सरकार की सायकल से विधानसभा जाने की नौटंकी
वाह रे मंत्री और वाह रे नेता। ये जो भी नौटंकी करें कम नहीं होती है। अब हमारे छत्तीसगढ़ की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के विधायकों ने विधानसभा के पहले दिन मुख्यमंत्री सहित सभी मंत्रियो और विधायकों के साथ महंगाई के विरोध में विधानसभा तक सायकल से गए। क्या इनके एक दिन विधानसभा तक सायकल से जाने पर महंगाई पर लगाम लग जाएगी। इनके वाहनों से विधानसभा तक जाने में जो पेट्रोल लगता उससे कहीं ज्यादा कीमत की तो इनके लिए सायकलें ही खरीद ली गईं। ऐसे में इसे नौटंकी से ज्यादा क्या कहा जा सकता है। अगर प्रदेश की सरकार वास्तव में महंगाई के प्रति इतनी ही ज्यादा चिंतित है तो वह राज्य में जमाखोरी पर क्यों शिकंजा नहीं कसती है।
अपने देश की राजनीतिक पार्टियों को बस एक-दूसरे की टांग खींचने के अलावा कोई काम आता नहीं है। जब केन्द्र में कांग्रेस गठबधंन की सरकार है तो इस सरकार को ही महंगाई का दोषी मानते हुए प्रदेश की भाजपा सरकार ने जहां अपने समर्थन में एक दिन का छत्तीसगढ़ बंद करवा दिया, बिना इस बात की चिंता किए कि जिनको रोज कमाकर अपना घर चलाना पड़ता, वे क्या करेंगे। वहीं विधानसभा सत्र के पहले दिन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ सभी मंत्री और विधायकों का काफिला सुरक्षा के तामझाम के साथ सायकलों पर विधानसभा गया। प्रदेश सरकार के नुमाइंदों के क्या एक दिन सायकल से विधानसभा जाने से महंगाई पर अंकुश लग जाएगा या फिर फिजलूखर्जी बंद हो जाएगी।
अगर वास्तव में भाजपा सरकार और विधायकों को इतनी ही चिंता है तो क्यों कर मंत्रियों के काफिलों को छोटा नहीं किया जाता। क्यों इतना बड़ा ताम-झाम लेकर चलते हैं मंत्री? अगर मंत्री ताम-झाम लेकर नहीं चलेंगे तो इनको मंत्री कौन कहेगा। वैसे भी आज तक किसी सरकार और उनके मंत्रियों को जनता की परवाह नहीं रही है। जनता तो बेचारी निरीह है, उसके साथ जैसा चाहे खिलवाड़ कर लो।
महंगाई के विरोध में विधानसभा तक सायकल से जाने के लिए अब पुरानी सायकलें तो लाईं नहीं जातीं, ऐसे में 60 से ज्यादा सायकलों की खरीदी की गई। अब एक सायकल कम से कम तीन से साढ़े हजार की तो आती ही है, ऐसे में सायकलों पर ही करीब दो लाख रुपए फूंक दिए गए। इतने पैसों से न जाने कितने गरीबों के घर के चूल्हे जल सकते थे। लेकिन सत्ता में बैठे लोगों को भला किसी गरीब से क्या लेना-देना उनको तो बस वह काम करना है जिससे उनकी मीडिया में वाह-वाही हो सके। अब अपने मीडिया को भी चाहिए ऐेसा मसाला। अब भला अपने मुख्यमंत्री कितनी बार सायकल की सवारी करते हैं। जब मुख्यमंत्री सायकल पर चलेंगे तो मीडिया में खबर तो बनेगी ही। नेता यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि जनता के साथ मीडिया को कैसे बेवकूफ बनाया जाता है। वैसे मीडिया के बारे में तो यह नहीं कहा जा सकता है कि उसे बेवकूफ बनाया जा सकता है, क्योंकि मीडिया भी तो वही लिखता है जो सरकार चाहती है, अब वो दिन नहीं रहे कि मीडिया सरकार के खिलाफ जाकर अखबार निकाल ले। आज हर अखबार सरकारी विज्ञापनों की खैरात पर चलता है, ऐसे में सरकार से पंगा लेने की हिम्मत कौन दिखा सकता है।
जब सरकार सायकल पर विधानसभा गई तो दूसरे दिन सारे अखबारों में सरकार सायकल, सायकल पर सरकार से सारे अखबारों के पहले पन्ने रंगे हुए थे। हो भी क्यों न। सरकार है तो अखबार है।
5 टिप्पणियाँ:
एक संपूर्ण नौटंकी!!
द ग्रेट इन्डियन तमाशा.
भाई , आप तो एक काम करिये...ये जो ६० साईकिलें खरीदी गई उनमें से एक साईकिल ताऊ को दिलवादो...सबका भला तो नही हो सकता बस हमारा करवा दो..पैदल चलने की बजाये अब साईकिल पर चला करेंगे.:)
वैसे भी भगवान बुद्ध ने कहा है कि तुम खुद सुखी हो जावो..तुम्हारे आस पास सब सुखी हो जायेंगे..तो ताऊ रमण सिंह यही तो कर रहें है...चकाचक माल मत्ता खींच के साईकिल चाला ली..तो भर गया ना सब जनता का पेट..
आप लोग समझते क्यूं नही हैं? सच्चे बुद्ध की देशनाओं को मानने वाले ताऊ हैं ये सब.
रामराम.
राजकुमार जी,
एक बात तो सिद्ध हो गयी कि ख्यालात मिलते हों तो विचार {ब्लाग} भी एक जैसे होंगें। :)
देखियेगा, स्वागत है।
हा हा हा राज भाई ये कारनामा तो हमारे लालू जी भी कर चुके हैं और कमाल ये रहा कि आगे आगे वे थे और पीछे उनका लाव लश्कर और काफ़िला , और बाद में कहा देखा इसे कहते हैं ईंधन की बचत , अब उन्हें कौन समझाता कि पीछे चलने वाली गाडियां क्या पानी पर चल रही थीं
अजय कुमार झा
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