पाक में रहने वाला इंसान मुसलमान-इसलिए हिन्दुस्तान में रहने वाले हिन्दु
अपने जीके अवधिया जी ने एक अच्छा मुद्दा उठाया है कि किसी के यह कह देने से कि हां मैं हिन्दु हूं कोई हिन्दु नहीं हो जाता यह बात उन सलीम खान के लिए कही गई है जो अपने को हिन्दु कहते हैं। वास्तव में सोचने वाली बात है कि अगर सच में आप हिन्दुस्तान में रहते हुए अपने को हिन्दु मानते हैं तो फिर इस धर्म या संस्कृति की बातों का पालन करते हैं क्या? अगर भारत में रहने वाले हर जाति-समुदाय और धर्म के लोग हिन्दु हैं तो फिर सबके लिए लिए अलग-अलग कानून क्यों? किसके पास है इसका जवाब।
अवधिया जी के साथ पीसी गोदियल से यह सवाल उठाया है कि अगर कोई सलीम खान या कोई भी खान अपने को हिन्दु कहता है तो क्यों कर मुस्लिम एक्ट अलग से बनाया गया है। क्या अपने को हिन्दु कहने का दावा करने वाले ऐसे लोग अपने धर्म के लिए बनाए गए कानून का विरोध करने का दम रखते हैं और कह सकते हैं कि एक से ज्यादा पत्नी रखना गुनाह है। अगर ऐसा करने की हिम्मत नहीं है तो फिर क्यों किसी के धर्म के साथ खेलने की कोशिश की जा रही है। हिन्दु तो किसी के धर्म के साथ नहीं खेलते हैं।
हमें तो लगता है कि सलीम खान जैसे लोगों के दिमाग में पाकिस्तान का वह सब भरा हुआ है जिसमें पाकिस्तान में रहने वाले हर इंसान को मुसलमान होना पड़ता है। जो मुसलमान नहीं होता है उसका क्या हश्र होता है यह सब जानते हैं कि कैसे हिन्दुओं को अपने धर्म में शामिल करने के लिए उन पर जुल्म किए गए थे। अगर मुसलमान यह नहीं कहेंगे कि हिन्दुस्तान में रहने वाला हर कोई हिन्दु है तो उनकी यह बात कैसे जायज होगी कि पाकिस्तान में रहने वाला हर इंसान मुसलमान है। ये लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि हिन्दुओं में इतना दम नहीं है कि मुसलमानों को हिन्दु बनने मजबूर किया जा सके। वैसे भी कम से कम अपने हिन्दु धर्म में इस बात के लिए कोई स्थान नहीं है कि किसी को जबरिया अपना धर्म कबूल करवाया जाए। किसी भी धर्म में आस्था होने पर ही कोई किसी का धर्म कबूल करता है। आस्था न होने पर किसी पर कोई धर्म थोपा जाता है तो उस धर्म से इंसान प्यार नहीं नफरत ही करता है।
हिन्दु धर्म को लेकर भी तरह-तरह की बातें की जाती हैं। अब इसको लोग धर्म मानने को तैयार नहीं है। बचपन से लेकर आज तक हम तो यही सुनते और पढ़ते आए हैं कि हिन्दु धर्म है। अब इसको कोई संस्कृति कह रहा है तो कोई कुछ और। आखिर किसी के पास ऐसा कोई साक्ष्य है कि अंतत: हिन्दु धर्म है या संस्कृति, तो उसका खुलासा करना चाहिए। वैसे भी पूरे विश्व में यही कहा जाता है कि चार धर्म हिन्दु, मस्लिम, सिख और ईसाई हैं। अगर हिन्दु धर्म नहीं है तो फिर बाकी भी धर्म नहीं संस्कृति ही हुए। किसी के पास कोई जवाब हो तो जरूर बताए कि आखिर माजरा क्या है ताकि हमारे ज्ञान में भी कुछ इजाफा हो सके। अंत में अवधिया जी को एक अच्छा मुद्दा सामने रखने के लिए बधाई और धन्यवाद।
14 टिप्पणियाँ:
हिंदुस्तान में रहने वाले हिंदू
पाकिस्तान में रहने वाले पिंदू
गंभीर बातों पर अब मजाक हो रहा है। सलीम खान जी ने जब कहा कि वे हिन्दू हैं तो सही ही कहा था। पाकिस्तान में रहने वाले भी सब हिन्दू ही हैं। हिन्दू वास्तव में एक राष्ट्रीय पहचान है। भारतीय और पाकिस्तानी एक देशीय पहचान। हज पर जाने वाले तमाम पाकिस्तानी और भारतीय हिन्दी ही कहे जाते हैं। दो हजार वर्ष पूर्व तक जब न ईसाई धर्म था और न इस्लाम दुनिया में धार्मिक पहचान का कोई महत्व तक न था। वह लोगों के अंतर की पहचान था। लेकिन लोगों के अंतर से निकल कर जब धर्म बाहर आ गया तो वह पहचान जरूर बनने लगा लेकिन अंतर से गायब हो गया। अब लोगों के पास केवल धर्म का मुलम्मा रह गया है अंदर पीतल है या खथीर कोई नहीं जानता व्यवहार से ही पता लगता है कि कोई व्यक्ति धार्मिक है भी या नहीं।
तुलसी बाबा की राष्ट्रीयता हिन्दू थी लेकिन धर्म तो उन का क्या था वे खुद ही कह गए हैं...
परहित सरिस धरमु नहीं भाई!
मुसलमान अपने को हिन्दु समझते हैं तो फिर मूर्ति पूजा के खिलाफ क्यों हैं? क्यों नहीं मंदिर में पूजा करने जाते हैं। मैं सलीम खान से ही जानना चाहता हूं कि क्या वे कभी मंदिर गए हैं।
हिन्दुस्तान में रहने वाले मुसलमान अपने को हिन्दु क्या अगर हिन्दुस्तानी ही समझते तो कभी पाकिस्तान के भारत से क्रिकेट में जीतने पर जश्न नहीं मानते। ये कौन सी हिन्दुस्तानियत है।
चार धर्म हिन्दु, मस्लिम, सिख और ईसाई हैं।
फिर जैन, बौद्ध, पारसी कौन है?
शायेद आपने भी भेंड-चाल में शामिल होकर पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर यह लिख डाला....ख़ैर कोई बात नहीं. राजकुमार बाबू ये आपकी गलती नहीं है, दरअसल हमारे समाज में ये फैशन ही है अगर 'हम' जो भी कहेंगे आप उसको येन केन प्रकारेण ग़लत ही कहेंगे...
आपने मेरा लेखा लगता है पढ़ा नहीं है, ज़रा पढ़ लें फ़िर सोचें, फ़िर कुछ कहें तो अच्छा होता.
ईश्वर आपको सद्बुद्धि दे.
वन्दे-ईश्वरम
हिन्दु धर्म का मजाक उड़ाने का काम करे रहे हंै मुसलमान। हिन्दु धर्म से इतनी ही मोहब्बत है तो क्यों नहीं इसकी सारी बातों को माना जाता है, क्यों एक ही पत्नी नहीं रखते हैं मुसलमान। अपने देश में मुसलमानों के लिए अलग कानून काहे बनाया गया है।
सलीम मियां कहीं ईश्वर-ईश्वर कहने से आपकी बिरादरी आपको बाहर न करे दे, जरा ध्यान रखे, अल्ला हाफिज
संजय जी से सहमत, बाकी जैन, पारसी और बौद्ध धर्मों का क्या है, क्या ये धर्म नहीं हैं?
"पाकिस्तान में रहने वाले हर इंसान को मुसलमान होना पड़ता है।"
तो क्या पाकिस्तान में इन्सान भी रहते है ?
धर्म के लफड़े में पडऩा ही गलत है, सबसे धर्म इंसानियत और मानवता होता है, इस धर्म को अपनाए औैर सारे धर्मों से ऊपर उठे।
राजकुमार जी, धन्यवाद!
टिप्पणी बहुत लंबी हो जायेगी अतः इस विषय में मैं आज ही एक पोस्ट प्रकाशित करने जा रहा हूँ।
श्रीमान अवधिया जी नमस्कार,
बहुत ही बढ़िया बात लिखी है आपने, वैशनव, शैव और शक्त अलग -अलग धर्मं नही थे और ना ही अलग-अलग संप्रदाय, ये तो सिर्फ़ अपनी अपनी परम्परा थी, क्योंकि हिंदू कोई धर्म नही है, ये ख़ुद भी एक परम्परा है, मेरे समझ से धर्म तो उसे कहते है जिसको मानने वाले एक ही तरह से पूजा पद्धति पर भारोशा करते हैं ना की अलग-अलग, सिख धर्म है, इशाई एक धर्म है और ख़ुद इस्लाम भी एक धर्म hai , मगर हिंदू धर्म कंहा हैं, महाराष्ट्र मैं गणेश पूजा, तो साउथ इंडिया में पोंगल, तो बंगाल में काली पूजा तो उत्तर भारत में, दीवाली, छठ दसहरा, पूर्णिमा, पंजाब में वैशाखी और लोहरी आपस में समानता भी तो नही है , उत्तर भारत में राम-कृष्ण , दुर्गा और वैशनव तो साउथ में वेंकटेश तो गुजरात में द्वारिकदीश । अभी उत्तर भारत में नवरात्रे शुरू हो चुके हैं तो लोगो के घरो से लहसुन और प्याज तक गायब हो चुके हैं, लेकिन बिहार, बंगाल आसाम, उडीसा और नेपाल में तो नवरात्रों में जानवरों की बलि तक का प्रावधान है, तो कंहा से आप या कोई हिंदू को धर्म कहता है। हिंदू सदियों से चली आ रही एक परम्परा है जिसको लोग अलग-अलग तरीके से निभाते हैं।
हिंदू तो हिंदू न कह कर के सनातन धर्म कहा जाए तो ज्यादे अच्छा रहेगा ।
हिंदू शब्द की उत्त्पति भारत के लोगो के द्वारा नही बल्कि फारसियों के द्वारा की गई है, २५०० साल पहले जब फारसियों ने भारत पर आक्रमण करना शुरू किया तो उनका मुकाबला सबसे पहले सिन्धु नदी से हुआ, जिसका उच्चारण उनके द्वारा सिन्धु ना होकर के हिंदू हुआ, और वंही से हम हिंदू हो गए।
इंडियन शब्द भी हमें दान में यूरोपियन लोगो ने दिया है , यूरोपियन लोगो नो सिन्धु नदी को इंदस रिवर कहा, वंहा से हम हो गये इंडियन .
भाई लोगों हिन्दू विषय पर मैंने कुछ किताबें पढी है उनसे मैं भी नहीं समझ पा रहा कि कौन हिन्दू है,
समय समय पर विचारधारायें बदलने पर आज हिन्दू को पूछना पड रहा है कि कौन हिन्दू है, वह हिन्दू है? जो मांस खाता है तो किया फिर आदीवासी और काली भक्त मांसाहारी हिन्दू नहीं हैं, मूर्ती पूजक हिन्दू है और किया शराब का सेवन करने वाले भी हिन्दू हैं कि नहीं,
अनेक प्रशन उत्तर किसी के पास नहीं, फिर भी मे Tarkeshwar Giri से सहमत हूं कि ''हिंदू तो हिंदू न कह कर के सनातन धर्म कहा जाए तो ज्यादे अच्छा रहेगा ।''
और सनातन धर्म या क़ुरआन और वेद से इन बातों को जाना चाहो अगर ईश्वर ने आपकी किस्मत में पढना लिखा होगा तो पढो
e-Book: सनातन धर्म के अध्ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में (हैरानी के कारण) तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं विद्वान मौलाना आचार्य शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक योग्य शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकाने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है,
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