको तब परेशानी हो गई थी जब उन्होंने इस उम्मीद में एक रास्ता खुला छोड़ दिया था कि उस रास्ते से उनके मित्र आएंगे, मित्र तो आए ही साथ ही वह कुत्ता भी आ गया भोंकने के लिए। अपनी परेशानी मित्र से बताई तो हमने उनको फिर से सारे रास्ते बंद करने के लिए कहा और उन्होंने सारे रास्ते बंद कर दिए हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि अब वह कुत्ता अपनी खींज कहा उतराने जाएगा। वैसे कुत्तों का क्या है जहां खंभा देखा नहीं कि चालू हो जाते हैं टांग उठाकर।

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सिगरेट में सुअर का खून

सावधान.... सिगरेट पीने वालों के लिए एक और खतरनाक खबर है कि यह स्वास्थ्य के लिए तो हानिकारक होता ही है, लेकिन इसी के साथ सिगरेट में सुअर का खून भी होने की बात सामने आई है।
हालांकि हमें सिगरेट पीने की आदत नहीं है, लेकिन कभी-कभार मूड होने पर एक सिगरेट पी भी लेते हैं। लेकिन रोज सिगरेट पीना है ऐसी बात नहीं है। बहरहाल हम आए मुद्दे की बात पर। पाकिस्तान की एक आनलाइन संवाद एजेंसी ने हॉलैंड में किए गए एक सर्वे के हवाले से बताया कि है कि 185 औद्योगिक कार्यों में सुअर का खून प्रयोग किया जाता है, इनमें सिरगेट भी शामिल है। शोधकर्ताओं ने संभावना जताई है कि सिगरेट के फिल्टरों में सुअर के हीमोग्लोबिन का उपयोग किया जाता है। अगर यह बात सच है तो सिगरेट पीने वालों को सोचना चाहिए कि उनके स्वास्थ्य का क्या होगा, वैसे भी तंबाकू स्वास्थ्य के लिए घातक होता है अगर इसमें सुअर का खून भी शामिल हुआ तो क्या होगा, यह सोचने वाली बात है।

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शनिवार, अप्रैल 09, 2011

भ्रष्टाचार के लिए आखिर दोषी कौन

भ्रष्टाचार पर अन्ना हजारे जी के अनशन से आज पूरा देश ही नहीं बल्कि विश्व उबल रहा है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि भ्रष्टाचार से आज सभी त्रस्त हैं, लेकिन विचारणीय प्रश्न यह भी है कि आखिर इसके लिए दोषी कौन है। क्या हम इसके लिए दोषी नहीं है? हमारा जहां तक मानना है कि भ्रष्टाचार के लिए सबसे पहले दोषी तो हम ही लोग हैं।
कहने में यह बात बड़ी अटपटी लगती है, लेकिन यह एक कटु सत्य है कि आज अगर अपना देश भ्रष्टाचार में डूबा है तो उसके लिए पहले दोषी हम ही हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि इसके लिए हम दोषी कैसे तो हम आप ेसे पूछना चाहते हैं कि जब आप किसी भी सरकारी काम से कहीं जाते हैं, मान लीजिए आपको निवास प्रमाणपत्र ही बनवाना है और आपको इसके लिए तहसील या जिलाधीश कार्यालय जाना पड़ता है, और आपको वहां पर नजर आती है, एक लंबी लाइन, ऐसे में आप क्या करते हैं? ऐसे समय में चाहे आप हो या हम शार्टकट का रास्ता अपनाने के लिए ऐसे आदमी को तलाश करते हैं जो हमें उस लाइन से बचाकर हमारा काम करवा सके। इसके लिए हम कुछ पैसे खर्च करने से नहीं चूकते हैं। जब हम किसी को किसी काम के लिए पैसे देते हैं तो उस समय हम सिर्फ यही सोचते हैं कि हमारा समय बच जाएगा, लेकिन हम यह कभी नहीं सोचते हैं कि हमारे ऐसा करने से क्या होगा। हमारे ऐसा करने से दो बातें होती हैं, एक तो जो लोग लाइन में लगे होते हैं, उनके साथ अन्याय होता है, दूसरे हम अपने काम के लिए किसी को पैसे देकर उसको रिश्वतखोर और भ्रष्टाचारी बनाने का काम करते हैं।
कहते हैं कि एक-एक बुंद से घड़ा भरता है। यह बात ठीक है, जिस तरह से एक-एक बुंद से घड़ा भरता है, उसी तरह से ही एक-एक करके अपने देश में भ्रष्टाचार का भी घड़ा भर गया है। आज घड़ा भर गया है तो उसका फूटना भी लाजिमी है। और अब वह फूट रहा है। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि उस भ्रष्टाचार के घड़े को भरने का काम तो हमने और आपने किया है। क्यों कर हम यह मानने को तैयार नहीं होते हैं कि देश में भ्रष्टाचार के पीछे हम और आप हैं।
आज अगर आपको किसी काम का ठेका लेना है तो आपको इसके लिए पैसे देने पड़ेंगे। इसके बाद काम करने के बिल के एवज में भी पैसे देने पर ही बिल का भुगतान होगा। आज आपको किसी भी तरह का काम कराना हो, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, बिना पैसे दिए काम होने वाला नहीं है। नौकरी के लिए पैसे देने पड़ते हैं। हमने तो तीन हजार रुपए मासिक की एक साल की संविदा नियुक्ति के लिए लोगों को एक-एक लाख तक रिश्वत देते देखा और सुना है। ऐसे में आखिर देश में भ्रष्टाचार की सुनामी आएगी नहीं तो क्या होगा। देखा जाए तो भ्रष्टाचार अपने देश में काम करने वाले हर इंसान के खून में शामिल हो गया है। इसको समाप्त करना उतना आसान नहीं है। लेकिन जिस तरह से अन्ना हजारे जी सामने आए हैं, उससे आशा की एक किरण नजर आ रही है कि शायद अपने देश से भ्रष्टाचार की सुनामी का अंत न सही, इससे कुछ तो राहत मिल जाएगी। हमारा ऐसा मानना है कि अपने देश से भ्रष्टाचार की सुनामी का अंत तभी संभव है जब हर आदमी इस बात का संकल्प लेगा कि वह अपने किसी भी काम के लिए चाहे कुछ भी हो जाए किसी को रिश्वत नहीं देगा। जिस दिन ऐसा हो जाएगा, उस दिन भ्रष्टाचार की सुनामी कहां जाएगी यह बताने की जरूरत नहीं है। क्या आप ऐसा संकल्प लेने के लिए तैयार हैं। महज हजारे जी के समर्थन की बात करने से कुछ नहीं होने वाला है, ऐसा संकल्प ही कुछ कर सकता है।

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शुक्रवार, अप्रैल 08, 2011

अन्ना हजारे के रूप में मिला एक और गांधी

चलो किसी ने तो सही एक बड़ा काम करने की हिम्मत दिखाई है। आज भारत में शायद ही कोई ऐसा होगा जो भ्रष्टाचार से परेशान और व्यथित नहीं होगा। लेकिन इसका क्या किया जाए कि लाख कोशिशों के बाद भी भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ ज्यादा कुछ नहीं हो सका है। लेकिन लगता है कि अब अपने देश को एक और गांधी मिल गए हैं जो देश से भ्रष्टाचार को समाप्त करने की बात ठान चुके हैं। अब हम सभी भारतीयों का यह फर्ज बनाता है कि हम उनका साथ देते हुए देश से भ्रष्टाचार को समाप्त करने की दिशा में काम करें और भारत को फिर से सोने की चिड़िया बनाने में मदद करें।
जी हां हम बात कर रहे हैं अपने 72 साल के जवान अन्ना हजारे जी की। हजारे जी को जवान कहना ज्यादा उपयुक्त होगा, क्योंकि जो काम आज अपने देश की युवा पीढ़ी नहीं कर सकी है, वह काम करने की हिम्मत 72 साल के इन जवान ने की है। वास्तव में हजारे जी की हिम्मत को आज पूरा देश सलाम कर रहा है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि अगर सरकार ने हजारे जी की बात नहीं मानी तो देश में एक ऐसा आंदोलन खड़ा हो जाएगा जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की होगी। आज हजारे जी के साथ सभी जुड़ने लगे हैं। और अब वह दिन भी दूर नजर नहीं आ रहा है जब पूरा देश हजारे जी के साथ खड़ा होगा। और खड़ा भी क्यों न हो। आज देश में ऐसा कौन है जो भ्रष्टाचार से परेशान नहीं है। अपने देश में भ्रष्टाचार चरम पर है कहा जो तो गलत नहीं होगा। अपने देश में एक चपरासी से लेकर मंत्री क्या प्रधानमंत्री तक भ्रष्टाचार में लिप्त रहे हैं। याद करें हम प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। उस समय उनको सूटकेस राव भी कहा जाने लगा था। जिस देश के प्रधानमंत्री पर भी भ्रष्टाचार में शामिल होने का आरोप लगा हो उस देश के बारे में सोचा जा सकता है।
हम ज्यादा दूर न जाकर दिल्ली के कामनवेल्थ में हुए भ्रष्टाचार की बात करें तो इस मामले के बारे में हर कोई यही कहता है कि प्रधानमंत्री  कार्यालय को भरोसे में लिए बिना क्या सुरेश कलमाड़ी के अकेले के बस की बात थी कि वे ऐसा कुछ कर पाते। हमेशा से ऐसा ही होता है कि किसी न किसी को बलि का बकारा बनाया जाता है तो कलमाड़ी भी बलि के बकरे बन गए। इसी के साथ और कुछ बकरों की भी बलि ली गई। लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय पर आंच तक आने नहीं दी गई। अपने देश में जब बी किसी भ्रष्टाचार की बात होती है तो सब जानते हैं कि उस भ्रष्टाचार में एक संतरी से लेकर मंत्री तक का हिस्सा रहता है।
बहरहाल हम बात करें अपने हजारे जी की, वास्तव में उनकी हिम्मत की दाद देते हुए सभी को उनके समर्थन में आगे आना चाहिए। अगर अपने देश से भ्रष्टाचार दूर नहीं हुआ तो यह देश को पूरी तरह से खा जाएगा। वैसे भी भ्रष्टाचार देश को लगातार खा रहा है, लेकिन अपना देश अब तक संभवत: इसलिए बचा हुआ है क्योंकि अपने देश में पैसों की कमी नहीं है। अब यह बात अलग है कि पैसों की कमी का रोना रोते हुए ही देश को बर्बादी के रास्ते पर ले जाने का काम अपने देश के नेता और मंत्री कर रहे हैं। अपने देश को राजनेता ही खा गए हैं कहा जाए तो गलत नहीं होगा। राजनेता बस अपना घर भरने में लगे हैं। इसमें संदेह नहीं है कि देश का इतना ज्यादा पैसा विदेशों में है कि अगर वह काला धन अपने देश में वापस आ जाए तो भारत जैसा देश पूरी दुनिया में कोई और नहीं हो सकता है। काला धन वापस आने पर अपना देश वास्तव में फिर से सोने की चिड़िया बन सकता है। लगता है कि देश को सोने की चिड़िया बनाने की राह दिखाने का काम ही अपने हजारे जी कर रहे हैं। उनको समर्थन देकर हमें अपने देश को फिर से सोने की चिड़ियां बनाने में मदद करनी चाहिए। अपने राज्य की राजधानी रायपुर के साथ पूरे छत्तीसगढ़ में हजारे जी के समर्थन में लोग आगे आने लगे हैं।


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गुरुवार, अप्रैल 07, 2011

गम के आंसू अब पीए जाते नहीं

वो इस कदर हमसे कतरा कर चल दिए
उनकी बेरूखी देखकर हम दिल थामकर रह गए।।
दिए हैं जो जख्म हमें उसने सिए जाते नहीं
गम के आंसू अब पीए जाते नहीं।।
डुब गया है दिल यादों में उनकी इस कदर
कटता ही नहीं अब तन्हा जिंदगी का सफर।।
छोड़कर ही जब साथ चल दिए हमसफर
फिर काटे कैसे जिंदगी का लंबा सफर।।
जिसे हमने खुदा की तरह ही पुजा
वहीं समझने लगी हैं हम अब दुजा।।
वफा का क्या खुब हमें सिला मिला
कांटों से हमारा दामन भर गया।

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बुधवार, अप्रैल 06, 2011

मंदिरों में दान करने से किसका भला होता है?

चैत नवरात का समय चल रहा है, पूरे देश के मंदिरों में भीड़ का सैलाब उमड़ रहा है। इसी के साथ लोग मंदिरों में दान कर रहे हैं। दान करना गलत नहीं है, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि आखिर मंदिर में किए गए दान से किसका भला होता है। मंदिरों में दान करने वालों की मानसिकता क्या होती है? अपने देश में इतनी ज्यादा गरीबी है कि उनकी चिंता किसी को नहीं है। कई किसान भूख से मर जाते हैं, पर उनकी मदद करने के लिए कोई आगे नहीं आता है, लेकिन मंदिरों में लाखों नहीं बल्कि करोड़ का गुप्त दान किया जाता है। आखिर इस दान से हासिल क्या होता है। किसको मिलता है इसका लाभ।
हम एक बात साफ कर दें कि हम कोई नास्तिक नहीं हैं। भगवान में हमारी भी उतनी ही आस्था है जितनी होनी चाहिए। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या आस्था जताने के लिए मंदिरों में दान करना जरूरी है। अगर नहीं तो फिर जो लोग मंदिरों में बेतहासा दान करते हैं उनके पीछे की मानसिकता क्या है? क्या उनको भगवान से किसी बात का डर रहता है। क्या ऐसे लोगों जो कि काले धंधे करते हैं उनके मन में यह बात रहती है कि वे भगवान के मंदिर में कुछ दान करके अपने पाप से बच सकते हैं। हमें तो लगता है कि ऐसी ही किसी मानसिकता के वशीभूत होकर ये लोग लाखों रुपए दान करते हैं। लेकिन इनके दान से किसका भला होता है? हमारे देश के बड़े-बड़े मंदिरों की हालत क्या है किसी से छुपी नहीं है। लाखों दान करने वालों के साथ वीआईपी और वीवीआईपी के लिए तो इन मंदिरों के द्वार मिनटों में खुल जाते हैं। इनको भगवान के दर्शन भी इनके मन मुताबिक समय पर हो जाते हैं, लेकिन आम आदमी को घंटों लंबी लाइन में लगे रहने के बाद भी कई बार भगवान के दर्शन नहीं होते हैं। कभी-कभी लगता है कि भगवान भी अमीरों के हो गए हैं, खासकर बड़े मंदिरों में विराजने वाले भगवान।
शिरर्डी के साई बाबा के दरबार के बारे में कहा जाता है कि वहां पर सभी को समान रूप में देखा जाता है। लेकिन हमारे एक मित्र ने बताया कि वे जब शिरर्डी गए थे तो वीआईपी पास से गए थे तो उनको दर्शन करने में कम समय लगा। यानी वहां भी बड़े-छोटे का भेद है। संभवत: अपने देश में ऐसा कोई मंदिर है ही नहीं जहां पर बड़े-छोटे का भेद न हो। किसी वीआईपी या फिर अमीर को हमेशा लाइन लगाने से परहेज रहती है। वे भला कैसे किसी गरीब के साथ लाइन में खड़े हो सकते हैं।
लाखों का दान करने वालों को क्या अपने देश की गरीबी नजर नहीं आती है। क्या ऐसा दान करने वाले लोग उन खैराती अस्पतालों, अनाथ आश्रामों में दान करने के बारे में नहीं सोचते हैं जिन आश्रमों मेें ऐसे बच्चों को रखा जाता है जिन बच्चों में संभवत: ऐसे बच्चे भी शामिल रहते हैं जो किसी अमीर की अय्याशी की निशानी के तौर पर किसी बिन ब्याही मां की कोख से पैदा होते हैं।
क्या लाखों दान करने वालों को अपने देश के किसानों की भूख से वह मौतें नजर नहीं आती हंै। आएगी भी तो क्यों कर वे किसी किसान की मदद करेंगेे। किसी किसान की मदद करने से उनको भगवान का आर्शीवाद थोड़े मिलेगा जिस आर्शीवाद की चाह में वे दान करते हैं। ऐसे मूर्खों की अक्ल पर हमें तो तरस आता है। हम तो इतना जानते हैं कि किसी भूखे ेको खाना खिलाने से लाखों रुपए के दान से ज्यादा का पुन्य मिलता है। किसी असहाय और गरीब को मदद करने से उनके दिल से जो दुआ निकलती है, वह दुआ बहुत काम की होती है।
हम मंदिरों में दान करने के खिलाफ कताई नहीं है, लेकिन किसी भी मंदिर में दान उतना ही करना चाहिए, जितने से उस मंदिर में होने वाले किसी काम में मदद मिले। जो मंदिर पहले से पूरी तरह से साधन-संपन्न हैं उन मंदिरों में दान देने से क्या फायदा। अपने देश में ऐसे मंदिरों की भी कमी नहीं है जिनके लिए दान की बहुत ज्यादा जरूरत है, पर ऐेसे मंदिरों में कोई झांकने नहीं जाता है। क्या ऐसे मंदिरों की मदद करना वे दानी जरूरी नहीं समझते नहीं है जिनको दान करने का शौक है।
क्या बड़े मंदिरों में किए जाने वाले करोड़ों के दान का किसी के पास हिसाब होता है। किसी भी गुप्त दान के बारे में कौन जानता है। मंदिरों के ट्रस्टी जितना चाहेंगे उतना ही हिसाब उजागर किया जाएगा, बाकी दान अगर कहीं और चले जाए तो किसे पता है। अब कोई गुप्त दान करने वाला यह तो बताने आने वाला नहीं है कि उसने कितना दान किया है। हमारे विचार से तो बड़े मंदिरों में दान करने से किसी असहाय, लाचार, गरीब का तो भला होने वाला नहीं है, लेकिन मंदिर के कर्ताधर्ताओं का जरूर भला हो सकता है। अगर दानी इनका ही भला करना चाहते हैं तो रोज करोड़ों का दान करें, हमें क्या।

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मंगलवार, अप्रैल 05, 2011

पाक पहुंचते ही अपनी औकात दिखा दी अफरीदी ने

पाकिस्तानी टीम के कप्तान शाहिद अफरीदी ने अपने देश पहुंचते ही अपनी औकात दिखा दी, और भारतीयों के दिल को छोटा कहने के साथ भारतीय मीडिया को भी गलत बताते हुए कहा कि भारतीय मीडिया की सोच नकारात्मक है। बकौल अफरीदी भारत-पाक के रिश्तों को खराब करने में मीडिया का गंदा रोल है। अफरीदी के इस बयान के बाद अब भारतीयों को सोचना पड़ रहा है अफरीदी ने भारतीय टीम को जीत पर जो बधाई दी थी, वह महज एक दिखावा था। अफरीदी की बधाई से भारत में वे हीरो बन गए थे, लेकिन अब उन्होंने जैसा बयान पाक टीवी को दिया है उसके बाद अब वे जरूर भारतीयों की नजरों में खलनायक बन गए हैं।
भारतीय टीम से जब पाकिस्तान की टीम विश्व कप के सेमीफाइनल में हारी थी तो पाक टीम के कप्तान शाहिद अफरीदी ने जिस तरह से भारतीय टीम को बधाई देने के साथ अपने देश से हार के लिए माफी मांगी थी, उससे लगा था कि वास्तव में अफरीदी का दिल बड़ा है। उनके इस कदम की पूरे देश में तारीफ भी हुई। लेकिन कहते हैं न कि असलीयत बहुत जल्द सामने आ जाती है, तो अफरीदी की भी असलीयत सामने आ गई। पाक पहुंचते ही जिस तरह से अफरीदी ने सूर बदले, उसके बारे में किसी ने सोचा नहीं था। अफरीदी ने भारतीयों के बारे में जो कहा है कि वह निंदनीय है, इसी के साथ भारतीय मीडिया पर उन्होंने जिस तरह से कीचड़ उछालने का काम किया है, वह भी क्षमा योग्य नहीं है। अफरीदी कौन होते हैं, यह फैसला करने वाले की भारतीय मीडिया की सोच नकारात्मक है। जरा अपने मीडिया के गिरेबां में झांककर देख लें कि उसकी सोच कितनी सकारात्मक है। भारत ने हमेशा पाक की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है, जबकि हर भारतीय इस बात को अच्छी तरह से जानता है कि पाक कभी दोस्ती के लायक रहा ही नहीं है।
यह अपने देश के बस की ही बात है जो वह पाक की कई करतूतों को बर्दाश्त करता रहा है, भारत के स्थान पर कोई दूसरा देश होता तो अब तक न जाने क्या हो जाता। इतना सब होने के बाद अफरीदी साहब कहते हैं कि भारतीयों का दिल छोटा है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि भारतीयों का नहीं बल्कि पाकिस्तानियों का दिल छोटा और साथ ही कमजोर भी है। अगर ऐसा नहीं होता तो अफरीदी भारत में कुछ और पाक में जाकर कुछ और नहीं कहते। अगर अफरीदी का दिल इतना ही बड़ा है तो उन्होंने वही बात भारत में मैच हारने के बाद क्यों नहीं कहीं जो वे अब कह रहे हैं। इसके पीछे दो कारण है, एक तो अफरीदी में इतना दम नहीं था कि वे भारत में ऐसी बात कह पाते, दूसरे यह कि वे भारत में रहते हुए यहां हीरो बनना चाहते थे, और अपने देश में जाकर वे भारत की बुराई करके वहां भारत से मिली हार की तरफ से लोगों का ध्यान हटाना चाहते थे। अफरीदी इस बात अच्छी तरह से जानते हैं कि पाकिस्तानी आवाम किसी भी देश से हार बर्दाश्त कर सकता है, भारत से नहीं। ऐसे में अफरीदी को यही एक रास्ता नजर आया कि आवाम का ध्यान हार से हटाने के लिए भारतीयों की जितनी हो सके बुराई की जाए, और उन्होंने वहीं किया है। वैसे भी पाकिस्तानी कब भरोसे के लायक रहे हैं कि उनका भरोसा किया जाए। उन्होंने हमेशा धोखा दिया है और धोखा देते रहेंगे। 

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सोमवार, अप्रैल 04, 2011

अब हम नहीं होते तंग-टिप्पणी के रास्ते कर दिए हैं बंद

व्यक्त करने वाले कम और काड़ी करने वाले ज्यादा हैं। वैसे ऐसे काड़ीबाज ज्यादा नहीं हैं, लेकिन नाम बदल-बदल कर काड़ी करना इनकी आदत है। ऐसे में हमने तंग होने की बजाए टिप्पणियों का रास्ता ही बंद कर दिया। वैसे भी हम ब्लाग जगत में न तो टिप्पणियां पाने आए हैं और न ही अपनी वाह-वाही करवाने आए हैं। वैसे भी सच्चे मन से वाह-वाही करने वाले कम हैं, जिनको टिप्पणियों की भूख होती है, वहीं दूसरे की ­ाूठी तारीफ करते हैं, ताकि उनका टिप्पणी बाक्स भरा रहे।
हमने जब से अपने ब्लागों में टिप्पणियों के रास्ते बदं किए हैं, हम अब तंग नहीं होते हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि हम लाख कोशिश कर लें लेकिन बिना वजह की गई टिप्पणियों के कारण परेशानी तो होती है। हमने बहुत कोशिश की थी कि हम अपने ब्लागों में टिप्पणी के रास्ते बंद न करें। ऐसा हम इसलिए नहीं सोच रहे थे कि हमें टिप्पणियों की तरदार रहती है, लेकिन हमारे कई मित्र ऐसे हैं जो वास्तव में अपने विचारों से हमें अवगत करवाना चाहते हैं। ऐसे मित्रों से अब फोन पर बातें हो जाती है, कुछ मेल करके अपनी भावनाओं से अवगत करवा देते हैं। इन्हीं लिए रास्ते खुले रखना चाहते थे, लेकिन क्या करें कुछ काले, पीलो को यह बात रास नहीं आ रही थी। बहरहाल अब जिनको जहां जाकर जो करना है करें हम तो अब तंग नहीं होते हैं। हमारा ऐसा मानना है कि टिप्पणियों से खास फर्क नहीं पड़ता है।
हमने पहले सोचा था कि हम लिखना ही बंद कर दें कुछ समय लिखने का मन नहीं हो रहा था तो लिखना ही बंद कर दिया था, फिर कुछ मित्रों ने कहा कि यार मैदान छोड़ना ठीक नहीं है। ऐसे में हम वापस मैदान में आ गए हैं, कुछ अच्छा लिखने के लिए। और हमें अपने अच्छा लिखने के एवज में कभी टिप्पणियों की न तो दरकार रही है और न कभी रहेगी। 

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रविवार, अप्रैल 03, 2011

कपड़े उतारना भारतीय संस्कृति नहीं

हम विश्व कप जीत गए। अब मॉडल पूजा पांडे का क्या होगा, जिन्होंने कहा था कि भारत के विश्व कप जीतने पर वे अपने कपड़े उतार देंगी। सोचने वाली बात यह है कि क्या यह हमारी भारतीय संस्कृति है। विदेशी भले बात-बात पर कपड़े उतारे दें, यह उनकी अपनी संस्कृति है। विदेशियों को कपड़ों से परहेज हो सकता है, हम भारतीयों को नहीं। हमें तो लगता है कि पूजा ने ऐसा कहा था तो उसके पीछे उनका देश प्रेम नहीं बल्कि अपना स्वार्थ था कि वह पूरे विश्व में लोकप्रिय होना चाहती थीं। वरना उनके कथन से पहले कौन जानता था कि पूजा पांडे नाम की कोई मॉडल है।
मुंबई में जिस तरह से महेन्द्र सिंह धोनी के जवानों से कमाल किया, वह धमाल देश क्या पूरा विश्व याद रखेगा। भारत की जीत पर देश के 121 करोड़वासियों को नाज है। देश में कल जैसी दीवाली मनी वैसी दीवाली तो दीवाली के समय भी नहीं मनती है। बहरहाल हम बात करें उन पूजा पांडे ेकी जिन्होंने अचानक कह दिया था कि भारत अगर विश्व कप जीतेगा तो वह अपने पूरे कपड़े उतार देंगी। उनके इस कथन के पीछे की मानसिकता को देखा जाए तो उसके पीछे कहीं भी देश प्रेम जैसी बात नहीं है। अगर वह वास्तव में भारतीय नारी होतीं तो कभी ऐसी बात नहीं कहतीं, लेकिन लगता है कि पूजा के रंगों में भारतीय संस्कृति कहीं नहीं है। हमारा जहां तक सोचना है कि पूजा के इस कथन के पीछे महज लोकप्रियता पाने का हथकंड़ा है। सोचिए इससे पहले कौन जानता था कि पूजा पांडे नाम की कोई मॉडल है। अपने देश में न जाने पूजा जैसी कितनी मॉडल होंगी। कुछ नामी मॉडलों को छोड़ दिया जाए तो बाकी को कोई पहचानता भी नहीं है। ऐसे में विश्व कप से ज्यादा अच्छा मौका लोकप्रिय होने का और क्या हो सकता है।
एक स्थान पर कल टीवी पर मैच देखकर कुछ लोग पूजा पांडे की बात कर रहे थे एक बंदे ने पूजा के कथन पर एक टिप्पणी की कि यार कपड़े उतारने की हिम्मत रखने वाले इस तरह से बयान देकर कपड़े नहीं उतारते हैं। वास्तव में क्रिकेट में कई ऐसे अवसर आए हैं जब दीवाने दर्शक कपड़े उतार कर मैदान में दौड़ गए हैं। लेकिन इसके पहले किसी ने कम से कम भारत में ऐसा कभी नहीं कहा कि भारत की इस जीत पर वह ऐसा कर देगा। इससे साफ है कि पूजा ने जो किया वह महज सस्ती लोकप्रियता के लिए कहा। पूजा के खिलाफ किसी ने एक मुकदमा भी कर दिया है। यह काम जिन्होंने भी किया है ठीक किया है, भारतीय संस्कृति के साथ ऐसा खिलवाड़ करने की छूट किसी को नहीं मिलनी चाहिए। अगर ऐसा होने लगा तो हर दूसरे मैच में पश्चिम की तरह भारतीय लड़कियां भी कपड़े उतारने लगेंगी। वैसे भी पश्चिमी संस्कृति ने भारतीय युवा पीढ़ी को क्या कम अपनी संस्कृति से विमुख किया है जो अब एक और पश्चिमी संस्कृति को अपने देश में स्थान बनाने दें कि मैच जीतने पर लड़कियों कपड़े उतारने पर उतावली हो जाए और खेल जगत में नंगा नाचा होने लगे।

चलते-चलते पूनम पांडे के खिलाफ किए गए मुकदमें की कुछ बातें भी पढ़ ली जाए....

भारत के वर्ल्ड कप जीतने पर न्यूड होने का दावा करने वाली किंगफिशर मॉडल पूनम पांडे के खिलाफ यूपी के बलरामपुर देहात पुलिस स्टेशन में अश्लीलता फैलाने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई है। दूसरी ओर, भोपाल की कोर्ट में भी पूनम के खिलाफ याचिका दायर की गई है। वकील ने पूनम के खिलाफ यह कहते हुए याचिका दायर की कि पूनम ने ब्राह्मणों का नाम खराब किया है। वहीं, बलरामपुर जिले के सीजेएम सुभाष चंद्रा ने मीडिया में आई खबरों के आधार पर स्वत: संज्ञान लेते हुए एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था। इसके बाद पुलिस स्टेशन में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। वकील आर. के. पांडे ने पूनम के साथ-साथ लिकर किंग विजय माल्या का भी याचिका में नाम लिया है। गौरतलब है कि पूनम पांडे ने किंगफिशर के हॉट कैलेंडर में पोज़ किया है। भोपाल के चीफ जुडिशल मजिस्ट्रेट की कोर्ट में यह याचिका दायर की गई है। माल्या पर आरोप लगाया गया है कि वह पूनम को न्यूड पोज़ देने के लिए बढ़ावा दे रहे हैं। वकील ने बताया कि अगर पूनम न्यूड नहीं भी होतीं तो भी उन्हें सजा दी जानी चाहिए क्योंकि उन्होंने ऐसी अश्लील बात करके ब्राह्मणों का नाम खराब किया है। इस याचिका पर 5 अप्रैल को सुनवाई होगी।

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शनिवार, अप्रैल 02, 2011

कलमकार ही सबसे ज्यादा शोषित

पत्रकारों का भी है बुरा हाल
कुछ को छोड़कर बाकी हैं कंगाल

हम यह बात आज अचानक इसलिए कह रहे हैं क्योंकि यह कटु सत्य है कि कम से कम अपने छत्तीसगढ़ में काम करने वाले पत्रकारों का हाल बहुत बुरा है। बुरा हाल इसलिए कि यहां पर पत्रकारों का वेतन इतना नहीं है कि वे अपना घर सही तरीके से चला सके। वास्तव में यह दुखद बात है कि दूसरों के शोषण के खिलाफ लिखने वाली कलम खुद अपने खिलाफ हो रहे शोषण के खिलाफ लिखना तो दूर कुछ बोल भी नहीं पाती है।
हमारे प्रेस की नियमित बैठक में एक पत्रकार साथी से कहा गया कि वे महंगाई पर खबर बनाए कि कैसे आज मध्यम वर्ग में दस हजार की कमाई करने वालों के लिए घर चलाना मुश्किल है। उनसे कहा गया कि वे ऐसे दो चार लोगों से बात कर लें जिनकी आय कम है। हमने यूं ही मजाक में अपने पत्रकार साथी से कह दिया कि कुछ पत्रकारों से ही बात करें जिनको चार से पांच हजार वेतन मिलता है, उनसे भला ज्यादा अच्छी तरह से कौन बता सकता है घर चलाना कितना मुश्किल होता है।
हमने एक तो यह बात मजाक में कही थी, दूसरे हम यह अच्छी तरह से जानते हैं कि कभी किसी पत्रकार की व्यथा कोई अखबार प्रकाशित करने वाला नहीं है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज के महंगाई के दौर में दस हजार तक कमाई करने वालों के लिए घर चलाना वाकई परेशानी का सबब है। इसमें भी संदेह नहीं है कि लोगों को कर्ज लेकर घर चलाने के साथ अपने बच्चों की पढ़ाई करवानी पड़ रही है। ऐसे लोगों में अपने पत्रकार साथी भी शामिल हैं। वास्तव में यह कितनी बड़ी विडंबना है कि दूसरों के हक के लिए लड़ने और दूसरों के शोषण के खिलाफ लिखने वालों के हक में न तो कोई बोलने वाला है और न ही कोई लिखने वाला  है। अपने राज्य में कुछ अखबारों को छोड़ दिया जाए तो बाकी अखबारों में काम करने वाले पत्रकारों की स्थिति खराब नहीं बहुत ज्यादा खराब है। आज स्थिति यह है कि कई अखबारों में तीन हजार से भी कम वेतन में  पत्रकार काम कर रहे हैं। ऐसे में सोचा जा सकता है कि कैसे वे अपना घर चलाते होंगे। इसी के साथ एक चिंतन का विषय यह भी है कि छोटे अखबार ऐसे-ऐसे लोगों से पत्रकारिता का काम ले रहे हैं जिनका पत्रकारिता से दूर दूर तक नाता नहीं रहा है। अब ऐसे में यह बात सोचने वाली है कि आखिर पत्रकारिता का स्तर ऐसे में क्या हो सकता है। लिखने को बहुत सी बातें हैं लेकिन एक बार में लिखना संभव नहीं है। कोशिश करेंगे कि इस कड़ी को लगातार आगे बढ़ाया जाए। फिलहाल इतना ही।  


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शुक्रवार, अप्रैल 01, 2011

चार दिन के अभ्यास में ही तोड़ दिया गिनीज रिकॉर्ड

जब गिनीज रिकॉर्ड वालों ने मुझसे कहा कि मैं वायर रोप का प्रयोग रिकॉर्ड के लिए नहीं कर सकता हूं तो मैं सोच में पड़ गया। लेकिन मैंने हिम्मत न हारते हुए तुरंत उनके नियमों के मुताबिक रोप तैयार की और चार दिनों तक कड़ा अभ्यास करके अंतत: रिकॉर्ड अपने नाम करने में सफल रहा।
ये बातें जंप रोप में गिनीज रिकॉर्ड बनाने वाले रायपुर के अंतरराष्ट्रीय जंप रोप खिलाड़ी राजदीप सिंह हरगोत्रा ने कहीं। उन्होंने बताया कि जब वे मुंबई पहुंचे तो उनको रिकॉर्ड बनाने के चार दिन पहले गिनीज बुक रिकॉर्ड से आए अधिकारी क्रिस्टेन टफल ने कहा कि मैं रिकॉर्ड के लिए वायर वाली रोप का प्रयोग नहीं कर सकता। राजदीप ने बताया कि इसी रोप से ही 30 सेकेंड में ज्यादा स्टेप करने संभव होते हैं। ऐसे में मैं सोच में पड़ गया कि अगर मुझे प्लास्टिक वाली रोप से काम चलाना पड़ा तो परेशानी हो जाएगी। ऐसे में मैंने वायर रोप के हैंडल निकाल कर उनको प्लास्टिक रोप में फिट किया और उससे लगातार चार दिनों तक अभ्यास करके मैंने रिकॉर्ड को पार करने की मेहनत की। इसके बाद जब रिकॉर्ड बनाने की बारी आई तो मैंने 159 स्टेप करके रिकॉर्ड बना दिया और जापान के मेगुमी सुजुकी का रिकॉर्ड तोड़ दिया।
राजदीप ने पूछने पर बताया कि उनके मन में बचपन से ही जंप रोप में गिनीज रिकॉर्ड बनाने की चाह थी। राजदीप बताते हैं कि उनको जापान के मेगुमी सुजुकी के रिकॉर्ड की जानकारी 2008 से थी और वे इस रिकॉर्ड को तोड़ना चाहते थे। 
प्रीति जिंटा ने गले लगाया
राजदीप ने बताया कि जब उन्होंने कलर्स चैनल में गिनीज रिकॉर्ड बना लिया तो कार्यक्रम में आई फिल्म स्टार प्रीति जिंटा ने उनको गले लगा लिया। राजदीप ने बताया कि उनको रिकॉर्ड बनाने के बाद स्वर्ण पदक दिया गया और यह पदक उनको उनके पिता बलवीर सिंह हरगोत्रा ने दिलवाया गया। कार्यक्रम में उनकी माता इन्द्रजीत कौर रिकॉर्ड बनाने के समय वाहे गुरु.. वाहे गुरु कहती रही।

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