राजनीति के साथ हर विषय पर लेख पढने को मिलेंगे....

बुधवार, सितंबर 16, 2009

हॉकी को रोल मॉडल की कमी मार गई

ओलंपियन अशोक ध्यानचंद ने कहा


हॉकी के ओलंपियन अशोक ध्यानचंद का कहना है कि देश में आज हॉकी की जो दुर्दशा है उसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि इसको रोल मॉडल की कमी मार गई। आज अगर हॉकी के जादूगर ध्यानचंद सहित हमारे जैसे ओलंपियन की वीडियो होती तो यह खिलाडिय़ों के लिए रोल मॉडल का काम करती। पर ऐसा नहीं है। क्रिकेट में अगर सचिन और धोनी को लोग खेलते न देखें तो कोई क्रिकेट की तरफ जाना नहीं चाहेगा। हॉकी को निचले स्तर से उठाने की जरूरत है।


अपने छत्तीसगढ़ प्रवास में रायपुर में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हॉकी के नवोदितों को बताने के लिए हॉकी फेडरेशन के पास आज कुछ नहीं है। माना कि मेजर ध्यानचंद के समय 1936 का जमाना ऐसा नहीं था जिसमें वीडियो बन पाता और उसको सहेज कर रखा जाता, पर इसके बाद जब हम लोग खेलते थे, उस समय 70 के दशक में तो वीडियो बनाकर उसको सहेज कर रखा जा सकता था। पर ऐसा नहीं किया गया और आज के हॉकी खिलाडिय़ों को क्या बताया जाए। उनके लिए कोई रोल मॉडल ही नहीं है तो उनका रूझान हॉकी की तरफ कैसे होगा। आज अगर हॉकी में नई पौध नहीं आ रही है तो इसके लिए फेडरेशन दोषी है।

निचले स्तर पर देना होगा ध्यान

1968 में रायपुर की नेहरू हॉकी में खेलने आए अशोक कुमार कहते हैं कि आज इस बात की जरूरत है कि हॉकी पर ग्रामीण, जिला और राज्य स्तर पर ध्यान दिया जाए। आज घरेलु स्पर्धाएं बंद हो गई हैं, जब तक स्पर्धाएं नहीं होगी खिलाड़ी कैसे निकलेंगे। वे कहते हैं कि सरकारी मदद की तरफ भी देखना बंद होना चाहिए, स्थानीय स्तर पर मदद लेकर खेलों को आगे बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने इटारसी का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां पर क्रिकेट के आईपीएल की तर्क पर हॉकी में आईपीएल प्रारंभ किया गया है। आज देश के कोने-कोने में हॉकी को जिंदा रखने के लिए ऐसे ही आईपीएल करवाने की जरूरत है। वे कहते हैं कि आज देश की हॉकी को मजबूत करने की जरूरत है। इसके लिए स्कूल स्तर के मैच भी जरूरी है। आज स्कूलों में आयोजन की खाना पूर्ति होती है। पहले स्कूलों में खेलों का पीरियड होता था, अब ऐसा नहीं होता है। उन्होंने कहा कि आज हॉकी के लिए एस्ट्रो टर्फ जरूरी है। लेकिन इसको बनाने की सरकारी कवायद इतनी कठिन है कि बिल्डिंग तो बन जाती है, पर एस्ट्रो टर्फ नहीं बन पाता है। वे कहते हैं कि एस्ट्रो टर्फ के लिए कोई बड़ा स्टेडियम बनाने की बजाए अगर एस्ट्रो टर्फ के साथ चारों तरफ बस गैलरी बना दी जाए तो वही काफी है।

पापा हॉकी खेलने से रोकते थे

हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के पुत्र अशोक कुमार बताते हैं कि उनके पापा कभी नहीं चाहते थे कि मैं हॉकी खेलूं। मुझे हमेशा उन्होंने खेलने से मना किया। वे कहते थे कि पढ़ाई करके नौकरी करके कुछ पैसे कमाओगे तो काम आएंगे। वे बताते हैं कि उनके खेल को देखकर 1970 में मोहन बागान की टीम में स्थान मिला, इसके बाद इंडियन एयर लाइंस में नौकरी मिली। इसके बाद भारतीय टीम, फिर एशियन एकादश और फिर विश्व एकादश में भी स्थान मिला। उन्होंने बताया कि जब हमारी टीम ने विश्व कप जीता था, तब देश में हमारी टीम के 14 मैच करवाए गए थे और हर मैच के लिए आठ-आठ सौ रुपए मिले थे। वे बताते हैं कि वे हॉकी से आज भी जुड़े हुए हैं और चाहते हैं कि इसके पुराने दिन फिर से लौटे, हालांकि यह बहुत कठिन है।

4 टिप्पणियाँ:

विवेक रस्तोगी बुध सित॰ 16, 07:59:00 am 2009  

वाकई हरेक क्षेत्र में रोल मॉडल का एक विशेष महत्व होता है।

Unknown बुध सित॰ 16, 09:13:00 am 2009  

हॉकी में ऐसे खिलाडिय़ों की कमी नहीं है जिनको रोल मॉडल बना जा सकता है, लेकिन सच्चाई यह है कि आज कोई हॉकी खेलना नहीं चाहता है, सब क्रिकेट के दीवाने हैं।

Unknown बुध सित॰ 16, 10:12:00 am 2009  

वाह रे क्रिकेट तेरा जलवा, आज देश के राष्ट्रीय खेलों को भी क्रिकेट की तरह आईपीएल की दरकार हो रही है।

Related Posts with Thumbnails

ब्लाग चर्चा

Blog Archive

मेरी ब्लॉग सूची

  © Blogger templates The Professional Template by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP