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मंगलवार, सितंबर 22, 2009

मंदिरों में नारियल चढ़ाने का मतलब ही क्या है?

नवरात्रि का पर्व चल रहा है, ऐसे में रायपुर जिले के राजिम के मंदिरों में जाने का मौका मिला। इन मंदिरों में जो भक्तजन गए थे, उनमें इस बात का आक्रोश नजर आया कि मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले नारियलों को फोंडने की जहमत पंडित नहीं उठाते हैं और सारे के सारे नारियल वापस आ जाते हैं बिकने के लिए बाजार में। गांव-गांव से राजिम के मंदिर में आए लोग इस बात से बहुत खफा लगे कि मंदिर के पुजारी भक्तों को प्रसाद तक देना गंवारा नहीं करते हैं। प्रसाद के नाम पर शिव लिंग का पानी देकर ही खानापूर्ति की जाती है। ऐसे में भक्तजन एक-दूसरे ही यह सवाल करते नजर आए कि आखिर मंदिरों में नारियल चढ़ाने की मतलब ही क्या है? इनका सवाल सही भी है। वैसे हमें लगता है कि जैसा हाल अपने छत्तीसगढ़ के इन मंदिरों का है, वैसा ही हाल देश के हर मंदिर का होगा।

अपने मित्रों के साथ जब हम जतमई और घटारानी गए तो वहां पर तो हालत फिर भी ठीक थे और भक्तों को न सिर्फ प्रसाद दिया जा रहा था। बल्कि बाहर से आए भक्तों के लिए भंडारे में खाने तक की व्यवस्था थी। यह खाना बहुत ही अच्छा था कहा जाए तो गलत नहीं होगा। दाल, चावल और सब्जी के साथ सबको भरपूर खाना परोसा गया। यहां आने वाले भक्त गण जितने खुश लगे उतने ही राजिम के मंदिरों में जाने वाले भक्त खफा लगे। इनके खफा होने का कारण यह था कि मंदिरों में जो भी भक्त नारियल लेकर गए उनको प्रसाद भी देना पुजारियों ने जरूरी नहीं समझा।

प्रसाद के नाम पर भक्तों को शिवलिंग का पानी दिया गया। ऐसे में गांवों से आए ग्रामीण भी मंदिरों से निकलते हुए खफा लगे और रास्ते भर यही बातें करते रहे कि मंदिरों में नारियल चढ़ाना ही ठीक नहीं है। हम लोग यहां नारियल चढ़ाते हैं तो कम से कम इनमें से कुछ को फोंडकर प्रसाद देना चाहिए, पर ऐसा नहीं किया जाता है, और पुजारी सारे नारियल उन्हीं दुकान वालों के पास वापस भेज देते हैं बेचने के लिए। ऐसे में अच्छा यही है कि बिना नारियल लिए बिना ही मंदिर जाएं और भगवान के दर्शन करके आ जाए। वास्तव में यह सोचने वाली बात है कि दूर-दूर से आने वाले भक्तों के लिए पुजारियों के मन में कोई भाव नहीं रहते हैं। उनसे अगर प्रसाद मांगा जाए तो कह देते हैं कि मंदिर के नीचे जाइए वहां पर बिक रहा है, ले ले। अब मंदिर के नीचे बिकने वाली किसी भी सय को प्रसाद कैसे माना जा सकता है।

भक्त तो भगवान के चरणों में चढऩे वाली सय को ही प्रसाद मानते हैं। अगर यह कहा जाए कि मंदिरों के नाम पर पुजारियों की दुकानदारी चल रही है तो गलत नहीं होगा। लोग काफी दूर-दूर से राजिम के कुलेश्वर मंदिर में जाते हैं। यह मंदिर नदी के बीच में है। लोग घुटनों तक पानी से गुजरते हुए तपती धुप में भी मंदिर जाते हैं और पुजारी है कि उनको टका सा जवाब दे देते हैं कि प्रसाद तो मंदिर के बाहर ही मिलेगा। राजिम लोचन मंदिर में तो मंदिर के अंदर ही प्रसाद बेचा जाता है।

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रविवार, सितंबर 20, 2009

बनारसी बाबू-नवरात्रि में रखते थे शराब पर काबू

नवरात्रि का प्रारंभ हो गया है। ऐसे समय में जबकि चारों तरफ देवी माता की धूम मची है, तब हमें बरसों पुराने अपने गांव के एक बनारसी बाबू की याद आ रही है। यह याद इसलिए आ रही है कि यही नवरात्रि का समय रहता था जब वह बनारसी बाबू शराब से दूर रहते थे, वरना वे शराब के बिना एक घंटे भी नहीं रह पाते थे। कहते हैं कि वास्तव में आस्था से ही रास्ता मिलता है। और यह बात हमने बनारसी बाबू में देखी थी जिनको आस्था के कारण ही शराब पर काबू पाने की शक्ति मिलती थी।

हमारा एक गांव है पलारी। रायपुर जिले के इस छोटे से गांव में हमारा बचपन बीता है। हमें आज भी याद है कि हमारी दुकान के सामने एक होटल था। इस होटल के मालिक बनारस के थे और एक बार उनके एक साले वहां आए और उन्होंने उनको वहां पर पान की दुकान खुलवाकर दे दी। बनारस से आने के कारण वे पूरे गांव में बनारसी बाबू के नाम से जाने -जाने लगे। उनमें सबसे बड़ी बुराई यह थी कि वे शराब खूब पीते थे। खूब क्या पीते थे यह कहा जाए कि वे शराब के बिना एक घंटे भी नहीं रह पाते थे। हमें याद है कि वे अल सुबह को करीब पांच बजे तालाब नहाने के लिए जाते तो रास्ते में शराब भट्टी जाते और वहां से शराब की आधी बोतल लेते और उसी से मुंह धोने के बाद बाकी की गटक जाते। यह उनकी रोज की दिनचर्या थी। नहा कर वापस आते समय वे साथ में एक बाटल लेकर आते और दुकान में हर घंटे में थोड़ी-थोड़ी पीते रहते थे।

बनारसी बाबू भले बेभाव की शराब पीते थे, लेकिन कभी उनको किसी ने न तो नशे में देखा और न ही वे किसी से अभ्रदता करते थे। यही वजह थी कि उनका शराब पीना किसी को बुरा नहीं लगता था। बनारसी बाबू की एक अच्छाई का पता तब चला जब गांव में नवरात्रि के समय दुर्गा रखी गई। ऐसे में उन्होंने भी इस कार्यक्रम में शामिल होने की मंशा जाहिर की तो सबको लगा कि यार इस पियक्कड़ को कैसे रखा जा सकता है। संभवत: वे सबके मन की बात जान गए थे, ऐसे में उन्होंने सबको विश्वास दिलाया कि वे वादा करते हैं कि ९ दिन बिलकुल नहीं पीएंगे और देवी माता की सेवा करेंगे। किसी को यकीन तो नहीं था, पर सबने सोचा कि चलो यार एक मौका देकर देखने में क्या है। जब उनको मौका दिया गया तो उन्होंने वाकई में ९ दिनों तक शराब को हाथ भी नहीं लगाया। वरना कहां अगर वे एक घंटे भी शराब नहीं पीते थे तो उनके हाथ-पैर कांपने लगते थे, लेकिन ९ दिनों तक उनमें ऐसी शक्ति रही कि उनको कुछ नहीं हुआ।

नवरात्रि के बाद वे फिर से बेभाव की पीने लगे। उनको यार-दोस्तों ने सलाह दी कि यार जब तुम ९ दिनों तक शराब से दूर रह सकते हो तो बाकी दिनों क्यों नहीं रह सकते हो। उन्होंने बताया कि बाकी दिनों उनका शराब से दूर रहना संभव नहीं है। उन्होंने बताया कि वे देवी माता को बहुत मानते हैं जिसके कारण उनको इन दिनों में अद्भुत शक्ति मिल जाती है। उन्होंने बताया कि वे कई बार शराब छोडऩे की कोशिश कर चुके हैं, पर सफल नहीं हुए हैं। जहां बनारसी बाबू में एक अच्छी बात यह थी कि ेवे नवरात्रि के समय शराब को हाथ नहीं लगाते थे, वहीं अगर गांव में नवधा रामायण रखा जाता था तब भी वे शराब नहीं पीते थे। यहां भी उनकी एक अद्भुत क्षमता का पता चला था कि उनको पूरा का पूरा रामायण याद था और वे बिना पुस्तक लिए रामायण का पाठ करने बैठते थे। हमने बचपन में उनको कई सालों तक देखा और आज नवरात्रि में अचानक उनकी याद आई तो सोचा चलो इसको अपने ब्लाग बिरादरी के मित्रों के बीच बांटा जाए। आज हमें यह तो नहीं मालूम कि वे बनारसी बाबू कहां हैं। वे इस दुनिया में हैं भी या नहीं हम नहीं जानते, पर उनको हम कभी नहीं भूल सकते हैं।

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