कामनवेल्थ में खेलना सपने जैसा
कामनवेल्थ के पैरालंपिक की तैराकी में खेलकर लौटीं प्रदेश की अंजनी पटेल को कामनवेल्थ में खेलना सपने जैसा लगता है। वह कहती हैं कि उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि उनको कामनवेल्थ जैसी बड़ी स्पर्धा में खेलने का मौका मिलेगा। वह कहती हैं कि अगर मुङो सुविधाएं मिलती तो मैं जरूर वहां से पदक लेकर लौटतीं।
दिल्ली से लौटने के बाद यहां पर चर्चा करते हुए अंजनी ने बताया कि वह कामनवेल्थ की तैराकी के ५० मीटर के साथ १०० मीटर की फ्रीस्टाइनल में खेलीं। यहां उनको दोनों वर्गों में आठवां स्थान मिला। पूछने पर वह कहती हैं कि उनको पदक इसलिए नहीं मिल सका क्योंकि अपने राज्य में तैराकी की उतनी सुविधाएं नहीं हैं। वह बताती हैं कि वह जांजगीर-चांपा के एक छोटे से गांव बलौदा के गरीब परिवार से संबंध रखने वाली खिलाड़ी हैं। वह बताती हैं कि उनको अभ्यास करने के लिए बिलासपुर में रहना पड़ता है। बकौल अंजनी उनको बिलासपुर के जिलाधीश सोनमणी बोरा से बहुत मदद मिली है जिसकी वजह से उनका कामनवेल्थ में खेलने का सपना पूरा हुआ। वह बताती हैं कि उनको श्री बोरा की वजह से हर माह दो हजार पांच सौ रुपए की खेलवृत्ति मिलती है।
अंजनी पूछने पर कहती हैं कि जिन स्थानों पर उनके जैसे खिलाड़ी रहते हैं वह सरकार को सुविधाएं दिलानी चाहिए। उनको इस बात का भी मलाल है कि राज्य के विकलांग तैराकी संघ को अब तक राज्य सरकार ने मान्यता नहीं मिली है। वह बताती हैं कि अब तो राज्य में पैरालंपिक संघ भी बन गया है ऐसे में सरकार को हमारे संघ को मान्यता देनी चाहिए। वह बताती हैं कि उनके जिले जांजगीर में ही ६० से ज्यादा विकलांग तैराक हैं। अंजनी ने पूछने पर बताया कि वह २००५ से तैराकी कर रही हैं और कई बार राष्ट्रीय स्पर्धाओं में खेल चुकी हैं। वह कहती हैं कि उनकी जैसी खिलाडिय़ों को अगर राज्य सरकार से सुविधाएं मिले तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हम राज्य का नाम रौशन कर सकती हैं। उन्होंने पूछने पर कहा कि उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनको कामनवेल्थ में खेलने का मौका मिलेगा।
दिल्ली से लौटने के बाद यहां पर चर्चा करते हुए अंजनी ने बताया कि वह कामनवेल्थ की तैराकी के ५० मीटर के साथ १०० मीटर की फ्रीस्टाइनल में खेलीं। यहां उनको दोनों वर्गों में आठवां स्थान मिला। पूछने पर वह कहती हैं कि उनको पदक इसलिए नहीं मिल सका क्योंकि अपने राज्य में तैराकी की उतनी सुविधाएं नहीं हैं। वह बताती हैं कि वह जांजगीर-चांपा के एक छोटे से गांव बलौदा के गरीब परिवार से संबंध रखने वाली खिलाड़ी हैं। वह बताती हैं कि उनको अभ्यास करने के लिए बिलासपुर में रहना पड़ता है। बकौल अंजनी उनको बिलासपुर के जिलाधीश सोनमणी बोरा से बहुत मदद मिली है जिसकी वजह से उनका कामनवेल्थ में खेलने का सपना पूरा हुआ। वह बताती हैं कि उनको श्री बोरा की वजह से हर माह दो हजार पांच सौ रुपए की खेलवृत्ति मिलती है।
अंजनी पूछने पर कहती हैं कि जिन स्थानों पर उनके जैसे खिलाड़ी रहते हैं वह सरकार को सुविधाएं दिलानी चाहिए। उनको इस बात का भी मलाल है कि राज्य के विकलांग तैराकी संघ को अब तक राज्य सरकार ने मान्यता नहीं मिली है। वह बताती हैं कि अब तो राज्य में पैरालंपिक संघ भी बन गया है ऐसे में सरकार को हमारे संघ को मान्यता देनी चाहिए। वह बताती हैं कि उनके जिले जांजगीर में ही ६० से ज्यादा विकलांग तैराक हैं। अंजनी ने पूछने पर बताया कि वह २००५ से तैराकी कर रही हैं और कई बार राष्ट्रीय स्पर्धाओं में खेल चुकी हैं। वह कहती हैं कि उनकी जैसी खिलाडिय़ों को अगर राज्य सरकार से सुविधाएं मिले तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हम राज्य का नाम रौशन कर सकती हैं। उन्होंने पूछने पर कहा कि उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनको कामनवेल्थ में खेलने का मौका मिलेगा।
5 टिप्पणियाँ:
सच, एक सपने सा ही रहा होगा...
दुर्गा नवमी एवम दशहरा पर्व की हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं.
रामराम.
दुर्गा नवमी एवम दशहरा पर्व की हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं.
रामराम.
उसके बारे में जानकर अच्छा लगा !
दुर्गा नवमी एवम दशहरा पर्व की हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाए॥ बिल्कुल सत्य है यदि किसी को और मदद मिल जाय तो उतने ही उत्साह व ऊर्जा के साथ कामयाबी हासिल कर सकता है।
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