शुक्रवार, अक्टूबर 26, 2012
मंगलवार, अक्टूबर 23, 2012
क्या रमन राज तीसरी बार कायम रहेगा
अगले साल होने वाले चुनाव को लेकर अभी से अटकलों का बाजार गर्म होने लगा है। कोई कहता है कि रमन राज तीसरी बार भी कायम होगा, कोई कहता है कि अब भाजपा के दिन लद गए हैं। वैसे हमें भी लगता है कि अब रमन की हैट्रिक संभव नहीं है। भाजपा के कई नेता भी यह मानते हैं कि उनकी पार्टी की दाल अब अगले चुनाव में गलने वाली नहीं है। लेकिन रमन भक्त अब भी भरोसे के साथ यही कहते हैं कि रमन की हैट्रिक होगी। आप लोग क्या सोचते हैं, अपने विचार बताएं। अगर आपको लगता है कि रमन सरकार फिर आएगी, तो कारण जरूर बताए, अगर लगता है कि नहीं आएगी तो क्यों नहीं आएगी, इसका उल्लेख जरूर करें।
सोमवार, अप्रैल 09, 2012
सूखे में भी होगी अच्छी फसल
छत्तीसगढ़ में धान की पैदावार 70 प्रतिशत वर्षा पर आधारित होती है। धमतरी और जांजगीर-चांपा को छोड़कर राज्य में और कहीं पर सिंचाई के साधन नहीं हैं। ऐसे में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक लंबे समय से इस प्रयास में हैं कि प्रदेश के किसानों को ऐसी किस्मों का तोहफा दिया जाए जिससे उनको सूखे की स्थिति में भी भरपूर पैदावार लेने का मौका मिल सके।
मौसम की सही जानकारी बड़ी समस्या
कृषि वैज्ञानिक कहते हैं कि प्रदेश में कब सूखा पड़ेगा इससे बारे में कोई जानकारी नहीं हो पाती है। सामान्यत: सितंबर के बाद सूखा पड़ता है। अपने राज्य में मौसम विभाग इतना सक्षम नहीं है कि वह सही-सही जानकारी दे सके कि कब पानी गिरेगा और कब नहीं। सितंबर के माह के मौसम की अगर पूरी सही जानकारी मिल जाए तो सूखे से निपटा जा सकता है।
पूणिमा-दंतेश्वरी में रुचि नहीं
सूखे से निपटने के लिए प्रदेश में धान की दो किस्में पूर्णिमा और दंतेश्वरी हैं। लेकिन इन किस्मों में किसानों की रुचि इसलिए नहीं है क्योंकि इन फसलों में उत्पादन कम होता है। यही हाल नई किस्म इंदिरा बारानी का है। ये किस्में ऐसी हैं जो 105 से 110 दिनों में तैयार हो जाती हैं। लेकिन किसान इन किस्मों को लगाने से कतराते हैं। किसानों की पसंद की किस्मों में स्वर्णा, महामाया, एमटीयू 1010 और आईआर 64 हैं। इन किस्मों की फसलें 120 से 140 दिनों में तैयार होती है। इन किस्मों से पैदावार ज्यादा होती है। लेकिन जब फसलों के पकने का मुख्य समय रहता है, तभी सूखे के बारे में जानकारी हो पाती है। ऐसे में अगर सूखा हुआ तो फसल खराब हो जाती है।
रुटलेंथ बढ़ाने पर शोध
कृषि वैज्ञानिक डॉ. एसबी वेरूलकर बताते हैं कि सूखे से निपटने के लिए धान की किस्मों में रुटलेंथ बढ़ाने पर भी शोध कर रहे हैं। वे बताते हैं कि सामान्यत: रुटलेंथ 30 से 50 सेमी होता है, लेकिन इसे 50 से 70 सेमी करने पर काम चल रहा है। ऐसा होने पर फसल की जड़ें जमीन में ज्यादा अंदर तक रहेंगी तो उनको पानी की कमी नहीं होती और फसल खराब होने से बच जाएगी।
दो साल बाद मिलेगा तोहफा
श्री वेरूलकर बताते हैं कि विश्वविद्यालय में कुछ सालों से सूखे में ज्यादा उत्पादन देने वाले किस्मों पर शोध चल रहा है। करीब एक दर्जन किस्मों पर शोध कार्य हो रहा है। इनमें से दो साल के अंदर कम से कम दो किस्मों में सफलता मिल जाएगी। किस्मों में सफलता मिलने पर इनका नामांकर ण होगा और फिर इन किस्मों को किसानों को लगाने की सलाह दी जाएगी। वे कहते हैं कि एक किस्म पर शोध करने में 10 से 12 साल का समय लग जाता है।
रविवार, अप्रैल 08, 2012
प्रतिबंधित दवाओं का डंप सेंटर भारत
प्रतिबंधित दवाओं के सबसे बड़े डंप सेंटर के रूप में भारत का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय रैकेट कर रहा है। अज्ञानता के कारण छत्तीसगढ़ सहित देश के ज्यादातर राज्यों में से दवाएं बेची जा रही हैं। इन दवाओं के नुकसान से अंजान लोग इनका उपयोग कर रहे हैं। डॉक्टर दवाओं के बारे में जानकारी होने के बाद भी दवाओं को बेधड़क प्रलोभन के मोह में लिखकर मरीजों को दे देते हैं। डॉक्टरों के साथ मेडिकल स्टोर संचालक भी इस बात से इंकार नहीं करते हैं कि प्रतिबंधित दवाएं बेची जा रही हैं।
छत्तीसगढ़ में करीब एक दर्जन ऐसी प्रतिबंधित दवाओं के खुले आम बेचे जाने की खबर है जिनके बारे में कहा जाता है कि ये दवाएं विदेशों में ही नहीं बल्कि भारत में भी प्रतिबंधित हैं। प्रतिबंधित दवाओं के नुकसान से बेखबर मरीज लगातार ऐसी दवाओं का सेवन करके और ज्यादा बीमार होते जा रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो जो दवाएं विदेशों में प्रतिबंधित कर दी जाती हैं, उन दवाओं को भारत में लाकर डंप कर दिया जाता है। भारत के बाजार को सबसे बड़ा डंप सेंटर माना जाता है। यह सब इसलिए है क्योंकि अपने देश के लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक नहीं हैं। अज्ञानता के कारण डॉक्टर जो लिखकर दे देते हैं, उसे मरीज आंख बंद करके ले लेते हैं। इन सब बातों का ही फायदा डॉक्टर उठाते हैं।
डॉक्टर प्रलोभन में
छत्तीसगढ़ में जो डॉक्टर प्रतिबंधित दवाएं लिखकर मरीजों को देते हैं, उनके बारे में कहा जाता है कि उनको दवा कंपनी के एमआर प्रलोभन देकर ऐसी दवाएं लिखने के लिए कहते हैं। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र के डॉक्टरों को तो जानकारी ही नहीं होती है कि कौन सी दवाएं प्रतिबंधित हैं। मेडिकल स्टोर के संचालक भी मानते हैं कि प्रतिबंधित दवाएं बेची जा रही है।
सेक्रीन को 50 साल में मिली मान्यता
वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. ए. फरिश्ता कहते हैं कि विश्व में उन्हीं दवाओं का प्रयोग किया जाता है जिन दवाओं को यूएसएफडीए से मान्यता मिलती है। इसके मान्यता के नियम इतने कड़े हैं कि हर दवा को आसानी से मान्यता नहीं मिलती है। वे बताते हैं कि मधुमेय के प्रयोग में आने वाले सेक्रीन को मान्यता मिलने में 50 साल का समय लग गया था।
मेडिकल कौंसिल ध्यान दे
डॉ. फरिश्ता का मानना है कि भारत में बेची जा रही प्रतिबंधित दवाओं के लिए मेडिकल कौंसिल के साथ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को गंभीरता दिखानी चाहिए। सतत निगरानी से ही भारत को प्रतिबंधित दवाओं से मुक्त किया जा सकता है। वे कहते हैं छत्तीसगढ़ में अज्ञानता ज्यादा है ऐसे में गांव में काम करने वाले डॉक्टरों, खासकर तीन साल का कोर्स करने वालों के लिए हर तीन माह में रिफे्रशर कोर्स होना चाहिए, ताकि उनको जानकारी हो सके कि विश्व में क्या नया हो रहा है। प्रतिबंधित दवाओं की पर्ची लिखने वालों के साथ ऐसे मेडिकल स्टोर का लायसेंस भी रद्द होना चाहिए।
प्रतिबंधित दवाएं और नुकसान
एनालजीन- बोन मेरो के लिए घातक
सीजाप्राइड- दिल की धड़कन के लिए घातक
ड्रोपेरीडोल- दिल की धड़कन के लिए घातक
फ्यूराजोलीडोल- केंसर हो सकता है
नीमेसुलाइड- लीवर के लिए घातक
नाइड्रोफ्यूराजोन-केंसर हो सकता है
फेनाल्फेलिन- केंसर हो सकता है
फेनाइलफ्रोपेनोलेमाइनल- मिरगी का खतरा
आक्सीफेनब्यूटाजोन- ब्रोन मेरो के लिए घातक
पिपराजीन - नाडी तंत्र के लिए खतरा
क्विनिडोक्लोर- लकवे का खतरा
रविवार, जनवरी 01, 2012
नव वर्ष की नई सुबह .....
ऐसी लाए खुशहाली
खुशियों ने घर-आंगन महके
रहे न कोई झोली खाली
हर इंसान साल भर चहके
हर दिन हो दीपावली
गरीबों को भी रोज खाना मिले
भगवान की रहमत हो ऐसी निराली
हमने तो साल के पहले दिन
यही दुआ है दिल से निकाली
चलिए नव वर्ष की खुशी में
पीए अब गरम चाय की एक प्याली