पता नहीं कितनी पोस्ट में टिपिया आएं हम
हम हमेशा सोचते थे कि काश हमें भी दूसरों की पोस्ट में ज्यादा से ज्यादा टिपयाने का मौका मिलता। लेकिन क्या करें कम्बख्त ये वक्त है कि हमें मिलता ही नहीं। लेकिन न जाने कैसे कल यह वक्त हम पर मेहरबान हो गया और रात को करीब साढ़े तीन बजे नींद खुल गई। नींद न आने के कारण हम कम्प्यूटर पर बैठ गए और इस समय का सदउपयोग करते हुए पहली बार हमने दो दर्जन से ज्यादा ब्लागों में जाकर टिप्पणियां कीं। हर ब्लाग में अलग-अलग टिप्पणी की और वो भी तुकबंदी में।
5 फरवरी की रात को हम करीब 11 बजे सोए। इसके बाद हमारी नींद अचानक साढ़े तीन बजे खुल गई। हमने काफी सोने का प्रयास किया, लेकिन नींद थी कि आने का नाम ही नहीं ले रही थी। ऐसे में सोचा कि चलो यार कम्प्यूटर पर बैठकर देखा जाए कि अपनी ब्लाग बिरादरी में क्या चल रहा है। नेट खोलने के बाद हमने सोचा कि चलो आज मौका है तो कुछ ब्लागों पर टिप्पणियों की बारिश कर दी जाए। पहले सोचा कि यार ज्यादा लिखने की बजाए अति सुंदर या फिर नाइस लिखकर ही काम चलाया जाए क्या। ऐसे में पहले हमने दो-तीन पोस्टों पर नाइस टिपियाया दिया। लेकिन हमें यह अच्छा नहीं लगा तो हमने पेजमैकर खोला और अपनी हिन्दी टायपिंग का पिटारा चालू कर दिया। चाणक्य में टिप्पणी लिखते गए और उसको यूनीकोड में बदल कर टिप्पणी करने का जो सिलसिला प्रारंभ किया तो सुबह के कब सात बज गए पता ही नहीं चला।
इस बीच हमारी श्रीमती अनिता ग्वालानी भी उठ गई थीं। हमने उन्हें पांच बजे ही चाय बनाने के लिए कहा। हमने ब्रस करके चाय पी और कम्पयूटर से चिपके रहे। हमने अपनी बिटिया स्वप्निल को भी पांच बजे उठा दिया क्योंकि उनकी परीक्षा चल रही है। वह पढऩे बैठ गई और हम इधर अपना काम कर रहे थे। पता नहीं कितने ब्लागों पर हमने दो, चार, छह, आठ लाइनों की तुगबंदी में टिप्पणियां कर दीं। एक समय चिट्ठा जगत में हमारी एक साथ 10 टिप्पणियां दिख रही थीं। हमने कम से कम दो दर्जन से ज्यादा ब्लागों में तो जरूर टिप्पणियां की होंगी। टिप्पणियां करने के बाद हमें अच्छा लगा कि चलो हमें भी कुछ करने का मौका मिला।
हम भी हमेशा सोचते हैं कि अच्छे लेखन के लिए प्रोत्साहन देने टिप्पणी करनी चाहिए। लेकिन इस कम्बख्त वक्त का क्या किया जाए जो मिलता ही नहीं है। वो तो अच्छा हो निंद्रा रानी का जिन्होंने अपने आगोश से हमें कल रात बाहर कर दिया जिसके कारण हम टिप्पणी करने में सफल हो गए। ऐसा रोज-रोज तो नहीं हो सकता है। लेकिन हमने सोच लिया है कि रोज कम से कम पांच ब्लागों को पढऩे के बाद टिप्पणी करने का प्रयास करेंगे। हम सिर्फ प्रयास की ही बात कर सकते हैं वादा नहीं कर सकते हैं। पता नहीं कब कौन सा काम आ जाए। वैसे भी हम पत्रकारों को समय कहां मिल पाता है।
बहरहाल हमें इस बात की खुशी हैं कि हम उन ब्लागर मित्रों के ब्लाग में टिप्पणियां करके आएं जिनकी टिप्पणियों की बारिश हमेशा हमारे ब्लाग में होती है। वैसे हम टिप्पणी दें और टिप्पणी लें पर भरोसा नहीं करते हैं। लेकिन अगर कोई आपके घर बार-बार आए तो आपका भी फर्ज बनता है उनके घर कम से कम एक बार तो जरूर जाएं।
चलते-चलते हम एक बात और बता दें कि कल ही हमने रुपचंद शास्त्री जी के ब्लाग से ब्लागर मित्रों के नाम और पते लिए हैं। उसमें कई ब्लागरों के मोबाइल नंबर भी हैं। अब जब भी समय मिलेगा किसी ने किसी से फोन पर बात भी कर लेंगे।
6 टिप्पणियाँ:
बस प्रयास की ही आवश्यक्ता है और फिर जितना बन पाये. अच्छी पहल.
शादी की सालगिरह एक बार फिर मुबारक!
रोज कम से कम पांच (सार्थक) ब्लागों को पढऩे के बाद टिप्पणी करने का प्रयास अवश्य कीजिएगा
बी एस पाबला
खुदा करे आपकी नींद रोज उड़े..:)
यह बहुत अच्छा काम किया आपने, शुभकामनाएं.
रामराम.
खुदा की बड़ी मेहरबानी कि आप इतनी सारी टिप्पणियों के लिए समय निकाल सके. काश एक-दो मिनट और होते तो नाचीज़ का एकाध ब्लॉग भी पढ़ पाते (टिप्पणी भले ही न करते)
ांब आपकी निन्दिया रानी से अनुरोध करना पडेगा कि वो ब्लाग जगत पर मेहर्बान हो ये बात सही है लेकिन अगर कोई आपके घर बार-बार आए तो आपका भी फर्ज बनता है उनके घर कम से कम एक बार तो जरूर जाएं।\मगर हम तो वहाँ भी लगभग रोज़ जाते हैं जो विश्य हमे अच्छे लगते हैं वो चाहे हमारे ब्लाग पर न आयें--- असल मे अपनी रिटायर मेन्ट का फायदा उठा रहे हैं हम किसी पर एहसान नही कर रहे।हा हा हा मगर भाई आपके खेल गढ पर चाह कर भी कुछ लिख नही पाती खेलों का ग्यान नही है न
शुभकामनायें
एक टिप्पणी भेजें