26 सौ साल पुराना शाही स्नानगृह मिला छत्तीसगढ़ में
छत्तीसगढ़ में सिरपुर एक ऐसा स्थान है जिसको मंदिरों की नगरी कहा जाता है। यहां पर कोई ऐसा घर नहीं होगा जहां एक मंदिर न हो। इसी के साथ सिरपुर का नाम आज देश-विदेश में पुरातात्विक संपदा के लिए भी जाना जाता है। यहां से लगातार पुरातात्विक संपदा मिल रही है। अब यहां पर एक 26 सौ साल पुराना शाही स्नानगृह मिला है जिसको पांडुवंशी काल का कहा जा रहा है। इस शाही स्नानगृह का उपयोग उस जमाने की रानियां किया करती थीं।
अपने छत्तीसगढ़ के सिरपुर में लगातार ऐसी-ऐसी पुरानी चीजें खुदाई में मिल रही हैं जिससे पुरातत्व विभाग के लोग भी आश्चर्य में हैं। सिरपुर आज पुरातात्विक संपदा के लिए लगातार लोकप्रिय हो रहा है। हाल के दिनों में काफी कुछ यहां मिला है। अब यहां पर एक दिन पहले ही एक शाही स्नानगृह मिलने की बात सामने आई है। इस शाही स्नानगृह के बारे में बताया जा रहा है कि पक्की ईटों से बने इस स्नानगृह में काफी नक्काशी की गई है। इस स्नानगृह तक पहुंचने के लिए तीन सीढिय़ां भी बनीं हुईं हैं। इन सीढिय़ों की लंबाई और चौड़ाई 80-80 सेंटीमीटर है। स्नानगृह में चारों तरफ पत्थर के स्तंभलगे हुए हैं। इन स्तंभों से ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इसके ऊपर छप्पर रहा होगा ताकि छाया हो सके।
इस स्नानगृह के बारे में ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि यह 26 सौ साल पुराने पांडुवंशी काल का है। इस काल में इसका उपयोग रानियां शाही स्नान करने के लिए करती थीं। वैसे भी शाही शासनकाल में रानियों के लिए हर शासक ने ऐसे स्नानगृह बनवाएँ हैं जिसका उल्लेख इतिहास में मिलता है। पुराने जमाने में राजा-महाराजाओं में शाही स्नान का अलग ही महत्व हुआ करता था। खुदाई में इस स्नानगृह के अलावा घरों के उपयोग में आने वाली वस्तुएं मिली हैं जो कि पत्थरों की बनीं हैं। इन वस्तुओं में आटा-दाल दलने की चक्की, सिलबट्टे, चटनी बनाने के लिए पत्थर के बने छोटे-छोटे खरल शामिल हैं। खुदाई में जो कमरे मिले हैं उन कमरों में दो ओखलियां लगीं हुईं हैं। शाही स्नानगृह के मिलने से पहले पांच कुंड मिल चुके हैं। इन कुंडों का उपयोग अनाज रखने के लिए किया जाता था। अब जो मिला है वह शाही स्नानगृह है।
सिरपुर जो कि वास्तव में राष्ट्रीय धरोहर है उसके साथ एक विडंबना यह है कि इस धरोहर की रक्षा नहीं हो पा रही है। सिरपुर में हजारों साल पुरानी मूर्तियों हैं जो ऐसे ही पड़ी हुई हैं। सिरपुर में सुरक्षा का कोई इंतजाम न होने के कारण जहां पुरातात्विक संपदा के नष्ट होने का खतरा है, वहीं मूर्तियों के चोरी होने का भी अंदेशा है। एक बार सरकार का ध्यान इस तरफ दिलाने के लिए एक पत्रकार ने वहां से एक मूर्ति उठा ली थी, यह बताने के लिए की सुरक्षा के अभाव में हजारों साल पुरानी कीमती मूर्तियों को कोई भी चुरा सकता है, लेकिन इसके बाद भी सरकार ने आज तक इस दिशा में ध्यान नहीं दिया है।
बहरहाल सिरपुर एक ऐसा स्थान है जहां जाने के बाद किसी को निराशा नहीं होती है खासकर उनको तो कभी नहीं होती है जिनकी रूचि पुरातात्विक संपदा में है। सिरपुर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के महज 70 किलो मीटर की दूरी पर है, वहां तक पहुंचने के लिए रायपुर के आगे बस मिल जाती है। रायपुर तक आने के लिए देश के हर छोटे-बड़े शहर से ट्रेन मिल जाती है। वैसे बड़े शहरों से हवाई यात्रा की भी सुविधा है। कोई भी यहां आकर पुरातात्विक संपदा को देख सकता है। सिरपुर में रहने के लिए पर्यटन विभाग ने मोटल भी बनवाया है। वहां लोकनिर्माण विभाग का विश्राम गृह भी है।
9 टिप्पणियाँ:
छत्तीसगढ़ की जय हो गुरु
सिरपुर तो अपने राज्य ही नहीं देश की शान है। इस राष्ट्रीय धरोहर की रक्षा करने का काम सरकार को करना चाहिए। अगर इसकी रक्षा नहीं की गई तो सारी संपदा नष्ट हो जाएगी
भाजपा शासन में यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वह किसी राष्ट्रीय धरोहर की रक्षा करेगी।
चोरी का अंदेशा नही बल्कि चोरियां हो चुकी है राजकुमार।एकलौते लक्ष्मण मंदिर से मुर्ति चोरी हो गई थी।बरामद होने के बाद अब वंहा ताला लगा दिया गया है।अच्छा लिखा,बहुत-बहुत बधाई।पैराग्राफ़ अगर बना सको तो अच्छा रहेगा।
बहुत अच्छी जानकारी अच्छे से प्रस्तुत किया आपने. बधाई हो. २६ सौ को १४ सौ कर लें.
छत्तीसगढ़ में रहते हुए कभी सिरपुर जाने का मौका नहीं मिला। अब जबकि २६ सौ साल पुराने शाही स्नानगृह के मिलने की जानकारी आपने दी है तो जाने का मन हो रहा है। जैसे ही मौका मिलेगा मैं जरूर वहां जाऊंगी। जानकारी देने के लिए धन्यवाद
सिरपुर तो रही ही राजाओं की नगरी है, ऐसे में वहां जैसे-जैसे खुदाई होगी और भी कई अजूबे सामने आएंगे। एक अच्छी जानकारी देने के लिए आभार
श्री सुब्रमणियम जी, सादर अभिवादन
आपने 26 सौ साल को 14 सौ साल करने की सलाह दी है। हम जानना चाहते हैं कि क्या पांडुवंशी काल 14 सौ साल पुराना है। अगर ऐसा है तो जरूर मैटर में सुधार जरूरी है। वैसे हमने जो जानकारी दी है वह पुरातत्व विभाग के एक अधिकारी से मिली जानकारी के आधार पर है। इस अधिकारी ने ही यह जानकारी दी है कि यह शाही स्नानगृह 26 सौ साल पुराना है जिसके पांडुवंशी काल के होने की संभावना है। कृपया मार्गदर्शन दें कि पांडुवंशी काल कितना पुराना है।
हमने आपकी शंकाओं का समाधा करते हुए एक टिपण्णी की थी. न मालूम क्यों वह यहाँ दिख नहीं रही है. पुनः कहना चाहूँगा की पंडू वंश का आरम्भ ६ सदी की है जब उनके पहले शासक उदयन ने सिरपुर को अपनी राजस्धानी बनायीं थी. सन ५९५ में एक महँ प्रतापी रजा महाशिव गुप्त बालार्जुन हुए. उनके समय में ही सबसे अधिक निर्माण कार्य हुए थे इसलिए उनके काल को छत्तीसगढ़ का स्वर्णयुग भी कहा गया है. लक्ष्मण मंदिर जो वास्तव में विष्णु मंदिर था का निर्माण इसी महाशिव गुप्त बालार्जुन की माँ वसाटा ने करवाया था.
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