राजनीति के साथ हर विषय पर लेख पढने को मिलेंगे....

मंगलवार, मई 31, 2011

गिनीज रिकॉर्ड के बाद लिम्का रिकॉर्ड भी तोड़ा

गिनीज रिकॉर्ड को ब्रेक करने के बाद लिम्का रिकॉर्ड को भी बौना करने वाले राजदीप सिंह हरगोत्रा की नजरें अब विश्व कप के पदक पर हैं। राजदीप कहते हैं कि वे पदक जीतने के लिए रोज छह घंटे तक अभ्यास कर रहे हैं। वे पदक के रिकॉर्ड के करीब पहुंचते जा रहे हैं, उनको उम्मीद है कि वे जब खेलने जाएंगे तो उनका रिकॉर्ड पदक जीतने के लायक जरूर हो जाएगा।
राजदीप सिंह ने रायपुर में रविवार को पंजाब के रंजीत पाल का लिम्का रिकॉर्ड तोड़ा है। रंजीत पाल के नाम एक मिनट में 262 स्टेप का रिकॉर्ड था, राजदीप ने एक मिनट में 289 स्टेप करके नया रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है। उनके रिकार्ड को लिम्का रिकॉर्ड के मुख्यालय दिल्ली भेज दिया गया है, वहां से जल्द ही उनको नए रिकॉर्डधारी होने का प्रमाणपत्र मिल जाएंगे। इस रिकॉर्ड के बारे में राजदीप कहते हैं कि इस रिकॉर्ड पर काफी पहले से उनकी नजरें थीं, लेकिन वे पहले गिनीज रिकॉर्ड बनाना चाहते थे, ऐसे में पहले उन्होंने उस पर ध्यान लगाया और जापान के मैगुमी सुजुकी के रिकॉर्ड को तोड़ने के बाद उन्होंने पंजाब के रंजीत पाल का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया।
अब आगे क्या के सवाल पर राजदीप कहते हैं कि अब तो विश्व कप में पदक जीतने की सबसे बड़ी तमन्ना है। वे बताते हैं कि एक जुलाई से वाशिंगटन में विश्व कप जंप रोप का आयोजन होना है और इस स्पर्धा के लिए वे अकेले खिलाड़ी हैं जिनका चयन भारत से हुआ है। वे बताते हैं कि वे वहां पर मास्टर इवेंट में भाग लेंगे। इसमें ट्रिपल अंडर, डबल अंडर, फ्रीस्टाइल के साथ वे तीन मिनट इंडोरेंस में भी भाग लेंगे। पूछने पर वे बताते हैं कि उनको ट्रिपल अंडर में पदक की उम्मीद है। इसके लिए ही वे रोज छह घंटे तक अभ्यास कर रहे हैं। राजदीप बताते हैं कि ट्रिपल अंडर में 472 का विश्व रिकॉर्ड है। वे कहते हैं कि वे अभी 300 से ज्यादा जंप करने में सफल हो गए हैं। अभी एक माह का समय है और राजदीप को भरोसा है कि वे पदक तक जंप लगाने में सफल हो जाएंगे। वे बताते हैं कि इस वर्ग में कोई समय सीमा नहीं होती है, बस आपको जंप करते जाना है लगातार, आप चूके तो गए। ट्रिपल अंडर का मतलब समझाते हुए वे बताते हैं कि इसमें एक जंप में रस्सी तीन बार पैरों के नीचे से पार करनी होती है। यह काफी कठिन वर्ग है। इस वर्ग को चुनने के कारण के बारे में राजदीप कहते हैं कि कुछ कठिन काम करके सफलता पाने का मजा अलग ही होता है।
राजदीप ने बताया कि वे विश्व कप के बाद दक्षिण कोरिया में होने वाले एशिया कप में भी भाग लेंगे। यह स्पर्धा 21 से 27 जुलाई तक होगी। इसमें भारत के 18 खिलाड़ी खेलने जाएंगे जिनमें राजदीप का भी नाम है। इसमें वे टीम वर्ग में भाग लेंगे।

Read more...

शनिवार, मई 28, 2011

डियो लगाने से लड़की नहीं पटती बेवकूफ

एक खबर पर कल नजरें पड़ीं, सात साल तक डियो लगाने  के बाद भी लड़की नहीं पटी, तो कंपनी पर दिल्ली के एक युवक ने दावा कर दिया। अब ऐसे युवकों को कौन समझाए कि डियो लगाने से भला कभी लड़की पटती है। विज्ञापन और फिल्मों के पीछे भागने वाले या तो दीवाने होते हैं या फिर बेवकूफ। ऐसे बेवकूफों की वजह से तो डियो जैसी कंपनियों की चांदी हो रही है।
वास्तव में अपने देश की युवा पीढ़ी पर तरस आता है कि वह आखिर जा कहा रही हैं। कल की एक खबर इस बात का बहुत बड़ा उदाहरण है कि वास्तव में अपने युवा वर्ग की सोच कितनी बेवकूफाना है। अब एक कंपनी डियो अपने विज्ञापन में यह दिखाती है कि डियो का एएक्सई का प्रयोग करने वालों के पीछे लड़कियां भागती हैं। अब इस विज्ञापन से प्रेरित होकर दिल्ली के एक युवक ने सात साल तक इसका इस्तेमाल किया, लेकिन उसके पास कोई लड़की नहीं फटकी तो उन्होंने कंपनी पर दावा कर दिया। अब सोचने वाली बात यह है कि हर कोई अगर विज्ञापनों को सही मानकर उसके पीछे भागने लगेगा तो इसमें किसी कंपनी की क्या गलती है। हमारा मकसद किसी भी तरह से किसी कंपनी का पक्ष लेना का नहीं है। लेकिन आज की युवा पीढ़ी जिस तरह से हरकतें कर रही हैं उससे यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा रहा है कि हमारी यह पीढ़ी जिसे देश का भविष्य माना जाता है, आखिर किस दिशा में जा रही है। न जाने टीवी पर कैसे-कैसे विज्ञापन दिखाए जाते हैं। अगर हर युवा विज्ञापनों का अनुशरण करने लगेगा तो रोज कई घटनाएं हो जाएंगी। अब एक विज्ञापन थम्सअप की बात करें तो इसकी एक बोतल के लिए अपने अक्षय कुमार खाई में छलांग लगा देते हैं। अब कोई युवक खाई में छलांग लगाकर अपनी जान गंवा बैठे या फिर टांग तुड़वा बैठे तो क्या इसके लिए वह पेय कंपनी जिम्मेदार है। एक गोल्ड ड्रिंग्स के विज्ञापन में चीते के मुंह से एक मॉडल पेय का केन निकालते हैं। अब कोई ऐसा करने लगे तो इसे मुर्खता के अलावा क्या कहा जा सकता है। पहली बात को कोई चीता ऐसा पेय पीता नहीं है। अगर वह पी जाए कोई पहलवानी करने के लिए उसके मुंह में हाथ डालने का काम करेगा तो क्या चीता उसका छोड़ देगा।
हमारे कहने का मतलब यह है कि किसी भी विज्ञापन को देखकर उसकी तरफ भागने की गलती कभी नहीं करनी चाहिए। विज्ञापन तो होते ही है लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए और अपने देश के लोग आसानी से बेवकूफ बन जाते हैं। एक कहावत है कि जब तक बेवकूफ जिंदा है अक्लमंद भूखे नहीं मर सकते हैं। अब इसके आगे क्या कहा जा सकता है।

Read more...

शुक्रवार, मई 27, 2011

राजदीप तोडेंगे अब लिम्का रिकॉर्ड

राजधानी के जंप रोप खिलाड़ी राजदीप सिंह हरगोत्रा अब लिम्का  विश्व रिकॉर्ड तोड़ने की तैयारी में हैं। वे 29 मई को रायपुर में यह रिकॉर्ड तोड़ेंगे। इसके पहले वे गिनीज रिकॉर्ड तोड़ चुके हैं।
राजदीप सिंह ने बताया कि वे इस समय दिन-रात मेहनत करके भारत के ही रंजीत पाल का लिम्का विश्व रिकॉर्ड तोड़ने की तैयारी में जुटे हैं। रंजीत पाल के रिकॉर्ड के बारे में उन्होंने बताया कि रंजीत के नाम एक मिनट में 262 स्टेप का रिकॉर्ड है। इस रिकॉर्ड को राजदीप 275 स्टेप के रिकॉर्ड के साथ तोड़ेंगे। राजदीप बताते हैं कि उनकी नजर में रंजीत का रिकॉर्ड पहले से ही था, पर जापान के मेगुमी सुजुकी का गिनीज रिकॉर्ड तोड़ने के लिए वे इस तरफ ध्यान नहीं दे पाएं थे। अब जबकि राजदीप सुजुकी का रिकॉर्ड तोड़ चुके हैं तो अब उनकी नजरें रंजीत के लिम्का रिकॉर्ड पर हैं। वे रंजीत का रिकॉर्ड 29 मई की शाम सात बजे शहीद स्मारक भवन में होने वाले एक कार्यक्रम में तोड़ेंगे। इस रिकॉर्ड में राजदीप के साथ सहयोगी के रूप में अंजली साहू और प्रवीण शर्मा रहेंगे।

Read more...

गुरुवार, मई 26, 2011

पैसा ही अब सबका ईमान है

जमाने में कहा वफा है
हर कोई लगता बेवफा है।।
हमने हसीनों को भी देखा है
उनके चेहरे में भी फरेब छिपा है।।
बेवफाई उनकी अदा है
धोखा उनका काम है।।
आशिकी का यही इनाम
तभी तो प्यार बदनाम है।।
आज के प्रेमी नाकाम
सारे झूठे इसांन हैं।।
प्यार का घट गया मान है
पैसा ही अब सबका ईमान है।।
पैसे की खातिर करते हैं सब प्यार
पैसों की खातिर बदल लेते हैं यार।।

Read more...

बुधवार, मई 25, 2011

साई सेंटर में फुटबॉलरों का दबदबा

राजधानी रायपुर में 6 जून से प्रारंभ होने वाले साई सेंटर के लिए खिलाड़ियों की संभावित सूची घोषित की गई। इस सूची में 113 खिलाड़ियों को बोर्डिंग और डे-बोर्डिंग के लिए चुना गया है। खिलाड़ियों का अंतिम चयन इसी सूची से मूल्यांकन शिविर के बाद किया जाएगा। सबसे ज्यादा खिलाड़ी फुटबॉल के चुने गए हैं। बोर्डिंग के लिए 22 और डे बोर्डिंग के लिए 10 खिलाड़ी चुने गए हैं। चयन ट्रायल में फुटबॉल में ही सबसे करीब 150 खिलाड़ी आए थे।
सेंटर के प्र्रभारी शहनवाज खान ने बताया कि पिछले माह 10 से 12 अप्रैल तक यहां लिए गए चयन ट्रायल में छत्तीसगढ़ के साथ और भी कुछ राज्यों के खिलाड़ी आए थे। उनकी योग्यता के हिसाब के खिलाड़ियों का चयन सात खेलों के लिए किया गया है। फिलहाल पहले चरण में बालक खिलाड़ियों की सूची ही जारी की गई है। बालिका खिलाड़ियों की सूची बाद में जारी की जाएगी।
सूची इस प्रकार है- एथलेटिक्स बोर्डिंग मनोज कुमार भिलाई, शैलेश कुमार फरूखाबाद (उप्र), अजय कुमार इलाहाबाद। डे-बोर्डिंग में गणेश राम रायपुर। 
वालीबॉल सुरेश चौधरी नागौर (राजस्थान), सुनील कुमार, विकास कुमार, मनप्रीत सिंह झूनझुनू (राजस्थान), योगेश कुमार पटेल सरायपाली, पुरन कुमार वर्मा भिलाई, पी. सिंह राना बालाघाट, अभिनव तिवारी बरेली, शिवराम तिवारी भिलाई, शैलेन्द्र सिंह नायक महासमुन्द, गौरव वर्मा तिल्दा। डे-बोर्डिंग धीरेन्द्र सिंह कुर्रे प्रतीक कुमार मसीह, अक्षय शर्मा, अयुष्मान बाजपेयी, देवेन्द्र साहू, अतुल यादव, क्रिशलय मिश्रा, करण सिंह, रजक कुमार पटेल, शैफुद्दीन (सभी रायपुर)।
भारोत्तोतलन बोर्डिंग- गौकरण सोनकर, जगदीश विश्वकर्मा, ओमप्रकाश यदु, सचिव महोबिया, अरविंद कुमार देवांगन राजनांदगांव, अर्जुन दास सारंग, भारत साहू, मधुसुदन जंघेल राहुल जंघेल रायपुर, आकाश पाटिल दल्लीराजहरा।
फुटबॉल बोर्डिंग- देवाशीष तिग्गा, राहुल सिंह ठाकुर, दीपक जाल, रायपुर, नवीन नायक, राजेश कुमार, जयप्रकाश, प्रतीम कुमार यादव, भारत कुमार राजवारे, दीपक नायक, पी. हरीश. पप्पू, मुबारक हुसैन, चन्द्रप्रकाश, मो. वसीम अकरम, अनुराग शर्मा, दिनेश सिंह ठाकुर कोरिया, सुमेश लामा, मो. जेशन हुसैन बिलासपुर, प्रशांत सिंह उके कोंडागांव, करण नेताम कबीरधाम, सरफराज उदीन दुर्ग। डे-बोर्डिंग राजदीप, मुकुल बघेल, अबीर लाल, सतीश दीप, सुनील तांडे, ध्यानचंद बंजारे, सागर दिनरहा, कुलदीप टोपो, शिव भजन टोपो, राजेश सिंह (सभी रायपुर)।
जूडो बोर्डिंग- देवाशीष तिवारी रायपुर, लोकेश्वर देवांगन लोकेश निर्मलकर राहुल, साहू ओमप्रकाश मिश्रा, निखिल कुमार भिलाई, श्रेयांस एस चन्द्र दल्लीराजहरा, आकाश त्रिपाठी सरगुजा। डे-बोर्डिंग एल, अजय राय, सूरज वर्मा, अजय तिवारी, जय कुमार टंडन, मनीष कुमार, शंकर लाल निषाद, अंतरा सारथी, पूनम साहू, दिव्या रावत, रौशनी ठाकुर।
बैडमिंटन डे-बोर्डिंग सिद्धार्थ प्रताप सिंह, अमोल करकरे, यश योगी, वैभव तांबे, प्रखर दीक्षित, प्रखर त्रिवेदी, रश्मि अलोनी।
कैनाइंग-कयाकिंग डे बोर्डिंग- हेमलता सार्वा, शारदा, संतोषी दलाई, शिवांगी ठाकुर, अशोक कुमार साहू, दिनेश कुमार साहू, सोनू कुमार साहू, धनेश्वर फरिकार, दीपक कुमार सेन, हेमंत सार्वा, महेन्द्र कुमार साहू, कमल नारायण सेन, गणेश यदु, केशव यादव, धनेश्वर यादव। 

Read more...

मंगलवार, मई 24, 2011

पेट्रोल से टैक्स क्यों नहीं हटाती सरकार

भारत में सरकार ने पेट्रोल की कीमतों में जो इजाफा किया है उससे देश का हर नागरिक परेशानी के साथ भारी आक्रोश में है। हर किसी का एक ही सवाल है कि भारत में पेट्रोल की कीमत इतनी ज्यादा क्यो है? देखा जाए तो वास्तव में भारत में पेट्रोल की कीमत उतनी नहीं है। जितनी पेट्रोल की वास्तविक कीमत है, उससे ज्यादा तो टैक्स के रूप में ले लिए जाते हैं। अपने छत्तीसगढ़ में ही पेट्रोल पर 25 प्रतिशत वैट टैक्स लगता है। अगर इसी टैक्स को प्रदेश सरकार कम कर दें तो आसानी से आम जनों को दस रुपए की राहत मिल सकती है, लेकिन क्यों कर प्रदेश की भाजपा सरकार ऐसा करेगी। ऐसा करने से उसे मौका कैसे मिलेगा केन्द्र सरकार पर निशाने लगाने का। सोचने वाली बात तो यह है कि अपने रा’य में विमानों में लगने वाले पेट्रोल पर महज चार प्रतिशत टैक्स है।

देश में इस समय पेट्रोल के दाम सातवें आसमान पर हैं। अभी लोग इस सदमे से ऊबर भी नहीं पाए हैं कि सरकार डीजल और घरेलू गैस के दाम बढ़ाने वाली है। बस कुछ दिनों से बाद एक और गाज गिरने वाली है आम जनता पर। अब जनता तो बेचारी निरीह है, वह लाख चीखती-चिलाती रहेगी किसी पर असर होने वाला नहीं है। अपने देश के राजनैतिक दल तो बस एक-दूसरे पर आरोप लगाने का काम ही करते रहेंगे। राज्य सरकारें केन्द्र सरकार को दोषी मान रही हैं तो केन्द्र सरकार कहती हैं राज्य सरकारें अपने यहां वैट टैक्स कम करके आम जनों को राहत दें सकती हैं, लेकिन वो ऐसा नहीं कर रही हैं। केन्द्र सरकार तो तेल कंपनियों पर सारा दोष मढ़ देती हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत बढ़ने से ऐसा किया गया है। माना की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ने से ऐसा किया गया, लेकिन कीमत बढ़ाने के कुछ दिनों बाद जब कच्चे तेल की कीमतों में कम हो गयी तो फिर कीमत कम क्यों कर नहीं की गयी।

किसी को आम जनों से मतलब नहीं है। सोचने वाली बात यह है कि अपने छत्तीसगढ़ में विमान के उपयोग में आने वाले पेट्रोल पर महज चार प्रतिशत वैट टैक्स है और आम जनों के उपयोग वाले पेट्रोल पर 25 प्रतिशत टैक्स है। अब यह तो सरकार को सोचना चाहिए कि आम जनों के पेट्रोल पर कम टैक्स जरूरी है या फिर अमीरों के काम आने वाले विमानों में उपयोग होने वाले पेट्रोल पर। इसमें संदेह नहीं है कि वास्तव में सरकारें गरीबों के लिए नहीं बल्कि हमेशा अमीरों के हितों को ध्यान में रखते हुए फैसले लेती हैं। सरकार को तेल कंपनियों से फायदा होगा, आम जनों से क्या मिलना है। अरे पांच साल में एक बार जब वोट मांगने की बारी आएगी तो फिर किसी ने किसी बहाने जनता को बेवकूफ बना दिया जाएगा, अपनी जनता पैदा ही हुयी है बेवकूफ बनने के लिए। अब बेवकूफ को ही तो बेवकूफ बनाया जाता है।

Read more...

सोमवार, मई 23, 2011

प्रशिक्षकों का टोटा होगा छोटा

प्रदेश में खेल प्रशिक्षकों का टोटा छोटा करने की दिशा में खेल विभाग जुट गया है। विभाग ने थोक में प्रशिक्षक तैयार करने के लिए खेलों से जुड़े 65 लोगों को भोपाल में एनआईएस प्रमाणपत्र कोर्स करने भेजा है। इधर विभाग में चार नए प्रशिक्षक भी नियुक्ति किए गए हैं। यह सब छत्तीसगढ़ में होने वाले 37वें राष्ट्रीय खेलों को देखते हुए किया गया है।
प्रदेश में प्रशिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए खेल विभाग अब गंभीर हो गया है। खेल संचालक जीपी सिंह की पहल पर आदिम जाति कल्याण विभाग के खेल शिक्षकों के साथ खेल संघों से जुड़े खिलाड़ियों को भोपाल में 17 मई से प्रारंभ हुए पांच खेलों के छह सप्ताह के प्रमाणपत्र कोर्स के लिए भेजा गया है। इन सभी का खर्च खेल विभाग उठा रहा है। इधर विभाग ने पहले तीरंदाजी के एनआईएस कोच टेकलाल कुर्रे को उत्कृष्ट खिलाड़ी होने पर नियुक्त किया, फिर मई में तीन प्रशिक्षकों हॉकी के राकेश टोपो, रश्मि तिर्की और वालीबॉल के हरगुलशन सिंह को नियुक्ति किया है। अब खेल विभाग में पांच प्रशिक्षक हो गए हैं। विभाग में जो 2002 का सेटअप मंजूर हैं उसमें 8 प्रशिक्षकों के पद हंै। अभी तीन प्रशिक्षकों के पद खाली है। खेल संचालक जीपी कहते हैं कि वित्त विभाग से मंजूरी मिलते हैं ये पद भी भर दिए जाएंगे।
खेल विभाग ने जो नया सेटअप मंजूरी के लिए भेजा है,   उसमें प्रशिक्षकों के 54 पद मांगे हैं। विभाग ने हर जिले के लिए तीन प्रशिक्षक मांगे हैं जिसमें एक वरिष्ठ प्रशिक्षक, एक प्रशिक्षक और एक संविदा प्रशिक्षक शामिल हैं। राज्य में भारतीय खेल प्राधिकरण यानी साई के सात कोच प्रदेश में काम कर रहे हैँ। इनमें से दो रायपुर, दो बिलासपुर और दो राजनांदगांव में और एक कोच जशपुर में हैं।
हर खेल के प्रशिक्षक तैयार करेंगे
खेल संचालक जीपी सिंह बताते हैं कि भोपाल के साई सेंटर में सात खेलों का ही कोर्स होता है, लेकिन हम चाहते हैं कि हर खेल के हमारे पास प्रशिक्षक हों, ऐसे में हमने क्षेत्रीय निदेशक आरके नायडु से बात की है और उनसे जानकारी मांगी है कि अन्य खेलों के कोर्स कहां होते हैं। उन्होंने बताया कि जिन खेलों के कोर्स कोलकाता और पटियाला में होते हैं, वहां भी हम प्रदेश के लोगों को कोर्स करने भेजेंगे। श्री सिंह ने बताया कि पहले कदम पर पायका के 20 खेल जिनमें कबड्डी, खो-खो, एथलेटिक्स, वालीबॉल, फुटबॉल, भारोत्तोलन, कुश्ती, हैंडबॉल, हॉकी, ताइक्वांडो, सायक्लिंग, जूडो, तैराकी, टेबल टेनिसल, बैडमिंटन, बास्केटबॉल, जिम्नास्टिक, मुक्केबाजी और वुशू शामिल हैं, इनके प्रशिक्षक तैयार किए जाएंगे।

Read more...

रविवार, मई 22, 2011

सबसे जुदा हैं हम- हमें सताते हैं सबके गम

इंसानों की बस्ती में भी तंहा हैं हम
वो इसलिए की सबसे जुदा हैं हम
हमें सताते हैं सबके गम
हो जाती हैं हमारी आंखे नम
दुनिया में इतना दर्द देखा है
अपना दर्द बहुत कम लगता है
कहते हैं मर्द को दर्द नहीं होता है
लेकिन हमने ऐसा मर्द नहीं देखा है
जिसके दिल में दर्द न हो
ऐसा दिल भी हमने नहीं देखा है
न जाने क्यों दिल दिया है भगवान ने
हमने तो भगवान को बेदिल ही देखा है
भगवान के पास होता गर दिल
तो दिलों का हाल समझते
न फिर टूटता कोई दिल
और न होती किसी को मुश्किल

Read more...

शनिवार, मई 21, 2011

कराते छोड़ा, तीरंदाजी से नाता जोड़ा

साइंस कॉलेज के मैदान में तीर-कमान संभाले एक, दो नहीं बल्कि तीन-तीन बहनें रोज सुबह-शाम अभ्यास में जुटी हुई हैं। इन बहनों में दो बड़ी बहनें तनिषा और अनिषा यादव कराते की राष्ट्रीय स्पर्धा में न सिर्फ खेल चुकी हैं, बल्कि पदक भी जीते हैं। कराते संघ में विवाद के चलते उनको तीरंदाजी से नाता जोड़ना पड़ा है। अब यादव बहनें तीरंदाजी में ही अपना खेल जीवन बनाने के लिए गंभीर हैं। उनके पिता कराते में ब्लेक बैल्ट हैं।
तीरंदाजी से कुछ माह पहले ही नाता जोड़ने वाली यादव बहनें बताती हैं कि उनके पिता कृष्ण कुमार यादव कराते खिलाड़ी रहे हैं। ऐसे में पिता के कारण तनिषा और अनिषा भी कराते से जुड़ी गर्इं। कराते में जुड़ने के बाद इन बहनों ने राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलने में सफलता ही नहीं पाई बल्कि पदक भी जीते। बड़ी बहन तनिषा बताती हैं कि सबसे पहले दोनों बहनें 2007 में जयपुर में राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलीं। यहां पदक नहीं मिला, लेकिन अगले  साल 2008 में भुवनेश्वर की राष्ट्रीय स्पर्धा में तनिषा ने कुमिते में स्वर्ण और काता में कांस्य पदक जीता। अगले साल 2009 में कोलकाता में खेली गई राष्ट्रीय स्पर्धा में उन्होंने कुमिते में रजत जीता। 2010 में औरंगाबाद में खेली गई राष्ट्रीय स्पर्धा में तनिषा ने जहां कुमिते में कांस्य जीता, वहीं उनकी बहन अनिषा ने कुमिते में स्वर्ण जीता।
दोनों बहनें कहती हैं कि हम तो कराते में बहुत आगे जाने का सपना संजोय बैठीं थी, लेकिन 2010 के बाद संघ में विवाद के कारण खेलने का मौका ही नहीं मिल रहा है। ऐसे में हमने पहले कराते छोड़ ताइक्वांडो से नाता जोड़ा और इसमें भी पिछले साल राष्ट्रीय स्कूली स्पर्धा में खेलीं और कांस्य पदक जीता लेकिन इस खेल में प्रशिक्षक की कमी के कारण हमने राज्य खेल महोत्सव के समय तीरंदाजी से नाता जोड़ा और राज्य महोत्सव में 30 से 50 मीटर वर्ग में कांस्य पदक जीता। पदक जीतने का बाद अब हमने इसी खेल में आगे जाने का फैसला किया है। जब हम लोगों को मालूम हुआ कि साइंस कॉलेज में तीरंदाजी का नियमित प्रशिक्षण प्रारंभ किया है तो हम पहले दिन से यहां आकर नियमित अभ्यास कर रही हैं। इन्होंने बताया कि इनके साथ उनकी छोटी बहन नमिषा यादव भी आ रही हैं। नमिषा अभी दूसरी कक्षा में है और वह भी तीरंदाजी ही खेलना चाहती हैं।

Read more...

शुक्रवार, मई 20, 2011

गांवों में दस्तक देकर तलाशेंगे प्रतिभाएं

प्रदेश के खेल विभाग ने अब गांव-गांव में दस्तक देकर खेल की प्रतिभाओं को तलाश कर तराशने की योजना बनाई है। इस योजना में स्कूल स्तर के साथ विकासखंड और जिले के बाद राज्य स्तर पर प्रतिभाओं को परखने के बाद ही चुना जाएगा। चुनी गई सभी प्रतिभाओं को उनकी रुचि के मुताबिक खेलों में प्रशिक्षण दिलाने का काम सरकार करेगी। इस योजना के पहले चरण के अंत में कम से कम 50 खिलाड़ियों का चयन किया जाएगा। गांवों में खिलाड़ियों को तलाशने का जिम्मा क्रीड़ाश्री को दिया गया है।
खेल संचालक जीपी सिंह ने बताया कि प्रदेश सरकार की खेल नीति में ही ग्रामीण प्रतिभाओं को तराशने की बात है। ऐसे में प्रतिभा खोज योजना के तहत प्रदेश के हर गांव में प्रतिभाएं तलाशने के लिए विस्तृत योजना बनाई गई है। इस योजना के अंत में राज्य स्तर पर चयन किया जाएगा। योजना चार चरणों में होगी। पहले चरण में स्कूल स्तर को रखा गया है, इसके बाद विकासखंड स्तर फिर जिला स्तर और अंत में राज्य स्तर है। इस योजना में  10 से 14 साल के बच्चों को शामिल किया जाएगा। इसके लिए यह जरूरी नहीं है कि बच्चा किसी खेल से जुड़ा हो, लेकिन उसकी खेलों में रुचि होनी चाहिए।
स्कूल स्तर पर प्रतिभाओं के चयन के लिए जिम्मा स्कूलों के प्रधान पाठक को दिया गया है। इसके लिए प्रतिभाओं की लंबाई के साथ उनकी तेजी देखने के लिए 50 मीटर की दौड़ करवाई जाएगी। इसमें 10 से लेकर 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए हर वर्ग में अलग-अलग चयन किया जाएगा। हर वर्ग में बालक और बालिकाओं में पहले तीन स्थानों पर आने वालों का चयन होगा। विकासखंड स्तर पर हर वर्ग में 5-5 खिलाड़ियों का चयन किया जाएगा। यहां भी बच्चों की लंबाई के साथ दौड़ में उनकी तेजी देखी जाएगी। विकासखंड स्तर पर चयन का जिम्मा विकासखंड अधिकारियों को दिया गया है। इस स्तर पर ही क्रीड़ाश्री की मदद ली जा रही है।
स्कूल स्तर और विकासखंड स्तर से आने वाले खिलाड़ियों की प्रतिभाओं को परखने के लिए जिला स्तर पर आयोजन किया जाएगा। हर जिले में यह जिम्मा जिले के खेल अधिकारियों का होगा। यहां पर भी जहां बच्चों की लंबाई को देखा जाएगा, वहीं 50 मीटर की दौड़ के अतिरिक्त क्रिकेट बॉल को फेंकने की प्रतिस्पर्धा होगी। इन तीनों के अंक जोड़कर ही जिनके अंक ज्यादा होंगे उनका चयन किया जाएगा। यहां पर हर वर्ग से 4-4 प्रतिभागियों का चयन किया जाएगा। ये प्रतिभागी ही राज्य स्तर की चयन स्पर्धा में शामिल हो सकेंगे।
हर जिले से हर वर्ग के जो बच्चे चुनकर आएंगे उनके लिए एक चयन स्पर्धा का आयोजन राजधानी रायपुर में किया जाएगा। पूरे राज्य से कम से कम 400 प्रतिभागी शामिल होंगे। इन प्रतिभागियों में से हर वर्ग में 5-5 खिलाड़ियों का चयन किया जाएगा, यानी कम से कम 50 प्रतियोगियों का अंतिम चयन होगा। यहां पर चयन प्रक्रिया कुछ ज्यादा कठिन होगी। चयन के पहले दिन सबसे पहले लंबार्ई के बाद प्रतियोगियों का सीना देखा जाएगा कि उनका सीना फूलाने पर कितना होता है। इसके बाद लंबी कूद में प्रतियागियों को परखा जाएगा। यहां पर बास्केटबॉल को बैठकर थ्रो करने की प्रतियोगिता होगी। इसके अलावा 800 मीटर की दौड़ होगी। यह दौड़ साधारण जूतों के साथ या फिर नंगे पैर होगी। खड़े होकर कूदने की प्रतियोगिता के साथ क्रिकेट बॉल थ्रो, 30 मीटर की तेज दौड़ के साथ ही 10 मीटर जाना और 10 मीटर वापस आने की दौड़ होगी। इन सब मुकाबलों में जिनके ज्याादा होंगे वही पहले पांच स्थानों पर आने वाले प्रतियोगी चुने जाएंगे। यहां पर प्रतियोगियों के चयन के लिए एक चयन समिति बनाई जाएगी। किसी भी स्तर पर शामिल होने वाले प्रतियोगियों के परिजनों से यह लिखवाया जाएगा कि उनका चयन होने पर उनको वे छात्रावास में रहने की अनुमति दे रहे हैं।  कई जिलों में पहले स्तर की चयन प्रक्रिया हो गई है। सभी जिलों में जिला स्तर के चयन के बाद राज्य स्तर का आयोजन किया जाएगा। इसकी तिथि अभी तय नहीं है। 

Read more...

बुधवार, मई 18, 2011

निशाने पर राष्ट्रीय खेल

साइंस कॉलेज के मैदान में अनुशासन के साथ एक लाइन से छोटे-बड़े तीरंदाज खड़े हैं और वे अपने कोच के निर्देशों को ध्यान से सुन रहे हैं। कोच का इशारा मिलते हैं तीर चल पड़ते हैं अपने निशाने की तरफ। तीरंदाजी में कमान संभालने वाले ज्यादातर तीरंदाजों का इस समय एक ही मकसद है छत्तीसगढ़ की मेजबानी में होने वाले 37वें राष्ट्रीय खेलों में राज्य के लिए पदक जीतना।
करीब एक पखवाड़े से तीरंदाजी के गुर सिखाने वाले खिलाड़ियों में शामिल तीरंदाज अनिषा, तनिषा और नमिषा यादव के साथ जया साहू, कृति उपाध्याय, अमित वर्मा, आदित्य उपाध्याय, मोहनीश राजपूत, अभिनव मोहदीकर, छतरसिंह सिदार, शुभम कमवीसदार, दुर्गेश नंदनी का एक स्वर में कहना है कि हम नियमित रूप से तीरंदाजी सीख कर अपने राज्य और देश का नाम रौशन करना चाहते हैं। छोटे खिलाड़ियों को तो नहीं लेकिन बड़े खिलाड़ियों को जरूर यह मालूम है कि छत्तीसगढ़ की मेजबानी में राष्ट्रीय खेल होने हैं। ऐसे में इन खिलाड़ियों का कहना है कि हम जरूर प्रदेश की टीम में स्थान बनाकर अपने राज्य के लिए पदक जीतने का काम करेंगे। खिलाड़ी कहते हैं कि अब खेल विभाग ने नियमित प्रशिक्षण की व्यवस्था की है तो हम हर मौसम में अभ्यास करने जरूर आएंगे। प्रारंभ में सभी खिलाड़ियों को इंडियन राऊंड के बारे में बताया जा रहा है।
भिलाई से आते हैं रोज सुमित
प्रशिक्षण लेने के लिए भिलाई के सुमित भगत रोज आते हैं। वे पूछने पर बताते हैं कि मुझे इस खेल में शुरू से रुचि रही है, लेकिन भिलाई में इस खेल का प्रशिक्षण देने वाला कोई नहीं था। ऐसे में जब मुझे समाचार पत्रों के माध्यम से मालूम हुआ कि रायपुर में तीरंदाजी का नियमित प्रशिक्षण दिया जाने वाला है तो मैैं यहां आने लगा। वे पूछने पर कहते हैं कि मुझे रोज आने में कोई परेशानी नहीं होती है। सुमित कहते हैं कि उनका इरादा ओलंपिक में देश के लिए पदक जीतने का है। सुमित का खेल के प्रति लगाव देखकर लगता है कि वे जरूर अपने राज्य और देश का नाम करेंगे, ऐसा उनके कोच टेकलाल कुर्रे का मानना है।
बिलासपुर के एनआईएस कोच भी शिविर में
बिलासपुर के एनआईएस कोच दुर्गेश प्रताप सिंह भी प्रशिक्षण शिविर में आ रहे हैं। वे नियमित तो नहीं लेकिन शिविर में लगातार आ रहे हैं और प्रशिक्षण ले रहे हैं। अब तक इंडियन राऊंड में राष्ट्रीय स्पर्धाओं में खेलने वाले दुर्गेश कहते हैं कि बिलासपुर में प्रशिक्षक न होने के कारण वे कपाऊंड में हाथ नहीं आजमा पा रहे थे, लेकिन अब वे राष्ट्रीय स्पर्धाओं में कंपाऊंड में खेलेंगे ताकि आगे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाने का मौका मिल सके। वे बताते हैं कि वे बिलासपुर में गुरु घासीदास विवि की टीम को प्रशिक्षण देने का भी काम करते हैं। यहां पर जहां उनको सीखने का मौका मिल रहा है, वहीं प्रशिक्षक टेकलाल कुर्रे उनसे नवोदितों खिलाड़ियों को सिखाने में मदद लेते हैं।
लक्ष्य राष्ट्रीय खेल ही हैं: कुर्रे
प्रशिक्षक टेकलाल कुर्रे कहते हैं कि खेल विभाग का नियमित प्रशिक्षण शिविर प्रारंभ करने का मकसद छत्तीसगढ़ में होने वाले राष्ट्रीय खेल ही हैं। वे कहते हैं कि मैं कोई बड़ा दावा नहीं करता है लेकिन जितना समय हमारे पास है उससे तय है कि कुछ ऐसे खिलाड़ी जरूर तैयार हो जाएंगे जो राज्य के लिए पदक जीतने का काम करेंगे। वे बताते हैं कि नियमित प्रशिक्षण के लिए एक स्थाई सेड जरूरी है, फिलहाल तो एक अस्थाई सेड बनाया गया है, लेकिन यह सेड बारिश में काम नहीं आएगा। उन्होंने बताया कि खेल संचालक जीपी सिंह ने साफ कहा है कि किसी भी सुविधा में कमी आने नहीं दी जाएगी, आप बस खिलाड़ी तैयार करने पर ध्यान दें। 


Read more...

मंगलवार, मई 17, 2011

पूरा होगा हमारा सपना....

तेरी यादें साथ लिए जा रहे हैं हम
करना न दिल से प्यार कभी कम।।
हम तुम्हें दिल में बसाए रखेंगे हरदम
तुम भी अपने दिल में हमें रखना सनम।।
हमने जो खाई है प्यार की कसम
याद रखना उसे मेरी जान हरदम।।
कभी न कोई ऐसा काम करना
प्यार को न अपने बदनाम करना।।
बस तुम थोड़ा सा इंतजार करना
पूरा होगा एक दिन हमारा सपना ।।
नोट: यह कविता भी हमारी 20 साल पुरानी डायरी से ली गई है।

Read more...

सोमवार, मई 16, 2011

आधुनिक तरीके से तैयार होंगे खिलाड़ी

प्रदेश के खिलाड़ियों को आधुनिक तरीके से तैयार करने की योजना पर खेल विभाग काम कर रहा है। इसके लिए आस्ट्रेलिया और भारतीय क्रिकेटरों को तैयार करने वाले स्टैनली सल्डाना को खेल विभाग ने एक योजना बनाने के लिए कहा है।
आस्ट्रेलिया क्रिकेट बोर्ड के साथ भारतीय क्रिकेट बोर्ड के खिलाड़ियों की वीडियो क्लीपिंग तैयार करके उनको निखारने का काम करने वाले मुंबई की एक कंपनी के स्टैनली सल्डाना ने खेल संचालक जीपी सिंह से मुलाकात करके उनको बताया कि   अगर आधुनिक तरीके से छत्तीसगढ़ के खिलाड़ियों को भी तैयार किया जाए तो इसका बहुत फायदा हो सकता है। खेल संचालक ने उनकी बातों को ध्यान से सुनने के बाद उनको एक योजना बनाकर देने कहा ताकि वे इस योजना को सरकार के सामने रख सके।
खेल संचालक ने उनको बास्केटबॉल के कुछ खिलाड़ियों की रिकार्डिंग करने के लिए कहा ताकि उनको मॉडल के रूप में सरकार के सामने पेश किया जा सके। इसके लिए श्री सल्डाना को प्रदेश महिला बास्केटबॉल टीम के अंतरराष्ट्रीय कोच राजेश पटेल से मिलने कहा गया। श्री सल्डाना ने बताया कि वे खिलाड़ियों की रिकार्डिंग करके उनके हर एक्शन पर प्रशिक्षक के साथ मिलकर चर्चा करते हैं और रिपोर्ट तैयार करते हैं कि खिलाड़ी कहां पर सही हैं और कहां पर गलत हैं। खिलाड़ियों की खामियों को दूर करे उनको निखारा जाता है। उन्होंने बताया कि अपने देश में किसी भी खेल में खिलाड़ियों की रिकार्डिंग नहीं की जाती है जिसके कारण मालूम नहीं हो पाता है कि वे कहां गलत हैं। अगर हर खेल में रिकार्डिंग करने की व्यवस्था हो जाए तो हर खेल के खिलाड़ियों को तराशा जा सकता है।
खेल संचालक जीपी सिंह ने कहा कि हम योजना बनाकर सरकार के सामने पेश करेंगे। अगर हमारी योजना को मंजूरी मिल जाती है तो हर खेल में इस नीति को अपना कर प्रदेश के खिलाड़ियों को निखारा जाएगा।


Read more...

रविवार, मई 15, 2011

पात्र खिलाड़ियों को देंगे अच्छी नौकरी

प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा कि प्रदेश के पात्र खिलाड़ियों को हमारी सरकार अच्छी नौकरी देगी। मुख्यमंत्री के हाथों हैंडबॉल के उत्कृष्ट खिलाड़ी अजय त्रिवेदी को राजनांदगांव जिले का खेल अधिकारी बनाए जाने का नियुक्ति पत्र राष्ट्रीय खेलों के पदकवीरों के सम्मान समारोह में दिलाया गया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी सरकार ने जो वादा किया था, उसे निभा रही है और राज्य के उत्कृष्ट खिलाड़ियों को जिला खेल अधिकारी जैसे पद पर नियुक्त कर रही है। डॉ. रमन सिंह ने साफ कहा कि अगर खिलाड़ियों में योग्यता है तो उनको किसी भी बड़े पद पर नियुक्त किया जा सकता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के बाहर नौकरी करने वाले उत्कृष्ट खिलाड़ी भी अगर राज्य में नौकरी करने के इच्छुक हैं तो उनकी भावनाओं की कद्र की जाएगी।
ज्यादा पदक जीतने पर ध्यान दें
मुख्यमंत्री ने कहा कि झारखंड के राष्ट्रीय खेलों में सात पदक तो एक शुरुआत है। अब समय आ गया है हमें अभी से छत्तीसगढ़ में होने वाले 37वें राष्ट्रीय खेलों की तैयारी करनी होगी ताकि राज्य को ज्यादा से ज्यादा पदक मिल सके। उन्होंने कहा कि अब मैं समय निकाल कर जल्द ही एक  एक करके सभी खेल संघों के अध्यक्ष, महासचिव के साथ उनके खेलों के प्रशिक्षकों के साथ बैठकर बात करूंगा। सभी खेल संघ योजना बनाने में जुट जाए कि हमें किस तरह से ज्यादा पदक मिल सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह बात बताने की जरूरत नहीं है कि हमारे पास अभी संसधानों की कमी है, हम धीरे-धीरे संसाधनों में इजाफा करेंगे। उन्होंने कहा कि दो साल के अंदर हम कई खेलों की अकादमी बना देंगे। मुख्यमंत्री ने सम्मान समारोह के बारे में कहा कि इसे करने में कुछ विलंब हो गया, पर हम खिलाड़ियों का सम्मान करके गर्व महसूस कर रहे हैं।
खेलों को उद्योगों से जोड़ने के अच्छे नतीजे होंगे
ओलंपिक संघ के महासचिव बलदेव सिंह भाटिया ने कहा कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने प्रदेश के खेल संघों को उद्योगों से जोड़ने की जो पहल की है, उसके अच्छे परिणाम सामने आएंगे। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने साफ कहा कि खेलों में बजट की कमी आने नहीं देंगे खिलाड़ी बस पदकों की तरफ ध्यान दें। इसके पहले खेल संचालक जीपी सिंह ने स्वागत भाषणा दिया। इस अवसर पर संसदीय सचिव विजय बघेल, गृह निर्माण मंडल के अध्यक्ष सुभाष राव, ओलंपिक संघ के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल वर्मा, विधायक कुलदीप जुनेजा, लॉन टेनिस संघ के अध्यक्ष विक्रम सिंह सिसोदिया, पूर्व मंत्री विधान मिश्रा, एथलेटिक क्लब के अध्यक्ष गुरुचरण सिंह होरा, बास्केटबॉल संघ के राजेश पटेल, हैंडबॉल संघ के बशीर अहमद खान, नेटबॉल संघ के संजय शर्मा, टेबल टेनिस संघ के शरद शुक्ला सहित कई खेल संघों के पदाधिकारी और खिलाड़ी उपस्थित थे।
खिलाड़ियों का सम्मान
कार्यक्रम के अंत में पदक विजेता खिलाड़ियों का जिनमें टीम खेलों में स्वर्ण विजेता महिला हैंडबॉल टीम को पांच लाख की राशि, बास्केटबॉल में रजत जीतने वाली महिला टीम को तीन लाख,  निशानेबाजी में स्कीट वर्ग में छत्तीसगढ़ को पहला स्वर्ण पदक व्यक्तिगत वर्ग में दिलाने वाले परमपाल सिंह को एक लाख, कराते में स्वर्ण दिलाने वाले अंबर सिंह भारद्वाज को एक लाख, कुश्ती में कांस्य दिलाने वाले आनंद को पचास हजार,  निशानेबाजी में कांस्य पदक दिलाने वाले बाबा पीएस बेदी को पचास हजार, निशानेबाजी टीम वर्ग में परमपाल सिंह, बाबा पीएस बेदी और मेराज अहमद को स्वर्ण जीतने पर पांच लाख की राशि देकर सम्मानित किया गया।

Read more...

शनिवार, मई 14, 2011

भक्त से श्रापित चंडिका देव की पीठ की होती है पूजा

भगवानों और साधु-संतों के बारे में इतिहास में यह पढ़ने को मिलता है कि इनके द्वारा ही समय-समय पर आम जन को श्रापित किया जाता रहा है। लेकिन ऐसा बहुत ही कम सुनने या फिर पढ़ने में आता है कि किसी देवता को किसी भक्त का श्राप लगा हो। लेकिन अपने छत्तीसगढ़ के बागबाहरा में एक गांव है बोडरीदादर यहां पर एक चंडिका देव हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि यह देवता भक्त द्वारा श्रापित हैं। भक्त श्रापित इस देवता की पृष्ठ भाग यानी पीठ की पूजा करते हैं। ऐसा संभवत: पूरे देश में औैर कहीं नहीं होता है कि किसी देवता की पृष्ठभाग की पूजा होती हो।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 100 किलो मीटर की दूरी पर बागबाहरा है। यहां के एक गांव बोडरीदादर में इस समय चंडिका देव के दरबार में भक्तों की भीड़ लग रही है। इस चडिंका देव के बारे में बताया जाता है कि एक भक्त द्वारा श्रापित होने के कारण इनकी पीठ की पूजा की जाती है। बताते हैं कि कोमाखान रजवाड़े के जमीदार भानुप्रताप सिंह के पूर्वज यहां पर पूजा पाठ करते थे। सिंह रूप वाले इस चंडिका देव को कई बार भानुप्रताप ने ले जाकर कोमाखान में स्थापित करने का प्रयास किया, पर चंडिका देव की मूर्ति अपने स्थान से टस से मस नहीं हुई, लाखों प्रयासों के बाद भी इस मूर्ति को हटाया नहीं जा सका। आज भी यह मूर्ति खुले आसमान में है।
भानुप्रताप सिंह ने देखा कि जब मूर्ति टस से मस नहीं हो रही है तो उन्होंने यहां पर दशहरे के दिन पूजा करने के बाद अपनी कूल देवी सोनई-रूपई पहाड़ी खोल में गोसान गुफा में स्थित अपनी कूल देवी की पूजा करते थे। चंडिका देव के बारे में बताया जाता है कि वहां पर पूर्व में एक गुप्त पूजा स्थल था जहां पर रजवाड़े अपने बैगाओं से पूजा करवाते थे, लेकिन यह स्थल अब बंद है और इसी के साथ चंडिका देव का सामने का भाग भी नहीं दिखता है जिसके कारण उनके पीठ की पूजा की जाती है। संभवत: देश में चंडिका देव अपने तरह के पहले देवता होंगे जिनके पीठ की पूजा की जाती है। बताते हैं कि भानुप्रताप ने ही सामने के उस भाग को बंद करवा दिया था जहां से उनके बैगा पूजा करते थे, ताकि कोई और पूजा न कर सके। लोगों का कहना है कि मूर्ति को न हटवाना पाने के कारण ही भानुप्रताप के श्राप की वजह से मूर्ति की पृष्ठभाग की पूजा होती है, क्योंकि सामने का भाग तो दिखता ही नहीं है।

Read more...

गुरुवार, मई 12, 2011

कौशिक को नहीं माना अध्यक्ष

छत्तीसगढ़ ताइक्वांडो संघ के अध्यक्ष बनाए गए विधानसभा अध्यक्ष धरम लाल कौशिक को पुराने अध्यक्ष आरएल आम्रवंशी के साथ राष्ट्रीय फेडरेशन ने भी अध्यक्ष मानने से इंकार कर दिया। राष्ट्रीय फेडरेशन के अध्यक्ष हरीश कुमार ने 16 अप्रैल की बैठक को अवैध करार देते हुए 28 अप्रैल को बिलासपुर में हुई बैठक के पदाधिकारियों को मान्यता दे दी है।
छत्तीसगढ़ संघ के अध्यक्ष आरएल आम्रवंशी ने बताया कि 16 अप्रैल को रायपुर में करवाई गई बैठक में बिना उनको जानकारी दिए धरम लाल कौशिक को अध्यक्ष बना दिया गया था। यह पूरी तरह से गलत है कि अध्यक्ष की उपस्थित के बिना अध्यक्ष को हटाकर किसी और को अध्यक्ष बना दिया गया। इसी के साथ इस बैठक में राष्ट्रीय फेडरेशन का कोई पर्यवेक्षक भी नहीं आया था। इस बात की जानकारी होने पर मैंने अध्यक्ष के अधिकारों को उपयोग करते हुए कार्यकारिणी को ही भंग करके 28 अप्रैल को बिलासपुर में सभी जिलों के अध्यक्ष और सचिवों को बुलाकर चुनाव करवाए। इसकी जानकारी हमने राष्ट्रीय फेडरेशन को दी। राष्ट्रीय फेडरेशन के अध्यक्ष हरीश कुमार ने 3 मई को जारी पत्र में मुझे अध्यक्ष मानने के साथ अनिल द्विवेदी को सचिव और महेश दास को कोषाध्यक्ष माना है। इस पत्र में साफ लिखा गया है कि 16 अप्रैल की बैठक अवैध है। श्री आम्रवंशी ने कहा कि धरम लाल कौशिक को अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के पूर्व सचिव बशीर अहमद खान की राजनीति है। उन्होंने कहा कि बशीर ने जो किया गलत किया। संघ में किसी भी तरह के बदलाव के पहले संघ के सचिव रामपुरी गोस्वामी को भी मुझसे बात कर लेनी थी, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। श्री गोस्वामी को भी संघ ने हटा दिया गया है। इस संबंध में धरम लाल कौशिक से बात करने पर उन्होंने कहा कि उनको कोई जानकारी नहीं है कि उनको अध्यक्ष नहीं माना जा रहा है। उन्होंने इस संबंध में कुछ भी कहने से इंकार कर दिया।


Read more...

बुधवार, मई 11, 2011

खिलाड़ियों को भी गोद लेने की पहल हो

इंडिया क्लासिक के साथ दो बार भारतश्री का खिताब जीतने वाले अंतरराष्ट्रीय बॉडी बिल्डर पी. सालोमन का मानना है कि प्र्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने जिस तरह से खेल संघों को गोद दिलाने की पहल की है, वैसी ही पहल पॉवर गेम के खिलाड़ियों को गोद दिलाने के लिए करनी होगी। बकौल सालोमन ऐसा करने से ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता संभव है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता के लिए बहुत ज्यादा खर्च लगता है। प्रस्तुत है उनसे की गई बातचीत के अंश।
0 अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता के लिए क्या जरूरी है?
00 हमारे खेल में सबसे पहले तो प्रायोजक जरूरी है। बॉडी बिल्डिंग जैसे पॉवर गेम में प्रायोजक नहीं मिल पाते हैं, क्योंकि इसमें खर्च बहुत लगता है। ऐसे में एक ही रास्ता है कि खिलाड़ियों को उद्योगों को गोद दिलाने का काम किया जाए। उद्योगों के गोद लेने पर खिलाड़ियों को मदद मिलेगी तो वे जरूर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफल होंगे।
0 प्रदेश में ऐसे कितने खिलाड़ी हैं जो मदद मिलने पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफल हो सकते हैं?
00 हमारे खेल में मेरे साथ ही सुमित राय चौधरी, राजकिशोर झा और सचिन मिश्रा को अगर उद्योगों को गोद दिलाया जाए तो हम लोग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राज्य का नाम कर सकते हैं।
0 आप कितनी बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेले हैं?
00 मुझे पिछले साल पहले जर्मनी में मिस्टर यूनिवर्स में खेलने का मौका मिला, वहां मुझे 8वां स्थान मिला। इसके बाद यूरोपियन कप में खेला जहां मैं छठे स्थान पर रहा।
0 क्या निकट भविष्य में और कहीं खेलने जाने वाले हैं?
00 कल्याण में पिछले माह इंडिया क्लासिक का खिताब जीतने के कारण मुझे लेग्क्समबर्ग में 4 जून 2011 को होने वाले विश्व कप में खेलने का मौका मिला है। इस चैंपियनशिप के लिए पहली बार मुझे प्रायोजक नसीब हुआ है क्योंकि मैं विजेता बना। मुंबई की एक कंपनी मेरा पूरा खर्च उठा रही है।
0 अंतरराष्ट्रीय स्तर के लिए कितनी डाइट की जरूरत होती है?
00 अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अगर टॉप टेन में आना है तो यह मानकर चलिए कि डाइट पर ही करीब एक लाख रुपए मासिक खर्च आता है। हम लोग जो सप्लिमेंट लेते हैं वे बहुत महंगे होते हैं। कोई भी खिलाड़ी अब दो किलो चावल तो खा नहीं सकता है। इसकी तुलना में दो चमच से काम चल जाता है। प्रोटीन और कार्बो के लिए बहुत ज्यादा खर्च होता है।
0 राष्ट्रीय स्तर के लिए क्या दरकार होती है?
00 राष्ट्रीय स्तर के लिए अगर आपको खिताब तक पहुंचना है तो यह मानकर चलिए की कम से कम 40 हजार रुपए मासिक का खर्च करना होगा।
0 अपने राज्य में प्रशिक्षकों की क्या स्थिति है?
00 बॉडी बिल्डिंग में कोई ऐसा प्रशिक्षक नहीं है जिसकी मदद से कोई खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफल हो सके।
0 प्रशिक्षक न होने से खिलाड़ी क्या करते हैं?
00 जूनियर खिलाड़ियों को तो सीनियर खिलाड़ी प्रशिक्षण दे देते हैं, लेकिन हम जैसे सीनियर खिलाड़ियों को बाहर जाना पड़ता है।
0 बाहर प्रशिक्षण लेने पर कितना खर्च आता है?
00 अच्छे प्रशिक्षक की सेवाएं लेने पर एक माह में 25 हजार लग जाते हैं। सप्ताह में तीन दिन प्रशिक्षण दिया जाता है। 12 दिन के लिए 25 हजार की राशि खर्च करनी पड़ती है। इस राशि में करीब 17 हजार प्रशिक्षण के और 8 हजार की राशि हमें डाइट में क्या लेना है, उसकी जानकारी के लिए जाते हैं।
0 आप किस विभाग में हैं, और उसमें खेलों के लिए क्या सुविधाएं हैं?
00 मैं पुलिस विभाग में हूं। खेलों के लिए हमारे विभाग में बहुत सुविधाएं हैं। खिलाड़ियों को विभाग में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफल होने पर पदोन्नति भी मिलती है। मैं दो बार भारतश्री बना हूं और अभी इंडिया क्लासिक का खिताब भी जीता है। मुझे भी जल्द पदोन्नत करके   उपनिरीक्षक बनाया जाना वाला है, इसके लिए डीजीपी विश्वरंजन और एडीजी रामनिवास प्रयासरत हैं। उम्मीद है बहुत जल्द मुझे पदोन्नत किया जाएगा।

Read more...

सोमवार, मई 09, 2011

ओसामा जिंदा रह सकता था?

ओसामा बिन लादेन लंबे समय तक जिंदा रह सकता था?
कैसे?
अगर वह कसाब के साथ भारत आ जाता
यह एक एसएमएस है जो हमारे पास आया है।
वास्तव में इस एसएमएस पर गौर किया जाए तो इसकी बात सच लगती है। अपने देश में अमरीका जैसा हिम्मत नहीं है कि वह किसी आतंकवादी का खात्म उस तरह से कर सके जैसा कि अमरीका ने किया है।


Read more...

रविवार, मई 08, 2011

सडनडेथ में जीता बरेली

अखिल भारतीय स्वर्ण कप नेहरू हॉकी में यंगर्स क्लब बरेली को गोंदिया के खिलाफ कांटे के मुकाबले के बाद सडनडेथ में 4-3 से जीत मिली। इसके पहले बिलासपुर ने चन्द्रपुर को रोमांचक मुकाबले के बाद  टाईब्रेकर में 7-6 से मात दी। निर्धारित समय तक मुकाबला 3-3 से बराबर था।
नेताजी स्टेडियम में चल रही स्पर्धा में पहला मैच डीएफए बिलासपुर और पहली बार खेलने आई डीएफए चन्द्रपुर की टीम के बीच खेला गया। इस मैच में प्रारंभ से ही रोमांचक मुकाबला हुआ। मैच का पहला गोल खेल के 17वें मिनट में बिलासपुर के अतीक कुरैशी ने किया। इसके दो मिनट बाद ही बिलासपुर के राहुल रजक ने गोल करके अपनी टीम को 2-0 से आगे कर दिया। दो गोल से पिछड़ने के बाद भी चन्द्रपुर की टीम ने हौसला नहीं खोया और वापसी करने के लिए बिलासपुर में जोरदार हमले किए जिसकी बदौलत 24वें मिनट में सैय्यद शाहिद ने अपनी टीम के लिए पहला गोल किया। पहले हॉफ के समाप्त होने के दो मिनट पहले ही मनीष मिश्रा ने गोल करके अपनी टीम को 2-2 से बराबरी पर ला खड़ा किया। दूसरे हॉफ के पहले ही मिनट में भरत ने गोल करके चन्द्रपुर को 3-2 से आगे कर दिया। अब बिलासपुर ने बराबरी के लिए जोर लगाया। 47वें मिनट में नीलेश रजक के गोल से बिलासपुर को बराबरी मिली। निर्धारित समय में मुकाबला 3-3 से बराबर रहने पर टाईब्रेकर का सहारा लिया गया। इसमें बिलासपुर के लिए शाहिद, शाहरुख खान, राहुल और कृष्ण गोयल ने गोल किए। चन्द्रपुर के लिए सैय्यद शाहिद, समीर और मनीष मिश्रा ही गोल कर सके। मैच बिलासपुर ने 7-6 से जीता।
दूसरे मैच में यंगर्स क्लब बरेली का मुकाबला डीएफए गोंदिया से हुआ। मैच का पहला गोल बरेली के अब्दुल कादिर ने खेल के 22 वें मिनट में किया। पहले हॉफ में बरेली की टीम 1-0 से आगे थी। दूसरे हॉफ के तीसरे मिनट में गोंदिया को कप्तान जयेश नकाते के गोल से बराबरी मिली। इसके बाद कोई स्कोर नहीं हो सका और मैच का फैसला करने के लिए टाईब्रेकर का सहारा लिया गया। इसमें दोनों टीमें दो-दो गोल कर सकी। ऐसे में मैच का फैसला करने सडनडेथ का सहारा लिया गया। इसमें बरेली की टीम ने पहला गोल कर दिया, जबकि गोंदिया की टीम गोल करने से चूक गई और उसे मैच 3-4 से गंवाना पड़ा। आज के मैचों के अंपायर नजीर अहमद, देवेश शुक्ला, इंसान अली, अब्दुल हुसैन और मुख्य टेबल जज डॉ. क्यूए वाहिद थे।

Read more...

शनिवार, मई 07, 2011

राजनैतिक पार्टियां आयोजन बंद कर दें

रायपुर की महापौर किरणमयी नायक का कहना है कि राजधानी के मैदानों को बचाना है तो राजनैतिक पार्टियों को आयोजन ही बंद कर देने चाहिए। खेल संघों को भी चाहिए कि वे ऐसे आयोजनों का खुलकर विरोध करें। राज्य सरकार को पहल करते हुए दिल्ली के प्रगति मैदान जैसा एक मैदान राजधानी में बनवाना चाहिए।
नेताजी स्टेडियम में स्वर्ण कप नेहरू हॉकी के उद्घाटन के बाद महापौर ने एक सवाल के जवाब में कहा कि सत्ता में बैठी भाजपा सरकार ही स्टेडियम में आयोजन करवा रही है तो क्या किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मैदानों को बचाना है तो एक मात्र विकल्प यही है कि राजनैतिक पार्टियां आयोजन बद कर दें। उन्होंने खेल संघों को सलाह देते हुए कहा कि महज एक बार विरोध करने से कुछ होने वाला नहीं है, लगातार विरोध करना चाहिए। महापौर ने कहा कि राजधानी में वैसे भी एक साइंस कॉलेज और दूसरा बीटीआई मैदान है। इन मैदानों पर ही हर तरह के आयोजन होते हैं। श्रीमती नायक ने कहा कि राज्य सरकार को खेल मैदानों को बचाने के लिए दिल्ली के प्रगति मैदान की तरह राजधानी में एक मैदान बनाने की पहल करनी चाहिए।

Read more...

शुक्रवार, मई 06, 2011

क्या अखबार में छपे अपने लेखों को ब्लाग में डालना गलत है?

हमारे एक पत्रकार मित्र हैं उनको इस बात से बहुत परेशानी होती है कि पत्रकार अपने उन्हीं लेखों को अपने ब्लाग में डाल देते हैं जो लेख वे अखबारों के लिए लिखते हैं। अब सोचने वाली बात यह है कि आखिर इसमें बुराई क्या है। अगर हम कोई अच्छा लेख अखबार में लिख रहे हैं और वहीं लेख हम अपने ब्लाग के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं तो इसमें गलत क्या है। हमें नहीं लगता है कि इसमें कुछ गलत है। वैसे भी अखबार में कम से कम कुछ अच्छा लिखा हुआ ही प्रकाशित करने की इजाजत संपादक देते हैं। ऐसे में उसी अच्छे लेख को ब्लाग जगत के पाठक भी पढ़ ले तो इसमें हर्ज क्या है। 
हमारे कुछ पत्रकारों मित्रों के साथ हम भी कई बार अपने अखबार में प्रकाशित लेखों को अपने ब्लाग में डाल देते हैं। इन लेखों पर अच्छी प्रतिक्रिया भी आती है। लेकिन अपने एक पत्रकार मित्र को यह बात जमती नहीं है कि हम या कोई भी पत्रकार ब्लाग में उन लेखों को डालें जो लेख अखबार में प्रकाशित हो चुके हैं। इस बात का उनके पास कोई ठोस जवाब तो नहीं है, वे कहते हैं कि ब्लाग एक अलग चीज है। अरे मित्र इसमें अलग जैसी क्या बात है। ब्लाग तो बल्कि आपकी अपनी बपौती है। इसमें तो आप जैसा चाहे लिख सकते हैं, लेकिन आप यह भूल रहे हैं कि अखबार में वह सब नहीं चलता है। अखबार में अच्छा लिखने के बाद भी संपादक से उनको प्रकाशित करने की इजाजत नहीं मिल पाती है। ऐसे में यह बात मान कर चलिए कि किसी भी पत्रकार या फिर किसी लेखक का कोई लेख किसी भी अखबार में प्रकाशित होता है तो उस लेख में कुछ तो दम होगा। अगर किसी भी लेख में कुछ दम है तो उस लेख को क्यों नहीं ब्लाग जगत के पाठक तक पहुंचाना चाहिए। इसमें बुराई क्या है? इसी के साथ हमारा यह भी मानना है कि अगर कोई पत्रकार किसी खबर को अपने अखबार के लिए बनाता है और उस अखबार के बारे में वह सोचता है कि इस खबर की जानकारी ब्लाग जगत के पाठकों को भी होनी चाहिए तो इसमें भी गलत क्या है?
छत्तीसगढ़ की कितनी ऐसा खबरें हैं जिनको राष्ट्रीय या फिर अंतरराष्ट्रीय  स्तर पर स्थान मिल पाता है। ऐसे में जबकि छत्तीसगढ़ की खबरों को कोई पूछने वाला नहीं है तो ऐसे में अगर कोई पत्रकार छत्तीसगढ़ की खबरों को अपने ब्लाग के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने का काम कर रहा है तो हमारी नजर में ऐसे पत्रकार साधुवाद के पात्र हैं। ऐसे ब्लागरों का हौसला बढ़ाने की जरूरत है।

Read more...

गुरुवार, मई 05, 2011

दस साल बाद भी नहीं मिले मैदान

छत्तीसगढ़ बनने के दस साल बाद भी प्रदेश कई खेलों के मैदानों के लिए तरस रहा है। हॉकी को जहां अब तक एस्ट्रो टर्फ नहीं मिल सका है, वहीं एथलीटों को सिंथेटिक ट्रैक का इंतजार है। तीरंदाजों के लिए एक भी नियमित मैदान नहीं है। तैराकी के लिए राष्ट्रीय स्तर का एक भी पूल न होने के कारण संघ राज्य में राष्ट्रीय स्पर्धाओं की मेजबानी नहीं ले पाता है। छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी मिलने के बाद अब खिलाड़ियों की उम्मीद जागी है उनको मैदान मिल जाएंगे।
प्रदेश में ज्यादातर खेलों के मैदानों का टोटा है। राज्य बनने के दस साल बाद भी खिलाड़ी मैदान नहीं मिलने से निराश हैं। कई खेलों में सुविधाएं न होने से खिलाड़ी पलायन करके दूसरे राज्यों में जाकर खेल रहे हैं।
हॉकी खिलाड़ी पलायन कर गए
प्रदेश महिला हॉकी संघ की सचिव और पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी नीता डुमरे बताती हैं कि राज्य बनने के बाद एक भी एस्ट्रो टर्फ न होने के कारण अपने राज्य की महिला खिलाड़ी पलायन कर रही हैं। इस समय प्रदेश की छह खिलाड़ी बलविंदर कौर, रेणु राजपूत, पूजा राजपूत, हेमलता, सेवंती और किरण भोपाल के साई सेंटर में हैं। इन खिलाड़ियों के दम पर ही साई भोपाल ने पिछले माह राष्ट्रीय स्पर्धा में तीसरा स्थान प्राप्त किया। नीता कहती हैं कि राज्य की राजधानी में तो एस्ट्रो टर्फ जरूरी है। वह कहती हैं कि राज्य में जशपुर के साथ राजनांदगांव और रायपुर में एस्ट्रो टर्फ लगाने की घोषणा काफी पहले हो चुकी है, लेकिन अब तक कहीं भी एस्ट्रो टर्फ नहीं लगा है। इसके बिना राष्ट्रीय स्तर पर सफलता संभव नहीं है।
राजधानी में बने सिंथेटिक ट्रैक
अंतरराष्ट्रीय एथलीट पवन धनगर का कहना है कि यह अपने राज्य का दुर्भाग्य है कि दस साल बाद भी राज्य में एक भी सिंथेटिक ट्रैक नहीं है। इसके बिना राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता संभव नहीं है। वे बताते हैं कि रविशंकर विश्व विद्यालय में एक सिंडर ट्रैक है। ऐसा ही एक ट्रैक भिलाई में भी है। वे कहते हैं कि बस्तर की प्रतिभाओं को देखते हुए एक सिंथेटिक ट्रैक वहां भी होना चाहिए। पद्मश्री रूकमणी सेवा आश्रम  बस्तर के धर्मपाल सैनी भी कहते हैं कि बस्तर में आदिवासी प्रतिभाएं इतनी ज्यादा हैं कि वहां पर एथलेटिक्स का ट्रैक होने से वहां से राष्ट्रीय स्तर की बहुत खिलाड़ी निकल सकती हैं।
राष्ट्रीय स्तर का एक भी स्वीमिंग पूल नहीं
प्रदेश तैराकी संघ के अध्यक्ष गोपाल खंडेलवाल के साथ सचिव साई राम जाखंड कहते हैं कि अपने राज्य में राष्ट्रीय स्तर का एक भी स्वीमिंग पूल न होने के कारण हम राष्ट्रीय स्पर्धाओ का आयोजन नहीं कर पाते हैं। संघ ने खेल विभाग को भिलाई में राष्ट्रीय स्तर का पूल बनाने का प्रस्ताव दिया है।
दस साल में नहीं मिली तीरंदाजी अकादमी 
तीरंदाजी संघ के सचिव कैलाश मुरारका का कहना है कि हमने राज्य में दस सालों में एक हजार से ज्यादा तीरंदाज तैयार कर दिए हैं, लेकिन हमारी अकादमी खोलने की मांग अब तक खेल विभाग ने पूरी नहीं की है। इसी के साथ विभाग से संघ को अब तक कोई सामान भी नहीं मिला है, जबकि तीरंदाजी का सामान बहुत मंहगा आता है। श्री मुरारका ने बताया कि राजधानी में खिलाड़ियों के नियमित अभ्यास के लिए एक मैदान भी नहीं है।
सुविधाएं देने का प्रयास कर रहे हैं: खेल संचालक
खेल संचालक जीपी सिंह का कहना है कि हम हर खेल की सुविधाएं देने का प्रयास कर रहे हैं। तीरंदाजी और हॉकी की अकादमी बनाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है। साइंस कॉलेज में हॉकी के लिए एस्ट्रो टर्फ लगाने का काम भी तेजी से चल रहा है। बहुत जल्द लोक निर्माण विभाग इसके लिए टेंडर करेगा। तैराकी संघ की मांग पर भिलाई स्टील प्लांट को स्वीमिंग पूल बनाने के लिए पत्र लिखा जा रहा है। बीएसपी ने ही तैराकी को गोद लिया है, इसलिए उसको पूल बनाने कहा जा रहा है। एक स्वीमिंग पूल नगर निगम रायपुर संस्कृत कॉलेज में बनाने वाला है। जहां तक एथलेटिक्स के सिंथेटिक ट्रैक का सवाल है, तो वह साइंस कॉलेज में प्रस्तावित खेल हब में शामिल है, इसके लिए जल्द ही प्रस्ताव बनाकर सरकार को भेजा जाएगा।  

Read more...

बुधवार, मई 04, 2011

बनेगी पदकवीर तैयार करने की योजना

छत्तीसगढ़ में होने वाले 37वें राष्ट्रीय खेलों में राज्य को ज्यादा पदक दिलाने के लिए पदकवीर तैयार करने की योजना बनेगी। इस बात का फैसला खेलों संघों के साथ उद्योगों की बैठक में लिया गया।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की पहल पर खेल संघों को उद्योगों द्वारा गोद लिए जाने के बाद खेल संघों और उद्योगों की पहली बैठक का आयोजन खेल विभाग ने नए विश्राम गृह में किया। उद्योग सचिव दिनेश श्रीवास्तव की अध्यक्षता और खेल सचिव सुब्रत साहू एवं खेल संचालक जीपी सिंह की उपस्थित में हुई इस बैठक में तय किया गया कि मुख्यमंत्री द्वारा उद्योगों और खेल संघों को जोड़ने के पीछे पहला मकसद छत्तीसगढ़ में होने वाले 37वें राष्ट्रीय खेल हैं। इन खेलों में राज्य को पदक तालिका में शीर्ष में पहुंचाना है। ऐसे में उद्योगों के माध्यम से खेल संघों को मदद दिलाकर पदकवीर खिलाड़ी तैयार करने हैं।
उद्योग सचिव दिनेश श्रीवास्तव ने कहा कि सबसे पहले खेल संघ मई के अंतिम सप्ताह तक अपनी कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर उद्योगों के एक प्रतिनिधि को संघ में उपाध्यक्ष बनाने का काम करें। खेल सचिव सुब्रत साहू ने कहा कि इनमें कोई दो मत नहीं है कि निजी क्षेत्र को जब किसी के साथ जोड़ा जाता है तो उसका विकास तेजी से होता है, ऐसा ही अब खेलों के साथ होगा।
खेल संचालक जीपी सिंह ने खेल संघों से उद्योगों के साथ मिलकर पांच साल की योजना बनाने की बात कहीं। उन्होंने साफ कहा कि हमारा मकसद राज्य के लिए पदकवीर तैयार करना है। ज्यादा से ज्यादा खर्च खिलाड़ियों को तैयार करने पर करना है, उन्होंने कहा कि खेल संघ अपनी योजनाओं में प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दें। प्रशिक्षण से मेरा मतलब अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर के कोच बुलाकर खिलाड़ी तैयार करने से हैं।
संयुक्त बैठक में बनेगी योजना
बैठक के बाद खेल संचालक ने बताया कि खेल संघों को उद्योगों के साथ मिलकर संयुक्त रूप से योजना बनाने के लिए कहा गया है। उन्होंने बताया कि कुछ खेलों की उद्योगों से अदला-बदली की गई है। श्री सिंह ने बताया कि गोदावरी इस्पात ने वालीबॉल को लेने की बात कहीं तो उनको यह खेल दिया गया है। उनके पास कराते था, जिसे एसआर को दिया गया है। ताइक्वांडो संघ की मांग पर उसे इफ्को को दिया गया है। पहले यह खेल बीएससीके के पास था। स्क्वैश को वंदना ग्रुप को दिया गया है। कुछ इसी तरह से छोटे-छोटे बदलाव खेल संघों और उद्योगों की सहमति से किए गए हैं। 
आयोजन का जिम्मा भी उद्योगों को
बैठक में उद्योगों को ही आयोजन का जिम्मा उठाने के लिए कहा गया। अब राज्य स्तर के आयोजन उद्योग खेल संघों के साथ मिलकर करेंगे। यहां यह बताना लाजिमी होगा कि खेल विभाग द्वारा खेल संघों के साथ मिलकर किए जाने वाले आयोजन पर अब प्रतिबंध लग गया है।

Read more...

मंगलवार, मई 03, 2011

अबे तुम पत्रकार क्या घुटना दिमाग होते हो?

एक मित्र का फोन आया और उसने एक सवाल दाग दिया कि क्या तुम पत्रकार घुटना दिमाग होते हो?
हमने पूछा अबे हुआ क्या है जो तू इतना भड़का रहा है?
उसने कहा होना क्या है, जब देखो बस तुम लोग अपने को ही तीस मार खां समझते हो?
हमने फिर कहा अबे बताएगा मामला क्या है?
उसने कहा एक तो हमने तुम्हारी सम्मान वाली पोस्ट देखी, और फिर दिल्ली में हुए ब्लागर सम्मेलन का विवाद भी देखा।
हमने पूछा तो क्या हुआ?
उसने कहा अबे दूसरों को भी अपने मन से चलने और जीने-खाने दोगे या नहीं।
अब दिल्ली में बेचारों ने ब्लागर सम्मेलन किया, तो सीधी सी बात है कि ब्लागर अपने खर्च से तो वहां रूके नहीं होंगे। जरूर उनको इतने बड़े आयोजन में खर्च करना पड़Þा होगा। ऐसे में वे अगर किसी ईमानदार साहित्यकार, या किसी और को बुलाते तो उनका खर्च कैसे निकलता। एक भ्रष्ट मंत्री ही तो ऐसे आयोजन के लिए बड़ा सा चंदा दे सकता है। क्या पत्रकारों के आयोजनों में कभी किसी भ्रष्ट मंत्री को नहीं बुलाया जाता जो ब्लागर सम्मेलन में एक भ्रष्ट मंत्री को बुलाए जाने पर बवाल किया जा रहा है।
उसने कहा तू एक बात ईमानदारी से बता, क्या तेरी बिरादरी के सारे पत्रकार ईमानदार हंै? जब तुम्हारी खुद की कौम में ईमानदारी नाम की चीज नहीं है तो फिर क्यों कर दूसरों के फटे में टांग अड़ाने का काम करते हो तुम लोग। अगर तुम लोगों को ऐसे आयोजन में नहीं जाना है तो मत जाओ, क्यों कर किसी के पेट में लात मारने का काम करते हो। जिसने भी दिल्ली में ब्लागर सम्मेलन करवाया होगा उसकी भी तो कुछ जरूरत रही होगी, आज के जमाने में कोई ईमानदार तो किसी की जरूरत पूरी नहीं करता है, ऐसे में किसी बेईमान को ही तो पकड़ना पड़ेगा न फिर उन बेचारों ने गलत क्या किया।
उसने फिर एक सवाल दागा- चल बता क्या देश के सारे अखबार अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं?
उसके इस सवाल का हमारे पास वास्तव में कोई जवाब नहीं था। हम जानते हैं कि आज देश के बहुत कम अखबार अपना काम ईमानदारी से नहीं कर रहे हैं। सत्ता में बैठी सरकार के खिलाफ किसी भी अखबार में लिखने की हिम्मत नहीं होती है। कोई अखबार ऐसी हिम्मत करता भी है तो उसके पीछे उसका अपना स्वार्थ होता है। अब यह स्वार्थ किसी भी तरह का हो सकता है, संभवत है उसको कम विज्ञापन मिलता हो जिसके कारण सरकार पर दबाव बनाने वह उसके खिलाफ लिखने का काम कर रहा है, या फिर संभव है कि वह अखबार विपक्ष में बैठे लोगों के हाथों की कठपुतली हो। कुछ न कुछ तो बात रहती है, तभी कोई अखबार सत्ता में बैठी सरकार के खिलाफ जहर उगलता है।
एक बात हमारे मित्र की यह तो सही है कि हम पत्रकार घुटना दिमाग होते हैं। पत्रकारों पर पत्रकारिता का रंग इस कदर चढ़ा रहता है कि वे अपने से बड़ा और किसी को समझते ही नहीं हंै। हमने भी अक्सर पत्रकार साथियों को छोटी-छोटी बात पर किसी से भी उलझते देखा है। एक छोटा सा उदाहरण ही ले लीजिए। किसी बड़े मंंत्री के कार्यक्रम में जब किसी पत्रकार की तलाशी ली जाती है, तो अक्सर पत्रकार भड़क जाते हैं कि क्या हम चोर हैं।
अब हमारे पत्रकार मित्रों को भी समझना चाहिए कि तलाशी लेने वाले बेचारे तो बस अपना काम कर रहे हैं, अगर कहीं चूक हो गई तो उनकी नौकरी चली जाएगी, फिर हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कई बड़ी वारदातों में लोग पत्रकार बनकर पहुंचे हैं। ऐसे में अगर सुरक्षा के लिहाज से आपकी तलाशी ली जा रही है तो इसमें गलत क्या है। ईमानदारी से बताए तो हमें भी ऐसे कई मौकों पर गुस्सा आता है, फिर हम सोचते हैं कि यार अगला आदमी तो बस अपना काम कर रहा है जिस तरह से हम अपना काम करने आए हैं। ऐसे में क्यों कर उसके काम में हम बाधा पहुंचाए।

Read more...

सोमवार, मई 02, 2011

मैं प्रधानमंत्री बनी तो देश का लुक बदल दूंगी

महज 13 साल की लड़की सड़क पर किसी आदमी को पोलीथीन फेंकते देखकर कहती है कि अगर मैं कभी देश की प्रधानमंत्री बनी तो देश का पूरा लूक ही बदल दूंगी।
यह लड़की और कोई नहीं बल्कि हमारी बिटिया स्वप्निल राज ग्वालानी हैं। कल की ही बात है, छुट्टी होने के कारण हम स्वप्निल और सागर को घुमाने ले गए थे, जब हम लोग घर वापस आ रहे थे, तभी रास्ते में कार में चल रहे एक आदमी को उसने पोलीथीन फेंकते देखा। इसको देखकर ही उनसे तपाक से कहा कि अगर मैं देश की प्रधानमंत्री बनी तो देश का लुक बदल दूंगी। हमने भी उससे ऐसे ही कुछ सवाल कर दिए, लेकिन उसके जवाब सुनकर जहां हमें इस बात का खुशी हुई कि वह हमारी लड़की है, वहीं हमारा दिमाग चकरा गया कि 13 साल की लड़की की सोच अपने देश के प्रति इतनी गंभीर है।
हमने उससे पूछा कि कैसे लुक बदल देगी?
उसने जवाब दिया, सबसे पहले तो मैं हर तरफ पेड़ लगवाने का काम करूंगी, और,  उसने कहा- सड़कें बनवाउंगी, हर स्थान पर डस्टवीन रखवाऊंगी, ताकि कोई कचरा सड़क पर न फेंके।
हमने पूछा इसके बाद भी क्या कचरा पसंद लोग सड़क पर कचरा नहीं करेंगे, तो उसका जवाब था कि ऐसा करने वालों को सजा दी जाएगी।
और क्या करोगी, पूछने पर उसने कहा कि मैं गरीबों के लिए मकान बनवाने का काम करूंगी, हमारे देश को सब गरीबों का देश कहते हैं, गरीबों के लिए मकान हो जाएंगे, वे काम करने लगेंगे तो हमारे देश को भी रिच कंट्री यानी अमीरों का देश माना जाने लगेगा।
एक सबसे बड़ी बात स्वप्निल ने वह कही जिसके बारे में रामदेव बाबा सहित देश के कई  दिग्गज कहते हैं कि देश के बाहर से देश का काला धन लाने पर देश अमीर हो जाएगा।
इसमें संदेह नहीं है कि अपने देश का जितना कालाधन बाहर है, अगर उसे सच में वापस लाया जा सके तो अपना देश एक बार फिर से सोने की चिडिय़ा बन जाएगा, लेकिन ऐसा कभी हो पाएगा ऐसा लगता नहीं है।  अपना देश जिस तरह से भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है उससे लगता नहीं है कि कभी अपने देश के कालेधन को वापस लाने का प्रयास कोई सरकार करेगी। जब सत्ता में बैठने वाले ही पूरी तरह से भ्रष्ट हैं तो फिर किसकी हिम्मत है कि वह देश के बाहर से काले धन को वापस ला सके। राम देव बाबा महज बातें कर सकते हैं, लेकिन उनके चीखने-चिलाने से कुछ होने वाला नहीं है।
बहरहाल हमें इस बात की बहुत ज्यादा खुशी है कि हमारी छोटी सी बेटी अपने देश के बारे में इतना सोचती है, हमने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि हमारी बेटी के विचार इतने अच्छे हो सकते हैं। लेकिन कहते हंै न कि खून का असर तो होता है, जब हम अपने देश, राज्य और समाज के लिए लगातार सोचते हैं तो क्यों कर न हमारी बेटी भी ऐसा सोचेगी।
काश अपने देश की हर बेटी और हर बेटा ऐसा सोचने वाला हो जाए तो फिर अपने देश को सोने की चिडिय़ा बनने से काई  नहीं रोक सकता है। हमारी तो भगवान से यही दुआ है कि देश के हर बेटे और बेटी की सोच को हमारी स्वप्निल जैसी कर दे ताकि आने वाले समय में जब ये बड़े हों तो इस देश का वास्तव में ऐसा लुक हो जाए कि लोग वाह-वाह करने लगे तभी हम वास्तव में सर उठाकर कह पाएगा, मेरा देश महान।

Read more...

रविवार, मई 01, 2011

अबे तेरा सम्मान नहीं हुआ क्या?

कल की बात है हम रास्ते में थे कि मोबाइल बज उठा। मोबाइल का बजना कोई अनोखा नहीं था, लेकिन कल मोबाइल उठाया तो उधर से आवाज आई अबे तेरा सम्मान नहीं हुआ क्या? एक बार हमें लगा कि यार ये तो अपने अनिल पुसदकर जी लगते हैं, लेकिन फिर आवाज से लगा कि नहीं यार अनिल जी नहीं हैं? जब हमें भरोसा हो गया कि अनिल जी नहीं है, ये बंदा अपना काई  मित्र है तो हमने भी उसी अंदाज में कहा तेरे को क्या हो गया है बे। उसने कहा कि साले कुछ भी लिखते रहता है। अगर किसी का सम्मान हो रहा है, इसमें अगर किसी की दुकानदारी चल रही है तो तेरे को क्या नुकसान हो रहा है।
अब तक हम उस बंदे को पहचान नहीं पाए थे, हमने कहा कि चल बेटा हमें काई नुकसान नहीं हो रहा है, पहले तू अपना नाम ही बता, उसने कहा कि अब बेटा तू नाम भी भूल गया है कि अपने दोस्तों का।
हमने कहा अबे तेरे जैसे न जाने कितने रहे होंगे, हर किसी को थोड़े याद रखूंगा। इस पर उसने कहा कि अच्छा हम रायपुर से क्या चले गए लगता है साले अपने बचपन के दोस्त को भी भूल गया। उसका इतना कहना था कि हमारे दिमाग में बिजली कौंधी, अब हम अपने इस मित्र को पहचान गए थे, ये हमारे बचपन के मित्र हैं शौकल अली जो आज-कल बेंगलुरु में है। उसे पहचानते ही हम बरस पड़े, साले इतने लंबे समय बाद फोन भी किया तो झगड़ा करने के लिए। खैर चलो हमारी पोस्ट से, भले अपना अपमान, सॉरी सम्मान करवाने वालों को असर नहीं हुआ, तूझे तो असर हुआ और तेरा फोन आया।
शौकत ने कहा कि साले तू नहीं सुधर सकता है, वहीं बचपन वाली आदत कुछ गलत दिखा नहीं कि या तो लिख डाला, या फिर झगड़ा कर डाला, अब तो साले तेरे हाथ में ये ब्लाग-वाग भी आ गया है, तेरे अखबार में तो जरूर पाबंदी होगी ऐसी बातें लिखने के लिए इसलिए अपना सारा गुस्सा ब्लाग में दिखाता है।
हमने उससे सवाल किया कि हमने जो लिखा है, उसमें गलत क्या?
उसने कहा अबे गलत कुछ नहीं, लेकिन क्या तू एक अकेले सबको सुधार सकता है। मैं भी जानता हूं कि तू साले पिछले दो दशक से भी ज्यादा समय से हर गलत बात का विरोध करता है और साले बुरा बनता है, आखिर तूझे बुरा बनने का इतना शौक क्यों है?
हमने कहा कि अगर गलत बात का विरोध करने से हम जिंदगी भर बुरे बनते रहेंगे तो भी यह काम करते रहेंगे। यह बात तू अच्छी तरह से जानता है।
शौकत ने कहा- साले तू सुधर नहीं सकता है, तेरे से किसी भी विषय में जीतना वैसे भी कठिन है। चल छोड़ अपनी सुना क्या चल रहा है।
हमने कहा- सब ठीक है, यार वही नौकरी चल रही है कमल घीसने की, लेकिन अब कलम के स्थान पर कंप्यूटर पर ऊंगलियां चलानी पड़ती हैं।
हमने कहा तू सुना क्या चल रहा है।
शौकत ने कहा कि अपनी भी बस नौकरी चल रही है।
हमने उससे कहा कि चल बे अब रख फोन हमें प्रेस की मिटिंग में जाना है, फिर बात करेंगे, और तूझे बताऊंगा भी कि मेरा सम्मान हुआ है या नहीं।
हम बता दें कि वैसे तो हमारा एक बार नहीं कई बार सम्मान हुआ है, लेकिन हम सम्मान में नहीं काम में भरोसा करते हैं। हमें एक दशक पहले राष्ट्रीय दिशा मंच वालों द्वारा किया गया सम्मान आज भी याद है जब वे लोग हमें खोजते हुए दैनिक देशबंधु में पहुंचे थे, तब हमने उनसे कहा था कि हम सम्मान वगैर में भरोसा नहीं रखते हैं, लेकिन उन्होंने जिद की थी कि आप खेल पत्रकारिता में छत्तीसगढ़ में सबसे सीनियर हैं और आपके योगदान के कारण ही हम सम्मान करना चाहते हैं। हमारे कई  पत्रकार मित्रों से समझाने के बाद हम सम्मान करवाने तैयार हुए थे। एक बात और बता दें कि अगर हम भी अपने जमीर को किनारे रख दें तो हमारी छत्तीसगढ़ ही बल्कि देश के खेल जगत में इतनी ज्यादा पकड़ है कि हम अपना सम्मान हर माह नहीं बल्कि हर सप्ताह करवा सकते हैं और यह सिलसिला एक साल से भी ज्यादा समय तक चल सकता है, लेकिन हम जानते हैं कि सम्मान मिल जाने से कुछ नहीं होता है। किसी का भी सम्मान दिल से होना चाहिए। चाहे वह किसी भी तरह का ही सम्मान हो। आप काई भी काम करते हो, अगर आपके काम की तारीफ कोई सच्चे दिल से करता है तो उससे बड़ा सम्मान और कोई  नहीं हो सकता है, इसलिए हमारा ऐसा मानना है कि इंसान को काम पर भरोसा करना चाहिए और ऐसा कुछ करने का प्रयास करना चाहिए जिससे दूसरों का भला हो। दूसरों के लिए जीने वाला इंसान ही असल में इंसान होता है। अपने लिए तो सब जीते हैं। जब हमारी किसी खबर पर किसी खिलाड़ी का भला होता है, और वह फोन करके कहता है भाई साहब धन्यवाद आपकी खबर के कारण हमारा भला हुआ है तो हमें वही सबसे बड़ा सम्मान लगता है।

Read more...
Related Posts with Thumbnails

ब्लाग चर्चा

Blog Archive

मेरी ब्लॉग सूची

  © Blogger templates The Professional Template by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP