भगवान श्रीराम और बुद्ध का भी सिरपुर से रहा है नाता
छत्तीसगढ़ से पर्यटन और पुरातत्व स्थल सिरपुर में चल रही खुदाई में नए-नए राज खुल रहे हैं। अभी शाही स्नानगृह के राज की बात सामने आई है। सिरपुर के साथ एक बात यह भी है कि सिरपुर से भगवान श्रीराम और बुद्ध का भी गहरा नाता रहा है। भगवान श्रीराम जहां वनवास के समय यहां के होकर गए थे, वहीं बुद्ध भी यहां आए थे। यही नहीं एक समय में सिरपुर में ही देश का प्रमुख चौराहा हुआ करता था। इस चौरहे से होकर ही कोई भी देश में उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम की तरफ जाता था। इस बात के प्रमाण खुदाई में मिले हैं।
पुरातत्व महत्व के सिरपुर में इन दिनों फिर से खुदाई का काम चल रहा है। इसी खुदाई में नए-नए तथ्य सामने आ रहे हैं उससे एक बार फिर से इस बात का पता चला है कि भगवान श्रीराम को जब 14 साल का वनवास मिला था तब उनको सिरपुर से होकर ही दक्षिण की तरफ जाना पड़ा था। श्रीराम के छत्तीसगढ़ के सिरपुर से होकर जाने के और कई प्रमाण पहले से भी छत्तीसगढ़ में मौजूद हैं। आरंग में अहिल्या का स्थान होने के साथ तुरतुरिया में बाल्मीकि का आश्रम है। इसी के साथ दंडकारण्य जाने का सबसे बेहतर रास्ता तो सिरपुर से होकर ही जाता था। श्रीराम ने शबरी से जो बैर खाए थे तो उनकी मुलाकात शबरी से सिरपुर के आस-पास के जंगलों में ही हुई थी।
शबरी जहां रहती थीं उस नगर को शबरीपुर कहा जाता था। शबरीपुर का उल्लेख अलेक्जेंडर कनिंघम की उस पुस्तक में भी मिलता है जो उन्होंने 1872 में लिखी थी। इस पुस्तक में शबरीपुर के साथ इस बात का भी उल्लेख है। पुरातत्व के जानकार बताते हैं कि सिरपुर में ही देश का प्रमुख चौराहा था। इस चौराहे से गुजरे बिना कोई भी दूसरी दिशा में जा ही नहीं सकता था। जहां किसी को दक्षिण की और जाना होता था तो उसको इलाहाबाद, सतना, अमरकंटक के बाद सिरपुर होकर ही दक्षिण की और जाना पड़ता था। श्रीराम भी दक्षिण जाने के लिए इस चौराहे से होकर गए थे। इस मार्ग का उपयोग उस समय ज्यादा इसलिए भी होता था क्योंकि यही एक ऐसा मार्ग था जिस मार्ग में नदियां कम पड़ती थी।
सिरपुर की खुदाई में जो स्तूप मिले हैं उन स्तूपों का सीधा संबंध भगवान बुद्ध से है। इन स्तूपों के संबंध में बताया जाता है कि ये स्तूप सांची के स्तूपों से अलग हैं और पत्थर के बने हैं। पत्थरों के स्तूपों के बारे में कहा जाता है कि ऐसे स्तूप तो बुद्ध ही बनाते थे। पुरातत्व विभाग के अधिकारी बताते हैं कि बौद्ध ग्रंथों में इस बात का उल्लेख है कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी में भगवान बुद्ध सिरपुर आए थे। यहां के स्तूप उस समय के हैं।
10 टिप्पणियाँ:
छत्तीसगढ़ का तो रामायण और महाभारत से काफी करीबी रिश्ता है। राज्य में भगवान श्रीराम से जुड़ी कई बातों के साथ महाभारत के पांडवों से जुड़ी कई बातें भी हैं। छत्तीसगढ़ की महान धरा इसीलिए इतनी शांत है क्योंकि यहां का इतिहास भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम राम के साथ कई साधु संतो से जुड़ा है।
सिरपुर का इतिहास तो ऐसे-ऐसे ही आश्चर्यों से भरा पड़ा है। इसकी गहराई में जितना जाएंगे उतने ही राज सामने आएंगे। ऐसी जानकारी देते रहे। बधाई
आपने यह एक नई जानकारी दी है कि सिरपुर में देश का प्रमुख चौराहा था। जानकारी देने के लिए धन्यवाद
धन्य है छत्तीसगढ़ का वह माटी जहां पर भगवान श्रीराम और भगवान बुद्ध के पैर पड़े, ऐसी माटी को हम प्रणाम करते हैं गुरु
सिरपुर के बारे में लगातार जानकारी देने के लिए आपका आभार, उम्मीद है छत्तीसगढ़ से जुड़ी ऐसी और जानकारी आपके ब्लाक में पढऩे को मिलेगी।
राजेश कुमार भोपाल
अच्छी अच्छी जानकारी दे रहे हैं. एक बात कहना चाहूँगा. पौराणिक कथाओं के लिए पुरातात्त्विक प्रमाण मिलना बहुत कठिन है. बस्तर के कोटा नगर से होकर भद्राचलम जाया जाता है. वहां भी श्री रामचन्द्रजी के प्रवास की अनेकों कथाएँ हैं. एक पर्णशाला है. गोदावरी नदी है. आदि. चित्रकूट तो कई हैं और हर उस जगह को पौराणिक कथाओं से जोड़ने की स्थानीय परम्पराएँ रही हैं. आपने सबसे बड़े चौराहे की बात की. (व्यापार मार्ग). यही सब बातें बिलासपुर के पास के मल्हार से भी जुडी हैं. सिरपुर से जो भी पुरा सामग्री मिली थी वे सब ५ वीं सदी के बाद की रहीं. जब की मल्हार से जो सामग्री मिली हैं वे ईसा पूर्व से हैं.छत्तीसगढ़ (दक्षिण कोशल) की राजधानी होने का श्रेय मल्हार को भी है और सिरपुर को भी.
तुरतुरिया को अम्बरीश ऋषि का आश्रम माना गया है. इसके लिए भी कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं.
देश के हर प्रान्त में एक वाल्मिकी आश्रम, और पाण्डवों के वनवास का स्थान मिलेगा।
एक अनुरोध को मान देने के लिए आपका आभार।
आपके प्रयासों से, अच्छी जानकारी मिल रही है सिरपुर के बारे में
निस्संदेह छत्तीसगढ़ एक अत्यन्त प्राचीन क्षेत्र है और भगवान श्रीरामचन्द्र जी अपने वनवास के समय यहाँ के अनेकों स्थानों से होकर ही गये थे। छत्तीसगढ़ से सम्बन्धित मेरे ये पुराने पोस्ट भी आपको पसंद आ सकते हैं
छत्तीसगढ़ - एक अत्यन्त प्राचीन क्षेत्रछत्तीसगढ़ - एक अत्यन्त प्राचीन क्षेत्र (2)छत्तीसगढ़ नाम कबसे?
श्रीराम ने शबरी से जो बैर खाए थे तो उनकी मुलाकात शबरी से सिरपुर के आस-पास के जंगलों में ही हुई थी।
waah! yah to ek dam nayi jaankari hai.dhnywaad
एक टिप्पणी भेजें