जगन्नाथपुरी में भगवान के दर्शन के लिए पैसों की लूट
बड़े अरमानों के साथ पहली बार हम भी जगन्नाथपुरी में भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने पहुंचे थे। लेकिन वहां पहुंचने के बाद वहां का जो नजारा दिखा, उसने एक बार फिर से साबित कर दिया कि अपने देश में आस्था के नाम की किस कदर लूट मची हुई है। भगवान के दर्शन करने हैं तो ऐसा करना किसी गरीब के बस की बात नहीं है। पुरी में मंदिर परिसर में प्रवेश करने से पहले ही एक नहीं कई पंडे आपके पीछे पड़ जाते हैं। कोई कहता है कि पूजा करा देगा, कोई कहता है भगवान के दर्शन करा देगा। कोई प्रसाद दिलाने की बात कहता है तो कोई और काई बात कहता है। कई स्थानों पर रास्ते में दो लकड़ियां पकड़े एक पंडा पीठा थपथपता है और सीधे दस रुपए की मांग करता है। कोई फूल तो कोई और कुछ ले जाने की बात कहता है। अगर आप सावधान नहीं है तो यह मानकर चलिए कि मंदिर परिसर में ही आपकी जेब से न जाने कितने पैसे निकल जाएंगे। जगन्नाथ भगवान मंदिर के दरबार में पहुंचने पर मालूम पड़ता है कि दस से बारह बजे तक भगवान को आराम देने के नाम पर खुलेआम धंधा किया जाता है। कहने को भगवान आराम कर रहे हैं, पर पंडे सीधे-सीधे परिसर में खड़े लोगों से सौदा करते है कि एक आदमी के 50 रुपए लगेंगे आपको अंदर से दर्शन करवा दिए जाएंगे। कई लोग पैसे देकर दर्शन करने चले जाते हैं। इसी के साथ 25 रुपए की टिकट पर भी लाइन लगाकर दर्शन कराए जाते हैं।
हमें पैसे देकर भगवान के दर्शन करना ठीक नहीं लगा। हमारी कुछ पंडों से बहस भी हुई कि कैसे वे लोग भगवान के दर्शन के नाम पर आम लोगों को लुटने का काम कर रहे हैं। पर पंडों को कोई असर नहीं हो रहा था, वे तो बेशर्मी से कह रहे थे कि दर्शन करने हैं तो पैसे दें। खैर जब 12 बजे के बाद जगन्नााथ भगवान के कपाट खुले तो हमें यह देखकर गुस्सा आया कि पंडों ने यहां भी सौदा करना नहीं छोड़ा। भगवान के अंतिम दरवाजे पर एक बड़ा सा आधा पर्दा लगा दिया गया था कि ताकि भगवान के किसी को दूर से पूरे दर्शन न हो सके और लोग मजबूरी में पैसे देकर अंतिम दरवाजे से दर्शन करने आए।
सोचने वाली बात है कि आखिर अपने देश के ऐसे बड़े मंदिरों में क्या हो रहा है और क्यों कर शासन और प्रशासन आंखें बंद करके बैठा है। क्या अपने देश में भगवान के दर्शन करने के लिए पैसों का होना जरूरी है? क्या यह इतिहास की उसी बात तो साबित नहीं करता जिसमें छोटी जाति वालों को मंदिर में आना मना रहता है। आज मंदिर में आना मना ना सही, लेकिन एक तरह से भगवान के दर्शन के रास्ते में पैसों की दीवार तो खड़ी कर ही दी गई है। बड़े मंदिरों में चढ़ने वाले चढ़ावे का ही हिसाब नहीं रहता है, ऊपर से गरीबों को लुटने का भी काम हो रहा है। ऐसे मंदिरों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन कौन करेगा, ऐसा क्या अपना शासन और प्रशासन ऐसी हिम्मत दिखा सकता है, हमें नहीं लगता है कि वह ऐसा कर सकता है। एक सबसे बड़ी बात पुरी के मंदिर में यह भी नजर आई कि मंदिर में कैमरा, मोबाइल तक ले जाने मना है। इसका कारण हमें अंदर जाने पर मालूम हुआ कि अगर कोई कैमरा और मोबाइल ले जाएगा तो पंडों और मंदिर के कर्ताधर्ताओं की सारी पोल खुल जाएगी।
हमें इस बात का जरूर गर्व है कि अपने राज्य छत्तीसगढ़ के किसी भी बड़े मंदिर में ऐसी लुट नहीं होती है। यहां भी बड़े-बड़े मंदिर है लेकिन मजाल है कि यहां भगवान के दर्शन कराने के नाम पर कोई पैसा मांगे।
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बड़े अरमानों के साथ पहली बार हम भी जगन्नाथपुरी में भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने पहुंचे थे। लेकिन वहां पहुंचने के बाद वहां का जो नजारा दिखा, उसने एक बार फिर से साबित कर दिया कि अपने देश में आस्था के नाम की किस कदर लूट मची हुई है। भगवान के दर्शन करने हैं तो ऐसा करना किसी गरीब के बस की बात नहीं है। पुरी में मंदिर परिसर में प्रवेश करने से पहले ही एक नहीं कई पंडे आपके पीछे पड़ जाते हैं। कोई कहता है कि पूजा करा देगा, कोई कहता है भगवान के दर्शन करा देगा। कोई प्रसाद दिलाने की बात कहता है तो कोई और काई बात कहता है। कई स्थानों पर रास्ते में दो लकड़ियां पकड़े एक पंडा पीठा थपथपता है और सीधे दस रुपए की मांग करता है। कोई फूल तो कोई और कुछ ले जाने की बात कहता है। अगर आप सावधान नहीं है तो यह मानकर चलिए कि मंदिर परिसर में ही आपकी जेब से न जाने कितने पैसे निकल जाएंगे। जगन्नाथ भगवान मंदिर के दरबार में पहुंचने पर मालूम पड़ता है कि दस से बारह बजे तक भगवान को आराम देने के नाम पर खुलेआम धंधा किया जाता है। कहने को भगवान आराम कर रहे हैं, पर पंडे सीधे-सीधे परिसर में खड़े लोगों से सौदा करते है कि एक आदमी के 50 रुपए लगेंगे आपको अंदर से दर्शन करवा दिए जाएंगे। कई लोग पैसे देकर दर्शन करने चले जाते हैं। इसी के साथ 25 रुपए की टिकट पर भी लाइन लगाकर दर्शन कराए जाते हैं।
हमें पैसे देकर भगवान के दर्शन करना ठीक नहीं लगा। हमारी कुछ पंडों से बहस भी हुई कि कैसे वे लोग भगवान के दर्शन के नाम पर आम लोगों को लुटने का काम कर रहे हैं। पर पंडों को कोई असर नहीं हो रहा था, वे तो बेशर्मी से कह रहे थे कि दर्शन करने हैं तो पैसे दें। खैर जब 12 बजे के बाद जगन्नााथ भगवान के कपाट खुले तो हमें यह देखकर गुस्सा आया कि पंडों ने यहां भी सौदा करना नहीं छोड़ा। भगवान के अंतिम दरवाजे पर एक बड़ा सा आधा पर्दा लगा दिया गया था कि ताकि भगवान के किसी को दूर से पूरे दर्शन न हो सके और लोग मजबूरी में पैसे देकर अंतिम दरवाजे से दर्शन करने आए।
सोचने वाली बात है कि आखिर अपने देश के ऐसे बड़े मंदिरों में क्या हो रहा है और क्यों कर शासन और प्रशासन आंखें बंद करके बैठा है। क्या अपने देश में भगवान के दर्शन करने के लिए पैसों का होना जरूरी है? क्या यह इतिहास की उसी बात तो साबित नहीं करता जिसमें छोटी जाति वालों को मंदिर में आना मना रहता है। आज मंदिर में आना मना ना सही, लेकिन एक तरह से भगवान के दर्शन के रास्ते में पैसों की दीवार तो खड़ी कर ही दी गई है। बड़े मंदिरों में चढ़ने वाले चढ़ावे का ही हिसाब नहीं रहता है, ऊपर से गरीबों को लुटने का भी काम हो रहा है। ऐसे मंदिरों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन कौन करेगा, ऐसा क्या अपना शासन और प्रशासन ऐसी हिम्मत दिखा सकता है, हमें नहीं लगता है कि वह ऐसा कर सकता है। एक सबसे बड़ी बात पुरी के मंदिर में यह भी नजर आई कि मंदिर में कैमरा, मोबाइल तक ले जाने मना है। इसका कारण हमें अंदर जाने पर मालूम हुआ कि अगर कोई कैमरा और मोबाइल ले जाएगा तो पंडों और मंदिर के कर्ताधर्ताओं की सारी पोल खुल जाएगी।
हमें इस बात का जरूर गर्व है कि अपने राज्य छत्तीसगढ़ के किसी भी बड़े मंदिर में ऐसी लुट नहीं होती है। यहां भी बड़े-बड़े मंदिर है लेकिन मजाल है कि यहां भगवान के दर्शन कराने के नाम पर कोई पैसा मांगे।