पुलिस विभाग में भी नक्सली !
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों का नेटवर्क है कि लगातार बढ़ते ही जा रहा है। अगर इस खबर पर यकीन किया जाए तो अब यह भी कहा जाने लगा है कि पुलिस विभाग में नक्सली आ गए हैं। ऐसा कहा जा रहा है तो उसके पीछे कम से कम तर्क तो ठोस ही लग रहा है कि पुलिस विभाग में हाल ही में हुई आरक्षकों की भर्ती में जोरदार पैसे चले और इसी का फायदा उठाते हुए नक्सलियों ने अपने आदमी पुलिस विभाग में भी भेज दिए हैं। अगर सच में ऐसा हुआ है तो फिर यह बात तय है कि पुलिस की हर बात नक्ससलियों तक अब और आसानी से पहुंच जाएगी। और आसानी से इसलिए कि पहले भी नक्सलियों तक पुलिस की योजनाएं पहुंचती रही हैं।
छत्तीसगढ़ की नक्सली समस्या प्रदेश सरकार के साथ केन्द्र सरकार के लिए भी नासूर बन गई है। एक तरफ इस समस्या से निजात पाने के लिए बड़ी रणनीति पर काम किया जा रहा है और लालगढ़ से भी बड़ा नक्सली आपरेशन करने की तैयारी है। इसकी शुरुआत भी हो चुकी है, पर सफलता अभी लगता है कौसों दूर है, और कौसों दूर ही रहेगी। कारण साफ है कि नक्सलियों का नेटवर्क इतना तगड़ा है कि पुलिस विभाग की सारी योजनाएँ उन तक पहुंच जाती हैं। अब पुलिस विभाग भले किसी भी योजना का मीडिया के सामने खुलासा नहीं कर रहा है। वैसे मीडिया पुलिस विभाग को बाध्य भी नहीं करता है, क्योंकि मीडिया जानता है कि इससे उसका फायदा होने वाला नहीं है बल्कि सच में नक्सली योजना जानकर सचेत हो जाएंगे। अब यह बात अलग है कि नक्सलियों तक किसी भी तरह से पुलिस की रणनीति की खबर पहुंच ही जाती है। यह बात सब जानते हैं कि पुलिस विभाग में नक्सलियों के मुखबिरों की कमी नहीं है।
अब तक तो पुलिस विभाग में महज नक्सलियों के मुखबिर हुआ करते थे, पर इधर खबरें यह आ रही हैं कि नक्सलियों ने अपने आदमी भी पुलिस विभाग में भर्ती करवा दिए हैं। इसके बारे में जानकारों की बातों पर यकीन किया जाए तो उनका कहना है कि अभी पुलिस विभाग में आरक्षकों की भर्ती में जमकर पैसों का खेल चला है। दो से तीन लाख रुपए तक लिए गए हैं नियुक्ति के लिए। ऐसे में नक्सलियों ने इसी बात का फायदा उठाते हुए अपने कई जवानों को पुलिस विभाग में भर्ती करवा दिया है। अगर ऐसा हो गया हो तो आश्चर्य नहीं है। जब किसी भी विभाग में पैसों के दम पर भर्ती होती है तो पैसे लेने वालों को इस बात से कोई मतलब थोड़े रहता है कि जिसको वे नौकरी देने जा रहे हैं वो साहूकार है या काला चोर।
वास्तव में यह अपने देश की विडंबना है कि पैसों के आगे सब इस तरह से नतमस्तक हो जाते हैं कि वे देश का भी सौदा कर डालते हैं। अगर पुलिस विभाग के आलाअधिकारियों ने पैसे लेकर नक्सलियों या फिर उनके प्रतिनिधियों को पुलिस में रख लिया है तो क्या बुरा किया है? इस मामले में होना तो यह चाहिए कि पुलिस विभाग को इस सारे मामले की जांच करवानी चाहिए। वैसे जांच में कुछ हासिल होगा, इसकी गुंजाइश नहीं है क्योंकि अपने देश में किसी भी मामले की जांच सालों चलती है और अंत में फैसला यही आता है कि शिकायत गलत पाई गई। अब देश का सारा सिस्टम ही ऐसा है तो कोई क्या कर सकता है। आम आदमी तो बस ऐेसे रिश्वतखोर अफसरों को कोस ही सकता है। और हमारे जैसे पत्रकार बस कमल घिस सकते हैं। हम जानते हैं कि हमारे ऐसा लिखने से कुछ होना नहीं है, पर कम से कम हमको इस बात का मलाल तो नहीं रहेगा कि हमारे पास जो जानकारी थी उसको हमने सार्वजनिक नहीं किया।
6 टिप्पणियाँ:
रिश्वतखोरों का ही तो जमाना है। रिश्वत लेने वालों को इस बात से क्या मतलब कि जिनसे वे रिश्वत लेकर उनको नौकरी देने का काम कर रहे हैं वो नक्सली है, आतंकवादी है या चौर, लुटेरे।
खबर तो हंगामाखेज है गुरु
अपने देश में रिश्वत देकर चाहे जहां नौकरी ले लो, प्रतिभाओं की कदर अपने देश में होती नहीं है।
ऐसी खबर बताने का बड़ा साहस किया है मित्र आपने।
देश को बेचने वालों को कमी नहीं है अपने देश में
रिश्वत देवी के कदमो में जब नेताओं, अधिकारियों और जन साधारण के शीश नतमस्तक हैं तो देश के साथ और क्या होगा....चिंताजनक मुद्दा
एक टिप्पणी भेजें