बनारसी बाबू-नवरात्रि में रखते थे शराब पर काबू
नवरात्रि का प्रारंभ हो गया है। ऐसे समय में जबकि चारों तरफ देवी माता की धूम मची है, तब हमें बरसों पुराने अपने गांव के एक बनारसी बाबू की याद आ रही है। यह याद इसलिए आ रही है कि यही नवरात्रि का समय रहता था जब वह बनारसी बाबू शराब से दूर रहते थे, वरना वे शराब के बिना एक घंटे भी नहीं रह पाते थे। कहते हैं कि वास्तव में आस्था से ही रास्ता मिलता है। और यह बात हमने बनारसी बाबू में देखी थी जिनको आस्था के कारण ही शराब पर काबू पाने की शक्ति मिलती थी।
हमारा एक गांव है पलारी। रायपुर जिले के इस छोटे से गांव में हमारा बचपन बीता है। हमें आज भी याद है कि हमारी दुकान के सामने एक होटल था। इस होटल के मालिक बनारस के थे और एक बार उनके एक साले वहां आए और उन्होंने उनको वहां पर पान की दुकान खुलवाकर दे दी। बनारस से आने के कारण वे पूरे गांव में बनारसी बाबू के नाम से जाने -जाने लगे। उनमें सबसे बड़ी बुराई यह थी कि वे शराब खूब पीते थे। खूब क्या पीते थे यह कहा जाए कि वे शराब के बिना एक घंटे भी नहीं रह पाते थे। हमें याद है कि वे अल सुबह को करीब पांच बजे तालाब नहाने के लिए जाते तो रास्ते में शराब भट्टी जाते और वहां से शराब की आधी बोतल लेते और उसी से मुंह धोने के बाद बाकी की गटक जाते। यह उनकी रोज की दिनचर्या थी। नहा कर वापस आते समय वे साथ में एक बाटल लेकर आते और दुकान में हर घंटे में थोड़ी-थोड़ी पीते रहते थे।
बनारसी बाबू भले बेभाव की शराब पीते थे, लेकिन कभी उनको किसी ने न तो नशे में देखा और न ही वे किसी से अभ्रदता करते थे। यही वजह थी कि उनका शराब पीना किसी को बुरा नहीं लगता था। बनारसी बाबू की एक अच्छाई का पता तब चला जब गांव में नवरात्रि के समय दुर्गा रखी गई। ऐसे में उन्होंने भी इस कार्यक्रम में शामिल होने की मंशा जाहिर की तो सबको लगा कि यार इस पियक्कड़ को कैसे रखा जा सकता है। संभवत: वे सबके मन की बात जान गए थे, ऐसे में उन्होंने सबको विश्वास दिलाया कि वे वादा करते हैं कि ९ दिन बिलकुल नहीं पीएंगे और देवी माता की सेवा करेंगे। किसी को यकीन तो नहीं था, पर सबने सोचा कि चलो यार एक मौका देकर देखने में क्या है। जब उनको मौका दिया गया तो उन्होंने वाकई में ९ दिनों तक शराब को हाथ भी नहीं लगाया। वरना कहां अगर वे एक घंटे भी शराब नहीं पीते थे तो उनके हाथ-पैर कांपने लगते थे, लेकिन ९ दिनों तक उनमें ऐसी शक्ति रही कि उनको कुछ नहीं हुआ।
नवरात्रि के बाद वे फिर से बेभाव की पीने लगे। उनको यार-दोस्तों ने सलाह दी कि यार जब तुम ९ दिनों तक शराब से दूर रह सकते हो तो बाकी दिनों क्यों नहीं रह सकते हो। उन्होंने बताया कि बाकी दिनों उनका शराब से दूर रहना संभव नहीं है। उन्होंने बताया कि वे देवी माता को बहुत मानते हैं जिसके कारण उनको इन दिनों में अद्भुत शक्ति मिल जाती है। उन्होंने बताया कि वे कई बार शराब छोडऩे की कोशिश कर चुके हैं, पर सफल नहीं हुए हैं। जहां बनारसी बाबू में एक अच्छी बात यह थी कि ेवे नवरात्रि के समय शराब को हाथ नहीं लगाते थे, वहीं अगर गांव में नवधा रामायण रखा जाता था तब भी वे शराब नहीं पीते थे। यहां भी उनकी एक अद्भुत क्षमता का पता चला था कि उनको पूरा का पूरा रामायण याद था और वे बिना पुस्तक लिए रामायण का पाठ करने बैठते थे। हमने बचपन में उनको कई सालों तक देखा और आज नवरात्रि में अचानक उनकी याद आई तो सोचा चलो इसको अपने ब्लाग बिरादरी के मित्रों के बीच बांटा जाए। आज हमें यह तो नहीं मालूम कि वे बनारसी बाबू कहां हैं। वे इस दुनिया में हैं भी या नहीं हम नहीं जानते, पर उनको हम कभी नहीं भूल सकते हैं।
7 टिप्पणियाँ:
अच्छा संसमरण.
बनारसी बाबू ही नही समाज मे बहुत सारे ऐसे लोग मिलेंगे जो ऐसा ही करते है और फिर नवरात्र बीत जाने पर उसका भरपूर कसर भी उठाते है.
देवी मां की महिला अपार, उनके आर्शीवाद से ही ऐसे अद्भुत काम संभव है
आस्था की मिसाल है यह तो
माता के प्रताप से तो लगड़े चलने लगते हैं और अंघे देखने लगते हैं
दृढ संकल्प में बड़ा बल है, बहुत बढ़िया सामयिक पोस्ट
क्या बात है...!
आभार ।
सच्ची श्रद्धा किसी के भी भीतर दृढ़ संकल्प उपजा सकती है!
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