बॉर्डर पर बेटियों ने बदली बयार
नारी शक्ति के रूप नवरात्रि को अभी समाप्त हुए तीन दिन ही हुए हैं कि बॉर्डर से खबर आई है कि भारत की बेटियों ने बॉर्डर की बयार ही बदल दी है। एक तो बार्डर पर बेटियों की तैनाती ही मिसाल थी, अब इन्हीं बेटियों के कारण बॉर्डर के किनारे रहने वाली मांओं का जीवन बदल गया है। इन मांओं को अब अपने खेतों में जाने की आजादी मिल गई है, नहीं तो पहले इनको अपने खेतों को दूर से उसी तरह से निहारना पड़ता था जिस तरह से हम लोग चांद और सूरज को निहारने के लिए मजबूर रहते हैं। पर अब बॉर्डर पर बेटियों ने सारी बयार बदल दी है। यह पाकिस्तान के उन निकम्मों के लिए करारा जवाब भी है जो बॉर्डर पर तैनात बेटियों को वैश्या कहने से बाज नहीं आए थे। अब जिसकी जैसी मानसिकता होगी, वह तो वैसा ही सोचेगा। हो सकता है पाकिस्तान में बेटियों को यही समझा जाता हो।
आज सुबह उठे तो दैनिक भास्कर में एक अच्छी खबर पर नजरें पड़ीं। यह खबर थी बॉर्डर में तैनात महिला बटालियन की। भास्कर के लिए यह रिपोर्ट बनाने का काम भी हिन्द की एक बेटी कलमकार शायदा जी ने किया है। उनकी इस रिपोर्ट के लिए उनका भी नमन करते हैं। इस बटालियन के बारे में इस खबर में काफी विस्तार से जानकारी दी गई है कि कैसे इस महिला बटालियन की सदस्यों ने 36 हफ्ते की ट्रेनिंग पूरी की। यही नहीं इस खबर में बताया गया है कि इस बटालियन में उस पंजाब की कुडिय़ां हैं जिस पंजाब में एक समय लड़कियों को भ्रूण में मार दिया जाता था। अब उसी पंजाब ने उस कलंक को इस मिसाल से धोने का काम कर दिया है। बटालियन की एक सदस्य बठिंडा की सुखमनजीत कौर से चर्चा में बताया गया है कि उनको बॉर्डर पर तैनात होने की कितनी खुशी है। बॉर्डर की निगरानी करने के बाद भी किसी भी महिला सैनिक के चेहरे पर कहीं थकान नजर नहीं आती है। इस बटालियन की सदस्यों को उस समय बहुत अच्छा लगता है कि जब बॉर्डर के आस-पास के गांवों की महिलाएं उनकी सुरक्षा में अपने खेतों में काम करती हैं, और उनको दुवाएं देते हुए बताती हैं कि इसके पहले उनको कभी खेतों में जाने का मौका ही नहीं मिलता था। बॉर्डर के पास के खेतों में कभी भी महिलाओं को जाने की इजाजत नहीं थी, वहां केवल पुरुष ही जाते थे, पर जब से बॉर्डर पर महिला बटालियन आई हैं, तब से बॉर्डर की बयार बदली और महिलाओं को खेतों में जाने का मौका मिलने लगा है।
गांवों की महिलाएं अब अपने खेतों में जाकर अपनी मिट्टी को छुकर देखने के बाद कैसे रोमांचित हैं यह बताने की जरूरत नहीं है। हर गांव की महिलाओं को अपने हिन्द की इन बेटियों पर नाज है। ये वो बेटियां हैं जो किसी भी मायने में बेटों से कम नहीं हैं। ट्रेनिंग में महिला बटालियन की सदस्यों ने वह सब किया जो पुरुष बटालियन के सदस्य करते हैं। 40 किलो मीटर तक दौडऩे से लेकर अपने घायल साथी को हथियारों के साथ कंघे पर उठाकर भागने का काम भी किया। बटालियन की सभी 450 सदस्य कमांडो ट्रेनिंग से बेहद रोमांचित हैं और अपनी भारत मां की रक्षा का जिम्मा पाकर गर्व महसूस कर रही हैं। अभी इस बटालियन की सदस्यों को बॉर्डर की निगरानी करके शाम को बीएसएफ के कैम्प में लौटना पड़ता है, जब इनके रहने की व्यवस्था हो जाएगी तो ये सभी रात में भी वहीं रहेंगी।
बॉर्डर की बयार बदलने की इस खबर से पाक के उन निकम्मों को सोचना चाहिए जिन्होंने हिन्द की इन बेटियों की तैनाती की खबर को यह कहा था कि भारत ने बॉर्डर में वैश्याओं को तैनात किया है। अब पाक जैसे घटिया मानसिकता वाले देश से अच्छा सोचने की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है। हमें तो लगता है कि पाक में पाकी बेटियों को यही समझते हैं, तभी तो उन्होंने हिन्द की बेटियों के बारे में ऐसा सोचा। अरे हमारे देश में तो वैश्याओं को भी सम्मान की नजर से देखा जाता है, क्योंकि हम लोग जानते हैं कि अगर कोई अपना जिस्म बेचकर अपना पेट भर रहा है तो यह उसकी मजबूरी होगी। अब पाक में तो कोई मजबूर है नहीं, वहां सब मगरूर हैं और मगरूरों से क्या उम्मीद की जा सकती है। जब इनका मगरूरपन टूटेगा तो फिर पूरा विश्व भी भागने के लिए कम पड़ जाएगा। एक दिन वह जरूर आएगा जब पाक को हमारे हिन्द की यही बेटियां बताएगीं कि उनमें कितना दम है, तब देखेंगे कि कैसे पाक के सैनिक इनका सामना करते हैं। भारत वह देश है जिसने झांसी की रानी को जना है और जिसने दुश्मनों का बताया था कि हिन्द की बेटियों में कितना दम है। आज भी भारतीय नारियों में झांसी की रानी बसी हैं, बस वक्त आने दें ये बता देंगी कि इनमें कितना दम है।
9 टिप्पणियाँ:
सुखद समाचार.
अब देश की हर मां चाहेगी कि उसकी लाडली भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करने का काम करे।
हिन्द की बेटियों को सलाम करते हैं गुरु
रणक्षेत्र में उतरी हैं बेटियाँ भी ...
गदगद है हर मां...
बहुत शुभकामनायें ....!!
पाक जैसी घटिया सोच तो और किसी की हो भी नहीं सकती है, ऐसी घटिया लोगों की बातों का भी जिक्र करना यानी अपना दिन और समय खराब करना है।
यह सिर्फ एक समाचार नहीं बल्कि हमारे लिए गर्व की बात है।
नाज है उन मांओं पर जिन्होंने अपनी बेटियों को बॉर्डर पर भेजने का साहस दिखाया है।
भारत ने ही तो महान नारियों को जना है, बॉर्डर की बयार बदलने वाली बेटियों को साधुवाद
भाई राजकुमार जी,
इस पोस्ट के लिए शुक्रिया। एक निवेदन है कि इसे कवर करने वाली भी एक बेटी ही है। आपने रिपोर्ट के इंट्रो में शायदा जी का नाम पढ़ा होगा। सो अगर लेखिका के नाम का भी जिक्र कर दें तो हम आभारी रहेंगे। खुद शायदा बाजी लौपटॉप कैमरे और कलम से लैस होकर इसकी कवरेज के लिए गई थीं। और अकेली ही।
जगदीश त्रिपाठी
मुख्य उपसंपादक
दैनिक भास्कर
चंडीगढ़
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