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मंगलवार, नवंबर 30, 2010

बजट तीन करोड़, इनाम एक हजार

छत्तीसगढ़ राज्य खेल महोत्सव के लिए सरकार ने तीन करोड़ का बजट मंजूर किया है। इतने बड़े बजट के बाद भी राज्य स्तर की स्पर्धाओं के लिए महज एक हजार रुपए की इनामी राशि पर खेल बिरादरी में चर्चा हो रही है कि आखिर ऐसे आयोजन से किसका भला होगा। राज्य स्तर के आयोजन की तुलना अभी से रायपुर जिले में हुए आयोजन से की जाने लगी है। रायपुर जिले के आयोजन में खिलाडिय़ों को करीब ८ लाख रुपए का नकद इनाम दिया गया था, जबकि राज्य स्तर के आयोजन में बमुश्किल पांच लाख की ही इनामी राशि बंटेगी।
राज्य खेल महोत्सव के लिए बड़ी मशक्कत के बाद अंतत: वित्त विभाग ने तीन करोड़ का बजट मंजूर कर लिया है। इस बजट में से जिलों के आयोजन के लिए राशि देनी है। जानकारों का साफ कहना है कि जिलों को इस बजट में से बमुश्किल एक से सवा करोड़ की राशि ही दी जाएगी। बाकी राशि राज्य स्तर के आयोजन पर खर्च होनी है। ऐसा माना जा रहा है कि राज्य स्तर डेढ़ से पौने दो करोड़ की राशि खर्च की जाएगी। इतनी बड़ी राशि के आयोजन में खिलाडिय़ों के लिए जो इनामी राशि रखी गई है, उसको लेकर प्रदेश की खेल बिरादरी में नाराजगी है। खेल विभाग ने राज्य स्तर पर आयोजन के लिए पहले स्थान पर रहने वाले व्यक्तिगत और टीम खेलों के खिलाडिय़ों के लिए एक हजार और दूसरे स्थान के खिलाडिय़ों के लिए सात सौ पचास रुपए की राशि रखी है। खेलों से जुड़े लोगों का कहना है कि इतनी कम राशि में क्या होना है। इससे ज्यादा राशि रायपुर जिले के आयोजन में दी गई। पहले स्थान पर ११ सौ रुपए दिए गए थे। इसी के साथ ेरायपुर जिले में तीसरे स्थान के खिलाडिय़ों को भी नकद राशि दी गई, जबकि राज्य स्तर में तीसरे स्थान के खिलाडिय़ों को नकद इनाम नहीं दिया जा रहा है।
जिले का आयोजन बेहतर था
खेलों के जानकारों का कहना है कि राज्य स्तर के आयोजन के लिए जिस तरह की रुपरेखा बनाई गई है, उससे साफ लगता है कि इससे तो बेहतर आयोजन रायपुर जिले का हुआ था। इस आयोजन में जहां ३४ खेल हुए वहीं खिलाडिय़ों को करीब ८ लाख की इनामी राशि बांटी गई, जबकि राज्य स्तर के आयोजन के लिए महज पांच लाख की इनामी राशि रखी गई है। ३४ खेलों का आयोजन जब महज २० लाख में हो गया था, जिसमें करीब ३५०० खिलाड़ी आए थे, तो फिर राज्य स्तर के आयोजन का बजट कैसे एक करोड़ से ज्यादा हो सकता है जिसमें करीब साढ़े चार हजार खिलाडिय़ों के आने की संभावना जताई जा रही है।
हर खिलाड़ी को मिले नकद इनाम
खेल विभाग ने यह तय किया है कि १८ खेलों में शामिल होने सभी खिलाडिय़ों को ट्रेक शूट दिया जाएगा। इस पर करीब ५० लाख की राशि खर्च करने की बात की जा रही है। इस बारे में फुटबॉल संघ के मुश्ताक अली प्रधान, शिरीष यादव, सुमित तिवारी सहित खेल के जानकारों का कहना है कि अगर खेल विभाग ट्रेक शूट के स्थान पर हर खिलाड़ी को नकद एक हजार की राशि देता है तो इससे खिलाडिय़ों में उत्साह आएगा। जानकार कहते हैं कि खिलाडिय़ों को ट्रेक शूट देने के लिए अगर स्कूली शिक्षा विभाग और खेल संघों को पैसा दिया जाएगा तो खिलाडिय़ों को एक हजार के ट्रेक शूट के स्थान पर बमुश्किल दो से तीन सौ रुपए वाले ही ट्रेक शूट मिलेंगे और बाकी पैसे अधिकारियों की जेबों में चले जाएंगे।

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सोमवार, नवंबर 29, 2010

खानापूर्ति का कैम्प

छत्तीसगढ़ की मेजबानी में होने वाली राष्ट्रीय स्कूली नेटबॉल स्पर्धा के लिए प्रदेश की टीमों का प्रशिक्षण शिविर खानापूर्ति करने लगाया गया है। २४ नवंबर का शिविर २६ को प्रारंभ हुआ। पहले दिन खिलाडिय़ों को बॉल भी नहीं दी गई। महज पांच दिनों के शिविर में खिलाडिय़ों से पदक की उम्मीद की जा रही है। वैसे भी स्कूली खेलों के प्रशिक्षण शिविर हमेशा खानापूर्ति वाले होते हैं।
राजधानी में एक दिसंबर से राष्ट्रीय स्कूली खेलों में अंडर १९ नेटबॉल चैंपियनशिप होने वाली है। इसके लिए प्रदेश की टीम तो सितंबर में ही बना दी गई थी, लेकिन प्रशिक्षण शिविर अभी लगाया गया है। स्कूली शिक्षा विभाग के सहायक संलाचक खेल एसआर कर्ष का कहना है कि हमने प्रशिक्षण शिविर की जिम्मेदारी रायपुर जिला शिक्षा विभाग को दी है। उन्होंने बताया कि शिविर २४ नवंबर से ३० नवंबर तक लगाने कहा गया था। इसके लिए ३६ हजार का बजट भी दिया गया है। उन्होंने पूछने पर कहा कि अगर शिविर २४ के स्थान पर २६ नवंबर से लगा है तो इसके लिए जिला शिक्षा विभाग जिम्मेदार है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि स्कूली खेलों में एक सप्ताह से ज्यादा का शिविर लगाना संभव नहीं होता है।
इधर रायपुर जिले के शिक्षा विभाग के खेल अधिकारी सीएस बघेल का कहना है कि खिलाडिय़ों ने न आने की वजह से शिविर प्रारंभ करने में विलंब हुआ है। उन्होंने माना कि खिलाडिय़ों को २६ नवंबर को शाम को चार बॉल दी गई है। एक तरफ जहां राष्ट्रीय स्पर्धा की तैयारी के लिए खिलाड़ी चार बॉल को कम रहे हैं, वहीं श्री बघेल का कहना है कि इतनी बॉल पर्याप्त है।
खिलाडिय़ों का प्रशिक्षण शिविर आउटडोर स्टेडियम में चल रहा है, यहां पर बालक और बालिका टीमें को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। टीमों को प्रशिक्षण देने वाले प्रशिक्षकों के साथ खिलाडिय़ों का भी ऐेसा मानना है कि महज पांच दिन का प्रशिक्षण पर्याप्त नहीं है। इतने कम समय में टीम से पदक की उम्मीद कैसे की जा सकती है।
खेल के जानकारों का कहना है कि स्कूली खेलों में हमेशा प्रशिक्षण शिविर के नाम से खानापूर्ति होती है। राजधानी में प्रशिक्षण शिविर होने की वजह से खिलाड़ी आ रहे हैं, वरना खिलाड़ी पहले दिन के बाद अंतिम दिन आते हैं और बजट शिविर की व्यवस्था करने वालों की जेब में चला जाता है।

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रविवार, नवंबर 28, 2010

अबे ये चिट्ठा जगत क्या है?

हमारे एक मित्र ने अचानक हमसे कल पूछा लिया कि अबे ये चिट्ठा जगत क्या बला है जिसके पीछे तू नहा धोके पड़ा है। मैंने तेरे ब्लाग में अभी दो बार उसके बारे में पढ़ा है। मेरी तो समझ में कुछ आया नहीं कि आखिर माजरा क्या है।
हमने अपने उस मित्र को बताया कि यार चिट्ठा जगत एक एग्रीगेटर है जो ब्लागों को अपने एग्रीगेटर में स्थान देता है और साथ ही रेटिंग भी देता है।
तो इससे क्या हुआ?
अबे हुआ कुछ नहीं, साले तुझे सब कुछ विस्तार से समझाने पर ही समझ आएगा, वरना तू हमारा भेजा खाते रहेंगे। तो सुन जब किसी के ब्लाग की किसी पोस्ट की चर्चा दूसरे ब्लाग में होती है तो उससे उस ब्लाग का हवाला बढ़ता है।
मित्र से बीच में टोका साले लगता है कि इसी हवाले के चक्कर में लोग ब्लाग लिखते हैं।
हमने कहा साले उल्टी खोपड़ी, जब भी सोचेगा उल्टा ही सोचेगा। बेटा ये वो हवाला नहीं है जो तू सोच रहा है। ये हवाला ब्लाग की रेटिंग तय करने वाला है।
अबे चाहे ब्लाग की रेटिंग तय हो या फिर पैसों की क्या फर्क पड़ता है, हवाला तो हवाला होता है। आखिर इससे भी तो कुछ हो ही रहा है न।
हमने कहा कि अबे सुनना है तो सुन नहीं तो साले भाड़ में जा।
हमारे मित्र ने कहा कि चल ठीक है, बता।
हमने उसे बताया कि हवालों और प्रविष्ठियों (प्रविष्यिां उसे कहा जाता है जो किसी ब्लाग के पोस्ट की चर्चा दूसरे ब्लाग में होती है) के कारण ही चिट्टा जगत किसी भी ब्लाग की रेटिंग तय करता है। इसी से साथ और कुछ बातें भी रेटिंग तय करने में शामिल हैं। हमने जब से ब्लाग जगत में कदम रखा है, हमारे साथ एक बार नहीं कई बार ऐसा हुआ है कि हमारे ब्लाग के हवाले और प्रविष्ठियां गायब हो जाते हैं।
मित्र ने कहा- गायब हो जाते हैं का क्या मलतब है।
हमारा मतलब है कि चिट्टा जगत में वे किसी भी कारणवश नहीं जुड़ पाते हैं। ऐसे में हमें लगा कि कुछ गड़बड़ है इसलिए हमें चिट्ठा जगत के बारे में लिखना पड़ा। अब तू तो जानता है कि जब हम दूसरों के अन्याय के खिलाफ लड़ जाते हैं तो अपने साथ हो रही किसी गलत बात का विरोध न किया जाए तो गलत है न।
हमारे मित्र ने कहा- अबे तेरी बात ठीक तो है, पर एक बात बता तूझे रेटिंग में आगे-पीछे होने से क्या मिल जाएगा, क्या उससे तेरे को कोई हवाला मिल जाएगा। (हमारे मित्र के कहने का मतलब था कि क्या कोई फायदा हो जाएगा)
हमने कहा यार ऐसी कोई बात नहीं है।
उसने कहा- फिर क्यों किसी के पीछे पड़ा है। तू साले अपने लेखन पर ध्यान दे, क्यों कर ऐसे किसी चिट्ठा, विट्ठा जगत के बारे में सोचता है।  ये सब फालतू समय खराब करने के अलावा कुछ नहीं है। जब देखो कहता है कि तेरे पास समय नहीं, फिर से क्या है? समय है तभी तो फालतू में किसी के पीछे पड़ा है। मेरी मान तो वो जो भी जगत है जो कर रहा है, उसे करने दे तू अपना काम करें। अबे कदर करने वाले तेरे लेखन की कदर करेंगे और तूझे पढऩे वाले पढ़ेंगे ही फिर चाहे चिट्टा जगत हो या कोई भी जगत उसमें तेरी रेटिंग हो या न हो। अब तू बता कि तेरा ब्लाग हम लोग (हमारे मित्र मंडली) क्यों पढ़ते हैं, जबकि हम लोगों को इस साले ब्लाग-वाग से कुछ लेना-देना नहीं है। ऐसे ही जिनको तेरी लेखनी पसंद है, वे तेरा ब्लाग पढ़ते हैं, तू अपने पाठकों और प्रशंसकों के बारे में सोचा कर और उनको क्या अच्छा पढऩे के लिए दे सकता है, इस पर ध्यान लगाया कर, फालतू की बातें आज से बंद, ये मेरा ही नहीं हमारी मित्र मंडली का आदेश है, समझा कि नहीं।
हमने कहा ठीक है जहां-पनाह अब से ऐसा ही होगा।

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शनिवार, नवंबर 27, 2010

न भूलेंगे हार, न भूलेंगे प्यार

विश्व कप क्रिकेट में खेलने वाली कनाडा क्रिकेट टीम छत्तीसगढ़ से खट्टी-मीठी यादें लेकर शुक्रवार को लौट गई। टीम यहां से मुंबई गई है जहां उसे कुछ अभ्यास मैच खेलने हैं। टीम के कप्तान जुबीन सबकरी के साथ कनाडा क्रिकेट बोर्ड के रणजीत सिंह सैनी और अन्य खिलाडिय़ों ने एक स्वर में माना कि वे छत्तीसगढ़ से मिली और हार और प्यार दोनों को कभी नहीं भूल पाएंगे। इन्होंने कहा कि जब भी मौका मिलेगा उनकी टीम छत्तीसगढ़ आने को तैयार रहेगी।
छत्तीसगढ़ के साथ तीन अभ्यास मैचों की शृंखला में तीनों मैच गंवाने वाली कनाडा टीम के कप्तान जुबीन सबकरी के साथ टीम के सलामी बल्लेबाज हिरल पटेल ने कहा कि उनकी टीम ने सोचा नहीं था कि छत्तीसगढ़ की टीम इतनी अच्छी हो सकती है। इन्होंने कहा कि हमारी टीम के कुछ राष्ट्रीय खिलाडिय़ों के न रहने की वजह से हमारी टीम उतना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई जितना करना चाहिए था। हमारी टीम को छत्तीसगढ़ ने न सिर्फ कड़ी टक्कर दी, बल्कि तीनों मैच भी जीते। इन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम का विकेट बहुत अच्छा था। हमें पहले मैच के बाद दूसरे मैच में भी अपने गेंदबाजों की कमी खली। वैसे दूसरे मैच में हमारा एक और गेंदबाज हेनरी उसेंडी आ गया था, पर उस मैच में छत्तीसगढ़ की टीम में अंडर १९ के विश्व कप में खेल चुके अनुभवी बल्लेबाज हरप्रीत सिंह आ गए थे। हरप्रीत ने शतक बनाया। इसी के साथ मप्र की रणजी टीम से खेलने वाले अनुभवी गेंदबाज टी. सुधीन्द्रा ने हमारे बल्लेबाजों को परेशान किया। इन खिलाडिय़ों के साथ टीम के कप्तान आशीष बगई जो कि घायल होने की वजह ने नहीं खेल पाए। इन सबने माना कि छत्तीसगढ़ का स्टेडियम वास्तव में अंतरराष्ट्रीय मैचों के लायक है। ऐसा स्टेडियम उनके देश में भी हो ऐसा इनका मानना है। इन खिलाडिय़ों के साथ टीम के ज्यादातर खिलाडिय़ों ने यह माना कि उनका छत्तीसगढ़ दौर कई मायनों में यादगार रहा। इन्होंने कहा कि जब वे कनाडा से भारत आए थे, और इसके बाद छत्तीसगढ़ आए तो सोचा नहीं था कि यहां का एसोसिशन उनके लिए इतनी अच्छी व्यवस्था करेगा। हमारे लिए यह सुखद है कि किसी राज्य की सरकार भी एक अभ्यास मैचों की शृंखला के लिए इतनी गंभीर हो सकती है।
कनाडा बोर्ड के अध्यक्ष रणजीत सिंह सैनी ने एक बार फिर से कहा कि उनको और उनकी टीम को जैसा सम्मान छत्तीसगढ़ में मिला है, उनके लिए वे हमेशा छत्तीसगढ़ स्टेट क्रिकेट संघ के आभारी रहेंगे। उन्होंने कहा कि मुङो जब यह मालूम हुआ कि हमारे खिलाडिय़ों के लिए यहां पर इतनी अच्छी व्यवस्था है तो मुङो जानकार खुशी हुई। उन्होंने कहा कि हमें जैसे ही मौका मिलेगा हम भी चाहेंगे कि हमारा देश छत्तीसगढ़ के खिलाडिय़ों की मेजबानी करे। उन्होंने बताया कि उनको भारत में आकर बहुत कुछ सीखने और देखने का मौका मिला है। श्री सैनी ने कहा कि हम अपने देश में जाकर क्रिकेट का विकास करने में छत्तीसगढट के साथ भारत के अन्य राज्यों की योजनाओं पर अमल करने का प्रयास करेंगे। श्री सैनी ने पूछने पर कहा कि इसमें में भी कोई दो मत नहीं है कि हम छत्तीसगढ़ से मिली हार को भी नहीं भूल सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे खिलाडिय़ों को दिल्ली, छत्तीसगढ़ और मुंबई में जो खेल का अनुभव मिलेगा, वह निश्चित ही विश्व कप के मैचों में काम आएगा। उन्होंने कहा कि उनकी टीम का मकसद अभ्यास करना है, अब अभ्यास करने के लिए कोई टीम छोटी-बड़ी नहीं होती है। श्री सैनी ने छत्तीसगढ़ टीम की तारीफ करते हुए कहा कि इस टीम के बारे में क्या कहा जाए, टीम के प्रदर्शन ने ही बता दिया है कि टीम कितनी अच्छी है। छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी प्रतिभावान हंै। ये जरूर अपने राज्य का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करेंगे।
छत्तीसगढ़ तो मेजबान नंबर वन है
कनाडा क्रिकेट टीम के खुश होकर लौटने पर छत्तीसगढ़ स्टेट क्रिकेट संघ के अध्यक्ष बलदेव सिंह भाटिया कहते हैं कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि अपना राज्य मेजबान नंबर वन है। हमारे राज्य में जब भी कोई टीम आई है तो वह हमेशा यहां से खुश होकर लौटी है। उन्होंने बताया कि हमारे संघ ने पिछले साल अंडर १९ की एसोसिएट ट्रॉफी की जिस तरह से मेजबानी की थी उसी का परिणाम है कि हमें इस बार अंडर १६ और अंडर २२ की मेजबानी भी बीसीसीआई ने दी है। उन्होंने कहा कि यह हमारे राज्य के लिए सौभाग्य की बात है कि विश्व कप में खेलने जा रही कनाडा की टीम के पांव अपने राज्य में पड़े। उन्होंने कहा कि अब हमारे प्रयास एसोसिएट ट्रॉफी की अंडर १६ और अंडर २२ की स्पर्धा को भी यादगार बनाना है। अंडर २२ की स्पर्धा एक दिसबंर से अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम में होगी। 

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शुक्रवार, नवंबर 26, 2010

बीबी नंबर वन?

पढ़ी-लिखी हो बीबी काम कुछ करती नहीं
सास-ससुर की बात क्या पति से भी डरती नहीं।।
सुबह दस बजे तक आराम से सोती रहती हैं
उठते साथ पति को बेड-टी का आर्डर देती हैं।।
फिर पति को हो चाहे दफ्तर के लिए देर
बनाने पड़ते हैं पत्नी के लिए तीतर-बटेर।।
शाम को जब श्रीमान दफ्तर से आते हैं
घर में जमी हुई किटी पार्टी पाते हैं।।
सबके लिए करना पड़ता है नाश्ता तैयार
कर्ज लेकर चाहे क्यों न होना पड़े कंगाल ।।
मगर फिर भी श्रीमती जी को समझ नहीं आती है
रोज नई-नई फरमाईशें पूरी करवाती हैं।।
जिस दिन कोई फरमाईश पूरी नहीं हो पाती
घर से साथ पति देव की भी है सामत आती।।
दर्पण, सोफे, कुर्सियां बहुत कुछ टूटते हैं
इतना ही नहीं पति देव भी बेलन से कुटते हैं।। 
इन सबके बाद श्रीमती का सिर दुखने लगता है
फिर पति देव को उनका सर भी दबाना पड़ता है।।
पढ़ी-लिखी से शादी करने का यही अंजाम होता है
पति को बीबी का गुलाम बनना पड़ता है।।
इसलिए पढ़ी-लिखी से अनपढ़ बीबी अच्छी होती है
सास-ससुर को मां-बाप पति को परमेश्वर समझती है।।
घर की चार दीवारी को ही अपना स्वर्ग समझती है
कभी घर में कोई किटी पार्टी जैसे काम नहीं करती है।।
पति की सेवा को ही अपना धर्म समझती है
सास-ससुर का सम्मान अपना कर्तव्य समझती है।।
मुसीबत में अपने पति को हौसला भी देती हंै
गम को गले लगातर खुशियां सबको देती हैं।।
घर की आन की खातिर जान निछावर करती हैं
सबके दुखों को अपने आंचल में समेट लेती हैं।।
भले दुनिया इसे अनपढ़ और गंवार कहती है
मगर पढ़ी-लिखी से यह लाख अच्छी होती हैं।।
अब आप ही बताएं जनाब कौन सी
बीबी नंबर वन होती है।।

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गुरुवार, नवंबर 25, 2010

कनाडा जैसा लगा छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ आकर हम लोगों को लग ही नहीं रहा है कि हम लोग कनाडा से बाहर आए हैं। यहां पर हमारी टीम को जैसा प्यार और सम्मान मिला है, उससे हमारी पूरी टीम उत्साहित है और हमारा ऐसा सोचना है कि हम यहां बार-बार आए और यहां की टीम को भी अपने देश में खेलने के लिए बुलाए।
ये बातें अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम में चर्चा करते हुए कनाडा क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष र्रणजीत सिंह सैनी ने कहीं। उन्होंने कहा कि उनको कल्पना नहीं थी कि उनकी टीम का यहां पर इस तरह से स्वागत सत्कार होगा। उन्होंने कहा कि उनको यह जानकार भी आश्चर्य लगा कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह खुद कनाडा और छत्तीसगढ़ टीमों के बीच होने वाले मैच के लिए रूचि दिखाई और मैच में सुरक्षा के इंतजाम के साथ खिलाडिय़ों के रहने और खाने के बारे में छत्तीसगढ़ स्टेट क्रिकेट संघ के पदाधिकारियों से चर्चा की।
दर्शकों पर फिदा
श्री सैनी ने पूछने पर कहा कि यहां का सिर्फ स्टेडियम ही खुबसूरत नहीं है, बल्कि यहां के दर्शक भी खेल प्रेमी हैं। उन्होंने कहा कि उनकी टीम के खिलाडिय़ों के अच्छे प्रदर्शन पर दर्शकों ने उनको दाद देने में कोई कमी नहीं की। पूछने पर उन्होंने बताया कि उनके देश में छत्तीसगढ़ जैसा स्टेडियम तो नहीं है, लेकिन वहां पर दो अंतरराष्ट्रीय और ६ राष्ट्रीय स्तर के मैदान हैं।
भारत की मदद चाहते हैं
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हमारी टीम के भारत दौरे का मकसद यह है कि हम अपने देश के क्रिकेट को बढ़ाने के लिए भारत की मदद चाहते हैं। मदद इस तरह से की हमारे देश में साल में सात माह मौसम ऐसा रहता है कि वहां पर खेल नहीं हो सकता है। ऐसे समय में हम चाहेंगे कि हमारी टीमें भारत के विभिन्न राज्यों में आकर मैच खेलें ताकि हमारे खिलाडिय़ों को सीखने का मौका मिल सके। उन्होंने कहा कि हम यहां पर संबंध मधुर करने आए हैं। उन्होंने कहा कि हम छत्तीसगढ़ की टीम को भी कनाडा आमंत्रित करेंगे।
सुविधाओं का जायजा ले रहे हैं
श्री सैनी ने अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम की तारीफ करते हुए कहा कि वास्तव में इसकी डिजाइन कमाल की है। यहां पर इमारत को बड़ा करने की बजाए मैदान पर ध्यान दिया गया है। उन्होंने कहा कि हम भारत में सुविधाओं का भी जायजा ले रहे हैं ताकि अपने देश में इस तरह की सुविधाएं अपने खिलाडिय़ों को दिला सके।
चार साल में आस्ट्रेलिया जैसे होंगे
श्री सैनी ने कहा कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि हमारे देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। हमारी टीम तीन बार विश्व कप में खेलने की पात्रता प्राप्त कर चुकी है। हम लोग चार साल की योजना बनाकर काम कर रहे हैं। हमने इसके लिए प्रायोजकों की मदद ली है। हमारे खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण दिलाने का काम किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हमारी टीम चार साल में आस्ट्रेलिया जैसी हो जाएगी।
छत्तीसगढ़ की टीम लाजवाब
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा कि मैंने छत्तीसगढ़ टीम का खेल देखा है यह टीम वास्तव में लाजवाब है। इस टीम के खिलाडिय़ों का प्रदर्शन देखने लायक है। उन्होंने हरप्रीत सिंह के खेल की तारीफ करते हुए कहा कि हरप्रीत बहुत अच्छा खिलाड़ी है। उन्होंने बताया कि हरप्रीत उनके पुत्र का मित्र है। उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारी टीम को छत्तीसगढ़ में आकर बहुत कुछ सीखने का मौका मिला है। उन्होंने कहा कि हमारा बोर्ड छत्तीसगढ़ स्टेट क्रिकेट संघ का आभारी है जिन्होंने हमारी टीम के लिए बहुत अच्छी व्यवस्था छत्तीसगढ़ में की है। उन्होंने कहा कि हम तो छत्तीसगढ़ को अपना दूसरा घर मान रहे हैं। हम यहां आएं हैं तो हम लग ही नहीं रहा है कि हम अपने देश के बाहर हैं।
सरकार से कम मदद मिलती है
श्री सैनी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि कनाडा की सरकार से क्रिकेट को उतनी मदद नहीं मिलती है जितनी ओलंपिक के खेलों को मिलती है। उन्होंने बताया कि एक समय क्रिकेट  कनाडा का राष्ट्रीय खेल था, लेकिन अब नहीं है। कनाडा में पहले नंबर का खेल फुटबॉल है इसके बाद क्रिकेट का नंबर आता है। उन्होंने बताया कि क्रिकेट का इतिहास उठाकर देखा जाए तो मालूम होगा कि क्रिकेट का पहला मैच कनाडा और अमरीका के बीच खेला गया था।
अब नजरें विश्व कप पर
श्री सैनी ने पूछने पर बताया कि उनकी टीम की नजरें अब विश्व कप हैं। उन्होंने बताया कि हमारी टीम के पांच राष्ट्रीय खिलाड़ी यहां नहीं आ सके हैं जिसके कारण टीम का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं है। उन्होंने कहा कि टीम के लिए यह बी दुखद रहा कि टीम के कप्तान यहां आने के बाद घायल हो गए। उन्होंने कहा कि उनको उम्मीद है कि उनकी टीम विश्व कप में अच्छा प्रदर्शन करेगी।  अंत में श्री सैनी को बलदेव सिंह भाटिया ने स्मृति चिंह दिया। 
छत्तीसगढ़ के लिए खेलना अच्छा लगा
छत्तीसगढ़ की पारी में शतक बनाने वाले दल्लीराजहरा के खिलाड़ी हरप्रीत सिंह का कहना है कि अपने राज्य के लिए खेलना अच्छा लगा। उन्होंने बताया कि वे इस समय जहां मप्र की रणजी टीम में खेल रहे हैं, वहीं आईपीएल के लिए उनको फिर से कोलकाता राइटर्स की  टीम के साथ बेंगलुरु और पुणे की टीम से अभी ऑफर है, पर वे पैसों के पीछे न भागते हुए कोलकाता टीम को महत्व देना चाहते हैं। उनका कहना है कि इस टीम के साथ वे पिछली बार भी थे। इस टीम से उनको बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। उन्होंने बताया कि एक प्रशिक्षण शिविर में उनकी मुलाकात सचिन से हुई थी, सचिन के बताए टिप्स उनके बहुत काम आ रहे हैं। हरप्रीत ने बताया कि वे अंडर १९ के विश्व कप में खेल चुके हैं।
कनाडा में प्रतिभाओं की कमी नहीं है 
कनाडा के लिए दूसरे मैच में शकतीय पारी खेलने वाले हिरल पटेल का कहना है कि उनके देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। कनाडा में क्रिकेट में उनता पैसा नहीं है। पैसे होने पर वहां पर भी क्रिकेट बहुत ज्यादा लोकप्रिय हो जाएगा। मूलत: अहमदाबाद के निवासी इस खिलाड़ी का कहना है कि उनका परिवार छह साल पहले ही कनाडा गया है। उन्होंने पूछने पर बताया कि पहले कनाडा के क्रिकेटरों को पांच सौ डॉलर एक वनडे के मिलते थे। लेकिन अब सात राष्ट्रीय खिलाडिय़ों को ही पैसे मिलते हैं। हिरल के आदर्श वीरेन्द्र सहवाग है। उन्होंने बताया कि उनका सपना भी विश्व कप में खेलने का है। वे संभावित टीम में है। उनको उम्मीद है कि उनको जरूर विश्व कप में खेलने का मौका मिलेगा। वे पारी की शुरुआत करते हैं।

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बुधवार, नवंबर 24, 2010

हरप्रीत के बल्ले से निकली जीत

मेजबान छत्तीसगढ़ ने हरप्रीत सिंह के शतक के साथ टी. सुधीन्द्रा की घातक गेंदबाजी की मदद से कनाडा को दूसरे वनडे में ३४ रनों से मात देकर तीन मैचों की शृंखला में २-० की अपराजेय बढ़त ले ली है। छत्तीसगढ़ ने पहले खेलते हुए रनों की बारिश करते हुए ८ विकेट पर ३३१ रन बनाए। इस चुनौती के सामने कनाडा की टीम ४९वें ओवर में २९७ रनों पर सिमट गई।
अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम में छत्तीसगढ़ टीम के कप्तान रोहित ध्रुव ने टॉस जीतकर पहले खेलने का फैसला किया। कप्तान का फैसला उस समय गलत लगने लगा जब मेजबान टीम ने दो विकेट ४८ रनों पर गंवा दिए। इसके बाद तीसरे विकेट के लिए हरप्रीत सिंह और संतोष साहू ने तीसरे विकेट के लिए १०५ गेंदों में ७९ रन जोड़े। संतोष साहू ६२ गेंदों में दो चौकों की मदद से ४० रन बनाकर लौटे। इसके बाद हरप्रीत ने चौथे विकेट के लिए प्रखर राय के साथ शतकीय साङोदारी करते हुए ८६ गेंदों में १२२ रन जोड़े। इसी साङोदारी की मदद से छत्तीसगढ़ की टीम ८ विकेट पर ३३१ रन बनाने में सफल हुई। छत्तीसगढ़ के लिए खेलने आए हरप्रीत सिंह ने रनों की बारिश करते हुए ११२ गेंदों में दो छक्कों और १२ चौकों की मदद से १२२ रनों की पारी खेली। प्रखर राय ने ५१ गेंदों का सामना करते हुए ८ चौकों की मदद से ६२ रन बनाए। कनाडा से सफल गेंदबाज हरवीर वैद्यवान रहे। उन्होंने ५३ रन देकर चार विकेट लिए। बालाजी राव को तीन विकेट लेने के लिए ४४ रन खर्च करने पड़े।
३३२ रनों की कठिन चुनौती का सामना करने उतरी कनाडा की टीम ने दो भी दो विकेट जल्दी गंवा दिए। कनाडा को पहला ङाटका टी. सुधीन्द्रा ने ट्रेविन का विकेट लेकर दिया। पहले मैच में शतक बनाने वाले रवीन्द्रु गुणाशेखरा का बल्ला आज नहीं चल सका और वे २३ रन बनाकर अखंड प्रताप सिंह की गेंद पर विकेट के पीछे विवेक द्वारा पकड़े गए। तीसरे विकेट लिए हिरल पटेल ने टायसन के साथ मिलकर ८० रन जोड़े।
इसके बाद कोई बड़ी साङोदारी नहीं हो सकी और कनाडा के विकेट गिरते चले गए। एक चोर पर जमे हु हिरल पटेल के शतक की मदद से कनाडा की टीम ने २९७ रनों का स्कोर खड़ा किया और उसे ३४ रनों से हार का सामना करना पड़ा। हिरल ने १०७ रनों की पारी में ११३ गेंदों का सामना किया और चार छक्कों के साथ सात चौके जड़े। हिरल के बाद दूसरे सफल बल्लेबाज कार्ल वॉटम रहे जिन्होंने ३३ गेंदों में दो चौकों की मदद से ४० रनों की नाबाद पारी खेली।
छत्तीसगढ़ के लिए टी. सुधीन्द्रा ने ४ और अखंड प्रताप सिंह ने तीन विकेट लिए। शृंखला का तीसरा और अंतिम मैच २५ नवंबर को भिलाई में खेला जाएगा।
स्कोरबोर्ड
छत्तीसगढ़:- इयान कास्टर का ट्रेविन बो हरवीर  ०० (०५), एम. हसन का हेनरी बो हरवीर २३ (३३), हरप्रीत सिंह का जुबीन बो हरवीर १२२ (११२), संतोष साहू पगबाधा बो पार्थ देसाई  ४० (६२), प्रखर राय का. ट्रेविन बो हरवीर ६२ (५१), पी. विवेक का टायसन बो बालाजी २५ (१८), विशाल कुशवाहा का जुबीन बो बालाजी २५ (१८), अमित मिश्रा नाबाद ०४ (०४), टी. सुधीन्द्रा का जुबीन बो बालाजी ०० (०१), रोहित ध्रुव ०१ (०१), अतिरिक्त २९।
कुल- ५० ओवरों में ८ विकेट पर ३३१ रन। विकेट पतन- १-१ ( इयान), २-४८ (एम. हसन), ३-१२७ (संतोष साहू), ४-२४९ (हरप्रीत), ५-२८२ (विवेक), ६-३०७ (प्रखर), ७-३२७ (विशाल), ८-३२८ (टी. सुधीन्द्रा)।   गेंदबाजी- हेनरी  १०-१-६४-०, अक्षय बगई ३-०-५९-०, हरवीर वैद्यवान १०-२-५७-४, बालाजी ६-०-४४-३, हिरल पटेल ९-०-५८-०, पार्थ देसाई १०-१-५२-१, कार्ल वॉटम २-०-१४-०। 
कनाडा- हिरल पटेल का बो अखंड प्रताप सिंह १०७ (११३), ट्रेविन बस्तीयम पिल्लई पगबाधा बो टिी. सुधीन्द्रा ०३ (०७), रवीन्दु गुणाशेखरा का विवेक बो अखंड प्रताप सिंह २३ (३९), टायसन  का एम. हसन बो संतोष साहू ३३ (५५), जुबीन सबकरी बो. विशाल कुशवाहा २९ (३५), बालाजी राव का प्रखर राय बो अखंड प्रताप सिंह  ०९ (०८), कार्ल वॉटम नाबाद ४० (३३), अक्षय बगई पगबाधा बो अमित मिश्रा १० (०८), हरवीर वैद्यवान का प्रखर बो टी. सुधीन्द्रा १० (०५), हेनरी उसेंडी का एम हसन बो टी. सुधीन्द्रा ०३ (०५), पार्थ देसाई बो टी. सुधीन्द्रा ०८ (०८) अतिरिक्त २३ (६ लेग बाई, १ बाई, १५ वाइड,  १ नोबॉल)।
कुल- २९७ पर आल आउट।  विकेट पतन- १-१८ (ट्रेविन), २-६८ (रवीन्दु), ३-१४८ (टायसन), ४-१९६ (जुबीन), ५-२१३ (बालाजी), ६-२३६ (कार्ल), ७-२६१ अक्षय), ८-२७२ (हरवीर), ९-२८२ (हेनरी), १०-२९७ (पार्थ)। ।
 गेंदबाजी- अमित मिश्रा ९-१-३७-१, टी. सुधीन्द्रा १०-०-५७-४, विशाल कुशवाहा ९-०-५९-१, संतोष साहू ०८-०-४७-१, प्रखर राय  ५-०-३८-०, अखंड प्रताप सिंह ८-०-५९-३।

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मंगलवार, नवंबर 23, 2010

चिट्ठा जगत स्वचलित या हाथ चलित

हम नहीं चाहते थे कि चिट्ठा जगत के बारे में हम फिर से लिखें, लेकिन क्या करें जब कोई इंसान मेहनत करता है और उसकी मेहनत पर लगातार पानी फेरने का काम किया जाता है तो उस इंसान का खफा होना लाजिमी होता है। हमारे ब्लागर मित्र कहते हैं कि चिट्ठा जगत स्वचलित है, लेकिन हमें तो लगता है कि यह हाथ चलित है। हाथ चलित इसलिए की जिसके साथ जो मर्जी आए करें। कम से कम हमारे साथ-साथ और कई ब्लागरों के साथ तो यही हो रहा है।
हम जबसे ब्लाग जगत में आए हैं हमने तो यही महसूस किया है कि चिट्ठा जगत में भी पक्षपात होता है। अब इसे कोई माने या माने लेकिन इस सच्चाई से इंकार कोई नहीं कर सकता है कि कभी न कभी हर ब्लागर के साथ कुछ न कुछ तो गलत हुआ है। अब यह बात अलग है कि कोई लिखता नहीं है। हमें भी सभी यही कहते हैं कि अपने लेखन पर ध्यान दिया जाए, लेखन पर तो ध्यान सभी देते हैं, लेकिन जब आपके लिखे की कही चर्चा हो और उस चर्चा का प्रतिफल देने का काम चिट्ठा जगत न करे तो क्या आपको अफसोस नहीं होगा। एक बार ऐसा हो तो अफसोस करेंगे। लेकिन बार-बार ऐसा हो तो निश्चित ही आप को भी थोड़ा बहुत तो गुस्सा आएगा ही। खैर चलिए भई जिसका एग्रीगेटर है उनका हक बनता है कि वे किसी के साथ कुछ भी कर सकते हैं, हम कौन होते हैं उनको रोकने वाले। इसी तरह से अब हम भी सोच रहे हैं कि हमारा ब्लाग है तो हम भी कुछ भी लिखे हमें कोई कौन होता है रोकने वाला। जब हम लिखते हैं तो फिर बुरा क्यों लगता है? जिस तरह से एक एग्रीगेटर को अपने हिसाब से सब करने का हक है तो हमें क्यों नहीं?
हमारे ब्लाग मित्र कहते हैं कि चिट्ठा जगत मठाधीशों के इशारों पर नहीं चलता। संभव है ऐसा हो। ब्लागर मित्र कहते हैं कि स्लचलित यंत्र में खामियां हो सकती हैं। यह बात भी संभव है। लेकिन यह बात क्यों संभव नहीं है कि स्वचलित यंत्र में अपनी मर्जी से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है। आखिर इस यंत्र को भी इंसानों ने ही बनाया है। जब वोटिंग मशीन से छेड़छाड़ हो सकती है तो किसी भी स्वचलित यंत्र से क्यों नहीं हो सकती है? अगर चिट्ठा जगत वालों को लगता है कि उनके यंत्र में वास्तव में कोई खराबी है तो उसको ठीक करने की कोशिश करनी चाहिए। माना कि वे मुफ्त में सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन इन सेवाओं के बदले क्या उनको विज्ञापन नहीं मिलते हैं? ब्लागरों की वजह से क्या चिट्ठा जगत की कमाई नहीं होती है? आज के जमाने में कोई भी बिना फायदे के बिना मुफ्त में काम नहीं करता है। ब्लागर भी ब्लाग जगत में इस मकसद से आए हैं कि आज नहीं तो कल इनमें कमाई होगी। अब यह बात अलग है कि हिन्दी ब्लाग जगत में अभी ज्यादा ब्लागर उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाए हैं, लेकिन कई ब्लागर कमाई कर रहे हैं। जब हम ब्लाग लिखने के लिए समय के साथ नेट का खर्च करते हैं तो हम भी चाहेंगे कि आज नहीं तो कल हमें भी कुछ कमाई हो। 


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सोमवार, नवंबर 22, 2010

छत्तीसगढ़ की कनाडा पर धमाकेदार जीत

कप्तान रोहित ध्रुव के साथ सलामी बल्लेबाज एम. हसन के अर्धशतकों की मदद से छत्तीसगढ़ ने विश्व कप में खेलने वाली कनाडा की टीम को पहले अभ्यास मैच में ४ विकेट से परास्त कर दिया। कनाडा के लिए शतक बनाने वाले रवीन्दु गुणाशेखरा का शतक टीम के काम न आया। कनाडा से मिली २८० रनों की चुनौती को मेजबान छत्तीसगढ़ ने ६ विकेट खोकर ४७.५ ओवरों में ही प्राप्त कर लिया।
२८० रनों की चुनौती के सामने छत्तीसगढ़ को सलामी जोड़ी अभिषेक सिंह और एम. हसन ने ९३ रनों की साङोदारी करके मजबूत शुरुआत दी। इस जोड़ी को हिरल पटेल ने अभिषेक का विकेट लेकर तोड़ा। अभिषेक ने ५९ गेंदों पर चार चौकों की मदद से ३९ रन बनाए। अभिषेक के आउट होने के बाद हसन भी ज्यादा नहीं चल सके और १२५ के स्कोर पर उनका विकेट भी चला गया। एम. हसन ने ६१ गेंदों का सामना करके ८ चौकों की मदद से ५९ रन बनाए। इसके बाद छत्तीसगढ़ के लिए कप्तानी पारी खेलते हुए रोहित ध्रुव ने अपनी टीम को जीत दिलाई। रोहित ने ४६ गेंदों पर ६ चौकों की मदद से आतिशी ५६ रन बनाए। इयान कास्टर के बल्ले से ४३ रन निकले। उन्होंने ५० गेंदों का सामना किया और चार चौके लगाए।
इसके पहले कनाडा ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करते हुए रवीन्दु गुणाशेखरा के शतक की मदद से २७९ रनों का स्कोर खड़ा किया। कनाडा की पारी में तीसरे विकेट की साङोदारी में रवीन्दु ने नितीश कुमार के साथ ११२ गेंदों में ८६ रन और चौथे विकेट की साङोदारी में कप्तान जुबीन सबकरी के साथ ९८ गेंदों में १०३ रन जोड़े। कनाडा के लिए कप्तान जुबीन ने ४७ गेंदों में ४२ रनों की पारी खेली। उन्होंने दो चौके लगाए। हिरल पटेल ने ४३ रनों की पारी में ३९ गेंदों का सामना किया और एक छक्के के साथ छह चौके उड़ाए। नितीश कुमार ने ६५ गेंदों में एक चौके की मदद से ३९ रन बनाए। छत्तीसगढ़ के लिए अमित मिश्रा ने सबसे ज्यादा तीन विकेट लिए।
स्कोरबोर्ड- कनाडा- हिरल पटेल का पी. विवेक बो अमित मिश्रा ४३ (३९), ट्रेविन बस्तीयम पिल्लई का पी. विवेक बो विशाल कुशवाहा ०९ (१६), रवीन्दु गुणाशेखरा नाबाद ११२ (१२३), नितीश कुमार बो अखंड प्रताप सिंह ३९ (६५), जुबीन सबकरी बो. अमित मिश्रा ४२ (४७), बालाजी राव का एंड बो अमित मिश्रा ०८ (०६), अमरवीर हंसरा नाबाद ०६ (०८), अतिरिक्त २० (४ लेग बाई, ४ बाई, १२ वाइड)। कुल-५० ओवरों में ५ विकेट पर २७९ रन। विकेट पतन- १ -३९ (ट्रेविन), २-६१ (हिरल), ३-१४७ (नितीश कुमार), ४- २५० (जुबीन), ५- २६० (बालाजी)। गेंदबाजी- अमित मिश्रा १०-०-७१-३, पंकज राय ६-०-४३-०, विशाल कुशवाहा ६-०-४७-१, संतोष साहू १०-०-३६-०, प्रखर राय ८-०-२९-०, अखंड प्रताप सिंह ६-०-३३-१, रोहित ध्रुव ४-०-१८-०।
छत्तीसगढ़:- अभिषेक सिंह काएंड बो हिरल पटेल ३९ (५९), एम. हसन पगबाधा बो अक्षय बगई ५९ (६१), इयान कास्टर का हरवीर वैद्यवान बो अक्षय बगई ४३ (५०), संतोष साहू रन आउट १० (१०), पी. विवेक बोल्ड अक्षय बगई २५ (२५), रोहित ध्रुव का. बालाजी बो हरवीर वैद्यवान, ५६ (४६), विशाल कुशवाहा नाबाद २८ (२७), प्रखर राय नाबाद ०२ (०५), अतिरिक्त १८ ( ४ लेग बाई, १२ वाइड, २ नोबॉल)। कुल- ४७.५ ओवरों में ६ विकेट पर २८० रन। विकेट पतन- १-९३( अभिषेक), २-१२५ (एम. हसन), ३-१४१ (संतोष साहू), ४-१७० (इयान कास्टर), ५-२०४ (विवेक), ६-२७६ (रोहित ध्रुव)।  गेंदबाजी- मनीउलख ४-१-१७-०, अक्षय बगई १०-०-६१-३, हरवीर वैद्यवान १०-०-७१-१, बालाजी ९-०-४४-०, हिरल पटेल ९.५-०-४९-०।


खेलगढ़ में देखे छत्तीसगढ़ के क्रिकेटरों का हौसला बढ़ाने वाली जीत

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रविवार, नवंबर 21, 2010

अलविदा, राज्य खेल महोत्सव में मिलेगें

स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स के खेल मैदान में जैसे की मुख्यअतिथि के कदम पड़े खिलाडिय़ों का काफिल मार्च पास्ट करने लगा। हर खेल के खिलाड़ी हाथ हिलाते हुए मंच के पास से गुजरते हुए मानो एक ही संदेश दे रहे थे कि अलविदा ... अब राज्य खेल महोत्सव में मिलेंगे। रायपुर जिले के ऐतिहासिक आयोजन के बाद अब राजधानी रायपुर में ही ११ दिसंबर से राज्य खेल महोत्सव का आयोजन होगा। इस महोत्सव में राज्य के हर जिले के खिलाड़ी शामिल होंगे।
स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स के मैदान में जिस तरह से खिलाडिय़ों का मार्च पास्ट हुआ उसके बाद मुख्यअतिथि बृजमोहन अग्रवाल को यह कहना पड़ा कि जब हम लोग मार्च पास्ट की सलामी ले रहे थे तो हमें ऐसा लगा ही नहीं कि यह रायपुर जिले का आयोजन है। हमें बिलकुल ऐसा लग रहा था कि यह कोई ओलंपिक या राष्ट्रीय खेलों जैसा बड़ा आयोजन है। उन्होंने कहा कि वास्तव में इसमें कोई दो मत नहीं है कि रायपुर जिले का यह आयोजन अपने आप में ऐतिहासिक है। यहां पर जिस तरह से ३४ खेलों में जिले के ग्रामीण और शहरी खिलाडिय़ों ने अपने खेल कौशल का प्रदर्शन किया है, वह एक मिसाल है अपने राज्य के लिए। श्री अग्रवाल ने कहा कि मैंने मार्च पास्ट में कई खिलाडिय़ों को चप्पल पहनकर मार्च पास्ट करते देखा है, मैंने खेल विभाग से कहा कि ऐसे खिलाडिय़ों को कम से कम कपड़े वाले जुते दिलवाएं जाए जो जिला स्तर से आगे राज्य स्तर पर खेलने जाते हैं। श्री अग्रवाल ने कहा कि मैं ज्यादा कुछ नहीं बोलना चाहता हूं कि क्योंक हर खिलाड़ी अपना पुरस्कार पाने के लिए बेताब है।
अब होने लगी है पदकों की बारिश
खेलमंत्री लता उसेंडी ने कहा कि आज से दस साल पहले जब छत्तीसगढ़ बना था तो अपने राज्य के खिलाडिय़ों को राष्ट्रीय स्तर पर पहले साल में बहुत कम सफलता मिली थी, लेकिन इसके बाद खिलाड़ी अब लगातार पदकों की बारिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारी सात साल की भाजपा सरकार खिलाडिय़ों को हर तरह की सुविधाएं दिलाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने जीतने वाले खिलाडिय़ों के साथ हारने वाले खिलाडिय़ों को भी बधाई और शुभकामानाएं देते हुए कहा कि अगर हारने वाले खिलाड़ी नहीं होते तो जीतने वाले खिलाडिय़ों को जीत कैसे मिलती। खेलमंत्री ने माना कि आयोजन में कुछ कमियां थीं, इन कमियों को आगे राज्य स्तर के आयोजन में दूर कर लिया जाएगा।
खिलाडिय़ों के बीच खेलमंत्री
कार्यक्रम में खेलमंत्री लता उसेंडी पहले पहुंच गई थीं। अब मुख्यअतिथि बृजमोहन अग्रवाल का हमेशा की तरह इंतजार हो रहा था। ऐसे में समय का उपयोग करते हुए खेलमंत्री मंच के इस तरफ से उस तरफ जाकर मार्च पास्ट के लिए खड़े खिलाडिय़ों से मिलने चलीं गर्इं। उन्होंने सभी खिलाडिय़ों से बात की और उनसे पूछा कि आयोजन में कोई परेशानी तो नहीं हुई। खेलमंत्री से मिलकर खिलाड़ी उत्साहित हो गए। कोई खिलाड़ी खेलमंत्री से हाथ मिल रहा था तो कोई उनके पैर छू रहा था। खेलमंत्री ने खिलाडिय़ों से करीब आधे तक मेल-मुलाकात की और उनसे बात की। जिस टीम के पास खेल मंत्री जा रही थी, उनसे उनके विकासखंड का नाम और खेल के बारे में जरूर पूछ रही थी।
दो घंटे चला पुरस्कार वितरण
अतिथियों के उद्बोधन के बाद पुरस्कार वितरण का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। यह कार्यक्रम छत्तीसगढ़ के खेल इतिहास का सबसे लंबा कार्यक्रम रहा। अतिथियों ने किसी भी खेल के खिलाडिय़ों को निराश न करके हुए सभी को पुरस्कार देकर सम्मानित किया। एथलेटिक्स के खिलाडिय़ों से पुरस्कार देने का आगाज करने के बाद अतिथियों ने अंत में खेल के निर्णायकों और खेलों के संयोजकों के साथ हर विकासखंड के नोडल अधिकारियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। पुरस्कार वितरण का कार्यक्रम करीब दो घंटे चला। इस अवसर पर खेल सचिव सुब्रत साहू, खेल संचालक जीपी सिंह, प्रभारी जिलाधीश ओपी चौधरी, एडीएम डोमन सिंह, उपसंचालक ओपी शर्मा, वरिष्ठ खेल अधिकारी राजेन्द्र डेकाटे के साथ सभी खेल संघों के पदाधिकारी भी उपस्थित थे।

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शनिवार, नवंबर 20, 2010

उत्कृष्ट खिलाड़ी निराश, नौकरी की नहीं आश

प्रदेश के ७० उत्कृष्ट खिलाडिय़ों में घोर निराश आ गई है। इन खिलाडिय़ों को एक साल होने के बाद भी अब तक नौकरी नहीं मिल पाई है। अब तो इनकी आश टूट सी गई है। खिलाड़ी जब भी अपनी फरियाद लेकर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और खेलमंत्री लता उसेंडी के पास जाते हैं तो उनको सिवाए आश्वासन के कुछ नहीं मिलता है। निराशा से घिरे कई खिलाडिय़ों ने तो उत्कृष्ट खिलाड़ी के प्रमाणपत्र वापस करने का मन बना लिया है। ये खिलाड़ी साफ कहते हैं कि ऐसे प्रमाणपत्र का हम क्या करें जिसके मिलने के एक साल बाद भी हम सब नौकरी के लिए भटक रहे हैं।
प्रदेश के खेल विभाग ने पिछले साल  प्रदेश के ७० उत्कृष्ट खिलाडिय़ों को मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के हाथों उत्कृष्ट खिलाड़ी होने के प्रमाणपत्र दिलवाए थे। इन प्रमाणपत्रों के मिलने के बाद खिलाड़ी बहुत खुश थे, कि अब उनका भविष्य सुरक्षित हो गया है और उनको जल्द ही नौकरी मिल जाएगी। लेकिन खिलाडिय़ों का ऐसा सोचना उनका भ्रम साबित हुआ और उनका यह भ्रम बहुत जल्दी तब टूट गया जब उनको प्रमाणपत्र मिलने के बाद मालूम हुआ कि अभी तो नौकरी के लिए नियम ही नहीं बने हैं। लगातार कोशिशों के बाद और मीडिया के सामने अपना दुखड़ा रोने के बाद जब मीडिया ने इस बात को लगातार प्रकाशित किया कि उत्कृष्ट खिलाडिय़ों को नौकरी देने के नियम बनने में इतना विलंब क्यों हो रहा है, तब जाकर बड़ी मुश्किल से नियम बने। अब जबकि नियम बने ही करीब चार माह हो गए हैं तो भी खिलाडिय़ों को नौकरी नहीं मिल पा रही है।
खेल विभाग से भी टूटी उम्मीद
नौकरी के नियम बनने के बाद खिलाडिय़ों के लिए सबसे पहले नौकरी के दरवाजे खोलने का काम खेल विभाग ने किया था। खेल विभाग ने अगस्त में खिलाडिय़ों से आवेदन मंगवाए थे। ऐसे में खिलाडिय़ों को लगा था कि चलो देर से ही सही अब उनके अच्छे दिन प्रारंभ होने वाले हैं। लेकिन इसके पहले की खेल विभाग में किसी खिलाड़ी को नौकरी मिलती यह बात सामने आई कि खेल विभाग का सेटअप ही मंजूर नहीं हुआ है। जिसे खेल विभाग ने मंजूरी समङा लिया था वह दरअसल में सहमति थी। ऐसे में खेल विभाग वापस २००२ के सेटअप में आ गया। इस सेटअप में तो ज्यादा पद खाली नहीं हैं। वैसे इस बारे में खेल संचालक जीपी सिंह कहते हैं कि जितने पद खाली होंगे उतने पदों पर उत्कृष्ट खिलाडिय़ों की नियुक्ति की जाएगी। हमने सभी आवेदन मंजूरी के लिए खेल मंत्रालय को भेज दिए हैं। खिलाड़ी सवाल करते हैं कि नियुक्ति की जाएगी वह तो ठीक है, लेकिन नियुक्ति आखिर होगी कब?
दूसरे विभाग में पत्र ही नहीं गया
उत्कृष्ट खिलाडिय़ों को पुलिस, वन, शिक्षा, आदिमजाति और कल्याण विभाग के साथ जिन भी विभागों में आवेदन करने के लिए खेल विभाग ने कहा है उन विभागों के बारे में खिलाड़ी बताते हैं कि वहां तो उत्कृष्ट खिलाडिय़ों को नौकरी देने के नियमों वाला पत्र ही नहीं पहुंचा है। कई खिलाडिय़ों ने पुलिस के साथ वन विभाग और शिक्षा विभाग में भी आवेदन किए हैं लेकिन इनको वहां से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल रहा है।
आश्वासन का हम क्या करें
खिलाड़ी बताते हैं कि वे अपनी नौकरी की फरियाद लेकर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ खेलमंत्री लता उसेंडी से भी कई बार मिल चुके हैं। लेकिन इनके पास से सिवाए आश्वासन के हमें कुछ नहीं मिलता है। खेलमंत्री लता उसेंडी से कई खिलाड़ी राज्य महिला खेलों के समापन में मिली थीं और उनसे पूछा था कि मैडम हमें नौकरी कब मिलेगी। खेलमंत्री ने इन खिलाडिय़ों से कहा कि एक-दो दिन में देखते है क्या कर सकते हैं। ऐसा ही जवाब हमेशा खिलाडिय़ों को मिलता है, लेकिन होता कुछ नहीं है। खिलाड़ी बार-बार एक ही सवाल करते हैं आखिर हमारी गलती कहां है? क्या हम लोगों ने राज्य और देश के लिए खेलकर गलती की है? खिलाड़ी साफ कहते हैं कि अगर सरकार नौकरी नहीं दे पा रही है तो ऐसे प्रमाणपत्रों का हम क्या करेंगे। कई खिलाडिय़ों ने प्रमाणपत्र वापस करने की भी मानसिकता बना ली है।

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गुरुवार, नवंबर 18, 2010

उडऩ तश्तरी की टीम छत्तीसगढ़ की जमीं पर

अपने ब्लाग जगत के बादशाह उडऩ तश्तरी यानी समीर लाल ने तो छत्तीसगढ़ आने का अपना वादा पूरा नहीं किया है, लेकिन उनकी टीम जरूर आसमान से छत्तीसगढ़ की जमीं पर कल उतने वाली है। यह टीम छत्तीसगढ़ में एक सप्ताह तक रहेगी।
अपने उडऩ तश्तरी जब दिल्ली में आसमान से उतरे थे, तो उसके एक दिन बाद उनके देश कनाडा की क्रिकेट टीम भी दिल्ली पहुंची थी। यह टीम अभी वहां है, लेकिन यह टीम कल छत्तीसगढ़ की जमीं पर आ जाएगी। चलिए हम लोगों को इस बात की ही खुशी है कि समीर लाल न सही उनके उस देश (जहां वे अभी रहते हैं, वैसे वे हैं तो भारतीय ही) की एक टीम तो यहां आ रही है। यह टीम कल आसमान से यहां उतरेगी। यानी कल दिल्ली से सीधे टीम विमान से रायपुर आएगी।
हम एक बार फिर से बता दें कि अपने समीर भाई से वादा किया था कि वे जब भी भारत आएंगे तो छत्तीसगढ़ जरूर आएंगे। उनके भारत आने के बाद हमने उनको याद भी दिलाया, लेकिन लगता है उन तक हमारी बात नहीं पहुंची है। वैसे हमारी उस पोस्ट के बाद अपने भिलाई के संजीव तिवारी ने कहा था भईया उडऩ तश्तरी जरूर छत्तीसगढ़ की जमीं पर उतरेगी। हम यह तो नहीं जानते कि उडऩ तश्तरी छत्तीसगढ़ की जमीं पर उतरेगी या नहीं लेकिन उनकी टीम जरूर यहां उतर रही है।

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बुधवार, नवंबर 17, 2010

कनाडा विश्व कप क्रिकेट टीम का कप्तान भारतीय

विश्व कप क्रिकेट में खेलने वाली कनाडा की जो टीम छत्तीसगढ़ की टीम से मैच खेलने के लिए रायपुर आ रही है उस टीम के कप्तान भारतीय मूल के आशीष बगई हैं। कनाडा की टीम में आशीष के साथ तीन और खिलाड़ी भारतीय मूल के हैं। इसी के साथ तीन खिलाड़ी पाकिस्तान मूल के हैं।
पहली बार छत्तीसगढ़ की जमी पर कोई अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टीम आ रही है। यह टीम है कनाडा की। कनाडा की यह वह टीम है जिसको पहली बार विश्व कप क्रिकेट में खेलने का मौका मिला है। इस टीम की खासियत यह है कि इस टीम में ज्यादातर खिलाड़ी भारतीय और पाकिस्तान मूल के हैं। टीम के कप्तान आशीष बगई के साथ संदीप ज्योति, , हरवीर बैद्यवन और हीरल पटेल भारतीय मूल के हैं। इसी के साथ पाकिस्तान मूल के उमर भाटी, कुराम चौहान और रिजवान चीमा है।
कनाडा की इस टीम का भारत आगमन हो गया है और इस टीम ने अपना अभ्यास मैच दिल्ली में खेला है। दिल्ली में एक और मैच टीम १७ नवंबर को खेलेगी। इसके बाद यह  टीम १९ नवंबर को छत्तीसगढ़ आएगी।
यहां आने के बाद टीम दो दिनों तक १९ और २० नवंबर को नई राजधानी के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम में अभ्यास करेगी। टीम के अभ्यास के लिए विकेट तैयार कर लिया गया है। इसी के साथ मैचों के लिए भी विकेट तैयार है। विकेट ऐसा बनाया जा रहा है कनाडा टीम के खिलाडिय़ों को पसंद आएगा। इसी के साथ प्रदेश के खिलाडिय़ों को भाएगा। यहां पहला मैच २१ नवंबर को होगा जो डे नाइट होगा।

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मंगलवार, नवंबर 16, 2010

वाह.. हमारे चाहने वाले ऐसे भी हैं....

हमें मालूम नहीं था कि ब्लाग जगत में हमारे चाहने वाले ऐसे भी हैं जो फर्जी आईडी बनाकर न सिर्फ टिप्पणी करने का काम करते हैं बल्कि हमारी एक पोस्ट से इतने ज्यादा उत्तेजित हो जाते हैं कि उनको हमारे खिलाफ एक पोस्ट लिखने को मजबूर होना पड़ता है। खैर इससे हमें क्या फर्क पड़ता है, हमारे नाम से पोस्ट लिखकर ऐसे महाशय हमारे ही बारे में प्रचार कर रहे हैं। अच्छा है ऐसे और दो-चार मित्र ब्लाग जगत में हो जाएं तो हम तो और ज्यादा बद नहीं तो बदनाम सही हो ही जाएंगे।
तीन दिन पहले की बात है, जब अपने ब्लाग में पोस्ट प्रकाशित करने का काम कर रहे थे तो हमारे ब्लाग में आने वाले ट्रैफिक के स्रोत में एक स्रोत उस्तादजी 4 यू ब्लाग स्पाट का भी दिखा। हम उत्सुकतावश उस ब्लाग में गए तो देखा कि वास्तव में उस्तादजी हमारे कितने बड़े चाहने वाले हैं। उन्होंने हमारी 640 पोस्ट में से चंद पोस्ट के शीर्षक दे कर यह जताने का प्रयास किया था कि हम बकवास लिखते हैं। गजब के हैं हमारे यह चाहने वाले मित्र। उनको हमारे एक पोस्ट ब्लाग जगत में एक और खुले सांड का अवतरण से नाराजगी थी। हमने यह पोस्ट लिखी तो उसके पीछे कारण यह रहा कि कोई अगर हमारे ब्लाग में आकर बिना वजह की टिप्पणी करेगा तो हम तो ऐसा लिखेंगे ही। एक उस्तादजी की बात नहीं है, लगातार हमारे ब्लाग में तरह-तरह के नाम बदल कर लोग परेशान करने आते रहे हैं। ऐसे में हमारा पोस्ट लिखाना लाजिमी है। अगर वास्तव में ये जनाब उस्ताद जी सच्चे हैं तो भले उनके ब्लाग का नाम उस्ताद जी रहे, लेकिन उनकी प्रोफाइल तो सही होनी चाहिए। अगर उनकी प्रोफाइल सही होती तो एक बार सोचा जाता कि वास्तव में ये कोई सच्चे आलोचक हैं। आलोचन का यह मलतब कदापि नहीं होता है कि आप किसी के भी लेखन को बकवास कह दें। आपके पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है। आप बेशक किसी के लेखन पर अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन किसी के भी लेखन को बकवास कहना क्या उचित है?
लेखन एक साधना है, यह बात हम क्या हर लिखने वाला जानता है। फिर ये उस्ताद जी तो चंद दिनों पहले ही अपना ब्लाग बनाकर सामने आए हैं। क्या उनके सामने आते ही उनको यह अधिकार मिल गए कि वे हर ब्लागर के लेखन के लिए नंबर तय करने लगे। यह अधिकार इन महाशय को दिया किसने? आप अपने विचार व्यक्त करें, वहां तक ठीक है क्या लेकिन किसी ब्लाग में जो लिखा गया है उनको कितने नंबर मिलने चाहिए यह तय करने वाले आप या हम कौन होते हैं। क्या यहां कोई प्रतिस्पर्धा हो रही है कि नंबर तय करने हैं।
उस्ताद जी को लगता है हमें लिखना नहीं आता है, सच कहते हैं ये महाशय हमें लिखना नहीं आता है, तभी हमारी एक-एक खबर और हमारे लेख को हमारे अखबार के लाखों पाठक पढ़ते हैं और पसंद करते हैं। वैसे हमें किसी उस्ताद जी के प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं है कि हमें लिखना आता है, या नहीं। हम ब्लाग जगत में मित्र बनाने आए हैं, न  की दुश्मन बनाने। एक बात और हमें कोई छपासा रोग नहीं है जिसके कारण हम ब्लाग जगत में आए हैं। हम भी यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि ब्लाग जगत में हम जो लिखते हैं उसे पढऩे वाले पाठकों की संख्या बमुश्किल एक हजार भी नहीं होती है, लेकिन हम जिस अखबार दैनिक हरिभूमि में काम करते हैं, उसमें हम एक खबर बनाते हैं तो उस खबर को पढऩे वाले लाखों होते हैं। हम पत्रकारिता से आज से नहीं दो दशक से जुड़े हुए हैं। अब क्या करें इसके बाद भी हमें लिखना नहीं आता है। वैसे हम बता दें कि हमने कभी सर्वज्ञ होने का दावा नहीं किया है। दो दशक से ज्यादा समय से पत्रकारिता में होने के बाद भी हम आज भी कुछ न कुछ नया सीखने का काम करते हैं। हमसे कोई गलती नहीं हो सके, ऐसा हमने कभी न सोचा न कहा है। अगर हमसे कोई गलती हुई है और कोई बताता है तो हमें उसे मानते भी हैं। लेकिन कोई बिना वजह हमें परेशान करने के मकसद से कुछ करेगा तो वह बात हम कभी बर्दाश्त नहीं करते हैं। हमने अपनी जिंदगी में एक बात सीखी है कि किसी भी अन्याय के खिलाफ लडऩा चाहिए और किसी भी गलत बात का विरोध जरूर करना चाहिए। हमारा इस पोस्ट को लिखने का मकसद एक बात का विरोध करना है। अपने उस्ताद जी को हमारी वो चंद पोस्ट दिखी जो उनको बकवास लगी। हम उनसे पूछना चाहते हैं कि क्या हमारे द्वारा लिखी गई सभी 640 पोस्ट बकवास है। वैसे हम जानते हैं कि उन्होंने हमारे खिलाफ जो भी लिखा है, उससे साफ-साफ दुर्भावना झलकती है। ऐसे में हमारा उनसे यह सवाल करना ही बेमानी है। उनको तो हमारी हर पोस्ट बकवास ही लगेगी। उनको लगती है तो लगती रहे हमें उससे क्या फर्क पडऩे वाला है। हम अपनी पोस्ट एक उस्ताद जी के लिए तो लिखते नहीं हैं। बहरहाल हम इतना जानते हैं कि ऐसे छद्म नाम वालों ने ही ब्लाग जगत में बिना वजह से विवाद खड़े कर रखे हैं। ऐसे लोगों से ब्लागरों को दूर रहना चाहिए और इनकी किसी भी तरह की गलत बात का जवाब जरूर देना चाहिए। कम से कम हम तो किसी गलत बात को बर्दाश्त नहीं करते हैं। हम जब ब्लाग जगत में नए-नए आए थे, तब हमारी एक पोस्ट को लेकर हंगामा हुआ था, तब भी हमने उसका जवाब दिया था। बाद में हमारी पोस्ट को गलत समझने वालों ने ही आगे हमारी एक नहीं कई पोस्टों की तारीफ की है। खैर यह पोस्ट बहुत लंबी हो गई है, लिखने को बहुत है, लेकिन अब हम इस पोस्ट पर विराम लगाते हैं। लेकिन इतना जरूर फिर से बताना चाहते हैं कि हम किसी भी तरह की गलत बात का जवाब जरूर देंगे अगर उस गलत बात पर हमारी नजरें पड़ीं तो। उस्ताद जी की पोस्ट पर देर से हमारी नजरें पड़ी थी।

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सोमवार, नवंबर 15, 2010

लगता है समीर लाल अपना वादा भूल गए

समीर लाल जी के भारत आने की खबर मिली है। जब वे भारत आ ही गए हैं तो हम उनको अपना एक पुराना वादा याद दिलाना चाहते हैं जिसमें उन्होंने पिछले साल हमसे कहा था कि जब भी वे भारत आएंगे तो छत्तीसगढ़ जरूर आएंगे। वैसे भी उनका छत्तीसगढ़ खासकर भिलाई से पुराना नाता है। अब जबकि समीर जी भारत में हैं तो क्या वे अपना निभाने का काम करेंगे। इसी के साथ हम अजय कुमार झा को याद दिलाना चाहते हैं कि उन्होंने भी वादा किया था कि वे जल्द छत्तीसगढ़ आएंगे, लेकिन उन्होंने भी अपना वादा अभी तक नहीं निभाया है।
आज-कल हमें ब्लाग देखने का समय बहुत ही नहीं बल्कि बहुत ही ज्यादा कम मिल पाता है। अपने पत्रकारिता के काम में हमें इतना समय ही नहीं मिल पाता है कि ज्यादा समय तक ब्लागों में जाकर विचरण कर सके। लेकिन जो सुबह का समय हम अपने ब्लागों को अपडेट करने के लिए निकाल पाते हैं, उसी समय में कुछ समय कुछ ब्लाग देखने के लिए निकालने का काम करते हैं। वरना तो अखबार की तरह ब्लागों की हेडिंग देखकर ही काम चला लेते हैं। जब हम कल अपने ब्लाग में पोस्ट लगा रहे थे तभी मालूम हुआ कि समीर जी दिल्ली में हैं। ऐसे में हमने सोचा कि उनको याद दिलाया जाए कि उन्होंने हमसे वादा किया था कि जब वे भारत आएंगे तो छत्तीसगढ़ जरूर आएंगे। हम उनसे जानना चाहते हैं कि क्या उनके पास छत्तीसगढ़ के छोटे ब्लागरों के लिए कुछ समय है कि वे यहां आकर हम लोगों का उत्साह बढ़ा सके। समीर जी का आना छत्तीसगढ़ के ब्लाग जगत के लिए जरूर यादगार होगा ऐसा हमारा ऐसा मानना है। समीर जी के जब छत्तीसगढ़ आने की बात चल रही थी, तभी अजय कुमार झा ने भी कहा था कि वे भी समीर जी के साथ छत्तीसगढ़ जरूर आएंगे। वैसे अजय जी का तो छत्तीसगढ़ आने का कार्यक्रम तभी से था जब अपने बीएस पाबला जी उनसे दिल्ली में मिलकर आए थे। तभी उन्होंने छत्तीसगढ़ आने की मंशा जताई थी लेकिन वे अपनी मंशा अब तक पूरी नहीं कर पाए हैं। उनके पास भी एक अच्छा मौका है। अगर ब्लाग जगत के ये दो दिग्गज ब्लागर छत्तीसगढ़ आने की हामी भरते हैं तो यह छत्तीसगढ़ के ब्लागरों के लिए सौभाग्य की बात होगी। अब गेंद इनके पाले में देखें इनका क्या जवाब आता है।

अंत में हम कहना चाहते हैं कि आज-कल हमारे पास लिखने के लिए कुछ नहीं है (ब्लाग जगत के कुछ फर्जी आईडी वाले महाशय ऐसा समझते हैं) इसलिए इस तरह की बिना मतलब की पोस्ट लिखते हैं। यह हम इसलिए लिख रहे हैं क्योंकि हम जानते हैं कि ऐसे महाशयों को हमारी यह पोस्ट भी फालतू लगेगी। उनको हमारी पोस्ट फालतू लगती है तो लगती रहे। हमें जो अच्छा लगता है, हम तो वहीं लिखेंगे न। हम क्या किसी भी ब्लागर को जो अच्छा लगता है वही लिखता है। किसी ब्लागर के विचारों पर विराम लगाने का अधिकार किसी को नहीं होता है।

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रविवार, नवंबर 14, 2010

2100 पोस्ट हो गई और पता भी नहीं चला

हमारी 2100 पोस्ट पूरी हो गई और हमें पता भी नहीं चला। ये पोस्ट हमारे तीन नियमित ब्लागों के साथ एक सांझा ब्लाग को मिलाकर हुईं हैं। कल की बात है हम जल्दी उठ गए थे। खाली समय था तो सबसे पहले इस समय का उपयोग करते हुए हम कुछ ब्लागों के फालोअर बने। इसके बाद सोचा चलो यार देखें कि आज की तारीख में हमारी कितनी पोस्ट हो गई है तो सबको जोड़ा तो मालूम हुआ कि पोस्ट का आंकड़ा 2100 के पार हो चुका है।
ब्लाग जगत में आए हम अभी दो साल भी पूरे नहीं हुए हैं और इस बीच हम अपने तीन नियमित ब्लागों का संचालन कर रहे हैं। सबसे पहले हमने खेलगढ़ से ब्लाग लेखन की शुरुआत की थी। इसके बाद आया राजतंत्र का नंबर। और फिर हम पहले जुड़े ललित शर्मा के एक सांझा चर्चा वाले ब्लाग 4 वार्ता से। इस ब्लाग में हमने 29 पोस्ट लिखी। इसके बाद जब हमें लगा कि ब्लाग जगत की गुटबाजी को दूर करने के लिए कुछ पहल करनी चाहिए तो हमने एक और सांझा ब्लाग ब्लाग चौपाल का आगाज किया। इस ब्लाग को करीब 6 माह होने वाले हैं। इस ब्लाग में अब तक हमने तक 157 पोस्ट लिखी है। अब जहां तक खेलगढ़ का सवाल है तो इसमें कल की तारीख तक 1277 पोस्ट हो चुकी थीं। राजतंत्र में 640 पोस्ट लिखी गई है। हमारा इस समय सबसे प्रचलित ब्लाग राजतंत्र है। हमें जिस तरह का प्यार, स्नेह और आर्शीवाद ब्लागर मित्रों के साथ पाठकों का मिला है, वहीं हमें आगे बढऩे की प्रेरणा देता है। वैसे हमें अपने रास्ते से विचलित करने के लिए कई मित्रों ने फर्जी आईडी से तरह-तरह की टिप्पणी करने का काम किया। ऐसे में हमने राजतंत्र में मॉडरेशन का सहारा लिया है। अब हम सुखी हैं। बहरहाल उम्मीद है कि ब्लागर मित्रों का प्यार, स्नेह और आर्शीवाद हमेशा मिलता रहेगा और हम इसी तरह से लिखते रहेंगे।

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शनिवार, नवंबर 13, 2010

ये साले अफसर ही बनाते हैं बेईमान

आज का जमाना पूरी तरह से बेईमानी का है। अपने देश में अब ईमानदारी की कदर नहीं होती है। यदा-कदा कोई ईमानदारी दिखाते हुए किसी का सामान वापस छोड़ जाए तो कहा जाता है कि ईमानदारी आज भी जिंदा है। लेकिन हम पूछते हैं कि कहां जिंदा है ईमानदारी। उस गरीब के झोपड़े में जिसके पास खाने को रोटी नहीं होती है। गरीब ही एक ऐसा प्राणी होता है जो भूखे होने के बाद भी कभी-कभी ईमानदारी दिखा जाता है। दूसरी तरफ आलीशन बंगलों में रहने वाले कभी ईमानदारी की बात नहीं करते हैं। अगर वे ईमानदारी की बात नहीं करते तो उनके पास बंगले नहीं होते। एक टीवी कार्यक्रम की एक बात हमें बिलकुल सच लगी थी कि भ्रष्टाचार हमारे खून में शामिल होगा। आज तो बस मनोज कुमार की एक फिल्म का वह गाना याद आता है कि न इज्जत की चिंता न फिक्र कोई अपमान की जय बोलो बेईमान की। हमारे एक मित्र कहते हैं कि यार राजजकुमार हम जैसे ईमानदार लोगों को ये साले अफसर ही बेईमान बनाने का काम करते हैं।
एक वह समय था जब लोग इस बात से खौफ खाते थे कि अगर वे रिश्वत लेते पकड़े गए और उनके बारे में किसी अखबार में खबर छप गई तो क्या होगा। लेकिन आज ऐसा नहीं है। आज तो मनोज कुमार की एक फिल्म का वह गाना सही साबित हो रहा है कि न इज्जत की चिंता न फिक्र कोई अपमान की जय बोलो बेईमान की। वास्तव में आज अपने देश में बेईमानों का ही बोलबाला है। कोई अगर यह सोचे कि वह ईमानदारी से काम करेगा तो उसे काम करने ही नहीं दिया जाएगा। कब ईमानदार आदमी बेईमान बन जाता है मालूम नहीं पड़ता है।
अपने देश में ईमानदार को मजबूरी में भी बेईमान बनना पड़ता है कहा जाए तो गलत नहीं होगा। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि हमने कई लोगों को मजबूरी में ही बेईमान बनते देखा है। ज्यादा नहीं कुछ समय पहले की बात है। एक कॉलेज के क्रीड़ा अधिकारी को उनकी पार्टी (वह अधिकारी आरएसएस से संबंध रखते हैं) के नेताओं ने रविशंकर विश्व विद्यालय का खेल संचालक बनवा दिया। हमने उन नेताओं को बहुत कहा कि इस बंदे को खेल संचालक मत बनवाए। हम इसलिए उन बंदे के खेल संचालक बनवाए जाने के खिलाफ थे, क्योंकि हम जानते थे कि वे एक ईमानदार आदमी हैं और खेल संचालक बनने के बाद उनको बेईमानी करनी पड़ेगी और एक ईमानदार आदमी से अपना देश हाथ धो बैठेगा। लेकिन इसका क्या किया जाए कि उन नेताओं को तो अपना स्वार्थ सिद्ध करना था। सो बना दिया एक ईमानदार आदमी को बेईमान। बाद में उन बंदे को भी इस बात का अहसास हुआ कि वास्तव में यार मैं पहले ही अपने पद पर अच्छा था। आज वे वापस क्रीड़ा अधिकारी हैं, लेकिन अब उनसे हम ईमानदारी की उम्मीद इसलिए नहीं कर सकते हैं कि अब बेईमानी उनके खून में भी शामिल हो गई है। ऐसे कई उदाहरण अपने देश में मिल जाएंगे। एक बार की बात बताएं हमारे एक मित्र एक विभाग में अधिकारी हैं, वे भी एक जमाने में ईमानदार थे। लेकिन उनको उनके अफसरों ने ही बेईमान बनने मजबूर कर दिया। उन्होंने हमें एक दिन कहा कि यार राजकुमार तुम ही बताओ साले अफसर जब भी यहां आते हैं तो मुझे कहा जाता है कि हमारा होटल में रूकने और खाने-पीने की इंतजाम किया जाए। अब मैं अपने वेतन से तो ये कर नहीं सकता न। पहले मैंने ऐसा वेतन से भी करने का प्रयास किया। लेकिन हर महीने कोई न कोई अफसर आ टपकता है। अब हर महीने तो अपने वेतन से किसी अफसर के लिए रूकने, खाने-पीने का इंजताम करना संभव नहीं है। अब तुम ही बताओ यार मैं बेईमानी नहीं करूं तो क्या करूं। हमारे वे मित्र कहते हैं कि ये अफसर ही साले हम जैसे लोग को बेईमानी के रास्ते पर डालते हैं और रिश्वत खाने के लिए मजबूर करते हैं।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि हर किसी को बेईमान, रिश्वत खोर, भ्रष्टाचारी बनाने के पीछे किसी न किसी का हाथ। आज स्थिति यह है कि अपने देश में एक चपरासी से लेकर मंत्री क्या प्रधानमंत्री तक भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। हम साफ कर दें कि एक बार प्रधानमंत्री नरसिंहा राव पर भी रिश्वत लेने का आरोप लग चुका है। 

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शुक्रवार, नवंबर 12, 2010

अच्छा लिखते हैं तो क्यों नहीं आते जनाब

अपने ब्लाग जगत में हर दूसरा ब्लागर एक ही नसीहत देने का काम करता है कि ब्लागरों को अच्छे लेखन की तरफ ध्यान देना चाहिए। हम जानते हैं कि अच्छा लेखन करने वालों की कमी नहीं है। लेकिन अपने ब्लाग जगत में उनकी वही हालत है जिस तरह की हालत अपने देश में सच बोलने वालों और ईमानदारी से चलने वालों की है। सच बोलने वालों को सच बोलने नहीं दिया जाता और ईमानदारों को बेईमान बनने मजबूर कर दिया जाता है।
ब्लाग जगत में आए हम भी अब दो साल होने जा रहे हैं। इन दो सालों में हम भी यह बात अच्छी तरह से समझ गए हैं कि यहां पर वास्तव में अच्छा लिखने वालों की कदर नहीं होती है। बहुत से ऐसे ब्लागों को हमने देखा है और कई मित्रों की भी हमेशा शिकायत रही है कि यार अच्छा लिखे तो किसके लिए? क्या खुद लिखे और खुद पढ़े? जब भी हम अच्छा लिखते हैं तो न तो उसको कोई पढऩे आता है और न ही कोई टिप्पणी मिलती है।
वास्तव में यह कड़वी सच्चाई है कि अच्छा लिखने वालों के ब्लागों में कोई झांकने नहीं जाता है। अगर कोई चंद लाइनों के जोक्स भी लिख दे, तो उनके ब्लाग में कतर लग जाती है। आखिर ऐसा क्यों है? किसके पास है इसका जवाब। इसी तरह से किसी भी विवादित मुद्दे पर लिखा नहीं है कि आ जाते हैं सभी ब्लाग में झांकने के लिए और तरह-तरह की बातें लिख जाते हैं, जैसे उनसे बड़ा कोई ज्ञाता ही नहीं है। अब अगर हम अपनी कल की पोस्ट की बात करें तो चिट्ठा जगत के खिलाफ हमने कोई बेवजह नहीं बल्कि सच में की गई गलती के बारे मे लिखा था। कल के हमारे ब्लाग का ट्रैफिक एक सप्ताह के टै्रफिक के बराबर था। इसका क्या मलतब निकाला जाए।
मतलब साफ है कि अच्छा लिखो और खुद पढ़ो, विवादास्पद लिखो और पाठक बुलाओ। लेकिन हम महज पाठक बुलाने के लिए कुछ भी विवादास्पद लिखना पसंद नहीं करते हैं। हम हमेशा मुद्दे की बात लिखने में विश्वास रखते हैं। हमारे एक ब्लाग खेलगढ़ में नहीं के बराबर पाठक आते हैं इसके बाद भी हम इस ब्लाग को करीब दो साल से चला रहे हैं। हमने ब्लाग चौपाल का प्रारंभ किया, इसके भी ज्यादा पाटख नहीं है। पाठक आए या न आए इससे क्या फर्क पड़ता है। लेकिन हमारा ऐसा मानना है कि ब्लाग जगत में अच्छे लेखन की कदर होनी चाहिए। अब यहां पर लोग तर्क जरूर देंगे कि अच्छे लेखन की कदर होती है, अगर होती है तो उसे साबित करके दिखाया जाए।
वास्तव में आज का जमाना दिखावे और तामझाम का है। अपने देश में जिस तरह से सच का कोई मोल नहीं, वैसे ही ब्लाग जगत में अच्छे लेखन का कोई मोल नहीं है। कहते हैं कि नेकी कर और दरिया में डाल। लेकिन आज का जमाना नेकी कर और जुते खा वाला ज्यादा हो गया। इसी के साथ एक बात यह भी है कि सच बोल और मार खा। अपने देश में लोगों को ईमानदार से बेईमान बनाने का काम किया जाता है। इस पर हम बाद में लिखेंगे। फिलहाल हमारा ब्लागर मित्रों से आग्रह है कि वास्तव में अच्छे लेखन की कदर की जाए ताकि ब्लाग जगत को एक सही रूप मिल सके। महज हंसी-मजाक और विवादास्पद लेखन पढऩे और उस पर टिप्पणी करने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। कुछ ब्लागों में ज्यादा टिप्पणियों की वजह हम भी जानते हैं कि वास्तव में अपने ब्लागजगत में बहुत ज्यादा गुटबाजी है। इसे भी कोई मानता नहीं है, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि ब्लाग जगत गुटबाजी का बहुत ज्यादा शिकार है। ब्लाग जगत को इससे भी उबरने की जरूरत है।

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गुरुवार, नवंबर 11, 2010

मठाधीशों के इशारों पर चलता है चिट्ठा जगत

अब हमें इस बात का पूरा भरोसा हो गया है कि अपना चिट्ठा जगत स्वचलित सिस्टम से नहीं बल्कि मठाधीशों के इशारों पर चलता है। हमें वैसे तो इस बात का पहले से ही यकीन था, लेकिन अब पक्का भरोसा हो गया। वरना कैसे कर चर्चा के ब्लागों में दिए गए लिंक में से एक लिंक की प्रविष्ठी तो उसके ब्लाग में जुड़ती हैं दूसरे ब्लाग की नहीं जुड़ती है। इसका मतलब साफ है कि उस ब्लाग को आगे बढऩे से रोकने के लिए ऐसा कुछ किया जाता है।
हम पिछले काफी समय से देख रहे हैं कि हमारे ब्लाग राजतंत्र की ब्लाग चर्चा में चर्चा होने के बाद भी उसकी प्रविष्ठी को हमारे ब्लाग की प्रविष्ठियों में शामिल नहीं किया जा रहा है। एक तरफ राजतंत्र की प्रविष्ठियों पर विराम लगा दिया गया है तो दूसरी तरफ हमारे एक और ब्लाग खेलगढ़ की प्रविष्ठियां निरंतर बढ़ रही हंै। यह भला कैसे संभव हो सकता है कि एक ब्लाग के चर्चा वाले ब्लाग में एक ब्लाग का लिंक काम करता है, दूसरे का नहीं। हम दो दिन पहले ही बात करें हमारे ब्लाग राजतंत्र की चर्चा दो चर्चा वाले ब्लागों एक ब्लाग चौपाल और दूसरे ब्लाग 4 वार्ता में हुई थी, लेकिन दोनों की प्रविष्ठियों को नहीं जोड़ा गया।
यह हमारे ब्लाग के साथ पहली बार हुआ है ऐसा नहीं है, हमारे ब्लाग के साथ काफी पहले से ऐसा किया जा रहा है। हमने पहले भी जब इसके बारे में लिखा तो हमारे वरिष्ठ ब्लागरों ने समझाने का प्रयास किया कि किसी कारणवश ऐसा हो गया होगा। हमने उनकी बात मान ली। लेकिन क्या बार-बार एक ही ऐसे ब्लाग के हो तो इसके पीछे का कारण समझ नहीं आता है। पिछले पांच दिनों से हमारे ब्लाग राजतंत्र में प्रविष्ठियों को जोड़ा नही जा रहा है।
हम अपने ब्लाग की छोड़े हमारे एक ब्लागर मित्र को भी इस बात की शिकायत है कि उनके ब्लाग को भी लगातार आगे बढऩे से रोका जा रहा है। हमारे ब्लाग की तो प्रविष्ठियां ही हजम की गई हैं उनके ब्लाग के तो कम से कम दस हवाले ही डकार लिए गए। हवाले तो कुछ हमारे भी ब्लाग के डकार लिए गए हैं। इसका मतलब साफ है कि चिट्ठा जगत भले एक स्वचलित एग्रीकेटर है, लेकिन इतना तय है कि यह ब्लाग जगत में बैठे मठाधीशों के इशारे पर ही चलता है। इस बात को कोई माने या न मानें लेकिन हम अब जरूर मानने लगे हैं। अब ये मठाधीश कौन हैं, हम नहीं जानते हैं, लेकिन इतना तय है कि ब्लाग जगत में ऐसे लोग जरूर है जो बढ़ते ब्लागों की रफ्तार पर रोक लगवाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। वैसे भी दुनिया का यह दस्तुर है कि बढ़ते हुए को रोकने का काम शीर्ष पर बैठे लोग करते ही हैं ताकि उनकी कुर्सी कायम रहे। बहरहाल जिसको जैसा करना है करता रहे, हम जब दूसरों के साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ लडऩे के लिए खड़े हो जाते हैं तो अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ न लडऩा कैसे संभव है।

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बुधवार, नवंबर 10, 2010

एक और खुले सांड का ब्लाग जगत में अवतरण

ब्लाग जगत में एक और खुले सांड यानी काड़ीबाज उस्तादजी का अवतरण हुआ है। वैसे इस नाम के तीन-तीन काड़ीबाजों के होने की जानकारी मिली है जो किसी के भी ब्लाग में जाकर कुछ भी टिप्पणी करने का काम कर रहे हैं। जिनके ब्लाग में मॉडरेशन लगा है वे तो सुरक्षित हैं, लेकिन जिनके ब्लाग खुले हैं उनके ब्लागों में ऐसे कई खुले सांड चले आते हैं गंदगी करने के लिए।
कुछ दिनों पहले ही हमारे ब्लाग में एक उस्तादजी नाम से किसी काड़ीबाजी ने टिप्पणी की थी। हमने ध्यान नहीं दिया, फिर से ये महाशय दो दिन पहले हमारे ब्लाग में आए। हमने कल ही इस बारे में अपने ब्लागर मित्र ललित शर्मा से चर्चा की तो मालूम हुआ कि उस्ताद के नाम से एक नहीं बल्कि तीन-तीन आईडी बनी हुई है और इस फर्जी नाम से कोई सांड ब्लागों में गंदगी फैलाने का काम कर रहा है। अब इन खुले सांडों से बचने का एक ही उपाय नजर आता है कि ब्लागर मित्र अपने ब्लागों में मॉडरेशन लगा ले। हम वैसे इसके खिलाफ थे, लेकिन जब देखा कि ब्लाग जगत में विचरण करने वाले खुले सांड गंदगी फैलाने से बाज नहीं आने वाले हैं तो हमने गंदगी से अपने को बचाने के लिए अंतत: मॉडरेशन का सहारा लिया। अब हमें इस बात की कोई फिक्र नहीं रहती हैं कि कौन क्या टिप्पणी कर रहा है। जिनकी टिप्पणी ठीक लगती है उसे प्रकाशित करते हैं जो ठीक नहीं लगती है उसे डाल देते हैं कचरा पेटी में। वैसे कोई स्वस्थ्य आलोचना करे तो ऐसी टिप्पणी से किसी को परहेज नहीं होता है, लेकिन यहां तो ऐसे-ऐसे काड़ीबाज हैं, जो बिना वजह किसी को भी परेशान करने का काम करते हैं। हम एक बात साफ कर दें कि काड़ीबाज का मतलब होता है बिना किसी मतलब के दूसरे के काम में अपनी टांग अड़ाना। हमारे एक मित्र ने कहा कि यार बहुत लोग काड़ीबाज का मलतब समझते नहीं हैं, इसलिए हम काड़ीबाज का अर्थ बता रहे हैं। तो आप भी ऐसे काड़ीबाजों और खुले सांडों से सावधान रहने के लिए अपने ब्लाग को सुरक्षित करने का काम करें और मॉडरेशन लगा लें।

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मंगलवार, नवंबर 09, 2010

दस रुपए में खेलना, खाना और रहना

एक खिलाड़ी के खाते में महज दस रुपए ही आने हैं और इतने पैसों में ही खिलाड़ी के रहने के साथ खाने की व्यवस्था करनी है और उसे खेल में भी शामिल होना है। यह स्थिति बनी है खेल विभाग के उस बजट से जो बजट छत्तीसगगढ़ ओलंपिक के लिए जिलों को दिया गया है। इस बजट को खेल बिरादरी हास्याप्रद बजट मान रही है क्योंकि इतने बजट में आयोजन का होना संभव नहीं है। खेल विभाग ने एक खेल के लिए २० हजार का ही बजट दिया है और कई खेल ऐसे हैं जिनमें ५०० खिलाड़ी आने तय है।
छत्तीसगढ़ ओलंपिक में जिलों में जिन खेलों का आयोजन होना है, उन खेलों के लिए खेल विभाग ने हर खेल के हिसाब से बजट तय किया है। एक खेल के लिए २० हजार का बजट रखा गया है। इस बजट को सभी जिलों में ऊंठ के मुंह में जीरा माना जा रहा है। कारण साफ है इतने कम बजट में एक खेल का आयोजन कम से कम उन बड़े जिलों में होना संभव नहीं है जिन जिलों में १० से ज्यादा विकासखंड हैं। ऐसे में सबसे ज्यादा परेशानी में इस समय रायपुर जिला है जिस जिले में १५ विकासखंडों के साथ राजधानी के खिलाड़ी भी खेलने आने वाले हैं। रायपुर के आयोजन में कम से कम ३३ सौ खिलाडिय़ों के आने की संभावना है। इस लिहाज से यह बजट बहुत कम है।
खेलों के एक जानकार ने एक खेल कबड्डी का ही उदाहरण देते हुए बताया कि इस देशी खेल में यह बात तय है कि २० पुरुष और १५ महिला वर्ग की टीमें खेलने आएंगी। इन टीमों में कुल मिलाकर कर ५०० खिलाड़ी हो जाएंगे। अब २० हजार के बजट को बाटा जाए तो एक खिलाड़ी के खाते में ४० रुपए आते हैं और ये रुपए चार दिन के आयोजन के लिए होंगे। यानी एक दिन के लिए एक खिलाड़ी को महज १० रुपए मिलने हैं और इतने पैसों में खिलाड़ी के रहने और खाने का इंतजाम करना है। इसी के साथ उस खिलाड़ी को खेलना है। अगर रायपुर जिले के ३३ सौ खिलाडिय़ों के लिए दिए जा रहे तीन लाख के बजट की बात की जाए तो इस बजट के हिसाब से एक खिलाड़ी के खाते में ९० रुपए आते हैं। एक दिन के लिए २२ रुपए २५ पैसे होते हैं। अब यहां पर अगर खेल विभाग के उस फरमान को देखते हुए जिसमें कहा गया है कि हम १५ खेलों के आयोजन के लिए बजट दे रहे हैं तो इन खेलों में ही १७ सौ खिलाड़ी आएंगे। अब इनते खिलाडिय़ों में तीन लाख का बजट विभाजित किया जाए तो एक खिलाड़ी के खाते में १७६ रुपए आते हैं। एक दिन के ४४ रुपए होंगे। इतने रुपयों में भी एक खिलाड़ी के लिए एक दिन के रहने और खाने की व्यवस्था करना संभव नहीं है। खेल विभाग के बजट को लेकर हर जिले में खेल अधिकारी और खेल संघों से जुड़े लोग परेशान हैं, पर कोई कुछ कह नहीं पा रहा है।
बजट का आधार पायका
इतने कम बजट के बारे में खेल संचालक जीपी सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि यह बजट पायका योजना को आधार बनाकर तय किया गया है। पायका में ही विकासखंडों में एक खेल के लिए दस हजार और जिला स्तर के आयोजन के लिए २० हजार देने का प्रावधान है।

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सोमवार, नवंबर 08, 2010

हमारा एक ब्लाग शहीद होते-होते बचा

कल का दिन हमारे लिए बहुत खराब रहा। सुबह को उठते ही मालूम हुआ कि कम्प्यूटर पाजी का दम निकल गया है। कम्प्यूटर में जान डाली तो मालूम हुआ कि हमारा एक ब्लाग खेलगढ़ शहीद हो गया है। उसको बड़ी मुश्किल से रात को शहीद होने से बचाया गया। इस बीच हमने उसकी तलाश करने के लिए ललित शर्मा जी की भी मदद ली। वे भी लगे हुए थे इसकी तलाश करने में।
रविवार को कल छुट्टी का दिन था। कल ही हमारे एक सांझा ब्लाग ब्लाग चौपाल में 150 वीं पोस्ट लिखनी थी। सुबह को सोचकर उठे कि इसमें कुछ नया करेंगे। लेकिन जब कम्प्यूटर को चालु किया तो मालूम हुआ कि उनका तो दम ही निकल गया है। बहुत कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। विंडो करप्ट हो गया था। ऐसे में हमने अपने कम्प्यूटर के एक डॉक्टर मित्र को फोन लगाया, वे नहीं मिले हमने दूसरे मित्र को फोन लगाया, वे मिल गए। हम उनको घर लेकर आए और प्रारंभ हुआ हमारे कम्प्यूटर का परीक्षण। हमारे मित्र ने कोशिश की कि विंडो रिपेयर हो जाए ताकि हमारा डाटा बचा रहे, लेकिन कम्प्यूटर महाशय थे कि रिपेयर होने का नाम ही नहीं ले रहे थे, ऐसे में उनके पास भी कम्प्यूटर को फारमेड करने के अलावा कोई चारा नहीं था। उन्होंने फारमेड किया तो इसमें तीन घंटे का समय लग गया। एक बजे जाकर कम्प्यूटर ठीक हुआ। इसके बाद हम उनको छोडऩे गए और आकर सबसे पहले हमने ब्लाग चौपाल सजाने का काम किया। इसके बाद राजतंत्र में एक पोस्ट लिखी।
अब जब  खेलगढ़   की बारी आई तो मालूम हुआ कि वह खुल ही नहीं रहा है। हमने बहुत कोशिश की, मगर सफल नहीं हुए। कम्प्यूटर से बार-बार एक ही जवाब मिल रहा था कि या तो हमारा यूजर नेम गलत है या फिर पासवार्ड। लेकिन हमें लगा रहा था कि दोनों सही है। समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर क्या कारण है जो ब्लाग नहीं खुल रहा है। हमने सारी कोशिश करके देख ली और अंत में जब सफल नहीं हुए तो हमने ललित शर्मा जी को फोन लगाया और उनको यूजर नेम और पासवार्ड बताकर कहा कि आप अपने कम्प्यूटर में जरा कोशिश करके देखें। उनको भी सफलता नहीं मिली। वे कोशिश करते रहे कि किसी भी तरह से मालूम हो जाए कि किस वजह से ब्लाग नहीं खुल रहा है। इधर हम भी कोशिश में थे। हमने कम्प्यूटर में सारे ड्राइव खंगाल डाले तब जाकर हमें वह फाइल मिली जिस फाइल में यूजर नेम और पासवार्ड थे। हम यूजर नेम गलत लिख रहे थे जिसकी वजह से ब्लाग नहीं खुल रहा था। हमने तत्काल ललित जी को खुशखबरी सुनाई की ब्लाग खुल गया है। उन्होंने भी राहत की सांस लेते हुए हमें बधाई दी। वरना हमने तो सोच लिया था कि हमारा एक ब्लाग शहीद हो गया। लेकिन फाइल मिलने से वह बच गया। वैसे ललित जी ने हमें आश्वासन दिया था कि हमारा ब्लाग वे शहीद होने नहीं देंगे। अगर यह ब्लाग शहीद हो जाता तो हमारे डेढ़ साल की मेहनत पर पानी फिर जाता।

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रविवार, नवंबर 07, 2010

राजधानी में होंगे ३० खेल

छत्तीसगढ़ ओलंपिक के मिनी ओलंपिक के लिए राजधानी में ३० खेलों के आयोजन का फैसला किया गया है। इन खेलों में रायपुर जिले के १५ विकासखंडों के ३२ सौ से ज्यादा खिलाड़ी जुटेंगे। रायपुर जिला ही पूरे राज्य में ऐसा एक मात्र जिला है जहां पर इतने ज्यादा खेलों का आयोजन हो रहा है। रायपुर जिले ने ही खेलमंंत्री लता उसेंडी की मंशा के अनुरुप हर खेल को शामिल करने का काम किया है। बाकी जिलों में ५ से लेकर १० खेलों का ही आयोजन होगा। खेल विभाग ने जिलों को १५ खेलों के आयोजन की ही अनुमति दी है, इसके बाद भी रायपुर जिले ने ३० खेलों का आयोजन करने की हिम्मत दिखाई है।
छत्तीसगढ़ ओलंपिक में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के निर्देश के बाद सभी जिलों में २० नवंबर से पहले जिला स्तर के आयोजन करवाने की तैयारी चल रही है। रायपुर में भी इसकी तैयारी की जा रही है। रायपुर की तैयारी बाकी जिलों से इस लिहाज में अलग है कि यहां पर जिला खेल विभाग ने ३० खेलों का आयोजन करने का मन बनाया है। वरिष्ठ खेल अधिकारी राजेन्द्र डेकाटे कहते हैं कि हमारा मकसद हर खेल के खिलाडिय़ों को मौका देना है। उन्होंने कहा कि इसके आयोजन में हमें कोई परेशानी नहीं होगी क्योंकि पूरी योजना बनाकर हम काम कर रहे हैं।
ये खेल होंगे शामिल
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि हमने उन ३० खेलों को शामिल किया है जिन खेलों के खेल संघ हमारे विभाग से मान्यता प्राप्त हैं। इन खेलों में तैराकी, तीरंदाजी, एथलेटिक्स, बास्केटबॉल, फुटबॉल, हैंडबॉल, कबड्डी, कराते, खो-खो, नेटबॉल, वालीबॉल, भारोत्तोलन, कुश्ती, हॉकी, रग्बी फुटबॉल, बैडमिंटन, कैरम, टेबल टेनिस, साफ्टबॉल, म्यूथाई, टेनीक्वाइट, वूशू, थ्रोबॉल, जूडो, कयाकिंग-कैनोइंग, जम्प रोप, शरीर सौष्ठव के साथ लोक खेल भी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि चार खेलों कबड्डी, खो-खो, फुटबॉल और वालीबॉल के आयोजन पहले ब्लाक स्तर पर होंगे इसके बाद इनकी टीमें जिल में आकर खेलेंगी। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि सभी खेलों के आयोजन के लिए मैदान तय कर दिए गए हैं। उद्घाटन और समापन स्पोट्र्स काम्पलेक्स के आउटडोर स्टेडियम में होगा। संभावित तिथि १७ से २० नवंबर तय की गई है।
ब्लाकों से आएंगे २००० हजार खिलाड़ी
श्री डेकाटे ने बताया कि ३० खेलों के आयोजन में रायपुर जिले के १५ ब्लाकों से ही २००० से ज्यादा खिलाड़ी आ जाएंगे। इसके अलावा राजधानी के करीब १२ सौ खिलाड़ी शामिल होंगे। कुल मिलाकर ३२ सौ से ज्यादा खिलाड़ी स्पर्धा में शामिल होंगे। उन्होंने बताया कि हर खेल के लिए अलग-अलग अनुमानित खिलाडिय़ों की संख्या तय कर दी गई है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि पुरुष वर्ग में १७५२, महिला वर्ग में ११९५ खिलाडिय़ों के साथ दोनों वर्गों में कोच और मैनेजर मिलाकर करीब ३०० आ जाएंगे।
खिलाडिय़ों को ठहराने में नहीं होगी परेशानी
तीन हजार से ज्यादा खिलाडिय़ों के राजधानी में ठहराने की व्यवस्था कहा की जाएगी के सवाल पर श्री डेकाटे ने कहा कि हमने पूरी व्यवस्था कर ली है और किसी भी तरह से खिलाडिय़ों को ठहराने में परेशानी नहीं होगी। उन्होंने बताया कि स्पोट्र्स काम्पलेक्स के आउटडोर स्टेडियम के कमरों में ही एक हजार से ज्यादा खिलाडिय़ों को ठहराने की व्यवस्था की गई है। इसी के साथ राजघानी की धर्मशालाओं और अन्य स्थानों पर खिलाडिय़ों के ठहराने की व्यवस्था की जा रही है। सभी स्थान तय कर दिए गए हैं। 

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शनिवार, नवंबर 06, 2010

एक दिन में 100 टिप्पणी की और बने 50 ब्लागों के फालोअर

दीपावली के दिन कल हमने ब्लाग जगत में एक अलग तरह से दीपावली का आनंद लिया। हमने इस दिन दो बार में दो-दो घंटे का समय निकाला और 100 से ज्यादा ब्लाग में जाकर टिप्पणी की और कम से कम 50 ब्लागों के फालोअर बने।
हमें वैसे भी काफी कम समय मिल पाता है, ब्लाग देखने के लिए। ऐसे में जबकि कल दीपावली की छुट्टी थी तो हमने सबसे पहले राजतंत्र में पोस्ट लिखने के बाद ब्लाग चौपाल में चौपाल सजाने का काम किया और बैठ गए ब्लागों को देखने के लिए। पहली ही बैठक में हमने कम से कम 50 से ज्यादा ब्लाग देखे और उनमें टिप्पणी की। इसी के साथ हम 25 ब्लागों में फालोअर बन गए। इसके बाद फिर से हमने दोपहर में समय निकाला और फिर से वही किया। इस बार हमने 50 से ज्यादा ब्लागों में जाकर टिप्पणी की और एक बार फिर से कम से कम 25 ब्लागों के फालोअर बने। ब्लागों के फालोअर बनने का हमें एक फायदा यह होगा कि जब हम रोज ब्लाग चौपाल में चौपाल सजाने बैठेगे तो हमें ज्यादा से ज्यादा ब्लागों को पोस्ट को देखने और उनको चौपाल में शामिल करने का मौका मिलेगा। हम सोचते हैं कि काश ऐसा समय हमें मिलता रहे तो हम ब्लागों को देखने के साथ ज्यादा ब्लागों के फालोअर बने ताकि ज्यादा से ज्यादा नए ब्लागों के लिंक हम अपनी चौपाल में दे सकें।

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शुक्रवार, नवंबर 05, 2010

आज है दीवाली, हर घर में हो खुशहाली

आज है दीपों का पर्व दीवाली
हर आंगन में दीप चले
हर घर में हो खुशहाली
सब मिलकर मनाए
भाई चारे से दीवाली
रहे न किसी की झोली खाली
ऐसी हो सबकी दीवाली
हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई
जब सब हैं हम भाई-भाई
तो फिर काहे करते हैं लड़ाई
दीवाली है सबके लिए खुशिया लाई
आओ सब मिलकर खाए मिठाई
और भेद-भाव की मिटाए खाई

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गुरुवार, नवंबर 04, 2010

बड़े होटल में मिलता है झुठे गिलास में पानी

राजधानी के एक बड़े होटल बेबीलोन इन का हाल यह है कि वहां पर लोगों को झुठे गिलास में पानी दिया जाता है। एक कार्यक्रम में इस बात का खुलासा हमारे एक फोटोग्राफर मित्र ने किया।
इस होटल में एक कार्यक्रम के सिलसिले में जाना हुआ तो वहां खाना-खाने के बाद जो भी गिलास रखे जा रहे थे उन गिलासों को वेटर बिना धोये ही टेबल के नीचे से पानी भरकर टेबल के ऊपर रख दे रहे थे। हमारे फोटोग्राफर मित्र किशन लोखंडे लगातार देख रहे थे अंत उन्होंने जाकर वेटरों को जमकर फटकारा और उनसे कहा कि ये क्या कर रहे हैं। गिलास थोये क्यों नहीं जा रहे है। वेटर घबरा गए। जब फोटोग्राफर ने कहा कि होटल के मैनेजर को बुलाए तो वेटर हाथ-पैर जोडऩे लगे।
इस एक वाक्ये ये यह पता चलता है कि बड़े होटलों में क्या होता है। जिस होटल में एक व्यक्ति के खाने के लिए 400 रुपए से लेकर एक हजार से भी ज्यादा रुपए वसूले जाते हैं, उन होटलों में अगर गिलास ही न धोये जाए तो ऐसे होटलों में जाने का क्या मतलब है। हमारे फोटोग्राफर मित्र ने कहा कि इससे तो अच्छे सड़क के किनारे ठेले लगाने वाले होते हैं, कम से कम एक बाल्टी पानी में वे प्लेट और गिलासों को धोते तो हैं, अब यह बात अलग है कि हर प्लेट और गिलास को उसी में धोने की वजह से दूसरे की जुठन तो उसमें भी लग जाती है।

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बुधवार, नवंबर 03, 2010

वो आते हैं, चले जाते हैं, हम कुछ नहीं कर पाते हैं

क्या बताऊं यार मैं बहुत ज्यादा परेशान हूं। अक्सर ऐसा होता है कि वो आते हैं, चले भी जीते हैं, पर हम कुछ नहीं कर पाते हैं। ऐसे कैसे लोग हैं, जब आते हैं तो कुछ देकर तो जाना चाहिए न। जब हम उनको इतना  कुछ दे रहे हैं तो फिर हमें भी तो लेने का अधिकार है की नहीं।
कुछ समझ में आया कि ये किस बारे में बात हो रही हैं। लगता है किसी के समझ में बात आई नहीं है। हम बता दें कि यह अपने ब्लाग जगत के बारे में ही बात हो रही है। हमारे एक ब्लागर मित्र हैं, उनको हमेशा इस बात की शिकायत रहती है कि उनके ब्लाग को सब पढऩे के लिए तो जरूर आते हैं, पर पढ़कर वापस चले जाते हैं और उनका टिप्पणी बाक्स खाली का खाली पड़ा रहा जाता है। वास्तव में उनका दुख और शिकायत जायज है कि अगर हम कुछ अच्छा लेखन दे रहे हैं तो हमें भी तो कम से कम कुछ लेने का अधिकार बनता है।
हमारे मित्र कहते हैं कि मुझे मालूम नहीं था कि ब्लागर इतने कंजूस होते हैं।
हमने कहा ऐसा नहीं है मित्र इस दुनिया की रीत पर ही ब्लागर भी चल रहे हैं।
उन्होंने पूछा कैसे रीत।
हमने कहा-एक हाथ दे एक हाथ ले, यानी कि जब तक तुम किसी के टिप्पणी बाक्स को फूल टुस नहीं भरोगे तो तुम्हारे टिप्पणी बाक्स को खाना कैसे मिलेगा।
हमारे मित्र ने कहा- लेकिन यार मैं क्या करूं मुझे लिखने का ही समय बड़ी मुश्किल से मिलता है और वो भी ऐसा कि मैं रोज भी नहीं लिख पाता हूं। ऐसे में कैसे संभव है कि मैं दूसरे ब्लागों में जाकर टिप्पणी करूं।
हमने कहा तो बस फिर हमारी तरह रहो। हमें भी लिखने का समय कम मिलता है, इसलिए हम कभी टिप्पणी बाक्स के बारे में सोचते नहीं हंै। हम तो बस इस बात पर चलते हैं कि जो दे उसका भी भला, जो न दे उसका भी भला। इस बात पर अमल करोगे तो कभी दुखी नहीं रहोगे। हमारे मित्र ने कहा देखता हूं यार समय निकाल कर कुछ देने-लेने वाला ही कारोबार शुरू करूंगा, ताकि कभी कोई मेरा ब्लाग देखे तो उसे वह हरा-भरा तो लगे।

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मंगलवार, नवंबर 02, 2010

क्या कभी काड़ीबाजों से मुक्त होगा ब्लाग जगत

ब्लाग जगत में हम जबसे आए हैं देख रहे हैं यहां काड़ी करने वाले काड़ीबाजों की कमी नहीं है। मालूम नहीं उनको ऐसा करके क्या मिलता है, लेकिन इतना तय है कि ये काड़ीबाज दिमागी रूप से विकलांग होते हैं। इनके पास सोचने-समझने की शक्ति तो होती नहीं है। बस दिमाग में यही बात रहती है कि किसी के भी अच्छे काम में अपनी टांग जरूर अड़ाए और उसे परेशान करने का काम करें। सो ये ऐसा ही करते हैं। इनका मकसद होता है लोगों को परेशान करना और लोग परेशान होते हैं। जब लोग परेशान होते हैं तो इनको बड़ा मजा आता है। मजा इसलिए आता है क्योंकि इनकी मानसिकता ही ऐसी रहती है।
अक्सर हमने देखा है कि ब्लाग जगत में लोग फर्जी आईडी बनाकर टिप्पणी करने का काम करते हैं। ऐसा काम करने वाले निश्चित रूप से मानसिक रूप से विकलांग होते हैं। अगर ये ऐसे नहीं होते हैं तो ये भी कुछ अच्छा करने के लिए सोचते न कि किसी के अच्छे काम में टांग अड़ाने का काम करते। लेकिन नहीं इनको ऐसा करके ही मजा आता है और ये अपने मजे के लिए दूसरों को परेशान करते हैं। हमें तो लगता नहीं है कि ऐसे मानसिक रूप से विकलांगों से कभी ब्लाग जगत को मुक्ति मिल पाएगी। कारण साफ है कि यहां आईडी बनाने के लिए किसी को अपने आईडी यानी पहचान बनाते की जरूरत नहीं होती है और जब तक यह सिलसिला चलता रहेगा मानसिक विकलांगों की मौज होती रहेगी।
हमारी समझ में नहीं आता है कि क्यों कर बिना किसी पहचान के नेट में किसी को भी फर्जी आईडी बनाने की छूट देकर रखी गई है। ऐसी फर्जी आईडी की वजह से अपराध भी पनप रहे हैं इसके बाद क्यों कर इसके ऊपर रोक लगाने का काम किया जाता है। लगता है कि किसी बड़े हादसे का इंतजार है। अगर कभी कोई बड़ा हादसा हो गया तो इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा। वैसे कुछ बड़े हादसे तो हो चुके हैं। किसी की भी फर्जी आईडी बनाकर किसी को भी धमकी दे दें या फिर कहीं पर बम होने की सूचना दे दें। देश में जितने ब्लास्ट हुए हैं उनके पीछे भी फर्जी आईडी रही है, फिर क्यों कर मेल की सुविधा देने वाली कंपनियां बिना किसी पहचान पत्र के मेल आईडी बनाने पर प्रतिबंध लगाती है।

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सोमवार, नवंबर 01, 2010

खराब हो गया नेट-पोस्ट लगाने में हो गए लेट

इंटरनेट में खराबी के कारण हम सुबह की पोस्ट लगा ही नहीं पाए। इसी के साथ हम सुबह को ब्लाग चौपाल भी नहीं सजा पाए। लेकिन अभी-अभी नेट ठीक करवाने के बाद पोस्ट लिखने बैठे हैं। इस पोस्ट के बाद ब्लाग चौपाल भी सजाने का काम करेंगे। हमें तो लग रहा था कि हम आज न तो पोस्ट लगा पाएंगे, न ही ब्लाग चौपाल सजा पाएंगे। लेकिन एयरटेल वालों ने हमेशा की तरह हमारा नेट जल्द ठीक कर दिया तो पोस्ट लिख रहे हैं। हमारा नेट कल रात को 10 बजे शिकायत करने  के बाद आज दोपहर को तीन बजे ठीक हो गया।
कल शाम को हम भिलाई गए थे, वहां से रात को लौटे तो मालूम हुआ कि नेट खराब हो गया है। हमने तुरंत एयरटेल में फोन खटखटाया। रात को 10 बजे शिकायत दर्ज करवाई तो उधर से शिकायत दर्ज करने वाले जनाब ने कहा कि कल यानी आज दोपहर 1.30 बजे तक हमारा फोन ठीक हो जाएगा। हम सुबह को प्रेस की मिटिंग के बाद काम निपटाते हुए जब दोपहर को दो बजए घर पहुंचे तो देखा कि एयरटेल के बंदे काम में लगे हैं। उन्होंने बताया कि जहां से हमारे फोन का कनेक्शन आया है, वहां पर केबल जल गया है। उन्होंने केबल को बदल तो तीन बजे हमारा फोन और नेट ठीक हो गया। हमारे पास अभी समय था, हम सीधे बैठ गए पोस्ट लिखने के लिए। सोचा नेट पर ही छोटी सी पोस्ट लिखकर एयरटेल का शुक्रिया अदा कर दें। वैसे हमारा जब भी फोन और नेट खराब हुआ है एक दिन से ज्यादा का समय नहीं लगा है उसे ठीक होने में।

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