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शुक्रवार, अक्तूबर 26, 2012

सीनियर हो गए हैं अब सर , चाहते हैं रहे जूनियरों में डर

आज मीडिया से लेकर हर क्षेत्र में सीनियर अब जूनियरों के लिए महज सर बन गए हैं और सर भी ऐसे जो चाहते हैं कि जूनियरों में उनका डर बना रहे। जूनियरों को सीनियरों ने आज कल अपनी बपौती मान लिया है और उनको प्रताड़ित करना तो मानो अपना अधिकार मानते हैं। हमें यह सब देखकर बहुत अफसोस होता है। हमें आज भी पहले की तरह अपने जूनियरों से सर कहलाना कभी पसंद नहीं आया। सर कहने वालों को साफ कह देते हैं कि अगर चाहते हैं कि हमसे बात करना और कुछ सीखना है तो पहले तो हमें सर कभी मत कहना, दूसरे कभी गुड मार्निंग जैसे शब्द भी प्रयोग मत करना। कहना तो सुप्रभात, नमस्कार या फिर जय हिंद कहें। क्यों कर हम हिन्दी में बोलने से कतराते हैं। हमारी भारतीय संस्कृति पूरी तरह से पश्चिम के पीछे भागने के कारण समाप्त होती जा रही है। हमें याद है, हमने कभी अपने सीनियरों को सर नहीं कहा। एक समय था जब सीनियरों को उम्र के हिसाब से संबोधित करते थे, ज्यादातर को भईया ही कहा जाता था। आज भी हम सीनियरों के साथ अपने बीट के अधिकारियों से बात करते हैं तो उनको कभी सर नहीं कहते हैं, भाई साहब कहकर ही बात करते हैं। अपने दफ्तर में अपने से सीनियरों को भईया या फिर चाचा, मामा, काका जैसे संबोधन के साथ सम्मान देना भारतीय परंपरा रही है, लेकिन अब इसका अंत होते जा रहा है। आज लोग अपने को रिश्तों में बांधना नहीं चाहते हैं। इसका कारण यह है कि आज लोगों को रिश्ते निभाना ही नहीं आता है। पहले लोग अपने से जूनियरों को बड़े प्यार से सिखाते थे, पर आज सिखाना तो दूर की बात है, उनके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं, मानो उनका जूनियर होना गुनाह है। ऐसे लोगों पर हमको तरस आता है और सोचते हैं कि अगर यही सब उनके साथ हुआ होता तो उनको कैसा लगता। हर इंसान अपने क्षेत्र में पहले जूनियर होता है, इस बात को किसी को भुलना नहीं चाहिए। जूनियरों के साथ नरमी और प्यार से ही पेश आने से सम्मान मिलता है। वरना तो जूनियर दफ्तर के बाहर जाकर अपनी पूरी भड़ास सबके सामने निकालते हैं और सीनियरों को क्या-क्या नहीं कहते हैं, शायद आज अपने को सर कहलाना पसंद करने वाले सीनियर जानते नहीं हंै। खैर अपनी-अपनी सोच है। जिनको सर कहलाने में अच्छा लगता है, वे सर कहलाते रहे और बीच सड़क सबके सामने बेइज्जत होते रहे, वैसे ऐसे लोग हैं भी इसी लायक। अगर वे लायक होते तो जूनियरों को भी अपनी तरह लायक बनाने का काम करते न कि नालायक बनाने के रास्ते पर डालते। हमने कई बार जूनियरों को सीनियर से व्यहवार से दुखी होकर आंसू भी बहाते देखा है। हमें उस समय बहुत अफसोस होता है, और जूनियरों को सम­ााते हैं, कोई बात नहीं है, तुम अपना काम करो, तुम अच्छा काम कर रहे हो और गलती काम करने वालों से ही होती, निक्कमे कभी गलती करते नहीं है, क्योंकि वो काम ही कहा करते हैं। ऐसे में जब किसी जूनियर के चेहरे पर मुस्कान आती है तो हमारे दिल को बड़ा सकुन मिलता है। यह बात तय है कि आपको सम्मान पाना है तो जूनियरों का भी सम्मान करना सीखना होगा। वरना.... ।

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