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बुधवार, अप्रैल 15, 2009

जिन्हें हम बनाते हैं मंत्री-डंडे मारते हैं उन्हीं के संतरी

बा अदब, बा मुलाहिजा, होशियार फला-फला राज्य के सरकार श्री-श्री फला-फला मंत्री जी पधार रहे हैं, जल्द से जल्द सारे रास्ते खाली कर दिए जाएं, किसी ने भी रास्ते में आने की गुस्ताखी की तो उसके सिर पर मंत्री जी के संतरी के डंडे पड़ेंगे बेभाव पड़ सकते हैं।
आज अपने देश में इस तरह के वाक्ये आम हो गए हैं। अब भले यह बात अलग है कि ऐसी कोई मुनादी नहीं की जाती है कि फला-फला मंत्री आ रहे हैं लेकिन जब भी किसी रास्ते से किसी वीआईपी का काफिला गुजरता है तो उस रास्ते से गुजरने वालों का हश्र क्या होता है, यह बात सब जानते हैं। कहने को तो अपना देश एक लोकतांत्रिक देश है लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या वास्तव में हमारे देश में लोकतंत्र यानी जनता का राज है। कम से कम हमें तो ऐसा कदापि नहीं लगता है कि अपने देश में जनता का राज है। अरे भई अगर वास्तव में जनता का राज रहता है फिर जनता पर ही कदम-कदम पर डंडे क्यों चलते और वो भी ऐसे लोगों के डंडे जिनको डंडे चलाने के मुकाम तक पहुंचाने का काम जनता ही करती है। जिस जनता के पास पांच साल में एक दिन भिखारी बनकर वोट मांगने के लिए मंत्री और नेता जाते हैं उसी जनता को कुर्सी मिलने के बाद सब कीड़े-मकोड़ों से ज्यादा कुछ नहीं समझते हैं। आज अपने देश का ऐसा कोई शहर नहीं होगा जहां पर किसी वीआईपी के आने के बाद वहां की जनता को परेशानी नहीं होती है। आज जबकि पूरे देश में चुनावी बयार बह रही है और हर राज्य में वीआईपी की आमद बढ़ गई है तो ऐसे में सभी शहरों में आम जन का जीना भी मुश्किल हो गया है। एक तरफ जनाब वीवीआईपी का कारवां आ रहा है इसलिए सारे रास्ते बंद कर दिए गए हैं। अब जब कि सारे रास्ते बंद है तो किसी को स्कूल, दफ्तर, अस्पताल या कहीं भी जाना है तो उसके लिए कोई रास्ता तब तक नहीं है जब तक वीआईपी का काफिला नहीं गुजर जाता है। अगर किसी को समय पर कहीं जाने का भूत सवार है तो उनके भूत को उतारने के लिए जनता के पैसों से वेतन लेने वाली पुलिस बैठी है। किसी ने कहीं से निकलने की हिमाकत की नहीं की पड़ गए बेभाव के डंडे। आम जनों की मुश्किलें उस समय और बढ़ जाती हैं जब किसी भी शहर में कोई ऐसे वीवीआईपी आ जाते हैं जिनको जेड प्लस सुरक्षा मिली हुई हैं। इनके आने-जाने वाले इन सभी रास्तों को कम से कम 30 मिनट से एक घंटे पहले बंद कर दिया जाता है। इन रास्तों के बंद होने के बाद जो जाम लगता है उस जाम को आम होने में फिर पूरा दिन लग जाता है। शायद ही अपने देश का कोई ऐसा शहर होगा जहां के रहवासी यह दुआ न करते हों कि कभी उनके शहर में कोई ऐसा वीवीआईपी आए ही मत ताकि उनको परेशानियों का सामना करना पड़े। ऐसे वीवीआईपी के सामने तो मीडिया वाले भी पानी भरते हैं। अगर जेड़ प्लस सुरक्षा वाले वीवीआईपी आए हैं तो मीडिया वालों की भी शामत आ जाती है। लेकिन वे भी क्या कर पाते हैं अखबार के किसी कोने में एक छोटी सी खबर लग जाती है कि मीडिया वालों को भी परेशानी का सामना करना पड़ा। लेकिन इस परेशानी से मुक्ति दिलाने की पहल किसी ने नहीं की। वैसे कोई पहल कर भी नहीं सकता है, किस में इतना दम है कि इन कुर्सी वालों के खिलाफ बोले। इन कुर्सी वालों के खिलाफ बोलने के लिए नहीं, करने के लिए एक दिन जरूर रहता है औैर वो दिन होता है मतदान का। लेकिन इस एक दिन की ताकत को भी अपने देश की जनता आज तक नहीं पहचान पाई है। काश हम इस बात को समझ पाते कि यह एक दिन हमारे लिए कितने महत्व का होता है तो इस देश की पूरी काया बदल जाती। लेकिन इसका क्या किया जाए कि इस एक दिन को भी बिकने से कोई रोक नहीं पाता है। कुर्सी के भूखे लोग इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि अपने देश की आधी से ज्यादा आबादी भूखी और नंगी है और ऐसी भूखी-नंगी जनता को खरीदना कौन सी बड़ी बात है। जिस मतदान को महादान और सबसे शक्तिशाली माना जाता है, वह महज एक चेपटी यानी शराब की छोटी सी बोतल में बिक जाता है। अपने देश का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं होगा जहां पर मतदान की रात को शराब, कपड़े, पैसे और न जाने क्या-क्या नहीं बांटे जाते हैं रात के अंधेरे में। रात के अंधेरे में यह सब बंटने के बाद सुबह को नेता जी की कुर्सी तय हो जाती है। और फिर बन जाती है उनकी सरकार जिनमें ऐसा सब करने का दम रहता है। भले आज सभी राजनैतिक पार्टियां ईमानदारी से चुनाव जीतने का दावा करती हैं, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है यह बात सब जानते हैं। हम तो बस यही चाहते हैं कि इस देश की जनता को अपने मत के महत्व को समझना जरूरी है, अगर इसको नहीं समझा गया तो मंत्रियों के संतरियों से हम सब डंडे खाते रहेंगे। इस देश में जब तक वीआईपी और वीवीआईपी को सुरक्षा घेरे में रखे जाते रहेंगे आम जनता पर डंडे चलते रहेंगे। हमारे कहने का मकसद यह कदापि नहीं है कि किसी को सुरक्षा देना गलत है, लेकिन सुरक्षा के नाम पर आम-जनों को परेशान करना तो बंद करना चाहिए। सोचने वाली बात यह है कि आखिर इतनी ज्यादा सुरक्षा की जरूरत भारतीय मंत्रियों और नेताओं को क्यों पड़ती है। क्या बाहर के मुल्कों के मंत्री और नेता आतंकी निशाने पर नहीं रहते हैं। सुरक्षा उनकी भी की जाती है, लेकिन भारत में जैसी सुरक्षा की जाती है उससे तो जनता को भगवान ही बचा सकते हैं। यह बात भी सत्य है कि जितनी पैसा पानी की तरह भारत में वीआईपी की सुरक्षा में बहाया जाता है, उतना और किसी देश में नहीं बहाया जाता। देखा जाए तो आम आदमी के खून-पसीने की कमाई को वीआईपी की सुरक्षा में ऐसे फूंका जाता है मानो पैसे न होकर रद्दी के टुकड़े हों।

11 टिप्पणियाँ:

guru बुध अप्रैल 15, 10:31:00 am 2009  

गजब की हिम्मत दिखाई आपने

बेनामी,  बुध अप्रैल 15, 10:35:00 am 2009  

अरे भाई इस देश के नेता सुधर जाते तो अपना देश फिर से सोने की चिडिय़ा नहीं बन जाता। आप सही फरमा रहे हैं कि आज देश के हर शहर का नागरिक इन वीवीआई की आमद से परेशान और खफा है, लेकिन वह कर भी क्या सकता है।

admin बुध अप्रैल 15, 11:18:00 am 2009  

जब तक हम नहीं चेतेंगे, यही क्रम चलता रहेगा मेरे भाई।

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तस्‍लीम
साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

अनिल कान्त बुध अप्रैल 15, 07:05:00 pm 2009  

हम तो आप ही जैसे हैं .....बिलकुल गरीब और आम आदमी ....ऐसा कहीं सुना था ....नेता ही होगा

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

pallavi trivedi बुध अप्रैल 15, 07:48:00 pm 2009  

सहमत हूँ आपसे....वी.आई.पी. विजिट्स के दौरान वाकई जनता को बहुत तकलीफ होती है! पर किया कुछ नहीं जा सकता! ऐसा ही चलता रहेगा!

Anil Pusadkar गुरु अप्रैल 16, 12:34:00 am 2009  

इसका विरोध जब तक़ नही होगा तब तक़ ये सिलसिला चलता रहेगा।जनता को एक न एक दिन सामने आना ही पड़ेगा।

ghughutibasuti गुरु अप्रैल 16, 01:14:00 am 2009  

एक उपाय है पक्षियों को नेता चुन लो। उड़कर यहाँ वहाँ जाएँगे तो रास्ते जाम नही होंगे। या फिर नेताओं के लिए अलग से एक नगर बसा दिया जाए। एक दूसरे का ।रास्ता ही जाम करते रहेंगे, हम बच जाएँगे।
घुघूती बासूती

बेनामी,  गुरु अप्रैल 16, 09:37:00 am 2009  

नेताओ को सबक सिखाना बहुत जरुरी है मित्र, हम आपकी बातों से सहमत हैं

anu गुरु अप्रैल 16, 09:41:00 am 2009  

अपने मत का महत्त्व समझना होगा तभी नेताओं की मनमर्जी से मिलेगी मुक्ति

rajesh patel गुरु अप्रैल 16, 09:50:00 am 2009  

अनिल जी की बातों से हम भी सहमत हैं, जनता के सामने आये बिना कुछ होने वाला नहीं है

guru गुरु अप्रैल 16, 05:14:00 pm 2009  

पक्षियों को नेता चुनने की बात करने वाली बासूती जी को लगता है कि इस देश से कोई सरोकार नहीं है, वरना वह ऐसी बात कभी नहीं करतीं। राजकुमार जी इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश के नेता कैसे हैं यह सबको पता रहता है, फिर भी कोई कैसे नेताओं के पक्ष में बोल सकता है यह सोचने वाली बात है। नेताओं के पक्ष में बोलने का मतलब है कि आप अपने देश का भला कभी नहीं चाहते हैं।

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