अब हम नहीं रहे बेकार
करीब एक माह की कड़ी मशक्कत के बाद अंतत: हमारी बेकारी दूर हो गई और अब हम बेकार नहीं रह गए हैं। हमारे कहने का मतलब यह है कि हमने अपने लिए फिर से एक कार ले ली है। यह कार हमारे बजट में आई है। हमने एक वैगनआर एक लाख पचास हजार रुपए में ली है। यह कार ठीक-ठाक है।
पिछले माह की पांच तारीख को हमने मारूति 800 को बेचा था। इसको ेबेचने के बाद हम लगातार दूसरी कार की तलाश करते रहे, पर कोई कार नहीं मिल रही थी। हमने कार के लिए भिलाई, दुर्ग और राजनांदगांव के भी चक्कर कांटे, धमतरी के भी कुछ मित्रों से कहा, पर बात नहीं बनी। लगातार कई कारों को देख रहे थे, पर कोई जम नहीं रही थी। अंतत: ठीक पांच फरवरी के ही दिन हमें एक वैगनआर मिल गई। इसको हमने फाइनल कर लिया, लेकिन अगले दिन शनिवार था। सभी का ऐसा मानना है कि शनिवार के दिन लोहे का लेना शुभ नहीं होता है। ऐसे में हम भारी कशमकश में रहे कि क्या किया जाए शनिवार को कार घर लाए या नहीं। शनिवार को ही हमारी शादी की सालगिरह भी थी, हमारा मन तो था कि शनिवार को ही कार ले आएं। लेकिन इसके लिए हमारी श्रीमती अनिता ग्वालानी भी तैयार नहीं थीं। फिर अंत में घर के साथ कुछ मित्रों से विचार-विमर्श करके फैसला किया गया कि रविवार या फिर सोमवार को कार लाई जाए। अब कार घर में आ चुकी है और बेकार नहीं रहे हैं।
6 टिप्पणियाँ:
बहुत बधाई बेकार से सकार होने के लिए.
बधाई आपको बेकारी से मुक्ति की :-)
बी एस पाबला
बहुत बहुत बधाई.....
बहुत बहुत बधाई जी आपको.
रामराम.
बहुत बहुत बधाई!
महावीर शर्मा
badhai ho bhai sahab, bekar ko koi car mil hi gai aakhir.....
shubhkamnayein...
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