वफा का सिला
उनकी बेरूखी देखकर हम दिल थामकर रह गए।।
दिए हैं जो जख्म हमें उसने सिए जाते नहीं
गम के आंसू अब पीए जाते नहीं।।
डुब गया है दिल यादों में उनकी इस कदर
कटता ही नहीं अब तन्हा जिंदगी का सफर।।
छोड़कर ही जब साथ चल दिए हमसफर
फिर काटे कैसे जिंदगी का लंबा सफर।।
जिसे हमने खुदा की तरह ही पुजा
वहीं समझने लगी हैं हम अब दुजा।।
वफा का क्या खुब हमें सिला मिला
कांटों से हमारा दामन भर गया।
(नोट: यह कविता हमारी 20 साल पुरानी डायरी से ली गई है)
4 टिप्पणियाँ:
वफा तकलीफ देय तो होती ही है बहुत अच्छी लगी रचना शुभकामनायें
जिसे हमने खुदा की तरह ही पुजा
वहीं समझने लगी हैं हम अब दुजा।।
यही सत्य है-जब खटारा राजदुत की जगह कोई चमाचम होंडा वाला मिल जाता है तब्।
वाह!! डायरी और पढ़्वाई जाये..आनन्द आया!
बेहतरीन। लाजवाब।
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