प्रतिबंधित दवाओं का डंप सेंटर भारत
प्रतिबंधित दवाओं के सबसे बड़े डंप सेंटर के रूप में भारत का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय रैकेट कर रहा है। अज्ञानता के कारण छत्तीसगढ़ सहित देश के ज्यादातर राज्यों में से दवाएं बेची जा रही हैं। इन दवाओं के नुकसान से अंजान लोग इनका उपयोग कर रहे हैं। डॉक्टर दवाओं के बारे में जानकारी होने के बाद भी दवाओं को बेधड़क प्रलोभन के मोह में लिखकर मरीजों को दे देते हैं। डॉक्टरों के साथ मेडिकल स्टोर संचालक भी इस बात से इंकार नहीं करते हैं कि प्रतिबंधित दवाएं बेची जा रही हैं।
छत्तीसगढ़ में करीब एक दर्जन ऐसी प्रतिबंधित दवाओं के खुले आम बेचे जाने की खबर है जिनके बारे में कहा जाता है कि ये दवाएं विदेशों में ही नहीं बल्कि भारत में भी प्रतिबंधित हैं। प्रतिबंधित दवाओं के नुकसान से बेखबर मरीज लगातार ऐसी दवाओं का सेवन करके और ज्यादा बीमार होते जा रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो जो दवाएं विदेशों में प्रतिबंधित कर दी जाती हैं, उन दवाओं को भारत में लाकर डंप कर दिया जाता है। भारत के बाजार को सबसे बड़ा डंप सेंटर माना जाता है। यह सब इसलिए है क्योंकि अपने देश के लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक नहीं हैं। अज्ञानता के कारण डॉक्टर जो लिखकर दे देते हैं, उसे मरीज आंख बंद करके ले लेते हैं। इन सब बातों का ही फायदा डॉक्टर उठाते हैं।
डॉक्टर प्रलोभन में
छत्तीसगढ़ में जो डॉक्टर प्रतिबंधित दवाएं लिखकर मरीजों को देते हैं, उनके बारे में कहा जाता है कि उनको दवा कंपनी के एमआर प्रलोभन देकर ऐसी दवाएं लिखने के लिए कहते हैं। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र के डॉक्टरों को तो जानकारी ही नहीं होती है कि कौन सी दवाएं प्रतिबंधित हैं। मेडिकल स्टोर के संचालक भी मानते हैं कि प्रतिबंधित दवाएं बेची जा रही है।
सेक्रीन को 50 साल में मिली मान्यता
वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. ए. फरिश्ता कहते हैं कि विश्व में उन्हीं दवाओं का प्रयोग किया जाता है जिन दवाओं को यूएसएफडीए से मान्यता मिलती है। इसके मान्यता के नियम इतने कड़े हैं कि हर दवा को आसानी से मान्यता नहीं मिलती है। वे बताते हैं कि मधुमेय के प्रयोग में आने वाले सेक्रीन को मान्यता मिलने में 50 साल का समय लग गया था।
मेडिकल कौंसिल ध्यान दे
डॉ. फरिश्ता का मानना है कि भारत में बेची जा रही प्रतिबंधित दवाओं के लिए मेडिकल कौंसिल के साथ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को गंभीरता दिखानी चाहिए। सतत निगरानी से ही भारत को प्रतिबंधित दवाओं से मुक्त किया जा सकता है। वे कहते हैं छत्तीसगढ़ में अज्ञानता ज्यादा है ऐसे में गांव में काम करने वाले डॉक्टरों, खासकर तीन साल का कोर्स करने वालों के लिए हर तीन माह में रिफे्रशर कोर्स होना चाहिए, ताकि उनको जानकारी हो सके कि विश्व में क्या नया हो रहा है। प्रतिबंधित दवाओं की पर्ची लिखने वालों के साथ ऐसे मेडिकल स्टोर का लायसेंस भी रद्द होना चाहिए।
प्रतिबंधित दवाएं और नुकसान
एनालजीन- बोन मेरो के लिए घातक
सीजाप्राइड- दिल की धड़कन के लिए घातक
ड्रोपेरीडोल- दिल की धड़कन के लिए घातक
फ्यूराजोलीडोल- केंसर हो सकता है
नीमेसुलाइड- लीवर के लिए घातक
नाइड्रोफ्यूराजोन-केंसर हो सकता है
फेनाल्फेलिन- केंसर हो सकता है
फेनाइलफ्रोपेनोलेमाइनल- मिरगी का खतरा
आक्सीफेनब्यूटाजोन- ब्रोन मेरो के लिए घातक
पिपराजीन - नाडी तंत्र के लिए खतरा
क्विनिडोक्लोर- लकवे का खतरा
1 टिप्पणियाँ:
बिलकुल सही कहा। जिन देशों में लोग अधिकतर दवाएँ बिना किसी चिकित्सक के प्रेस्क्रिप्शन के ही लेते हों और जहाँ केमिस्ट स्वयं ही दवाएँ सुझाते और बेचते हों वहाँ डम्पिंग की संभावना अधिक है। आश्चर्य तो यह है कि सरकार इन्हें प्रतिबंधित भी नहीं करती।
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