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गुरुवार, अप्रैल 30, 2009

माता के दरबार में जसगीत की धूम-जो भी आता है जाता है झूम

देवी माता और जसगीत का चोली-दामन का साथ है। लेकिन माता के किसी दरबार में यह नियमित रूप से चले ऐसा देखने को काफी कम मिलता है। खल्लारी में माता के दरबार में साल भर हर मौसम में जसगीत की धूम मचाने का काम आस-पास के ग्रामीण करते हैं।

जब हमें खल्लारी जाने का मौका मिला तो वहां एक बात यह देखने को मिली कि माता के मंदिर के पास परिसर में पांच महिलाओं की एक मंडली जसगीत गाने में लीन थी। महिलाएं जस गीत गा रही थीं और एक कलाकार मादर बजा रहा था। वास्तव में जसगीत की धुन ऐसी होती जो किसी भी संगीत प्रेमी को झूमने पर मजबूर कर दे। ऐसे में हमारा मन भी मचल उठा और हम वहां पर बैठ गए जसगीत का रसपान करने के लिए। भरी गर्मी का समय ऊपर से आलम यह था कि वहां पर बिजली भी बंद थी। लेकिन इसके बाद भी उस जसगीत गाने वाली मंडली में उत्साह कम नहीं था। हमने जहां उनकी कुछ तस्वीर लीं, वहीं उनका जसगीत भी रिकॉर्ड किया। जब जसगीत समाप्त हुआ तो हमने मंडली से जानना चाहा कि वह कहां की है। उन्होंने बताया कि वह पास के गांव कसीबाहरा की है।

इस मंडली ने ही बताया कि वह सुबह को 8 बजे तक यहां पदयात्रा करते हुए पहुंच जाती है और शाम को यहां से वापस अपने गांव जाती है। इस मंडली से ही मालूम हुआ कि आस-पास के 28 गांवों की मंडलियां यहां नियमित आती हैं और हर मौसम में यहां पर जसगीत की धुनी लगती ही है। इन्होंने बताया कि उनकी मंडली यहां पर पिछले पांच साल से आ रही है। माता के दरबार में जसगीत का सिलसिला बरसों से चल रहा है। जसगीत सुनने का जो आनंद आता है उसको शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। अपने छत्तीसगढ़ के जसगीत की धूम का देश में नहीं बल्कि विदेशों में भी है। कहने को भले यह हिन्दुओं का है, क्योंकि जसगीत का नाता माता से है लेकिन जसगीत गा कर यहां की एक मुस्लिम गायिका शहनाज अख्तर काफी लोकप्रिय हो गई है। जब वह जसगीत गाती हैं तो पूरे तरह से इसमें डूब जाती है। उनके गाए जसगीत की धूम देश-विदेश में है। अगर आपको भी जसगीत का आनंद लेना हो और साथ ही खल्लारी में भीम पांव सहित प्रकृति के नजारों से दो-चार होना हो तो आपका भी यहां स्वागत है।

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बुधवार, अप्रैल 29, 2009

खल्लारी में हैं प्रकृति के अद्भूत नजारे- जो आंखों को लगते हैं प्यारे

छत्तीसगढ़ में खल्लारी माता के दरबार में ऐसे-ऐसे अद्भूत नजारे हैं जो वास्तव में आंखों को प्यारे लगते हैं। यहां आने के बाद जिस तरह की शांति का अहसास होता है, उस शांति की तलाश आज की भागमभाग वाली जिंदगी में सभी को रहती है। 355 मीटर की ऊंचाई पर 981 सीढिय़ों को लांघने के बाद जब आप ऊपर पहुंचते हैं तो वहां की छटा देखकर सारी थकान गायब हो जाती है।

हम काफी दिनों से किसी ऐसे प्राकृतिक स्थान पर सपरिवार जाना चाहते थे, जहां पहुंच कर शांति से चंद पल गुजार सकें। ऐसे में हमें खल्लारी माता के दरबार की याद आई। अपने पत्रकारिता जीवन में काफी कम वक्त निकलता है जिसमें अपने परिवार के साथ कहीं जा सकें। ऐसे में अचानक खल्लारी जाने का कार्यक्रम बना तो मेरी बिटिया स्वप्निल और बेटा सागर काफी दिनों से लगातार रटते रहे कि पापा खल्लारी कब जाएंगे। अंतत: कार्यक्रम बना और हम निकल पड़े खल्लारी के लिए। वहां जाने से पहले हमको भी मालूम नहीं था कि वहां ऐसे नजारे होंगे जिनको देख कर आंखों को काफी सकून पहुंचेगा। लेकिन वहां जाने पर मालूम हुआ कि वास्तव में पहाड़ों के ऊपर बैठी देवी के दरबार में कितनी शांति मिलती है।

भरी गर्मी में वहां एक बजे पहुंचे और इतनी गर्मी होने के बाद भी 981 सीढिय़ों को चढऩे का सबने साहस दिखाया। हमारे बच्चे तो काफी खुश थे। खासकर हमारा पांच साल का बेटा सागर तो काफी प्रसन्न था। वह तो हंसते-हसंते सभी सीढिय़ां चढ़ गया। सबसे पहले माता के दरबार में उसके ही नन्हें पांव पड़े। बहरहाल वहां जाने के बाद ऊपर से जब नीचे का नजारा देखा तो देखते ही रह गए। पहाड़ के चारों तरफ प्रकृति के ऐसे नजारे हैं जिनको शब्दों में बयान करना आसान नहीं है। ऊपर से जिस दिशा में नजरें जाती थीं लगता था कि प्रकृति अपनी गोद में सारे जहान का सौंदर्य लिए हुए है। एक ऐसा सौंदर्य जिसको हर कोई कैमरे में कैद करना चाहेगा। हमने भी जितना हो सका प्रकृति के उन नजारों को कैमरे में कैद करने का प्रयास किया।




माता के दरबार में जहां माता खल्लारी देवी के दर्शन होते हैं। यहां पर 14 वीं शताब्दी का दंतेश्वरी देवी का ऐतिहासिक मंदिर है। इसके अलावा वहां पर भीम पांव के साथ उनके चूल्हे और साथ ही डोंगा पत्थर है जिसमें राम और लक्ष्मण को दिखाया गया है। दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर, भैरव गुफा, सिंह गुफा, शीत बाबा, राम जानकी निषाद राज, जंवारा खोल, शिव गंगा भागीरथी के भी दर्शन होते हैं। जहां पर भीम पांव हैं वहां की छठा निराली है। यहां पर पहाड़ों के चारों तरफ का सौंदर्य निराला है। ऊपर ने नीचे देखने पर सड़क का भी अद्भूत नजारा नजर आता है। आस-पास जो तालाब हैं वे भी काफी सुंदर लगते हैं।

यह तो रही गर्मी की बात जानकारों को कहना है कि बारिश के समय में यहां की छठा और ज्यादा निराली रहती हैं। जब आसमान में इन्द्रधनुष दिखता है तो पहाड़ के चारों तरफ का नजारा वास्तव में देखने योग्य होता है। तब यहां आने वाले लोग अपने को धन्य समझते हैं। खल्लारी माता के दरबार को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है। आने वाले दर्शनार्थियों के लिए मंदिर के पहले एक गार्डन भी बनाया गया है। पानी आदि की समुचित व्यवस्था है। यहां पर साल में दो बार आने वाली नवरात्रि पर मेला लगता है जिसमें काफी दूर-दूर से लोग आते हैं माता के दरबार में। खल्लारी आने वालों को आस-पास में और भी कई दर्शनीय स्थालों पर जाने का मौका मिल सकता है।

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मंगलवार, अप्रैल 28, 2009

भीम के पांव देखने हैं तो खल्लारी आएं....

छत्तीसगढ़ में जो भी पर्यटन और धार्मिक स्थल हैं वहां पर रामायण और महाभारत की गाथा से जुड़ी कई चीजें हैं। महाभारत के महारथी और परम शक्तिशाली भीम का छत्तीसगढ़ से नाता रहा है। नाता तो सारे पांडवों का रहा है। राजधानी रायपुर से करीब 80 किलो मीटर की दूरी पर खल्लारी में माता खल्लारी देवी का मंदिर है। पहाड़ों पर बसे इस मंदिर के पास में ही भीम के पैरों के निशानों के साथ उनका चूल्हा भी है जहां पर वे खाना बनाते थे। वैसे यहां आने के बाद महज भीम के पांव के ही दर्शन नहीं होंगे, यहां देखने लायक काफी कुछ है। लेकिन फिलहाल हम चर्चा भीम पांव की करने वाले हैं।

महाभारत के जुड़े पांडवों के छत्तीसगढ़ के कई स्थानों पर आने के अवशेष हैं। वैसे भी बताया जाता है कि सिरपुर में ही देश का प्रमुख चौराहा था और किसी को भी उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम जाने के लिए इस चौराहे से गुजरना ही पड़ता था। ऐसे में जबकि पांडवों को भी अपना अज्ञातवाश काटना था तो उनका छत्तीसगढ़ के जंगलों में आना हुआ। मप्र के पंचमढ़ी में भी पांडवों का स्थान है। बहरहाल हम बातें करें पांच पांडवों में से एक शक्तिशाली भीम की। भीम के बारे में ऐसा कहा जाता है कि विशालकाय शरीर के भीम जब चलते थे तो धरती पर जब उनके पैर पड़ते थे तो लगता था कि धरती हिल रही है। इस बात का प्रमाण वास्तव में भीम के पैर देखने के बाद होता है और इन पैरों को जब 355 मीटर ऊंची पहाड़ी पर देखने से मालूम होता है कि वास्तव में भीम कितने शक्तिशाली रहे होंगे।

पहाड़ी में उनके पैरों के जो निशाने हैं वो एक तरह से पहाड़ के पत्थर में गड्ढ़ा है। जानकारों का ऐसा मानना कि जब भीम यहां आते होंगे तो उनके पैरों से पहाड़ों में भी गड्ढ़ा हो जाता था। जहां पर भीम के पैरों के निशाने हैं, वहीं पर एक और बहुत बड़ा गड्ढ़ा है जिसे उनका चूल्हा बताया जाता है। इस चूल्हें में ही वे खाना बनाते थे। खल्लारी मंदिर के पुजारी महेन्द्र पांडे बताते हैं कि खल्लारी के पास में ही उस लाक्ष्यागृह के अवशेष हैं जिसमें पांडवों को रखा गया था और बाद में इसमें आग लगा दी गई थी। लेकिन पांडव उस आग से बच गए थे क्योंकि विदुर ने उनको आग से बचने का उपाय कुछ इस तरह से बताया कि आग में ऐसा कौन सा जीव है जो बचने का रास्ता निकाल लेते हैं। इसका जवाब पांडवों ने दिया था कि चूहा। चूहा जिस तरह से सुरंग बनाकर अपनी जान बचा लेता है उसी तरह से पांडवों ने भी लाक्ष्यागृह के नीचे से सुरंग बनाकर अपनी जान बचाई थी।

खल्लारी आने पर भीम पांव और चूल्हे के साथ और भी प्रकृति के कई अद्भूत नजारे देखने को मिलते हैं। इन बाकी नजारों की बातें अब बाद में होंगी। फिलहाल इतना ही। खल्लारी तक पहुंचने के लिए पहले छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर तक ट्रेन या फिर हवाई मार्ग से आना पड़ेगा। रायपुर से खल्लारी तक बस से या फिर ट्रेन से जाने का रास्ता है। ट्रेन के रास्ते से जाने पर भीमखोज में उतरना पड़ेगा। बस से सीधे खल्लारी पहुंचा जा सकता है।

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सोमवार, अप्रैल 27, 2009

राजीव गांधी के हत्यारे की एक खबर से निपटे आठ पुलिस वाले

लिब्रेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम यानी लिट्टे का अध्याय अब समाप्ति की ओर वाला एक लेख हमें अभी कल ही एक अखबार में पढऩे को मिला। इसी के साथ लिट्टे को लेकर लगातार खबरें आ रही हैं कि अब उसका अंत निकट है। इस एक अच्छी खबर ने ही अचानक हमारे मानसपटल पर अपनी एक उस खबर की याद दिला दी जिस खबर के कारण आठ लापरवाह पुलिस वाले निलंबित किए गए थे। हुआ कुछ यूं था कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों में शामिल काने शिवरासन के रायपुर से गुजरने की खबर को रेलवे पुलिस वालों ने गंभीरता से लिया और इस खबर को हमने प्रमुखता से प्रकाशित किया जिसके कारण वो सारे आठ पुलिस वाले निलंबित कर दिए गए जो इस मामले को गंभीरता से न लेने के दोषी थे।

बात आज से करीब डेढ़ दशक से पहले की है। यह वह समय था जब देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी की लिट्टे ग्रुप के सदस्यों ने हत्या कर दी थी। इस हत्या में शामिल एक आरोपी काना शिवरासन था। इस आरोपी के बारे में उस समय देश के हर राज्य के हर शहर की पुलिस को यह सूचना दी गई थी कि शिवरासन से मिलती-जुलती शक्ल के आदमी को गिरफ्तार किया जाए। शिवरासन के उस समय कम से कम एक दर्जन ऐसे कैरीकेचर जारी किए गए थे जिस शक्ल में वह हो सकता था। ऐसे में ही रायपुर जीआरपी को बिलासपुर से यह सूचना मिली थी कि अहमदाबाद एक्सप्रेस में शिवरासन से मिलती-जुलती शक्ल का एक आदमी देखा गया है उसकी जांच की जाए। उन दिनों हम रायपुर के समाचार पत्र दैनिक अमृत संदेश में सिटी रिपोर्टर के रूप में काम करते थे और रेलवे का बीट हमारे जिम्मे था। अपने रूटीन के मुताबिक जब शाम को रेलवे स्टेशन गए तो हमारे वहां पहुंचने से कुछ समय पहले ही अहमदाबाद एक्सप्रेस प्लेटफार्म से रवाना हुई थी।

हम स्टेशन के अंदर जैसे ही घुसे तो हमें जीआरपी के जवान मिले जिन्होंने हमें कहा , क्या भईया कुछ समय पहले आते तो देखते यहां से काना शिवरासन गया। हमने उनसे जब पूरा किस्सा पूछा तो उन्होंने बताया कि बिलासपुर से खबर आई थी कि अहमदाबाद में शिवरासन जैसा एक आदमी देखा गया है। हमने उनसे पूछा कि आप लोगों ने क्या किया तो उन्होंने बताया कि भाई साहब अब हम क्या करते, हम लोगों ने जब उस डिब्बे में देखा तो एक आदमी शिवरासन जैसा लग तो रहा था, पर हम लोगों की हिम्मत उससे कुछ पूछने की इसलिए नहीं हुई क्योंकि हमको मालूम था कि शिवरासन के पास ताबीज की शक्ल में साइनाइट है अगर वह खा लेता तो हमारा क्या होता। उनसे जब पूछा गया कि क्या इस मामले की खबर आलाअफसरों को दी गई तो उन्होंने बताया कि किसी को खबर नहीं की गई और एक एएसआई के साथ सात सिपाहियों ने डिब्बे में जाकर देखा था। उनकी इस बात पर हमें काफी गुस्सा आया कि देश के प्रधानमंत्री के हत्यारे का मामला है और उसको भी पुलिस वालों ने गंभीरता से नहीं लिया और किसी आला अफसर को सूचना देना भी जरूरी नहीं समझा।

बहरहाल वह खबर लेकर हम प्रेस आ गए और अपने सिटी चीफ को इस बात की जानकारी देते हुए खबर बना दी। खबर के लिए जब रेलवे पुलिस अधीक्षक से संपर्क किया गया तो उन्होंने इस तरह की किसी भी जानकारी से इंकार किया और बाद में जानकारी देने की बात कही। जब उनको मामले की गंभीरता को बताया गया तो उन्होंने कई घंटों बाद रात के 12 बजे के बाद इस बात की जानकारी दी कि बिलासपुर से ऐसी सूचना तो आई थी इस मामले में जीआरपी ने क्या किया है इसकी जानकारी कल देंगे। उनका पक्ष लेकर खबर प्रकाशित करने के लिए भेजी गई। यहां पर हमने एक काम यह किया कि यह खबर और किसी अखबार को न मिल सके इसके लिए हमने संपादक से आग्रह करके खबर को पहले संस्करण में न छापने को कहा। होता यह है कि दूसरे अखबार वाले हर अखबार का बस्तर का संस्करण मंगवा लेते हैं ताकि देख सकें कि कोई महत्वपूर्ण खबर छूटी तो नहीं है। उस दिन बस्तर संस्करण के बाद के संस्करणों में खबर लगने के कारण दूसरे अखबारों को इस खबर की भनक भी नहीं लगी। दूसरे दिन खबर के छपते ही हंगामा मच गया। राजीव गांधी के हत्यारे के रायपुर से गुजरने की खबर काफी बड़ी थी।

इस खबर के कारण जहां दूसरे अखबार के सिटी रिर्पोटरों की क्लास लगी, वहीं रेलवे एसपी को अंतत: उन सभी आठ पुलिस वालों को निलंबित करना पड़ा। इन सबके निलंबन की जानकारी भी रेलवे एसपी ने सिर्फ हमें दी। इस खबर के बाद भी दूसरे अखबार के सिटी रिर्पोटरों की खूब खींचाई हुई। आज भी जब हमारे कुछ जूनियर साथी रेलवे में रिपोर्टिंग करने जाते हैं तो पुराने पुलिस वाले जहां हमारे बारे में पूछते हैं, वहीं उनको पुलिस वाले ही बताते हैं कि कैसे एक खबर में आठ पुलिस वाले निलंबित हुए थे। हमारे जूनियर जब हमसे आकर उस खबर के बारे में पूछते हैं तो हम उनको बताते हैं। इसी के साथ हमें इस बात पर गर्व होता है कि हमारी एक खबर को आज भी लोग बरसो बाद याद करते हैं और जब जूनियरों को इस खबर के बारे में मालूम होता है तो वो जानने को उत्सुक हो जाते हैं कि आखिर वह खबर क्या थी। वैसे भी पत्रकारों के जीवन में काफी कम ऐसे अवसर आते हैं जब उनकी खबरों को बरसों याद किया जाता है। आज उस बात को इतने साल हो गए, लेकिन इसके बाद भी हमें उस खबर की एक-एक बात याद है। हम उस खबर को भूल भी कैसे सकते हैं यह खबर तो हमारे पत्रकारिता जीवन की यादगारों खबरों में से सबसे अहम खबर है। वास्तव में अगर लिट्टे का अंत हो जाता है तो इससे बड़ी खबर पूरे विश्व के लिए कोई और नहीं हो सकती है।

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रविवार, अप्रैल 26, 2009

भगवान श्रीराम और बुद्ध का भी सिरपुर से रहा है नाता

छत्तीसगढ़ से पर्यटन और पुरातत्व स्थल सिरपुर में चल रही खुदाई में नए-नए राज खुल रहे हैं। अभी शाही स्नानगृह के राज की बात सामने आई है। सिरपुर के साथ एक बात यह भी है कि सिरपुर से भगवान श्रीराम और बुद्ध का भी गहरा नाता रहा है। भगवान श्रीराम जहां वनवास के समय यहां के होकर गए थे, वहीं बुद्ध भी यहां आए थे। यही नहीं एक समय में सिरपुर में ही देश का प्रमुख चौराहा हुआ करता था। इस चौरहे से होकर ही कोई भी देश में उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम की तरफ जाता था। इस बात के प्रमाण खुदाई में मिले हैं।


पुरातत्व महत्व के सिरपुर में इन दिनों फिर से खुदाई का काम चल रहा है। इसी खुदाई में नए-नए तथ्य सामने आ रहे हैं उससे एक बार फिर से इस बात का पता चला है कि भगवान श्रीराम को जब 14 साल का वनवास मिला था तब उनको सिरपुर से होकर ही दक्षिण की तरफ जाना पड़ा था। श्रीराम के छत्तीसगढ़ के सिरपुर से होकर जाने के और कई प्रमाण पहले से भी छत्तीसगढ़ में मौजूद हैं। आरंग में अहिल्या का स्थान होने के साथ तुरतुरिया में बाल्मीकि का आश्रम है। इसी के साथ दंडकारण्य जाने का सबसे बेहतर रास्ता तो सिरपुर से होकर ही जाता था। श्रीराम ने शबरी से जो बैर खाए थे तो उनकी मुलाकात शबरी से सिरपुर के आस-पास के जंगलों में ही हुई थी।

शबरी जहां रहती थीं उस नगर को शबरीपुर कहा जाता था। शबरीपुर का उल्लेख अलेक्जेंडर कनिंघम की उस पुस्तक में भी मिलता है जो उन्होंने 1872 में लिखी थी। इस पुस्तक में शबरीपुर के साथ इस बात का भी उल्लेख है। पुरातत्व के जानकार बताते हैं कि सिरपुर में ही देश का प्रमुख चौराहा था। इस चौराहे से गुजरे बिना कोई भी दूसरी दिशा में जा ही नहीं सकता था। जहां किसी को दक्षिण की और जाना होता था तो उसको इलाहाबाद, सतना, अमरकंटक के बाद सिरपुर होकर ही दक्षिण की और जाना पड़ता था। श्रीराम भी दक्षिण जाने के लिए इस चौराहे से होकर गए थे। इस मार्ग का उपयोग उस समय ज्यादा इसलिए भी होता था क्योंकि यही एक ऐसा मार्ग था जिस मार्ग में नदियां कम पड़ती थी।

सिरपुर की खुदाई में जो स्तूप मिले हैं उन स्तूपों का सीधा संबंध भगवान बुद्ध से है। इन स्तूपों के संबंध में बताया जाता है कि ये स्तूप सांची के स्तूपों से अलग हैं और पत्थर के बने हैं। पत्थरों के स्तूपों के बारे में कहा जाता है कि ऐसे स्तूप तो बुद्ध ही बनाते थे। पुरातत्व विभाग के अधिकारी बताते हैं कि बौद्ध ग्रंथों में इस बात का उल्लेख है कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी में भगवान बुद्ध सिरपुर आए थे। यहां के स्तूप उस समय के हैं।

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शनिवार, अप्रैल 25, 2009

26 सौ साल पुराना शाही स्नानगृह मिला छत्तीसगढ़ में

छत्तीसगढ़ में सिरपुर एक ऐसा स्थान है जिसको मंदिरों की नगरी कहा जाता है। यहां पर कोई ऐसा घर नहीं होगा जहां एक मंदिर न हो। इसी के साथ सिरपुर का नाम आज देश-विदेश में पुरातात्विक संपदा के लिए भी जाना जाता है। यहां से लगातार पुरातात्विक संपदा मिल रही है। अब यहां पर एक 26 सौ साल पुराना शाही स्नानगृह मिला है जिसको पांडुवंशी काल का कहा जा रहा है। इस शाही स्नानगृह का उपयोग उस जमाने की रानियां किया करती थीं।
अपने छत्तीसगढ़ के सिरपुर में लगातार ऐसी-ऐसी पुरानी चीजें खुदाई में मिल रही हैं जिससे पुरातत्व विभाग के लोग भी आश्चर्य में हैं। सिरपुर आज पुरातात्विक संपदा के लिए लगातार लोकप्रिय हो रहा है। हाल के दिनों में काफी कुछ यहां मिला है। अब यहां पर एक दिन पहले ही एक शाही स्नानगृह मिलने की बात सामने आई है। इस शाही स्नानगृह के बारे में बताया जा रहा है कि पक्की ईटों से बने इस स्नानगृह में काफी नक्काशी की गई है। इस स्नानगृह तक पहुंचने के लिए तीन सीढिय़ां भी बनीं हुईं हैं। इन सीढिय़ों की लंबाई और चौड़ाई 80-80 सेंटीमीटर है। स्नानगृह में चारों तरफ पत्थर के स्तंभलगे हुए हैं। इन स्तंभों से ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इसके ऊपर छप्पर रहा होगा ताकि छाया हो सके।
इस स्नानगृह के बारे में ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि यह 26 सौ साल पुराने पांडुवंशी काल का है। इस काल में इसका उपयोग रानियां शाही स्नान करने के लिए करती थीं। वैसे भी शाही शासनकाल में रानियों के लिए हर शासक ने ऐसे स्नानगृह बनवाएँ हैं जिसका उल्लेख इतिहास में मिलता है। पुराने जमाने में राजा-महाराजाओं में शाही स्नान का अलग ही महत्व हुआ करता था। खुदाई में इस स्नानगृह के अलावा घरों के उपयोग में आने वाली वस्तुएं मिली हैं जो कि पत्थरों की बनीं हैं। इन वस्तुओं में आटा-दाल दलने की चक्की, सिलबट्टे, चटनी बनाने के लिए पत्थर के बने छोटे-छोटे खरल शामिल हैं। खुदाई में जो कमरे मिले हैं उन कमरों में दो ओखलियां लगीं हुईं हैं। शाही स्नानगृह के मिलने से पहले पांच कुंड मिल चुके हैं। इन कुंडों का उपयोग अनाज रखने के लिए किया जाता था। अब जो मिला है वह शाही स्नानगृह है।
सिरपुर जो कि वास्तव में राष्ट्रीय धरोहर है उसके साथ एक विडंबना यह है कि इस धरोहर की रक्षा नहीं हो पा रही है। सिरपुर में हजारों साल पुरानी मूर्तियों हैं जो ऐसे ही पड़ी हुई हैं। सिरपुर में सुरक्षा का कोई इंतजाम न होने के कारण जहां पुरातात्विक संपदा के नष्ट होने का खतरा है, वहीं मूर्तियों के चोरी होने का भी अंदेशा है। एक बार सरकार का ध्यान इस तरफ दिलाने के लिए एक पत्रकार ने वहां से एक मूर्ति उठा ली थी, यह बताने के लिए की सुरक्षा के अभाव में हजारों साल पुरानी कीमती मूर्तियों को कोई भी चुरा सकता है, लेकिन इसके बाद भी सरकार ने आज तक इस दिशा में ध्यान नहीं दिया है।
बहरहाल सिरपुर एक ऐसा स्थान है जहां जाने के बाद किसी को निराशा नहीं होती है खासकर उनको तो कभी नहीं होती है जिनकी रूचि पुरातात्विक संपदा में है। सिरपुर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के महज 70 किलो मीटर की दूरी पर है, वहां तक पहुंचने के लिए रायपुर के आगे बस मिल जाती है। रायपुर तक आने के लिए देश के हर छोटे-बड़े शहर से ट्रेन मिल जाती है। वैसे बड़े शहरों से हवाई यात्रा की भी सुविधा है। कोई भी यहां आकर पुरातात्विक संपदा को देख सकता है। सिरपुर में रहने के लिए पर्यटन विभाग ने मोटल भी बनवाया है। वहां लोकनिर्माण विभाग का विश्राम गृह भी है।

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शुक्रवार, अप्रैल 24, 2009

छत्तीसगढ़ की नारी-सब पर भारी

नारी को अबला कहे जाने के दिन अब लद चुके हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज की नारी हर वह काम करने लगी है जो पुरुष करते हैं। नारी किसी भी हालत में पुरुषों से काम नहीं है। अपने छत्तीसगढ़ में एक सुखद खबर यह है कि यहां की नारी अब काम के मामले में भी सब पर भारी पड़ रही है। एक शोध में यह बात सामने आई है कि निम्न स्तर पर जीवन यापन करने वाली महिलाएं अब काम में इतनी ज्यादा सक्रिय हो गई हैं कि जहां वह घर का 75 प्रतिशत खर्च उठाने का काम कर रहीं हैं, वहीं उनका प्रतिशत अब गिरकर 39 से महज 5 हो गया है। आने वाले दिनों में यह प्रतिशत शून्य होने के भी आसार नजर आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की महिलाओं पर तो परिवार का दबाव भी काफी कम है। संस्कारधानी बिलासपुर में जरूर यह प्रतिशत ज्यादा है।
अपने देश में महिला सशक्तिकरण की जो बात लगातार की जा रही है, उस दिशा में और कोई राज्य आगे बढ़ा हो या न बढ़ा हो लेकिन अपना राज्य छत्तीसगढ़ इस दिशा में काफी आगे बढ़ गया है। आज छत्तीसगढ़ की महिलाएं हर क्षेत्र में नए आयाम स्थापित कर रही हैं। पं. रविशंकर विश्व विद्यालय की भूगोल की रीडर डॉ. सरला शर्मा ने एक शोध किया है। इस के परिणाम आश्चर्यजनक हैं। इस शोध में बताया गया है कि निम्न स्तर पर जीवन यापन करने वाली महिलाओं की जीवन शैली में नौकरी के कारण काफी बदलाव आया है। एक समय वह था जब निम्न वर्ग में महिलाओं को काम करने नहीं दिया जाता था, लेकिन अब समय की मांग को देखते हुए इस वर्ग ने भी अपने घर की महिलाओं को घर की चारदीवारी से बाहर जाने की इजाजत दी है। इसका नतीजा यह रहा है कि जहां निम्न वर्ग के लोगों के रहन-सहन में बदलाव आया है, वहीं महिलाओं ने घर को संभालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का काम किया है। छत्तीसगढ़ में पूर्व में निम्न स्तर पर महिलाओं का प्रतिशत 39 था जो अब घटकर महज पांच प्रतिशत रह गया है। रायपुर की बात करें तो यहां का प्रतिशत 41 से घटकर 7 हुआ है। एक तरफ जहां निम्न वर्ग की महिलाओं का रूझान काम के प्रति बढ़ा है तो दूसरी तरफ उच्च वर्ग की महिलाएं अब काम करने की बजाए घर संभालने की दिशा में अग्रसर हो रही हैं। उच्च वर्ग में पहले 14 प्रतिशत महिलाएं ही घरों को संभालती थीं, लेकिन अब इसका प्रतिशत 48 हो गया है। यानी आज करीब आधी महिलाएं ही बाहर काम करने में रूचि रखती हैं।
जो महिलाएं बाहर काम करती हैं उन पर घर के काम का दवाब कम नहीं होता है। शोध में यह बात सामने आई है कि दबाव के मामले में रायपुर की महिलाएं किस्मत वाली हैं। उन पर घर के काम का दबाव महज 34 प्रतिशत है। इस मामले में बिलासपुर की महिलाएं बदकिस्मत हैं कि उनको बाहर का काम करने के बाद भी घर का ज्यादा से ज्यादा काम करना पड़ता है। बिलासपुर का प्रतिशत 66 हैं। एक तरफ जहां बिलासपुर की महिलाएं घर के काम के बोझ से भी दबी हुई हैं, वहीं उन पर ही घर का खर्च चलाने का जिम्मा ज्यादा है। शोध में यह बात सामने आई है कि बिलासपुर की 43 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं घर का 75 प्रतिशत खर्च उठाती हैं। रायपुर में यह प्रतिशत महज 13 प्रतिशत है। शोध में किए गए सर्वे में जहां प्रदेश के मुख्य जिलों राजधानी रायपुर के साथ बिलासपुर को शामिल किया गया, वहीं भिलाई और कोरबा जैसा उद्योग नगरी को भी शामिल किया गया। इन शहरों में शिक्षा, बैंक, प्रशासनिक क्षेत्र,ब्यूटी पार्लर, नर्सिंग होम, रेलवे अस्पताल के साथ निजी संस्थानों में काम करने वाली महिलाओं को शामिल किया गया था। सर्वे में आर्थिक आधार पर ही महिलाओं को उच्च, मध्यम और निम्न वर्ग में रखा गया था। कुल मिलाकर यह एक सुखद शोध है कि अपना छत्तीसगढ़ महिला सशक्तिकरण की तरफ तेजी से बढ़ रहा है।

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गुरुवार, अप्रैल 23, 2009

आईपीएल का खेल-भारत के बाहर फेल

इंडियन प्रीमियर लीग यानी आईपीएल को आयोजक अपनी मनमर्जी के चलते भारत के बाहर द. अफ्रीका ले तो गए हैं, पर अफ्रीका में जिस तरह से लगातार बारिश के कारण मैच या तो रद्द हो रहे हैं, या फिर डकवर्थ लुईस नियम से मैचों का फैसला हो रहा है, उससे साफ लग रहा है कि आईपीएल के असली मजे तो पूरा तेल निकल गया है। वैसे भी आईपीएल का कार्यक्रम भारत के मौसम के हिसाब से बना था। आयोजकों को आईपीएल को भारत स बाहर करने का एक ही ऐसा फायदा मिला है, जो भारत में रहते नहीं मिल पाता। वह है जमकर चियर्स गर्ल्स का इस्तेमाल करते हुए अश्लीलता का नंगा नाच करने का। आईपीएल के बारे में क्रिकेटरों का नजरिया भले क्रिकेट के लिए सकारात्मक हो, लेकिन जहां तक आमजनों और खेल के पंडितों का सवाल है तो कोई भी यह मानने को तैयार नहीं है कि आईपीएल से क्रिकेट का कोई भला होने वाला है। आईपीएल से क्रिकेट का क्या होगा उसकी तस्वीर सामने आने लगी है। आईपीएल के कारण क्रिकेटर फ्रेंचाइजी मालिकों के हाथों की कठपुतली बनते जा रहे हैं।
आईपीएल का खेल इस समय द. अफ्रीका में चल रहा है और इस दूसरे संस्करण में मैचों का मजा जिस तरह से आना चाहिए, वह नहीं आ पा रहा है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि क्रिकेट का कोई भी मैच हो उसका पूरा मजा लेने का काम दर्शक तो करते ही हैं। ऐसे में आईपीएल का जादू इस समय पूरे विश्व के खेल प्रेमियों के सिर चढ़कर बोल रहा है। अब यह बात अलग है कि क्रिकेट प्रेमी जिस तरह का रोमांच इस दूसरे संस्करण में चाहते थे, वैसा उनको अब तक नहीं मिल पाया है। भारत में हुए पहले संस्करण को याद किया जाए तो इसका जलवा अलग ही था। वैसे भी यह बात सब जानते हैं कि भारत में ही क्रिकेट के चाहने वाले ज्यादा है। विदेशी खिलाड़ी भी यह मानते हैं कि उनको जितना मान-सम्मान भारत में मिलता उतना कहीं और नहीं मिलता है। चाहे कंगारू क्रिकेटरों की बात हो या फिर कैरेबियन क्रिकेटरों की हर देश का क्रिकेटर भारत की जमीन पर ही खेलना पसंद करता है। आईपीएल के दूसरे संस्करण में कोलकाता की टीम से खेलने वाले क्रिस गेल को इस बात का मलाल है कि आईपीएल का दूसरा संस्करण भारत में नहीं हो रहा है। लेकिन वे भी क्या कर सकते हैं उनको अपने फ्रेंचाइजी मालिक का आदेश मानना है। बकौल गेल उनके चाहने वाले भारत में ज्यादा हैं। यह एक गेल की ही बात नहीं है। आईपीएल में खेलने वाले हर विदेशी खिलाड़ी के साथ यह बात है। सब जानते हैं कि जब उनका बल्ला चलता है या फिर गेंदों से विकेट की गिल्लियां उखड़ती हैं तो किस तरह से भारतीय दर्शक उनकी तारीफ करते हैं। ऐसी तारीफ तो किस भी क्रिकेटर को और किसी देश में मिल ही नहीं सकती है। आईपीएल का आयोजन करने वाले शायद यह बात भूल गए थे कि भारत जैसा क्रिकेट का दीवान देश तो उनको विश्व के नक्शे में कहीं मिल ही नहीं सकता है। अगर आईपीएल के आयुक्त ललित मोदी ने थोड़ी सी समझदारी से काम लिया होता तो आईपीएल का खेल भारत के बाहर जाता ही नहीं और उसके फेल होने की बात ही नहीं होती। लेकिन श्री मोदी तो लगता है कि अपने आकाओं को खुश करने में लगे थे। श्री मोदी आईपीएल को द. अफ्रीका ले जाकर इतने ज्यादा खुश हैं कि वे यह भी भूल गए कि क्रिकेट और ओलंपिक में कितना अंतर होता है। उन्होंने तो ओलंपिक के आयोजकों को ही सलाह दे डाली कि आईपीएल से प्ररेणा लेनी चाहिए। कि कैसे कम समय में एक बड़ा आयोजन किया जा सकता है। मोदी साहब एक बार ओलंपिक का आयोयन करके देखिए फिर समझ में आएगा कि ओलंपिक क्या होता है। चंद देशों की टीमें वो भी एक खेल के लिए, उनकी व्यवस्था करना आसान होता है ओलंपिक में जितने देशों के खिलाड़ी कई खेलों के लिए आते हैं उतने के लिए व्यवस्था करने में तेल निकल जाता है।
बहरहाल हम बात करें आईपीएल की। आईपीएल में जिस तरह से लगातार बारिश के कारण मैचों का मजा किरकरा हो रहा है, उससे शुरुआती दौर में यह बात लगने लगी है कि आईपीएल का यह संस्करण सफल नहीं होने वाला है। वैसे तो यह बात तभी तय लग रही थी जब इसको भारत के बाहर किया जा रहा था। लंदन में इसका आयोजन इसलिए नहीं किया गया क्योंकि वहां पर इस समय बारिश का मौसम है। द. अफ्रीका में भी बारिश का समय है, लेकिन वहां बारिश से मैच कम बाधित होंगे ऐसा कहा गया था, लेकिन बारिश से मैच लगातार प्रभावित हो रहे हैं और खेल प्रेमी निराश हो रहे हैं। आईपीएल को देश के बाहर करने का एक ही फायदा आयोजकों को हुआ है कि वहां पर खुले आम अश्लीलता की छूट मिली हुई है। अफीका में इस बात के लिए कोई रोक नहीं है कि चियर्स गर्ल्स किस तरह के कपड़े पहनकर डांस करती हैं। वहां पर अगर बिना कपड़ों के भी चियर्स गर्ल्स डांस करने लगे तो कोई रोकने वाला नहीं है। भारत में पहले संस्करण में कोर्ट ने ही आयोजकों को फटकारा था और कोर्ट के आदेश के बाद ही चियर्स गर्ल्स को सभ्यता के दायरे में रखा गया था।

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बुधवार, अप्रैल 22, 2009

हम डायरेक्टर तुम कलाकार-नहीं कर सकते कोई प्रतिकार

इंडियन प्रीमियर लीग यानी आईपीएल का खेल अब लगता है कि पूरी तरह से सिनेमा बन गया है। सिनेमा इसलिए क्योंकि इसके फ्रेंचाइजी मालिकों में शुमार फिल्मी जगत की शाहरुख खान जैसी हस्ती अपने को अब एक तरह से डायरेक्टर समझने लगे हैं, और वे सोचते हैं कि हम डायरेक्टर हैं और मैच में खेलने वाले खिलाड़ी कलाकार हैं जिनको उनके इशारे पर नाचना ही होगा। अगर ऐसा नहीं होता तो कभी भी खान की टीम के कप्तान सौरभ गांगुली को कप्तानी से हाथ धोना नहीं पड़ता। वैसे यह बात तो उसी दिन तो तय हो गई थी जिस दिन क्रिकेट में फिल्मी सितारों की घुसपैठ हुई थी कि क्रिकेट का हाल बुरा होने वाला है, अभी तो यह एक महज शुरुआत है, आगे आगे देखिए होता है क्या। इधर तो ऐसी गूंज भी सुनाई देने लगी है कि आईपीएल में भी मैच फिक्सिंग ने अपने पैर पसार लिए हैं और फ्रेंचाइजी मालिक अब अपने पैसों की भरपाई करने के लिए कभी भी खिलाडिय़ों के ऊपर हार-जीत के लिए दबाव बनाने का काम कर सकते हैं।
आईपीएल के पहले संस्करण में यह बात का खुलकर सामने आई कि क्रिकेट में फिल्मी सितारों की घुसपैठ के कारण क्रिकेट एक तरह से बर्बादी की तरफ जा रहा है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि आईपीएल की फ्रेंचाइजी खरीदने वाले फिल्मी सितारे अब अपनी मनमर्जी पर भी उतर आए हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण शाहरुख खान की टीम है। शाहरुख खान ने अंतत: अपने बंगाल टाइगर को ठिकाने लगा ही दिया और उनके हाथ से टीम की कमान छीन ही ली। सौरभ को यह खामियाजा इसलिए भुगतना पड़ा है क्योंकि उन्होंने टीम के मालिक शाहरुख खान और कोच जान बुकीनन की उस योजना पर सहमति नहीं जताई जिसमें टीम में कई कप्तान रखने की योजना थी। वैसे भी यह योजना है तो बकवास ही, इस योजना पर कैसे भला सौरभ गांगुली जैसे खिलाड़ी सहमत हो सकते हैं। दादा का फैसला सही था कि वे नहीं चाहते कि टीम में एक साथ कई कप्तान हों। ऐसे में उनको अपने मालिक यानी अपने डायरेक्टर के खिलाफ जाने का दंड तो मिलना ही था। ऐसे में भारत में तो उनके साथ कुछ नहीं किया गया लेकिन जैसे ही टीम द. अफ्रीका पहुंची दादा के हाथ से कप्तानी ले ली गई। हालांकि एक तरफ शाहरुख यह कहते रहे हैं कि कप्तान बदलने में गांगुली की भी सहमति है, लेकिन गांगुली ने साफ कहा कि हमेशा उनके साथ ही ऐसा क्यों होता है। इसका मतलब साफ है कि दादा कि कप्तान बदलने में कोई सहमति नहीं थी। यह तो महज एक शुरुआत है, आगे चलकर जरूर आईपीएल का हाल एक फिल्मी की तरह ही हो जाएगा जहां पर क्रिकेटरों की दाल नहीं गलेगी और हर टीम के मालिक जैसे चाहेंगे वैसा होगा। किसी भी क्रिकेटरों के पास अपने लिए कुछ नहीं बचेगा। इसमें भी कोई दो मत नहीं है कि आगे चलकर टीमों के फ्रेंचाइजी क्रिकेट के सट्टे में भी उलझ जाए और अपनी टीम के खिलाडिय़ों को जीत हार के भी निर्देश देने लगे। आईपीएल का सारा खेल तो पैसों पर टिका है। जब किसी टीम के मालिक को यह लगने लगेगा कि उन्होंने जो पैसा टीम पर लगाया है, वह निकलने वाला नहीं है तो कोई भी मालिक कुछ भी करने को तैयार हो जाएगा, ऐसे में आईपीएल के मैच भी फिक्स होने लगे तो आश्चर्य नहीं होगा। वैसे तो अब भी यह कहा जाता है कि इसकी शुरुआत आईपीएल में हो गई है और मैच फिक्सिंग ने आईपीएल में भी पैर पसार लिए हैं, लेकिन अधिकृत तौर पर इसका खुलासा नहीं हुआ है। वैसे देखा जाए तो क्रिकेट और मैच फिक्सिंग का तो चोली-दामन का साथ है। ऐसे में भला आईपीएल उससे कैसे बच सकता है। कुल मिलाकर आईपीएल में होना यही है कि जैसा फ्रेंचाइजी मालिक चाहेंगे क्रिकेटरों को वैसा ही करना पड़ेगा। हमें तो ऐसा लगता है कि आगे चलकर हमारे क्रिकेटर फ्रेंचाइजी मालिकों के हाथों की कठपुतली बन जाएंगे। अब इससे पहले की ऐसा दिन आए क्रिकेटरों को चेत जाना चाहिए। नहीं चेत को उनको कभी प्रतिकार करने का भी मौका नहीं मिलेगा। जब सौरभ गांगुली जैसे खिलाड़ी को बलि का बकरा बनाया जा सकता है तो बाकी खिलाडिय़ों की बिसात ही क्या है।

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मंगलवार, अप्रैल 21, 2009

लेखन का धंधा-मत करो गंदा

किसी को भी ज्यादा स्वंतत्रता मिल जाए तो उसका वह किस तरह से सदउपयोग करने की बजाए दुरुउपयोग करने लगता है इसका सबसे बड़ा उदाहरण हमें ब्लाग जगत में नजर आता है। ब्लाग जगत को अपनी अभिव्यक्ति पेश करने के लिए प्रारंभ किया गया है, लेकिन न जाने यहां कैसे-कैसे लोग हैं जो अभिव्यक्ति के नाम पर न जाने क्या-क्या लिखते हैं। ब्लाग जगत में हमें कदम रखें अभी जुम्मा-जुम्मा चार दिन ही हुए हैं। लेकिन इन चार दिनों में ब्लाग जगत में बमुश्किल 10 प्रतिशत ब्लाग जो हमने पढ़े हैं उससे हमें ऐसा लगता है कि कई लोग ब्लाग का सही उपयोग नहीं कर रहे हैं। ब्लाग पर लोग न जाने क्या-क्या लिख देते हैं। एक पोस्ट अपने शुरुआती दौर में देखी थी जिस पोस्ट में रंड़ी शब्द का उपयोग लगातार किया गया था। किसी पोस्ट की आलोचना में भी हमारे लेखक भाई सीमाएं लांघते नजर आते हैं। पोस्ट लेखकों के तो नाम-पते तक फर्जी हैं। ऐसे में हमें लगता है कि ब्लाग जगत के लिए भी कोई न कोई कानून तो होना ही चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो कोई छद्म नाम का ब्लागर कभी किसी की मां-बहन एक करने से भी नहीं चूकेगा। वैसे चोरियां करना तो आम बात है ब्लाग जगत में। हो सकता है हमारी बातों से ज्यादातर लोग समहत न हों। लेकिन चूंकि हमें अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त करने की स्वतंत्रता है तो हम कम से कम सही अभिव्यक्ति तो व्यक्त करने से पीछे हटने वाले नहीं हैं।
हम ब्लाग जगत में इसलिए आएं हैं क्योंकि हम समाज को कुछ अच्छा देने के साथ अपने लेखन की उस मृगतृष्णा को शांत करना चाहते हैं जो अखबार में काम करते हुए पूरी होने वाली नहीं है। वास्तव में आज अखबार में सही लिखने की कदर नहीं होती है। सही लिखने वालों को कोई छापना नहीं चाहता है। ब्लाग जगत में आने से हमारा मकसद तो पूरा होता नजर आ रहा है, लेकिन इसी के साथ एक बात जो हमें खटकती है, वह यह है कि ब्लाग जगत को कुछ लोग अपनी जागीर की तरह समझते हुए उसको गंदा करने में लगे हैं। वास्तव में देखा जाए तो लेखन वह कला है जो माता सरस्वती की देन है। यह कला हर किसी को नसीब नहीं होती है। जिस इंसान को यह कला नसीब होती है वह वास्तव में नसीब वाला होता है। फिर लेखन का एक मतलब यह भी होता है कि आपको अपने लेखन से समाज को एक सही रास्ता दिखाना है। ऐसे में जबकि समाज को सही राह दिखाने का काम करना चौथे स्तंभ यानी अखबारों का काम रहा है तो आज लगता है कि अखबार तो पूरी तरह से पेशेवर हो गए हैं और उनको समाज की कम और अपने विज्ञापनों की चिंता ज्यादा रहती है। ऐसे में किसी अखबार से यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वह समाज को सही दिशा दिखाने का काम करेगा। इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज मीडिया पूरी तरह से अपनी राह भटक गया है और सिर्फ और सिर्फ पैसों के पीछे भाग रहा है। ऐसे समय में जब ब्लाग जगत का आगाज हुआ था तो एक उम्मीद जागी थी कि चलो कम से कम यहां पर तो लेखन पर किसी की लगाम नहीं है और सही लिखने वालों को एक मंच मिल जाएगा। मंच मिला है तो उसका काफी लोग सही उपयोग भी कर रहे हैं और काफी अच्छा लिखते हुए समाज को वह सब देने की कोशिश कर रहे हैं जो समाज को सही दिशा में ले जा सके। हमारे कई ब्लागर मित्र तो ऐसे हैं जो जान की परवाह किए बिना ही ऐसे-ऐसे लेख लिखने का साहस करते हैं जिसकी जितनी तारीफ की जाए कम है। हमारे एक ब्लागर मित्र हैं सुरेश चिपलूनकर इन्होंने भारत की अघोषित प्रधानमंत्री श्रीमती सोनिया गांधी के बारे में लोगों तक ऐसी जानकारी पहुंचाई जो किसी अखबार से मिलने की उम्मीद नहीं की जा सकती। श्री चिपलूनकर ने तो मदर टेरेसा की भी पोल खोलने का काम किया है। ऐसे और भी कई ब्लागर साथी हो सकते हैं जिनके बारे में शायद हमें नए होने की वजह से मालूम नहीं है। वैसे हमारे साथ एक परेशानी यह है कि सुबह के 10 बजे से लेकर रात को कम से कम एक बजे तक अखबार का काम करना रहता है। इतना समय अखबार के लिए देने के बाद काफी कम समय मिलता है जिसमें हम ब्लाग देखते हैं और अपने ब्लाग के लिए कुछ अच्छा लिखने की कोशिश करते हैं।
एक तरफ तो अपने चिपलूनकर भाई है तो दूसरी तरफ अपने अतुल अग्रवाल जी जैसे मित्र हैं जो खुशवंत सिंह जैसे नामी लेखक के गलत लेखन पर उनको लताडऩे से नहीं चूकते हैं। अभी कल ही की बात है हमें विस्फोट डाट काम पर अग्रवाल जी की एक पोस्ट खुशवंत सिंह के लेख के उपर पढऩे को मिली। श्री अग्रवाल जी का विरोध अपनी जगह जायज ही नहीं बहुत ज्यादा जायज है, लेकिन उन्होंने खुशवंत सिंह के लिए जिस तरह के शब्दों का प्रयोग किया, वह एक पत्रकार की भाषा नहीं होनी चाहिए। यह बात तो सब जानते हैं कि खुशवंत सिंह कितना गंदा लिखते हैं, फिर उनके गंदे लेखन का एक हिस्सा हम क्यों बनें। श्री अग्रवाल जी को एक ब्लागर मित्र कोतुक जी ने भी सही सलाह दी है कि खुशवंत सिंह तो चर्चा में आने के लिए ऐसा लिख रहे हैं उनकी बातों को उठाकर आप उनका रास्ता आसान कर रहे हैं। यह सच बात है कि गंदा लिखने वालों पर सबको गुस्सा आता है लेकिन उस गुस्से को कलम का रूप देकर उस गंदे लेखन को और ज्यादा प्रचारित करने की बजाए ऐसा प्रयास करना चाहिए कि ऐसा गंदा लेखन समाज के सामने ही न आ सके। आज ब्लाग जगत को भी गंदा करने वालों को इस जगत से बाहर करने की जरूरत है। इसके लिए सही लेखन करने वालों को एक जुट होने की जरूरत है। इसी के साथ हमारा ऐसा मानना है कि अगर ऐसा हो पा रहा है तो इसके लिए कहीं न कहीं गुगल सर्च भी जिम्मेदार है। गुगल को हम जिम्मेदार इसलिए मान रहे हैं क्योंकि गुगल बिना किसी सही जानकारी के किसी को भी ब्लाग बनाने की इजाजत दे देता है। ऐसे में गंदा लेखन करने वाले छद्म नामों से ब्लाक बना लेते हैं और जब जिसको मर्जी आई गालियां दे दीं। हमने जब एक पोस्ट महिलाओं के कपड़ों पर लिखी थी तो हमारा मकसद किसी महिला की स्वतंत्रता पर हमला कदापि नहीं था। हमने तो एक साधारण बात लिखी थी, लेकिन इस बात का बिना वजह तूल देने का काम किया गया। हम तो ब्लाग जगत में नए हैं। लेकिन ब्लाग जगत में नए हैं तो इसका यह मतलब कदापि नहीं है कि हम किसी का जवाब देना नहीं जानते हैं। पत्रकारिता में अपने जीवन के 23 साल खफा दिए हैं और इन सालों में बड़े-बड़े संपादकों के साथ काम करने का और उनसे काफी कुछ सीखने का मौका मिला है, ऐसे में ऐसी कोई बात नहीं है जिसका जवाब हमारे पास न हो। लेकिन हमने उस लेख के बाद चंद मित्रों की टिप्पणियों के जबाव के बाद आगे जवाब इसलिए नहीं दिया क्योंकि हमारे वरिष्ठ साथी पत्रकार भाई अनिल पुसदकर ने हमें सलाह दी थी कि हमें कपड़ों के पीछे भागने की बजाए अपने लेखन को छत्तीसगढ़ के भले के लिए प्रयोग करना चाहिए। हमने उनकी सलाह पर काम करना प्रारंभ किया है, लेकिन हमारी एक आदत यह है कि हमें गलत बात बर्दाश्त नहीं होती है, यही वजह है कि हम आज ब्लाग जगत की गंदगी पर लिखने की हिम्मत कर रहे हैं। हम यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि हमारी इस पोस्ट से काफी लोग नाखुश और नाराज होंगे। लेकिन उनकी नाराजगी न उठानी पड़े इसलिए हम अपनी कलम को बंद कर दें यह तो संभव नहीं है।
बहरहाल हमारा ऐसा मानना है कि गुगल को ब्लाग जगत के लिए कुछ तो नियम कायदे बनाने चाहिए ताकि जहां कोई छद्म नाम से ब्लाग न बना सके, वहीं किसी के ब्लाग के कोई सरे आम चोरी न करे सके, जैसा लगातार हो रहा है। जब एक मोबाइल नंबर लेने के लिए काफी खाना पूर्ति करनी पड़ती है तो फिर अपनी अभिव्यक्ति को लोगों तक पहुंचाने के लिए मिलने वाले एक मंच के लिए ऐसा कुछ क्यों नहीं किया जाता कि सही लोग सामने आएं और अपने सही नाम पते के साथ ब्लाग बनाएं। महिलाओं को अगर फोटो और पते में छूट दी जाती है तो कोई बात नहीं, लेकिन उनसे फोटो और सही पता लेकर गुगल अपने रिकॉर्ड में रख सकता है ताकि कोई किसी महिला के नाम से ब्लाग न बना लें। इसमें कोई दो मत नहीं है कि कई बंधुओं ने तो महिलाओं के नाम से भी ब्लाग बना रखे हैं। अभी तो हमें इस ब्लाग जगत में आए चंद दिन हुए हैं और हमें इतना कुछ लगने लगा है आगे हमें और पढऩे और समझने का मौका मिलेगा तो और जो बातें हमारे मानसपटल पर आएंगी उनको जरूर अपने ब्लाग जगत के साथियों के साथ बांटने का काम करेंगे। फिलहाल इतना ही। वैसे हमारी पोस्ट काफी लंबी हो गई है। लिखने को तो अब भी काफी कुछ बचा है ऐसा लगता है, लेकिन बाकी अगली बार।
ब्लाग जगत के सम्मानीय साथियों से आग्रह है कि वे अपने विचारों से जरूर अवगत कराएं। सभी तरह से विचारों का स्वागत है।

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रविवार, अप्रैल 19, 2009

क्रिकेट का सजा बाजार- सट्टे का होने लगा कारोबार

इंडियन प्रीमियर लीग यानी आईपीएल के दूसरे संस्करण का बाजार दक्षिण अफ्रीका में सज गया है। उधर बाजर सजा है इधर सट्टे का कारोबार हो रहा है। सट्टा बाजार में इस समय चेन्नई की टीम विजेता के रूप में पहले नंबर पर चल रही है। इसका भाव ४.५० रुपए है। सबसे कम कीमत डेकन की है। इसका भाव ११ रुपए है। छत्तीसगढ़ में हर मैच पर इस समय करोड़ों का सट्टा लग रहा है। पहले मैच में ही सट्टा लगवाने वाले दो बुकी राजधानी में पकड़े गए हैं। आईपीएल के मैचों का आगाज अफ्रीका में हो चुका है। इसी के साथ सट्टा बाजार में टीमों के भाव भी खुल गए हैं। वैसे जैसे-जैसे मैचों के परिणाम सामने आएंगे, वैसे-वैसे टीमों के भाव में भी उतार-चढ़ाव आएगा। लेकिन शुरुआती दौर में सट्टा बाजार में जो भाव सामने आए हैं उनमें विजेता के रूप में चेन्नई की टीम को देखा जा रहा है। इस टीम के भाव इस समय ४.५० रुपए हैं। यानी इस टीम पर एक रुपए का दावा लगाने पर ४.५० रुपए मिलेंगे। दूसरे नंबर पर दिल्ली की टीम है जिसका भाव ४.७० रुपए है। तीसरे नंबर पर मुंबई की टीम का भाव ५.८५ रुपए, चौथे नंबर पर बेगलूर की टीम है जिसका भाव ७.२५ रुपए, पांचवें नंबर राजस्थान की टीम है जिसका भाव ८.०० रुपए, छठे नंबर पर पंजाब की टीम है जिसका भाव ८.२५ रुपए, सांतवें नंबर कोलकाता की टीम है जिसका भाव ८.५० रुपए और सबसे अंतिम याने आठवें नंबर डेकन की टीम है जिसका भाव ११ रुपए है। अगर यह टीम जीत जाती है तो इस टीम पर दाव लाने वाले को एक रुपए के एवज में ११ रुपए मिलेंगे। ये सारे भाव चैंपियनशिप प्रारंभ होने के पहले के हैं। अब जबकि चैंपियनशिप का आगाज हो चुका है मैचों के नतीजों के हिसाब से जहां विजेता टीमें बदलती रहेंगी, वहीं भाव भी कम ज्यादा होंगे। जानकारों की मानें तो आईपीएल के हर मैच पर प्रदेश में करोड़ों का सट्टा लगाया जा रहा है। राजधानी में जहां कई स्थानों के बुकी आकर काम कर रहे हैं, वहीं प्रदेश के कई बड़े बुकी पुलिस के डर से प्रदेश के बाहर जाकर भी अपना कारोबार कर रहे हैं।

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शनिवार, अप्रैल 18, 2009

जिन्हें समझा सम्मान के लायक-वही निकले नालायक

क्रिकेट का नशा ऐसा है जो पूरे विश्व के सर चढ़कर बोलता है। जहां एक तरफ लोगों में क्रिकेट का नशा है तो दूसरी तरफ क्रिकेटरों में पैसों का नशा है। क्रिकेट के मोहजाल में अपने देश के सर्वोच्च सम्मान भी फंसे नजर आते हैं। लेकिन पद्मश्री जैसे सम्मान की भी कद्र ये क्रिकेटर नहीं करते हैं। अगर वास्तव में इनको अपने देश के इन सम्मानों की कद्र होती तो कभी भी भारतीय टीम के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी और हरभजन सिंह इस सम्मान को लेने के लिए अपने सारे काम छोड़कर आते, लेकिन नहीं ये तो उस दिन पैसे कमाने में लगे थे। ऐसे खिलाडिय़ों को तो कभी ऐसा सम्मान नहीं देना चाहिए और सम्मान का अपमान करने वाले इन क्रिकेटरों को सजा भी मिलनी चाहिए। वास्तव में देखा जाए तो पद्मश्री के हकदार तो अपने ओलंपियन विजेन्द्रर और सुशील कुमार थे, पर इनको सम्मान देने वालों ने इस लायक नहीं समझा और जिनको लायक समझा वे ही नालायक निकले और सम्मान की कद्र तक नहीं की।
अपने क्रिकेटर पैसों के पीछे कितने दीवाने हैं इसका एक और बड़ा उदाहरण सामने आ गया है। आज पूरे देश में इसी बात की चर्चा है कि आखिर भारतीय टीम के वे कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी जिनको सभी एक ऐसा कप्तान मानते हैं जो पूरी टीम को साथ लेकर चलते हैं, वे कैसे पद्मश्री सम्मान लेने नहीं आए और शूटिंग करते रहे। यही बात हरभजन सिंह के लिए भी कही जा रही है। वैसे हरभजन सिंह तो शुरू से ही पैसों के दीवाने रहे हैं। उनकी यह बात गले उतरने वाली नहीं है कि वे उस दिन पारिवारिक काम में व्यस्त थे। ऐसा भी क्या काम जो देश का सर्वाेच्च सम्मान लेने भी आदमी न जा सके। हरभजन एक बार पैसों के मोह में ही सिख होने के बाद रैप पर बॉल खोलकर उतरे थे जिसके कारण उनकी काफी आलोचना हुई थी। अब वे पद्मश्री सम्मान लेने न पहुंचने के कारण आलोचना के शिकार हो रहे हैं। हरभजन और धोनी की हरकत पर जहां पर एक तरफ खेल मंत्री गिल साहब खफा हैं, वहीं पूरे देश की खेल बिरादरी भी नाराज है। अब तो हर तरफ से एक ही आवाज आ रही है, ऐसे खिलाडिय़ों को सजा मिलनी चाहिए। हरभजन और धोनी के मामले में ओलंपियन विजेन्दर का कहना है कि मैं सम्मान का अपमान करने वालों के खिलाफ हूं। विजेन्दर का ऐसा मानना है कि पद्मश्री पुरस्कार के हकदार वे और उनके साथ ओलंपिक में पदक जीतने वाले सुशील कुमार भी थे, लेकिन हमको इस लायक नहीं समझा गया और जिनको लायक समझा गया उन्होंने सम्मान का कितना बड़ा अपमान किया यह सबने देखा है। वास्तव में भारत में जो पुरस्कार दिए जाते हैं उन पुरस्कारों में क्रिकेटरों पर ही ज्यादा ध्यान दिया जाता है, जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए। क्रिकेटरों तो अपने को देश से बढ़कर समझने लगे हैं ऐसा करने वालों क्रिकेटरों को सजा मिलनी ही चाहिए। अब होना तो यह चाहिए कि धोनी और हरभजन सिंह को इस सम्मान से वंचित कर दिया जाए। लेकिन लगता नहीं है कि अपनी सरकार ऐसा साहस दिखा पाएगी।
इस बारे में हमारे ब्लाग जगत के साथी क्या सोचते हैं उनके विचार भी आमंत्रित हैं।

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गुरुवार, अप्रैल 16, 2009

मजबूर नहीं मजबूत प्रधानमंत्री चाहिए

अपने देश को आज मनमोहन सिंह जैसे एक मजबूर नहीं बल्कि मजबूत प्रधानमंत्री की जरूरत है। एक ऐसे प्रधानमंत्री जो किसी के हाथ की कठपुतली न होकर अपने विवेक से निर्णय लेने की क्षमता रखते हों। (मनमोहन सिंह को सब श्रीमती सोनिया गांधी के हाथ की कठपुतली मानते हैं) देश से आतंकवाद, महंगाई, भ्रष्टाचार, गरीबी, बेरोजगारी को समाप्त करने के साथ ही स्विस बैंक में जो देश का पैसा रखा है उसको वापस लाने की हिम्मत जिनमें हों।
ये सारी बातें छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव में मतदाताओं से बातचीत में सामने आईं हैं। 16 अप्रैल को हुए मतदान में जब मतदाताओं से उनके विचार पूछे गए तो जो बातें सामने आईं, वो यहां प्रस्तुत कर रहे हैं। रायपुर लोकसभा सीट के लिए मतदान करने जा रहे प्रदीप वर्मा ने कहा कि उनका ऐसा सोचना है कि देश को मजबूर नहीं मजबूत प्रधानमंत्री की जरूरत है। राधा सोहाने ने कहा कि ऐसा प्रधानमंत्री किस काम का जो दूसरे के हाथ की कठपुतली हो। प्रधानमंत्री को अपने विवेक से निर्णय करना चाहिए, हर निर्णय के लिए दूसरे का मुंह देखना सही नहीं है। उन्होंने कहा कि देश से भ्रष्टाचार समाप्त करने की क्षमता जिनमें हो, ऐसे प्रधानमंत्री की जरूरत है। सविता तराटे ने कहा कि देश को सुशासन देने वाले और स्विस बैंक से देश के पैसे को वापस निकालने की ताकत रखने वाले प्रधानमंत्री की जरूरत है। युवाओं को रोजगार देने वाली सरकार ही केन्द्र में होनी चाहिए।
मतदान करके लौट रहीं बीई की छात्रा रूही चोपड़ा ने पूछने पर बताया कि वह इसलिए मतदान करने गईं क्योंकि उनको यह लगता है कि मतदान जरूरी है। उन्होंने कहा कि अब जहां तक प्रधानमंत्री का सवाल है तो देश को आतंकवाद से मुक्ति दिलाने वाले प्रधानमंत्री की जरूरत है। इसी के साथ गरीबों की मदद करने वाले और देश से भ्रष्टाचार समाप्त करने वाले राष्ट्र के नेता की जरूरत है। पहली बार मतदान करने वाली भारती आहूजा ने पूछने पर तपाक से कहा कि उनका ऐसा मानना है कि इस देश की प्रधानमंत्री तो कोई महिला ही होनी चाहिए। आईएस की तैयारी करने वाली इस छात्रा ने विश्वास से कहा कि वह एक लड़की हैं और उनका ऐसा मानना है कि एक दिन वह भी प्रधानमंत्री बन सकती हैं। भारती के पिता राजेश आहूजा और माता आशा आहूजा ने कहा कि उनका ऐसा मानना है कि केन्द्र में एक स्थाई सरकार होनी चाहिए। सेवक प्रेमचंदानी ने कहा कि जो सरकार अच्छा काम नहीं करती है उनको बदलने की जरूरत होती है और हमने तो इसी मानसिकता के साथ मतदान किया है। पहली बार मतदान करने वाली काशीरामनगर की अगसीया ध्रुव ने कहा कि महंगाई पर रोक लगाने और बेरोजगारों को काम देनी वाली सरकार की जरूरत है। सरिता ध्रुव ने कहा कि वोट लेने के बाद नेता जनता को भूल जाते हैं, जनता की परेशानियों को जानने के लिए उनको अपने क्षेत्र में भी आना चाहिए।
रवि डोडवानी ने कहा कि उनकी नजर में लालकृष्ण अडवानी प्रधानमंत्री होने चाहिए, इसी बात को ध्यान में रख कर मैंने अपना मत दिया है। श्री अडवानी को ही प्रधानमंत्री के लायक मानने वाले सुनील छतवानी ने कहा कि वे भी चाहते हैं कि श्री अडवानी ही प्रधानमंत्री बनें। अपने पति के साथ मतदान करने आईं कविता गुरुबक्षाणी ने कहा कि मतदान जरूरी है, इसका उपयोग सबको करना चाहिए, जो मतदान नहीं करते हैं उनको सजा मिलनी चाहिए। अधिवक्ता अमर गुरुबक्षाणी ने कहा कि उन्होंने संकल्प लिया था कि वे कम से कम 10 लोगों को मतदान करने के लिए प्रेरित करेंगे, इसमें वे सफल रहे और उन्होंने 10 से ज्यादा लोगों से मतदान करवाने में सफलता प्राप्त की। उन्होंने पूछने पर कहा कि साफ छवि वाले को देश का प्रधानमंत्री बनाना चाहिए, फिर वे चाहे किसी भी पार्टी के हों। प्रकाश जेठवानी ने कहा कि जो भी सांसद चुने जाते हैं उनको जनता के बीच आते रहना चाहिए। होता यह है कि सांसद ज्यादा से ज्यादा समय दिल्ली में बिताते हैं। अवंति विहार की अनिता तिवारी ने कहा कि देश की सुरक्षा के महत्व को समङाने के साथ महंगाई और आतंकवाद से निपटने की क्षमता रखने वाले प्रधानमंत्री होने चाहिए। अपने पति तमेश आहूजा के साथ मतदान करके लौट रहीं सुमन आहूजा ने कहा कि देश में एक बार फिर से भाजपा की सरकार बननी चाहिए। भाजपा की सरकार में देश में महंगाई पर अंकुश था, आज महंगाई बेलगाम हो गई है। उन्होंने बताया कि मेरी सहेलियों का भी ऐसा मानना है और हम सबने श्री अडवानी को प्रधानमंत्री बनाने के संकल्प के साथ मतदान किया है। श्रीराम नगर के युवक मोहनीश शिवनकर ने कहा कि जब वे मतदान करने गए थे तो उनके मन में यही था कि जैसा विकास छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने किया है, वैसा ही विकास देश का होना चाहिए। उनकी माता विजया शिवनकर ने प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह को ठीक मानते हुए कहा कि उनको फिर से प्रधानमंत्री बनना चाहिए। पहली बार मतदान करने वाली रूतिका शिवनकर ने पूछने पर तपाक से कहा कि हम युवा तो चाहते हैं कि देश के प्रधानमंत्री राहुल गांधी बनें।

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बुधवार, अप्रैल 15, 2009

जिन्हें हम बनाते हैं मंत्री-डंडे मारते हैं उन्हीं के संतरी

बा अदब, बा मुलाहिजा, होशियार फला-फला राज्य के सरकार श्री-श्री फला-फला मंत्री जी पधार रहे हैं, जल्द से जल्द सारे रास्ते खाली कर दिए जाएं, किसी ने भी रास्ते में आने की गुस्ताखी की तो उसके सिर पर मंत्री जी के संतरी के डंडे पड़ेंगे बेभाव पड़ सकते हैं।
आज अपने देश में इस तरह के वाक्ये आम हो गए हैं। अब भले यह बात अलग है कि ऐसी कोई मुनादी नहीं की जाती है कि फला-फला मंत्री आ रहे हैं लेकिन जब भी किसी रास्ते से किसी वीआईपी का काफिला गुजरता है तो उस रास्ते से गुजरने वालों का हश्र क्या होता है, यह बात सब जानते हैं। कहने को तो अपना देश एक लोकतांत्रिक देश है लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या वास्तव में हमारे देश में लोकतंत्र यानी जनता का राज है। कम से कम हमें तो ऐसा कदापि नहीं लगता है कि अपने देश में जनता का राज है। अरे भई अगर वास्तव में जनता का राज रहता है फिर जनता पर ही कदम-कदम पर डंडे क्यों चलते और वो भी ऐसे लोगों के डंडे जिनको डंडे चलाने के मुकाम तक पहुंचाने का काम जनता ही करती है। जिस जनता के पास पांच साल में एक दिन भिखारी बनकर वोट मांगने के लिए मंत्री और नेता जाते हैं उसी जनता को कुर्सी मिलने के बाद सब कीड़े-मकोड़ों से ज्यादा कुछ नहीं समझते हैं। आज अपने देश का ऐसा कोई शहर नहीं होगा जहां पर किसी वीआईपी के आने के बाद वहां की जनता को परेशानी नहीं होती है। आज जबकि पूरे देश में चुनावी बयार बह रही है और हर राज्य में वीआईपी की आमद बढ़ गई है तो ऐसे में सभी शहरों में आम जन का जीना भी मुश्किल हो गया है। एक तरफ जनाब वीवीआईपी का कारवां आ रहा है इसलिए सारे रास्ते बंद कर दिए गए हैं। अब जब कि सारे रास्ते बंद है तो किसी को स्कूल, दफ्तर, अस्पताल या कहीं भी जाना है तो उसके लिए कोई रास्ता तब तक नहीं है जब तक वीआईपी का काफिला नहीं गुजर जाता है। अगर किसी को समय पर कहीं जाने का भूत सवार है तो उनके भूत को उतारने के लिए जनता के पैसों से वेतन लेने वाली पुलिस बैठी है। किसी ने कहीं से निकलने की हिमाकत की नहीं की पड़ गए बेभाव के डंडे। आम जनों की मुश्किलें उस समय और बढ़ जाती हैं जब किसी भी शहर में कोई ऐसे वीवीआईपी आ जाते हैं जिनको जेड प्लस सुरक्षा मिली हुई हैं। इनके आने-जाने वाले इन सभी रास्तों को कम से कम 30 मिनट से एक घंटे पहले बंद कर दिया जाता है। इन रास्तों के बंद होने के बाद जो जाम लगता है उस जाम को आम होने में फिर पूरा दिन लग जाता है। शायद ही अपने देश का कोई ऐसा शहर होगा जहां के रहवासी यह दुआ न करते हों कि कभी उनके शहर में कोई ऐसा वीवीआईपी आए ही मत ताकि उनको परेशानियों का सामना करना पड़े। ऐसे वीवीआईपी के सामने तो मीडिया वाले भी पानी भरते हैं। अगर जेड़ प्लस सुरक्षा वाले वीवीआईपी आए हैं तो मीडिया वालों की भी शामत आ जाती है। लेकिन वे भी क्या कर पाते हैं अखबार के किसी कोने में एक छोटी सी खबर लग जाती है कि मीडिया वालों को भी परेशानी का सामना करना पड़ा। लेकिन इस परेशानी से मुक्ति दिलाने की पहल किसी ने नहीं की। वैसे कोई पहल कर भी नहीं सकता है, किस में इतना दम है कि इन कुर्सी वालों के खिलाफ बोले। इन कुर्सी वालों के खिलाफ बोलने के लिए नहीं, करने के लिए एक दिन जरूर रहता है औैर वो दिन होता है मतदान का। लेकिन इस एक दिन की ताकत को भी अपने देश की जनता आज तक नहीं पहचान पाई है। काश हम इस बात को समझ पाते कि यह एक दिन हमारे लिए कितने महत्व का होता है तो इस देश की पूरी काया बदल जाती। लेकिन इसका क्या किया जाए कि इस एक दिन को भी बिकने से कोई रोक नहीं पाता है। कुर्सी के भूखे लोग इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि अपने देश की आधी से ज्यादा आबादी भूखी और नंगी है और ऐसी भूखी-नंगी जनता को खरीदना कौन सी बड़ी बात है। जिस मतदान को महादान और सबसे शक्तिशाली माना जाता है, वह महज एक चेपटी यानी शराब की छोटी सी बोतल में बिक जाता है। अपने देश का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं होगा जहां पर मतदान की रात को शराब, कपड़े, पैसे और न जाने क्या-क्या नहीं बांटे जाते हैं रात के अंधेरे में। रात के अंधेरे में यह सब बंटने के बाद सुबह को नेता जी की कुर्सी तय हो जाती है। और फिर बन जाती है उनकी सरकार जिनमें ऐसा सब करने का दम रहता है। भले आज सभी राजनैतिक पार्टियां ईमानदारी से चुनाव जीतने का दावा करती हैं, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है यह बात सब जानते हैं। हम तो बस यही चाहते हैं कि इस देश की जनता को अपने मत के महत्व को समझना जरूरी है, अगर इसको नहीं समझा गया तो मंत्रियों के संतरियों से हम सब डंडे खाते रहेंगे। इस देश में जब तक वीआईपी और वीवीआईपी को सुरक्षा घेरे में रखे जाते रहेंगे आम जनता पर डंडे चलते रहेंगे। हमारे कहने का मकसद यह कदापि नहीं है कि किसी को सुरक्षा देना गलत है, लेकिन सुरक्षा के नाम पर आम-जनों को परेशान करना तो बंद करना चाहिए। सोचने वाली बात यह है कि आखिर इतनी ज्यादा सुरक्षा की जरूरत भारतीय मंत्रियों और नेताओं को क्यों पड़ती है। क्या बाहर के मुल्कों के मंत्री और नेता आतंकी निशाने पर नहीं रहते हैं। सुरक्षा उनकी भी की जाती है, लेकिन भारत में जैसी सुरक्षा की जाती है उससे तो जनता को भगवान ही बचा सकते हैं। यह बात भी सत्य है कि जितनी पैसा पानी की तरह भारत में वीआईपी की सुरक्षा में बहाया जाता है, उतना और किसी देश में नहीं बहाया जाता। देखा जाए तो आम आदमी के खून-पसीने की कमाई को वीआईपी की सुरक्षा में ऐसे फूंका जाता है मानो पैसे न होकर रद्दी के टुकड़े हों।

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मंगलवार, अप्रैल 14, 2009

फिटनेस में नंबर वन है भारतीय हॉकी टीम

अजलान शाह कप पर १३ साल बाद कब्जा करने वाली भारतीय हॉकी टीम को एक माह तक फिजिकल ट्रेनिंग देने वाले एनआईएस कोच रायपुर के गजेन्द्र पांडे का कहना है कि टीम फिटनेस में नंबर वन है। टीम के सभी खिलाड़ी अनुशासन के मामले में भी सही है। इस टीम में लगातार जीतने की क्षमता है जिसको वह साबित कर रही है। भारतीय टीम के जीतने के बाद यहां पर चर्चा करते हुए श्री पांडे ने बताया कि वे जब भोपाल के साई सेंटर में थे तब वहीं पर दिसंबर २००८ से जनवरी २००९ तक भारतीय हॉकी टीम का प्रशिक्षण शिविर लगा था। इस टीम को फिजिकल ट्रेनिंग देने का जिम्मा साई के एक एथलेटिक्स कोच के साथ भारोत्तोलन के कोच गजेन्द्र पांडे को दिया गया था। श्री पांडे ने बताया कि यह उनके लिए एक सुखद अनुभव था कि उनके मार्गदर्शन में भारत की एक ऐसी टीम फिजिकल प्रशिक्षण ले रही थी जो युवा टीम है और जिस टीम के सभी खिलाडिय़ों में काफी दमखम है। उन्होंने बताया कि टे्रनिंग के समय ही यह बात समङा में आ गई थी कि सभी खिलाड़ी फिटनेस के मामले में बहुत मजबूत हैं। उन्होंने बताया कि टीम के खिलाड़ी जहां अनुशासन के मामले में ठीक थे, वहीं खेल के मामले भी आगे थे। बकौल श्री पांडे उन्होंने टीम का खेल देखा था और उनको इस बात का भरोसा था कि यह टीम जरूर कमाल करेगी। यहां पर यह बताना लाजिमी होगा कि श्री पांडे ने बहुत पहले इस बात का खुलासा किया था कि उन्होंने वर्तमान भारतीय हॉकी टीम को फिजिकल टे्रनिंग दी है, लेकिन इस बारे में वे कुछ भी बात करने को पहले तैयार नहीं थे। उन्होंने कहा कि जब तक टीम कोई कमाल नहीं करेगी वे कुछ नहीं बोलेंगे। अब जबकि टीम ने अजलान शाह कप जीतने का कमाल किया है तो श्री पांडे ने जहां बात की, वहीं उन्होंने हॉकी खिलाड़ी मुश्ताक अली प्रधान के पास रखवाई वह फोटो भी उपलब्ध करवाई जो फोटो उन्होंने भारतीय टीम ने अपने प्रशिक्षकों के साथ खींचवाई थी। श्री पांडे ने जहां भारत की टीम को फिजिकल टे्रनिंग देने का काम किया है, वहीं उन्होंने ओलंपियन कुंजरानी देवी को भी फिजिकल ट्रेनिंग दी है। इसके साथ ही उन्होंने देश के कई नामी खिलाडिय़ों को फिजिकल ट्रेनिंग दी है। उनके मागदर्शन में ही छत्तीसगढ़ के कई खिलाड़ी राष्ट्रीय के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारोत्तोलन में जीत प्राप्त कर रहे हैं।

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सोमवार, अप्रैल 13, 2009

ऐसी दीवानगी देखी नहीं कहीं


चंचल, शोख अदा
देखते ही सब हो गए फिदा
उनका अंदाज था जुदा
उनका हामी था खुदा


ये बातें और किसी के लिए नहीं बल्कि उन छुटकी अविका गौर के लिए कही जा रही हैं, जो रायपुर की जमीं पर उतरीं तो सब उनके दीवाने हो गए। अविका यानी बालिका बधु की आनंदी को तो इस बात का अंदाज भी नहीं था कि रायपुर जैसे शहर में उनके इतने ज्यादा दीवाने हो सकते हैं जो उनको सर आंखों पर बिठाने का काम करेंगे। कोई अविका के साथ फोटो खींचवाना चाहता था तो कोई उनका आटोग्राफ लेना चाहता था, तो कोई उनको करीब से देखना चाहता था, तो कोई उनसे हाथ मिलना चाहता था। हर किसी में उनकी एक झलक पाने की ललक थी। जनसैलाव ऐसा मानो कोई बड़ा स्टार उतर आया हो रायपुर की जमीं पर। यह सब देखकर अविका हैरान थी, लेकिन उनको इस बात की खुशी थी कि वह एक ऐसे शहर में आई हैं, जहां पर लोगों की दीवानगी सारे हदें पार कर जाती हैं। अविका को अंतत: यह मानना पड़ा कि ऐसी दीवानगी देखी नहीं कहीं। वैसे भी अपना शहर रायपुर हमेशा से कला और कलाकारों की कद्र करने में नंबर वन रहा है।
बालिका बधू सीरियल से घर-घर तक अपनी पहुंच बनाने वाली अविका गौर का जब रायपुर आना हुआ तो उनको इस बात का अहसास नहीं था कि वह एक ऐसे शहर में कदम रखने वाली हैं, जहां पर उनके चाहने वालों की पूरी फौज है। उनको इस बात का अंदाज तो तब हुआ जब वह रोटरी क्लब के कार्यक्रम में कार्यक्रम स्थल पर पहुंचीं। वहां की भीड़ देखकर तो अविका को यकीन ही नहीं हुआ कि उनको देखने के लिए इतने लोग आए हैं। महिलाओं के साथ बच्चों और बड़ों का ऐसा जनसैलाब था जो अविका को ज्यादा और ज्यादा करीब से देखना चाहता था। जैसे ही वह मंच पर आईं लोग बेकाबू हो गए और मंच पर चढऩे लगे। बड़ी मुश्किल से बेकाबू होते लोगों को काबू में किया गया। हर कोई बस अविका के पास पहुंचना चाहता था। यहां तक कि आयोजक रोटरी क्लब से जुड़ीं महिलाएं भी अविका के साथ फोटो खींचवाने के लिए मशक्कत करती रहीं। कुल मिलाकर एक ऐसा माहौल था जिसके बारे में कोई भी कलाकार बस कल्पना करता है लेकिन हकीकत में उनको ऐसी कल्पना से दो-चार होने के मौके बहुत कम मिलते हैं, जब कलाकार को चाहने वाले इतना ज्यादा महत्व देते हैं।
अविका जहां रायपुर से सुखद यादें लेकर लौटीं, वहीं उन्होंने अपने सपनों के बारे में भी मीडिया के सामने खुलासा किया कि उनकी तमन्ना अब आगे चलकर सुष्मिता सेन की तरह की मिस यूनिवर्स बनने की है। अविका को इस बात की खुशी है कि उनको बालिका वधू ने एक ऐसे मुकाम पर पहुंचाया है जहां पर पहुंचने की तमन्ना पर हर कलाकार की रहती है। अविका अपने कला के सफर के बारे में बताती हैं कि उन्होंने यूं तो बालिका वधू के पहले कुछ सीरियलों में काम किया था, लेकिन उनमें उनको वैसा नाम नहीं मिला, जैसा नाम बालिका वधू में मिला। किसी भी कलाकार तो तब सफल माना जाता है, जब उनको उनके सही नाम के स्थान पर सीरियल या फिल्म में निभाए गए किरदार के नाम से जाना जाता है। यही बात अविका के साथ बालिका वधू में काम करने के बाद हुई है। उनको लोग अविका के नाम से कम और आनंदी के नाम से ज्यादा जानते हैं। अविका बताती हैं कि बालिका वधू के लिए एक बाल कलाकार की जरूरत थी और वह भी चली गईं आडिशन देने। फिर क्या था वह रोल उनको मिल गया। अब तो सफलता लगातार उनके कदम चूम रही है। इस समय उनके पास कुछ अच्छी फिल्में भी हैं। बकौल अविका वह मार्निंग वाक में जहां ओमपुरी और शर्मिला टैगोर जैसी कलाकार के साथ काम कर रही हैं, वहीं पाठशाला में शाहिद कपूर के साथ उनको काम करने का मौका मिला है। बालिका वधू में वह फरीदा जलाल जैसी कलाकार के साथ काम करके काफी खुश हैं। उनका मानना है कि फरीदा जी के साथ काम करना किस्मत की बात है। अविका अपने मनपसंद अभिनेता के रूप में रितिक रौशन का नाम लेती हैं। इसी के साथ वह यह भी कहती हैं कि वह भी चाहती हैं कि वह एक दिन रितिक जैसी बड़ी कलाकार बनें। अपने सपनों को साकार करने के लिए वह मेहनत भी करने की बात कहती हैं। उनका कहना है कि सफलता पाने के लिए वैसी मेहनत भी जरूरी है।

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रविवार, अप्रैल 12, 2009

नेता रहो या अभिनेता: शेखर

फिल्मों से राजनीति के मैदान में कूदने वाले शेखर सुमन का साफ तौर पर मानना है कि अभिनेता के साथ नेता का भी चोला पहनने वाले कभी सफल नहीं होते हैं। अगर वास्तव में देश की सेवा करनी है तो एक ही काम करें। अभिनेता का काम भी फिल्मों के जरिए अच्छा संदेश देते हुए देश की सेवा करना होता है और नेता का काम भी देश की सेवा करना होता है। (अब यह बात अलग है कि शायद शेखर जी यह सब जानते हुए भी नहीं मानते कि नेता देश की सेवा कम और अपनी सेवा ज्यादा करते हैं।) मैं आज राजनीति में आया हूं तो जरूर अब राजनीति में ही रमने के काम करूंगा। मैं बिहार को पुराने रूप में लाने के लिए ही राजनीति में आया हूं। बिहार का आज का रूप देखकर मुझे बहुत तकलीफ होती है।
लोकसभा चुनाव में पटना साहिब से बिहारी बाबू के नाम से जाने जाने वाले लोकप्रिय अभिनेता शत्रुधन सिंहा के खिलाफ चुनाव लडऩे वाले शेखर सुमन का अचानक रायपुर आना हुआ। शेखर साहब यहां पर अचानक इसलिए आएं क्योंकि उनको इस बात की जानकारी लगी थी कि रायपुर में एक ज्योतिषी हैं महेश जैन जो राजनीति में कूदने वालों का भविष्य बताने में महारथ रखते हैं। फिल्म जगत के कई ऐसे अभिनेता रहे हैं जो राजनीति में आए हैं तो उन्होंने श्री जैन से जरूर संपर्क किया है और राजनीति की पारी में अपना भविष्य जानने का प्रयास किया है। ऐसे में शेखर जी भी यहां श्री जैन से मिलने ही आए थे। अब यह बात अलग है कि उन्होंने इस बात का खुलासा नहीं किया कि वे यहां श्री जैन से ही मिलने आए थे। लेकिन उन्होंने राजनीति पर जरूर खुलकर बात की। कांग्रेस की टिकट से चुनाव लडऩे वाले शेखर सुमन जहां खुद को बिहारी बाबू मानते हैं, वहीं उन्होंने साफ किया कि वे भले अटल बिहारी वाजपेयी को अपना आदर्श मानते हैं लेकिन चूंकि उनका पूरा परिवार कांग्रेस में आस्था रखता है और उनका मानना है कि इस देश को अगर विकास के रास्ते पर कोई पार्टी ले जा सकती है तो वह कांग्रेस पार्टी है। बकौल शेखर सुमन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल गांधी ही देश को सही दिशा दिखा सकते हैं। शेखर का अटल जी के बारे में ऐसा मानना है कि वे गलत पार्टी में हैं, अगर वे कांग्रेस में होते तो जरूर आज देश के सर्वोच्च पद पर रहते। लालकृष्ण अडवानी को शेखर प्रधानमंत्री के लायक मानते ही नहीं हैं।
एक समय नेताओं की पोल खोलने का काम एक टीवी सीरियल पोल खोल में करने वाले शेखर राजनीति में आने के बारे में कहते हैं कि उनकी अंतिम मंजिल राजनीति ही थी। उन्होंने कहा कि वे बिहार के वर्तमान हालात देखकर काफी दुखी हैं। उनका कहना है कि वे बिहार से भावनात्मक रूप से जुड़े हैं इसलिए चाहते हैं कि बिहार फिर से पहले ही तरह हो जाए। शेखर का एक तरह से यह कहना है कि वे बिहार को लालू यादव की गिरफ्त से मुक्त करना चाहते हैं। उनका ऐसा मानना है कि आज का बिहार काफी अराजक हो गया है। शेखर के राजनीति में आने का एक कारण यह भी नजर आया कि वे राज ठाकरे के व्यवहार से काफी दुखी हैं। उन्होंने राज ठाकरे के बारे में कहा कि उन्होंने उनकी बातों का एक आम आदमी की हैसियत से विरोध किया है। शेखर चाहते हैं कि वे बिहारी युवकों को रोजगार दिलाने का काम करें ताकि उनको दूसरों राज्यों का मुंह देखना न पड़े। शेखर का यह बिहार प्रेम है तो तारीफ के काबिल लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि वे इसमें कहां तक सफल होते हैं। आज शेखर साहब राजनीति को अच्छा मानने लगे हैं जबकि एक समय वे राजनीति की बुराई करते नहीं थकते थे। फिल्मी सितारों के राजनीति में आने को वे गलत नहीं मानते हैं लेकिन उनका कहना है कि एक तो फिल्मी सितारों का केवल प्रचार के लिए उपयोग करना गलत है, दूसरे फिल्मी सितारों को राजनीति में आने के बाद अभिनय से किनारा कर लेना चाहिए। जिसने भी राजनीति के साथ अभिनय से नाता जोड़े रखा है, वह सफल नहीं हुआ है। वैसे शेखर जी का यह कथन बिलकुल ठीक है दो नावों पर सवार रहने वाले फिल्म अभिनेता कभी सफल नहीं हुए हैं। शेखर को इस बात पर इतराज है कि मुंबई फिल्म जगत का नाम बॉलीवुड रख दिया गया है, उनका कहना है कि हिन्दी फिल्म जगत को किसी ऐसे किसी नकली नाम की जरूरत नहीं है। मायानगरी को फिल्म जगत ही कहना चाहिए। अपनी जीत के प्रति भरोसा रखने वाले शेखर कहते हैं कि यह तो चुनाव के परिणाम आने के बाद मालूम होगा कि शाटगन यानी शत्रु की गन में कितना दम है। बिहार में उनके और शत्रु साहब के बीच में बिहारी बाबू होने को लेकर एक तरह की जंग चल रही है। दोनों प्रत्याशी अपने को बिहारी बाबू बताने में लगे हैं। अब अंतिम फैसला को जनता को करना है कि वास्तव में बिहारी बाबू कौन हैं और किसके लिए बिहार के लोगों के दिलों में ज्यादा जगह है।

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शनिवार, अप्रैल 11, 2009

चिदंबरम की गेंद पर मोदी बोल्ड

इंडियन प्रीमियर लीग के दूसरे संस्करण के भारत के बाहर जाने का कारण अब तक भारत सरकार के साथ गृहमंत्री पी. चिदंबरम के रूख को माना जा रहा था। इस बात को लेकर देश की पूरी खेल बिरादरी खफा थी कि क्रिकेट जैसे खेल को सरकार सुरक्षा नहीं दे पाई। लेकिन इसी के साथ एक बात यह भी थी कि क्रिकेट से पहले देश होता है। अब इधर अचानक गृहमंत्री ने इस बात का खुलासा किया है कि ललित मोदी के कारण ही आईपीएल भारत से बाहर गया है। वास्तव में जिस तरह का खुलासा गृहमंत्री ने किया है, उसके बाद तो यही लग रहा है कि ललित मोदी अपनी शर्तों पर ही आईपीएल का आयोजन देश में करवाना चाहते थे जो संभव नहीं था। अगर उनको वास्तव में भारत के खेल प्रेमियों से सरोकार होता तो जरूर वे आईपीएल को बाहर ले जाने से पहले कई बार सोचते लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया तो इसका मतलब साफ है कि उनको खेल प्रेमियों से नहीं पैसों से ज्यादा मतलब है। वैसे भी आईपीएल में पैसों का ही बोलबाला है। आईपीएल को खेल से जोडऩा ही गलत है। यह तो महज तीन घंटे का सी क्लास के सिनेमा जैसा तमाशा है जिसमें खेल कम और चियर्स गल्र्स का डांस ज्यादा होता है।
गृहमंत्री पी. चिंदबरम ने अचानक इस बात का खुलासा किया है कि बीसीसीआई के उपाध्यक्ष और आईपीएल के आयुक्त ललित मोदी के कारण ही आईपीएल को देश से बाहर जाना पड़ा है। बकौल श्री चिदंबरम श्री मोदी अगर आईपीएल को दो हिस्सों में करवाने में सहमत हो जाते तो आईपीएल को बाहर ले जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। आईपीएल के आयोजन को लेकर श्री मोदी ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर दबाव बनाने का अनावश्यक प्रयास भी किया। इसी के साथ उन्होंने सुरक्षा मामलों में राज्यों के पुलिस महानिदेशकों की समस्याओं को समझने का प्रयास ही नहीं किया। श्री मोदी ने थोड़ा सा भी सुरक्षा व्यवस्था को समझने का प्रयास किया होता तो आईपीएल कभी देश के बाहर नहीं जाता। बहरहाल अब तो आईपीएल देश के बाहर चला गया है और इसका आयोजन द. अफ्रीका में हो रहा है। लेकिन यह एक दुखद बात है कि आईपीएल देश के बाहर हो रहा है और अपने देश के दर्शक आईपीएल के आयोजकों की मनमर्जी के कारण ही इसको देखने से वंचित रह जाएंगे। आईपीएल के पहले संस्करण के जोरदार सफल होने के बाद आईपीएल के दूसरे संस्करण का जब आयोजन करने का फैसला आयोजकों ने किया था तब उनको नहीं मालूम था कि इस आयोजन से पहले ऐसा कुछ हो जाएगा जिससे उनका यह आयोजन भारत में खटाई में पड़ जाएगा। संभवत: ऐसा होता भी नहीं। लेकिन एक तो भारत में होने वाले लोकसभा चुनाव ने आईपीएल का रास्ता रोका, फिर सवाल यह खड़ा हुआ कि क्या लोकसभा चुनाव के समय खिलाडिय़ों को वैसी सुरक्षा दी जा सकती है जैसी जरूरी है। खिलाडिय़ों को ज्यादा सुरक्षा देने की जरूरत इसलिए आन पड़ी क्योंकि आईपीएल के आयोजन से ठीक पहले पाकिस्तान में जिस तरह से लंकाई खिलाडिय़ों पर आतंकी हमला हुआ उस हमले के बाद यह बात तय हो गई कि आईपीएल का आयोजन बिना कड़ी सुरक्षा के संभव नहीं है। ऐसे में आयोजकों ने पूरा प्रयास किया कि सरकार उनको सुरक्षा देने का काम करे। केन्द्रीय गृहमंत्रालय के कहने पर आयोजकों ने दो बार कार्यक्रम में फेरबदल किया, लेकिन बात नहीं बनी। कार्यक्रम में एक और फेरबदल की जरूरत थी जिसके लिए आईपीएल के आयोजक राजी नहीं हुए। अगर आयोजक राजी हो जाते तो जरूर आईपीएल देश में होता, लेकिन यहां पर आयोजकों ने मनमर्जी की। जब आईपीएल को देश के बाहर ले जाने का फैसला किया गया था, उस समय ऐसा माना जा रहा था कि आयोजक सरकार को डराने का काम कर रहे हैं और सरकार को अंत में इसलिए झूकना पड़ेगा क्योंकि आगे लोकसभा चुनाव हैं और ऐसे में क्रिकेट को सुरक्षा न दे पाने का एक मुद्दा भाजपा को मिल जाएगा। भाजपा के नेताओं ने इस बात को जोर-शोर से उछालने का काम भी किया। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो केन्द्र सरकार को कोसते हुए खिलाडिय़ों को सुरक्षा देने की गांरटी लेने की बात कह दी। अब यह बात अलग है कि मोदी जी अपने राज्य में आतंकी हमलों को नहीं रोक पाए थे और वे खिलाडिय़ों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेने की बात कह रहे हैं। ऐसी खोखली राजनीति किस काम की। क्या वास्तव में श्री मोदी ऐसी कोई ठोस बात कह सके जिससे उनकी बात पर भरोसा किया जाता। श्री मोदी को देश से ज्यादा क्रिकेट की इतनी ही चिंता थी तो उनको आईपीएल का सारा आयोजन गुजरात में करवाने के लिए आईपीएल के आयोजकों को तैयार कर लेना था। वैसे देखा जाए तो आईपीएल को लेकर भाजपा ने राजनीति करने का कोई मौका नहीं गंवाया। भाजपा नेताओं ने अपने पासे फेंककर केन्द्र सरकार को बोल्ड करने की कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन तारीफ करनी होगी गृहमंत्री पी. चिदंबरम की जिन्होंने देश से ज्यादा महत्व क्रिकेट को नहीं दिया। माना कि भारत में क्रिकेट को पूजने की हद तक चाहा जाता है और लोग यहां पर सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ी की मूर्ति लगाकर मंदिर बना लेते हैं, लेकिन इन सब बातों के कारण सुरक्षा को तो ताक पर नहीं रखा जा सकता है न। अगर खिलाडिय़ों को कम सुरक्षा देकर आयोजन को मंजूरी दे दी जाती और पाकिस्तान जैसी घटना हो जाती तो इसका जवाबदार कौन होता? तब आज वही लोग सरकार को कोसने का काम करते जो आयोजन के लिए सुरक्षा न देने पर सवाल उठा रहे थे। यह अपने आप में समझने वाली बात है कि जब विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में चुनाव हो रहे हैं तो उस चुनाव के लिए सुरक्षा के इंतजाम ज्यादा जरूरी है या फिर क्रिकेट के लिए सुरक्षा देना ज्यादा जरूरी है। और वो भी एक ऐसे क्रिकेट के आयोजन के लिए जो तीन घंटे के सी क्लास के सिनेमा से ज्यादा कुछ नहीं है। अगर यहां पर कोई विश्व कप की बात होती को एक बात समझ आती की विश्व कप तो पहले से तय था ऐसे में उसके लिए सुरक्षा के इंतजाम जरूरी है। लेकिन आईपीएल को कोई मजबूरी नहीं है। अगर वास्तव में गंभीरता से देखा जाए तो आईपीएल के आयोजन से खेल का क्या भला हो रहा है। इस आयोजन से आयोजन करने वालों के साथ खिलाडिय़ों पर ही पैसे बरसे रहे हैं। आम जनों की तो जेबें खाली हो रही हैं। आईपीएल के पहले संस्करण में यह बात का खुलकर सामने आई कि क्रिकेट में फिल्मी सितारों की घुसपैठ के कारण क्रिकेट एक तरह से बर्बादी की तरफ जा रहा है। मैचों के आयोजन के बीच में चियर्स गल्र्स को रखकर आयोजक दर्शकों को कौन का खेल दिखाना चाहते हैं यह तो वही बता सकते हैं। ऐसे सिनेमा को अगर वास्तव में अगर गृह मंत्रालय में सुरक्षा के लिहाज से मंजूरी न देने का काम किया गया है तो इसके लिए गृह मंत्रालय साधुवाद का पात्र है। फिर यह नहीं भूलना चाहिए कि अब गृहमंत्री ने इस बात का भी खुलासा कर दिया है कि आईपीएल के बाहर जाने के पीछे सुरक्षा से ज्यादा ललित मोदी का रूख रहा है।
वैसे इसमें कोई दो मत नहीं कि किसी भी देश के लिए चुनाव ज्यादा जरूरी होते हैं न की क्रिकेट जैसा कोई आयोजन। क्रिकेट को साल भर चलते रहता है और चलता रहेगा, लेकिन चुनाव तो पांच साल में एक बार होने हैं और जनता को अपना मत देना है। आईपीएल के भारत में न होने से जरूर दर्शकों में निराशा है लेकिन अब दर्शक इस बात को जान गए हैं कि आईपीएल सरकार की बेरूखी के कारण नहीं बल्कि आयोजकों की मनमर्जी के कारण बाहर गया है। ऐसे में भारतीय दर्शक कभी मोदी को माफ नहीं करेंगे।

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गुरुवार, अप्रैल 09, 2009

कलयुगी बाप-बन रहे हैं सांप

आज सुबह-सुबह फिर अखबार में यह खबर आई की छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में रहने वाला एक और कलयुगी बाप सांप बन गया और हवस की अंधी आग में उसने अपनी बेटी को ही डस लिया। यह बाप तो ऐसा था जो लगातार 10 साल से अपनी बेटी को अपने जहर से कांटने का काम कर रहा था। जब बात बर्दाश्त से बाहर हो गई तो अंत में बेटी ने लोक-लाज की परवाह किए बिना अपने उस बाप को जो सांप बन गया था समाज के सामने करने का साहस दिखाया। परिणाम यह रहा कि उस सांप को कुचलने के लिए उस युवती के परिजन पील पड़े। इस एक घटना के कुछ समय पहले ही छत्तीसगढ़ के एक शहर बेमेतरा में भी ऐसी ही घटना हुई थी जब एक बेटी ने अपने बाप पर यौन शोषण करने का आरोप लगाया था। आज देश का कोई भी शहर नहीं बचा है जहां पर कलयुगी बाप सांप न बन रहे हैं। इसी के साथ यह बात भी सामने आती रही है कि ज्यादातर महिलाओं के साथ उनके रिश्तेदार ही बलात्कार करने का काम करते हैं। महिला आयोग ने भी यह बात मानी है कि आज नारी अगर सबसे ज्यादा असुरक्षित कहीं है तो वह अपने ही घर की चार-दीवारी में है। सेक्स की अंधी दौड़ में आज लोग रिश्तों को भी भूल गए हैं। बाप-बेटी के पवित्र रिश्ते को भी आज के कलयुगी बाप अब लगातार कंलकित करने लगे हैं। इनको बाप कहने की बजाए सांप कहना ज्यादा उचित है। आज छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की एक 21 वर्षीय युवती के साथ हुई घटना सामने आई। इस घटना में युवती ने जिलाधीश और पुलिस अधीक्षक को एक पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि उसका सगा बाप उसके साथ तब से बलात्कार कर रहा है जब महज 11 साल की थी। समाज के डर से उसने यह बात किसी को नहीं बताई। आज जबकि उसने इस बात का खुलासा कर दिया है तो युवती के आरोप को उसकी मां ही नकार रही है। इधर कलयुगी बाप को जब उसके रिश्तेदारों से मार-मार कर अधमरा कर दिया तो इस बारे में युवती ने कहा कि उसके रिश्तेदार चाहते हैं कि उसका बाप मर जाए ताकि उसका बयान न लिया जा सके और मेरा आरोप लगत साबित हो जाए। युवती का कहना है कि उसके बाप का बयान जरूरी है। ठीक इसी तरह की एक और घटना कुछ समय पहले तब सामने आई थी जब बेमेतरा की एक युवती ने घर से भाग कर अपने प्रेमी से शादी कर ली थी और आरोप लगाया था कि उसके साथ उसका बाप काफी समय से बलात्कार करते रहा है। इस युवती के आरोप को उसके बाप के साथ मां से मीडिया के सामने रो-रोकर गलत बताया था। यह सोचने वाली बात है कि आखिर एक युवती क्यों कर अपने सगे बाप पर ही ऐसा आरोप लगाएगी। इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज के कलयुगी बापों की हवस की शिकार युवतियां लगातार बन रही हैं। कानून में इन बलात्कारी बापों के लिए कोई कड़ी सजा नहीं है। ऐसे बापों को तो मुस्लिम देशों के कानून की तरह से सजा मिलनी चाहिए। होना तो यह चाहिए कि बाप-बेटी के रिश्ते को अपवित्र करने वाले ऐसे सांपों को खुले आम फांसी दे देनी चाहिए। लेकिन इसका क्या किया जाए कि अपने देश में ऐसा कोई कानून नहीं है। आज यही वजह है कि बलात्कार के लिए ज्यादा कड़ा कानून न होने के कारण ही नारी आज अपने ही नाते-रिश्तेदारों ही हवस का शिकार ज्यादा बन रही है। महिला आयोग की बातों पर गौर करें को आयोग भी मानता है कि ज्यादातर मामलों में महिलाएं अपने घरों में यौन शोषण का शिकार होती हैं, और लोक-लाज के डर से वो सामने नहीं आ पाती हैं। जो महिलाएं सामने आती हैं, उन पर कई तरह के दबाव रहते हैं। फिर जब मामला अदालत में जाता है तब उस पीडि़त महिला से अपने वकील कैसे-कैसे सवाल करते हैं यह बताने की जरूरत नहीं है। इन्हीं सब बातों का ध्यान करते हुए ही अंतत: महिलाओं को अत्याचार बर्दाश्त करने पड़ते हैं। लेकिन ऐसा करके वो ठीक नहीं करती हैं, आज वह समय आ गया है जब अपने खिलाफ होने वाले अत्याचार के लिए महिलाओं को अपनी आवाज उठानी ही पड़ेगी। और जो भी ऐेसे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाए उसका पूरे समाज को साथ देना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं होता है और समाज के लोग ही ऐसी महिलाओं को दबाने का काम करते हैं। धन्य हैं वो लड़कियां जिन्होंने इस बात का खुलासा किया है कि उनके बाप वास्तव में कितने बड़े सांप हैं जो उनको ही डसने का काम कर रहे हैं। सोचने वाली बात है कि आखिर हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है। आखिर ऐसा क्या कारण है जो लोग हवस की आग में रिश्तों को भी ताक में रख देते हैं। मनोवैज्ञानिकों की मानें तो इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण ऐसी गंदी फिल्में हैं जिनको देखकर लोग बेकाबू हो जाते हैं और अपनी सेक्स की भूख को मिटाने के लिए किसी को भी अपना शिकार बना लेते हैं। ऐसी फिल्में देखने वालों को जब अपने ही घर में एकांत में रिश्ते की कोई भी युवती, महिला मिल जाती है तो उसको वो शिकार बनाने से पीछे नहीं हटते हैं। घरों का एकांत आज नारी जाति के लिए ज्यादा घातक साबित हो रहा है।

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तो नेताओं की रोज बजाते....


लातों के भूत बातों से नहीं मानते

यह बात गर सब जान जाते

देश के भ्रष्ट नेता-मंत्री

देश को खोखला नहीं कर पाते

हर घर में गर एक जनरैल जैसे

इंसान हो जाते

तो नेताओं की गलतबयानी पर

रोज उनकी बजाते

नेता फिर काफी सोच-समझ कर

राजनीति में आते

ऐसे में ईमानदारों के लिए

राजनीति के रास्ते खुल जाते

और फिर मंत्रियों की कुर्सियों पर हम

ईमानदार नेता ही पाते

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सोमवार, अप्रैल 06, 2009

यौन शोषण का फंदा-खेलों को कर रहा है गंदा

छत्तीसगढ़ में लगातार महिला खिलाडिय़ों का यौन शोषण करने का खेल चल रहा है। इस खेल का खुलासा कई मौकों पर होने के बाद भी इस दिशा में शासन ने अब तक कोई ठोस पहल नहीं की है जिसके कारण ऐसा घिनौना काम करने वाले लगातार ऐसा करने में लगे हुए हैं। जो मामले सामने आए हैं उन मामलों में स्कूली खेलों में गोवा में हुए कांड के साथ खरोरा का कांड भी शामिल है। लेकिन इन कांडों में शामिल आरोपियों को पहले निलंबित किया गया फिर उनको बहाल भी कर दिया गया है। एक मामला ऐसा भी हुआ था जिसमें भिलाई में कोरबा के जूडो कोच ने अपनी महज 13 साल की खिलाड़ी के साथ बलात्कार करने का काम किया था। इस घटना ने ही सबको सोचने पर मजबूर किया था कि वास्तव में छत्तीसगढ़ में भी खिलाड़ी प्रशिक्षकों की हवस का शिकार हो रही हैं। यह तो भिलाई और गोवा का मामला किसी कारणवश खुल गया था, वरना न जाने कितनी मासूम लगातार प्रशिक्षकों की हवस का शिकार हो रही हैं, और पता ही नहीं चल पाता है। लेकिन यदा-कदा जहां ऐसी चर्चाएं होती रहती हैं, वहीं कुछ समय पहले एक आदिवासी खिलाड़ी ने तो खुलकर अपने कोच पर यौन शोषण करने देने की शर्त पर ही प्रदेश की टीम में शामिल करने का आरोप लगाया था। इस आरोप को जहां संघ ने गंभीरता ने नहीं लिया था और अपने कोच को पाक-साफ साबित कर दिया था, वहीं राज्य महिला आयोग ने इस मामले की जांच की। लेकिन इस कोच को कोई कड़ी सजा नहीं मिल पाई और इसका नतीजा यह रहा कि यौन शोषण का खेल करने वाले अब और ज्यादा बेखौफ होकर यह खेल खेलने में लगे हैं। अब इसे अपने राज्य की खिलाडिय़ों का दुर्भाग्य कहे या उनकी मजबूरी की एक खेल की खिलाड़ी के एक साहसिक कदम के बाद भी कोई और खिलाड़ी सामने नहीं पा रही हैं। वैसे यह बात सब जानते हैं कि खिलाडिय़ों का यौन शोषण लगातार जारी है। इसे रोकने की पहल करने वाला पूरे राज्य में कोई नजर नहीं आता है। हमने ही अपने खेल पत्रिका में इसका पहली बार खुलासा किया था। इसके बाद ही मीडिया में इस पर खबरें प्रकाशित हुईं, लेकिन फिर चंद दिनों बाद यह मामला ठंड़ा पड़ गया और यौन शोषण के दानव फिर से सक्रिय हो गए हैं। ऐसे में हमें फिर से कलम उठाने मजबूर होना पड़ा है। आज जबकि अपने राज्य ही नहीं पूरे देश में महिला खिलाडिय़ों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। ऐेसे में यह जरूरी हो गया है कि खेल के नाम पर यौन शोषण करने वालों को एकजुट होकर खदेड़ा जाए। हालांकि यह उतना आसान नहीं है क्योंकि यहां तो हर साख पे उल्लू बैठे हैं, अंजामे गुलिस्ता क्या होगा, वाली बात है।

छत्तीसगढ़ के खेल जगत का वह काला दिन था गोवा में खेलने गई स्कूली खिलाडिय़ों से साथ उनके साथ गए प्रशिक्षकों ने छेड़छाड़ की और जोर-जबरदस्ती करने का प्रयास किया। इस घटना से पहले एक घटना भिलाई में तब हुई थी जब राज्य जूडो चैंपियनशप के अंतिम दिन कोरबा के एक कोच ठाकुर बहादुर ने अपने ही शहर की एक महज 13 साल की खिलाड़ी के साथ बलात्कार करने का घिनौना काम किया। उस कोच को ऐसा करने में सफलता मिली थी तो उसके पीछे भी कहानी है। यह तो मामला न जाने किसी कारण से खुल गया, वरना ऐसी न जाने राज्य और देश में कितनी चैंपियनशिप होती हैं जहां पर प्रशिक्षक आसानी से अपनी खिलाडिय़ों का यौन शोषण करने में सफल हो जाते हैं और किसी को कानों-कान खबर भी नहीं होती है। भिलाई वाले कांड की बात करें तो वहां पर कोच ने जिस तरह से रात को 12 बजे खिलाड़ी को प्रमाणपत्र देने के बहाने से अपने कमरे में बुलाया और अपनी हवस पूरी की, उससे एक बात का तो खुलासा हो गया कि किसी भी कोच द्वारा अपनी खिलाडिय़ों को रात को कमरे में बुलाना आम बात है। और जब खिलाड़ी कोच के साथ कमरे में रात को अकेले रहती हैं तो वह कोच आसानी से अपनी मनमर्जी करने लगते हैं। ऐसे समय में जब खिलाड़ी द्वारा विरोध किया जाता है तो उसे जहां राष्ट्रीय फिर अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनाने और नौकरी आदि लगाने का प्रलोभन दिया जाता है, वहीं बात न बनने पर डराने का भी काम किया जाता है। यहां पर ज्यादातर खिलाड़ी समझौता कर लेती हैं, काफी कम खिलाड़ी ऐसी होती हैं जो वैसा साहस दिखा पाती है जैसा साहस दिखाने का काम कोरबा की उसी छोटी सी खिलाड़ी ने दिखाया। अब कोरबा की उस खिलाड़ी ने ऐसा साहस किया है तो इससे यौन शोषण का शिकार होने वाली खिलाडिय़ों को भी सबक लेते हुए अपने उन सफेदपोश प्रशिक्षकों को बेनकाब करने का काम करना चाहिए जो उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर अपनी हवस की आग बुझाने का काम करते हैं। वैसे कोरबा की खिलाड़ी वाला मामला तो एक तरह से बलात्कार का मामला है और ऐसा करने वाले कोच को जेल की हवा भी खानी पड़ी है। अब अगर ऐसे मामलों की बात करें तो खुल कर सामने नहीं आ पाते हैं तो वो भी एक तरह से बलात्कार के ही मामले हैं, पर चूंकि वे मामले सामने नहीं आ पाते हैं ऐसे में उन पर बलात्कार की धारा नहीं लग पाती है, लेकिन वास्तव में है तो वो भी बलात्कार। सोचने वाली बात है कि ऐसा क्या कारण है जो खेल और खिलाडिय़ों के साथ बलात्कार करने वालों को समाज के सामने करने का साहस खिलाड़ी नहीं दिखा पा रही हैं।
वैसे आज देखा जाए तो खेल जगत में ज्यादातर महिला खिलाडिय़ों का किसी न किसी रूप में यौन शोषण हो रहा है, यह बात जग जाहिर है। लेकिन यहां पर सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जिन खिलाडिय़ों का यौन शोषण होता है उनमें से काफी कम खिलाड़ी ऐसी होती हैं जो खुले रूप में इसको सामने करने का साहस कर पाती हैं। भारत में ऐसे काफी कम मौके आए हैं, जब किसी खिलाड़ी ने ऐसे आरोप से अपने कोच या फिर साथी खिलाड़ी पर आरोप लगाए हैं। अपने पड़ोसी देश श्रीलंका की धाविका सुशांतिका ने जब काफी साल पहले एक मंत्री पर यौन शोषण का आरोप लगाया था, तब काफी हंगामा हुआ था। जहां तक विदेशों की बात है तो वहां पर तो ऐसा होना आम बात है। फिर यहां पर एक बात यह भी है कि विदेशों में तो फ्री सेक्स वाली संस्कृति है। ऐसे में वहां पर ऐसे मामलों का कोई मतलब नहीं होता है, लेकिन ऐसे मामले जब सामने आते हैं तो यह जरूर सोचना पड़ता है कि जिस देश में सेक्स को गलत नहीं माना जाता है, वहां पर ऐसे मामलों का क्या मतलब। लेकिन कहते हैं कि अगर कोई भी काम किसी को डरा धमका कर या फिर उसकी सहमति के बिना किया जाए तो वह काम गलत होता है। और हर ऐसे काम का विरोध तो होना ही चाहिए। लेकिन जो खिलाड़ी यौन शोषण का शिकार होती हैं, उनमें से ज्यादातर अपने कैरियर के कारण इसका खुलासा नहीं कर पाती हैं। और यह बात जहां विदेशी खिलाडिय़ों पर लागू होती है, वहीं भारतीय खिलाडिय़ों पर भी। भारतीय खिलाडिय़ों पर तो यह बात ज्यादा लागू होती है। कारण साफ है यहां पर खिलाडिय़ों के चयन में जिस तरह की राजनीति होती है उससे किसी भी खिलाड़ी का किसी भी खेल की टीम में आसानी से चुना जाना आसान नहीं होता है। ऐसे में जब महिला खिलाडिय़ों को ज्यादातर उनके कोच इस बात का प्रलोभन देते हैं कि वे उनके कोच हैं और उनको राज्य ही नहीं देश की टीम से खिलाकर उनका भविष्य बना सकते हैं तो ऐसे में ज्यादातर महिला खिलाड़ी झांसे में आ जाती हैं और सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार हो जाती हैं।
यहां पर यह भी बताना लाजिमी होगा कि अपने देश में इतनी ज्यादा बेरोजगारी है कि रोजगार पाने के लिए हर कोई कुछ भी करने को तैयार रहता है। रोजगार के लिए आज पढ़ाई से ज्यादा महत्व खेल का हो गया है। ऐसे में जो खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल लेती हैं उनको नौकरी मिलने में आसानी हो जाती है। इन सबको देखते हुए ही जब किसी खिलाड़ी के सामने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर या फिर राष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका सामने आता है और उसके लिए उसके सामने ऐसी कोई शर्त रखी जाती है जिससे उसका यौन शोषण हो तो भी खिलाड़ी इसके लिए तैयार हो जाती हैं। हमें याद है हमें एक बार एक खेल से जुड़े कुछ दिग्गजों ने बताया था कि उनके खेल में जिनके कहने पर भारतीय टीम का चयन होता है वे उसी लड़की को टीम में रखने को तैयार होते हैं जो कम से कम एक बार उनके साथ यौन संबंध बनाने को तैयार होती हैं। शायद यही कारण है कि इस खेल में अपने राज्य की ज्यादा महिला खिलाडिय़ों को देश से खेलने का मौका नहीं मिल पाया है। ऐसे और कई खेल हैं जिनके आका ऐसा ही काम करते हैं और महिला खिलाडिय़ों का यौन शोषण किए बिना उनको टीम में स्थान नहीं देते हैं। कई मामलों में यह भी होता है कि राज्य के खेल संघों के पदाधिकारी या फिर कोच राष्ट्रीय खेल संघों में अपने संबंधों के आधार पर उन खिलाडिय़ों का चयन करवाने का काम करते हैं जो उनके साथ यौन संबंध बनाने को तैयार रहती हैं। जानकार तो यहां तक बताते हैं कि भारतीय टीम में स्थान दिलाने के लिए कुछ खेलों के कोच और प्रदेश संघ के पदाधिकारी जहां खिलाडिय़ों का स्वयं यौन शोषण करते हैं वहीं खिलाडिय़ों को राष्ट्रीय संघ के पदाधिकारियों के पास भी भेजने का काम करते हैं। खिलाडिय़ों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने के मोह में सब कुछ सहना पड़ता है। कुछ खिलाड़ी जहां समझौता कर लेती हैं, वहीं कुछ को डरा धमका कर भी ऐसा करने के लिए मजबूर किया जाता है। अपने प्रदेश में कुछ खेलों की ऐसी खिलाड़ी भी हैं जिन्होंने ऐसा काम करने से मना कर दिया तो जहां उनको राष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा खेलने के मौके नहीं मिले, वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने की क्षमता होने के बाद भी उनको खेलने नहीं दिया गया। यही नहीं कई खिलाडिय़ों को तो अपने खेल से किनारा भी करना पड़ा। कुछ खेलों की खिलाडिय़ों से अपना मूल खेलकर छोड़कर दूसरे ऐसे खेलों से भी नाता जोड़ा है जिन खेलों में उनका यौन शोषण न होने की पूरी गारंटी है।
वैसे अपने राज्य में ऐसी खिलाडिय़ों की भी कमी नहीं है जो खुद यौन संबंध बनाने के ऑफर के साथ अपने को खेल के उस मुकाम पर ले जाना चाहती हैं जहां पर पहुंच कर उनका भविष्य सुरक्षित हो सके। ऐसी खिलाड़ी स्कूल स्तर से लेकर कॉलेज और फिर ओपन वर्ग में भी मिल जाएगीं। हमको आज भी एक घटना याद है। जब छत्तीसगढ़ नहीं बना था और मप्र था तो रायपुर के पुलिस मैदान में राज्य की टीमें बनाने के लिए स्कूली खेल हो रहे थे। इन खेलों में खेलने आईं एक बालिका खिलाड़ी ने चयन करने वालों तक यह खबर अपने ही खेल शिक्षक से भिजवाई की अगर उनका चयन मप्र की टीम में कर लिया जाता है तो वो जो चाहेंगे वह करने को तैयार है। इस बारे में तब कुछ जानकारों ने बताया था कि यह तो आम बात है स्कूली खेलों में जहां ज्यादातर छोटी उम्र की खिलाडिय़ों का यौन शोषण उनके शिक्षक करते हैं, वहीं उनका चयन टीम में करवाने के लिए उनको चयनकर्ताओं के सामने भी परोस देते हैं। ऐसा ही कुछ कॉलेज स्तर पर भी होता है। वैसे ओपन वर्ग में ऐसे मामले ज्यादा होते हैं। इसका कारण यह है कि ओपन वर्ग कीराष्ट्रीय चैंपियनशिप का ज्यादा महत्व होता है।
खैर यह बात तो उस समय मप्र के रहते की है, पर अपना राज्य बनने के बाद भी ऐसी बातें सुनने को मिलती हैं। अक्सर खिलाडिय़ों के साथ ही खेल से जुड़े लोगों और प्रशिक्षकों के बीच यह बातें सुनने को मिलती रहती हैं कि उस प्रशिक्षक के उस खिलाड़ी से संबंध हैं। और ये संबंध कोई प्यार के नहीं बल्कि मजबूरी के होते हैं जो उस खिलाड़ी को प्रलोभन देकर या फिर डरा धमका कर भी बनाए जाते हैं। ऐसा नहीं है कि खिलाडिय़ों और कोच में प्यार के संबंध नहीं होते हैं। किसी खिलाड़ी और कोच तथा किसी खिलाड़ी का खिलाड़ी से प्यार भी आम बात है। और ऐसे कई उदाहरण है कि अपने सच्चे प्यार को साबित करने के लिए किसी खिलाड़ी ने कोच से शादी की तो किसी खिलाड़ी ने खिलाड़ी को वरमाला पहना दी। यह सब तो जायज भी है। पर खेल जगत में जायज से ज्यादा नाजायज काम हो रहे हैं। नाजायज काम किस तरह से होते हैं खिलाडिय़ों को किस तरह से डराया धमकाया और प्रलोभन दिया जाता है इसका खुला उदाहरण कुछ साल पहले तब सामने आया था जब बिलासपुर में एक राष्ट्रीय बेसबॉल चैंपियनशिप का आयोजन हुआ। वहां पर उड़ीसा के एक कोच को एक कम उम्र की बालिका के साथ खुलेआम गलत हरकत करते देखा गया। इस कोच के बारे में खुलासा हुआ कि वह खिलाडिय़ों को जहां उनका भविष्य बनाने का प्रलोभन देता था, वहीं डराता भी था कि वह उनका कोच है और वही उनका भविष्य बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है। इस कोच को लेकर पुलिस में रिपोर्ट भी हुई, पर बेसबॉल से जुड़े राष्ट्रीय स्तर के साथ ही प्रदेश स्तर के पदाधिकारियों ने इस मामले को गंभीरता से लिया ही नहीं। इसका मलतब साफ है कि खेल संघ के पदाधिकारियों को भी मालूम है कि उड़ीसा के कोच ने जो भी किया वह आम बात है। यह जो मामला था वह हुआ अपने राज्य में, पर मामला दूसरे राज्य का था, लेकिन इस मामले से ठीक पहले राजधानी रायपुर में स्कूली खेलों की राज्य चैंपियनशिप के समय भी एक मामला हुआ था, तब यहां पर एक टीम के साथ आए टीम के कोच को समापन समारोह में कई लोगों ने खुलेआम एक छोटी उम्र की खिलाड़ी को अपनी गोद में बिठाकर गलत हरकत करते देखा। जब उस कोच की हरकतें हदें पार करने लगीं तो खेलों से जुड़े कुछ वरिष्ठ लोगों ने उस कोच को काफी फटकार लगाई।
इस एक घटना ने यह साबित कर दिया कि वास्तव में स्कूली खेलों में क्या होता है। स्कूली खेलों का कितना बुरा हाल रहता है यह बताने वाली बात नहीं है। स्कूली खेलों में अगर सबसे ज्यादा भ्रष्टïचार और कदाचार होता है कहा जाए तो गलत नहीं होगा। क्या उस दिन जो घटना राजधानी के पुलिस मैदान में खुले आम हुई उसकी जानकारी बड़े आधिकारियों को नहीं हुई, लेकिन उन्होंने भी इस दिशा में कोई कार्रवाई करना जरूरी नहीं समझा। स्कूली खेलों में तो कई स्कूलों के खेल शिक्षक खुले आम मदिरापान करके वहां पहुंच जाते हैं जहां पर बालिकाओं के मैच होते रहते हैं। और ऐसे लोगों की उस समय हरकतें देखने लायक रहती हैं जब वे बालिका खिलाडिय़ों को अपने पास बुलाकर बेटा-बेटा कहते हुए उनके शरीर में इधर-उधर हाथ फिराने लगते हैं। यहां पर जहां ऐसे लोगों की ऐसी हरकतों पर गुस्सा आता है, वहीं यह सोचकर घिन भी आती है कि ये लोग जिन खिलाडिय़ों को बेटा-बेटा कह रहे हैं उनके साथ कैसी ओछी हरकतें कर रहे हैं और बाप-बेटी के रिश्ते को भी कलंकित कर रहे हैं। तब ऐसा लगता है कि ऐसे लोगों की तो सरे आम पिटाई होनी चाहिए ताकि ऐसे लोगों को सबक मिल सके कि ऐसी हरकतें करने का क्या अंजाम होता है। ऐसी ओछी हरकते करने वालों के कई किस्से हैं जो लोग सुनाते रहते हैं। ये लोग जब टीमें लेकर बाहर जाते हैं तब इनकी हरकतें जहां काफी बढ़ जाती हैं, वहीं सीमाएं भी पार कर जाती हैं। ऐसे में उन असहाय लड़कियों पर तरस आता है जो अपने भविष्य के साथ अपनी बदनामी का ख्याल करके कुछ नहीं कह पाती हैं। लेकिन कुछ खिलाड़ी जरूर साहस के साथ ऐसे मामलों को सामने लाने का काम करतीं हैं। ऐसा ही साहस एक खेल की आदिवासी खिलाड़ी ने किया था। तब इस खिलाड़ी ने खुले आम अपने कोच पर यौन शोषण की शर्त पर ही प्रदेश की टीम में स्थान देने का आरोप लगाया था। इस मामले की जब प्रदेश के मुख्यमंत्री रमन सिंह से लेकर खेल मंत्री और खेल संचालक से शिकायत हुई तो उस समय के खेल संचालक राजीव श्रीवास्तव ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए इस मामले को राज्य महिला आयोग को सौंप दिया था। इस पूरे मामले की राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुधा वर्मा ने जांच भी करवाई। इस दौरान इस मामले की अखबारों में खुब चर्चा रही। जांच में कोच को काफी हद तक दोषी भी पाया गया। वैसे कोच ने मीडिया के सामने आकर अपने को पाक-साफ साबित करने का भी प्रयास किया, पर मीडिया के सामने वे ठहर नहीं पाए, क्योंकि यह बात मीडिया से भला बेहतर कौन जानता है कि खेलों के नाम पर खेलों से जुड़े लोग कैसा खेल खेलते हैं। बहरहाल इस मामले में कोच पर ऐसी कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हुई जिससे खेलों को गंदा करने वाले ऐसे लोगों में डर जैसी भावना आती। संभवत: यह उसी का नतीजा है कि आज इस एक साहसिक कदम के बाद कोई दूसरी खिलाड़ी ऐसा साहस नहीं कर पाई और प्रदेश में काफी तेजी से खिलाडिय़ों का यौन शोषण होने लगा है। यौन शोषण करने वाले इतने बेखौफ हैं कि वे मीडिया वालों से यह भी कहते हैं कि अगर कोई सबूत है तो आप बेशक खबर प्रकाशित करें। अब यह तो तय है कि जो लोग इतनी हिम्मत से ऐसी बात कहते हैं वे यह जानते हैं कि उनका खिलाडिय़ों पर इतना ज्यादा खौफ है कि कोई सामने आने की हिम्मत नहीं करेगी। भले यौन शोषण का शिकार हो रहीं खिलाड़ी खुले रूप में सामने नहीं आ रही हैं, लेकिन इन खिलाडिय़ों का यौन शोषण होते देखने वाले खेलों से जुड़े ऐसे लोग तो जरूर इन बातों की चर्चा करते हैं जिनको खेलों की इस गंदगी से नफरत है। पर इन लोगों की यह मजबूरी है कि इनको यौन शोषण में लिप्त लोगों के साथ काम करना है, ऐसे में वे इनका विरोध भी नहीं कर पाते हैं। विरोध करने का मतलब होगा इनका खेलों से आउट होना। इधर मीडिया की एक मजबूरी यह है कि बिना किसी ठोस सबूत के वह भी किसी पर कम से कम सीधे आरोप नहीं लगा सकता है। लेकिन मीडिया इस मामले में जरूर भाग्यशाली है कि वह बिना किसी का नाम प्रकाशित किए भी ऐसे मामले लोगों को इशारों से समाज के सामने लाने का काम कर सकता है। और वहीं काम हम कई सालों से लगातार किया है। हालांकि हमारे इस काम से प्रदेश की खेल बिरादरी से जुड़े लोग काफी नाराज हैं। लेकिन उनकी महज नाराजगी के लिए ऐसे कृत्य पर पर्दा डालने का काम करना कम से कम हमें कताई पसंद नहीं है।
इसलिए हम लगातार इस मामले को समाज के सामने करते रहे हैं और करते रहेंगे। बहरहाल हम बात करें ऐसे कुछ मामलों की जो यह बताते हैं कि किस तरह से प्रदेश की महिला खिलाडिय़ों का यौन शोषण हो रहा है। जब जगदलपुर में एक बार स्कूली खेलों की राज्य चैंपियनशिप का आयोजन किया गया तो वहां पर टीम के साथ गए हॉकी टीम के कुछ खिलाडिय़ों ने हॉकी टीम की बालिका खिलाडिय़ों के साथ बस में खुले आम गंदी हरकतें कीं। इन सबकी शिकायत होने पर जांच हुई और दोषी खिलाडिय़ों के खेलने पर प्रतिंबध लगा दिया गया। शिक्षा विभाग का यह काम तारीफ के काबिल तो था, पर उस समय शिक्षा विभाग के अधिकारियों को क्यों सांप सूंघ जाता है जब ऐसे मामलों में उनके विभाग से जुड़े लोग शामिल रहते हैं। तब ऐसे लोगों पर क्यों कार्रवाई नहीं की जाती है। गोवा कांड के सामने आने के बाद कुछ खेल शिक्षकों पर कार्रवाई हुई, फिर इनकी बहाली के साथ ही मामला दबा दया गया। ऐसे लोगों पर आज तक कोई ठोस कार्रवाई न होने के बारे में मालूम किया गया तो यह बातें सामने आईं कि ऐसे लोगों पर इसलिए भी कार्रवाई नहीं होती है क्योंकि ऐसे लोग अपने अधिकारियों के लिए भी वह सब इंतजाम कर देते हैं जिसकी उनको जरूरत रहती है। इन जरूरतों में पैसों से लेकर शराब और शबाब भी शामिल है। ऐसे में यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि जिन खिलाडिय़ों का यौन शोषण होता है वो इसलिए भी सामने नहीं आतीं क्योंकि उनको मालूम रहता है कि उनका जो यौन शोषण कर रहे हैं उनकी पहुंच ऊपर तक है। जो बातें स्कूली खेलों में हैं वहीं कॉलेज और ओपन वर्ग में भी हैं। ओपन वर्ग में यह ज्यादा है। कारण साफ है जहां ओपन वर्ग का महत्व ज्यादा है, वहीं ओपन वर्ग में टीमें भेजने का काम खेल संघ करते हैं और खेल संघों पर कोई सरकारी लगाम नहीं होती है। स्कूली और कॉलेज स्तर पर तो सरकारी लगाम के कारण कुछ खौफ रहता है, पर ओपन वर्ग में किसी कोच या खेल संघ का पदाधिकारी का सरकार क्या कर लेगी। आज यही कारण है कि खेलों में महिला खिलाडिय़ों की कमी होती जा रही है। कोई भी पालक आज अपनी लड़कियों को खेलने भेजने की मंजूरी नहीं देते हैं। ज्यादातर जो लड़कियां खेलों में आ रही हैं उनके साथ पालक हर पल साथ लग रहते हैं, या फिर उनको अपनी लड़की या फिर जिसके संरक्षण में वे उसको दे रहे हैं उन पर उनको पूरा भरोसा है। हमारे इस लेख का यह मतलब कदापि नहीं है कि खेलों से जुड़े सभी कोच, खेल संघों से जुड़े लोग या फिर पुरुष खिलाड़ी यौन शोषण करने वाले ही होते हैं। पर ऐसे लोग समाज में हैं तो जरूर। वैसे भी यह प्रकृति का नियम है कि अच्छाई के साथ बुराई भी होती है। ऐसे में खेल जगत इससे कैसे अछूता रह सकता है। खेलों में जहां खेलों को गंदा करने वाले हैं, वहीं ऐसे भी कई कोच, खेलों से जुड़े लोग और खिलाड़ी हैं जो वास्तव में खेल और खिलाडिय़ों के लिए कुछ करना चाहते हैं। यही कारण है कि खेलों में भारी गंदगी होने के बाद भी खेल जिंदा हैं और ऐसे जिंदा दिल लोग भी जिंदा हैं जो सब कुछ जानने के बाद भी अपनी लड़कियों को खेलों में भेजने का साहस करते हैं। ऐसे सभी लोग साधूवाद और सलाम के पात्र हैं। हम ऐसे लोगों को सलाम करते हैं और साथ ही यह भी चाहते हैं कि ऐसी खिलाडिय़ों को जरूर सामने आना चाहिए जिनका यौन शोषण किया जाता है। एक तो सबसे पहले इसका विरोध होना चाहिए। अगर इसका विरोध नहीं होगा तो वह दिन दूर नहीं जब अपने राज्य ही क्या पूरे देश में महिला खिलाडिय़ों का अकाल पड़ जाएगा। और ऐसा हो भी रहा है। आज लगातार देश में महिला खिलाडिय़ों की कमी होती जा रही हैं। और इनमें अपना राज्य भी शामिल है। अब इससे पहले की महिला खिलाडिय़ों का पूरी तरह से अकाल पड़ जाए, कुछ तो करना होगा। जब यह बात जगजाहिर है कि यौन शोषण करने वालों के अलावा अच्छे लोग भी खेलों से जुड़े हुए हैं तो क्या ऐसे में अब ऐसे लोगों को भी उस आदिवासी खिलाड़ी की तरह सामने आने का साहस नहीं करना चाहिए जिस खिलाड़ी ने अपने कोच पर आरोप लगाया था। अगर उस खिलाड़ी की तरह से और कुछ खिलाड़ी और यौन शोषण की जानकारी रखने वाले सामने आ जाए तो यह बात तय है कि खेलों को गंदा करने वालों को आसानी से खेलों से आउट किया जा सकता है। बस जरूरत है एक साहसिक पहल की। इसी आशा के साथ की ऐसा साहस जरूर अपने राज्य की खिलाड़ी दिखाएंगी उनको ऐसा साहस करने की हिम्मत भगवान दे ऐसी दुआ करते हैं।


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