मुझे तो चंदा से भी नफरत हो गई है
एक दिन प्रेस क्लब में बैठे थे कि अपने अनिल पुसदकर जी ने एक सिंधी भाई का किस्सा सुनाया कि उनको कैसे चंदा से भी नफरत हो गई थी।
बकौल अनिल जी, उनके घर के पास में एक सिंधी भाई रहते थे। एक दिन उनसे बात हुई तो उन्होंने बताया कि उनको तो यार उस दूर के चंदा मामा से भी नफरत हो गई है। चंदा मामा से नफरत कैसे? पूछने पर उन्होंने यह राज खोला कि कैसे उनको चंदा मामा से नफरत हो गई है।
दरसअल अपने सिंधी भाई चंदा से परेशान थे। चंदा यानी चंदा लेने आने वालों से। होली के लिए चंदा, गणेश के लिए चंदा, दुर्गा के लिए चंदा और न जाने कितने ऐेसे त्यौहार हैं जिनके लिए लोग मुंह उठाए चंदा मांगने चले आते हैं। हर माह किसी ने किसी बात के लिए लोग चंदा मांगने पहुंच जाते थे।
सिंधी भाई कहते हैं कि चंदा, चंदा सुनकर मेरे तो जहां कान पक गए हैं, वहीं अब उस दूर के चंदा से भी नफरत हो गई है।
2 टिप्पणियाँ:
ha ha ha raajkumar good one
ये भी एक लाइलाज रोग है
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