राजनीति के साथ हर विषय पर लेख पढने को मिलेंगे....

रविवार, फ़रवरी 28, 2010

दो सौ साल से जली ही नहीं होली

पूरे देश में एक तरफ जहां होली की उमंग का माहौल है, ऐसे में छत्तीसगढ़ में रायपुर जिले के छुरा विकासखंड में तीन गांव ऐसे हैं जहां पर होली को लेकर किसी में कोई उत्साह ही नहीं है। इन गांवों में पिछले दो शताब्दी से होलिका दहन ही नहीं हुआ है। यहां के ग्रामीण अपने पुर्वजों की परंपरा को कायम रखे हुए हैं। होलिका दहन न करने का कोई स्पष्ट कारण तो कोई नहीं जानता है, पर गांव में एक स्वयंभू शिवलिंग को इसका एक कारण जरूर बताया जाता है।

आज पूरे देश में होलिका दहन की तैयारी है। देश के हर गांव से लेकर शहरों में रात को होलिका दहन होगा। लेकिन छत्तीसगढ़ के तीन गांवों में होलिका दहन नहीं किया जाएगा। रायपुर जिले के छुरा विकासखंड के ये गांव टोनहीडबरी, नरत्तोरा और नवगई ऐसे गांव हैं जहां पर होली को लेकर कोई उमंग नहीं है। एक समय में तीन गांवों की सरहद एक ही थी। मुख्य गांव जहां पर दो सौ साल से एक डबरी आबाद है और संभवत: इसी डबरी के कारण इस गांव का नाम टोनहीडबरी पड़ा है, वहां पर एक स्वयंभू शिवलिंग है। इस शिवलिंग के कारण ही इस गांव को छत्तीसगढ़ का उज्जैन भी कहा जाता है। यह शिवलिंग यहां पर राजतंत्र के जमाने से है। गांव वालों की माने तो इस शिवलिंग के कारण यहां पर दो शताब्दी से होलिका दहन न करने की परंपरा है। इस परंपरा को गांव वालों के पुर्वजों ने बनाया था जिसे आज भी सभी ने एकमत से जिंदा रखा है।

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शनिवार, फ़रवरी 27, 2010

मल्लिका शेरावत तो सबसे गरीब हैं

मल्लिका शेरावत का एक बयान आया है कि वह पारदर्शी बिकनी भी पहन सकती हैं। उनके इस बयान के बाद हमें अपने राज्य में एक हास्य कवि सुरेन्द्र दुबे की एक बात याद आ गई जो उन्होंने एक कवि सम्मेलन में कहीं थी। उन्होंने बताया था कि इस देश में अगर कोई सबसे ज्यादा गरीब है तो वह मल्लिका शेरावत हैं।

दुबे जी ने बताया कि उनके पास एक गरीब महिला आई और कहने लगी कि बेटा में तो इतनी गरीब हूं कि एक साड़ी के दो टुकड़े करके पहनती हूं।

दुबे जी ने उन माता जी को जवाब दिया कि- माता जी आप कहां गरीब हैं आपसे ज्यादा गरीब तो अपनी मल्लिका शेरावत हैं जो एक साड़ी के आठ टुकड़े करके पहनती हैं।

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शुक्रवार, फ़रवरी 26, 2010

जब याद आती है वो होली



जब भी आती है रंग-बिरंगी होली
हमें याद आती है एक सूरत भोली।।

थी जो कभी हमारी हमजोली
एक गांव की वो प्यारी गोरी।।

दिल कर गई थी जो हमारा चोरी
चहकते हुए थी वो हमसे बोली।।

याद रखना ये पहली होली
जो तुमने हम संग है खेली।।

भूल न जाना गुलाल की हथेली
प्यारी-प्यारी ये हमारी अठखेली।।

याद कर लेना जब भी आए होली
मेरे प्यारे प्रियतम मेरे हमजोली।।

नोट: यह कविता भी हमारी 20 साल पुरानी डायरी की है।

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गुरुवार, फ़रवरी 25, 2010

मुझे तो चंदा से भी नफरत हो गई है

एक दिन प्रेस क्लब में बैठे थे कि अपने अनिल पुसदकर जी ने एक सिंधी भाई का किस्सा सुनाया कि उनको कैसे चंदा से भी नफरत हो गई थी।

बकौल अनिल जी, उनके घर के पास में एक सिंधी भाई रहते थे। एक दिन उनसे बात हुई तो उन्होंने बताया कि उनको तो यार उस दूर के चंदा मामा से भी नफरत हो गई है। चंदा मामा से नफरत कैसे? पूछने पर उन्होंने यह राज खोला कि कैसे उनको चंदा मामा से नफरत हो गई है।

दरसअल अपने सिंधी भाई चंदा से परेशान थे। चंदा यानी चंदा लेने आने वालों से। होली के लिए चंदा, गणेश के लिए चंदा, दुर्गा के लिए चंदा और न जाने कितने ऐेसे त्यौहार हैं जिनके लिए लोग मुंह उठाए चंदा मांगने चले आते हैं। हर माह किसी ने किसी बात के लिए लोग चंदा मांगने पहुंच जाते थे।
सिंधी भाई कहते हैं कि चंदा, चंदा सुनकर मेरे तो जहां कान पक गए हैं, वहीं अब उस दूर के चंदा से भी नफरत हो गई है।

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बुधवार, फ़रवरी 24, 2010

राजधानी में ओले-ओले...







हमारे छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कल शाम को अचानक मौसम खराब हो गया और जोर की आंधी के साथ पहले बारिश हुई, इसके बाद ओले पडऩे लगे। हमने अपने मोबाइल से ये चंद तस्वीरें खींचीं हैं जो पेश हैं।

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मंगलवार, फ़रवरी 23, 2010

राजतंत्र के जन्म दिन के साथ हो गई 1100 पोस्ट

चलिए हमने अपने वादे के मुताबिक राजतंत्र के जन्म दिन पर आज अपनी पोस्ट का आंकड़ा 1100 तक पहुंचा ही दिया। हमें मालूम है कि इसके पहले संभवत: एक और ब्लाग अदालत ने एक साल में 1100 पोस्ट का आंकड़ा प्राप्त किया था। लेकिन हमने 1100 का आंकड़ा एक ब्लाग में नहीं बल्कि अपने दो ब्लाग में प्राप्त किया है।

ब्लाग जगत में हमने पिछले साल 3 फरवरी को खेलगढ़ और राजतंत्र के माध्यम से कदम रखा था। खेलगढ़ में इसी दिन से लिखने की शरुआत की थी लेकिन राजतंत्र में हमने पहली पोस्ट आज के दिन यानी 23 फरवरी को लिखी थी। आज हमारे इस दूसरे ब्लाग के जन्मदिन के साथ ही हमारी 1100 पोस्ट पूरी हो गई है। आशा है हमें ब्लाग बिरादरी के साथ पाठकों का प्यार इसी तरह से मिलते रहेंगे।

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सोमवार, फ़रवरी 22, 2010

राजतंत्र के जन्म दिन पर कल हो जाएगी 1100 पोस्ट पूरी

ब्लाग जगत में हमारे ब्लाग राजतंत्र का एक साल 23 फरवरी को पूरा होने वाला है। इसी के साथ राजतंत्र और खेलगढ़ को मिलाकर हमारी 1100 पोस्ट भी पूरी हो जाएगी। इस समय जहां राजतंत्र 400 के करीब है, वहीं खेलगढ़ 700 के पार हो गया है।

ब्लाग जगत में हमने पिछले साल अपने ब्लाग
खेलगढ़ और राजतंत्र के माध्यम से फरवरी में कदम रखा था। खेलगढ़ में लेखन की शुरुआत 3 फरवरी से हुई थी, जब राजतंत्र में हमने पहला लेख 23 फरवरी को लिखा था। खेलगढ़ के जन्मदिन तक हमने 1000 पोस्ट पूरी कर ली थी, अब जबकि एक दिन बाद राजतंत्र का जन्म दिन आने वाला है तो हमारी पोस्ट का आंकड़ा 1100 पहुंचने वाला है। खेलगढ़ को एक साल में काफी कम पाठकों ने पसंद किया है। इसका कारण हमें यही लगता है कि लोगों की रूचि खेलों में ज्यादा नहीं है। बहरहाल हमने इस ब्लाग को अपने राज्य के खेलों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने के लिए प्रारंभ किया था, और हम अपने प्रयास को लगातार जारी रखेंगे, फिर हमें इसमें चाहे गिनती के पाठक मिलते रहे। खेलगढ़ में हमने एक साल में आज की तारीख तक 713 पोस्ट लिखी है और इसमें हमें 179 टिप्पणियां मिली हैं। इसका सक्रियता क्रमांक 217 है। इस ब्लाग को 5500 से ज्यादा पाठक मिले हैं।

दूसरी तरफ हमारे ब्लाग राजतंत्र को बहुत ज्यादा सफलता मिली है। यह ब्लाग चिट्ठा जगत के सक्रियता क्रमांक में एक बार 36 नंबर पर पहुंच चुका है। कल की तारीख में यह 39वें स्थान पर था। इस ब्लाग में हमें 31 हजार से ज्यादा पाठक मिले हैं। इसमें लिखी गई कल तक लिखी गई 383 पोस्ट में 3744 टिप्पणियां मिली हैं। यह हमारे ब्लागर मित्रों और पाठकों का ही प्यार है जिसने राजतंत्र को इस मुकाम पर पहुंचाया है। आपका स्नेह और प्यार इसी तरह मिलता रहा तो हम वादा करते हैं कि हम नियमित इसी तरह से लिखते रहेंगे।

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रविवार, फ़रवरी 21, 2010

ऐसी दीवानगी देखी नहीं कहीं....



नेताजी स्टेडियम में मुख्यमंत्री एकादश और विधानसभा अध्यक्ष एकादश के बीच मैच प्रारंभ होने से पहले जब भारतीय टीम की खिलाडिय़ों ने मैदान का एक चक्कर लगाया तो सबके मुंह ने यही बात निकली कि हॉकी के एक प्रदर्शन मैच में इतने दर्शक। वास्तव में यह हॉकी खिलाडिय़ों के लिए सुखद और आश्चर्य जनक था कि हॉकी का एक प्रदर्शन मैच देखने के लिए दर्शक टूट पड़े थे। हॉकी खिलाडिय़ों का कहना है कि ऐसी दीवानगी उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थी।

हरिभूमि की पहल पर राजधानी रायपुर के नेताजी स्टेडियम में आयोजित मैच में जब खिलाडिय़ों के कदम पड़े तो हर दर्शक खिलाडिय़ों की एक ङालक पाने के लिए बेताब हो गए। ऐसे में खिलाडिय़ों से मैदान का एक चक्कर लगाने के लिए कहा गया। जैसे ही खिलाडिय़ों ने मैदान में चक्कर लगाना प्रारंभ किया तो खिलाड़ी जहां से भी गुजरे वहां पर उनका स्वागत तालियों से किया गया। टीम की सभी खिलाडिय़ों ने एक स्वर में कहा उनको यहां आने से पहले न तो इस बात की कल्पना थी कि यहां पर उनका ऐसा ऐतिहासिक स्वागत होगा और उनका एक प्रदर्शन मैच देखने के लिए इतने ज्यादा दर्शक आ सकते हैं।

टीम के कोच एमके कौशिक, वासु थपलियाल,भारतीय टीम की कप्तान सुरिन्द्रर कौर, सबा अजुंम, ममता खरब के साथ ज्यादातर खिलाडिय़ों ने कहा कि वास्तव में छत्तीसगढ़ ने हमारा जो सम्मान किया है, उसको हम लोग ताउम्र नहीं भूल सकते हैं। इन्होंने कहा कि उनके वास्तव में अब हॉकी स्टिक पकडऩे का मलाल नहीं रहेगा। यहां पर यह बताना लाजिमी होगा कि मैच का आयोजन करने वाले हरिभूमि के प्रबंध संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने सुबह को ही प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में कहा था कि यहां पर मैच के आयोजन का मसकद महज खिलाडिय़ों को सम्मान राशि देना नहीं बल्कि उनको उनके दिल में यह बात लानी है कि वे यहां से ऐसी यादें लेकर जाए और वे यह कभी महसूस न करें कि उन्होंने हॉकी स्टिक क्यों पकड़ी थी। खिलाडिय़ों की खुशी छुपाए नहीं छुपी रही थी।

दर्शकों ने लिया मैच का भरपूर आनंद

मैच में दर्शकों ने मैच का भरपूर आनंद लिया। खिलाडिय़ों के अच्छे खेल पर उनको दाद मिलती रही। इस बात में कोई दो मत नहीं है कि खिलाडिय़ों को दाद की भूख रहती है। मैच के अंत में यही बात राज्यपाल शेखर दत्त ने भी कही कि खिलाडिय़ों को दाद से ही प्रोत्साहन मिलता है।


मैच की कमेंट्री ने बांध शमा

मैच के दौरान पहले ५ मिनट के खेल के बाद जाने-माने केमेट्रेटर मिर्जा मसूद के साथ गुरमीत सिंह सलूजा ने कमेंट्री करके सबका मन मोह लिया। इनकी कमेंट्री ने दर्शकों को विश्व कप के साथ और कई अंतरराष्ट्रीय मैचों की कमेंट्री की याद दिला दी। मैच में स्टेडियम में बैठने की जगह नहीं थी, कई दर्शकों ने खड़े-खड़े मैच देखा। कोई भी दर्शक देश के राष्ट्रीय खिलाडिय़ों को खेलते देखने का मौका नहीं गंवाना चाहता था।


आतिशीबाजी भी हुई

खिलाडिय़ों के मैदान में आने के साथ ही अतिथियों के भी मैदान में आने के समय जहां जोरदार आतिशीबाजी की गई, वहीं जब खिलाडिय़ों का सम्मान किया जा रहा था,उस समय भी जोरदार आतिशीबाजी ने सबका मन मोह लिया।


छत्तीसगढ़ की खिलाड़ी मैच खेलकर खुश

छत्तीसगढ़ की १० खिलाडिय़ों रेणुका राजपूत, पूनम सोना, शोभा वर्टी, योगिता, लावेन पूजा राजपूत , वर्षा देवांगन, सेवंती कुसरे, माया, प्रियंका को मैच में दोनों टीमों के साथ मिलकर मैच खेलने का मौका मिला। इनको यकीन ही नहीं हो रहा था कि उनको भारतीय टीम की सितारा खिलाडिय़ों के साथ राष्ट्रीय कोच की मार्गदर्शन में खेलने का मौका मिल गया है। मैच के बाद जब उनको सम्मान राशि मिली तो उनकी खुशी दोगुनी हो गई।

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शुक्रवार, फ़रवरी 19, 2010

भारतीय हॉकी के सितारे छत्तीसगढ़ की जमीं पर

भारतीय महिला हॉकी टीम के २२ सितारों के कदम छत्तीसगढ़ की जमीं पर २० फरवरी को पडऩे वाले हैं। इन सितारा खिलाडिय़ों के साथ छत्तीसगढ़ की १० सितारा खिलाडिय़ों को मिलाकर दो टीमें बनाई गईं हैं। इन टीमों को मुख्यमंत्री एकादश और विधानसभा अध्यक्ष एकादश का नाम दिया गया है। मुख्यमंत्री एकादश की कप्तान छत्तीसगढ़ की सबा अंजुम को बनाया गया है, जबकि विधानसभा अध्यक्ष एकादश की कप्तान भारतीय टीम की कप्तान सुरिन्द्रर कौर होंगी। मैच २० फरवरी को नेताजी स्टेडियम में दोपहर ३।३० बजे होगा। यहां भारतीय टीम के सितारों खिलाडिय़ों की उपलब्धियों पर एक नजर डालते हैं।

सुरिन्द्रर कौर: भारतीय टीम की कप्तान और अर्जुन पुरस्कार प्राप्त अम्बाला की इस खिलाड़ी ने पहली बार भारतीय टीम में १९९८ में स्थान बनाया और बैंकाक के एशियाड में खेलीं। पहली बार में ही उनके हिस्से में रजत पदक आया। यहां ने इसका सफर अब तक जारी है। सुरिन्द्रर कौर के खाते में इसके बाद २००० में सब जूनियर एशिया कप में स्वर्ण, इसी साल ओलंपिक क्वालीफाइंग स्पर्धा, अगले साल फिर से ओलंपिक क्वालीफाइंग स्पर्धा। २००४ में एफ्रो एशियन खेलों में स्वर्ण पदक, २००४ में सीनियर एशिया कप में स्वर्ण पदक, २००६ में दोहा के एशियाड में कांस्य पदक और इसी साल कामनवेल्थ के साथ सीनियरक विश्व कप में खेलने का मौका। २००८ में ओलंपिक क्वालीफाइंग मैच। पिछले साल २००९ में बैंकाक के एशियाड में रजत पदक मिला। सुरिन्द्रर को पिछले साल ही अर्जुन पुरस्कार भी मिला।

सबा अंजुम:- छत्तीसगढ़ की यह खिलाड़ी २००० से भारतीय टीम की शान हैं। पहले साल सब जूनियर एशिया कप में स्वर्ण पदक जीता। २००१ में अर्जेंटीना में जूनियर विश्व कप खेला। २००२ में एशियाई खेलों के साथ कामनवेल्थ में खेलीं। २००४ में सीनियर एशिया कप में स्वर्ण जीता। २००५ में जूनियर विश्व कप में खेलीं। २००६ में एशियन खेलों में कांस्य पदक और २००९ में एशियाई खेलों में रजत पदक जीता। कई देशों से टेस्ट मैच खेलने के साथ दीपिका को सीनियर विश्व कप में भी खेलने का मौका मिला है।

दीपिका मूर्ति: अहमदाबाद गुजरात की दीपिका २००० से भारतीय टीम की सदस्य हैं। २००० में जूनियर एशिया कप में पहली बार कांस्य पदक जीता। २००३ में एफ्रो एशियन खेलों में स्वर्ण पदक, २००४ में सीनियर एशिया कप में स्वर्ण पदक, २००६ में एशियन खेलों में कांस्य पदक और २००९ में एशियाई खेलों में रजत पदक जीता। कई देशों से टेस्ट मैच खेलने के साथ दीपिका को सीनियर विश्व कप में भी खेलने का मौका मिला है।

ममता खरब: रोहतक हरियाणा की यह खिलाड़ी २००१ से भारतीय टीम की शान हैं। अर्जुन पुरस्कार प्राप्त यह खिलाड़ी पहली बार ओलंपिक क्वालीफाइंग मैच में खेलीं। २००२ में कामनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीता। २००४ में सीनियर एशिया कप में स्वर्ण, २००६ में एशियन खेलों में कांस्य पदक और २००९ में एशियाई खेलों में रजत पदक जीता। २००८ के ओलंपिक क्वालीफाइंग मैचों में खेलीं। कई देशों से टेस्ट मैच खेलने के साथ दीपिका को सीनियर विश्व कप में भी खेलने का मौका मिला है।

बिनीता टोपो:- मुंबई की यह खिलाड़ी २००० से भारतीय टीम में हैं। पहले साल जूनियर एशिया कप में कांस्य पदक जीता। २००४ में सीनियर एशिया कप में स्वर्ण, २००६ में एशियन खेलों में कांस्य पदक और २००९ में एशियाई खेलों में रजत पदक जीता। २००८ के ओलंपिक क्वालीफाइंग मैचों में खेलीं। कई देशों से टेस्ट मैच खेलने के साथ बिनीता को सीनियर विश्व कप में भी खेलने का मौका मिला है।

सुभ्रदा प्रधान:- सुन्दरगढ़ उड़ीसा की यह खिलाड़ी भी २००० से भारतीय टीम में हैं। पहले साल सब जूनियर एशिया कप खेला। २००३ में एफ्रो एशिया खेलों में स्वर्ण पदक, २००४ में सीनियर एशिया कप में स्वर्ण, इसी साल जूनियर एशिया कप में कांस्य पदक, २००६ में एशियन खेलों में कांस्य पदक और २००९ में एशियाई खेलों में रजत पदक जीता। २००८ के ओलंपिक क्वालीफाइंग मैचों में खेलीं। कई देशों से टेस्ट मैच खेलने के साथ बिनीता को सीनियर विश्व कप में भी खेलने का मौका मिला है।

जसजीत कौर:- हरियाणा की यह खिलाड़ी २००३ से भारतीय टीम में हैं। २००३ में एफ्रो एशिया खेलों में स्वर्ण पदक, २००४ में सीनियर एशिया कप में स्वर्ण, इसी साल जूनियर एशिया कप में कांस्य पदक, २००६ में एशियन खेलों में कांस्य पदक और २००९ में एशियाई खेलों में रजत पदक जीता। २००८ के ओलंपिक क्वालीफाइंग मैचों में खेलीं। कई देशों से टेस्ट मैच खेलने के साथ सीनियर विश्व कप में भी खेलने का मौका मिला है।

चानचन देवी: मणिपुर की यह खिलाड़ी २००५ से टीम में हैं। पहली साल में जूनियर विश्व कप में खेलीं। २००९ में एशियन खेलों में रजत पदक जीता। सिंगापुर, अर्जेंटीना और चिली के साथ टेस्ट खेले हैं।
मुक्ता बारला: उड़ीसा की इस खिलाड़ी के खाते में २००९ में एशियन खेलों का रजत पदक हैं। मुक्ता २००७ से टीम की सदस्य हैं। अर्जेंटीना, चिली और जापान से टेस्ट मैच खेले हैं।

दीपिका ठाकुर:- २००५ से टीम की सदस्य यह खिलाड़ी हरियाणा की हैं। इनके खाते में एक मात्र रजत पदक २००९ के एशियन खेलों का है। एक बार जूनियर और एक बार सीनियर विश्व कप में दीपिका खेलीं हैं।

किरणदीप कौर:- अमृतसर पंजाब की यह खिलाड़ी २००६ से टीम में हैं। २००९ में जूनियर विश्व कप खेलने के साथ किरणदीप के खाते रूस में खेली गई चैंपियन चैंलेज ट्रॉफी का स्वर्ण पदक है। किरण दीप से कुछ देशों के साथ टेस्ट और अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाएं खेलीं हैं।

रितु रानी:- हरियाणा की यह खिलाड़ी २००६ से टीम में हैं। २००६ में एशियन खेलों में कांस्य पदक और २००९ में एशियाई खेलों में रजत पदक जीता। २००८ के ओलंपिक क्वालीफाइंग मैचों में खेलीं। कई देशों से टेस्ट मैच खेलने के साथ रितु रानी को सीनियर विश्व कप में भी खेलने का मौका मिला है।

टीसी रंजीता:-मणिपुर की यह खिलाड़ी २००४ से टीम की सदस्य हैं। पहले साल हैदराबाद में जूनियर एशिया कप खेला। २००५ एवं ०९ में जूनियर विश्व कप में खेलीं। २००९ में ही आस्ट्रेलियन यूथ ओलंपिक फेस्विल में खेलीं। ओलंपिक क्वालीफाइंग मैचों के साथ कई स्पर्धाओं में खेलीं हैं।

जोयदीप कौर:- हरियाणा की यह खिलाड़ी २००५ से टीम में हैं। पहले साल जूनियर विश्व कप में खेलीं। २००६ में एशियन खेलों में कांस्य पदक और २००९ में एशियाई खेलों में रजत पदक जीता। २००८ के ओलंपिक क्वालीफाइंग मैचों में खेलीं। कई देशों से टेस्ट मैच खेलने के साथ सीनियर विश्व कप में भी खेलने का मौका मिला है।

टी. अनुराधा देवी:- रेलवे कोच फैक्ट्री में कार्यरत यह खिलाड़ी २००६ से टीम में हैं। पहले साल अंतरराष्ट्रीय चैंलेज कप में स्वर्ण पदक जीता। २००८ में अंडर २१ साल के एशिया कप में कांस्य पदक जीता। २००९ में एशियन यूथ ओलंपिक फेस्टिवल में रजत पदक।

इती श्रीवास्तव:- २००७ से टीम में हैं। कुछ देशों के खिलाफ टेस्ट के साथ कुछ अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं।

रानी देवी: हरियाणा की इस खिलाड़ी ने २००८ में ओलंपिक के क्वालीफाइंग मैच खेले। २००९ में एशियन खेलों में रजत पदक जीता।
पूनम रानी:- २००७ में टीम में आने के बाद तीन अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में खेलने के साथ २००९ में जूनियर विश्व कप में खेलीं।

सुनीता लकड़ा:- २००८ में अंडर २१ एशिया कप में कांस्य पदक जीतने वाली टीम में थीं।

रौशलीन डूंगडूंग: २००९ के जूनियर विश्व कप में खेलीं हैं। इसी साथ चैंपियंस चैलेंज कप में स्वर्ण जीता।

मोनिका बारला: २००९ के एशियन खेलों में रजत पदक जीता और इसी साल जूनियर विश्व कप में खेलीं।

योगिता बाली: २००९ में अर्जेंटीना, चिली और न्यूजालैंडे के खिलाफ टेस्ट मैचों में खेलीं।

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गुरुवार, फ़रवरी 18, 2010

वफा का सिला

वो इस कदर हमसे कतरा कर चल दिए


उनकी बेरूखी देखकर हम दिल थामकर रह गए।।

दिए हैं जो जख्म हमें उसने सिए जाते नहीं

गम के आंसू अब पीए जाते नहीं।।

डुब गया है दिल यादों में उनकी इस कदर

कटता ही नहीं अब तन्हा जिंदगी का सफर।।

छोड़कर ही जब साथ चल दिए हमसफर

फिर काटे कैसे जिंदगी का लंबा सफर।।

जिसे हमने खुदा की तरह ही पुजा

वहीं समझने लगी हैं हम अब दुजा।।

वफा का क्या खुब हमें सिला मिला

कांटों से हमारा दामन भर गया।

(नोट: यह कविता हमारी 20 साल पुरानी डायरी से ली गई है)

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बुधवार, फ़रवरी 17, 2010

महंगाई से मंत्रियों का भी निकला पसीना



इस बार की महंगाई ने मंत्रियों का भी पसीना निकाल दिया है। महंगाई के कारण कम से कम छत्तीसगढ़ के मंत्रियों का जरूर पसीना छूटा है। अब आप सोच रहे होंगे कि भला मंत्रियों का महंगाई से पसीना छूटे यह कैसे संभव है, लेकिन ऐसा संभव हुआ है। भले इसके पीछे कारण और कुछ है, लेकिन अपने मंत्रियों का पसीना तो छूट ही गया है।

चलिए हम अब आपको बता दी देते हैं कि महंगाई के कारण मंत्रियों का पसीना कैसे छूटा है। यह बात तय है कि महंगाई का असर कभी मंत्रियों और अमीरों पर नहीं पड़ता है और इनका पसीना कभी नहीं निकल सकता है। लेकिन छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने अपने विधायकों के लिए विधानसभा सत्र के पहले दिन जिस तरह से सायकल पर विधानसभा जाने का फरमान जारी किया था और सभी मंत्री और विधायकों को एसी कारों की बजाए सायकलों से विधानसभा तक का करीब 12 किलो मीटर का सफर तय करना पड़ा तो यह बात स्वाभाविक है कि इसमें पसीना तो छूटेगा ही। सो कई मंत्री जब बमुश्किल सायकलों से विधानसभा परिसर पहुंचे तो सभी पसीने से तर-बतर थे।

भाजपा का विधानसभा तक सायकल से जाना भले एक नौटंकी से ज्यादा कुछ नहीं था, लेकिन इसमें एक ही बात अच्छी रही कि इसी बहाने कम से कम मंत्रियों का पसीना तो छूटा। वरना अपने देश में कभी ऐसा मौका आता ही नहीं है कि अपने मंत्री मेहनत करें और उनका पसीना छूटे। अगर मंत्रियों का भी रोज गरीबों की तरह से पसीना छूटता तो उनको समझ आता कि पसीने की क्या कीमत होती है। लेकिन इसका क्या किया जाए कि मंत्री तो हमेशा एसी कारों में चलते हैं और एसी कमरों में रहते हैं, ऐसे में वे क्या जाने कि पसीने की क्या कीमत होती है। भाजपा इस बात के लिए जरूर साधुवाद की पात्र है कि उसने अपने मंत्रियों का पसीना निकाल दिया है। काश हर माह ही सही ऐसा कुछ होता जिससे मंत्रियों को भी पसीना बहाना पड़ता तो उनको कुछ तो समझ में आता कि पसीना बहाने से क्या होता है।

बहरहाल भाजपा के मंत्रियों और विधायकों की सायकल यात्रा को उम्मीद के मुताबिक विपक्षी पार्टी ने भी एक नौटंकी ही करार दिया। ऐसा तो होना ही था। विधायकों की सायकल यात्रा के कारण जहां पैसों की खूब बर्बादी हुई, वहीं आम जनता भी इस सायकल यात्रा के काफिले के कारण भारी परेशान रही। अब सोचने वाली बात यह है कि सरकार की सायकल यात्रा से किसका भला हुआ है। क्या उनकी इस यात्रा के केन्द्र सरकार कोई सबक लेगी और महंगाई पर अंकुश लगेगा यह सोचने वाली बात है। वास्तविकता तो यही है कि न तो केन्द्र सरकार को और न ही किसी भी राज्य सरकार को गरीबों और महंगाई की चिंता है, चिंतित होने का दिखावा जरूर सब करते हैं।

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मंगलवार, फ़रवरी 16, 2010

सरकार की सायकल से विधानसभा जाने की नौटंकी



वाह रे मंत्री और वाह रे नेता। ये जो भी नौटंकी करें कम नहीं होती है। अब हमारे छत्तीसगढ़ की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के विधायकों ने विधानसभा के पहले दिन मुख्यमंत्री सहित सभी मंत्रियो और विधायकों के साथ महंगाई के विरोध में विधानसभा तक सायकल से गए। क्या इनके एक दिन विधानसभा तक सायकल से जाने पर महंगाई पर लगाम लग जाएगी। इनके वाहनों से विधानसभा तक जाने में जो पेट्रोल लगता उससे कहीं ज्यादा कीमत की तो इनके लिए सायकलें ही खरीद ली गईं। ऐसे में इसे नौटंकी से ज्यादा क्या कहा जा सकता है। अगर प्रदेश की सरकार वास्तव में महंगाई के प्रति इतनी ही ज्यादा चिंतित है तो वह राज्य में जमाखोरी पर क्यों शिकंजा नहीं कसती है।

अपने देश की राजनीतिक पार्टियों को बस एक-दूसरे की टांग खींचने के अलावा कोई काम आता नहीं है। जब केन्द्र में कांग्रेस गठबधंन की सरकार है तो इस सरकार को ही महंगाई का दोषी मानते हुए प्रदेश की भाजपा सरकार ने जहां अपने समर्थन में एक दिन का छत्तीसगढ़ बंद करवा दिया, बिना इस बात की चिंता किए कि जिनको रोज कमाकर अपना घर चलाना पड़ता, वे क्या करेंगे। वहीं विधानसभा सत्र के पहले दिन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ सभी मंत्री और विधायकों का काफिला सुरक्षा के तामझाम के साथ सायकलों पर विधानसभा गया। प्रदेश सरकार के नुमाइंदों के क्या एक दिन सायकल से विधानसभा जाने से महंगाई पर अंकुश लग जाएगा या फिर फिजलूखर्जी बंद हो जाएगी।
अगर वास्तव में भाजपा सरकार और विधायकों को इतनी ही चिंता है तो क्यों कर मंत्रियों के काफिलों को छोटा नहीं किया जाता। क्यों इतना बड़ा ताम-झाम लेकर चलते हैं मंत्री? अगर मंत्री ताम-झाम लेकर नहीं चलेंगे तो इनको मंत्री कौन कहेगा। वैसे भी आज तक किसी सरकार और उनके मंत्रियों को जनता की परवाह नहीं रही है। जनता तो बेचारी निरीह है, उसके साथ जैसा चाहे खिलवाड़ कर लो।

महंगाई के विरोध में विधानसभा तक सायकल से जाने के लिए अब पुरानी सायकलें तो लाईं नहीं जातीं, ऐसे में 60 से ज्यादा सायकलों की खरीदी की गई। अब एक सायकल कम से कम तीन से साढ़े हजार की तो आती ही है, ऐसे में सायकलों पर ही करीब दो लाख रुपए फूंक दिए गए। इतने पैसों से न जाने कितने गरीबों के घर के चूल्हे जल सकते थे। लेकिन सत्ता में बैठे लोगों को भला किसी गरीब से क्या लेना-देना उनको तो बस वह काम करना है जिससे उनकी मीडिया में वाह-वाही हो सके। अब अपने मीडिया को भी चाहिए ऐेसा मसाला। अब भला अपने मुख्यमंत्री कितनी बार सायकल की सवारी करते हैं। जब मुख्यमंत्री सायकल पर चलेंगे तो मीडिया में खबर तो बनेगी ही। नेता यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि जनता के साथ मीडिया को कैसे बेवकूफ बनाया जाता है। वैसे मीडिया के बारे में तो यह नहीं कहा जा सकता है कि उसे बेवकूफ बनाया जा सकता है, क्योंकि मीडिया भी तो वही लिखता है जो सरकार चाहती है, अब वो दिन नहीं रहे कि मीडिया सरकार के खिलाफ जाकर अखबार निकाल ले। आज हर अखबार सरकारी विज्ञापनों की खैरात पर चलता है, ऐसे में सरकार से पंगा लेने की हिम्मत कौन दिखा सकता है।

जब सरकार सायकल पर विधानसभा गई तो दूसरे दिन सारे अखबारों में सरकार सायकल, सायकल पर सरकार से सारे अखबारों के पहले पन्ने रंगे हुए थे। हो भी क्यों न। सरकार है तो अखबार है।

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सोमवार, फ़रवरी 15, 2010

छत्तीसगढ़ में है जादू-यहां आने सब हो जाते हैं बेकाबू

छत्तीसगढ़ में वास्तव में ऐसा कोई जादू जरूर है जो यहां आने के लिए हर क्षेत्र से जुड़े लोग बेकाबू हो जाते हैं। यह बात एक बार से यहां तब साबित हुई जब राजधानी रायपुर में एक कार्यक्रम में देश के कई जाने-माने साहित्कार जुटे। इन साहित्यकारों से साफ शब्दों में माना कि छत्तीसगढ़ ही एक ऐसा राज्य है जहां पर किसी कार्यक्रम के बारे में जानकारी होती है तो हम सब दौड़े चले आते हैं। छत्तीसगढ़ में जैसी आत्मीयता है, वैसी और देश में कहीं नजर नहीं आती है। इस बात में कोई शक नहीं है कि वास्तव में छत्तीसगढ़ से लोगों को इतना प्यार और स्नेह मिलता है कि हर कोई यहां खींचा चला आता है। यह बात अपनी ब्लाग बिरादरी से जुड़े वे मित्र भी बखूबी जानते हैं जिन्होंने छत्तीसगढ़ की धरा पर कदम रखे हैं।

राजधानी रायपुर में जब कुछ दिनों पहले छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय भाषा प्रचार समिति का एक कार्यक्रम हुआ तो उस कार्यक्रम में आए कई साहित्यकारों ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि न जाने छत्तीसगढ़ में ऐसा कौन सा जादू है कि जब भी यहां पर किसी कार्यक्रम के बारे में जानकारी होती है तो हम लोग आ जाते हैं। इन साहित्यकारों ने यह भी माना कि साहित्य के लिए जिनता काम छत्तीसगढ़ में हो रहा है, उतना और कहीं नहीं हुआ है। इसी के साथ एक बात और यह भी सामने आई कि यहां पर कभी किसी कार्यक्रम में किसी तरह का तेरा-मेरा वाला विवाद भी नहीं हुआ। यहां सबको सम्मान मिलता है। और जहां सम्मान मिलता है, वहां इंसान खुद ही दौड़ा चला आता है।

छत्तीसगढ़ में यह बात साहित्यकारों पर ही नहीं किसी भी क्षेत्र से जुड़े लोगों पर लागू होती है। यहां फिल्म जगत से जुड़े या फिर राजनीति से जुड़े या फिर खेल से जुड़े जितने लोगों आए हैं, सबको छत्तीसगढ़ की मेजबानी रास आई है। हर कोई यहां की मेजबानी की तारीफ करके ही लौटा है।

हम अगर ब्लाग बिरादरी की भी बात करें तो यहां जितने भी ब्लागर आए हैं, सभी ने छत्तीसगढ़ को पसंद किया है। अगर हम गलत कर रहे हैं तो अपने दिनेश राय द्विवेदी से लेकर रवि रतलामी, अलबेला खत्री और सिध्देश्वर जी से पूछ लीजिए। इनमें से रवि रतलामी और अलबेला खत्री जी से मिलने का हमें भी सौभाग्य मिला है। बाकी दिनेश जी और सिध्देश्वर जी से हमारी मुलाकात नहीं हो सकी थी। हम इतना जानते हैं कि इनमें से किसी को भी फिर से छत्तीसगढ़ आने का मौका मिलेगा तो कोई भी उस मौके को गंवाना नहीं चाहेगा। अब यह छत्तीसगढ़ की कशिश ही है जो अपने समीर लाल जी के साथ अजय कुमार झा और खुशदीप सहगल जी को खींच रही है। इनके कदम जल्द ही यहां पडऩे वाले हैं। इनके इंतजार में हम सभी बैठे हैं। जब भी इनका यहां आना होगा हमारा वादा है कि वे यहां से एक ऐसी सुखद यादें लेकर जाएंगे कि उनको ताउम्र भूल नहीं पाएंगे और बार-बार छत्तीसगढ़ आने को बेताब रहेंगे। वैसे छत्तीसगढ़ में हम लोग हर ब्लागर का स्वागत करने तैयार बैठे हैं जो भी यहां आना चाहते हैं। अपने पंकज मिश्र जी ने भी यहां आने की बात कही है। वैसे हम छत्तीसगढ़ के ब्लागर एक राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन भी करवाने पर विचार कर रहे हैं, अब इसमें हमें सफलता मिलती है या नहीं यह वक्त बताएगा। अगर भगवान की दया रही तो जरूर यह सम्मेलन होगा।

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रविवार, फ़रवरी 14, 2010

बच्चों को करेंगे दूर-हो जाएंगे मगरूर

आज पालक प्रतिस्पर्धा के चलते अच्छी पढ़ाई के चक्कर में अपने बच्चों को अपने से दूर दूसरे शहरों में पढऩे के लिए भेज देते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो बच्चे माता-पिता से दूर हो जाते हैं वो मगरूर हो जाते हैं।

काफी दिनों से हमारी तबीयत खराब चल रही थी हम सोच रहे थे कि ठीक हो जाएंगे, लेकिन जब देखा कि अब डॉक्टर के पास जाए बिना काम चलने वाला नहीं है तो हम कल रात को डॉक्टर के पास चले गए। वहां पर एक सज्जन अपनी पत्नी के साथ डॉक्टर के पास आए थे, वे डॉक्टर को बता रहे थे कि उनकी बेटी एक शहर में है तो बेटा दूसरा शहर में और हम पति-पत्नी यहां रायपुर में हंै। उन्होंने काफी दुखी मन से बताया कि पढ़ाई के चक्कर में हमने अपने बच्चों को बाहर भेज दिया है, लेकिन वहां की भी पढ़ाई कोई खास नहीं है। ऐसे में डॉक्टर साहब ने उनको अपने मित्र के बारे में बताया कि उन्होंने अपनी महज सात साल की एक बेटी को पढऩे के लिए बाहर भेज दिया है। इसी के साथ डॉक्टर साहब ने यह भी कहा कि यह तो मान कर चलिए कि अगर आप अपने बच्चों को पढऩे बाहर भेजते हैं तो फिर वो बच्चे आपके नहीं रह जाते हैं।

वास्तव में देखा जाए तो इसमें कोई दो मत नहीं है कि जब बच्चे घर-परिवार से दूर हो जाते हैं तो वे अपनी मर्जी से चलते हैं और मगरूर हो जाते हैं। ऐसे में जब वे बच्चे अपने घर परिवार में आते हैं तो अपने माता-पिता की बातों की भी परवाह नहीं करते हैं। बहुत से पालक इस बात का रोना रोते हैं कि उन्होंने अपने बच्चों को बाहर भेजकर गलती कर दी। लेकिन आज सब कुछ जानते हुए भी लोग अपने बच्चों के भविष्य की खातिर उनको बाहर भेज कर अच्छी शिक्षा दिलाने का काम करते हैं, लेकिन नहीं बच्चे अपने माता-पिता के साथ क्या करते हैं, यह सब जानते हैं।

इस बारे में हमारे ब्लाग बिरादरी के मित्र क्या सोचते हैं जरूर बताएं।

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शनिवार, फ़रवरी 13, 2010

क्या अभिनेता और खिलाडिय़ों का देश के विकास में हाथ नहीं होता?

हमारे एक मित्र ने फोन किया और नाराजगी जताते हुए कहा कि क्या यार ये कैसी-कैसी खबरें छपती हैं आपके अखबार में।

हमने पूछा कि क्या हो गया नाराज क्यों हैं? कौन सी खबर की बात कर रहे हैं।

उन्होंने बताया कि हम रामदेव बाबा की उस खबर की बात कर रहे हैं जिसमें उन्होंने कहा है कि देश के विकास में खिलाड़ी और अभिनेताओं का कोई योगदान नहीं होता है।
अब हमें उनकी नाराजगी का कारण समझ आया, क्योंकि हमारे ये मित्र अंतरराष्ट्रीय खेल जगत से जुड़े हैं। उन्होंने हमसे कहा कि यह बात तो गलत है कि खिलाड़ी के बारे कहा जाए कि उनका देश के विकास में कोई योगदान नहीं होता। जबकि हकीकत यही है जिस देश में जितने अच्छे खिलाड़ी होते हैं उस देश को उतना ही विकसित माना जाता है।

यह बात बिलकुल सत्य है कि जिस देश के खिलाड़ी जितने अच्छे होते हैं उस देश को उतना विकसित समझा जाता है, इसी के साथ खिलाडिय़ों को ही हर देश का राजदूत माना जाता है। फिर यह बात भी नहीं भूलनी चाहिए कि खिलाड़ी ही किसी भी देश का ऐसा व्यक्ति होता है जिसके कारण तब दूसरे देश में उस देश का राष्ट्रगान होता है और झंडा फहराया जाता जब वह किसी ओलंपिक, एशियाड या किसी और अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में पदक जीतता है।

ऐसे में खिलाडिय़ों के बारे में यह सोचना कि उनका देश के विकास में कोई योगदान नहीं होता है, उचित नहीं है। रामदेव बाबा का अपना मत हो सकता है, लेकिन इस मत से सभी सहमत हो यह जरूरी नहीं है।

यही बात अभिनेताओं के बारे में भी कही जा सकती है। फिल्में समाज का हिस्सा है और अभिनेता भी। ऐसे में उनको देश के विकास से कैसे अलग किया जा सकता है।
हमें रामदेव बाबा के बयान के बाद कई खिलाड़ी मित्रों के फोन आए जो रामदेव बाबा के बयान से आहत हुए हैं।

अब हम ब्लाग बिरादरी के मित्रों से जानना चाहते हैं कि क्या आप रामदेव बाबा की इस बात से सहमत हैं कि देश के विकास में खिलाडिय़ों और अभिनेताओं का कोई योगदान नहीं होता है। अपने विचारों से जरूर अवगत कराएं।

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शुक्रवार, फ़रवरी 12, 2010

क्या अंग्रेजी का बहिष्कार कर पाएंगे हम

अपने देश में जहां पर हिन्दी से ज्यादा महत्व अंग्रेजी का हो गया है, ऐसे में यह सोचने वाली बात है कि क्या हम भारतीय फ्रांस की तरह अंग्रेजी का बहिष्कार कर पाएंगे। कम से कम हमें तो नहीं लगता है कि भारत में अंग्रेजी का बहिष्कार संभव है। यह बात आज इसलिए निकली है क्योंकि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक कार्यक्रम में एक साहित्यकार ने यह सवाल खड़ा किया कि भारत में हिन्दी को बचाने के लिए ठीक उसी तरह की क्रांति की जरूरत है जैसी क्रांति फ्रांस में एक समय आई थी।

अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी को लेकर अपने देश के साहित्यकारों में ही बहुत ज्यादा मतभेद हैं। कोई यह मानता है कि हिन्दी भाषा का अंत नहीं हो सकता है तो कोई कहता है कि हिन्दी मर रही है। ऐसे में जबकि सबके अपने-अपने मत हैं तो भला कैसे अपनी राष्ट्रभाषा का भला हो सकता है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जब छत्तीसगढ़ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति का एक कार्यक्रम आयोजित किया गया तो इस कार्यक्रम में जुटे देश के नामी साहित्यकारों के जो मत जानने को मिले उसमें भी यही बात सामने आई कि आखिर आज अपनी राष्ट्रभाषा के साथ क्या हो रहा है। हम यहां पर फिलहाल साहित्यकार और छत्तीसगढ़ के डीजीपी विश्व रंजन की बात रख रहे हैं। उनका ऐसा मानना है कि अपने देश में भी राष्ट्रभाषा को बचाने के लिए फ्रांसीस क्रांति की जरूरत है। विश्व रंजन ने एक किस्सा सुनाया कि जब वे काफी बरसों पहले फ्रांस गए थे तो वहां पर एक टैक्सी में बैठे। ड्राईवर को अंग्रेजी आती थी, इसके बाद भी उन्होंने साफ कह दिया कि वे अंग्रेजी में बात नहीं करेंगे और अंग्रेजी में उनको जिस स्थान के लिए जाने कहा गया वहां ले जाने वह तैयार नहीं हुआ।

कहने का मतलब यह है कि फ्रांस जैसे देशों ने अपनी राष्ट्रभाषा को बचाने के लिए अंग्रेजी का बहिष्कार करने का काम किया। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या अपने देश भारत में फ्रांस जैसी क्रांति संभव है? हमें नहीं लगता है कि भारत में ऐसा संभव हो सकता है। अपने देश में जिस तरह से लोग अंग्रेजी की गुलामी में जकड़े हुए हैं, उससे उनको मुक्त करना अंग्रेजों की गुलामी से देश को मुक्त कराने से भी ज्यादा कठिन लगता है। अंग्रेज तो भारत छोड़कर चले गए, लेकिन उनकी भाषा की गुलामी से आजादी का मिलना संभव नहीं है।

भले अंग्रेजी से आजादी न मिले, लेकिन इतना जरूर करने की जरूरत है कि अपनी राष्ट्रभाषा का अपमान तो न हो। यहां तो अपने देश में कदम-कदम पर अपनी राष्ट्रभाषा का अपमान होता है। लोगों को अंग्रेजी बोलने में गर्व महसूस होता है। जो अंग्रेजी नहीं जानता है उसे लोग गंवार ही समझ ही लेते हैं। हमारी नजर में तो जिसे अपनी राष्ट्रभाषा का मान रखना नहीं आता है, उससे बड़ा कोई गंवार नहीं हो सकता है। वास्तव में हमें फ्रांस जैसे देशों से सबक लेने की जरूरत है। भले आप अंग्रेजी का बहिष्कार करने की हिम्मत नहीं दिखा सकते हैं, लेकिन अपनी राष्ट्रभाषा का मान रखने की हिम्मत तो दिखा ही सकते हैं। अगर आप हिन्दी जानते हुए भी हिन्दी नहीं बोलते हैं तो क्या राष्ट्रभाषा का अपमान नहीं है। अगर कहीं पर अंग्रेजी बोलने की मजबूरी है तो बेशक बोलें। लेकिन जहां पर आपको सुनने और समझने वाले 80 प्रतिशत से ज्यादा हिन्दी भाषीय हों वहां पर अंग्रेजी में बोलने का क्या कोई मतलब होता है। लेकिन नहीं अगर हम अंग्रेजी नहीं बोलेंगे तो हमें पढ़ा-लिखा कैसे समझा जाएगा। आज पढ़े-लिखे होने के मायने यही है कि जिसको अंग्रेजी आती है, वही पढ़ा-लिखा है, जिसे अंग्रेजी नहीं आती है, उसे पढ़ा-लिखा समझा नहीं जाता है।

विश्व रंजन ने एक बात और कही कि आज अपने देश में हिन्दी को मजबूत करने के लिए स्कूल स्तर से ध्यान देने की जरूरत है। लेकिन यहां भी सोचने वाली बात यह है कि स्कूल स्तर से कैसे ध्यान देना संभव है। आज हर पालक अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में ही भेजना चाहता है। यहां पर पालकों की सोच को बदलने की जरूरत है, जो संभव नहीं लगता है। हमारा ऐसा मानना है कि हिन्दी को बचाने के लिए स्कूल स्तर की बात तभी संभव हो सकती है जब किसी भी नौकरी में अंग्रेजी की अनिवार्यता के स्थान पर हिन्दी को अनिवार्य किया जाएगा। आज हर नौकरी की पहली शर्त अंग्रेजी है, ऐसे में पालक तो जरूर चाहेंगे कि उनके बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो और जब अंग्रेजी में ही भविष्य नजर आएगा तो लोगों का अंग्रेजी के पीछे भागना स्वाभाविक है। अंग्रेजी से मुक्ति के लिए फ्रांसीस क्रांति की नहीं जागरूकता क्रांति की जरूरत है। अब यह कहा नहीं जा सकता है कि यह जागरूकता कब और कैसे आएगी।

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गुरुवार, फ़रवरी 11, 2010

तराशेंगे तो कई मृणाल मिल जाएंगे

भारतीय हॉकी टीम के गोलकीपर मृणाल चौबे जैसे ही सप्रे स्कूल के शेरा क्लब में पहुंचे राजधानी के खिलाडिय़ों ने उनका जोरदार स्वागत करते हुए नारे लगे दिए कि छत्तीसगढ़ का खिलाड़ी कैसा हो-मृणाल चौबे जैसा हो। एक तरफ नारे तो दूसरी तरफ जोरदार आतिशी हो रही थी। जोरदार स्वागत के बाद मृणाल चौबे ने कहा कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि अपने राज्य छत्तीसगढ़ में प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों की कमी नहीं है, इनको अगर तराशा जाए तो कई मृणाल यहां से निकल सकते हैं।

मृणाल ढाका में सैफ खेलों में भारतीय हॉकी टीम के साथ खेलकर लौटे हैं। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि उनको इस बात की खुशी है कि यहां के खिलाड़ी उनको रोल मॉडल समङाते हैं। बकौल मृणाल छत्तीसगढ़ में हॉकी के हीरे छुपे पड़े हैं, बस जरूरत है तो इनको तराशने की। उन्होंने कहा कि अगर प्रदेश सरकार यहां पर खिलाडिय़ों के लिए बाहर से प्रशिक्षक बुलाने के साथ राज्य में दो-तीन एस्ट्रो टर्फ लगा दे तो यहां से एक नहीं कई मृणाल निकल सकते हैं। उन्होंने कहा कि मात्र हॉकी की अकादमी ही क्यों, हर खेल ही अकादमी होनी चाहिए। मप्र में कई खेलों की राज्य अकादमी है जिसका फायदा वहां के खिलाडिय़ों को मिल रहा है। उन्होंने पूछने पर कहा कि छत्तीसगढ़ में भारतीय खेल प्राधिकरण यानी साई का सेंटर होने से यहां के खिलाडिय़ों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और ज्यादा जाने का मौका मिलेगा। उन्होंने कहा कि मैं खुद साई का छात्र रहा हूं, साई में जितनी सुविधाएं हैं और कहीं नहीं हैं। एक बार साई से जुडऩे के बाद किसी भी खिलाड़ी का खेल निखर जाता है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में हॉकी के लिए सरकार की मदद के साथ ही यहां के उद्योगों को इसके साथ जोडऩा चाहिए। अगर उद्योग आगे आकर हॉकी की मदद करें तो छत्तीसगढ़ में हॉकी बहुत आगे जा सकती है।

पाक के खिलाफ सबसे अच्छा मैच सैफ खेलों में खेला

मृणाल ने एक सवाल के जवाब में बताया कि उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ यूं तो अब तक ८-९ मैच खेले हैं, लेकिन इन सभी मैचों में ढाका के सैफ खेलों के फाइनल में पाकिस्तान के साथ खेला गया मैच सबसे अच्छा रहा है। उन्होंने बताया कि भले इस मैच में हमारी टीम पेनाल्टी शूट में ४-५ से हार गई, पर इस मैच में मेरे खेल से कोच को इतना ज्यादा प्रभावित किया कि उन्होंने मैच के बाद मुङो कहा कि आई लव यू मृणाल तुम्हारा खेल लाजवाब था। मृणाल ने पूछने पर कहा कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि पाकिस्तान के साथ मैच में हमेशा तनाव की स्थिति रहती है और फाइनल में भी ऐसा ही था, इस मैच में दोनों टीमों के खिलाडिय़ों को कार्ड दिखाए गए। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि पाकिस्तान के साथ मैच न खेलने समस्या का हल नहीं है। मृणाल ने बताया कि वहां सुरक्षा इतनी तगड़ी थी कि हम लोग घर भी बात नहीं कर पाते थे।


अनुभव स्थानीय खिलाडिय़ों में बांटता हू

मृणाल ने बताया कि वे जब भी अपने शहर राजनांदगांव आते हैं तो उनको जो भी अनुभव बाहर खेलने से मिलते हंै, उनको स्थानीय खिलाडिय़ों में बांटने का प्रयास करते हैं। उन्होंने बताया कि जब मलेशिया में विश्व कप में खेल कर आए तो वहां जिन नए नियमों की जानकारी मिली, उससे राजनांदगांव के खिलाडिय़ों को अवगत कराया। इसका फायदा यह हुआ कि जब राजनांदगांव की टीम अंतर साई स्पर्धा में खेलने गई तो वहां उसे इन नए नियमों के कारण फायदा मिला और टीम सफल रही।

हॉकी इंडिया भी उद्योगपतियों को जोड़े

हॉकी इंडिया के साथ खिलाडिय़ों के चल रहे विवाद के बारे में पूछने पर मृणाल कहते हैं कि हम लोग शुरू से अपने सीनियर खिलाडिय़ों के साथ है। उन्होंने कहा कि हॉकी इंडिया की स्थिति को सुधारने के लिए हॉकी इंडिया को भी उद्योगपतियों को जोडऩा चाहिए।
स्वागत से अभिभूत
एक सवाल के जवाब में मृणाल ने कहा कि यह तो शेरा क्लब के संस्थापक मुश्ताक अली प्रधान का मेरे प्रति प्यार है जो वे हमेशा यहां बुलाकार जोरदार स्वागत करवाते हैं। मृणाल ने कहा कि मुङो भी किसी भी अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा से लौटने के बाद मुश्ताक भाई के साथ शेरा क्लब के सदस्यों से मिले बिना चैन नहीं आता है। यहां यह बताना लाजिमी होगा किस मृणाल के शेरा क्लब में पहुंचे ही उनका स्वागत जोरदार आतिशीबाजी से किया गया। वैसे मृणाल को विमानतल पर लेने के लिए उनके माता-पिता के साथ उनके गुरुजन और राजनांदगांव में खेलों से जुड़े करीब ५०-६० लोग गए थे। मृणाल को हॉकी स्टिक पकड़ाने वाले मनीष गौतम और आरएन सिंह कहते हैं कि उनको आज खुशी होती है कि उनका एक शिष्य आज भारतीय टीम की शान है। वे कहते हैं कि हमारा भी ऐसा मानना है कि छत्तीसगढ़ से मृणाल जैसे और खिलाड़ी निकलने चाहिए। मृणाल ने अंत में बताया कि अब वे यहां से १४ फरवरी को दिल्ली जाएंगे जहां पर विश्व कप के लिए अभ्यास मैच की तैयारी चल रही है। मृणाल अपनी पढ़ाई भी कर रहे हैं और अभ्यास मैचों के बाद वे बीकाम की परीक्षा देने वापस आएंगे।

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बुधवार, फ़रवरी 10, 2010

क्या अखबार में छपे अपने लेखों को ब्लाग में डालना गलत है?

हमारे एक पत्रकार मित्र हैं उनको इस बात से बहुत परेशानी होती है कि पत्रकार अपने उन्हीं लेखों को अपने ब्लाग में डाल देते हैं जो लेख वे अखबारों के लिए लिखते हैं। अब सोचने वाली बात यह है कि आखिर इसमें बुराई क्या है। अगर हम कोई अच्छा लेख अखबार में लिख रहे हैं और वहीं लेख हम अपने ब्लाग के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं तो इसमें गलत क्या है। हमें नहीं लगता है कि इसमें कुछ गलत है। वैसे भी अखबार में कम से कम कुछ अच्छा लिखा हुआ ही प्रकाशित करने की इजाजत संपादक देते हैं। ऐसे में उसी अच्छे लेख को ब्लाग जगत के पाठक भी पढ़ ले तो इसमें हर्ज क्या है।


हमारे कुछ पत्रकारों मित्रों के साथ हम भी कई बार अपने अखबार में प्रकाशित लेखों को अपने ब्लाग में डाल देते हैं। इन लेखों पर अच्छी प्रतिक्रिया भी आती है। लेकिन अपने एक पत्रकार मित्र को यह बात जमती नहीं है कि हम या कोई भी पत्रकार ब्लाग में उन लेखों को डालें जो लेख अखबार में प्रकाशित हो चुके हैं। इस बात का उनके पास कोई ठोस जवाब तो नहीं है, वे कहते हैं कि ब्लाग एक अलग चीज है। अरे मित्र इसमें अलग जैसी क्या बात है। ब्लाग तो बल्कि आपकी अपनी बपौती है। इसमें तो आप जैसा चाहे लिख सकते हैं, लेकिन आप यह भूल रहे हैं कि अखबार में वह सब नहीं चलता है। अखबार में अच्छा लिखने के बाद भी संपादक से उनको प्रकाशित करने की इजाजत नहीं मिल पाती है। ऐसे में यह बात मान कर चलिए कि किसी भी पत्रकार या फिर किसी लेखक का कोई लेख किसी भी अखबार में प्रकाशित होता है तो उस लेख में कुछ तो दम होगा। अगर किसी भी लेख में कुछ दम है तो उस लेख को क्यों नहीं ब्लाग जगत के पाठक तक पहुंचाना चाहिए। इसमें बुराई क्या है? इसी के साथ हमारा यह भी मानना है कि अगर कोई पत्रकार किसी खबर को अपने अखबार के लिए बनाता है और उस अखबार के बारे में वह सोचता है कि इस खबर की जानकारी ब्लाग जगत के पाठकों को भी होनी चाहिए तो इसमें भी गलत क्या है?

छत्तीसगढ़ की कितनी ऐसा खबरें हैं जिनको राष्ट्रीय या फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थान मिल पाता है। ऐसे में जबकि छत्तीसगढ़ की खबरों को कोई पूछने वाला नहीं है तो ऐसे में अगर कोई पत्रकार छत्तीसगढ़ की खबरों को अपने ब्लाग के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने का काम कर रहा है तो हमारी नजर में ऐसे पत्रकार साधुवाद के पात्र हैं। ऐसे ब्लागरों का हौसला बढ़ाने की जरूरत है। यह बात छत्तीसगढ़ ही नहीं अपने देश के हर राज्य पर लागू होती है। किसी भी राज्य के पत्रकार ऐसा काम कर रहे हैं तो उनसे ज्यादा अच्छा काम तो कोई हो ही नहीं सकता है।

हम ब्लाग बिरादरी के मित्रों से जानना चाहते हैं कि क्या अखबार में प्रकाशित लेखों और खबरों को ब्लाग में प्रकाशित करना गलत है? अपने विचारों से जरूर अवगत कराएं।

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मंगलवार, फ़रवरी 09, 2010

महफूज और समीर भाई से हो गई फोन पर मुलाकात अजय कुमार झा से चैटिंग पर हो गई बात

कल अचानक करीब 10.10 को हमारे मोबाइल की घंटी बजी। देखा महफूज अली की काल थी। हमने तुरंत कहा बोलिया महफूज भाई। इसके बाद बातों का सिलसिला चला, पर ज्यादा नहीं चला, क्योंकि हमें प्रेस जाना था, और समय की कमी थी। हमने महफूज भाई से फिर बात करने का वादा किया।

महफूज भाई ने तीन दिन पहले बात करने की इच्छा जताई थी और हमारा मोबाइल नंबर मांगा था। उनके नंबर मांगने के बाद हमने रूपचंद शास्त्री जी के ब्लाग से ब्लागरों की डायरेक्ट्री से महफूज भाई का मोबाइल नंबर लेकर नोट कर लिया था। हमने शास्त्री जी के ब्लाग की डायरेक्ट्री से कई ब्लागरों के नंबर लिए हैं और सोचा है कि रोज किसी न किसी से बात करेंगे। हमने सोचा था कि महफूज भाई फोन करें इसके पहले ही हम उनको फोन कर लेंगे। लेकिन हम चूक गए, काम के कारण हम उनसे बात नहीं कर पाएं और उन्होंने कल सुबह फोन लगा लिया। जब उनका फोन आया उसके ठीक 10 मिनट पहले ही हमने अजय कुमार झा जी से चैटिंग पर चर्चा की थी। उनसे जहां दिल्ली की ब्लागर मीट के बारे में चर्चा की, वहीं उनसे फिर से पूछा कि वे कब आ रहे हैं जादू की झप्पी लेने। उन्होंने फिर से एक बार कहा कि अब ज्यादा इंतजार करना नहीं पड़ेगा।

बहरहाल महफूज भाई से बात करके बहुत अच्छा लगा। उन्होंने भी कहा कि उनको भी हमसे बात करके अच्छा लगा। हमें महफूज भाई से बात करके लगा ही नहीं है कि हम लोग पहली बार बात कर रहे हैं। उन्होंने हमें कार लेने की बधाई दी और बताया कि आपकी कार लेने वाली पोस्ट देखी है।

वास्तव में जिस तरह ही आत्मीयता ब्लागरों में नजर आ रही है, वह इस बात का सबूत है कि हर कोई अपनेपन की आश रखता है। ब्लाग बिरादरी में जिस तरह का प्यार है वह इस साबित करता है कि यह दुनिया वास्तव में कितनी अच्छी है। हम तो चाहते हैं कि सभी ब्लागर इसी तरह से एक-दूसरे से बातें करें और मिलते भी रहे। जो मजा प्यार में है वह तकरार में नहीं है। तकरार से किसी को क्या हासिल हुआ है जो ऐसा करने वालों को अब हासिल हो जाएगा। हम सोचते हैं कि हर ब्लागर को तकरार से किनारा करके प्यार की भाषा का प्रयोग करना चाहिए। प्यार से सारी दुनिया को जीता जा सकता है।

कल हमारी महफूज भाई से बात हुई। इसके दो दिन पहले समीर लाल जी ने हमें फोन करके शादी की सालगिरह की बधाई दी थी। जब उनका फोन आया उस समय हम प्रेस में थे। हमारे मोबाइल में जब मात्र 501 नंबर ही दिखा तो हमें समझ आ गया था कि दूसरी दुनिया से अपने समीर भाई ने याद किया है। उन्होंने हमें जैसे ही शादी की सालगिरह की बधाई दी, हम पहचान गए कि ये अपने समीर भाई हैं। इतनी दूर होकर भी समीर भाई हमारे ही नहीं सभी के दिलों के पास लगते हैं। हम तो ऐसा सोचते हैं कि सभी को भगवान समीर भाई जैसे दिल दें जिनके दिल में सभी के लिए प्यार है।

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सोमवार, फ़रवरी 08, 2010

अब हम नहीं रहे बेकार

करीब एक माह की कड़ी मशक्कत के बाद अंतत: हमारी बेकारी दूर हो गई और अब हम बेकार नहीं रह गए हैं। हमारे कहने का मतलब यह है कि हमने अपने लिए फिर से एक कार ले ली है। यह कार हमारे बजट में आई है। हमने एक वैगनआर एक लाख पचास हजार रुपए में ली है। यह कार ठीक-ठाक है।

पिछले माह की पांच तारीख को हमने मारूति 800 को बेचा था। इसको ेबेचने के बाद हम लगातार दूसरी कार की तलाश करते रहे, पर कोई कार नहीं मिल रही थी। हमने कार के लिए भिलाई, दुर्ग और राजनांदगांव के भी चक्कर कांटे, धमतरी के भी कुछ मित्रों से कहा, पर बात नहीं बनी। लगातार कई कारों को देख रहे थे, पर कोई जम नहीं रही थी। अंतत: ठीक पांच फरवरी के ही दिन हमें एक वैगनआर मिल गई। इसको हमने फाइनल कर लिया, लेकिन अगले दिन शनिवार था। सभी का ऐसा मानना है कि शनिवार के दिन लोहे का लेना शुभ नहीं होता है। ऐसे में हम भारी कशमकश में रहे कि क्या किया जाए शनिवार को कार घर लाए या नहीं। शनिवार को ही हमारी शादी की सालगिरह भी थी, हमारा मन तो था कि शनिवार को ही कार ले आएं। लेकिन इसके लिए हमारी श्रीमती अनिता ग्वालानी भी तैयार नहीं थीं। फिर अंत में घर के साथ कुछ मित्रों से विचार-विमर्श करके फैसला किया गया कि रविवार या फिर सोमवार को कार लाई जाए। अब कार घर में आ चुकी है और बेकार नहीं रहे हैं।

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रविवार, फ़रवरी 07, 2010

पता नहीं कितनी पोस्ट में टिपिया आएं हम

हम हमेशा सोचते थे कि काश हमें भी दूसरों की पोस्ट में ज्यादा से ज्यादा टिपयाने का मौका मिलता। लेकिन क्या करें कम्बख्त ये वक्त है कि हमें मिलता ही नहीं। लेकिन न जाने कैसे कल यह वक्त हम पर मेहरबान हो गया और रात को करीब साढ़े तीन बजे नींद खुल गई। नींद न आने के कारण हम कम्प्यूटर पर बैठ गए और इस समय का सदउपयोग करते हुए पहली बार हमने दो दर्जन से ज्यादा ब्लागों में जाकर टिप्पणियां कीं। हर ब्लाग में अलग-अलग टिप्पणी की और वो भी तुकबंदी में।

5 फरवरी की रात को हम करीब 11 बजे सोए। इसके बाद हमारी नींद अचानक साढ़े तीन बजे खुल गई। हमने काफी सोने का प्रयास किया, लेकिन नींद थी कि आने का नाम ही नहीं ले रही थी। ऐसे में सोचा कि चलो यार कम्प्यूटर पर बैठकर देखा जाए कि अपनी ब्लाग बिरादरी में क्या चल रहा है। नेट खोलने के बाद हमने सोचा कि चलो आज मौका है तो कुछ ब्लागों पर टिप्पणियों की बारिश कर दी जाए। पहले सोचा कि यार ज्यादा लिखने की बजाए अति सुंदर या फिर नाइस लिखकर ही काम चलाया जाए क्या। ऐसे में पहले हमने दो-तीन पोस्टों पर नाइस टिपियाया दिया। लेकिन हमें यह अच्छा नहीं लगा तो हमने पेजमैकर खोला और अपनी हिन्दी टायपिंग का पिटारा चालू कर दिया। चाणक्य में टिप्पणी लिखते गए और उसको यूनीकोड में बदल कर टिप्पणी करने का जो सिलसिला प्रारंभ किया तो सुबह के कब सात बज गए पता ही नहीं चला।

इस बीच हमारी श्रीमती अनिता ग्वालानी भी उठ गई थीं। हमने उन्हें पांच बजे ही चाय बनाने के लिए कहा। हमने ब्रस करके चाय पी और कम्पयूटर से चिपके रहे। हमने अपनी बिटिया स्वप्निल को भी पांच बजे उठा दिया क्योंकि उनकी परीक्षा चल रही है। वह पढऩे बैठ गई और हम इधर अपना काम कर रहे थे। पता नहीं कितने ब्लागों पर हमने दो, चार, छह, आठ लाइनों की तुगबंदी में टिप्पणियां कर दीं। एक समय चिट्ठा जगत में हमारी एक साथ 10 टिप्पणियां दिख रही थीं। हमने कम से कम दो दर्जन से ज्यादा ब्लागों में तो जरूर टिप्पणियां की होंगी। टिप्पणियां करने के बाद हमें अच्छा लगा कि चलो हमें भी कुछ करने का मौका मिला।

हम भी हमेशा सोचते हैं कि अच्छे लेखन के लिए प्रोत्साहन देने टिप्पणी करनी चाहिए। लेकिन इस कम्बख्त वक्त का क्या किया जाए जो मिलता ही नहीं है। वो तो अच्छा हो निंद्रा रानी का जिन्होंने अपने आगोश से हमें कल रात बाहर कर दिया जिसके कारण हम टिप्पणी करने में सफल हो गए। ऐसा रोज-रोज तो नहीं हो सकता है। लेकिन हमने सोच लिया है कि रोज कम से कम पांच ब्लागों को पढऩे के बाद टिप्पणी करने का प्रयास करेंगे। हम सिर्फ प्रयास की ही बात कर सकते हैं वादा नहीं कर सकते हैं। पता नहीं कब कौन सा काम आ जाए। वैसे भी हम पत्रकारों को समय कहां मिल पाता है।

बहरहाल हमें इस बात की खुशी हैं कि हम उन ब्लागर मित्रों के ब्लाग में टिप्पणियां करके आएं जिनकी टिप्पणियों की बारिश हमेशा हमारे ब्लाग में होती है। वैसे हम टिप्पणी दें और टिप्पणी लें पर भरोसा नहीं करते हैं। लेकिन अगर कोई आपके घर बार-बार आए तो आपका भी फर्ज बनता है उनके घर कम से कम एक बार तो जरूर जाएं।

चलते-चलते हम एक बात और बता दें कि कल ही हमने रुपचंद शास्त्री जी के ब्लाग से ब्लागर मित्रों के नाम और पते लिए हैं। उसमें कई ब्लागरों के मोबाइल नंबर भी हैं। अब जब भी समय मिलेगा किसी ने किसी से फोन पर बात भी कर लेंगे।

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शनिवार, फ़रवरी 06, 2010

पंकज मिश्रा ने फोन पर हो गई बात, पर अफसोस ललित शर्मा ने नहीं हो सकी मुलाकात

हमारे लिए कल का दिन बहुत अच्छा रहा। कल हमने पहली बार पंकज मिश्रा से फोन पर बात की। कल ही हमारे एक और अजीज मित्र ललित शर्मा से मुलाकात होने वाली थी, पर अफसोस की उनसे इसलिए मुलाकात नहीं हो सकी, क्योंकि जिस समय वे हमारी प्रेस पहुंचे थे, हम एक कार्यक्रम में थे।

कल सुबह को जब हम कम्प्यूटर पर बैठे तो हमें भी यह मालूम नहीं था कि हमारे कम्प्यूटर के चालू होते ही हम भी आन लाइन हो जाते हैं। ऐसे में जबकि हम काम कर रहे थे, अचानक नजर पड़ी कि अपने पंकज मिश्रा जी ने हमें चैटिंग में नमस्कार किया। हमने उनको जवाब दिया, फिर बातों का सिलसिला चला। इस बीच हमने उनका मोबाइल नंबर जानने के लिए जब उनसे मोबाइल नंबर पूछते हुए अपना मोबाइल नंबर उनको दिया तो पता चला कि वे आफ लाइन हो गए हैं। ऐसे में हमें लगा कि उन तक हमारा मोबाइल नंबर नहीं पहुंच सका है। वैसे पंकज जी से हमें बात करने की इच्छा उसी समय से थी जबसे उन्होंने हमारा ई-मेल मांगा था। इसके बाद हमने चैटिंग में उनका नाम जोड़ दिया था जिसकी बदौलत कल उनसे चैटिंग में चर्चा हो सकी।

चैटिंग में चर्चा होने के बाद जब प्रेस में मीटिंग के लिए घर से निकले तो रास्ते में हमारे मोबाइल की घंटी बजी। देखा तो नंबर किसी दूसरी दुनिया का ही लगा। हमें एक बार लगा कि शायद यह नंबर अपने समीर लाल जी का है। कारण यह है कि हमने अपने कल की पोस्ट में टिप्पणी लिखी थी कि समीर लाल जी, पाबला जी ने तो नाश्ते का राज खोल दिया। वैसे नाश्ता तो गुप्त एजेंडे में शामिल था। पाबला जी पर यह राज खोलने के लिए एक नाश्ते की पार्टी का जुर्माना हो गया है, अब जब भी भिलाई जाना होगा, नाश्ता का बिल उनको देना पड़ेगा। इस बार तो साथ में ललित शर्मा भी जाएंगे यानी पाबला जी का खर्च ज्यादा होगा।

इस टिप्पणी की वजह से हमें लगा कि शायद समीर भाई को हमसे बात करने की सूझी है और उन्होंने मोबाइल खटखटाया है। हमने मोबाइल उठाया तो उधर से आवाज ही नहीं आई। हम फिर से अपनी बाइक चालू करके चल दिए प्रेस की तरफ। (हम अपनी बाइक एक किनारे खड़ी करके ही बात करते हैं) लेकिन फिर से मोबाइल की घंटी बज उठी। हमें प्रेस की मीटिंग के लिए विलंब हो रहा था, फिर भी हम उस अंजान नंबर के प्राणी से बात करने का मोह त्याग नहीं सके और अपनी बाइक को सड़क के किनारे रोककर मोबाइल उठा लिया।

उधर से जो आवाज आई उसकी कल्पना हमने नहीं की थी। उधर अपने पंकज मिश्रा जी थे। उन्होंने बताया कि उनको चैटिंग में हमारा भेजा गया मोबाइल नंबर मिल गया था। हमें बहुत खुशी हुई कि चलो पंकज जी से आज बात करने का मौका मिल गया। हमने पंकज जी से बातों का सिलसिला प्रारंभ किया और उनको हमने बताया कि हम प्रेस जा रहे हैं 10.30 बजे रोज मीटिंग होती है। हमने पंकज जी को बताया कि रायपुर में एक राष्ट्रीय ब्लागर मीट की तैयारी चल रही है। उन्होंने वादा किया कि वे भी जरूर आएंगे। हमने पंकज जी से क्षमा मांगते हुए बाद में बात करने का वादा किया क्योंकि हमें प्रेस की मीटिंग के लिए विलंब हो रहा था।

पंकज जी से मोबाइल पर बातों के सिलसिले के बाद कल ही ललित शर्मा जी का दोपहर में फोन आया कि वे रायपुर में हैं और शाम को प्रेस आएंगे, हमने उनसे कहा कि शाम को 5 बजे के बाद आए, पर शायद उन्होंने हमारी बात सुनने से पहले ही फोन कट कर दिया, इसका नतीजा यह रहा कि जनाब करीब 4.30 बजे ही प्रेस पहुंच गए। उस समय हम एक कार्यक्रम में थे। ललित जी ने फोन किया तो हमने बताया कि हम तो 5.30 बजे तक प्रेस पहुंच पाएंगे। उन्होंने बताया कि वे प्रेस के पास हैं। उन्होंने हमसे पूछा कि क्या प्रेस में राजकुमार सोनी जी मिलेंगे। हमने उनको बताया कि वे भी 5 बजे के बाद आएंगे। ऐसे में ललित जी ने कहा कि वे वापस अभनपुर जा रहे हैं फिर आएंगे तो मुलाकात होगी।

जहां हमें कल पंकज जी से मोबाइल पर बात करने की अपार खुशी है, वहीं ललित जी से मुलाकात न होने का अफसोस है। वैसे हम लोग मिलते रहते हैं, पर वे रायपुर आए और हमारी मुलाकात नहीं हो सकी इसका हमें मलाल है। जब हम इस पोस्ट को लिखने के लिए रात को बैठे तो ललित जी आन लाइन आ गए। उनसे पोस्ट लिखते-लिखते कुछ चर्चा हो गई। हमने उनको बताया कि एक पोस्ट लिख रहे हैं जिसमें उनका भी नाम है। हमने उनसे कहा कि कल पोस्ट में पढ़े कि उनके नाम का उल्लेख क्यों है।


चलते-चलते एक बात बता दें कि आज का दिन हमारी जिंदगी का एक अहम दिन है। यह अहम दिन क्या है? इसका खुलासा अपने बीएस पाबला जी अपने ब्लाग में शाम को करेंगे, तब तक का इंतजार करें।

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शुक्रवार, फ़रवरी 05, 2010

जन्म दिन हमारे ब्लाग का पार्टी दी संजीव तिवारी ने

तीन फरवरी को हमारे ब्लाग खेलगढ़ का पहला जन्म दिन था। इसी दिन हमारा भिलाई जाना हुआ। भिलाई में हमारी मुलाकात संजीव तिवारी और बीएस पाबला जी से हुई। भिलाई पहुंचने से पहले ही हमारे ब्लाग के 365 दिन पूरे होने की पोस्ट लग चुकी थी। ऐसे में जहां संजू भाई ने हमें बधाई दी, वहीं एक छोटी सी पार्टी हिमालय होटल में दी। इस पार्टी का बिल संजीव जी ने दिया। मजाक-मजाक में यह बात भी निकली की यह कोई प्रायोजित पार्टी नहीं है।

दो फरवरी को सुबह बीएस पाबला जी का फोन आया। हम व्यस्त होने के कारण उनसे बात नहीं कर सके। रात को फिर से पाबला जी से घंटी बजा दी। हमने मोबाइल उठाया तो उधर से आवाज आई कि क्या कोई नाराजगी है?

हमने कहा ऐसी तो कोई बात नहीं है।

पाबला जी ने कहा सुबह फोन किया उठाया नहीं, और पिछले दो-तीन दिनों से बात नहीं हो पा रही है।

हमने पाबला जी को बताया कि काम ज्यादा होने के कारण बात नहीं कर पा रहे थे।

पाबला जी ने कहा तब तो ठीक है।

हमने उनको बताया कि हम कल भिलाई आने वाले हैं, वहां पर राष्ट्रीय वालीबॉल स्पर्धा चल रही है और हमें खेल से जुड़े कुछ मित्रों से भी मिलना है, इसी के साथ हमें वहां कार भी देखनी है क्योंकि एक माह बाद भी हम अब तक बेकार हंै। हमने पाबला जी से कहा कि हम उनसे मिलने जरूर आएंगे फिर भले दस मिनट के लिए आएं। पाबला जी ने पूछा कि हम कितने बजे आएंगे। हमने बताया कि यूं तो हम रायपुर से सुबह 9.30 बजे तक निकल जाएंगे, लेकिन वहां का काम करने के बाद हम उनसे मिलेंगे। पाबला जी ने बताया कि उनकी डयूटी दोपहर दो बजे से है। हमने उनसे वादा किया कि हम इसके पहले उनसे मिल लेंगे। भिलाई में मिलने का कार्यक्रम बना तो पाबला जी ने इसकी सूचना संजीव तिवारी को भी दे दी।

तीन फरवरी को हम भिलाई पहुंचे तो हमने पाबला जी से करीब 11 बजे संपर्क किया और उनको बताया कि हम यहां पहुंच चुके हैं और एक घंटे बाद हम फ्री हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि वहां से निकलने से पहले फोन कर देना हम लोग सुपेला में संजीव तिवारी जी के होटल हिमालय में मिलेंगे, वहां तिवारी जी भी रहेंगे। उन्होंने बताया कि उन्होंने संजीव तिवारी को खबर कर दी है। थोड़ी देर बाद संजीव जी का भी फोन आ गया। उन्होंने पूछा कि हम कितने समय आएंगे। हमने बताया कि एक घंटा तो लग जाएगा। उन्होंने कहा कि तब ठीक है। तब तक मेरा काम भी हो जाएगा।

हम करीब 12.30 बजे होटल हिमालय पहुंचे। संजीव जी, होटल के नेट रूम में बैठे थे। वहां से हम लोग रेस्टोरेंट में आ गए। इस बीच संजीव जी ने हमें खेलगढ़ का एक साल पूरा होने पर बधाई दी। पाबला जी के इंतजार में एक दौर काफी का हो गया। जब पाबला जी आए तो फिर छोटी सी नाश्ते की पार्टी का दौरा चला और अंत में फिर से एक बार काफी का दौरा चला। इस बीच बातों-बातों में यह बात निकली कि आज खेगगढ़ का जन्म दिन है और पार्टी दे रहे हैं संजीव तिवारी जी। इसी बीच पाबला जी से मजाक में कहा कि भईया जब भी इस छोटी सी बैठक के बारे में कोई भी लिखे तो यह जरूर लिख देना कि यह पार्टी प्रायोजित नहीं थी, इसका बिल संजीव जी ने दिया है। पाबला जी के इस मजाक पर संजीव जी और हम हंस पड़े।

बहरहाल दस मिनट मिलने की बात हुई थी, पर करीब दो घंटे तक हम लोग बैठे रहे और इस बीच सारी चर्चा ब्लाग जगत पर ही होती रही। इस बीच जहां ललित शर्मा जी का फोन आ गया, वहीं संजीव तिवारी के पास संजीत त्रिपाठी का फोन आ गया। हम लोगों की छोटी की बैठक की सूचना सबको हो गई थी। ललित जी ने हमसे कहा कि उनको बता देते तो वे भी साथ हो लेते। हमने उनको बताया कि हम अपने किसी काम से आए थे, ऐसे में इस मुलाकात की बात तय हुई थी।

इसी बीच पाबला जी ने बताया कि 7 फरवरी को प्रेस क्लब रायपुर में नए-पुराने ब्लागरों के किए एक कार्यशाला का आयोजन किया गया है। चलते-चलते हम बता दें कि हमारी इस छोटी सी बैठक में गुप्त एजेंडे वाली बात पर भी चर्चा चली, जिस पर हमने कल ही एक पोस्ट लिखी थी, पर अब यह सारा मामला समाप्त हो चुका है और हम कोई भी ऐसी बात नहीं करना चाहते हैं जिससे किसी भी तरह के विवाद को तूल मिले। हमारा एक मात्र मकसद छत्तीसगढ़ के ही नहीं बल्कि समूचे विश्व के ब्लागरों को भाई चारे और प्यार के एक ऐसे अटूट बंधन में बांधना है जिस बंधन को बड़े से बड़ा विवाद भी न तोड़ सके। अगर हमारे मन में विश्वास है तो हमें सफलता जरूर मिलेगी, ऐसा हमारा विश्वास है। चलिए मिलते हैं एक दिन के ब्रेक के बाद।


जय हिन्द, जय भारत, जय छत्तीसगढ़ और जय ब्लाग बिरादरी।


नोट:- फोटो पाबला जी ने अपने कैमरे से खींची थी, उनसे फोटो प्राप्त नहीं हो पाई है, इसलिए हम भिलाई के पिछले प्रवास की एक फोटो लगा रहे हैं।

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गुरुवार, फ़रवरी 04, 2010

मोहब्बत का पैगाम था हमारा गुप्त एजेंडा-क्यों किया जा रहा है ब्लागरों में जहर फैलाने का धंधा

रायपुर की ब्लागर मीट पर हमने कुछ भी न लिखने का फैसला किया था। इस फैसले पर हम कायम भी थे, कि कल अचानक अनिल पुसदकर जी की एक पोस्ट आ गई। इस पोस्ट को पढऩे के बाद हमें लगा कि अब लिखना जरूरी हो गया है। वैसे भी हम रायपुर ब्लागर मीट पर नहीं अनिल जी की पोस्ट पर लिख रहे हैं। यह बात समझ से परे है कि पंकज अवधिया जी को यह किसने कह दिया कि बैठक का कोई गुप्त एजेंडा था और इस एजेंडे के कारण ब्लागरों का एक समूह बैठक से अलग रहा। पहली बात तो यह है कि हमारी बैठक का एक मात्र एजेंडा छत्तीसगढ़ के ब्लागरों को एक करके मोहब्बत का पैगाम देना था। अब इसे कोई गुप्त एजेंडा माने या कुछ और, यह सोचने वाले की समझ पर छोड़ते हैं। हमें लग रहा है कि छत्तीसगढ़ के ब्लागरों की एकता किसी को रास नहीं आ रही है, इसलिए हम ब्लागरों के बीच में बैर का जहर घोलने का काम किया जा रहा है।

हमें यह बात बिलकुल समझ नहीं आ रही है कि क्यों कर रायपुर ब्लागर मीट को लेकर इतना बड़ा विवाद खड़ा किया जा रहा है। जिस तरह से इस मीट को लेकर बखेड़ा खड़ा करने का किया जा रहा है, उससे एक बात साफ है कि हो न हो छत्तीसगढ़ के ब्लागरों की एकता से कोई न कोई वर्ग तो दहशत में है और हमें लगता है कि यह वर्ग ही छत्तीसगढ़ के ब्लागरों में फूट डालने के लिए सारा जोर लगा रहा है। हम एक बात साफ कर दें कि कोई कितना भी जोर लगा लें, हम इतना जानते हैं कि अगर छत्तीसगढ़ के ब्लागरों के बीच में मतभेद पैदा करने वाले चार होंगे तो यहां पर प्यार का पैगाम देने वाले 40 हैं। ऐसे में यह बात आसानी से समझ लें कि हमारी एकता को तोडऩे का कोई मंत्र काम आने वाला नहीं है। हो सकता है कि कुछ समय के लिए गलतफहमी पैदा हो जाए, लेकिन हम लोग एकता पर आंच नहीं आने देने वाले हैं।

जिस दिन रायपुर की ब्लागर मीट हुई थी और हम प्रेस क्लब पहुंचे थे, तभी अनिल जी ने हमें कहा था कि अबे राजकुमार इस बैठक का आयोजन तूने किया है और इसे प्रायोजित किए जाने की बात हो रही है कितना पैसा मिला है इसके लिए। उनकी बातों से हमारा माथा ठनका। अनिल जी भी जानते हैं कि हमें भी गुस्सा बहुत जल्दी आता है। हमने उनसे कहा हम अभी उनको फोन लगाते हैं जिनके बारे में कहा जा रहा है कि इस बैठक को उन्होंने प्रायोजित किया है। इस पर अनिल जी ने हमें समझाया कि जिसको जो कहना है कहने दें क्या फर्क पड़ता है। लेकिन तब हमें नहीं मालूम था कि इस बात को लेकर भी कोई बखेड़ा खड़ा कर सकता है। हम यहां पर एक बात बता दें कि हम लोगों को किसी भी ब्लागर मीट के लिए किसी प्रायोजक की जरूरत नहीं है। अपने अनिल जी ही इतने सक्षम हैं कि वे 50 क्या 500 ब्लागरों को खिलाने का खर्च उठा सकते हैं, और उन्होंने हमेशा खर्च उठाया भी है। वैसे भी जब इस मीट की रूपरेखा तय की गई थी तब सोचा भी नहीं गया था कि इतने ज्यादा ब्लागर आ सकते हैं।

अब हम आते हैं पंकज अवधिया जी की बात पर जिसका उल्लेख अनिल जी ने अपने ब्लाग में किया है कि पंकज जी कहते हैं कि गुप्त एजेंडे के कारण ब्लागरों का एक समूह बैठक से दूर रहा। पहली बात वे किस समूह की बात कर रहे हैं इसका उनको खुलासा करना चाहिए। जहां तक हम समझते हैं कि ब्लागर मीट में छत्तीसगढ़ के लगभग सभी ब्लागर शामिल थे। हो सकता है जिनको हम लोग न जानते हों ऐसा कोई ब्लागर छूट गया हो, लेकिन कम से कम ऐसा कोई नामी ब्लागर तो नहीं छूटा। वैसे भी जिनको यह लग रहा था कि हमारी मीट में कोई गुप्त एजेंडा था और उनको यह एजेंडा रास आना नहीं था तो उनका मीट में न आना ही ठीक था। हमें मालूम है कि जिन्होंने भी इस मीट से दूरी बनाकर रखी थी दरअसल उनको भी छत्तीसगढ़ के ब्लागरों की एकता रास नहीं आ रही होगी।

हमारी मीट का एक मात्र लक्ष्य, मकसद और खुला या फिर गुप्त जो भी समझा जाए एजेंडा छत्तीसगढ़ के ब्लागरों में प्यार-मोहब्बत का पैगाम देना था। अब इससे कोई विचलित होता है तो होते रहे हमारी बला से। वैसे भी छत्तीसगढ़ के ब्लागरों ने जबसे एकता दिखाने का काम किया है ब्लाग जगत का एक वर्ग दहशत में है। और इस दहशत वाले वर्ग के लोग ही हमारे बीच में गलतफहमियां पैदा करने के लिए सारे हथकंडे अपना रहे हैं। लेकिन किसी का भी हथकंडा काम आने वाला नहीं है। बातें तो और भी हैं बहुत कुछ लिखने के लिए लेकिन फिलहाल इतना ही आगे हम और जरूर लिखेंगे। चलते-चलते हम एक बात और बता दें कि ब्लागर मीट में सबको बिना किसी भेदभाव के आमंत्रित किया गया था, इसमें कोई भी तेरा या मेरा वाली बात नहीं थी।

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बुधवार, फ़रवरी 03, 2010

365 दिनों के हो गए आज हम

ब्लाग जगत में आज हम 365 दिनों के हो गए हैं। ठीक आज के ही दिन हमने खेलगढ़ के माध्यम से ब्लाग बिरादरी से नाता जोड़ा था। इस एक साल के सफर में हमने खेलगढ़ के साथ अपने दूसरे ब्लाग राजतंत्र के माध्यम से ब्लाग बिरादरी से बहुत ज्यादा प्यार पाया है। वैसे आज हमारे ब्लाग खेलगढ़ का जन्म दिन है। एक साल में हमने इस ब्लाग में 663 पोस्ट लिखी है। इधर हमने राजतंत्र में अभी एक साल में 20 दिन बाकी रहते 366 पोस्ट लिखी है।

हमने ब्लाग जगत में 3 फरवरी 2009 को खेलगढ़ के माध्यम से कदम रखा था तब हमें मालूम नहीं था कि हमारे लिखने का कारवां इतना लंबा हो जाएगा। लेकिन ब्लागिंग के नशे में हम ऐसे फंसे हैं कि अब इसके बिना रहा नहीं जाता है। वैसे हम एक बात बता दें कि हमारे लिए ब्लाग की दुनिया कोई नई नहीं है। करीब तीन साल पहले हमने इस दुनिया में हरफनमौला नाम के ब्लाग के साथ कदम रखा था। लेकिन हम ब्लाग जगत में अपने जीवन को 365 दिनों का ही मानते हैं। खेलगढ़ में एक साल के अंदर हमने 663 पोस्ट लिखी है और हम इन पोस्ट पर 165 टिप्पणियां मिली हैं। इसी के साथ हमारे इस ब्लाग को पांच हजार से ज्यादा पाठकों ने पढ़ा है।

खेलगढ़ के बाद हमने राजतंत्र के नाम से दूसरा ब्लाग प्रारंभ किया। अभी इसमें लिखते हुए हमें एक साल पूरा नहीं हुआ है और इस ब्लाग ने ब्लाग जगत में अपनी एक विशेष पहचान बना ली है। राजतंत्र की बात करें तो इसमें हमने आज की पोस्ट को मिलाकर अब तक 366 पोस्ट लिखी है। इन पोस्टों पर हमें 3595 टिप्पणियां मिली हैं। इसी के साथ इस ब्लाग में हमें 29700 पाठक मिले हैं। हमारे इस ब्लाग के जहां 48 समर्थक हैं, वहीं इसका सक्रियता क्रमांक 2 फरवरी को चिट्ठा जगत में 41 था। चिट्ठा जगत में कुछ दिनों पहले हमारा सक्रियता क्रमांक 36 हो गया था।

हम अपने दोनों ब्लागों की बात करें तो अब तक हमने दोनों को मिलाकर 1029 पोस्ट लिखी है। हमें इस बात की खुशी है कि हमारे ब्लाग राजतंत्र ने काफी कम समय में इतना अच्छा काम किया है कि आज उसकी एक अलग पहचान है। हम इसके लिए अपने सभी ब्लागर मित्रों के तहे दिल से आभारी है और उम्मीद करते हैं कि हमें उनका प्यार और स्नेह इसी तरह से मिलता रहेगा। हमारी कोशिश होगी कि जब राजतंत्र का एक साल पूरा हो तो खेलगढ़ और राजतंत्र को मिलाकर हमारी पोस्ट का आंकड़ा 11 सौ तक पहुंच जाए। आशा है हम 20 दिनों में 71 पोस्ट तो लिख ही लेंगे। वैसे इससे ज्यादा भी पोस्ट हो सकती है।

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मंगलवार, फ़रवरी 02, 2010

हजार-पांच सौ के नोट बंद करने से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा

एक दवाई दुकानदार का कहना है कि अगर हजार और पांच सौ के साथ साथ सौ रुपए के नोट भी बदं कर दिए जाने तो अपने देश में भ्रष्टाचार पर कुछ हद तक अंकुश लग सकता है। भ्रष्टाचार के साथ दो नंबर की काली कमाई में ही बड़े नोटों का उपयोग किया जाता है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि इन कामों में बड़े नोटों का उपयोग होता है, पर क्या महज नोट बंद कर देने से ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकता है, यह सोचने वाली बात है। वैसे बड़े नोटों को बंद करवाने का दम है किसमें।

कल रात को हम एक मेडिकल स्टोर में दवाई लेने गए थे। हमने दवाई लेने के बाद जब दुकानदार को एक पांच सौ का नोट दिया, तो दुकानदार काफी देर तक उस नोट को परखता रहा कि वह असली है या नकली। ऐसे में हमने उनसे कहा कि सरकार अगर हजार और पांच सौ के नोटों को बंद कर दे तो परेशानी नहीं होगी। हमने तो महज आम जनों और दुकानदारों को नकली नोटों की वजह से होने वाली परेशानी को ध्यान में रखते हुए यह बात कही थी, पर उन दुकानदार महोदय ने कहा कि सर केवल आम जनों की ही परेशानी दूर नहीं होगी बल्कि भ्रष्टाचार के साथ दो नंबर के धंधों पर भी रोक लग जाएगी। उन दुकानदार महोदय ने कहा कि जिनता भी काला-पीला काम होता है सब बड़े नोटों से होता है। उन्होंने तो यह भी कहा कि सौ के नोट भी सरकार को बंद कर देने चाहिए।

सच में सोचने वाली बात है कि क्या वास्तव में इन बड़े नोटों को बंद कर देने से देश को भ्रष्टाचार से मुक्त किया जा सकता है। हमें तो लगता है कि जरूर ऐसा होने से कुछ हद तक को भ्रष्टाचार पर अंकुश लग ही सकता है। लेकिन सोचने वाली बात यह भी है कि जब सरकार में बैठे लोग ही पूरी तरह से भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं तो ऐसे में बड़े नोटों को बंद करने का फरमान कौन जारी कर सकता है। बहरहाल यह बात ठीक है कि बड़े नोट बंद कर लिए जाए तो नकली नोटों से भी जनता को मुक्ति मिल जाएगी, वरना नकली नोटों के चक्कर में गरीबों को भी काफी नुकसान हो जाता है।

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सोमवार, फ़रवरी 01, 2010

हमें भी आने लगा है चैटिंग में मजा

चैटिंग के बारे में हम जानते तो काफी समय से हैं, पर हमें इसमें पहले कोई रूचि नहीं थी। लेकिन अब हमें भी इसमें मजा आने लगा है। वैसे चैटिंग से हमने कुछ दिनों पहले ही नाता जोड़ा है।

तीन-चार दिन पहले जब दोपहर को घर पर बैठे थे, तो देखा कि विवेक रस्तोगी जी आन लाइन थे। हमने उन्हें नमस्कार किया तो उधर से भी जवाब आया। इसके बाद रस्तोगी जी को हमने बताया कि हम पहली बार चैटिंग कर रहे हैं। उन्होंने हमसे पूछा कि कोई परेशानी हो तो बताएं, हमने उनको बताया कि हम भी हिन्दी में लिखना चाहते हैं क्या किया जाए। उन्होंने इसके बारे में जानकारी दी। उनकी जानकारी पर हम अभी अमल नहीं कर पाए है।

रस्तोगी जी के बाद हमने अपने मित्र ललित शर्मा जी से भी चैटिंग की। उनसे हमारी रोज ही चैटिंग होती है। ललित शर्मा जी के बाद हमने अजय झा जी से भी चैटिंग पर चर्चा की। उनको भी हमने बताया कि हमने अभी-अभी चैटिंग सिखी है। वैसे तो हमें काफी कम समय मिल पाता है, लेकिन समय निकाल कर हम चैटिंग करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि अपने मित्रों से कुछ वार्ता लाप हो सके मुफ्त में। अब फोन पर बतियाने के तो पैसे लगते हैं, लेकिन चैटिंग एक ऐसा साधन है इस पर जितना चाहे बतिया लें कोई पैसा खर्च होने वाला नहीं है।

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