वो आते हैं, चले जाते हैं, हम कुछ नहीं कर पाते हैं
क्या बताऊं यार मैं बहुत ज्यादा परेशान हूं। अक्सर ऐसा होता है कि वो आते हैं, चले भी जीते हैं, पर हम कुछ नहीं कर पाते हैं। ऐसे कैसे लोग हैं, जब आते हैं तो कुछ देकर तो जाना चाहिए न। जब हम उनको इतना कुछ दे रहे हैं तो फिर हमें भी तो लेने का अधिकार है की नहीं।
कुछ समझ में आया कि ये किस बारे में बात हो रही हैं। लगता है किसी के समझ में बात आई नहीं है। हम बता दें कि यह अपने ब्लाग जगत के बारे में ही बात हो रही है। हमारे एक ब्लागर मित्र हैं, उनको हमेशा इस बात की शिकायत रहती है कि उनके ब्लाग को सब पढऩे के लिए तो जरूर आते हैं, पर पढ़कर वापस चले जाते हैं और उनका टिप्पणी बाक्स खाली का खाली पड़ा रहा जाता है। वास्तव में उनका दुख और शिकायत जायज है कि अगर हम कुछ अच्छा लेखन दे रहे हैं तो हमें भी तो कम से कम कुछ लेने का अधिकार बनता है।
हमारे मित्र कहते हैं कि मुझे मालूम नहीं था कि ब्लागर इतने कंजूस होते हैं।
हमने कहा ऐसा नहीं है मित्र इस दुनिया की रीत पर ही ब्लागर भी चल रहे हैं।
उन्होंने पूछा कैसे रीत।
हमने कहा-एक हाथ दे एक हाथ ले, यानी कि जब तक तुम किसी के टिप्पणी बाक्स को फूल टुस नहीं भरोगे तो तुम्हारे टिप्पणी बाक्स को खाना कैसे मिलेगा।
हमारे मित्र ने कहा- लेकिन यार मैं क्या करूं मुझे लिखने का ही समय बड़ी मुश्किल से मिलता है और वो भी ऐसा कि मैं रोज भी नहीं लिख पाता हूं। ऐसे में कैसे संभव है कि मैं दूसरे ब्लागों में जाकर टिप्पणी करूं।
हमने कहा तो बस फिर हमारी तरह रहो। हमें भी लिखने का समय कम मिलता है, इसलिए हम कभी टिप्पणी बाक्स के बारे में सोचते नहीं हंै। हम तो बस इस बात पर चलते हैं कि जो दे उसका भी भला, जो न दे उसका भी भला। इस बात पर अमल करोगे तो कभी दुखी नहीं रहोगे। हमारे मित्र ने कहा देखता हूं यार समय निकाल कर कुछ देने-लेने वाला ही कारोबार शुरू करूंगा, ताकि कभी कोई मेरा ब्लाग देखे तो उसे वह हरा-भरा तो लगे।
कुछ समझ में आया कि ये किस बारे में बात हो रही हैं। लगता है किसी के समझ में बात आई नहीं है। हम बता दें कि यह अपने ब्लाग जगत के बारे में ही बात हो रही है। हमारे एक ब्लागर मित्र हैं, उनको हमेशा इस बात की शिकायत रहती है कि उनके ब्लाग को सब पढऩे के लिए तो जरूर आते हैं, पर पढ़कर वापस चले जाते हैं और उनका टिप्पणी बाक्स खाली का खाली पड़ा रहा जाता है। वास्तव में उनका दुख और शिकायत जायज है कि अगर हम कुछ अच्छा लेखन दे रहे हैं तो हमें भी तो कम से कम कुछ लेने का अधिकार बनता है।
हमारे मित्र कहते हैं कि मुझे मालूम नहीं था कि ब्लागर इतने कंजूस होते हैं।
हमने कहा ऐसा नहीं है मित्र इस दुनिया की रीत पर ही ब्लागर भी चल रहे हैं।
उन्होंने पूछा कैसे रीत।
हमने कहा-एक हाथ दे एक हाथ ले, यानी कि जब तक तुम किसी के टिप्पणी बाक्स को फूल टुस नहीं भरोगे तो तुम्हारे टिप्पणी बाक्स को खाना कैसे मिलेगा।
हमारे मित्र ने कहा- लेकिन यार मैं क्या करूं मुझे लिखने का ही समय बड़ी मुश्किल से मिलता है और वो भी ऐसा कि मैं रोज भी नहीं लिख पाता हूं। ऐसे में कैसे संभव है कि मैं दूसरे ब्लागों में जाकर टिप्पणी करूं।
हमने कहा तो बस फिर हमारी तरह रहो। हमें भी लिखने का समय कम मिलता है, इसलिए हम कभी टिप्पणी बाक्स के बारे में सोचते नहीं हंै। हम तो बस इस बात पर चलते हैं कि जो दे उसका भी भला, जो न दे उसका भी भला। इस बात पर अमल करोगे तो कभी दुखी नहीं रहोगे। हमारे मित्र ने कहा देखता हूं यार समय निकाल कर कुछ देने-लेने वाला ही कारोबार शुरू करूंगा, ताकि कभी कोई मेरा ब्लाग देखे तो उसे वह हरा-भरा तो लगे।
3 टिप्पणियाँ:
ख्याल तो नेक है:)
धनतेरस की शुभकामनाएं
ललित जी
धनतेरस की आपके साथ सभी ब्लागर मित्रों को बधाई और शुभकामनाएं...
उनसे कहिये जो पढते हैं वो भी अच्छा है ,टिप्पणियाँ तो बाद की बात हैं पहले कोई पढ़े तो सही !
एक टिप्पणी भेजें