tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post5886363983107382257..comments2023-11-02T17:32:44.955+05:30Comments on राजतन्त्र: मंत्री तो बातें करते हैं, पर नक्सली हमला करते हैंराजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/08102718491295871717noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-20283641860900736572010-04-07T11:24:36.051+05:302010-04-07T11:24:36.051+05:30हत्यारों को पहचान पाना अब बड़ा मुश्किल है/ अक्सर वह...हत्यारों को पहचान पाना अब बड़ा मुश्किल है/ अक्सर वह विचारधारा की खाल ओढ़े मंडराते रहते है राजधानियों में या फिर गाँव-खेड़े या कहीं और../ लेते है सभाएं कि बदलनी है यह व्यवस्था दिलाना है इन्साफ.../ हत्यारे बड़े चालाक होते है/खादी के मैले-कुचैले कपडे पहन कर वे/ कुछ इस मसीहाई अंदाज से आते है/ कि लगता है महात्मा गांधी के बाद सीधे/ये ही अवतरित हुए है इस धरा पर/ कि अब ये बदल कर रख देंगे सिस्टम को/ कि अब हो जायेगी क्रान्ति/ कि अब होने वाला ही है समाजवाद का आगाज़/ ये तो बहुत दिनों के बाद पता चलता है कि/ वे जो खादी के फटे कुरते-पायजामे में टहल रहे थे/और जो किसी पंचतारा होटल में रुके थे हत्यारे थे./ ये वे ही लोग हैं जो दो-चार दिन बाद / किसी का बहता हुआ लहू न देखे/ साम्यवाद पर कविता ही नहीं लिख पते/ समलैंगिकता के समर्थन में भी खड़े होने के पहले ये एकाध 'ब्लास्ट'' मंगाते ही माँगते है/ कहीं भी..कभी भी..../ हत्यारे विचारधारा के जुमलों को/ कुछ इस तरह रट चुकते है कि/ दो साल के बच्चे का गला काटते हुए भी वे कह सकते है / माओ जिंदाबाद.../ चाओ जिंदाबाद.../ फाओ जिंदाबाद.../ या कोई और जिंदाबाद./ हत्यारे बड़े कमाल के होते हैं/ कि वे हत्यारे तो लगते ही नहीं/ कि वे कभी-कभी किसी विश्वविद्यालय से पढ़कर निकले/ छात्र लगते है या फिर/ तथाकथित ''फेक'' या कहें कि निष्प्राण-सी कविता के / बिम्ब में समाये हुए अर्थो के ब्रह्माण्ड में/ विचरने वाले किसी अज्ञातलोक के प्राणी./ हत्यारे हिन्दी बोलते हैं/ हत्यारे अंगरेजी बोल सकते हैं/ हत्यारे तेलुगु या ओडिया या कोई भी भाषा बोल सकते है/ लेकिन हर भाषा में क्रांति का एक ही अर्थ होता है/ हत्या...हत्या...और सिर्फ ह्त्या.../ हत्यारे को पहचानना बड़ा कठिन है/ जैसे पहचान में नहीं आती सरकारें/ समझ में नहीं आती पुलिस/उसी तरह पहचान में नहीं आते हत्यारे/ आज़ाद देश में दीमक की तरह इंसानियत को चाट रहे/ लोगों को पहचान पाना इस दौर का सबसे बड़ा संकट है/ बस यही सोच कर हम गांधी को याद करते है कि/ वह एक लंगोटीधारी नया संत/ कब घुसेगा हत्यारों के दिमागों में/ कि क्रान्ति ख़ून फैलाने से नहीं आती/ कि क्रान्ति जंगल-जंगल अपराधियों-सा भटकने से नहीं आती / क्रांति आती है तो खुद की जान देने से/ क्रांति करुणा की कोख से पैदा होती है/ क्रांति प्यार के आँगन में बड़ी होती है/ क्रांति सहयोग के सहारे खड़ी होती है/ लेकिन सवाल यही है कि दुर्बुद्धि की गर्त में गिरे/ बुद्धिजीवियों को कोई समझाये तो कैसे/ कि भाई मेरे क्रान्ति का रंग अब लाल नहीं सफ़ेद होता है/ अपनी जान देने से बड़ी क्रांति हो नहीं सकती/ और दूसरो की जान लेकर क्रांति करने से भी बड़ी/ कोई भ्रान्ति हो नहीं सकती./ लेकिन जब खून का रंग ही बौद्धिकता को रस देने लगे तो/ कोई क्या कर सकता है/ सिवाय आँसू बहाने के/ सिवाय अफसोस जाहिर करने कि कितने बदचलन हो गए है क्रांति के ये ढाई आखर जो अकसर बलि माँगते हैं/ अपने ही लोगों की/ कुल मिला कर अगर यही है नक्सलवाद/ तो कहना ही पड़ेगा-/ नक्सलवाद...हो बर्बाद/ नक्सलवाद...हो बर्बाद/ प्यार मोहब्बत हो आबाद/ नक्सलवाद...हो बर्बादgirish pankajhttps://www.blogger.com/profile/16180473746296374936noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-64904310343569192082010-04-07T09:07:56.372+05:302010-04-07T09:07:56.372+05:30आप सही कहते हैं। नेताओं ने और सुरक्षा बलों के अफसर...आप सही कहते हैं। नेताओं ने और सुरक्षा बलों के अफसरों ने इस अभियान को बहुत हलके रूप में लिया है। वे उस की जिम्मेदारी से वे यह कह कर बच नहीं सकते कि सुरक्षा चूक से यह हुआ। आप की चूक हुई और यहाँ कितने ही घर उजड़ गए।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-71013338709223991522010-04-07T08:50:46.643+05:302010-04-07T08:50:46.643+05:30हमारा मानना ये है कि आप खेल-कूद ही नहीं दूसरे मसलो...हमारा मानना ये है कि आप खेल-कूद ही नहीं दूसरे मसलों पर भी उतने ही प्रभावपूर्ण तरीके से अपनी अभिव्यक्ति करते हैं। हम आपको ये बताना चाहते हैं कि हम आपकी लेखनी की इसी धार के मुरीद हैं। हमारा मानना है कि इतने सारे खबरिया चैनल हैं, इतने सारे अखबार हैं लेकिन किसी ने भी वो बात नहीं पकड़ी जो आपने पकड़ी है। हम इसके लिये आपको धन्यवाद देना चाहते हैं। हमारा मानना ये है कि सरकार को जो भी कुछ करना है चुपचाप करे, पहले से हल्ला ना मचाये। हमको लगता है कि पहले से हल्ला मचाने से नक्सलवादी सतर्क हो जाते हैं। हम आपको ये बताना चाहते हैं कि हम भविष्य में भी आपसे इसी तरह के विचारोत्तेजक लेखों की उम्मीद करते हैं।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-38369415321056511562010-04-07T08:33:50.529+05:302010-04-07T08:33:50.529+05:30इस विषय पर आपके विचारों से सहमत!इस विषय पर आपके विचारों से सहमत!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-71665430643485376962010-04-07T08:29:57.616+05:302010-04-07T08:29:57.616+05:30बिल्कुल सही कहा आपने .......बिल्कुल सही कहा आपने .......Devhttps://www.blogger.com/profile/05009376638678868909noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-906208060476674822.post-44241855007783243622010-04-07T07:45:51.575+05:302010-04-07T07:45:51.575+05:30...बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति!!!...बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति!!!कडुवासचhttps://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com