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रविवार, जुलाई 05, 2009

क्या बलात्कार के लिए ऐसी सजा ठीक है

बहुत समय से इस सोच में थे कि इस बात को लिखा जाए कि नहीं। लेकिन जिस तरह से लगातार बलात्कार की घटनाओं में इजाफा होते जा रहा है और इस पर विराम नहीं लग रहा है। तब ऐसे में सोचा कि चलो कम से कम ब्लाग बिरादरी के सामने तो इस बात को रखा ही जा सकता है। हमें मालूम है कि हम यहां पर जो लिखने वाले हैं उसको संविधान में कभी स्थान नहीं मिल सकता है, पर इंसानी सोच का क्या किया जाए। जब समाज में अपराध होते हैं तो उनको रोकने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय सुझाने का काम करते हैं। बलात्कार के मामले में हम एक ऐसी सजा के बारे में जानते हैं जो सजा एक बलात्कारी को एक महिला थानेदार ने दी थी। इस सजा को मानवीय तो नहीं कहा जा सकता है, लेकिन सोचने वाली बात यह भी है कि क्या बलात्कार मानवीय है। ऐसे में हमको तो उस महिला थानेदार ने जो सजा दी थी उसमें कोई बुराई नहीं लगी। अगर कोई बलात्कारी ऐसी सजा से ही बलात्कार से तौबा करता है तो ऐसी सजा देने में क्या बुराई है।

हमारे एक मित्र पुलिस में हैं। उन्होंने काफी पहले हमें एक बात बताई थी कि वे रायपुर जिले के एक ग्रामीण थाने में पदस्थ थे। वहां के थाने की प्रभारी एक महिला थीं। उनके सामने जब बलात्कार का मामला आया तो उनको उस बलात्कारी पर काफी गुस्सा आया। गुस्सा आने का सबसे बड़ा कारण यह भी था उस बलात्कारी ने एक काफी कम उम्र की मासूम से बलात्कार किया था। ऐसे में उन महिला थानेदार ने उस बलात्कारी को ऐसा सबक सिखाने की ठानी ताकि उसकी सात पुस्ते भी बलात्कार जैसे अपराध से कौसों दूर भागे। उन महिला थानेदार ने सिपाहियों को आदेश दिया कि उस आरोपी को नंगा कर दिया जाए। उसे नंगा करने के बाद पहले तो उस आरोप के लिंग पर महिला थानेदार से खुद ही डंडों की बरसात कर दी, फिर एक रस्सी से उसके लिंग में एक ईट बंधवा दी। आरोपी को जब यह सजा मिली तो उसके हौसले पस्त हो गए, वह बार-बार फरियाद कर रहा था कि मैडम मुझे छोड़ दीजिए, मैं कभी ऐसा नहीं करूंगा। लेकिन उन महिला थानेदार ने यह कहते हुए उस पर रहम नहीं किया कि क्या तुमने उस मासूम पर रहम किया था। मासूम कलियों को मसलने वाले तुम जैसे दरिंदों के लिए यही सजा है।

इस सजा का नतीजा यह निकला कि उस गांव में यह बात फैल गई कि थानेदार काफी सक्त हैं। ऐसे में अपराधी कोई भी अपराध करने से घबराने लगे। वैसे तो अपने देश में पुलिस वालों की छवि साफ नहीं हैं, पर कुछ पुलिस वाले वास्तव में इतने अच्छे होते हैं जो जनता और समाज के भले के लिए काम करते हैं। भले उन महिला थानेदार का कृत्य मानवीय नहीं था। लेकिन उस महिला थानेदार ने अगर ऐसा नहीं किया होता तो जरूर वह बलात्कारी कोर्ट से छूट जाता और न जाने फिर कितनी मासूमों को अपना शिकार बनाता। हो सकता है यह बात अगर मानवाधिकार के कार्यकर्ताओं तक पहुंचती तो कोई ऐसा कर्ताधर्ता निकल आता जो यह कहते हुए महिला थानेदार को ही कटघरे में खड़े कर देता कि आप कौन होती हैं सजा तय करने वाली। एक यही बात है जो अपराधियों को हौसला देने का काम करती है। पुलिस अगर सच में समाज को सुधारने के लिए उन महिला थानेदार की तरह काम करे तो पूरा समाज ऐसे पुलिस वालों का साथ देगा। इसमें कोई दो मत नहीं है कि ज्यादातर मामलों में बलात्कार करने वाले बच जाते हैं।

कुछ मुस्लिम देशों में तो बलात्कार की काफी कड़ी सजा है। एक मुस्लिम देश के बारे में बताया जाता है कि बलात्कार करने वालों का खुले आम बाजार में लिंग ही काट दिया जाता है। हम जानते हैं कि भारतीय संविधान में कभी ऐसा हो भी नहीं सकता है। लेकिन बलात्कार करने वालों के लिए कोई तो ऐसी सजा होनी ही चाहिए जिससे उनमें इतना खौफ रहे कि वे बलात्कार जैसा घिनौना अपराध करने से पहले एक बार नहीं हजारों बार सोचें। बार-बार बलात्कार करने वालों के लिए फांसी की सजा की बात की जाती है। फांसी की सजा संभव नहीं है, तो कोई तो ऐसी सजा होनी ही चाहिए, जिसके कारण खौफ पैदा हो। लेकिन बलात्कार करने वाले जानते हैं कि साक्ष्य के अभाव में उनका बच जाना आम बात है। जब किसी इंसान को इस बात का डर ही नहीं रहेगा कि उनको अपराध करने की सजा मिलेगी तो वह अपराध करने से क्यों कर बाज आएगा। हम कोई इस बात की वकालत नहीं कर रहे हैं कि बलात्कार करने वालों को उन महिला थानेदार ने जैसी सजा दी थी वैसी देनी चाहिए, लेकिन कुछ तो होना चाहिए, जिससे समाज के इस कैंसर से मुक्ति मिल सके।

ब्लागर मित्र इस बारे में क्या सोचते हैं, अपने विचारों से जरूर अवगत कराएं।

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