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सोमवार, अगस्त 15, 2011

मंदिरों में फोटो खींचना क्यों मना है?

हमने अक्सर कई बड़े-बड़े मंदिरों में देखा है कि वहां पर किसी को फोटो खींचने की इजाजत नहीं दी जाती है। कोई फोटो खींचने की कोशिश करता है तो वहां के पंडित उनको छोड़ते नहीं हंै। सोचने वाली बात है कि आखिर धार्मिक स्थलों पर किसी को फोटो खींचने से क्यों मना किया जाता है। इसका हमारे पास तो यही जवाब है कि ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि मंदिर के बाहर बैठा वह दुकानदार फोटो बेच सके जिसके पास मंदिर के देवी-देवता के फोटो रहते हैं। जब मंदिर में फोटो खींचना ही मना है तो फिर उस दुकानदार के पास फोटो कहां से जाते हैं। अगर मना है तो सबके लिए मना है। अपने देश के सभी धार्मिक स्थल पूरी तरह से व्यापारिक स्थल बन गए हैं कहा जाए तो गलत नहीं होगा।

मंदिरों का यह प्रसंग आज अचानक इसलिए निकल पड़ा है क्योंकि कल ही हम लोग अपने शहर के एक मंदिर में गए थे। महादेव घाट के इस मंदिर में कुछ फोटो हमें अच्छे लगे तो हमने फोटो खींचने प्रारंभ किए। ऐसे में वहां पर एक बंदे ने कहा कि भाई साहब यहां पर फोटो खींचना मना है। हमने पूछा क्यों तो उसने कहा कि बस मना है। अगर यहां की फोटो चाहिए तो सामने दुकान पर मिल जाएगी। यही कहानी अपने देश के ज्यादातर मंदिरों की है। छोटे मंदिरों में तो एक बार आप किसी भी तरह से फोटो खींचने में सफल हो जाएंगे, पर मजाल है कि किसी बड़े मंदिर में आप फोटो खींचने की हिम्मत कर सके। अगर आपने ऐसा करने का साहस किया तो उस मंदिर के पुजारी के गुंड़े आपका क्या हाल करेंगे यह तो आप सोच भी नहीं सकते हैं।
वास्तव में यह बहुत गंभीर मुद्दा है कि आखिर अपने देश में मंदिरों में फोटो खींचने पर प्रतिबंध क्यों है। इसके लिए क्या कोई कानून नहीं है? क्या कोई ऐसा नहीं है अपने देश में जो इस मामले में अदालत की शरण में जाए। लोग तो बात-बात पर जनहित याचिका लगाने की बात करते हैं, तो क्यों कर आज तक किसी ने इस मामले में ऐसी पहल नहीं की है। हमें तो लगता है कि इस मामले में भी कोर्ट तक जाने की जरूरत है ताकि कम से कम किसी भी मंदिर के देवी-देवताओं की फोटो खींचने से कोई वंचित नहीं रह सके।
यहां पर सोचने वाली यह भी है कि जिस मंदिर में फोटो खींचने की मनाही की जाती है, अगर उसी मंदिर में किसी फिल्म की शूटिंग होनी हो तो उस मंदिर में इसकी इजाजत दे दी जाती है, तब कोई नियम कानून क्यों नहीं होता है। अरे फिल्म की तो बात ही छोड़ दें अगर कोई छोटी-मोटी वीडियो फिल्म ही बनाने वाले ही वहां पहुंच जाते हैं तो उनको कोई मना नहीं करता है। फिर ये कैसा मनमर्जी का कानून है कि किसी को फोटो खींचने से रोको, किसी को इजाजत दे दो।

अब सवाल यह है कि आखिर मंदिरों में फोटो खींचने से रोका क्यों जाता है? तो इसका सीधा सा जवाब यही है कि मंदिर के बाहर मंदिर के कर्ताधर्ताओं के लोग दुकान लगाकर बैठते हैं जिनके पास मंदिर के फोटो रहते हैं। इन्हीं फोटो को वे लोग भक्तों को बेचकर पैसे बनाने का काम करते हैं। फोटो खींचने से रोकने के पीछे का सच यही है कि फोटो से पैसा कमाने का काम किया जाता है। इस अवैधानिक काम पर रोक लगनी ही चाहिए और मंदिरों में भक्तों को फोटो खींचने की इजाजत मिलनी चाहिए। कई मंदिरों में लिखे भी रहता है कि यहां फोटो खींचना मना है, ऐेसा लिखने का अधिकार आखिर मंदिर में कौन देता है, यह भी सोचने वाली बात है।

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